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'मूलाराधना' : ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक मूल्यांकन
-प्रो० राजाराम जैन
शौरसेनी प्राकृत के गौरव-ग्रन्थों में 'मलाराधना' का स्थान सर्वोपरि है। यद्यपि यह ग्रंथ मुख्यत: मुनि-आचार से सम्बन्ध रखता है और उसमें तद्विषयक विस्तृत वर्णनों के साथ-साथ कुछ मौलिक तथ्यों --- यथा जैन साधुओं की मरणोत्तर-क्रिया', सल्लेखना काल में मुनि-परिचर्या, मरण के विभिन्न प्रकार एवं उत्सर्ग-लिङ्गी स्त्रियों की भी जानकारी दी गई है। फिर भी, भौतिक ज्ञानविज्ञान सम्बन्धी विविध प्रासंगिक सन्दर्भो के कारण इसे संस्कृति एवं इतिहास का एक महिमा-मण्डित कोष-ग्रंथ भी माना जा सकता है। उसमें वणित आयुर्वेद-सम्बन्धी सामग्री को देखकर तो ऐसा प्रतीत होता है कि ग्रन्थकार स्वयं ही आयुर्विज्ञान के सैद्धान्तिक एवं प्रायोगिक क्षेत्र में सिद्धहस्त था । बहुत सम्भव है कि उसने आयुर्वेद सम्बन्धी कोई ग्रंथ भी लिखा हो, जो किसी परिस्थिति-विशेष में बाद में कभी लुप्त या नष्ट हो गया हो। ग्रंथ-परिचय
मलाराधना का अपर नाम भगवती-आराधना भी है। उसमें सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्चारित्र एवं सम्यगतप रूप चतविध आराधनाओं का वर्णन २१७० गाथाओं में तथा उसका विषय-वर्गीकरण ४० अधिकारों में किया गया है। प्रस्तुत ग्रंथ की लोकप्रियता एवं महत्ता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि विभिन्न कालों एवं विविध भाषाओं में उस पर अनेक टीकाएँ लिखी गई। इसकी कुछ गाथाएँ आवश्यक नियुक्ति, बृहत्कल्पभाष्य, भत्तिपइण्णा एवं संस्थारण नामक श्वेतांबर ग्रन्थों में भी उपलब्ध हैं। यह कह पाना कठिन है कि किसने किससे उन्हें ग्रहण किया ? किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि पूर्वाचार्यों की श्रुति-परम्परा ही इनका मूल-स्रोत रहा होगा। ग्रन्थकार-परिचय
मूलाराधना के लेखक शिवार्य के नाम एवं काल-निर्णय के विषय में पं० नाथूराम प्रेमी', हॉ० हीरालाल जैन, पं० जुगल किशोर मुख्तार एवं पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री" प्रभूति विद्वानों ने विस्तृत रूप में अपने गहन विचार प्रकट किए हैं और प्रायः सभी के निष्कर्षों के आधार पर उनका अपरनाम शिवकोटि२ या शिवमूति" था। वे यापनीय-संघ के आचार्य थे। इनके
१० जुगलकिशोर महतार एव पर लगा
१. दे० गाथा-१९६६-२००० २. दे० गाथा-६६२-७३२ ३. दे० गाथा-२५-३० तथा २०११-२०५३ ४. दे० गाथा-८१ ५. दे० गाथा-१-८ ६. दे. जैन साहित्य और इतिहास- नाथूराम प्रेमी, पृ७४-८६ ७. वही, पृ०७१-७३ ८. वही, (बम्बई १९५६)पृ० १६.८६ १. दे. भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, पृ० १०६ १०. अनेकान्त, वर्ष १. किरण १ ११. दे० भगवती पाराधना (प्रस्तावना) १२. जैन साहित्य एवं इतिहास, पृ०७५ १३. भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, पृ० १०६ १४. जैन साहित्य एवं इतिहास, पृ०६८-६६
जैन इतिहास, कला और संस्कृति
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