________________
की कथा को मात्र ७३५ पद्यों में समेट लिया है, अतः रचनात्मक प्रतिभा मुखर नहीं हो सकी है। काव्य की भाषा अवधी है जो खड़ी बोली हिन्दी के पर्याप्त निकट है । भाषा का अवयोपन मुख्यतः क्रियाओं में ही प्रकट है । कथानक को दोहा, चौपाई, सोरठा आदि छन्दों में संवारा गया है। प्रबन्ध काव्य का महत्त्व इस दृष्टि से बढ़ जाता है कि हिन्दी भाषा में आदि तीर्थकर पर रचा जाने वाला यह एकमात्र महाकाव्य है।
मार्तण्ड जी के प्रबन्धकाव्य के पश्चात् उल्लेखनीय हिन्दी जैन महाकाव्य कवि वीरेन्द्र प्रसाद जैन प्रणीत 'पावं प्रभाकर' जो सन १९६७ में श्री अखिल विश्व जैन मिशन, अलीगंज से प्रकाशित हुआ। आकार-प्रकार, भाषा और शैली में यह वीरेन्द्र जी की पवं कति तीर्थंकर भगवान महावीर' के समान ही है। प्रस्तुत महाकाव्य में जैन परम्परा के २३ वें तीर्थकर पार्श्वनाथ के पूर्व जन्मों से लेकर निर्वाण तक के जीवन को काव्य का आधार बनाया गया है । काव्य पर भूधरदास रचित 'पार्श्व पुराण' का प्रभूत प्रभाव है। 'पार्श्व
कल सर्ग हैं तथा पद्यों की संख्या १३८५ ह । कवि ने महाकाव्य का प्रारम्भ मगंलाचरण से न करके काशी राज्य के वैभव जान से किया है, पर सारम्भ से पूर्व 'प्रणत प्रणाम' के अंतर्गत कवि ने प्रभ पार्श्वनाथ की. अनुप्रासमयी वन्दना की है। इस कति के जात भगवान महावीर के २५०० वें निर्वाणोत्सव पर भी कुछ उत्कृष्ट हिन्दी जैन महाकाव्य समक्ष आए।
महाकाव्य कार रघुवीर शरण 'मित्र' विरचित 'वीरायन' (महावीर मानस महाकाव्य) वीर निर्वाण संवत् २५०० में भारतोदय प्रकाशन, मेरठ से प्रकाशित हुआ है। कवि ने प्रभु महावीर की अमरवाणी के सुदूरगामी एवं दीर्घकालीन प्रभाव-प्रसार के
से वीरायन' महाकाव्य की रचना की है । यह महाकाव्य १५ सों में विभक्त है-पुष्प प्रदीप, पुथ्वी-पीड़ा, तालकुमुदिनी, जन्म कि बालोत्पल, जन्म जन्म के दीप, प्यास और अंधेरा, संताप, विरक्ति, वनपथ, दिव्य दर्शन, ज्ञानवाणी, उद्धार, अनन्त तथा
जैसा कि सर्ग-शीर्षकों से स्पष्ट है तीर्थंकर महावीर की कथा चौथे सर्ग से प्रारम्भ होती है। स्थल-स्थल पर युगान्तर । जसा पष्टों से काव्य साफल्य एवं जनकल्याण और राष्ट्रोद्धार की याचना से कथा-प्रवाह बाधित हो गया है परन्तु भगवान
वर्तमान सन्दर्भ में देखने से भारत की समस्याओं, कुरीतियों, अभावों आदि का निरूपण तथा उनके समाधान का सुन्दर सका है। इस भांति कथावस्तु की अपेक्षा 'वीरायन' लक्ष्य-सिद्धि, शिल्प-सौष्ठव एवं काव्यात्मक अलंकृति की दष्टि से अधिक सफल रहा है।
