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बतलाया और अकबर की जागरूक आत्मा ने उसे पहचान लिया। यह स्पष्ट ही, उपनिषदों और जैन धर्म की शिक्षा का प्रभाव था । " जैन सन्तों की धर्मदेशना से प्रभावित होकर उसने मांसाहार का त्याग कर दिया और इतिहासज्ञ श्री हमयु कुकी के अनुसार तो सम्राद अकबर ने जैन धर्म के महापर्व पर्यूषण के १२ दिनों में अपने राज्य में पशु हत्या को भी बन्द करवा दिया था। इसी गौरवशाली परम्परा में उसके उत्तराधिकारी सम्राट् जहांगीर के फरमान दृष्टिगोचर होते हैं।
राजधानी के श्री दिगम्बर जैन बड़ा मन्दिर जी कूचा सेठ में मुगल शहंशाह जहांगीर के शाही फरमान २६ फरवरी सन् १६०५ ई० की नकल के अनुसार सम्राट् ने जैन धर्म के मुकद्दश इबादती माह भादी के बारा मुकद्दश ऐय्याम के दौरान मवेशियों और परिन्दों को जबह करना बन्द किया । फरमान में आदेश दिया गया है
"हमारी सलतनत के मुमालिक महरूसा के जुमला हुक्काम, नाजिमान जागीर दारान को वाजेह हो फतूहाते दीनवी के साथ हमारा दिलीमनशा खुदाये वर तर की जुमला मखलूक की खुशबूदो हासिल करना है। आज ईद के मौका पर मा बदोलत को कुछ जैन ( हिन्दुओं) की तरफ से इस्तेदा पेश की गई है कि माह भादों के मौके पर उन के बारा मुकद्दश ऐय्याम में जानवरों का मारना बन्द किया जाये । हम मजहबी उमूर में हर मजहब व मिल्लत के अगराज व मकासद की तकमील में हर एक की हौसला अफजाई करना चाहते हैं, बल्के हर जो रूह को एक जैसा खुश रखना चाहते हैं। इसलिये यह दरखास्त मंजूर करते हुए हम हुक्म देते हैं कि भादों के इन बारा मजहबी ऐय्याम में जो (जैन हिन्दुओं) के मुकद्दस और इबादती ऐय्याम है इनमें किसी फिल्म को कुरबानी या किसी भी जानवर को हलाक करने की मुमानियत होगी। और इस हुक्म की तामील न करने वाला मुजरिम तसव्वर होगा। यह फरमान दवामी तसव्वर हो । दस्तखत मुबारिका, शहनशाह जहाँगीर ( मुहर ) " वास्तव में जहाँगीर एक रहमदिल इन्सान था । उसको प्रकृति के विविध रूपों से गहरा प्यार था। अतः उसके दरबार में कलाकारों ने अपनी कोमल तूलिका से बादशाह को प्रिय पुष्पों, पशु-पक्षियों के चित्र बहुलता से चित्रण किए हैं।
मंसूर ने तो चौपायों और पक्षियों के चित्रांकन में ही अपनी कला को समर्पित कर दिया था। जहाँगीरकालीन 'मुर्गे का चित्र' - जो आज कलकत्ते को आर्ट गैलरी की शोभा है— के सौन्दर्य को तो आज तक कोई भी चित्रकार मूर्त रूप नहीं दे पाया है । बादशाह अकबर की उदार नीति शाहजहाँ के राज्यकाल के पूर्वार्ध तक पुष्पित होती रही हैं । पुर्तगाली यात्री सेवाश्चियन मानदिक के यात्रा विवरण से यह ज्ञात होता है कि शाहजहां के मुस्लिम अफसरों ने एक मुसलसान का दाहिना हाथ इसलिए काट डाला था कि उसने दो मोर पक्षियों का शिकार किया था और बादशाह की आज्ञा थी कि जिन जीवों का वध करने से हिन्दुओं को ठेस पहुंचती है, उनका वध नहीं किया जाए।'
प्रायः यह धारणा हो गई है कि करुणा की वाणी को रूपायित करने वाले इस प्रकार के अस्पताल मुसलमान शासकों के समय में समाप्त हो गए थे। किन्तु समय-समय पर भारत में भ्रमण के निमित्त पधारने वाले पर्यटकों के विवरणों ने इस धारणा को खंडित कर दिया है। सुप्रसिद्ध पुर्तगाली पाणी प्यूरेबारबोसा (जो १४१५ ई० में गुजरात में आया था) ने जैन महिला के स्वरूप पर बारीकी से प्रकाश डालते हुए इस सत्य की सम्पुष्टि की है कि जैनधर्मानुयायी मृत्यु तक की स्थिति में अभक्ष्य (माँस इत्यादि) का सेवन नहीं करते थे । उसने जैनियों की ईमानदारी का उल्लेख करते हुए कहा है कि वे किसी भी जीव की हत्या को देखना तक पसन्द नहीं करते । उसने राज्य द्वारा मृत्युदण्ड प्राप्त हुए अपराधियों को भी जैन समाज द्वारा बचाने के प्रयासों का उल्लेख किया है। उसने जैन समाज की पशु-पक्षियों (यहां तक कि हानिप्रद जानवरों की सेवा का उल्लेख एवं उनके द्वारा निर्मित अस्पतालों और उनकी व्यवस्था का उल्लेख भी किया है । "
सुप्रसिद्ध पर्यटक पीटर मुंडे ने भी अपने यूरोप एवं एशिया के भ्रमण (१६०८ - १६६७ ) में पशु-पक्षी चिकित्सालयों को देखा था । कैम्बे में उसने रुग्ण पक्षियों के लिए जनों द्वारा बनाए गए अस्पताल का विवरण सुना था। उसके यात्रा वृत्तांतों में अनेक पर्यटकों
श्री रामधारी सिंह दिनकर, 'संस्कृति के चार अध्याय' पृ० ३०७
W. Crooke 'An Introduction of the Popular Religion and Folklore of Northern India Allahabad, 1894. 338.
३.
श्री रामधारी सिंह 'दिनकर', 'संस्कृति के चार प्रध्याय' पु० ३०१
४. (a) M.S. Commissariat - ' A history of Gujarat', Vol. 1. Calcutta, 1938. p. 255.
(b)
Mansel Lognworth Dames-'The Book of Duarte Barbosa'. Translated from the Portuguese by M. L. Dames. Vol. I, London, 1918. (The Hakluyt Society, Second Series, No. 44). P. 110. n. 2.
आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
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