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एक मात्र अहिंसक उपाय महात्मा गांधी द्वारा उद्घाषित किया गया है। समाज से शोषण, दमन, भुखमरी मिटाने में जैनागम का उक्त विचार प्रबल भूमिका निर्वाह कर सकता है । जनसंख्या वृद्धि पर रोक
श्रावकाचार का चतुर्थ व्रत ब्रह्मचर्य माना गया है। जैनागम में अनुसार श्रावक के सन्दर्भ में ब्रह्मचर्य का अर्थ है स्वपरिगृहीता (अथवा परिगृहीत) के साथ संयमित एवं मर्यादित संभोग, तथा अपरिगृहीता (अथवा अपरिगृहीत) के साथ शारीरिक संसर्ग का त्याग। इसके अतिरिक्त सभी प्रकार के अप्राकृतिक संभोग एवं मनुष्येतर प्राणियों के साथ मैथुन का निषेध किया गया है।
आज भारतवर्ष जनसंख्या-वृद्धि से ग्रस्त है। जितनी मात्रा में उपभोग सामग्री का उत्पादन नहीं होता उससे अधिक उपभोक्ता प्रतिदिन जन्म ले लेते हैं । जनसंख्या की वृद्धि को रोकने के जो सरकारी उपाय अपनाए गए हैं, उनमें निरोधात्मक उपकरणों का प्रयोग, गर्मनिपात, वन्ध्यत्व के ऑपरेशन, प्रजनन-निरोधक औषधियां तथा इंजेक्शन आदि आते हैं, परन्तु उक्त सभी उपाय अप्राकृतिक एवं हिंसक हैं। जैनागम द्वारा प्रदर्शित उपाय प्राकृतिक एवं अहिंसक हैं। प्रत्येक जैन श्रावक पंचमी, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी, अमावस्या तथा पूर्णिमा के दिन रति-क्रिया का त्याग करता है तथा शेष दिनों के लिए मैथुन की मर्यादा निर्धारित करता है।
सामाजिक संसर्ग युवा स्त्री-पुरुषों को शारीरिक संसर्ग हेतु भी प्रलुब्ध कर सकता है, और यहीं सामाजिक दुराचार एवं व्यभिचार का आरंभ होता है। जैनागम विवाह-पूर्व तथा विवाहोपरान्त अपरिगृहीत साथी के साथ शारीरिक संसर्ग का निषेध करता है। सामाजिक व्यवस्था को कायम रखने के लिए यह वर्जना आवश्यक है । उन्मुक्त रति-संबंधों वाले जो भी समाज विकसित हुए, उनमें अशान्ति, कुण्ठा, प्रतिस्पर्धा, ईर्ष्या, आत्मघात आदि दुर्वृत्तियों का जन्म हुआ तथा वे समाज शनैः-शनैः विघटित होते गए।
__ मुझे अब लगता है कि, यदि भारतीय समाज को विघटन से बचाना है और समाज में शान्ति, समृद्धि तथा भावात्मक एकता कायम करना है, तो जैनाचार ही सार्वजनिक आचार का आधार बन सकते हैं । आज की भ्रान्त एवं अशान्त मानवता की रक्षा का यही एक विकल्प है।
पुनर्मूल्यांकन यहां हम एक ऐसे विद्वान का उल्लेख करना चाहेंगे जिन्होंने जैन धर्म का गहन अध्ययन करने के अनन्तर अपने विचार बदले हैं। वाशबर्न हॉपकिन्स ने आरम्भ में जैन धर्म की बड़ी कटु समीक्षा की है। उन्होंने लिखा कि भारत के महान धर्मों में से नातपुत्त के धर्म में सबसे कम आकर्षण है और इसकी कोई उपयोगिता नहीं है, क्योंकि इसकी मुख्य बातें हैं-ईश्वर को नकारना, आदमी की पूजा करना और कीड़ों को पालना। बाद में जैन धर्म के बारे में अपनी अधूरी जानकारी के बारे में उन्होंने खेद व्यक्त किया। एक पत्र में उन्होंने श्री विजय सूरि को लिखा: "मैंने अब महसूस किया है कि जैनों का आचार-धर्म स्तुति योग्य है । मुझे अब खेद होता है कि पहले मैंने इस धर्म के दोष दिखाए थे और कहा था कि ईश्वर को नकारना,आदमी की पूजा करना तथा कीड़ों को पालना ही इस धर्म की प्रमुख बाते हैं । तब मैंने नहीं सोचा था कि लोगों के चरित्र एवं सदाचार पर इस धर्म का कितना बड़ा प्रभाव है । अक्सर यह होता है कि किसी धर्म की पुस्तकें पढ़ने से हमें उसके बारे में वस्तुनिष्ठ ही जानकारी मिलती है, परन्तु नजदीक से अध्ययन करने पर उसके उपयोगी पक्ष की भी हमें जानकारी मिलती है, और उसके बारे में अधिक अच्छी राय बनती है।
-प्रो० एस० गोपालन जैन धर्म की रूपरेखा, पृ० सं०१०-११ से साभार
बंग धर्म एवं माचार
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