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मज़ाक की चीज़ समझी जाती थी, परन्तु जब से इधर डॉ० जगदीशचन्द्र बसु महोदय ने अपने अद्भुत आविष्कारों द्वारा यह सिद्ध किया है कि वृक्ष में जीव है, तब से पुराने धर्मशास्त्रों की खिल्ली उड़ाने वाली जनता आश्चर्यचकित रह गई है।
बसु महोदय के आविष्कारों से पता चला है कि हमारी ही तरह वृक्षों में भी जान है। भोजन, पानी और हवा की जरूरत उन्हें भी पड़ती है। हमारी ही तरह वे भी जिन्दा रहते हैं और बढ़ते हैं। हाँ, इतना जरूर है कि उनका काम करने का तरीका हमसे कुछ भिन्न है।
चलती हुई सांस देखकर ही मनुष्य जिंदा कहा जाता है, अतएव पेड़-पौधे भी सांस लेते हैं। और मजा यह है कि उनका सांस लेने का तरीका हमसे बहुत मिलता-जुलता है । हम सिर्फ फेफड़े से ही सांस नहीं लेते, प्रत्युत् हमारे शरीर में लगा चमड़ा भी इस काम में हमारी मदद करता है। ठीक इसी तरह पौधे भी सारे शरीर से सांस लेते हैं। ऐसे यंत्र अब बन गए हैं जो ठीक नाप-तौल के बतला देंगे कि अमुक बीजों ने इतने समय में इतनी आक्सीजन हवा में से खींच ली है।
पौधों में स्मरण-शक्ति का भी अभाव नहीं है। यह बात सभी जानते हैं कि बहुत-से पौधे रात्रि के समीप आने पर अपने पत्तों को सिकोड़ लेते हैं और फल के डंठल को नीचे गिरा देते हैं। इसका कारण सूरज की अन्तिम किरणों का पौधों पर पड़ना बताया जाता है। लेकिन वैज्ञानिकों ने प्रयोग करके देखा है कि अंधेरे कमरे में बन्द कर देने से भी पौधे ठीक सूर्यास्त के समय अपने पत्तों को समेटने लगते हैं और सूरज के निकलने के समय खिल उठते हैं। सच बात तो यह है कि पौधों के कोषों को उसका स्मरण रहता है। रजनी-गन्धा रात होते ही महकने लगती है।
वैज्ञानिकों ने यह भी सिद्ध कर दिया है कि पौधे पशुओं की तरह सर्दी-गरमी, दुःख-हर्ष आदि का ज्ञान भी रखते हैं। पौधों में प्यार तथा घुणा का भाव भी विद्यमान है । जो उनके साथ अच्छा व्यवहार करते हैं, उन्हें वे चाहते हैं और जो मनुष्य उनके साथ दुर्व्यवहार करते हैं, उन्हें वे घृणा की दृष्टि से देखते हैं। कुछ पौधे फैशन-पसन्द होते हैं । ज़रा मैले हाथों से कमल को छु दीजिए, वह मुरझा जायेगा।
चोट लगने या छिल जाने पर जैसे हमें तकलीफ होती है, उसी तरह पौधों को भी होती है । प्राणियों के समान वृक्षों के शरीर में भी स्नायू-जाल फैला रहता है। जैसे मनुष्य के किसी अंग में पीड़ा होने से वह स्नायु-सूत्रों के द्वारा सारे शरीर में फैल जाती है, वैसे ही वृक्षों के शरीर में भी आघात की उत्तेजना फैल जाती है।
अपनी इन्द्रियों द्वारा पौधे सर्दी-गर्मी आदि का तो अनुभव करते ही हैं। साथ ही विष और उत्तेजक पदार्थों का भी उन पर प्रभाव पड़ता है। डॉ० बसु ने एक यन्त्र ऐसा भी बनाया है जो नाजुक पत्तियों की धड़कन का पता बताता है। शराब पीकर पौधे भी उत्तेजित हो जाते हैं, इस बात का पता इस यन्त्र की सहायता से सहज ही में लग सकता है। पौधे की जड़ में शराब डाल दी जाय और फिर यन्त्र से उस पौधे का सम्बन्ध कर दो तो तुम देखोगे कि उसकी पत्तियों में अधिक धड़कन होने लगी है।
क्या मनुष्य और क्या पशु-पक्षी, सभी दिन-भर काम करने के बाद थक जाते हैं और रात में उन्हें आराम करने की जरूरत पड़ती है। पेड़-पौधे भी इसी प्रकार थक कर रात में आराम करते हैं। सूरज के डूब जाने के बाद यदि तुम बाग़ में जाओ, तो देखोगे कि पत्तियों का रंग-ढंग दिन-जैसा नहीं है। ऐसा लगता है, जैसे वे चुपचाप पड़ी सो रही हों। क्लोवर नामक पौधे की पत्तियों में यह परिवर्तन बहुत साफ दिखाई देता है। उसकी पत्तियाँ रात के समय झुक कर तने से सट जाती हैं। हिन्दुस्तान में पाया जाने वाला टेलीग्राफ प्लांट रात में पत्ती पर पत्ती रखकर सोता है।
जिस प्रकार मनुष्य के स्वभाव भिन्त-भिन्न होते हैं, उसी प्रकार वृक्षों के स्वभाव भी बहुत विचित्र प्रकार के होते हैं। कुछ वृक्ष ऐसे होते हैं जो मांसाहार भी करते हैं। मांसाहारी पौधों की लगभग पाँच सौ जातियाँ पाई गई हैं। एक पौधा ब्लैडर वर्ट होता है, यह जल में रहने वाला है। इसके तने पर छोटे-छोटे थैलों के मुंह पर एक दरवाजा लगा रहता है । ज्यों ही कीड़ा-मकोड़ा अन्दर पहुंचता है त्यों ही दरवाजा अपने आप बन्द हो जाता है। बेचारा कीड़ा अन्दर ही अन्दर छटपटा कर मर जाता है और उसका रक्त वह वृक्ष चूस लेता है।
अफ्रीका के घने जंगलों में ऐसे पेड़ पाये गये हैं, जो बड़े-बड़े जानवरों को भी दूर से जाल फैला कर पकड़ लेते हैं। उनके शिकंजे से निकल भागना फिर असम्भव हो जाता है। ये पेड़ मनुष्यों को भी पाने पर चट कर जाते हैं। मनुष्य के पास आते ही उसे अपनी टहनियों से पकड़ लेते हैं और चारों ओर से टहनियों के बीच दबाकर रक्त चूस लेते हैं। कितना भयंकर कर्म है इनका ! वृक्षों की सजीवता का यह प्रबल प्रमाण है।
अमृत-कण
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