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दिव्य परुष
डॉ० जयकिशन प्रसाद खंडेलवाल
पूज्य महाराजश्री के दर्शन करने का सौभाग्य' मुझे अनेक बार मिल चुका है । उनके प्रेरक व्यक्तित्व से मैं प्रभावित हुआ हूं। उनके द्वारा श्रमण संस्कृति के उन्नयन हेतु किये गए प्रयासों से भी मैं परिचित हूं। वे तपोनिधि हैं, वे अनासक्त कर्मयोगी हैं, वे उच्चकोटि के साधक साहित्यकार हैं। उनकी साहित्य-साधना धर्म की रक्षा हेतु हुई है और इस दृष्टि से वह साधना और भी महान् हो जाती है। उनके द्वारा रचित कृतियों का तो महत्त्व है ही, साथ ही उनकी प्रेरणा से प्रकाशित प्राचीन साहित्य भी अभिनव रूप में समाज के समक्ष प्रस्तुत हुआ है, और उससे श्रमण धर्म एवं संस्कृति की महान सेवा हुई है।
आचार्यरत्न के मंगल-विहार से लाखों व्यक्तियों ने लाभ उठाया है। उनका प्रत्येक चरण मंगलमय रहा है। उनके ऐतिहासिक मंगल-विहार ने श्रमण-साधुओं की प्रतिष्ठा बढ़ाई है। आचार्यरत्न बड़े उदार विचार वाले सन्त हैं । उनका व्यक्तित्व प्रभावशाली है तथा समन्वय संयुक्त है। यही कारण है कि उनके उपदेशामृत से जैन-अजैन सभी समान रूप से प्रभावित हुए हैं। एलाचार्य मुनि श्री विद्यानन्द जी आचार्यरत्न के सर्वोत्कृष्ट शिष्य हैं । वह श्रमण-संस्कृति के उन्नायक आचार्यरत्न की परम्परा को अग्रसर करने वाले हैं। ऐसे शिष्यों को प्रदान करके आचार्यश्री ने समाज को विशेष रूप से उपकृत किया है।
मैं पूज्य तपोनिधि आचार्यरत्न के चरणों में विनत हो अपनी भावाञ्जलि अर्पित करता हूं। वह दिव्य पुरुष हैं और उनके अभिनन्दन में समर्पित किया जाने वाला ग्रन्थ भी संग्रहणीय ज्ञानकोष बनेगा, ऐसा मेरा विश्वास है। प्रेरणा के अमिट स्रोत
श्री महताबचन्द जैन महानगर पार्षद, दिल्ली
परमपूज्य आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज के पावन दर्शन का सौभाग्य मुझे उनके दिल्ली प्रवासों में मिलता रहा है । भगवान् महावीर स्वामी के पच्चीस सौ वें परिनिर्वाण महोत्सव पर मुझे उनके सान्निध्य में आने का विशेष अवसर प्राप्त हुभा। उनका पावन सान्निध्य एवं मार्ग-दर्शन वास्तव में मेरे लिए अहोभाग्य का विषय था। इस महोत्सव की रूपरेखा का निर्धारण करते हुए उनके सबल मार्ग-दर्शन ने समिति एवं मेरे मनोबल में विशेष वृद्धि की थी। जैन धर्म के चारों संप्रदायों के श्रावकों की सम्मिलित बैठक में उन्होंने अपने अनुभवी एवं कुशल मार्ग-निर्धारण में समाज को संगठित होने के लिए विशेष प्रेरणा दी थी। निर्वाण शताब्दी महोत्सव की अनेक मौलिक योजनाओं के वे जन्मदाता थे। उनके असीम उत्साह को देख कर समाज में अद्भुत चेतना जागृत हुई थी। वे प्रायः कहा करते थे कि इस प्रकार का अवसर जीवन में यदाकदा ही आता है, अतः श्रावकों को उत्साह के साथ कार्य करना चाहिए और जिस प्रकार से मामा अपने भांजे-भांजियों को प्यार के साथ भात भरता है, उसी प्रकार सभी को अपनी सात्विक कमाई का एक हिस्सा निर्वाण-शताब्दी के कार्यों में स्वेच्छा से लगाना चाहिए।
आचार्यश्री का कथन था कि निर्वाण-शताब्दी में हमें समाज में फैले हुए साधारण भेदों को मिटा देना चाहिए। चौबीस तीर्थंकरों और णमोकार मंत्र में आस्था रखने वाले सभी धर्मानुरागियों को अपने भेदभाव भूल कर एक मंच पर एकत्र होना चाहिए। आयोजना के मध्य एवं अन्य अवसरों पर वयोवृद्ध तपस्वी आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज के पास जब कभी मैं दर्शनार्थ एवं मार्ग दर्शन के लिए गया, तब मैंने यह अनुभव किया कि उनके दर्शन से अभूतपूर्व शांति मिलती है। महाराजश्री साधु की कठिन दिनचर्या का पालन करते हुए भी सदैव साहित्य को समर्पित रहते थे। अनिश अध्ययन एवं धर्मग्रन्थों के लेखन, अनुवाद एवं संपादन से उनके मुखमण्डल पर एक अपूर्व तेज जागृत हो गया था । जो भी सज्जन उनकी सात्विक छवि के दर्शन करता था, वह प्रभावित हुए बिना नहीं रहता था। उन्होंने अपनी सतत साधना से निर्वाण शताब्दी के अवसर पर विशालकाय धर्मग्रन्थ 'भगवान् महावीर और उनका तत्त्व-दर्शन' एवं जैन धर्म का प्राचीन इतिहास', खण्ड-१ एवं खण्ड-२ प्रस्तुत करके समाज एवं राष्ट्र की अभूतपूर्व सेवा के साथ-साथ निर्वाण-शताब्दी की शानदार आधारशिला को सम्पूष्ट किया था। उनके पावन व्यक्तित्व एवं कृतित्व के प्रति सादर श्रद्धा एवं अनेकानेक नमन करते हुए मैं यह मनोकामना करता हूं कि आचार्यश्री जी का पावन सान्निध्य समाज को निरन्तर प्राप्त होता रहे और समाज उनके बताये हए मार्ग पर चल कर आत्मकल्याण करता रहे ।
कालजयी व्यक्तित्व
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