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यद्यपि वह जैन ग्रंथों से साम्य रखता है लेकिन उक्त ग्रंथ में शम्बूक के स्थान पर शूर्पणखा के साम्ब नामक पुत्र के वध का वर्णन है।'
वाल्मीकीय रामायण में लव द्वारा राम के अश्वमेध के घोड़े को बांधने के कारण लव-कुश व राम-लक्ष्मण का युद्ध होता है। लेकिन जैन ग्रंथों पउमचरियम् (जैन रामायण) में लव-कुश तथा राम-लक्ष्मण के युद्ध को सामाजिक परिवेश प्रदान किया गया है तथा जिसमें सीता के त्याग के प्रतिकार को कारण रूप में प्रस्तुत किया गया है।'
आनन्द रामायण में लव-कुश तथा राम-लक्ष्मण के युद्ध में (माता सीता के त्याग के प्रतिकार का वर्णन कर) जैन कथाओं का अनुकरण किया गया है।
सीता-त्याग का वर्णन नारी की परिवर्तित स्थिति के कारण वाल्मीकीय रामायण, जैन ग्रंथों तथा आनन्दरामायण में पृथक्-पृथक वणित है। वाल्मीकि रामायण में उक्त कार्य राम द्वारा राजकर्तव्य के पालन के लिए किया गया है। लेकिन पउमचरियम में राम जनप्रवाद को सुनकर स्वयं भी सीता पर चरित्र-दोष की आशंका करते हैं। जैन रामायण में सीता-त्याग स्त्रियों के पारिवारिक क्लिष्ट सम्बन्धों के कारण है, जिसमें सपत्नियां सीता से द्वेषवश रावण का चित्र बनवाती हैं तथा राम से सीता के चरित्र-दोष के विषय में कहती हैं।
आनन्द रामायण में वणित सीता-त्याग का प्रसंग वाल्मीकि रामायण तथा जैन रामायण दोनों से प्रभावित है, जिसमें पहले राम जनापवाद सुनते हैं, तत्पश्चात् कैकेयी सीता से रावण का चित्र बनवाती है। उक्त ग्रंथ में राम मात्र सीता का त्याग ही नहीं करते, वरन् जिस भुजा से सीता ने रावण का चित्र बनाया है, उसे काटने का आदेश भी दे देते हैं।
वाल्मीकीय रामायण में जीवन के अन्त में नारी पात्रों की मृत्यु का वर्णन है जबकि जैन ग्रंथों पउमचरियम्, जैन रामायण, उत्तर पुराण में इनके जैन धर्म में दीक्षा लेने तथा आनन्द रामायण में इनके सती होने का वर्णन है।"
राजनीतिक कारण की दृष्टि से कथा के परिवर्तन पर दृष्टिपात करने के लिए जिन घटनाओं को प्रस्तुत किया गया है वे वाल्मीकीय रामायण तथा आनन्द रामायण में समान रूप से (एक जैसी) वर्णित हैं लेकिन जैन ग्रंथों में किञ्चित् परिवर्तित रूप में वर्णित हैं। वाल्मीकीय रामायण तथा आनन्द रामायण में राम-लक्ष्मण के प्रारम्भिक (वीर्य-प्रधान) कार्यों के रूप में मरीच एवं सुबाहु आदि राक्षसों के वध का उल्लेख है जबकि जैन ग्रंथों पउमचरियम् (जैन रामायण), उत्तरपुराण आदि में म्लेच्छों से युद्ध करने का वर्णन है। अनुमान है कि उस काल में राजनीतिक दृष्टि से म्लेच्छों के विरुद्ध युद्धों का प्राधान्य होने के कारण कवि ने ऐसा वर्णन किया हो।
जैन साहित्य के काल में सामन्तवादी प्रवृत्ति का प्रचलन था। अतः एक राजा अपने राज्य-विस्तार के लिए दूसरे राजाओं से कर लेता हुआ अपने वैभव की वृद्धि कर उसे अपने अधीन कर लेता था। उक्त प्रवृत्ति के प्रचलन के कारण वाल्मीकीय रामायण तथा आनन्द रामायण में जो राम लक्ष्मण राक्षस-नाश के लिए वन में जाते हैं वे जैन ग्रंथों-उत्तरपुराण, पउमचरियम् जैन रामायण में वैभव वृद्धि एवं राज्य-विस्तार के लिए दक्षिण या वाराणसी की ओर प्रस्थान करते हुए वणित किए गए हैं ।
१. आनन्दरामायण, १/७/४१-४५ २. कामिल बुल्के : रामकथा, पृ०७०८ ३. पउमचरियम्, पर्व १७-१०० ४. आ०रा०, सगं ५/६-८ ५. वा०रा० : उत्तरकांड, सर्ग ४२-५२ ६. पउमचरियम, ६४/१६ ७. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, पृ. ३१५-१८ ८. आ०रा०, जन्मकांड, सर्ग ३ ६. वही, ३/३६ १०.(क)पउमरियम्, पर्व ११०-११८
(ख) उत्तरपुराण, पर्व ६८
(ग) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, पृ० ३४०-४२ ११. आ०रा०१/११/२०५-१७, २८६ १२. (क) वा०रा०, बालकांड, सर्ग १६-२०
(ख) आ०रा०१/३/७-११ १३. पउमरियम्, पर्व २७ १४. (क) पउमचरियम्, पर्व ३२
(ख) उत्तरपुराण, पर्व ६८ (ग) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, पृ० २१०-२१६
आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
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