________________
(२६)
(११) पाडहिय (पटहवादक)
(२४) कांडिक (१२) डोम्ब (डोम)
(२५) दाण्डिक (१३) णड (नट)
चामिक (१४) चारण
(२७) छिपक (१५) कोट्टय (कुट्टक, लकड़ी एवं पत्थर की
(२८) भेषक काटकूट करने वाले)
(२९) पण्डक (१६) करकच (कतर-व्योंत करने वाले)
(३०) सार्थिक (१७) पुष्पकार (माली)
(३१) सेवक (१८) कल्लाल (नशीली वस्तुएं बेचने वाले)
(३२) प्राविक (१९) मल्लाह'
(३३) कोट्टपाल (२०) काष्ठिक (बढ़ई)
(३४) भट (२१) लौहिक (लुहार)
(३५) पण्यनारोजन (२२) मात्सिक
(३६) द्यूतकार, एवं (२३) पात्रिक
(३७) विट भौगोलिक सामग्री
किसी भी देश के निर्माण एवं विकास तथा सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक परिस्थितियों के नियन्त्रण में वहां की भौगोलिक परिस्थितियों का सक्रिय योगदान रहता है । भारत में यदि हिमालय, गंगा, सिन्धु, समुद्रीतट एवं सघन वन आदि न होते, तो उसकी भी वही स्थिति होती जो अधिकांश अफ्रीकी देशों की है । मूलाराधना यद्यपि धर्म-दर्शन एवं आचार का ग्रन्थ है, फिर भी उसमें भारतीय भूगोल के तत्कालीन प्रचलित कुछ उल्लेख उपलब्ध होते हैं, जिनका आधुनिक भौगोलिक सिद्धान्तों के सन्दर्भ में वर्गीकरण एवं संक्षिप्त विश्लेषण यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है :
१. प्राकृतिक भूगोल -इसके अन्तर्गत प्रकृति-प्रदत्त पृथ्वी, पर्वत, नदियां, वनस्पति, जलवायु, हवा आदि का अध्ययन किया जाता है । मूलाराधना में पर्वतों में मुद्गल पर्वत, कोल्लगिरि एवं द्रोणमति पर्वत' के उल्लेख मिलते हैं । महाभारत के अनुसार कोल्लगिरि दक्षिण भारत का वह पर्वत है, जिससे कावेरी नदी का उद्गम हुआ है । द्रोणमति पर्वत एवं मुद्गल पर्वत की अवस्थिति का पता नहीं चलता । महाभारत में इस नाम के किसी पर्वत का उल्लेख नहीं हुआ है । प्राकृतागमों में उल्लिखित एक मुदगलगिरि की पहिचान आधुनिक मंगेर (बिहार) से की गई है।
___नदियों में गगा एवं यमुना के नामोल्लेख मिलते हैं । यमुना को णइपूर कहा गया है, जिसका अर्थ टीकाकारों ने यमुना नदी किया है । विदित होता है कि ग्रन्थकार के समय से टीकाकार के समय तक यमुना नदी में अन्य नदियों की अपेक्षा अधिक बाढ़ आती रहती थी। अत: उसका अपरनाम ‘णइपुर' (बाढ़ वाली नदी) के नाम से प्रसिद्ध रहा होगा।
___ अन्य सन्दर्भो में पृथिवी के भेदों में मिट्टी, पाषाण, बालू, नमक एवं अभ्रक आदि, जल के भेदों में हिम, ओसकण, हिम विन्दु आदि, वायु के भेदों में झंझावात (जलवृष्टियुक्त वायु --Cyclonic winds) तथा माण्डलिक (वर्तुलाकार भ्रमण करती हुई)
१. दे० गाथा ६३३-३४.--गंधवणट्टजट्टरसचक्क जंतग्गिकम्मफरसेय ।
णत्तिय रजयापाडहिडोवणडरायमग्ग य ।।।
चारण कोट्टगकल्लाल करकचे पुप्फदय" । २. दे० मूलाराधना की अमितगति सं० टी० श्लोक सं०६५६-६५७ । पु० सं० ८३४-३५ तथा गाथा सं० १७७४. ३. गाथा सं० १४५०...मोग्गलगिरि... ४. गाथा सं० १५५२...दोणिमंत... ५. गाथा सं० २०७३...कोल्लगिरि... ६. महाभारत-सभापर्व ३१/६८. ७. भारत के प्राचीन जैन तीर्थ (डॉ. जे. सी. जैन), वाराणसी, १९५२, पृ० २६ ८. गाथा-१५४३. ९. गावा. १५४५. १०. गाथा ६०८ की विजयोदया टीका, पु. ५०५-६.
आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन अन्य
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org