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निम्नलिखित नियम बहुत ही रोचक ढंग से बनाया गया है। किसी भी संख्या वाले अंकगणित श्रेढ़ी के पदों के पहले पद के लिए संख्या 1 ली जाती है। पहले पद से घटाई हुई पदों की संख्या को पदों की संख्या और | के अंतर के आधे से विभाजित करने पर जो संख्या प्राप्त होती है उसे श्रेढ़ी का अंतर मान सकते हैं। योगफल पदों की कुल संख्या के वर्ग के बराबर हआ। यह संख्या, जिसे पदों की संख्या से गूणा किया जाता है, पदों की संख्या के धन के बराबर होती है। 19,31C, 33]
स्पष्टतः यहाँ महावीराचार्य अंकगणित श्रेढ़ी की बात कर रहे हैं।
S=
"(2k-1)=n',
k-11
S.n=n.nns. ज्यामिति श्रेढ़ी के नियम और प्रश्न आर्यभट्ट और ब्रह्मगुप्त के ग्रन्थों में नहीं मिलते हैं। ज्यामिति श्रेढ़ी के योगफल और पद निकालने के नियम सबसे पहले महावीर ने दिये । उसके बाद श्रीधर और भास्कर द्वितीय ने इन्हें इस प्रकार प्रस्तुत किया :-- an+1=a.g"
[9, II. 93]
S
aq"-a
-1 महाबीराचार्य के ग्रंथ में इन नियमों और उनके विविध प्रकारों के उदाहरण दिये गये हैं।
संचय विन्यास छठे अध्याय के 218वें श्लोक में मिश्रित संख्याओं के संचय ज्ञात करने का सूत्र दिया गया है जो इस प्रकार है :
_ n(n-1) (n-2)...[n-(m-1)]
1.23...m इसी नियम के 3 उदाहरण हैं जिनमें से एक इस प्रकार है :-"हीरा, नीलम, पन्ना, मंगा और मोतियों के विविध प्रकार के कितने हार बनेंगे?"
[9, VI, 220] ऐसा ही सूत्र और ऐसे ही उदाहरण श्रीधर और नारायण ने भी दिये हैं।
संख्या शृखलामों का योगफल छठे अध्याय में महावीर ने संख्या शृंखला के योगफल निकालने के कुछ नियम दिये हैं। प्राकृतिक संख्या शृंखला के वर्गों का योग फल इस प्रकार हुआ :
E = 2 (n+yz Cr102
[9, IV, 296]
9,1, 296]
अंकगणित श्रेढ़ी के पदों के वर्गों का योगफल है :
Eu+k-1) dly = { [(2n=14+ +ad ] (n-1) +a }
[9, V1, 298]
आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
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