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ही जगह बैठकर या मौन रखकर उस प्राप्त शान्ति को अपने तक ही सीमित नहीं रखा, पर गांव-गांव में घूमकर सद्धर्म के उपदेश दिये । इन के सार नैतिकतापूर्ण हैं।
१. जो मनुष्य धर्म करते हैं उनके रात और दिन सफल हो जाते हैं । २. ज्ञानी होने का सार ही यह है कि वह किसी भी प्राणी की हिंसा न करे । ३. धर्म का मूल विनय है और मोक्ष उसका अन्तिम रस । ४. क्रोध नीति का नाश करता है; मान विनय का, माया मित्रता का और लोभ सभी सद्गुणों का। -महावीर वाणी
धर्म सम्बन्धी दृष्टिकोण भी नैतिक मानदण्ड है । धर्म जीवन जीने की कला है । धर्म एक आदर्श जीवन-शैली है । सुख से रहने की पावन-पद्धति है। शान्ति प्राप्त करने की विमल विद्या है। सर्वजन कल्याणी आचार संहिता है, जो सबके लिए है । नीति बीज है, धर्म फल है। नीति कारण है, धर्म कार्य है। अंतस को बदले बिना आचरण नहीं बदला जा सकता । केन्द्र के मूल को बदले बिना, परिधि को बदलने का प्रयास केवल एक निरर्थक स्वप्न है।
जैन धर्म का सबसे बड़ा नैतिक मानदण्ड अंहिसा है । डा० सालतोर ने कहा है-'हिन्दू संस्कृति में अहिंसा एवं सहिष्णुता के सिद्धान्त जैनों की महान देन है।" पार्श्वनाथ ने अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह आदि सद्गुणों को सामाजिक जीवन में आचरणीय बनाया था। महावीर ने बारह साल की कठोर साधना के बाद सिद्धि प्राप्त होने पर जो उपदेश दिया, उसमें प्रथम स्थान अहिंसा को दिया। उन्होंने बताया कि हर व्यक्ति सुख से जीना चाहता है और दुःख भोगना या मरना नहीं चाहता। इसलिए किसी को दुःख मत दो । हिंसा, दुखों तथा बैर को बढ़ाने वाली है । महावीर ने आत्म-साधना द्वारा मनुष्य की प्रेरणा का स्रोत सुख से जीने की इच्छा माना। डा० अलवर्ट ने कहा है"हर मनुष्य की सुख से जीने की इच्छा है। इसलिए जीवन को आदर दो और ऐसा जीवन जियो, जिसमें कम से कम दूसरों को न दुःखाया जाय।" अध्यात्म से महावीर जिस निर्णय पर पहुंचे वह व्यावहारिक जीवन का अति उत्तम मानदण्ड है।
महावीर कहते हैं कि हर कार्य सावधानी से कीजिए, यतन से कीजिए, बिना सावधानी के जो काम मूर्छा में होते हैं,वह हिंसा है। उन्होंने मूर्छा को हिंसा कहा है। वैर के निवारण का उपाय उन्होंने जो अहिंसा और अनेकान्त बताया वह आज भी उतना ही उपयोगी और कारगर है जितना कि उस समय था । निवृत्ति अहिंसा है। अहिंसा का अर्थ प्राणों का विच्छेद न करना, इतना ही नहीं, उसका अर्थ है-मानसिक, वाचिक एवं कायिक प्रवृत्तियों को शुद्ध रखना। दूसरे शब्दों में यों कहा जा सकता है कि अहिंसा का संबंध जीवित रहने से नहीं, उसका दुष्प्रवृत्ति की निवृत्ति से है। राग, द्वेष, मोह, प्रमाद आदि दोषों से रहित प्रवृत्ति भी अहिंसात्मक है।
कितना उत्तम हो यदि हम इन दिव्य सूत्रों के अनुसार अपने जीवन को ढालें । प्रेम की दिव्य उत्पत्ति भी अहिंसात्मक वृत्ति से होती है । सभी धर्मों में इसे 'परमधर्म' माना गया है । 'अहिंसा परमोधर्मः'। वैज्ञानिक साधनों से आज विश्व छोटा-सा बन गया है अर्थात् सबका हिलना-मिलना सुगम हो गया है। अतः यदि हम सब को जीना है, सुखी रहना है तो सह-अस्तित्व यानी 'जीओ और जीने दो' का नारा बुलन्द करना होगा। आज रक्षा केवल धर्म कर सकता है लेकिन धर्म इन दिनों उपेक्षित और ह्रास की अवस्था में है। युक्तिवाद के श्रेष्ठ दावों के प्रति सन्देह उत्पन्न हो जाने के बावजूद स्वार्थ और गैरजिम्मेदारी कायम है। इस वर्तमान अवस्था में हमको आध्यात्मिक मूल्यों की रक्षा करनी चाहिए। आत्मनिर्भरता और उद्यम अनीश्वरवाद से नहीं पनपता। कवि पन्त के शब्दों में
'सत्य अहिंसा से आलोकित होगा मानव का मन, अमर प्रेम का मधुर स्वर्ग हो जावेगा जगजीवन,
आत्मा की महिमा से मंडित होगी नव मानवता।' परन्तु इस नव मानवता की कल्पना साकार कैसी होगी? इसका उत्तर शील-साधना है । महावीर की वाणी में-शील यानी आचार-शीम मुक्ति का साधन है, शील ही विशुद्ध तप है। शील ही दर्शन विशुद्धि है, शील ही ज्ञान-बुद्धि है । शील ही विषयों का शत्रु है। शील ही मोक्ष की सीढ़ी है। जीवों पर दया करना, इन्द्रियों को वश में करना, सत्य बोलना, चोरी न करना, सन्तोष धारण करना, सम्यक दर्शन, ज्ञान और तप—ये सब शील के परिवार हैं। ईर्ष्या, द्वेष आदि से मुक्त होना चाहिए । यही 'शील' है।
महावीर ने दो मार्ग बताये हैं—निवर्तक मार्ग एवं प्रवर्तक मार्ग। निवर्तक मार्ग है-किसी का प्राण नाश न करना,किसी को कष्ट न पहुंचाना, किसी के साथ ईर्ष्या, द्वेष,क्रोध आदि न करना। प्रवर्तक मार्ग है-परिचर्या सेवा करना, हित तथा प्रिय व्यवहार करना । अपने अन्दर दैवी गुणों का विकास करना। यही सद् आचरण है । शिर काटने वाला शत्रु भी उतना अपकार नहीं कर सकता, जितना की दुराचरण में रत आत्मा करती है। सांसारिक दुखों से मुक्त होने का साधन बताया है- 'जो मानव अपने आप पर नियन्त्रण पा लेता है यानी संयम को आत्मसात् कर लेता है, वह दुःखों से मुक्त हो जाता है । यही जीवन-दिशा है ।
जैन आचार शास्त्र का एक दूसरा गुण है जो हमें एक आदर्श पड़ौसी बनने की प्रेरणा देता है । तदनुसार हर एक को सत्य बोलना जैन धर्म एवं आचार ..
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