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पूज्यपाद देवनन्दी का संस्कृत-व्याकरण को योगदान
ग्रन्थ प्रमुख हैं
पाणिनि के परवर्ती वैयाकरणों में जैन विद्वानों की प्रधानता रही है। जैनाचार्यों द्वारा रचित व्याकरण-ग्रन्थों में चार व्याकरण
१.
जैनेन्द्र-व्याकरण
२.
शाकटायन-व्याकरण
३. सिद्धहैम-शब्दानुशासन
४. मलयगिरि शब्दानुशासन
रचयिता पूज्यपाद
ज्जैनाचार्यों द्वारा रचित उपलब्ध व्याकरण-ग्रन्थों में काल की दृष्टि से जैनेन्द्र-व्याकरण सर्वप्रथम है। इस व्याकरण ग्रन्थ के देवनन्दी हैं । वे कर्नाटक के निवासी थे। उनका समय ईसा की ५ वीं शताब्दी है ।' जैन सम्प्रदाय के विद्वान् की कृति होने के कारण जैन सम्प्रदाय मे तो जैनेन्द्र-व्याकरण की प्रसिद्धि थी ही, साथ ही अन्य धर्मानुयायी विद्वानों ने भी इस ग्रन्थ के कर्ता का आदरपूर्वक स्मरण किया है । मुग्धबोध के रचयिता बोपदेव ( १३ वीं शताब्दी ई० ) ने उनको पाणिनि आदि महान् वैयाकरणों की कोटि में रखा है
इन्द्रश्चन्द्रः काशकृत्स्नापिशली शाकटायनः । पाणिन्यमरजनेन्द्रा जयन्त्यष्टादिशाब्दिकाः ।।'
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-डा० प्रभा कुमारी
उनके द्वारा रचित यह श्लोक १३वीं शताब्दी ई० में पूज्यपाद देवनन्दी की ख्याति का परिचायक है ।
पूज्यपाद देवन दो-कृत व्याकरण विषयक रचनाएँ
जैनेन्द्र-व्याकरण के अतिरिक्त पूज्यपाद देवनन्दी ने उस पर जैनेन्द्र-न्यास की रचना की जो सम्प्रति अनुपलब्ध है। पं० युधिष्ठिर मीमांसक ने पूज्यपाद देवनन्दी द्वारा रचे गए व्याकरण-विषयक ग्रन्थों का उल्लेख क्रिया है, जिनके नाम इस प्रकार हैं- '
१. धातुपाठन
२. धातुपारायण
३. गणपाठ
४. उणादिसूत्र
५. लिङ्गानुशासन
६. लिङ्गानुशासन-ध्याख्या
१. प्रेमी, नाथूराम, जैन साहित्य और इतिहास, बम्बई, १९५६, पृष्ठ ५०-५१ उपाध्याय, बलदेव, संस्कृत शास्त्रों का इतिहास, वाराणसी, १९६६, पृ० ५७७-५७८. शर्मा, एस० प्रार०, जैनिज्म एन्ड कर्नाटक कल्चर, धारवार, १६४०, १० ७२.
२. पाठक, के ०बी०; जैन शाकटायन कन्टम्परेरी विद प्रोत्रवर्ष-1, इन्डियन एन्टीक्वेरी, खण्ड ४३. बम्बई, १९१४, पृ० २१० २११. अभ्यंकर, के० वी०, ए डिक्शनरी ऑफ सस्कृत ग्रामर, बड़ौदा, १९६१. पृ० १५०. बेल्वाल्कर, एम० के०, सिस्टम्स ब्रॉफ संस्कृत ग्रामर, भारतीय विद्या प्रकाशन, १९७६, पृ० ५३. ग्रवाल, वासुदेवशरण, जैनेन्द्र महावृति, सम्पा० शम्भुनाथ त्रिपाठी, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, १९५६ भूमिका, पृ०७ शास्त्री, महामहोपाध्याय, हरप्रसाद ए स्क्रिप्टिव केटेलग ग्रॉफ द संस्कृत मैनुस्क्रिप्ट्स, ब० ६. कलकत्ता, १९३१, प्राक्कथन, पृ०५२ मीमांसक, युधिष्ठिर, संस्कृत-व्याकरण शास्त्र का इतिहास, प्रथम भाग, हरयाणा, विक्रम संवत् २०३०, पृ० ४४१-४५१.
३. बोपदेव, कविकल्पद्र म, सम्पा० गजानन बालकृष्ण पलसुले, पूना १६५४, पृ० १.
४. मीमांसक, युधिष्ठिर, जं०म०वृ० भूमिका, पृ० ५१.
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