________________
इसी प्रकार लक्ष्मण का जीव पहले मलयदेश में चन्द्रचूल नामक राजपुत्र था, जो अत्यन्त दुराचारी था। जीवन के पिछले भाग में तपश्चरण कर वह स्वर्ग में सनतकुमार नाम से उत्पन्न हुआ और फिर वहां से यहां आकर अर्धचक्री लक्ष्मण बना ।
जैन धर्मानुसार वासुदेव और बलदेव दोनों की उत्पत्ति शुभ स्वप्नों के फलस्वरूप होती है। राम और लक्ष्मण की उत्पत्ति भी शुभ स्वप्नों के परिणामस्वरूप हुई थी ।' गुणभद्र ने जैन धर्म के अनुकूल रामकथा को ढालने का प्रयास किया है। जैनधर्मानुसार नारायण और बलभद्र दोनों भाई होते हैं तथा एक ही राजा की दो भिन्न-भिन्न रानियों से उत्पन्न पुत्र होते हैं। बलदेव हमेशा बड़ा भाई होता है और वासुदेव हमेशा छोटा भाई बलदेव राजा की ज्येष्ठ महिषी से उत्पन्न पुत्र होता है। वाराणसी के राजा दशरथ के भी चार पुत्र होते हैं। ज्येष्ठ पुत्र राम रानी सुबाला के गर्भ से उत्पन्न होता है' तथा लक्ष्मण कैकेयी के गर्भ से उत्पन्न होता है। भरत व शत्रुघ्न की माता का नामोल्लेख नहीं किया गया है।
जैन मान्यतानुसार विषष्टिमहापुरुषों की आयु कई हजार वर्ष होती है तथा वे कई धनुष ऊंचे होते हैं। राम की आयु तेरह हजार वर्ष तथा लक्ष्मण की आयु १२ हजार वर्ष थी तथा दोनों भाई पन्द्रह धनुष ऊंचे थे।
बलदेव और वासुदेव दोनों ही भाई अपरिमित शक्ति से युक्त होते थे। दोनों में से बड़ा भाई बलदेव हमेशा श्वेत वर्ण होता था तथा नारायण सर्वदा नीलवर्ण। राम का शरीर हंसवत् श्वेत तथा लक्ष्मण का नीलकमल के समान नीलकांति वाला था। 5
बलदेव अर्धवर्ती होते हैं तथा भारतवर्ष के तीन खण्डों के स्वामी होते हैं। वे सौम्य प्रकृति के होते हैं जबकि वासुदेव उम्र प्रकृति के होते हैं । इसीलिए बलदेव शीघ्र ही निर्वाण को प्राप्त करते हैं जबकि वासुदेव को नरक में बहुत से दुःखों को भोगने के बाद ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है। जैन धर्मानुसार नारायण सर्वदा अपने बड़े भाई बलदेव के साथ मिलकर प्रतिवासुदेव से युद्ध करते थे और अन्त में सदैव उसका वध करते थे । प्रतिनारायण या प्रतिवासुदेव जिस चक्र द्वारा वासुदेव पर प्रहार करना चाहता था, वही चक्र नारायण के हाथ में स्थिर हो जाता था और उसे ही वापिस भेजकर वह प्रतिवासुदेव का वध करता था ।
आठवें प्रतिवासुदेव रावण ने भी लक्ष्मण व राम दोनों भाइयों से अत्यधिक कुपित होकर अपने विश्वासपात्र नकरत्न के लिए आदेश दिया था । वही चक्ररत्न मूर्तिधारी पराक्रम के समान प्रदक्षिणा करके लक्ष्मण के दाहिने हाथ पर स्थिर हो गया था । तदनन्तर लक्ष्मण ने उसी चक्ररत्न से तीन खण्ड के स्वामी रावण का सिर काटकर अपने आधीन कर लिया था।
प्रतिनारायण का वध करने के उपरान्त नारायण बलदेव के साथ-साथ दिग्विजय करके भारत के तीन खण्डों पर अधिकार प्राप्त करते थे, और इस प्रकार अर्धचक्रवर्ती बन जाते थे । रावण का वध करने के बाद लक्ष्मण ने भी सोलह हजार पट्टबन्ध राजाओं को, एक सौ दस नगरियों के स्वामी विद्याधरों को और तीन खण्ड के स्वामी देवों को आज्ञाकारी बनाया था। उसकी यह दिग्विजय ४२ वर्ष में पूर्ण हुई थी । जैन परम्परानुसार नारायण अपने पुण्य के क्षीण हो जाने पर चतुर्थ नरक को प्राप्त होता था । लक्ष्मण भी असातावेदनीय कर्म के उदय से प्रेरित महारोग से अभिभूत हो गया और उसी असाध्य रोग के कारण चक्ररत्न का स्वामी लक्ष्मण पंकप्रभा नामक पृथ्वी अर्थात् चतुर्थ नरक में गया था। "
रावण आठवें प्रतिनारायण के रूप में
जैन परम्परानुसार रावण आठवां प्रतिनारायण था । गुणभद्र ने आठवें प्रतिनारायण रावण के भी पूर्व तीन भवों का वर्णन किया है।
१. उत्तरपुराण, ६७ / १४८- ५१
२. 'सुतः सुबालासंज्ञायां शुभस्वप्नपुरस्सरम् ।' उ०पु०, ६७ /१४८
३. उ०पु०, ६७ / १५०
४. 'वयोदशसहस्राब्दो रामनामानता खिलः । उ०पु०, ६७ / १५०
५. उ०पु०, ६७ /१५२
६. 'तौ पञ्चदशचापोच्चौ ।' उ०पु०, ६७ / १५३
७. उ०पु०, ६७ / १५४
८.
वही,
९. 'चक्रेण विक्रमेणेव मूर्तीभूतेन चक्रिणा ।
तेन तेन शिरोऽग्राहि त्रिखण्डं या खगेशितुः ।' उ०पु०, ६८ /६२६
१०. 'द्वाचत्वारिशदब्दांते परिनिष्ठतदिग्जयः... उ०पु०, ६८ / ६५९
११. 'बभूव क्षीणपुण्यस्य ततः कतिपयैदिनः. . दिने तेनागमच्चक्री पृथ्वीं पंकप्रभाभिधाम् ।' उ०पु०, ६८ /७०१
जैन साहित्यानुशीलन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
८३
www.jainelibrary.org