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रसार्णवसुधाकरः .
जैसे रघुवंश ८.२२ में
स्थिर कार्यकर्ता नये राजा (अज) अपने फल की प्राप्ति हुए बिना अपने आरम्भ किये हुए कर्मों से विरत नहीं हुए तथा स्थिर बुद्धिवाले प्राचीन राजा (रघु) परमात्मा के साक्षात्कार के विना योगाभ्यास से विरत नहीं हुए।।3।।
अथ दक्षता
दुष्करे क्षिप्रकारित्वं दक्षता परिचक्षते ।।६५।। यथा
वालधिं त्रातुमावृत्य चमरेणार्पिते गले ।
पतन्तमिषुमन्येन स कृपालुरखण्डयत् ।।4।। दक्षता- दुष्कर कार्यों में शीघ्रता करना दक्षता कहलाता है।।६५उ.।।
जैसे- बालों से युक्त गले में रक्षा के लिए पूछ को लपेट कर उस दयालु (हनुमान्) ने शत्रु द्वारा गिरते हुए बाण को तोड़ डाला।।4।।
अथौज्ज्वल्यम्
औज्ज्वल्यं नयनानन्दकारित्वं कथ्यते बुधैः। यथा (रघुवंशे ६/१२)
तां राघवं दृष्टिभिरापिबन्त्यो नार्यो न जग्मुर्विषयान्तराणि । तथा हि शेषेन्द्रियवृत्तिरासां
सर्वात्मना चक्षुरिव प्रविष्टा ।।5 ।।
उज्ज्वलता- देखने से नेत्रों को आनन्द देने वाला अर्थात् मधुर आकृति वाला होना उज्ज्वलता कहलाता है।।६६पू.।।
जैसे (रघुवंश ६.१२) में
वे स्त्रियाँ एक टक होकर अज को अपने नेत्रों से इस प्रकार देख रही थी कि मानों उनका ध्यान किसी दूसरे काम की ओर गया ही नहीं था, क्योंकि इन स्त्रियों के दूसरी इन्द्रियों का व्यापार नेत्रों में ही प्रविष्ट हो गया है।। 5 ।।
अथ धार्मिकत्वम्
धर्मप्रवणचित्तत्वं धार्मिकत्वमितीर्यते ।।६६।। यथा (रघुवंशे १.२२)स्थित्यै दण्डयतो दण्ड्यान् परिणेतुः प्रसूतये । अप्यर्थकामौ तस्यास्तां धर्म एव मनीषिणः ।।6।।