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राम कथा का विकास प्रमुख जैन काव्यों तथा आनन्दरामायण के परिप्रेक्ष्य में
यस्मिन् रामस्य संस्थानम् रामायणमचोच्यते।
जिस काव्य में राम का आद्योपान्त चरित वर्णित किया जाए वह रामायण कहलाता है। राम कथा सम्बन्धी साहित्य की रचना सर्वप्रथम इक्ष्वाकु वंश के सूतों द्वारा आख्यान काव्य के रूप में हुई थी जिन्हें आधार बनाकर वाल्मीकि ने रामायण नामक प्रबन्ध-काव्य की रचना की । इस प्रबन्ध-काव्य में अयोध्याकाण्ड से लेकर युद्धकाण्ड तक की कथावस्तु का वर्णन था । किन्तु कालान्तर में जनता की (राम कौन थे, सीता कौन थी, उनका जन्म, विवाह कैसे हुआ, रावण वध के बाद सीता का जीवन कैसे बीता, आदि) जिज्ञासा की पूर्ति के लिए बालकाण्ड तथा उत्तरकाण्ड का समावेश इसमें कर लिया गया, जिससे रामायण की कथावस्तु ( राम + अयन अर्थात् राम का चरित्र ) न होकर पूर्ण रामचरित के रूप में विकसित हुई । ' उत्तरकाल में संस्कृति के परिवर्तन के फलस्वरूप राम कथा का विभिन्न रूपों में विकास हुआ जिससे आदि काव्य के आदर्श पुरुष रूप में कल्पित राम को भिन्न-भिन्न धर्मों में पृथक्-पृथक् स्थान प्राप्त हुआ - यथा ब्राह्मणधर्म में विष्णु के अवताररूप में, बौद्ध धर्म में बोधिसत्त्व के रूप में तथा जैन धर्म में आठवें बलदेव के रूप में। जैन ग्रन्थों (यथा पउमचरियम्, जैन रामायण, उत्तर पुराण) में राम-लक्ष्मण को जैनमतावलम्बी तथा तीर्थंकरों का उपासक ही नहीं माना गया, वरन् इन्हें जैनों के त्रिषष्टि महापुरुषों में भी स्थान दिया गया। जैन ग्रन्थों में राम कथा के पात्रों की जैन प्रव्रज्या एवं दीक्षा, जैन व्रतों के पालन तथा उनके द्वारा श्रमणों के किए गए सम्मान आदि का स्थल स्थल पर वर्णन किया गया।
ब्राह्मण-धर्म-प्रधान ग्रन्थ आनन्दरामायण में कथा का परिवर्तन ब्राह्मण (वैदिक) संस्कृति की छत्रछाया में समय के परिवर्तन के फलस्वरूप हुआ । वाल्मीकीय रामायण में राम को आदर्श पुरुष मानकर कथा का स्वरूप प्रस्तुत किया गया था, लेकिन आनन्दरामायण में राम को पूर्ण परब्रह्म, विष्णु का पूर्णावतार, लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न को इनका अंशावतार, सीता को लक्ष्मी एवं शक्ति का रूप, हनुमान को ग्यारहवां रुद्र तथा देवताओं को वानर मानकर कथा का स्वरूप परिवर्तित कर दिया गया। इस ग्रन्थ में केवल पात्रों को दैव रूप ही प्रदान नहीं किया गया वरन् इनकी भक्ति ( विष्णु पूजा, हनुमत्पूजा, लिंग-पूजा, शक्ति-पूजा) का प्रचार हुआ तथा इनके हाथ से मृत्यु-प्राप्ति को सायुज्य मुक्ति का साधन कहा गया । उपर्युक्त देवों की स्थापना के साथ-साथ कृष्ण भक्ति का प्रचार होने के कारण कृष्ण के माधुर्य रूप का आरोपण राम पर किया गया जिससे कृष्णवत् राम की बाल लीलाओं, राम-सीता का विलास एवं माधुर्य-भक्ति ( अनेक स्त्रियों का राम के पास आकर क्रीड़ा का प्रस्ताव रखना तथा राम द्वारा कृष्ण जन्म में क्रीड़ा करने का आश्वासन देना) का प्रचार हुआ।
प्रमुख जैन काव्यों (पउमचरियम्, गुणभद्र - कृत उत्तर पुराण, जैन रामायण) तथा आनन्द रामायण में राम कथा के परिवर्तन व परिवर्धन का अवलोकन करने के लिए उन धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं साहित्यिक कारणों पर दृष्टिपात करना अत्यन्त आवश्यक है जिन पर राम कथा का विकास आधृत है।
१. बुल्के, डॉ० कामिल -कृत रामकथा, पृ० ७३७-३८
२. वही, पृ० ७२१
३. आनन्दरामायण, सारकाण्ड, सर्ग २
४. वही, विलासकाण्ड
५. वही, राज्यकाण्ड
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डॉ० अरुणा गुप्ता
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आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
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