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है, रो उठता है और स्वयं ऐसी सद्भावना प्रगट होती है कि उस दुःखी जीव का दुःख दूर हुए बिना शान्ति नहीं आती। उस दुःख को दूर करने में चाहे अपने को कुछ कष्ट भी क्यों न उठाना पड़े। यह दया का भाव मनुष्य के हृदय में स्वाभाविक होता है, किसी की प्रेरणा पर ही नहीं होता।
एक दयाचन्द्र नामक युवक था। एक दिन गर्मियों में वह दोपहर के समय एक वृक्ष के नीचे खड़ा हुआ विश्राम कर रहा था । सूर्य की किरणों से जमीन गर्म तवे की तरह तप रही थी। उसी समय दयाचन्द्र ने देखा कि उस पेड़ से एक बीछ जमीन पर रेत में गिरा है। गर्म रेत में पड़ कर वह तड़फड़ाने लगा। यह देखकर दयाचन्द्र को दया आई, उसने बीछू को उठा कर पेड़ की ठंडी छाया में रखना चाहा, परन्तु बीछू को उठाते ही बीछू ने दयाचन्द्र के हाथ में डंक मारा।
बीछू के काटने से दयाचन्द्र को बहुत पीड़ा हुई। उसने ज्योंही अपना हाथ झटकारा कि बीछू फिर गर्म रेत में गिर कर तड़फड़ाने लगा। बीछू को देखते ही दयाचन्द्र अपना दुःख भूल गया। उसने फिर बीछू को उस रेत में से उठाकर छाया में रखना चाहा । ज्योंही उसने बीछू उठाया कि बीछू ने छूते ही फिर डंक मारा । दुबारा काटने से दयाचन्द्र के हाथ से बीछू रेत में ही गिर पड़ा और गर्म रेत में पहले की तरह तड़फड़ाने लगा । दयाचन्द्र से बीछू का दुःख न देखा गया और उसने बीछू के प्राण बचाने के लिये बीछू को उठाया। बीछू ने तीसरी बार भी दयाचन्द्र को काटा परन्तु अबकी बार दयाचन्द्र ने उसे छाया में रख ही दिया।
वहाँ देखने वाले मनुष्यों ने दयाचन्द्र से कहा कि 'तू बहुत मूर्ख है, बीछू के बार-बार काटने पर भी उसे उठाता ही रहा।' दयाचन्द्र ने उत्तर दिया कि मैं क्या करूं? मुझसे उसका तड़फड़ाना नहीं देखा गया। यदि बीछू ने अपनी डंक मारने की आदत नहीं छोड़ी तो मैं दया करने की अपनी आदत कैसे छोड़ देता।?
इसी दया भाव के कारण मनुष्य दूसरों का दुःख दूर करने के लिये झट तैयार हो जाता है। दूसरों का दु:ख दूर करते हुए कभी-कभी दयालु मनुष्य अपने प्राणों की भी चिन्ता न करके भयानक विपत्ति में फंस जाते हैं, दूसरों को बचाते हुए स्वयं मर भी जाते हैं।
अभी दो-तीन मास पहले मध्यप्रदेश की एक कोयले की खान में ११२ मजदूर कोयला खोद कर निकाल रहे थे कि अचानक 'पास की दूसरी खान के स्रोत से उस खान में पानी भरने लगा। तब सब मजदूर अपने प्राण बचाने के लिये लिफ्ट से बाहर आने लगे। पानी बहुत तेजी से खान में भर रहा था। लिफ्ट भी उन्हें शीघ्र बाहर निकालने के लिये कार्य कर रही थी। एक मजदूर जो खान से बाहर आ गया था वह खान में फंसे हुए दूसरे मजदूरों को बचाने के लिए लिफ्ट द्वारा बार-बार खान में जाता था और मजदूरों को बाहर ले आता था। पांचवीं बार जब वह खान में गया तो उसने दूसरे मजदूरों को तो लिफ्ट में चढ़ा दिया परन्तु आप न चढ़ सका और वहीं ८० फुट भरे हुए पानी में डूब कर मर गया ।
इस प्रकार दयालु पुरुष दूसरों की रक्षा करने में अपने कष्टों को भूल जाते हैं, इसी दया भाव के कारण मनुष्यों में परस्पर प्रेमभाव बना हुआ है और प्रेम के कारण मनुष्य आपस में मिलजुल कर रहते हैं । परिवार, जाति, समाज के संगठन इसी आपसी प्रेम के कारण बने हुए हैं।
कुत्ता अपने जाति भाई दूसरे कुत्ते को देखकर उसे काटने के लिये दौड़ता है और यदि उसे कोई न रोके तो वह दूसरे कुत्ते को मार ही देता है। इस आपसी द्वष और निर्दयता के कारण कुत्तों का आपसी संगठन नहीं दिखाई देता और न वे बड़ी संख्या में कहीं रहते हैं । दूसरे पशु आपस में प्रेम से रहते हैं । एक दूसरे का दुःख दूर करने में परस्पर सहायता करते हैं। अतः उनका झुण्ड इकट्ठा भी रहता है । अतएव संगठन का मूल कारण 'दया या अनुकम्पा' है।
दया आत्मा का एक स्वाभाविक गुण है, जो कि प्रत्येक जीव में पाया जाता है। जो जानवर प्रकृति के होते हैं उनके हृदय में भी दया का अंश रहता है जिससे कि वे अपने बच्चों को दु:ख नहीं होने देते । बड़ी सावधानी से चौकन्ने रहकर उनका पालन-पोषण करते हैं । भेड़िया बहुत निर्दय दुष्ट जानवर है । परन्तु उसे भी कभी-कभी दूसरों पर दया आ जाती है। इसी कारण जब वह खाने के लिये मनुष्य के बच्चे को उठा ले जाता है, तब कभी-कभी उसे दया आ जाती है और उस मनुष्य के बच्चे को मारता नहीं बल्कि उसे अपने बच्चों की तरह ही पाल लेता है। मादा भेड़िया उसे अपना दूध पिलाकर पाल लेती है। भेड़ियों द्वारा पाले गये ऐसे अनेक बालक-बालिकायें भेड़ियों की मांद से मिले हैं।
अमृत-कण
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