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साध्वियों के अपहरण करने का वर्णन भी आगम में मिलता है। कालकाचार्य की साध्वी भगिनी सरस्वती को उज्जैनी के राजा गर्दभिल्ल द्वारा अपहरण कर अन्तःपुर में रखने का वर्णन प्राप्त है। बृहत्कल्पभाष्य में एक कथा आई है जिसमें भृगुकच्छ के एक बौद्धवणिक् ने एक साध्वी के रूपलावण्य से मोहित हो, जैन श्रावक बन, कपट भाव से उन्हें अपने जहाज में चैत्य-वन्दन करने के लिये आमंत्रित किया। साध्वी के जहाज में पैर रखते ही उसने जहाज खुलवा दिया।' साध्वियों को चोर उचक्के भी कष्ट पहुंचाया करते थे। इस विपन्नावस्था में साध्वियों को अपने गुह्य स्थान की रक्षा चर्मखण्ड, शाक के पत्ते या अपने हाथ से करने का विधान मिलता है।'
__ जैन आगमों में साध्वियों को दौत्यकर्म करते हुए भी दर्शाया गया है । ज्ञातृधर्मकथा में मिथिला की चोक्खा परिव्राजिका का वर्णन मिलता है। उसे वेद शास्त्र तथा अन्य शास्त्रों का पण्डित कहा गया है। वह राजा, राजकुमारों आदि संभ्रान्त परिवारवालों को दानधर्म, शौचधर्म तथा तीर्थाभिषेक का उपदेश करती हुई विचरण करती थी। एक दिन वह अनेक परिव्राजिकाओं के साथ राजा कुम्भक की पुत्री मल्लिकुमारी को उपदेश दे रही थी। उपदेश-क्रम में राजकुमारी द्वारा पूछे कतिपय प्रश्नों का उत्तर न देने के कारण राजकुमारी ने उन्हें अपमानित कर अन्तःपुर से निष्कासित कर दिया। अपमानित हो, चोक्खा परिवाजिका पञ्चाल देश के राजा जितशत्र के पास पहुंची और मल्लिकुमारी के रूप लावण्य का वर्णन कर राजा को उसे प्राप्त करने के लिये प्रेरित किया।' उत्तराध्ययन टीका में एक कथा आई है जिसमें एक परिव्राजिका बुद्धिल की कन्या रयणाबाई का प्रेम पत्र ब्रह्मदत्त कुमार के पास ले जाते हुए दिखाया गया है एवं ब्रह्मदत्त कुमार का उत्तर रयणाबाई को पहुंचाते बताया गया है। दशवकालिकचूणि में एक परिवाजिका को एक युवक का प्रेम-संदेश एक सुन्दरी के पास ले जाते हुए दिखाया गया है । सुन्दरी द्वारा परिवाजिका अपमानित होती है।
कहीं-कहीं स्त्रियां पति को प्रसन्न करने के लिए अथवा पुत्रोत्पत्ति के लिये भी परिवाजिकाओं की सहायता लेते देखी जाती हैं। तेयलीपुत्र आमाव्य की पत्नी पोट्टिला अपने पति को इष्ट नहीं थी। वह अपना समय साधु-साध्वियों की सेवा-उपासना में बिताया करती थी। एक दिन सुव्रता नाम की साध्वी पोट्टिला के पास आई। पोट्टिला ने साध्वी की उचित सत्कारोपरान्त निवेदन किया-"आप साध्वी हैं, अनुभवी हैं, बहुश्रुत हैं। मेरे पतिदेव मुझसे अप्रसन्न रहते हैं। कृपया कोई ऐसा उपाय बतायें जिससे मेरे स्वामी मुझ से प्रसन्न रहने लगें तो मैं आपकी कृतज्ञा रहूंगी । यह सुनकर सुव्रता कानों पर हाथ दे वहां से चली गई। इसी तरह एक परिवाजिका किसी स्त्री को अपने पति को वशीभूत करने हेतु अभिमंत्रित तण्डुल देते दिखाई गई है। संतानोत्पत्ति के लिये मंत्र-प्रयोग, विद्या प्रयोग, . वमन, विरोचन आदि का वर्णन भी प्राप्त होता है।
आगम एवं तत्कालीन अन्य ग्रन्थों के अवलोकन के पश्चात् निगमन में कहा जा सकता है कि तत्कालीन समाज में स्त्रियों की स्थिति, उनका स्थान, सम्मान कालक्रम से घटते-बढ़ते रहे हैं। कहीं तो उनकी प्रचुर प्रशंसा और कहीं उनकी घोर निन्दा की गई है। स्त्रियों के किसी कार्य विशेष के अवलोकन से उनके सम्बन्ध में मत निर्धारित किया जाता था एवं उसी के आधार पर उनके सम्बन्ध में सामान्य धारणाओं का विकास होता था। उनके आचार-व्यवहार ही उनकी सामाजिक स्वतंत्रता के मापदण्ड थे।
मनु के स्वर में स्वर मिलाते हुए जैन आगम भी स्त्रियों को अविश्वसनीय, कृतघ्न, धोखाधड़ी करने वाली आदि आदि विशेषणों से विशेषित करते हैं। स्त्रियों को सदा-सर्वदा पुरुषों के नियंत्रण में रहने का परामर्श दिया गया है। उनकी स्वतंत्रता उन्हें नाश को प्राप्त कराने वाली कही गई है । स्त्री-चरित्र अमापनीय कहा गया है।
स्त्रियों के सम्बन्ध में इन हीन धारणाओं के साथ ही कुछ प्रशस्ति-वाक्य भी प्राप्त हैं। इन्हें चक्रवर्ती के चौदह रत्नों में एक कहा गया है। श्वे०आगम सर्वोच्चपद (तीर्थकर) प्राप्त महिला का भी वर्णन करता है। कई स्थानों में इन्हें पुरुषों को सन्मार्ग पर लाते
१. बृहत्कल्पभाष्य-१, २०५४ २. वही-१, २९८६ ३. ज्ञातधर्मकथा ८, पृ० १०८-१० ४. उत्तराध्ययन टीका १३, पृ० १६१ ५. दशवैकालिकचूर्णी २, पृ० ६० ६. ज्ञातधर्मकथा-१४, पृ० १५१ ७. ओषनियुक्ति टीका-५६७, पृ० १६३ ८. निरयावलि ३, पृ० ४८
आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ -
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