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परिग्रह से समाज में से इन्हें कम किया जा सकता है। आपके आधिक सिद्धान्तानुसार शासक को भी, जैसा कि अहिंसा सिद्धान्त में ऊपर लिखा गया है, भौंरे के फूलों से रस ग्रहण के समान जनता से यथावश्यक ही कर लेना चाहिए। इस कर ग्रहण और राज्य व समाज कार्यों पर व्यय हेतु दूसरा उदाहरण आप सूर्य का देते हैं। जिस प्रकार सूर्य वसुन्धरा से वाष्प के रूप में फल (कर) लेता है और बाद में मेघ के रूप में सबको वितरित कर देता है उसी प्रकार शासक को जनता से कर एकत्रित करना चाहिए और जनहितार्थं बिना अपने पराये के भेद के लगा देना चाहिए। अतः आपका समता अपरिग्रह आदि का सिद्धान्त आर्थिक क्षेत्र में क्रान्ति लाया ।
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५. साहित्यिक प्रभाव को देन साहित्यिक क्षेत्र में जैन साहित्य का एक महत्वपूर्ण योगदान है। इसे कई नवीन भाषाओं के निर्माण में प्रमुख 'योगदान देने वाला कहा जा सकता है। इस धर्म के अधिकांश प्रारम्भिक लेखकों ने प्रचलित भाषा में अपने सिद्धान्तों व ग्रन्थों की रचना की। इसी कारण संस्कृत से प्राकृत और उससे अपभ्रंश का जन्म हुआ। बाद में शौरसेनी अपभ्रंश से हिन्दी, गुजराती 'आदि भाषाओं और अर्द्ध-मागधी अपभ्रंश से पूर्वी हिन्दी का जन्म हुआ ।
जैन साहित्य बहु आयामी, बहुरंगी और बहुक्षेत्रीय कहा जा सकता है। उत्तरी भारत में पंजाब, बिहार से लेकर मुर लंका तक जैन साहित्य और धर्म का प्रचार हुआ। प्राचीनकाल के दिगम्बर साहित्यकारों में कुन्दकुन्द, उमास्वामि, समन्तभद्र, पूज्यपाद, अकलंक, विद्यानन्दिन, माणिस्यनन्दिन, वीरसेन, जिनसेन, गुणभद्र और सोमदेव प्रमुख हैं। कुन्दकुन्द ने प्रवचनसार, समयसार, नियमसार, पंचास्तिकाय, रयणसार, उनुपेक्खा आदि प्रमुख ग्रंथ लिखे । आप जैन साहित्य के कीर्तिस्तम्भ हैं। आपके बाद उमास्वामि नामक आचार्य ने संस्कृत में तत्त्वार्थसूत्र और अनेक ग्रन्थ रचे । आपको आध्यात्मविशारद कहा जा सकता है। समन्तभद्र और अकलंक दक्षिण और उत्तर दोनों के सांस्कृतिक सन्धि पत्रों के रूप में स्मरणीय हैं। समन्तभद्र ने लगभग समस्त देश की यात्रा कर अनेक ग्रंथ रचे जिनमें रत्नकरण्डश्रावकाचार सबसे प्रसिद्ध और महत्त्वपूर्ण है पूज्यपाद ने ३७ कलाओं और विज्ञानों की चर्चा कर अपनी बहुमुखी प्रतिभा का परिचय दिया । अकलंक आठवीं शतीं में एक उच्चकोटि के नैयायिक हुये जिनकी समता करने वाले इस भूमि पर बहुत कम हुये हैं। हवीं शती में वीरसेन हये जिनके शिष्य जिनसेन ने दक्षिण में अपूर्व ग्रन्थों की रचना की। आचार्य जिनसेन का वर्द्धमान पुराण, पाश्वभ्युदय महापुराण, हरिवंश पुराण और आदि पुराण तथा जयधवल टीका विशिष्ट कृतियां हैं। सोमदेव की यशस्तिलक और नीति वाक्यामृत क्रमशः साहित्य और राजनीति की महोपलब्धियां हैं।
