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चित्र : 10 महावीर के ग्रन्थ के आठवें खंड में परम्परा से चली आ रही भारतीयों की गणना करने की कला का विवरण है जो कि कई कार्यों से संबंधित हैं, जैसे कुआँ खोदना, लकड़ी की चिराई, शहतीरों के ढेर में उनकी कुल संख्या ज्ञात करना, आदि । इसी संदर्भ में प्रिज्म और गोले के आयतनों का भी उल्लेख किया गया है। प्रिज्म के आकार में खोदे गये एक गड्ढे का आयतन उसके आधार के क्षेत्रफल को गहराई से गुणा करने पर प्राप्त होगा। चोटी से आधार तक की ऊँचाई को इस आयतन में जोड़ने पर और उसे मापों की संख्या से विभाजित करने पर प्रिज्म के आयतन का औसत मान प्राप्त होता है। [9, VIII, 4].
इसी सूत्र से हल होने वाले चार प्रश्नों में से एक निम्नलिखित है। "एक गड्ढे के आधार का आकार त्रिकोण है। इस त्रिकोण की प्रत्येक भुजा का माप 32 हस्त और गहराई 36 हस्त और 6 अंगुल है । आकृति का आयतन बताओ। [9, VIII, 6]
गोले का आयतन निम्नलिखित सूत्र से निकाला जा सकता है। अर्धव्यास के घन के आधे को से गुणा करने पर गोले का सन्निकट आयतन प्राप्त होता है। इस प्राप्त संख्या को 9 से गुणा करने पर और 10 से विभाजित करने पर गोले का यथार्थ आयतन प्राप्त होता है । [ 9, VIII 881] इस तरह गोले का सन्निकट आयतन होगा,
()
और यथार्थ आयतन :
v=I (4)
महावीर का सूत्र भास्कर द्वारा लिखे गये सूत्र की अपेक्षा इस सही हल से अधिक मिलता है.
लेकिन श्रीधर के सूत्र से अधिक सही हल निकाला जा सकता है___y = 4R (1 + है)
[4, पृष्ठ 154]. उपसंहार भारतीय गणित में महावीर का क्या स्थान है ? जैसे कि पहले ज्ञात हो चुका है कि महावीर का ग्रन्थ उससे पहले की नक्षत्र विद्या संबंधी कृतियों में लिखे गए गणित के खण्डों से बड़ा है । ऐसा संभव है कि महावीर के ग्रन्थ में दी गई बहुत सी बातें आर्यभट्र प्रथम, ब्रह्मगुप्त और भास्कर प्रथम को ज्ञात थीं। परन्तु बहुत से नियमों की रचना आर उनके उदाहरणों की जानकारी हमें महावीर द्वारा प्राप्त होती है ।
“गणितसारसंग्रह" पहला ग्रंथ है जिसमें निम्नलिखित नियम दिये गए हैं :जैन प्राच्य विद्याएं
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