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जैन दर्शन की सैद्धान्तिक मान्यताओं के सन्दर्भ में पुनर्जन्म के वैज्ञानिक अध्ययन की समीक्षा
मुनि श्री महेन्द्र कुमार
[विजिनिया (अमेरिका) के सुप्रसिद्ध मनश्चिकित्सक डॉ० ईयान स्टीवनसन पिछले पन्द्रह वर्षों से पुनर्जन्म के वैज्ञानिक विश्लेषण के आधार पर अनुसंधान-कार्य कर रहे हैं। इस संदर्भ में उन्होंने विश्व की अनेक बार यात्राएं की हैं और पूर्वजन्म सम्बन्धी घटनाओं का अध्ययन किया है। प्रस्तुत लेख के लेखक ने उनके द्वारा किये गये कार्य का सर्वांगीण समावलोकन करते हुए जैन दर्शन की सैद्धान्तिक मान्यताओं के संदर्भ में उसकी समीक्षा की है। जैन विद्या परिषद् के सप्तम अधिवेषशन पर यह शोध-पत्र पढ़ा गया था ।---सम्पादक]
जैन दर्शन आत्मवादी और कर्मवादी दर्शन है।' आत्मा और कर्म के अस्तित्व के साथ जैन दर्शन पुनर्जन्म के सिद्धान्त को भी स्वीकार करता है। इधर परामनोविज्ञान के क्षेत्र में गवेषणारत वैज्ञानिकों के द्वारा पुनर्जन्म (Reincarnation) के विषय में वैज्ञानिक पद्धतियों के आधार पर व्यवस्थित अध्ययन किया गया है। प्रस्तुत शोध पत्र का उद्देश्य है- पुनर्जन्म-सम्बन्धी किये गये वैज्ञानिक अध्ययन को प्रस्तुत कर जैन दर्शन की सैद्धान्तिक मान्यताओं के संदर्भ में उनकी समीक्षा करना।
तत्त्व दर्शन के क्षेत्र में :
तत्त्व दर्शन (metaphysics) के क्षेत्र में अस्तित्ववादी या आस्तिक दर्शन आत्माओं को चैतन्यशील, जड़ पदार्थ में सर्वथा स्वतंत्र एवं अनश्वर (अर्थात् मृत्यु के पश्चात् भी अपने अस्तित्व को बनाये रखने वाला) स्वीकार करते हैं, जबकि भौतिकवादी या नास्तिक दर्शन आत्मा की स्वतन्त्र सत्ता को स्वीकार नहीं करते तथा मृत्यु के पश्चात भी उसके अस्तित्व को अस्वीकार करते हैं। न्याय-शास्त्र एवं दर्शन-शास्त्र के ग्रन्थों में इन दोनों अभिमतों के प्रतिपादकों के पारस्परिक वाद-विवाद की विस्तृत चर्चाएं उपलब्ध होती हैं । ये चर्चाएं तर्क, अनुमान आदि प्रमाण के आधार पर की गयी हैं। दोनों पक्षों की ओर से अपने-अपने अभिमत को स्थापित कर विपक्ष को खण्डित करने की चेष्टा की गई है।
तार्किक आधारों पर खण्डन-मण्डन का यह क्रम प्राचीन काल में ही नहीं, आधुनिक दार्शनिकों में भी चला है। आधुनिक पाश्चात्य दार्शनिक डॉ० मेकटेगार्ट जहां पुनर्जन्म के पक्षधर हैं, वहां प्रिंगलपेटिसन आदि उनके विपक्षी हैं। डॉ० टी०जी० कलघटगी ने तो इसके तार्किक प्रामाण्य को असंभव और अनपेक्षित माना है। उनके अनुसार यह विशिष्ट द्रष्टाओं के उच्चतम ज्ञान और अनुभूति के द्वारा व्यक्त सिद्धान्त है। पर डा०मेकटेगार्ट ने पुनर्जन्म की वास्तविकता को तार्किक आधारों पर प्रमाणित करने की चेष्टा की है। उनके अनुसार यदि यह सिद्ध हो जाता है कि वर्तमान जीवन के पूर्व और पश्चात् भी जीवन है, तो पुनर्जन्म के साथ अनश्वरता का सिद्धांत भी अपने आप सिद्ध हो
१. से आयावाई, कम्मावाई, किरयावाई, लोयावाई।-आयारो, १/५ २.वही, १/१ से ४ । सैद्धांतिक प्रमाणों के अतिरिक्त घटनाओं के उल्लेखों से जैन आगम भरे पड़े हैं। युवाचार्यश्री महाप्रज्ञजी की मान्यता के अनुसार भगवान् महावीर जाति-स्मरण-ज्ञान कराने की पद्धति से साधकों को श्रद्धावान् बनाते थे।
-आयारो, टिप्पणी, पृ०५३ ३. See Reincarnation-A Selected Bibliography-Compiled in the Division of Parapsychology, University of ___Verginia. ४. देखें, डॉ० टी० जी० कलपटगी, कर्म एण्ड रिबर्थ, पू० ५४ से ६५, एल० डी० इंस्टीट्यूट आफ इण्डोलोजिकल रिसर्च, अहमदाबाद । ५. वही, पृ०७५ "The doctrine of Karma and consequent principle of Rebirth are expressions of highest know
ledge and experience of the seers. Its logical justification is neither possible nor necessary".
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आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन अन्य
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