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सातवें मास में उस मानव-तन के अवयवों पर चर्म एवं रोम की उत्पत्ति होती है तथा हाथ-पैर के नख उत्पन्न हो जाते हैं। इसी मास में शरीर में कमल के डण्ठल के समान दीर्घनाल पैदा हो जाता है, तभी से यह जीव माता
का खाया हुआ आहार उस दीर्घनाल से ग्रहण करने लगता है।' ६. आठवें मास में उस गर्भस्थ मानव-तन में हलन-चलन क्रिया होने लगती है।'
नौवें अथवा दसवें मास में वह सर्वांग होकर जन्म ले लेता है।'
गर्भ-स्थान की अवस्थिति-आमाशय एवं पक्वाशय इन दोनों के बीच में जाल के समान मांस एवं रक्त से लपेटा हुआ वह गर्भ मास तक रहता है । खाया हुआ अन्न उदराग्नि से जिस स्थान में थोड़ा-सा पचाया जाता है, वह स्थान आमाशय और जिस स्थान में वह पूर्णतया पचाया जाता है वह पक्वाशय कहलाता है । गर्भस्थान इन दोनों (आमाशय एवं पक्वाशय) के बीच में रहता है।
रोग-उपचार एवं स्वस्थ रहने के सामान्य नियम- शरीर के रोगों एवं उपचारों की भी ग्रन्थकार ने विस्तृत चर्चा की है। उनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं
१. आँख में ६६ प्रकार के रोग होते हैं।' २. मलाराधना के टीकाकार पं० आशाधर के अनुसार शरीर में कुल मिलाकर ५,६८,६६,५८४ रोग होते हैं।'
वात, पित्त एवं कफ के रोगों में भूख, प्यास एवं थकान का अनुभव होता है तथा शरीर में भयंकर दाह उत्पन्न होती है। ईख कुष्ठ रोग को नष्ट करने वाला सर्वश्रेष्ठ रसायन है।' वात-पित्त-कफ से उत्पन्न वेदना की शान्ति के लिए आवश्यकतानुसार वस्तिकर्म (एनिमा), ऊष्मकरण, ताप-स्वेदन, आलेपन, अभ्यंगन एवं परिमर्दन क्रियाओं के द्वारा चिकित्सा करनी चाहिए।' गोदुग्ध, अजमत्र एवं गोरोचन ये पवित्र औषधियां मानी गई हैं।" कांजी पीने से मदिराजन्य उन्माद नष्ट हो जाता है। मनुष्य को तेल एवं कषायले द्रव्यों का अनेक बार कुल्ला करना चाहिए। इससे जीभ एवं कानों में सामर्थ्य प्राप्त होता है । अर्थात् कषायले द्रव्य के कुल्ले करने से जीभ के ऊपर का मल निकल जाने से वह स्वच्छ हो जाने के कारण स्पष्ट एवं मधुर वाणी बोलने की सामर्थ्य प्राप्त करती है । मनुष्य को अन्य पानकों की अपेक्षा आचाम्ल पानक अधिक लाभकर होता है, क्योंकि उससे कफ का क्षय, पित्त
का उपशम एवं वात का रक्षण होता है ।१४ १०. पेट की मल-शुद्धि के लिए मांड सर्वश्रेष्ठ रेचक है १५
कांजी से भीगे हुए बिल्व-पत्रादिकों से उदर को सेकना चाहिए तथा सेंधा नमक आदि से संसिक्त वर्ती गुदा-द्वार में
डालने से पेट साफ हो जाता है ।१६ १२. पुरुष के आहार का प्रमाण ३२ ग्रास एवं महिला का २८ ग्रास होता है।"
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१-२. दे० गाथा. १०१०, १०१७. ३-1. वे० गाथा १०१०.. ५. दे० गाथा १०१२. ६. दे. गाथा १०५४, ०. दे० गाथा १०५४ की मुलाराधना से०टी० ८, २० गाथा १०५३.
दे० गाथा १२२३. १०. ० गाथा १४६६. ११. ६० गाथा १०५२. १२. ० गाथा ३६०. १३. देगाथा ६८८. १४. द. गाथा ७०१. १५. द. गाया ७०२. १६. दे० गाथा ७०३. १७. 2. गाथा २११.
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