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भावनासार
-धर्म के प्रति निष्ठा का अपूर्व ग्रन्थ
समीक्षक : डॉ० प्रमोद कुमार जैन
जैन समाज में सिद्धांतदेव श्री नेमिचन्द्र जी की धर्मकृति 'द्रव्यसंग्रह' के प्रति शताब्दियों से विशेष आकर्षण रहा है। ग्रंथकार ने ५७ गाथाओं में जैन धर्म के सारतत्त्व जीव द्रव्य, पांच अजीव द्रव्य, सात तत्त्व, नौ पदार्थ, निश्चय व्यवहार रत्नत्रय, पंचपरमेष्ठी तथा ध्यान का स्वरूप इत्यादि का वर्णन किया है । इस ग्रंथ की लोकप्रियता से प्रभावित होकर अनेक समर्थ आचार्यों एवं टीकाकारों ने भारतवर्ष की विभिन्न भाषाओं में इसकी विस्तृत व्याख्या की है। श्री पुट्टय्या स्वामी ने भी अलौकिक सुख की प्राप्ति के निमित्त शक सं० १७८१ में इस ग्रंथ की 'भावनासार' नाम से कन्नड़ भाषा में टीका की थी।
राजधानी दिल्ली के जैन समाज के सौभाग्य से आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज ने सन् १९५५ का चातुर्मास कूचा सेठ, दरीबा कला में सम्पन्न किया था। वर्षायोग में धर्मोपदेश के निमित्त उन्हें दिल्ली के अन्य भागों में भी जाना पड़ता था। एक बार पहाड़ी धीरज में धर्म-प्रवचन, शुद्धि एवं आहार के पश्चात् उन्हें धर्मपरायण ला० मनोहर लाल जी जौहरी का चैत्यालय एवं शास्त्र-भण्डार देखने का अवसर प्राप्त हुआ। आचार्य श्री कन्नड़ी भाषा के मर्मज्ञ विद्वान् हैं। अतः शास्त्र-भण्डार का निरीक्षण करते हुए ताड़पत्रों पर प्राचीन कन्नड़ लिपि में लेखबद्ध 'भावनासार' ने उन्हें विशेष रूप से आकृष्ट किया और जैन धर्म के प्रभावक एवं समर्थ आचार्य होते हुए भी उन्होंने उपरोक्त ग्रंथ का हिंदी अनुवाद करने के लिए शास्त्र-भण्डार के स्वामी से विशेष अनुमति मांगी।
प्रस्तुत ग्रंथ का अनुवाद आचार्य श्री ने जैन धर्म के प्रचार-प्रसार एवं लोक-कल्याण के निमित्त किया था। अतः भावनासार का अनुवाद करते समय आचार्य श्री कन्नड़ पाठ के अनुवाद के साथ-साथ प्रत्येक महत्त्वपूर्ण विषय पर अपनी विशेष टिप्पणी देते रहे हैं । प्रस्तुत ग्रन्थ के अनेक स्थलों पर उनका अनुवादक रूप गौण हो गया है और अनेक महत्त्वपूर्ण प्रसंगों पर आप एक विवेचक एवं भाष्यकार के रूप में परिलक्षित होते हैं । ग्रंथ को जन-जन के लिए उपयोगी बनाने के निमित्त उन्होंने प्रत्येक गाथा का अंग्रेजी अनुवाद भी सुधी पाठकों के लिए सुलभ कर दिया है। ग्रन्थ की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि इस ताड़पत्रीय ग्रंथ के अनुवाद का कार्य आसाढ़ सुदी अष्टमी वीर० सं० २४८२ रविवार को दिल्ली में सम्पन्न हुआ था।
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आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
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