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जैन संस्कृत महाकाव्यों में रस
यद्यपि काव्यशास्त्रियों में 'काव्य' की परिभाषा के विषय में पर्याप्त मतभेद है, फिर भी यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि काव्य में 'रस' की प्रधानता है ।
प्रस्तुत लेख में जैन संस्कृत महाकाव्यों में 'रस' का आलोचनात्मक अध्ययन किया गया है। जैन कवियों द्वारा संस्कृत में लिखे गए महाकाव्यों को उनकी भाषा- -शैली के आधार पर निम्नलिखित श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है।
(१) वे महाकाव्य जिन्हें पुराण कहा गया है लेकिन चूंकि उनमें महाकाव्य के सभी लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं, अतः महाकाव्य श्रृंखला में सम्मिलित किए गए हैं जैसे रविषेणाचार्य का पद्मपुराण, जिनसेनाचार्य का हरिवंशपुराण और आदिपुराण तथा गुणभद्राचार्य का उत्तरपुराण । इनके लेखक भी अपनी रचनाओं को 'महाकाव्य' ही संज्ञा देते थे, ' परवर्ती विद्वानों ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया है। (२) वे काव्य जिनकी भाषा अलंकृत है और जिनके शीर्षक में भी 'महाकाव्य' शब्द जुड़ा हुआ है जैसे धनञ्जयकृत द्विसंधान महाकाव्य, वीरनन्दिकृत चन्द्रप्रभचरितम् ३ महासेनाचार्यकृत प्रद्युम्नचरितम्, हरिश्चन्द्रकृत धर्मशर्माभ्युदय महाकाव्यम्, वादिराजसूरिकृत पार्श्वनाथचरितम् एवं यशोधरचरितम्, वाग्भट्टकृत नेमिनिर्वाणमहाकाव्यम्, अभयदेवसूरिकृत जयन्तविजयमहाकाव्यम्, बालचन्द्र सूरिकृत वसन्तविलास महाकाव्यम्, अर्हद्दासकृत मुनिसुव्रत महाकाव्यम् और अमरचन्द्रसूरिकृत पद्मानन्दमहाकाव्यम् ।
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(३) वे काव्य जो महाकाव्य कहलाते हैं परन्तु उनकी भाषा-शैली पौराणिक है जैसे विनयचन्द्रसूरिकृत मल्लिनाथचरितम्, उदयप्रभसूरिकृत धर्माभ्युदय महाकाव्यम्, भावदेवसूरिकृत पार्श्वनाथचरितम् और मुनिभद्र कृत शान्तिनाथचरितम् ।
सुविधा के लिए प्रस्तुत लेख में इन महाकाव्यों का इनकी श्रेणी के द्वारा उल्लेख किया गया है।
यद्यपि जैन संस्कृत महाकाव्यों में शान्त रस का प्राधान्य है और यह अस्वाभाविक भी नहीं है क्योंकि इन काव्यों के लेखकों का मुख्य उद्देश्य जैन दर्शन के तत्त्वों को रोचक, सरल व सरस शैली में जनसाधारण के लिए प्रतिपादित करना ही था। लेकिन फिर भी यह जैन कवियों की काव्य-प्रतिभा को ही इंगित करता है कि अन्य सभी रसों का चित्रण भी उन्होंने उसी कुशलता से किया है। जैसा कि निम्नलिखित विवेचन से स्पष्ट हो जाएगा ।
श्रृंगार रस
डॉ० (श्रीमती) पुष्पा गुप्ता
संभोग श्रृंगार
जैन संस्कृत महाकाव्यों में संभोग और विप्रलम्भ दोनों ही प्रकार का श्रृंगार दृष्टिगोचर होता है।
संभोग श्रृंगार का वर्णन प्रायः तीर्थंकरों के पूर्वजन्म के प्रसंगों व राजाओं के वर्णनों में प्राप्त होता है। नायक और नायिकाओं के विषय में यह तब प्राप्त होता है जब वे हिन्दू पौराणिक कथाओं से लिये गए हैं। दूसरी श्रेणी के महाकाव्यों में नायक-नायिकाओं के प्रेम का
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१. महापुराणसम्बन्धि महानायकगोचरम् ।
तिवर्गफलसन्दर्भ महाकाव्यं तदिष्यते ।। आदिपुराण, १/३६
२. (क) 'पद्मचरित' एक संस्कृत पद्यबद्ध चरित-काव्य है। इसमें महाकाव्य के सभी लक्षण है। परमानन्द शास्त्री, जैन धर्म का प्राचीन इतिहास, भाग २, पृ० १५७ (ख) हरिवंशपुराण न केवल कथाग्रन्थ है अपितु महाकाव्य के गुणों से युक्त उच्च कोटि का महाकाव्य भी है। हरिवंशपुराण, प्रस्तावना, पृ० ६, भारतीय ज्ञानपीठ, वाराणसी, १६६२
(ग) आदिपुराण उच्च दर्जे का संस्कृत महाकाव्य है । परमानन्द शास्त्री, जैनधर्म का प्राचीन इतिहास, भाग २, पृ० १८०
३. 'चरितम्' शब्द महाकाव्य का हो द्योतक है।
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आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
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