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श्रमण शिरोमणि
वैद्यराज पं० सुन्दरलाल जैन
परम श्रद्धय प्रातःस्मरणीय श्री देशभूषण जी महाराज श्रमण परम्परा की उन दिव्य विभूतियों में से एक हैं जिन्होंने भगवान् जिनेन्द्र देव के पथ का अनुसरण करते हुए मानव-कल्याण को ही अपने जीवन में प्रमुखता दी । ज्ञान-साधना के द्वारा उन्होंने जहां अपनी आत्मा को उन्नत एवं विकसित किया वहां अपने सदुपदेशों द्वारा अपने जीवन में उतार कर स्वतः अनुभव किया, उसका ही उन्होंने दूसरों को आचरण करने का उपदेश दिया। लोगों के मन-मस्तिष्क पर इनका अनुकूल प्रभाव पड़ा और बुराइयां उनके जीवन से स्वत: दूर भागने लगीं। मानव-जीवन में बुराइयों का प्रवेश जितना सरल है, उनका निकालना उतना ही दुष्कर है। किन्तु जिसने एक बार भी श्री देशभूषण जी महाराज का प्रवचन सुना उनके जीवन में बुराइयों का पलायन स्वतः होने लगा।
श्री देशभूषण जी महाराज केवल समाज की ही नहीं अपितु सम्पूर्ण देश की एक महान् दिव्य एवं अलौकिक विभूति हैं। उनका व्यक्तित्व अभूतपूर्व है जिसमें अद्भुत सहज आकर्षण क्षमता है। वे श्रमण संस्कृति के महान् उपासक, भारतवर्ष के एक असाधारण सत और विश्व के अद्वितीय ज्योतिः पुंज हैं । इस देश की जनता के नैतिक स्तर को ऊँचा उठाने, जीवन को सादगीपूर्ण बनाने, विचारों में उच्चता लाने और अहिंसा का प्रचार-प्रसार करने में उन्होंने जो योगदान किया है वह असाधारण एवं अविस्मरणीय है। उनकी असाधारण एवं विलक्षण प्रतिभा ने न जाने कितने गिरे हुए लोगों को उठाया और उनके पथभ्रष्ट जीवन को उन्नत बनाया। उनकी सहज स्वाभाविक सरलता ने न जाने कितने कण्टकाकीर्ण जीवन को सरल और मधुर बनाकर जीवन में फूलों की वर्षा की। अपने जीवन में हताश और निराश अनेक साधनहीन असहाय लोगों ने आपसे प्रेरणा और स्फूति प्राप्त कर पुनर्जीवन प्राप्त किया। आपके उपदेश की एक विशेषता यह है कि वह वर्ग विशेष के लिए न होकर सामान्य के लिए है।
__ गुरुदेव एक महामना हैं । उनका व्यक्तित्व अनोखा, प्रखर और कतिपय विशेषताओं से युक्त है। उनके विचार उन्नत और प्रगतिशील है। विचारों की उच्चता, आचरण की शुद्धता, जीवन की सरलता और सादगी ने आपके व्यक्तित्व को प्रखर और बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न बनाया । आपका हृदय इतना विशाल है कि विश्व के प्राणी मात्र के प्रति असीम करुणा का निवास आपके हृदय में विद्यमान है । यह एक वस्तुस्थिति है कि जिन महापुरुषों के विशाल हृदय में विद्यमान करुणा 'स्व' से ऊपर उठकर 'पर' तक पहुंच जाती है उनका जीवन लक्ष्य भी अधिक व्यापक एवं उन्नत हो जाता है। उनकी करुणा समाज और देश के सीमा बंधन को लांघकर विश्व के प्राणी मात्र के प्रति असीम रूप से व्याप्त हो जाती है । पूज्य गुरुदेव की भी यही स्थिति है। यही कारण है कि आपका जीवन ध्येय मात्र आत्मकल्याण तक सीमिन नहीं रहा । वह जनकल्याण के साथ-साथ प्राणी कल्याण तक व्याप्त हो गया। विश्व की सम्पूर्ण मानवता आपकी कल्याण-भावना की परिधि में समाहित हो गई। मनुष्य मात्र में आपने कभी भेदभावपूर्ण दृष्टि नहीं अपनाई । यही कारण है कि समाज के प्रत्येक वर्ग ने आपकी अमृतमयी वाणी का लाभ उठाया। व्यापक दृष्टिकोण के कारण संकीर्णता, साम्प्रदायिकता एवं संकुचित मनोवृत्ति से ऊपर उठकर आप सदैव जनमानस को आन्दोलित करते रहे और मानवीय मूल्यों को उनमें प्रतिष्ठापित करते रहे।
वस्तुत: आप एक ऐसे महामानव हैं जो सम्पूर्ण मानवता के प्रति सर्वतोभावेन समर्पित हैं । समाज के अविकसित कमलों के लिए आप सूर्य की भाँति अद्वितीय पुरुष हैं। समाज को नई दिशा और आलोक दृष्टि देने के कारण जनता-जनार्दन ने आपको 'जैन दिवाकर' के नाम से सम्बोधित किया । सूर्य की भांति अंधकार दूर कर आलोक देने के कारण आप 'दिवाकर' हुए और अहिंसात्मक संयमपूर्ण जीवन व्यतीत करने के लिए मार्ग-निर्देश देने के कारण आप 'जैन दिवाकर' कहलाए। जैन शब्द का प्रयोग संकुचित और साम्प्रदायिक भाव में न कर उसके व्यापक अभिप्राय में करना ही अभीष्ट है। जन्मना ही कोई जैन नहीं होता, अपितु उत्कृष्ट कर्म, संयमपूर्ण जीवन और इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करना ही जैनत्व का प्रतिपादक है । ऐसे श्रमण-शिरोमणि प्रातःस्मरणीय श्री देशभूषण जी महाराज को मेरा शतशः वन्दन और नमन है।
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आचार्यरत्न श्री वेशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
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