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धर्मामृतसार
-भाषा-समस्या के लिए देवनागरी लिपि अपनाने का महामंत्र
समीक्षक : कु० रुचिरा गुप्ता
आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज प्रायः वर्षायोगों में श्रावकों के ज्ञानवर्धन एवं तत्त्वचर्चा के लिए प्रश्नोत्तर शैली में धर्म-निरूपण किया करते हैं। इस प्रकार के प्रवचनों से श्रावकों का धर्म के प्रति उत्साह बढ़ता है और वे वैचारिक रूप से मुनि संघ के सन्निकट आ जाते हैं । 'धर्मामृतसार' आचार्य श्री के इसी प्रकार के आध्यात्मिक वाग्वैभव का एक कान्तिमान रत्न है। उन्होंने सन् १९६२ में अब्दुल लाट (ताल्लुकाशिरोल, जिला कोल्हापुर, में श्रावकों को अनुगृहीत करने की भावना से मराठी एवं हिन्दी भाषा में अनेकानेक प्रश्नों की धर्मसम्मत व्याख्या की थी।
प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रथम अध्याय में श्रावकाचार से सम्बन्धित प्रश्नों का उत्तर देते हुए मुनि श्री ने प्रायः आगम की मूल वाणी का प्रयोग किया है। आगम के रहस्यों से जनसाधारण, को परिचित कराने के लिए वे सरल, सुबोध भाषा का प्रयोग करते हैं। प्रश्नोत्तर के उपरान्त वे श्रावकों का मार्गदर्शन करते हुए उन्हें २४ घण्टों में से एक घंटा धर्म के कार्यों में लगाने की प्रेरणा देते हैं । द्वितीय अध्याय में तत्त्व चिन्तन सम्बन्धी प्रश्नों के सुबोध भाषा में उत्तर दिए गए हैं । तीसरे अध्याय में कविवर भूधरदास के 'पार्श्वपुराण' के अनुसार सुख-दुःख का प्रश्नोत्तर शैली में विवेचन किया गया है। चतुर्थ अध्याय में आचार्य श्री ने सुगम एवं सरल भाषा में श्रावक की नियमित क्रिया के सम्बन्ध में आवश्यक सूचनाएँ दी हैं।
__आलोच्य ग्रन्थ में मराठी भाषा का भी देवनागरी लिपि में प्रस्तुतिकरण किया गया है। मराठी भाषा से अनभिज्ञ हिन्दी भाषी जन देवनागरी लिपि में मराठी एवं हिन्दी का एक साथ पाठ करते हैं तो उन्हें दोनों भाषाओं में अद्भुत साम्य नजर आता है।
इस कृति का प्रकाशन एक ऐसे कालखंड में हुआ था जब भाषा की समस्या को लेकर राष्ट्र में प्रान्तीयता की भावना सिर उठा रही थी। आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज ने राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्री रामचन्द्र जी के विजय दिवस दशहरा की सार्थकता को सिद्ध करने के लिए उपरोक्त महत्त्वपूर्ण तिथि पर भारतीय भाषाओं की समस्याओं के रचनात्मक समाधान के लिए देवनागरी लिपि के प्रयोग का महामन्त्र दिया था।
__ आचार्य श्री ने अपने दीर्घ जीवन में लगभग सम्पूर्ण भारतवर्ष की पदयात्राएं की हैं और भारतवर्ष की प्रमुख एवं आंचलिक भाषाओं के साहित्य एवं बोलियों से उनका गहरा तादात्म्य रहा है। अतः 'धर्मामृतसार' में राग-द्वेष से पीड़ित मनुष्य के लिए प्रेरक मार्गदर्शन है और साथ-ही-साथ भारत की राष्ट्रीय एकता के लिए देवनागरी लिपि को भावनात्मक रूप से अपनाने का संकेत दिया गया है।
ANMAAIVI
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