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रामायण तथा आनन्द रामायण में वर्णित कथा-पात्रों के उन नामों एवं परिचय को लिया गया है जो जैन ग्रन्थों में किंचित वैभिन्न्य के साथ वर्णित है।
वाल्मीकीय रामायण तथा आनन्द रामायण में दशरथ की तीन रानियां कौशल्या, सुमित्रा, कैकेयी तथा उनके चार पुत्र राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न वणित हैं।' जैन ग्रन्थ-पउमचरियम् (जैन रामायण), उत्तरपुराण में दशरथ की चार रानियां (अपराजिता, कैकेयी (सुमित्रा), कैकेया, सुप्रभा) कही गयी हैं। जिसमें पउमचरियम् में कौशल्या के स्थान पर अपराजिता तथा उत्तरपुराण में (कौशल्या के स्थान पर) सुबाला नाम रखा गया है। लक्ष्मण की माता का नाम जैनग्रन्थों में कैकेयी (सुमित्रा) वणित है । अनुमान है कि पात्रों के नामों का उक्त परिवर्तन त्रिषष्टिशलाकापुरुषों की माताओं के नाम पर आधृत है। इन महापुरुषों में आठवें बलदेव की माता का नाम अपराजिता तथा नारायण की माता का नाम कैकेयी था, अत: जैन परम्परा के अनुकूल कथा में नाम-परिवर्तन किया गया हो। राम को यद्यपि पउमचरियम जैन-रामायण में राम, राघव, रामदेव आदि नामों से भी अभिहित किया गया है लेकिन इनका मौलिक नाम पद्म रखा गया है। पद्म नाम का कारण है कि अपराजिता ने 'पउमसरिसमुहं' पुत्र को उत्पन्न किया तथा दशरथ ने 'पउमुप्पलदलच्छो' (पद्म-कमल दल-सदृश नेत्र वाले पुत्र को) देखकर उसका नाम पउम (पद्म) रखा।
भरत तथा शत्रुघ्न का महापुरुषों में स्थान नहीं है। अतः इनकी माताओं के नामों को महत्त्व नहीं दिया गया है। लेकिन अनुमान है कि शत्रुघ्न की माता का नाम सुप्रभा तथा भरत की माता का नाम कैकेया तीर्थंकरों की माताओं के नाम की प्रसिद्धि के कारण रखा गया हो।
वाल्मीकीय रामायण तथा आनन्द रामायण में विभीषण, रावण, विराध, खरदूषण आदि को राक्षस-योनि में जन्म लेने के कारण राक्षस तथा सुग्रीव, बालि, हनुमान आदि को वानर कहा गया है। किन्तु जैन ग्रन्थों में बानर तथा राक्षस दोनों विद्याधर वंश की भिन्न-भिन्न शाखाएं माने गये हैं। जैनों के अनुसार विद्याधर मनुष्य ही होते हैं, उन्हें कामरूपता, आकाशगामिनी आदि अनेक विद्याएं सिद्ध होती है। वानरवंशी विद्याधरों की ध्वजाओं, महलों तथा छतों के शिखरों पर वानरों के चिह्न विद्यमान होने के कारण उन्हें वानर कहा जाता है। विद्याधरों को जैन धर्म में तीर्थंकरों के भक्त रूप में चित्रित किया गया है । जैन ग्रन्थों के काल में इन विद्याधरों तथा मानवों के बीच सहानुभूतिपूर्ण सम्बन्ध थे। उनमें शादी-विवाह भी होते थे। रावण का विवाह सुग्रीव की बहिन श्रीप्रभा से", हनुमान का विवाह चन्द्रनखा (शूर्पणखा) की पुत्री अनंगकुसुमा तथा सुग्रीव की पुत्री पद्मरागा से हुआ था, लक्ष्मण ने वनमाला, जितपद्मा, पद्मरागा, मनोरमा आदि अनेक विद्याधर कन्याओं से विवाह किया था ।" विराधित नामक विद्याधर (जिसको आनन्द रामायण तथा वाल्मीकीय रामायण में विराध राक्षस कहा गया है) ने खरदूषण के विरुद्ध लक्ष्मण की युद्ध में सहायता की थी।"
यद्यपि विद्याधरों में परस्पर वैमनस्यपूर्ण सम्बन्ध भी दृष्टिगत होते हैं, लेकिन वे उनके पारस्परिक कलह एवं द्वेष के कारण हैंयथा, लक्ष्मण तथा रावण का युद्ध सीताहरण के कारण, सुग्रीव तथा साहसगति का युद्ध तारा से दुर्व्यवहार की चेष्टा के कारण।
वाल्मीकीय रामायण तथा आनन्दरामायण में खर तथा दूषण को पृथक्-पृथक् व्यक्ति कहा गया है जिसमें खर शूर्पणखा का मौसेरा भाई है तथा दूषण उसका सेनापति है लेकिन जैन ग्रन्थों में खरदूषण एक ही व्यक्ति है जो चन्द्रनखा (शूर्पणखा) का पति है। इसी प्रकार वाल्मीकीय रामायण तथा आनन्द रामायण में रावण, कुम्भकर्ण, शूर्पणखा, विभीषण आदि विश्रवा मुनि एवं कैकसी की सन्तान हैं, जबकि जैन ग्रन्थों में इन्हें सुमाली के पुत्र रत्नश्रवा तथा कैकसी की सन्तान कहा गया है" जिनके नाम इस प्रकार हैं दशग्रीव, भानुकर्ण, चन्द्रनखा, विभीषण।
१. वा०रा० बालकांड, आनन्द रामायण, सर्ग १/२ २.पउमरियम्, २२/१०६-०८, २५/१-१३, पर्व २४ ३. उत्तरपुराण, ६७/१४८-५२ ४. पउमचरियम्, २५/७-८ ५. (क) वही, पर्व ; (ख) उत्तरपुराण ६८/२७१, २७५-८० ६. का मिल बुल्के : रामकथा, पृ० ६४ ७. पउमचरियम्, ६/८९ ८. वही, पर्व १० ६. वही, पर्व १६/४२ १०. वही, पर्व ६२ ११. (क) वही पर्व ४५; (ख) विषष्टिशलाकापुरुषचरित, पृ० २४६-४८ १२. वही, पर्व ४४/16 १३. (क) वही, पर्व ७; (ख) विषष्टिशलाकापुरुषचरित, पृ० ११६-१७
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आचार्यरत्न श्री देशभूषणजी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
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