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ही यहां पधारे हुए थे । पानी की समस्या उनकी समझ में आ गयी। प्रवचन में आपकी अमृत वाणी निकली-"भव्य सद्धर्म बंधु, डरो मत हम त्रिलोकाधिपति भगवान् श्री पार्श्व प्रभु का पंचकल्याणक शुभ कार्य करने जा रहे हैं, इस कार्य में आनेवाली कितनी भी विघ्न-बाधाएँ क्यों न हों वे अपने आप दूर हो जायेंगी और पंचकल्याणक से पहले ही बरसात होगी ।" देखना क्या था ! मई मास की २१ तारीख की शाम के वक्त आसमान पर एकाएक काले-काले बादल मंडराने लगे। कुछ ही घंटों में सभी ओर अंधेरा-सा छा गया देखते ही देखते लगातार एक घंटे तक मूसलाधार वर्षा हुई जिससे गड्ढे-तालाब सब भर गये । भूमि शुद्धि के साथ यह महोत्सव निविध्न संपन्न हुआ।
दूसरी बात आचार्य श्री शांतिसागर जी की तपोभूमि एवं मुनिनिवास के बारे में थी। इस अनाथ क्षेत्र की ओर किसी का भी ध्यान नहीं गया था। जब आचार्यश्री की नजर इस क्षेत्र पर पड़ी तो सिहर उठे और बोले-"यह अनाथ क्यों हैं, हमारे साथ त्रिलोकनाथ हैं । इस क्षेत्र का संरक्षण करना हर मानव हितवादी का परम कर्तव्य है।" यहां एक गुफा और आचार्य अनंतकीर्ति महाराज की समाधि भी है। महाराज जी की प्रेरणा से अनगिनत द्रव्यदान मिला, कार्यकर्ताओं और कारीगरों का तांता लग गया जिससे देखते ही देखते इस क्षेत्र का संरक्षण कार्य पूर्ण हुआ । क्षेत्र-अभिवृद्धि का कार्य जारी है ।
तरण-तारणकर्ता-महाराज जी की वाणी से और तपोबल से प्रभावित जनता की मनोकामना थी कि १९८६ का चातुर्मास सदलगा में संपन्न हो । बड़ी आरजू प्रार्थना के बाद यह सौभाग्य प्राप्त हुआ। पर्वराज पर्दूषण के शुभ योग में दोनों मंदिरों के लिए शिखर तथा मानस्तंभ निर्माण के लिए भूमि-पूजन की बात सोची गई। अकाल से पीड़ित जनता भयभीत मुद्रा से गुरु के मुखमंडल की ओर विवशता से निहारने लगी तो अमृतवाणी निकली-“शुभकार्य के लिए आज-कल कहने में तथा विध्न-बाधा डालने में भव-भवांतर की हानि है । त्रिलोकनाथ के भरोसे पर कर डालो सब ठीक हो जायेगा और समाज की भलाई होगी।" देखना क्या था, प्रातः काल की शुभ बेला में भूमिपूजन कार्य संपन्न हुआ । दानियों की होड़ लग गई महाराजजी के मार्गदर्शन में सब कार्य यथाशीघ्र करने का प्रण भी किया गया। महाराज जी की वाणी में अद्भुत शक्ति है जिसमें सभी प्राणीमात्र का कल्याण ही प्रधान प्रयोजन होता है । आपकी अमृतवाणी हमारे अन्तर्मन में गूंजती है। जैसे कुशल कृषक भूगुण और मौसम की जानकारी लेकर बीज बोकर सुफल पाता है उसी तरह के कुशल कृषक अध्यात्मकेसरी गुरुवर्य आत्मा की पृष्ठभूमि में अध्यात्म बीज बोकर मुक्ति फल दिलाने में मर्मज्ञ हैं। आप का गुणगान शब्दों से करना असंभव है। मुझे लगता है
__ सब धरती कागद करू, लेखनी सब बनराय ।
सप्त समुंदर मसी करू', गुरु गुण लिखा न जाय ।। महान महिमापूरुष, बीसवीं सदी के श्रेष्ठ संत, श्रमण संस्कृति के संरक्षक, विश्वधर्म के प्रेरक, राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता की ज्योति जगाने वाले, मानव जाति के हितचि तक तथा जीवदयामयी यतीश्वर का गुणगान मेरे शब्दों द्वारा करना सर्वथा असंभव है। शत-शत वंदन
जैन धर्म में प्रायः श्रावक एवं धाविकाएँ नियमित रूप से पंच मंगल-पाठ का स्तवन करके परमपूज्य तीर्थंकर भगवानों के चरणों में अपनी आस्था का अर्ध्य भक्तिपूर्वक समर्पित करते हैं। पंच मंगल-पाठ में भगवान् ऋषभदेव से भगवान महावीर स्वामी पर्यंत चौबीस तीर्थंकरों के गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान एवं निर्वाण कल्याणक-उत्सवों का स्मरण किया जाता है।
परमपूज्य आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज ने पांच तीर्थंकर भगवान् की जन्म कल्याणक भूमि अयोध्या में विशाल जैन मन्दिर बनवाकर श्रमण संस्कृति की अपूर्व सेवा की है। यदि हमारे यहां के समर्थ सन्त आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी का अनुकरण करके तीर्थकर भगवानों के पंचकल्याणक से सम्बन्धित क्षेत्रों की विकास योजनाओं को अपने हाथ में लें तो निकट भविष्य में सभी तीर्थक्षेत्रों का अभिनव रूप सामने आ जायेगा।
विजेन्द्र कुमार जैन सर्राफ
दरीबा कलां आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज एक साक्षात् धर्मतीर्थ हैं । अनेक अवसरों पर उनके दर्शन का सौभाग्य मुझे मिला है। आचार्यश्री की धर्मप्रभावना एवं वाग्वैभव से समग्र जैन समाज लाभान्वित हुआ है। उन्होंने अपने कुशल संयोजन से अनेकानेक तीर्थों का उद्धार एवं नवनिर्माण किया है। पंचपरमेष्ठी के प्रतीक आचार्यश्री की दिव्य साधना के प्रति मैं नतमस्तक होकर अपनी हार्दिक श्रद्धा अर्पित करती हूँ।
श्रीमती जे० के० गांधी
बम्बई १४६
आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन अन्य
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