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राजस्थान में चौहानकाल में बनी कई महत्वपूर्ण सरस्वती प्रतिमाएं भी प्रकाश में आई है। इनमें से दो वे संगमर्मर निर्मित सरस्वती प्रतिमाएं बीकानेर जिले के पहलू ग्राम से प्राप्त हुई थीं, जिनमें से एक अब राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली और दूसरी बीकानेर संग्रहालय में प्रदधित है। इन प्रतिमानों में राष्ट्रीय संग्रहालय में स्थित आदमकद प्रतिमा कला की दृष्टि से बीकानेर संग्रहालय वाली मूर्ति से अधिक भव्य प्रतीत होती है। देवी त्रिभंग मुद्रा में एक पूर्ण विकसित कमल पर खड़ी हैं। इनके ऊपर के दो हाथों में सनाल पद्म तथा रेशमी डोरे से बंधी ताड़पत्रीय पुस्तक, निचले दाहिने हाथ में जो कि अभय मुद्रा में है, अक्षमाला और निचले बाएं हाथ में कमण्डलु पकड़ रखा है जो कि अमृत घट का प्रतीक है। देवी ने अत्यन्त सुन्दर मुकुट, अनेक हार, कुण्डल, कोकरू, बाजूबन्ध, भुजबन्ध, माला तथा पारदर्शक साड़ी पहन रखी है। पैरों में पादजालक हैं । शीश के पीछे कमल रूपी प्रभा मण्डल, जिसके ऊपर ध्यानी 'जिन' तथा दोनों ओर आकाश में उड़ते गन्धर्व उत्कीर्ण हैं । मूर्ति के दोनों ओर एक-एक वीणावादिनी सेविका तथा पैरों के निकट दानकर्ता एवं उसकी पत्नी बैठे दिखाये गए हैं जिनके हाथ अली मुद्रा में है। देवी के पद्मपीठ के नीचे इनके वाहन हंस का भी अंकन है। चौहानकालीन, 12 वीं शती ई० की यह मूर्ति मध्यकालीन भारतीय प्रस्तर कला का सर्वष्ठ उदाहरण मानी गई है।'
बीकानेर संग्रहालय वाली सरस्वती मूर्ति उपर्युक्त मूर्ति से आकार में कुछ छोटी अवश्य है परन्तु उसमें भी चतुर्हस्ता देवी ने ऐसे ही अपने आयुध पकड़ रखे हैं। इस मूर्ति के साथ एक सुन्दर प्रभा-तोरण भी प्रदर्शित है, जिसके ऊपर जैन धर्म के प्रमुख देवी-देवताओं की लघु मूर्तियां उत्कीर्ण है। यह मूर्ति भी चौहान कला १२ वीं शती ई० की मानी गई है।'
कुछ
वर्ष पूर्व जिला नागोर के लाडनू नामक स्थान से सरस्वती की एक लेख युक्त प्रतिमा प्रकाश में आई है । इसमें चतुहंस्वा देवी पल्लू ग्राम की मूर्तियों की ही भांति अपने ऊपर के हाथों में पुण्डरीक व ताड़पत्रीय पुस्तक तथा निचले हाथों में अक्षमाला एवं अमृत घट लिए त्रिभंग मुद्रा में खड़ी हैं। श्वेत संगमर्मर निर्मित इस मूर्ति के प्रभा मण्डल के दोनों ओर मालाधारी गन्धर्व तथा सबसे ऊपर ध्यानी 'जिन' का अंकन है ।
यह सरस्वती मूर्ति भव्य मुकुट एवं विभिन्न वस्त्राभूषणों से पूर्ण रूप से सुसज्जित है। इनके पैरों के निकट वंसीवादिका, वीणाधारिणी एवं दो चंवरधारणियों की भी लघु मूर्तियाँ बनी हैं तथा पैरों के नीचे इनका वाहन हंस है। साथ ही दानकर्ताओं का भी अंकन प्राप्त है जिन्होंने इस मूर्ति का निर्माण कराया था। मूर्ति की पीठिका पर संवत् १२१६ अर्थात् १९६२ ६० के लेख से विदित होता है कि विक्रम संवत् १२१६ वैशाख सुदि ३ शुक्रवार को आशादेवी नामक श्रेष्ठी बासुदेव की पत्नी ने सपरिवार इसकी प्रतिष्ठापना आचार्य श्री अनन्तकीर्ति द्वारा कराई थी। तीन पंक्तियों का मूल लेख इस प्रकार है :
१. (२) संवत् १२१९ वैशाख (स) उदी के २. आचार्य श्री अनन्तकीति भक्त-धष्ठि वहु [तु] देव ३. देवी सकुटुंबा [बा] सरस्वती [वतीम् ] प्रणमति ॥
श्री माथुर ।। संघे पत्नी आशा -
पूर्णघट चिह्न ? || शुभमस्तु || शंख चिह्न (?)
राजस्थान में सेवाड़ी नामक स्थान से भी सरस्वती की सुन्दर मूर्ति प्रकाशित है । चतुर्हस्ता देवी ने अपने तीन हाथों में उपर्युक्त प्रतिमा की भांति कमल, पुस्तक तथा टूटा कमण्डलु ले रखा है जबकि इनका निचला दाहिना हाथ, जो संभवतः अक्षमाला पकड़े था, अब पूर्णतया खण्डित है। इसमें भी देवी को विभिन्न वस्त्राभूषणों से सुसज्जित किया गया मिलता है। देवी के दाहिनी ओर वीणावादिनी व बायीं ओर वंशीवादिका का अंकन है तथा सामने इनका वाहन हंस भी दर्शाया गया है। मूर्ति के दोनों ओर विभिन्न ताखों में नृत्य करती एवं विभिन्न वाद्यों को बजाती सुरसुन्दरियों को बड़ी कुशलता से उकेरा गया है। मूर्ति के बायीं ओर दानकर्ता को हाथ जोड़े बैठा दिखाया गया है।'
१. कादम्बरी शर्मा, 'जैन प्रतिमाओं में सरस्वती, चक्रेश्वरी, पदमावती और अम्बिका' सिद्धान्ताचार्य पंडित कैलाश चन्द्र शास्त्री अभिनन्दन ग्रन्थ; रीवा, १९८०, पृ० ३२२-३२४, चित्र १.
२. विजय शंकर श्रीवास्तव, 'कैटलॉग एण्ड गाईड टू गंगा गोल्डन जुब्ली म्यूजियम', बीकानेर, जयपुर, १९६० - ६१, पृ० १३, चित्र २.
३. देवेन्द्र हाण्डा एवं गोविन्द अग्रवाल, 'ए न्यू जैन सरस्वती फाम राजस्थान', ईस्ट एण्ड वेस्ट, रोम, २३, १-२, पृ० १६६ - ७०, चित्र १.
४ उमाकान्त प्रेमानन्द शाह, 'सम मेड्वीवल स्कल्पचर्स फाम गुजरात एण्ड राजस्थान', जर्नल ग्राफ दो इण्डियन सोसाईटी अफ ओरियन्टल आर्ट, कलकत्ता, १९६७, चित्र ३१.
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आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
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