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बी-१ : जैन शैली से प्रभावित बुद्ध प्रतिमा की चरण-चौकी— मध्यस्थित धर्मचक्र के बायीं ओर दो स्त्रियां तथा दो पुरुष, स्त्रियों में प्रथम माला व द्वितीय कमलपुष्प लिए हुए हैं तथा दायीं ओर माला लिए हुए प्रथम तथा
पीछी (?) जैसी वस्तु लिए हुए अंतिम मूर्ति है (कुषाण काल, मथुरा )
उपरोक्त निदर्शनों की अल्पता हमें मथुरा की जैन प्रतिमाओं के सिहासनों पर बहुलता से दृष्टिगोचर होती है।
जिस समय जैन प्रतिमाओं का ई० पू० से प्रारंभ पाते हैं उसी समय पीछी, कमण्डल लिए नग्न साधु व दूसरी खंडित मूर्ति जिसका वस्त्र खण्ड मात्र ही शेष है, दीख पड़ते हैं। यह वही सर्व प्राचीन स्तम्भ है जिस पर भगवान् ऋषभनाथ के वैराग्य का विलेखन है । इस पट्ट के अतिरिक्त एक आयाग पट्ट, जिसके मध्य में चौकी पर पार्श्वनाथ, जिन पर सातफण बने हैं, विराजमान हैं और इन्हीं की वंदना में दो जिनकी साधु नमस्कार मुद्रा में खड़े हैं ये दोनों कला- रत्न ई० पू० के हैं क्योंकि तीर्थंकर के बैठने व अन्य आकृतियों की बनावट के आधार पर इन्हें शुङ्गकाल का माना गया है ।
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(प्रयाग-पट)
इन ईसा पूर्व के दो निदर्शनों के अतिरिक्त राज्य-संग्रहालय, लखनऊ में कंकाली टीला मथुरा की कुल ९६ प्रतिमाएं हैं जिन पर जैन धर्म के चतुविध संघ का बहुलता से प्रस्तरांकन किया गया है। इनमें ४५ बंडी सड़ी ६ सर्वतोभद्र, २ ऐसी प्रतिमाएं जिनपर शेरों का रेखांकन व लेख ११ ऐसी पिसी हुई प्रतिमाएं जिनके नीचे संघ बनाया गया होगा किन्तु इस समय आभासमात्र ही शेष है। एकमात्र प्रतिमा, जिस पर लेख नहीं है ।
१.
जे - २५३, जैन स्तूप एण्ड एण्टीक्विटी, पृ० १७, प्लेट X, स्मिथ, बी० सी० ।
२.
जे - २१ व जे – ७१
३.
जे - १०८
जैन इतिहास, कला और संस्कृति
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