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है कि उनमें से विशेषतः सांस्कृतिक परिचय मिलता है। ये सभी पुस्तकें जैन धर्म को केन्द्रस्थ मान कर लिखी गई हैं। फिर भी उनमें से धार्मिकता के तत्त्व को निकाल देने के बाद भी इतिहासोपयोगी सामग्री पर्याप्त मात्रा में प्राप्त हो जाती है । जैन तीर्थों के वर्णनों के साथ आसपास अवस्थित जैनेतर तीर्थों का परिचय देना उदारतापूर्ण है। तीर्थों का तत्कालीन इतिहास, स्थलनानामों का तत्कालीन-समकालीन परिचय साथ ही क्रमिक रूपान्तरों का परिचय, उन तीर्थों की भौगोलिक स्थिति और वहां के आवागमन भागों का वर्णनों में सूक्ष्म से सूक्ष्मतम विषयों का परिचय, विवादास्पद विषयों के समर्थन में विद्वानों के मन्तव्य या तथ्य, शिल्प स्थापत्य लेख या मन्दिरों के चित्र, मन्दिरों की स्थापना या जीर्णोद्धार से जुड़े राजा, मन्त्रियों एवं राज्य का परिचय, मन्दिरों की रचना, जोर्णोद्धार या प्रतिमाप्रतिष्ठा के लेखों का अनुवाद सहित परिचय.....ये सभी लक्षण इतिहास के प्रति उनकी अभिरुचि के द्योतक हैं।
विजयधर्म सूरि विद्या विजय जी जयन्त विजय जी जयन्त विजय जी
प्राचीन तीर्थमाला-संग्रह भाग-१ भारी कच्छ यात्रा' शंखेश्वर महातीर्थ भाग-१-२ आबू भाग-३ (अचलगढ़) आबू भाग-४ (अर्बुदाचलप्रदक्षिणा)६ उपरियात्रा तीर्थ आबू भाग-१ (तीर्थराज आबु, तृतीय संस्करण) नाकोडा तीर्थ भोरोल तीर्थ वे जैन तीर्थों (चारूप, मेत्राणा) चार जैन तीर्थों (मातर, सोजित्रा, घोलका, खेड़ा) कावी-गंधार-झगड़िया (तीन तीर्थ) भारत नां प्रसिद्ध जैन तीर्थों २
१९२२ १६४२ १६४२ १६४६ १६४८ १६४८ १९५०
जयन्त विजय जी विशाल विजय जी
१९५३
१९५४
१६५६ १९५७ १९५८
कनक विजय जी
१. मुनि जी ने इस पुस्तक में पच्चीस तीर्थमालायें दी हैं, आरंभ में प्रदेश का भौगोलिक विभागों के आधार पर संक्षिप्त परिचय दिया है, ये तीर्थ मालायें अनेक
प्रकार का सांस्कृतिक परिचय देती हैं। २. विस्तार के साथ लिखी गई इस पुस्तक में अभिव्यक्त ऐतिहासिक सामग्री बहुत महत्त्वपूर्ण है। 'कच्छ तो पुरावशेषोनो छे' इसके महत्त्व को पहचान कच्छ
ना पुरातत्त्व' विषय पर एक अलग प्रकरण दिया गया है। इसके बाद 'कच्छ' शब्द के विविध अथों का संक्षिप्त वर्णन, उनका भौगोलिक वर्णन, सामाजिक
धार्मिक जीवन, पूर्वकालीन-अर्वाचीन राजकीय स्थिति, शिक्षण एवं औद्योगिक जीवन का ज्ञान उल्लेखनीय है। ३. प्रथम भाग में ऐतिहासिक वर्णन और परिशिष्ट में ६५ शिलालेखों को अनुवाद सहित दिया गया है, द्वितीय भाग में इस तीर्थ से सम्बन्धित जो—कल्प स्तोत्र,
स्तुति श्लोक मिले हैं वे दिये गये हैं। ४. अचलगढ़ के उच्च शिखर से तलहटी तक, उसके आसपास के मैदानों में तथा नजदीक के जैन, वैष्णव, शव आदि धर्मों के तीर्थ तथा मन्दिर और प्राकृतिक एवं
कृत्रिम पूर्वकालिक दर्शनीय स्थलों का वर्णन इस ग्रन्थ में दिया गया है। ५. मुनि जी ने आबू भाग १ से ५ में आबू और आसपास के प्रदेशों में अवस्थित जैन और जैनेतर तीर्थों का ऐतिहासिक परिचय दिया है। भाग २ और ५ में
अभिलेखों को विस्तृत छानबीन की है। उनकी इस पुस्तक में चित्रों का भी काफी महत्त्व है। प्रथम भाग में ही ५१ चित्र दिये गये हैं। इन ग्रन्थों में मुनि जी की इतिहास के प्रति गहन सूझ-बूझ परिलक्षित होतो है । आबू का ऐसा विस्तृत वर्णन शायद ही अन्यत्र देखने को मिले। ६. इस ग्रन्थ में ९७ गांवों का संक्षिप्त परिचय है। इनमें से ७१ गांवों से अभिलेख मिले हैं। प्रत्येक गांव का सूक्ष्म वर्णन किया गया है । जैन पारिभाषिक शब्द ___ एवं अन्य शब्दों को भी समझाया गया है । अबुदाचल की वृहद् प्रदक्षिणा एवं लघु प्रदक्षिणा के बाके दिये गये हैं जो अनुक्रमणिका में दिये गये हैं। ७. मारवाड़ में प्राचीन जैन तीर्थ है, आरम्भ में मंजपर, नोंधणवदर और पंचासर का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। इस तीर्थ का वर्तमान नाम महेवानगर है। ८. तीर्थों का वर्णन प्रस्तुत करने में इस मुनि का विशिष्ट योगदान है। परिभ्रमण में जिन-जिन तीथों के अध्ययन का अवसर मिला उनका संक्षिप्त परन्तु सर्व
ग्राही परिचय के साथ इन्होंने बारह पुस्तिकायें लिखीं उनका यह कार्य अभी भी जारी है चित्रों का प्रमाण कम है यह ही एक कमजोरी है। ६. यह उत्तर गुजरात के बनासकांठा जिले में है । इसके अलावा भीलड़िया, थराद, ढिमावाव और हुआ तीथों का परिचय भी दिया गया है। १०. चारूप पाटण के पास और मेत्राणा सिद्धपुर के पास है। ११. ये तीनों तीर्थ दक्षिण गुजरात में हैं, कावी जम्बुसर तहसील में, गन्धार भरुच से ४१ कि० मी० उत्तर-पश्चिम में और झडिया नादोद तहसील में हैं। १२. मख्यत: गुजरात-सौराष्ट्र-कच्छ के ७० से अधिक जैन तीर्थों का परिचय कराया है। कई नगरों का प्राचीन ऐतिहासिक माहिसी भी दिया गया है।
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आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
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