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णमोकार ग्रन्थ
-मुक्ति-द्वार की ओर इंगित करने वाली कृति
समीक्षक : मुंशी सुमेरचन्द जैन
जैनधर्म के अन्तिम तीर्थकर भगवान् महावीर स्वामी के २५००वें परिनिर्वाण महोत्सव की परिकल्पना में आस्था का दीप प्रज्ज्वलित करने की भावना से आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज ने दीपमालिका (वीर निर्वाण सम्बत् २४६६) के अवसर पर इस ग्रन्थ का प्रकाशन कराया था।
आचार्य श्री को प्रायः धर्म प्रवचन से पूर्व अथवा जिन दर्शन के पश्चात् मन्दिरों के शास्त्र भण्डार के अवलोकन का जन्मजात संस्कार रहा है। श्री दिगम्बर जैन मन्दिर जी वैदवाड़ा, दिल्ली के शास्त्र भण्डार का निरीक्षण करते हुए उन्हें ढुंढारी और खड़ीबोली दोनों में मिश्रित यह दुर्लभ प्रति प्राप्त हुई थी। इसी ग्रन्थ की एक अन्य प्रति उन्हें श्री दिगम्बर जैन बड़ा मन्दिर श्री कूचा सेठ में प्राप्त हुई । आचार्य श्री ने दोनों प्रतियों को आधार मानकर इस ग्रन्थ का सम्पादन किया था।
प्रस्तुत ग्रन्थ के लेखक दिल्ली निवासी श्री लक्ष्मीचन्द्र वैनाड़ा (खंडेलवाल गोत्रिय) हैं। ग्रन्थ के प्रशस्ति लेख से ज्ञात होता है कि इसके प्रणयन के समय भारतवर्ष में सम्राट् जार्च पंचम का शासन था और महानगरी दिल्ली में जैन समाज की विशिष्ट स्थिति थी।
भगवान् महावीर स्वामी के २५००वें परिनिर्वाण महोत्सव वर्ष से एक वर्ष पूर्व ही इस विशालकाम ग्रन्थ को सम्पादित करने के पीछे एक निश्चित पृष्ठभूमि रही थी और वह यह कि इसके द्वारा वे जैन समाज में चेतना एवं आत्मविश्वास का मंत्र फूंकना चाहते थे। २५००वें परिनिर्वाण महोत्सव के महान् शिल्पी युगद्रष्टा ऋषि श्री देशभूषण जी के मन में यह भावना थी कि णमोकार मन्त्र के माध्यम से समाज की सुप्त शक्ति को जगाया जा सकता है। वैसे भी णमोकार मन्त्र के स्मरण एवं उच्चारण से जैन समाज में अद्भुत शक्ति एवं स्फूर्ति का सदा से संचार होता आया है।
प्रस्तुत ग्रन्थ में दो अधिकार हैं-प्रथम में णमोकार मन्त्र और उससे सम्बद्ध पंच परमेष्ठियों का वृहद् स्वरूप निरूपण है और दूसरे में मुक्ति के द्वार रत्नत्रय का विशद विवेचन हुआ है। आचार्य श्री की वास्तविक इच्छा यह रही होगी कि २५०० वें परिनिर्वाण महोत्सव में श्रावक समुदाय एवं जनसाधारण को मंगलकारी णमोकार मंत्र' का परिज्ञान हो जाए और साथ ही मुमुक्षु आत्मकल्याण के निमित्त रत्नजय को जीवन एवं आचरण का अग बना ले।
प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्पादन में आचार्य श्री ने मूल ग्रन्थ के अनुवाद के साथ-साथ प्रायः सभी महत्त्वपूर्ण विषयों पर सारगभित व्याख्याएं एवं टिप्पणियां देकर ग्रन्थ को जनसाधारण के लिए उपयोगी एवं ग्राह्य बना दिया है। आचार्य श्री के अनुसार मानव जीवन के उत्थान में णमोकार मन्त्र एक वरदान सिद्ध हो सकता है। मन्त्र का पाठइस प्रकार है
णमो अरिहंताण, णमो सिद्धाण, णमो आइरियाणं ।
णमो उवज्झायणं, णमो लोए सव्व साहूणं ।। अरिहन्तों को नमस्कार हो, सिद्धों को नमस्कार हो, आचार्यों को नमस्कार हो, उपाध्यायों को नमस्कार हो और लोक में सर्वसाधुओं को नमस्कार हो। इस महामन्त्र में पंच परमेष्ठियों को नमस्कार किया गया है।
इस अनादि, अनिधन, अपराजित मन्त्र में ३५ अक्षर हैं और वह पंच परमेष्ठियों के स्वरूप को लिए हुए हैं। इस मन्त्र में किसी भी कामना की अभिव्यक्ति नहीं है। फिर भी इसके स्मरण एवं उच्चारण से सभी सिद्धियां स्वयमेव प्राप्त हो जाती हैं। जैन धर्मानुयायियों की दृष्टि में यह एक अलौकिक मन्त्र है। इस महामन्त्र की महत्ता का गान शताब्दियों से इस प्रकार गाया जाता है
एसो पंच मोक्कारो सध्वपावप्पणासणो। मंगलाणं च सर्वेसि पढम हवइ मंगलं ।।
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आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
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