________________
[ ८ ]
रसार्णवसुधाकरः
मन्दारपारिजातचन्दनसन्तानकल्पमणिसदृशैः अनपोतदाचवल्लभवेदगिरिस्वामिमाददामयसंज्ञैः
1
।। ३५।।
आत्मभवैरनितरजनसुलभ (दया) दानविदितैर्यः । रत्नाकर इव राजति राजकरारचितसुकमलोल्लासः । । ३६ ।। मन्दार, परिजात, चन्दन के विस्तार तथा कल्पमणि के समान अनपोत, दाच, वल्लभ, वेदगिरि, स्वामी, माद, दामय नामक पुत्रों से युक्त तथा दूसरे लोगों को असुलभ दयादान की प्रसिद्धि से युक्त होकर समुद्र के समान अपने हाथों पर रचित कमल के विकास वाले जो (शिङ्गभूपाल) शोभायनान थे । । ३५-३६ ॥
यस्याढ्यः प्रथमः कुमारतिलकः श्रीयन्नपोतोगुणरेकस्याग्रजमात्मरूपविभवे चापे द्वयोरग्रजम् । आरुढे त्रितयाग्रजं विजयते दुर्वारदोर्विक्रमे सत्योक्तौ चतुराग्रजं विजयते किञ्चापि पञ्चाग्रजम् ।। ३७।। जिसका प्रथम पुत्र तथा कुमारों में तिलक-स्वरूप श्री अनपोत अपने गुणों से, एक अग्रज वाला (अर्थात् दूसरा पुत्र) अपने रूप वैभव में, दो अग्रजों वाला (अर्थात् तृतीय पुत्र ) (अपने ) धनुष (की निपुणता ) में, तीन अग्रजों वाला ( अर्थात् चतुर्थ पुत्र) उत्कृष्ट और दुर्निवार्य भुजाओं के विक्रम में और चार अग्रजों वाला (अर्थात् पञ्चम पुत्र) सत्योक्ति में पराजित करता था। फिर पाँच अग्रजों वाले (षष्ठ पुत्र) को क्या कहना ॥ ३७॥
युद्धे यस्य कुमारदाचयविभोः खड्गाग्रधाराजले मञ्जन्ति प्रतिपक्षभूमिपतयः शौर्योष्मसन्तापिताः । चित्रं तत्प्रमदाः प्रणष्टतिलकाः व्याकीर्णनीलालकाः प्रभ्रश्यत्कुचकुङ्कुमाः परिगलन्नेत्रान्तकालाञ्जनाः ।। ३८ ।।
युद्ध में (शिङ्गभूपाल के द्वितीय पुत्र) जिस कुमार दाचय प्रभु के तलवार की अगली
धार में शौर्य के ताप से सन्तप हुए विरोधी राजागण स्नान करते थे। यह विचित्र बात है कि उनकी रमणियों (पत्नियाँ) अपने (सौभाग्य के चिह्न मस्तक के) तिलक को विनष्ट कर देती थी, काले बालों को छिटका देती थी, स्तनों पर लगाये गये कुङ्कुमों को हटा देती थीं और नेत्रों से काले अञ्जनों को बहाती थीं ॥ ३८ ॥
परिपोषिणि यस्य पुत्ररत्ने दयिते वल्लभरायपूर्णचन्द्र ।
समुदेति सतां प्रभावशेषः कमलानामभिवर्धनं तु चित्रम् ।। ३९ ।।
जिस (शिङ्गभूपाल) के (तृतीय) प्रिय पुत्ररत्न वल्लभराय पूर्णचन्द्र के उन्नति करने पर सज्जनों के प्रति प्रभाव अवशिष्ट रह जाता था, फिर कमलों का खिलना तो विचित्र (बात ) थी ।। ३९ ॥