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जं. म्या०
भष्टा० १. ऋत्यकः, ४/३/१०५.
ऋत्यकः, ६/१/१२८. २. एङि पररूपम्, ४/३/८१.
एङि पररूपम्, ६/१/९४. ३. एचोऽयवायावः, ४/३/६६.
एचोऽयवायावः, ६/१/७८. ४. झलां जश् झशि, ५/४/१२८.
झलां जश् झशि, ८/४/५३. ५. समर्थः पदविधिः, १/३/१.
समर्थः पदविधिः, २/१/१. ८. अष्टाध्यायी के अनेक सूत्रों का पूज्यपाद देवनन्दी ने किंचिद् परिवर्तन के साथ जैनेन्द्र-व्याकरण में समावेश किया है।
जैसे
अष्टा०
जै० व्या०
अष्टा० १. अन्तेऽलः, १/१/४६.
अलोऽन्त्यस्य, १/१/५२. २. इड्विजः, १/१/७६.
विज इट, १/२/२. ३. परस्यादेः, १/१/५१.
आदेः परस्य, १/१/५४. ४. प्रसहनेऽधेः, १/२/२८.
अधेः प्रसहने, १/३//३३. ५. वसोऽनूपाध्याङः, १/२/११८.
उपान्वध्याङ वसः १/४/४८. पूज्यपाद देवनन्दी ने जैनेन्द्र-व्याकरण में बीजाक्षरी संज्ञाओं का प्रयोग किया है। इन संज्ञाओं के प्रयोग का प्रभाव जैनेन्द्र-व्याकरण के अधिकांश सूत्रों पर पड़ा है। जिस प्रकार माहेश्वर सूत्रों के ज्ञान के बिना अष्टाध्यायी के सूत्रों को समझना दुरूह है उसी प्रकार जैनेन्द्र-व्याकरण की बीजाक्षरी संज्ञाओं के ज्ञान के बिना जनेन्द्र-व्याकरण के सूत्रों कों समझ पाना अत्यन्त कठिन है। निम्नलिखित उदाहरणों से यह सुस्पष्ट है
जै० व्या० १. कृद्धृत्साः , १/१/६.
कृत्तद्धितसमासाश्च, १/२/४६. २. खौ, /३/३८.
संज्ञायाम, २/१/४४. ३. गोऽपित्, १/१/७८.
सार्वधातुकमपित्, १/२/४ ४. तः, १/३/१०२.
निष्ठा, २/२/३६. ५. धेः, १/२/२१.
अकर्मकाच्च, १/३/२६. ६. न धुखेऽगे, १/१/१८.
न धातुलोप आर्धधातुके १/१/४. ७. न बे, १/१/३७.
न बहुव्रीही, १/१/२६. ८. भार्थे, १/४/१४.
तृतीयार्थे, १/४/८५. १. वागमिङ, १/३/८२.
उपपदमतिङ, २/२/१६ १०. वा गौ, १/४/६६.
विभाषोपसर्ग, २/३/५६. १०. पूज्यपाद देवनन्दी ने अष्टाध्यायी का अनुकरण करते हुए भी कुछ सूत्रों में मौलिकता लाने का प्रयत्न किया है ।
इसके लिए उन्होंने सूत्रों में कहीं पर सरल एवं कहीं पर संक्षिप्त पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग किया है। ऐसा करने से सूत्र सहजगम्य एवं संक्षिप्त बन गए हैं। उदाहरणस्वरूपज० व्या अष्टा
चा व्या० अद्री त्रिककुद् ४/२/१४७. विककुत्पर्वते, ५/४/१४८७. त्रिककुतनपर्वते, ४/४/१३५. २. अधीत्याऽदूराख्यानाम् १/४/८१. अध्ययनतोऽविप्रकृष्टाख्या
सन्निकृष्ट पाठानाम, नाम, २/४/५.
२/२/५२, ३.. काला मेयैः, १/३/६७.
कालाः परिमाणिना, २/२/५. ४. क्षुद्रजीवाः, १/४/८४.
शुजन्तवः, २/४/८.
क्षुद्रजन्तूनाम्, २/२/६० जन प्राच्य विधाएं
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