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संकल्प और त्याग की प्रतिमूर्ति
क्षुल्लिका राजमती जी
आचार्य गुरु की महिमा में जितना वर्णन किया जाय अल्प है। आपकी आध्यात्मिक प्रतिभा का जन्म कर्नाटक प्रान्त के छोटे-से ग्राम कोथली में हुआ किन्तु उनका वैभव आज सम्पूर्ण भारत में विस्तृत है ।
__आचार्य श्री ने बाल्यकाल में ही आध्यात्मिक जीवन को अन्तःप्रेरणा से ग्रहण किया और उसकी ज्योति जन-जन के लिए प्रस्फुटित की। आपकी ज्ञानभूमि सिवनी रही है और आपने अनेक भाषाओं का अध्ययन-अभ्यास कर एक सौ से अधिक ग्रन्थों का सजन किया है और दुर्लभ ग्रन्थों को प्रकाशमान कराया। आपको बाल्यावस्था में आचार्य शान्तिसागर जी से 'कल्याण बागाली' का 'आशीर्वाद मिला और आज आर जन-कल्याण व आत्म-कल्याण की प्रेरणा प्रदान कर रहे हैं।
जैन धर्म की प्रभावना के लिए आपने स्थान-स्थान पर भव्य एवं आकर्षक जिनबिम्ब प्रतिमाओं को प्रतिष्ठित कराया है तथा अतिशय तीर्थक्षेत्रों की स्थापना करायी है। इस शृखला में जयपुर में श्री पार्श्वनाथ चूलगिरि तीर्थ है जहां श्री पार्श्वनाथ और श्री महावीर की उत्तुंग प्रतिमाओं के दर्शन कर लोग अपनी धर्मवृद्धि कर रहे हैं। आप ने मानस्तम्भ, गुरुकुल, विद्यालय, मुनि-निवास, यात्री-गह, 'धर्मशालाओं और जलस्रोतों के स्थापन-निर्माण में भी प्रेरणा दी है।
भव्य जन-कल्याण के लिए महान् पुनीत तीर्थंकरों की जन्मभूमि अतिशय क्षेत्र, सुकौशल देश की राजधानी, अयोध्या नगरी के मनोहर वषभोद्यान में महाकाय ३३ फुट उत्तुंग महामनोज्ञ श्री आदिनाथ तीर्थकर भगवान् की नूतन प्रतिमा बनवाकर नव जिनमंदिर का निर्माण और उसमें पंचकल्याण समारोह कराकर विधिपूर्वक स्थापित कराना भी आपकी ही प्रेरणा से संभव हुआ है। यह क्षेत्र भव्य जीवों के मन को वीतराग-परिणति की ओर आकर्षित करता है । इसके अगल-बगल में भरत बाहुबलि की प्रतिमाएं चक्रवर्ती भरतराज तथा कामदेव बाहुबलि का स्मरण कराती हैं । इसी प्रकार महाराष्ट्र की प्रसिद्ध नगरी कोल्हापुर में दीर्घकाल से प्रचलित भद्रारकों के मठस्थल पर प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगवान् की २५ फुट ऊंची खड़गासन प्रतिमा का प्रतिष्ठापन कराकर धर्म-प्रभावना की है।
इसी मन्दिर की प्रचकल्याणक-प्रतिष्ठा में आप मुझे बाल्यावस्था में ही माता-पिता, भाई-बहिन, तमाम सम्बन्धियों के मोह से मुक्त कराकर मेरी जन्मभूमि 'बछाखेड़ा' ग्राम से अपने साथ लाये और अपने सान्निध्य में रख कर संस्कृत, व्याकरण, सर्वार्थसिद्धि, जीवकांड आदि सिद्धान्त ग्रन्थों का अध्ययन कराया तथा सर्वप्रकार से दृढ़ता की परीक्षा ली। आपने मुझ अज्ञानी को ज्ञान की ओर अग्रसर किया और मोक्ष मार्ग के तपश्चरण करने योग्य बनाया । आपके प्रताप से मेरी मूढ़ता नष्ट हुई है और वीतराग में मन लगा है। कोल्हापूर के श्री आदिनाथ भगवान के पंचकल्याण के अवसर पर ही आपने मुझे आत्मकल्याण कराकर क्षुल्लिका दीक्षा प्रदान कर कतार्थ किया है। मेरा नाम राजमति रखा है। मेरा चरित्र में दृढ़ रहना, विद्या का प्राप्त करना, बालब्रह्मचारिणी होना, यह सब आचार्यश्री के आश्रय-प्रताप से ही हुआ है। आपके ही प्रताप से मुझे ज्ञानचरित्र की स्थिरता हुई है और आत्मबल प्रबल बना है। आपने मुझे स्त्री-लिंग छेदने का जो मार्ग बताया, इसके लिए मैं आपकी चिर ऋणी हूं।
आपके मन में जिन-बिम्ब प्रतिष्ठा-निर्माण के प्रति उत्साह और लगन क्यों है, इस विषय में आचार्यश्री ने व्यक्त किया है कि-"मूति-निर्माण के बारे में यथार्थ में बात यह है कि श्रवणबेलगोल जाकर भगवान् बाहुबलि की दिव्य छवि के दर्शन करने से अवर्णनीय आनन्द मिला, शान्ति प्राप्त हुई । बाहुबलि का चिन्तन ध्यान में सहायक रहा है। इसलिए आत्मध्यान के सहायतार्थ हमारा मन अत्यन्त उत्तंग और विशाल जिनबिम्बों के निर्माण की ओर गया।" वस्तुतः आपकी आध्यात्मिक प्रतिभा से भारत के जैन-अजैन ही नहीं अपितु विदेशियों पर भी प्रभाव पड़ा है। अमेरिका, इटली, डच, कम्बोडिया के अनेक जन आपके चरणों में नमन कर 'चुके हैं।
आचार्यरत्न अपने संकल्प, तप और त्याग में दृढ़ हैं—अनेक उपसर्ग आये, किन्तु सब निष्फल रहे । सर्प ने काटा, शेर-चीते दहाड़े, आहार और गमन में लोग बाधक हुए किन्तु इन सब पर महाराज श्री को विजय श्री प्राप्त हुई। अनेक स्थानों पर समाज की समस्याएं भी सामने आईं, किन्तु आपके शान्त और मधुर व्यक्तित्व तथा प्रभावशाली प्रतिभा के प्रभाव से समाधान हुआ, शान्ति रही, प्रभावना हुई। कालजयी व्यक्तित्व
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