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रसार्णवसुधाकरः
नाट्य का लक्षण- सात्विक इत्यादि अभिनयों द्वारा दर्शकों की नट में जिससे नायकविषयक तादात्म्य बुद्धि हो जाती है, वह नाट्य कहलाता है।।५७॥ .
रसोत्कर्षों हि नाट्यस्य प्राणास्तत् स निरूप्यते। विभावैरनुभावैश्च सात्विकैर्व्यभिचारिभिः ।।५८।। आनीयमानः स्वादुत्वं स्थायीभावो रसः स्मृतः।
तत्र ज्ञेयो विभावस्तु रसज्ञापनकारणम् ।।५९।।
रस की उत्कृष्टता ही नाट्य का प्राण है, इसलिए (पहले) उसी का निरूपण किया जा रहा है।
रस- विभाव, अनुभाव, सात्त्विकभाव और व्यभिचारी भावों द्वारा आस्वादन के योग्य बनाया गया स्थायीभाव ही रस कहलाता है।
विभाव- उनमें से विभाव को ही रसज्ञापन का कारण जानना चाहिए।।५८-५९॥
बुधैज्ञेयोऽयमालम्ब उद्दीपनमिति द्विधा।
आधारविषयत्वाभ्यां नायको नायिकापि च।।६।। विभाव के प्रकार- आचार्यों ने उस (विभाव) को दो प्रकार का जाना (कहा) है- आलम्बन तथा उद्दीपन। आधार और विषयता से नायक और नायिका- ये दोनों आलम्बन कहे जाते हैं ॥६०॥
आलम्बनं मतं तत्र नायको गुणवान् पुमान् । तद्गुणास्तु महाभाग्यमौदार्यं स्थैर्यदक्षते ।।६१।। औज्ज्वल्यं धार्मिकत्वं च कुलीनत्वं च वाग्मिता । कृतज्ञत्वं नयज्ञत्वं शुचिता मानशालिता ।।६२।। तेजस्विता कलावत्वं प्रजारञ्जकादयः ।
एते साधारणाः प्रोक्ता नायकस्य गुणाः बुधैः ।।६३।।
नायक के साधारण गुण- उस (आलम्बन) में नायक गुणवान् व्यक्ति होता है। उस नायक के ये गुण होते हैं- महाभाग्यशालिता, उदारता, स्थिरता, दक्षता, उज्ज्वलता, धार्मिकता, कुलीनता, वाक्पटुता, कृतज्ञता, नयज्ञता, शुचिता, मानशालिता, तेजस्विता, कलासम्पन्नता, प्रजारञ्जकता इत्यादि। नायक के ये साधारणगुण आचार्यों द्वारा कहे गये है।।६१-६३॥
तत्र महाभाग्यम्
सर्वातिशायिराज्यत्वं महाभाग्यमुदाहृतम्।