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रसार्णवसुधाकरः
वाले अनन्त और माधव नाम के दो पुत्र थे ।। १५ ।। तत्रानुजो माधवनायकेन्द्रो दिगन्तरालप्रथितप्रतापः
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यस्याभवन् वंशकरा नरेन्द्रा
स्तनूभवा वेदगिरीन्द्रमुख्याः । । १६ ।।
उनमें अनुज माधवनायकेन्द्र सभी दिशाओं में विस्तृत प्रताप वाले थे जिसके वेद,
गिरीन्द्र इत्यादि प्रमुख राजा वंश को बढ़ाने वाले पुत्र हुए || १६ ||
तस्याग्रजन्मा भुवि राजदोषैरप्रोतभावादनपोतसंज्ञाम् ख्यातां दधाति स्म यथार्थभूता
मनन्तसंज्ञां च महीधरत्वात् ।। १७ ।।
उस (माधव के) अग्रज (अनन्त) पृथ्वी पर राजदोष से रहित भाव के कारण प्रसिद्ध अनपोत (उपाधि) और पृथ्वी को धारण करने के कारण यथार्थभूत अनन्त नाम को धारण करते थे।।१७।।
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सोदर्यो बलभद्रमूर्तिरनिशं देवी प्रिया रुक्मिणी प्रद्युम्नस्तनयोऽपि पौत्रनिवहो यस्यानिरुद्धादयः । सोऽयं श्रीपतिरन्नपोतनृपतिः किञ्चाननाम्भोरुहे धत्ते चारुसुदर्शनश्रियमसौ स स्वात्महस्ताम्बुजे ।। १८ ।।
वह श्रीसम्पत्र अनपोत राजा (अनन्त) जिनका भाई बलराम के समान शरीर वाला, पत्नी देवी रुक्मिणी के समान, पुत्र प्रद्युम्न के समान और पौत्र अनिरुद्ध इत्यादि के समान थे,
वे अपने मुखकमल तथा हस्तकमलं पर रूचिकर सुदर्शन की कान्ति को धारण करते थे || १८ | बहुसोमसुतं कृत्वा भूलोकं यत्र रक्षति ।
एकसोमसुतं रक्षन् स्वर्लोकं लज्जते हरिः ।। १९ ।।
(जिनके ) अनेक बार सोम का सवन (सोमसुत) करके भूलोक की रक्षा करते समय अकेले बुध (सोमसुत) की रक्षा करते हुए स्वर्गलोक में भगवान् विष्णु लज्जित होते थे ॥ १९ ॥
सोमकुलपरशुरामे भुजबलभीमेऽरिगायिगोपाले
यत्र च जाग्रति
शासति
जगतां जागर्ति नित्यकल्याणम् ।। २० ।।
सोमवंश में उत्पन्न परशुराम के समान, भुजाओं के बल में भीम के समान और
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