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आवश्यक है । भाव यह है कि बन्ध में सर्वत्र २ शक्त्यंशों (गुणों) का अन्तर होना चाहिए, न इससे कम और न इससे अधिक ।
श्वेताम्बर परम्परा इसे नहीं मानती । उसके अनुसार सदृश परमाणुओं में तीन-चार आदि अंश अधिक होने पर भी बन्ध हो
जाता है।
उपर्युक्त कथन से यह स्पष्ट है कि समान शक्त्यंश होने पर सदृश परमाणुओं का बन्ध नहीं होगा । उमास्वामी का गुणसाम्ये सदृशानाम्' सूत्र भी यही कहता है।
बन्ध न होने की दूसरी स्थिति है न जघन्यगुणानाम्' अर्थात् जपन्यगुण वाले परमाणुओं का बन्ध नहीं होता है। गुण का अर्थ है शक्त्यंश । शक्ति के अंशों में सदैव हानि वृद्धि का क्रम चलता रहता है । ऐसा होते होते जब शक्ति का एक ही अंश बाकी रह जाता है तो ऐसे परमाणु को जघन्यगुण वाला परमाणु कहते हैं । दिगम्बर परम्परा के अनुसार जघन्यगुण वाले परमाणु अर्थात् एक शक्त्यंश वाले परमाणु का अजघन्य गुण वाले परमाणु अर्थात् तीनादि शक्त्यंश वाले परमाणु का बन्ध नहीं होता सामान्यतः द्वयधिकादिगुणानां तु सूत्र अनुसार १ + ३ शक्त्यंश वाले परमाणुओं का दो गुणों का अन्तर होने से बन्ध होना चाहिए था, परन्तु न जघन्यगुणानाम् सूत्र के अनुसार १ + ३ गुणों वाले परमाणुओं में बन्ध नहीं होगा । असदृश + असदृश में भी यही नियम लागू होगा ।
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श्वेताम्बर परम्परा ऐसा नहीं मानती उसके अनुसार जघन्य अंश वाले परमाणु का अजघन्य अंश वाले परमाणु के साथ बन्ध
होता है।
उपर्युक्त बन्ध प्रक्रिया को एक सारिणी' द्वारा निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है
अंश
१. जघन्य जघन्य २. जघन्य एकाधिक
३. जघन्य द्वयधिक
४. जघन्य त्र्यादि अधिक
५. जघन्येतर सम जघन्येतर
६. जघन्येतर एकाधिक जघन्येतर
७. जघन्येतर द्वयधिक जघन्येतर
८. जघन्येतर त्र्यादि अधिक जघन्येतर
श्वेताम्बर
सदृश
नहीं
नहीं
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the other to
है
नहीं
परम्परानुसार विसदृश
नहीं
नहीं
है
नहीं
है
नहीं
नहीं
नहीं
वाला हो जाता है-बन्धे अधिका
वन्ध हो जाने के पश्चात् अधिक अंध वाले परमाणु हीन अंश वाले परमाणुओं को अपने में परिणाम लेता है। तीन अंश वाले परमाणु को पांच अंश वाला परमाणु अपने में मिला लेता है अर्थात् तीन अंश वाला परमाणु पांच अंश परिणामिकौ च । *
है
है
दिगम्बर
सदृश
नहीं
नहीं
नहीं
नहीं
१. तत्वार्थसूत्र, ५ / ३५
२. वही, ५ / ३४
३. मुनि नथमल जैन दर्शन मनन और मीमांसा, आदर्श साहित्य संघ प्रकाशन, चुरू, १९७७ की सारिणी से साभार
:
४. तत्वार्थसूत्र, ५ / ३७
५. सत्वार्थसार ३ / ६५
६. वही, ३ / ६६
६०
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परम्परानुसार विसदृश
नहीं
नहीं
नहीं
नहीं
सूक्ष्मत्व - सूक्ष्म भी अन्त्य और आपेक्षिक के भेद से दो प्रकार का है । अन्त्य सूक्ष्मत्व परमाणुओं में तथा आपेक्षिक सूक्ष्मत्व बेल, आंवला आदि में होता है ।
-
स्थौल्य – यह भी अन्त्य और आपेक्षिक के भेद से दो प्रकार का है । अन्त्य स्थौल्य लोक रूप महा-स्कन्ध में होता है तथा आपेक्षिक स्थौल्य बेर, आंवला आदि में होता है ।
संस्थान संस्थान का अर्थ है आकृति । यह इत्थंलक्षण और अनित्थंलक्षण भेद रूप दो प्रकार की है। कलश आदि का आकार गोल, चतुष्कोण, त्रिकोण आदि रूपों में कहा जा सकता है, वह इत्यंलक्षण है तथा जो आकृति शब्दों से नहीं नही जा सकती वह अनित्य
नहीं
नहीं
है
नहीं
आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन प्रत्य
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