________________
गुण-वर्णन में और दूसरे जहां कोई अपनी अभीष्ट वस्तु को भी बिना हिचकिचाहट के दूसरे के द्वारा मांगे जाने पर दे देता है। धर्माभ्युदय में राजा अभयंकर अपने मंत्री सुमति के बार-बार मना करने पर भी, बहुत प्रयत्नपूर्वक प्राप्त की गई अपनी 'खड्गसिद्धि विद्या' राजा नृसिंह को दे देता है और अपने अमात्य को भी दान का महत्त्व बतलाता है।'
शान्तिनाथ चरित में मेघरथ एक चिड़िया को शिकारी के चंगुल से बचाने के लिए अपने शरीर का मांस उसे दे देता है। 'दानवीर' का दूसरी प्रकार का उदाहरण धर्मशर्माभ्युदय महाकाव्य में राजा महासेन के दान-पक्ष को उजागर करने के लिए दिया
गया है।'
महासेनाचार्य ने यही वर्णन राजा उपेन्द्र के विषय में अधिक काव्यात्मक तथा अलंकारिक ढंग से किया है।
दयावोर
इन काव्यों में 'दयावीर' एक ही प्रसंग में मिलता है जबकि कोई महान् पुरुष अजनबी लोगों की आपत्ति को देखकर दयार्द्र हो जाते हैं और अपने जीवन को भी खतरे में डालकर, उसकी रक्षा करते हैं । इस प्रकार का एक उदाहरण पद्मपुराण में प्राप्त होता है जहां रत्नचूला विद्याधरी अञ्जना और वनमाला के ऊपर, एक भयानक सिंह द्वारा आक्रमण किये जाने पर, दयाद्रवित हो, अपने पति मणिचूल से उनको बचाने की प्रार्थना करती है, यद्यपि उन दोनों स्त्रियों से वह बिलकुल अपरिचित है।
इसी प्रकार नेमिनाथ तीर्थकर, अपने विवाह के अवसर पर मारे जाने वाले पशुओं के कारुणिक रोदन को सुनकर करुणाभिभूत हो जाते हैं और विवाह किए बिना तुरन्त ही दीक्षा ले लेते हैं।'
अनुरूप भाषा-शैली, पदावली तथा ओज गुण का प्रयोग करने के कारण, वीर रस का सौन्दर्य कहीं अधिक बढ़ गया है।
भयानक रस
___ जैन संस्कृत के महाकाव्यों में भयानक रस प्रायः पशुओं, ऋतुओं, वनों, युद्धों, भयानक आकृतियों, प्रेतात्माओं और नरक के प्रसंग में चित्रित किया गया है।
रविषेणाचार्य ने बहुत ही स्वाभाविक और सजीव चित्रण द्वारा एक शेर की भयंकरता का वर्णन किया है जो वन में अचानक ही अञ्जना और उसकी सखी वनमाला के समक्ष भय की साक्षात् मूर्ति बन कर उपस्थित हुआ। कवि द्वारा प्रयुक्त 'संदेहालंकार' का प्रयोग वास्तव में बहुत ही सुन्दर है। कवि का यह वर्णन इतना सजीव और यथार्थ है कि पाठक का मन भी भय से कांप उठता है। श्रुतिकटु, संयुक्त महाप्राण वर्गों का तथा लम्बे-लम्बे समासों का प्रयोग वर्णन की शोभा में और भी अधिक वृद्धि कर देता है।
एक अन्य स्थल पर भी एक भयंकर शेरनी का वर्णन उतना ही सजीव तया भयोत्पादक है । कवि की कल्पना भी प्रसंगानुकूल है। विद्युतक्ष द्वारा एक बन्दर को मार दिए जाने पर इसी प्रकार का भयप्रद व स्वाभाविक वर्णन पुन: कवि ने अन्य बन्दरों द्वारा
१. धर्माभ्युदय, २/१५०-१५२ २. शान्तिनाथरित, १२/२० ३. असक्तमाकारनिनीक्षणादपि क्षणादभीष्टार्थकृतार्थितार्थिनः ।
कुतश्चिदातिथ्यमियाय कर्णयोनं तस्य देहीति दुरक्षरद्वयम् ।। धर्म शर्मा युदय, २/१३ ४. मनोरथानामधिकं विलोक्य त्याग यदीयं जगते हिताय ।
कल्पद्रुमैीडितया विलिल्ये तथा यथाद्यापि न जन्मलाभः ।। प्रद्य म्नचरित, १/४३ ५. पद्मपुराण, १७/२४४-२४५ ६. हरिवंशपुराण, ५५/८८-८९; उत्तरपुराण, ७१/१६१-१६४ ७. अथ धूतेभकीलालशोणकेसरसंचयः ।
मृत्युपत्रांगुलिच्छायाँ भृकुटि कुटिलां दधत् ।। पद्मपुराण, १७/२२४
जीवाकर्षां कुशाकारां दंष्ट्रां तीक्ष्णाग्रसंकराम् ।। कुटिला धारयन् रौद्रां मृत्योरपि भयंकराम् ॥ पद्मपुराण, १७/२२७ X
X मृत्युदत्यः कृतान्तो नु प्रतेशो न कलिः क्षयः ।
अन्तकस्यान्तको नु स्याद् भास्करो नु तनूनपात् ॥ पद्मपुराण, १७/२३० ८. पद्मपुराण, २२/८६-८८
जैन साहित्यानुशीलन
२७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org