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के नामों का उल्लेख है जिन्होंने गुजरात में जैनों द्वारा समर्पित अस्पतालों (जिन्हें 'पिंजरापोल' कहा जाता है) का भ्रमण किया था । एल० रूजलैट ने भी अपनी पेरिस से प्रकाशित पुस्तक में जैनों की पशु सम्पदा के प्रति उदार दृष्टि का उल्लेख करते हुए बम्बई एवं सूरत में जैन समाज द्वारा प्रेरित एवं संचालित पशु-पक्षी चिकित्सालयों का उल्लेख किया है ।"
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श्री आर० कस्ट', रोवर्ट नियम कस्ट एडली थियोडोर बेस्टरमैन और अरनेस्ट ओ आर० पी० रसेल और भी हीरा लाल, विलियम एडवर्ड फोर्जे ओ० टी० पेट्टेनी' श्री ए० एल० खान" जे० विलसन" इत्यादि सभी विद्वानों ने जैन समाज की दार्शनिक, ऐतिहासिक, साहित्यिक एवं अन्य महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए जैनधर्म की सर्वप्रमुख विशिष्टता पशुपक्षियों के प्रति अप्रतिम अनुराग एवं करुण भाव की भूरि-भूरि सराहना की है। जैनियों के अहिंसात्मक दृष्टिकोण, मानवजाति के प्रति उनकी नैष्ठिक सेवा एवं पशु-पक्षियों पर अमानवीय व्यवहार के प्रति उसकी सतत् जागरुकता की भी सभी ने सराहना की है।
इतिहास के लम्बे सफर में जैन समाज ने प्रायः पैतृक संस्कारों के कारण भोजन के विषय में कभी भी कोई समझौता नहीं किया है।
इसीलिए प्रसिद्ध समाजशास्त्री श्री एस०टी० मोसीस" ने अपने उत्तरी दक्षिणी कंट एवं दक्षिणी कनाश के सर्वेक्षण के उपरान्त यह निष्कर्ष निकाला था कि वहां का जैन समाज मछली, मांस और मांस से बने हुए किसी भी पदार्थ का सेवन नहीं करता है। उपर्युक्त मूल्यांकन क्षेत्र विशेष में ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण भारत में इन्हीं सत्यों की स्थापना कर सकता है।
सुप्रसिद्ध इतिहास - मनीषी श्री वी० ए० स्मिथ ने जैन धर्मानुयायियों के अहिंसापरक आचरण को विशेष महत्त्व दिया है।" अतः करुणा की आधार भूमि पर खड़ा हुआ यह समाज अहिंसा के तात्त्विक विवेचन के कारण शाकाहारी है । आज विश्व में पशुपक्षियों की हत्या के विरोध एवं शाकाहार के समर्थन में वातावरण बन रहा है । बौद्धधर्म एव जैनधर्म के आलोक से प्रकाशित होकर माननीय श्री एल० एच० ऐनडरसन (१८९४ ई०) ने मूक पशु-पक्षियों की हत्या को रुकवाने के लिए शिकागो में किस प्रकार से पशुओं का कत्ल किया जाता है इस विषय पर भाषण किया था । उन्होंने वहां के समाज के विवेक को झकझोरते हुए पशु-पक्षियों की हत्या न किए जाने की विशेष प्रार्थना की थी। उनके स्वर में अनेक शक्तिशाली स्वरों ने योग देकर करुणा की परम्परा को आगे बढ़ाया है ।
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जैन धर्म एवं आचार
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