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७. हिन्दी साहित्य कोश (द्वितीय भाग), पृष्ठ १८३
इसमें 'मिश्रबन्धु विनोद' एवं आचार्य शुक्ल के इतिहास पर सूचनाएं आधारित होने के कारण भ्रामक हैं। नया कुछ
नहीं है।
८. राजस्थानी भाषा और साहित्य (डॉ० मेनारिया ) १० १४९-१५०
डॉ० मोतीलाल मेनारिया ने छीन को राजस्थानी कवि मान कर पंच सहेली' का संक्षिप्त परिचय उपस्थित करते हुए उसके आठ दोहों को उद्धृत किया है। वैचारिक नवीनता नहीं है, पर 'पंच सहेली' उनकी दृष्टि में 'अनूठी' रचना है । ९. राजस्थानी भाषा और साहित्य (डॉ० माहेश्वरी ), पृष्ठ २५६
डॉ० हीरालाल माहेश्वरी ने अपने शोध ग्रन्थ में 'पंच-रानी' और 'बागी' पर चलते ढंग की सूचना देकर संतोष पर निया है कोई नवीनता नहीं है।
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१०. राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की ग्रन्थसूची, भाग २ एवं ३
अन्य कवियों के साथ इनमें छोहल की पंच सहेली' और 'बावनी' के अतिरिक्त पहली बार 'आत्मप्रतिबोध जयमाल' की सूचना मिलती है।
११. हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास, पृष्ठ ५१७
डॉ० गणपति चन्द्रगुप्त ने नीति काव्यकारों के अन्तर्गत छोहल की 'बावनी' पर कहा है। 'बावनी' विषयक यह मूल्यांकन उत्तम है, किन्तु छील की अन्य कृतियों का उन्होंने उल्लेख नहीं किया है।
प्रथम प्रकार की सामग्री का यही लेखा-जोखा है । इसके आधार पर छीहल के सम्बन्ध में सही जानकारी बिल्कुल नहीं मिलती है । यह सामग्री एक सीमा तक पाठकों की भ्रान्त ज्ञान देने में भी समर्थ है।
द्वितीय प्रकार की सामग्री के अन्तर्गत में कृतियाँ जाती हैं जिनमें छोहल की किसी रचना आदि का शोधपूर्ण मूल्यांकन हुआ है । यथा :
१. पंच सहेली (सन् १६४३ ई० )
एक हस्तलेख के आधार पर 'पंच सहेली' का मूल पाठ जुलाई, १९४३ ई० ( भारतीय विद्या, भाग २, अंक ४) में प्रकाशित हुआ था । प्रकाशित पाठ पर राजस्थानी छाप है । पाठ के सम्बन्ध में किसी प्रकार की सूचना का अभाव है। ऐसा प्रतीत होता है कि भावी अनुओं की दृष्टि का प्रकाशित पाठ अनदेखा ही रहा है। किसी भी अध्येता ने इसका कहाँ उल्लेख नहीं
किया है ।
२. सूरपूर्व ब्रजभाषा और उसका साहित्य (सन् १९५० ई०)
डॉ० शिवप्रसाद सिंह ने अपने इस शोधग्रंथ में छोहल को पहली बार अपेक्षित महत्त्व दिया है एवं उनकी 'पंच सहेली' एवं 'वन' पर अनेकविध विचार किया है। साथ ही दो अन्य रचनाओं - पन्थी गीत एवं आत्मप्रतिबोध जयमाल की सूचना भी यहां दी गयी है । इस निबन्ध में मैंने डॉ० शिवप्रसाद सिंह का अनेकत्र यथावसर उल्लेख किया है।
३. हिन्दी में नीति काव्य का विकास ( सन् १९६० ई० )
डॉ० रामस्वरूप ने अपने इस शोधग्रन्थ में (पृष्ठ १८५) 'बावनी' पर विचार करते हुए उसे 'बोलचाल की राजस्थानी' की कृति माना है । इससे सबका सहमत होना आवश्यक नहीं । यदि डॉ० रामस्वरूप डॉ० शिवप्रसाद सिंह के शोध निष्कर्षो से परिचित होते तो शायद वे ऐसा नहीं लिखते । डॉ० रामस्वरूप ने तीन अन्य कृतियों - पन्थी - गीत, उदर- गीत और फुटकर गीत के भी नाम गिनाये हैं ।
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४. हिन्दी जैन भक्तिकाव्य और कवि (सन् १९६५ ६०) छीहल और उनकी कृतियों के सम्बन्ध में डॉ० शिवप्रसाद सिंह के पश्चात् डॉ० प्रेमसागर जैन ने निश्चय ही विचारों को आगे बढ़ाया है। उन्होंने अपने इस शोधग्रन्थ में (पृष्ठ १०१-१९०६) छील की चार कृतियों- पंच-सहेली, पन्थी-गीत, उदर-गीत और पंचेन्द्रिय बेलि पर अपेक्षित विचार किया है और पाँचवी कृति बावनी की सूचना दी है। कहना नहीं होगा कि यहाँ पहली बार छोहल को तीन कृतियाँ (पन्ची-गीत, उदर-गीत और पंचेन्द्रिय बेलि) विचारणीय बनी हैं।
आचार्यरन श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
विचार करते हुए उसे सफल नीतिकाव्य
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