भगवान महावीर के २५०० वें निर्वाण महोत्सव पर ही आदर्श साहित्य संघ, चुरू (राजस्थान) से साध्वी मंजुला का न प्रबन्ध 'बन्धन मुक्ति' प्रकाशित हुआ। कवयित्री ने कथानक की अपेक्षा पात्रों के मनोभावों की मार्मिक अभिव्यक्ति को
महाकाव्यीय मानदण्डों के अनुसार कुछ न्यूनताएँ होते हुए भी विधा की दृष्टि से 'बन्धन मुक्ति' को महाकाव्य कहा जा प्रस्तत महाकाव्य में सर्ग हैं-सिंहावलोकन, संकल्प, अभिनिष्क्रमण, साधना, संघर्ष, प्रतिबोध, उदारता. उद्धार तथा सिंहावलोकन' सर्ग में काव्य-नायक तीर्थकर महावीर के जन्म से लेकर युवावस्था तक की कथा का सूक्ष्म कलेवर स्मृति चित्र में अंकित है। दूसरे से सातवें सर्ग तक महावीर के वीतरागो, चितक, संघर्षरत, साधक एवं जगकल्याणक व्यक्तित्व की कथाभि
जल भाषा में सरसता सहित हुई है। आठवें 'उद्धार' सर्ग में चन्दना दासी की उद्धार कथा अत्यधिक हृदयस्पर्शी है। अन्तिम में भगवान महावीर के अहिंसा, अपरिग्रह और स्याद्वाद सिद्धांतों की सरल काव्यमयी व्याख्या निबद्ध है।
अवन्तिका के शब्दशिल्पी डॉ० छैल बिहारी गुप्त प्रणीत महाकाव्य 'तीर्थकर महावीर' सन् १९७६ में श्री वीर निर्वाणग्रन्थ प्रकाशन समिति, इन्दौर से प्रकाशित हुआ है । 'सर्गबद्धो महाकाव्यम्' सूत्र के आधार पर कवि ने तीर्थंकर भगवान महावीर के इतिवत्त को आठ शीर्षकविहीन सर्गों में संयोजित किया है। महाकाव्यकार ने कथा-निर्वाह में ऐतिहासिक सत्य और जैन मान्यताओं (विशेषकर दिगम्बर आम्नाय) की सुरक्षा का पूर्ण ध्यान रखा है। प्रसाद एवं माधुर्य गुण सम्पृक्त भाषा की लयात्मकता श्लाघनीय है। विविध
विकलन्दों के बीच में स्वतंत्र प्रगीतों का आयोजन भी सुन्दर बन पड़ा है। भावगरिमा, शिल्प-संयोजना, उद्देश्य की उदात्तता की दष्टि से 'तोर्थकर महावीर' एक सफल महाकाव्य है।
आधनिक हिन्दी जैन महाकाव्यों की एक श्रेष्ठ उपलब्धि कवि अभयकुमार 'यौधेय' कृत 'श्रमण भगवान् महावीर चरित्र' है। महाकाव्य अगस्त १९७६ में भगवान् महावीर प्रकाशन संस्थान, मेरठ से प्रकाशित हुआ है । महाकाव्य में 8 सोपान हैं तथा प्रत्येक सोपान में विभिन्न शीर्षकों के अन्तर्गत कथा का विस्तार किया गया है । 'यौधेय' जी ने ओज व प्रसादमयी भाषा में भगवान् महावीर की जीवन गाथा को श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार प्रस्तुत किया है। ब्राह्मणदम्पत्ति ऋषभदेव-देवानन्दा, अर्जुनमाली, सोमशर्मा ब्राह्मण, प्रसन्नचन्द मनि, सेठ धनाऊ व शालिभद्र, बहुला दासी आदि की प्रासंगिक कथाओं के समावेश से 'श्रमण भगवान महावीर चरित्र' इतिवृत्त प्रधान महाकाव्य हो गया है। १७८
आचार्यरत्न श्री वेशभूषण जी महाराज अधिनम्बर पम्म
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org :