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प्रथमो विलासः
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तत्र शिङ्गमहीपाले पालयत्यखिलां महीम् ।
नमतामुन्नतिश्चित्रं राज्ञामनमतां नतिः।।११।।
उस शिङ्गराजा के सम्पूर्ण पृथ्वी का पालन करने पर राजा के प्रति विनम्र लोगों की अत्यधिक उन्नति और अविनीत लोगों की अवनति हुई॥११॥
कृष्णलेश्वरसन्निधौ कृतमहासम्भारमेलेश्वरे वीतापायमनेकशो विदधता ब्रह्मप्रतिष्ठापनम् । आनृण्यं समपादि येन विभुना तत्तद्गुणैरात्मनो निर्माणातिशयप्रयासगरिमव्यासङ्गिनि ब्रह्मणि।।१२।।
कृष्णा (नदी के तटपर) एलेश्वर (येलेश्वर नामक स्थान) के समीप में अत्यधिक सामग्रियों को (इकट्ठा) करके एलेश्वर में अभाव से रहित तथा अनेक प्रकार से तत्तत् (ब्रह्मा के प्रत्येक) गुणों से युक्त अत एव ब्रह्म की प्रतिष्ठा (उपाधि) को धारण करते हुए जिस प्रभु (दाचयनायक) के द्वारा (अपने) निर्माण में अतिशय प्रयत्न के गौरव की एकनिष्ठता वाले ब्रह्मा के प्रति अपनी अनृणता (ऋण-रहितता) को सम्पादित कर दिया गया॥१२॥
कृतान्तजिह्वाकुटिलां कृपाणी दृष्ट्वा यदीयां त्रसतामरीणाम् । स्वेदोदयश्चेतसि सञ्चितानां
मानोष्मणामांतनुते प्रशान्तिम् ।।१३।।
यमराज की जिह्वा की भाँति कुटिल भुजाली (बी) को देखकर जिसके भयभीत शत्रुओं के चित्त में सञ्चित (अत एव) उत्पन्न पसीना मान-रूपी ताप को शान्त करता था।।१३॥
श्रीमान् रेचमहीपतिः सुचरितो यस्यानुजन्मा स्फुटं प्राप्तो वीरगुरुप्रथां पृथुतरां वीरस्य मुद्राकरीम् । लब्ध्वा लब्धकठारिरायविरुदं राहुत्तरायाङ्कितं.
पुत्रं नागयनायकं वसुमतीवीरैकचूणामणिम् ।।१४।।
जिस (शिङ्गप्रभु) के सुचरित अनुज श्रीमान् रेचमहीपति ने वीरों के गुरुओं में प्रख्यात तथा अत्युत्कृष्ट वीरों के चिह्न वाली और राहुत्तराय द्वारा अङ्कित कठारिराय उपाधि वाले और वीरों में अनुपम चूणामणि के समान नागयनायक नामक पुत्र को प्राप्त किया।।१४।।
सोऽयं शिङ्गमहीपालो वसुदेव इति स्फुटम् ।
अनन्तमाधवी यस्य तनूजौ लोकरक्षकौ।।१५।। वे शिङ्ग महीपाल वसुदेव के समान प्रसिद्ध थे और उनके लोगों की रक्षा करने
रसा.४