इनके अतिरिक्त शिवार्य की भगवती आराधना, पुष्पदन्त भूतबलि का पखण्डागम, गुणधर का कसायपाहू, निमंसूर की उपचरियम, गुणभद्र की उत्तरपुराण भी इस काल की प्रमुख कृतियाँ हैं।
श्वेताम्बर सम्प्रदाय के ग्रंथों में ११ अंग, १२ उपांग, ६ छेद सूत्र और १० प्रकीर्णक सर्वप्रसिद्ध ग्रन्थ हैं। इनके अधिकांश ग्रन्थ अर्द्धमागधी (शौरसेनी मिश्रित) भाषा में हैं। इन प्रत्थों पर अनेक आचार्यों ने भाष्य टीकारों आदि लिखी हैं। इनके अतिरिक्त जैन धर्म के तीर्थंकर तथा राम, कृष्ण आदि ६३ शलाकापुरुषों के ऊपर भी अनेक ग्रन्थ और काव्य लिखे गये ।
चरित्र और कथाओं के माध्यम से भी जैनाचार्यों ने विभिन चरित्रों का वर्णन देने के साथ आचार, विचार, कर्मव्रत, उपवास, आदि को स्पष्ट करने हेतु पर्याप्त ग्रन्थों की रचना की है। बृहतकथाको आख्यानमगिकोश, यशोपर चरित्र, श्रीपाल चरित्र, कुवलयमाला, सुगन्ध दशमी, यशस्तिलक चम्पू, जीवन्धर चम्पू, चन्द्रप्रभु चरित्र, गद्य चिन्तामणि, तिलक मन्जरी, कालकाचार्यं कथानक, उत्तमा चरित्र, चम्पका श्रेष्ठ ग्रन्थ हैं । अन्य रचनाओं में पालगोपाल कथानक, सम्यक्त, कौमदी, अन्तरकथा संग्रह, कथा महोदधि व कथा रत्नाकर आदि अनेक ग्रन्थों द्वारा भारतीय साहित्य और समाज को प्रभावित किया है ।
धर्मेतर विषयों पर भी जैन साहित्यकारों व आचार्यों ने पर्याप्त काम किया है। ज्योतिष गणित और आयुर्वेद के अनेक ग्रन्थ उनके द्वारा रणे गये। सूर्यप्रति चन्द्रप्रतप्ति, ज्योतिष्करण पर मलयगिरी की टीकायें महत्वपूर्ण है। हरिभद्रसूरि नरचन्द्र, हर्षकीति, महावीराचार्य, श्रीधराचार्य और राजादित्य के ज्योतिष और गणित के ग्रन्थ भारतीय साहित्य की अनूठी देन है। व्याकरण, अलंकार, छन्द, नाटक, शकुन विचार और संगीत आदि पर भी जैनाचार्यों ने अभूतपूर्व काम किया है। देवनन्दि का जैनेन्द्र व्याकरण, हेमचन्द्र आचार्य का सिद्ध हेमशब्दानुशासन, देशी नाम माला और द्वाथय महाकाव्य, साधु सुन्दर गमि का धातु रत्नाकर, त्रिविक्रम का प्राकृत शब्दानुशासन, कोश क्ष ेत्र में धनमाल का पाइअलच्छी नाम माला, धनंजय की नाम माला, धरसेन का विश्वलोचन कोश, हेमचन्द्र का अभिधान चिन्तामणि, नाम माला, अलंकार क्षेत्र में हेमचन्द्र का काव्यानुशासन वाग्भदालंकार तथा अजितसेन का अलंकार चिन्तामणि, छन्द के क्षेत्र में रत्नमंजूषा जयकीति का छन्दानुशासन, हेमचन्द्रका इन्दोनुशासन, नाट्य क्षेत्र में रामचन्द्र सूरि और गुणचन्द्र गणि का नाट्य दर्पण, संगीत में अभयचन्द्र का संगीतसार अनुपम कृतियां हैं।
मंग इतिहास, कला और संस्कृति
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