________________
सुख का मार्ग जानने के लिए, उसे समझाने के लिए स्वयं अपना राजपाट छोड़ दिया। उन्होंने सोचा कि अगर मेरे पास कुछ रहेगा, मैं कुछ रखूगा तो दूसरों पर मेरे उपदेश का प्रभाव नहीं पड़ेगा। दुःख का मूल कारण भी यही है। परिग्रह में पड़ा हुआ जीव कभी भी आत्मिक सुख को नहीं पा सकता।
महाराज के प्रवचन का स्पष्ट अभिप्राय यही था कि वही शिक्षा श्रेष्ठ है जो इंसान की परिग्रह भावना को संयमित कर सके। शिक्षकों का आचरण भी स्वयं एक आदर्श के रूप में होना चाहिए। इस संदर्भ में महाराज ने यह भी कहा कि शिक्षा की व्यवस्था समाज द्वारा होनी चाहिए । धार्मिक शिक्षा की व्यवस्था भी होनी चाहिए। गरीबों के लिए शिक्षा का उचित प्रबंध होना चाहिए।
0 इस भेंट-वार्ता की समाप्ति से पूर्व मैंने सहज जिज्ञासावश आचार्यश्री से पूछा- "महाराज ! प्रत्येक सत्य शाश्वत प्रतीत होते हुए भी युगानुसार परिवर्तनशील होता है । आधुनिक युग के वातावरण एवं समस्याओं को ध्यान में रखते हुए क्या आप जैन धर्म के मूल सिद्धांतों में किसी प्रकार के परिवर्तन की आवश्यकता महसूस करते हैं ?
महाराज ने जैन-धर्म के सुदृढ़ आधार की ओर संकेत करते हुए कहा कि समय परिवर्तनशील है, परन्तु सत्य कभी नष्ट नहीं होता । जैन-सिद्धान्त शाश्वत हैं । वे सर्वव्यापक हैं । जैन-धर्म सामंजस्यपूर्ण है । वह अनेकांत में है ।
प्रस्तुत भेट-वार्ता एक सुनिश्चित कार्यक्रम के अनुसार तीन दिनों तक चलती रही। इस भेंट-वार्ता के अन्तर्गत हमने वर्तमान जीवन की अनेक समस्याओं को आचार्यश्री के सामने प्रस्तुत करते हुए उनका समाधान प्राप्त किया । यह भेंट-वार्ता व्यक्तिगत होते हुए भी सार्वजनिक थी। एक विशाल जन-समुदाय की उपस्थिति में मैंने महाराज के सामने विविध प्रश्न प्रस्तुत किए और उन्होंने उपदेशात्मक शैली में उन सभी प्रश्नों के संतुलित उत्तर दिए। महाराज की अमृतवाणी को सुनकर उपस्थित श्रोताओं को अलौकिक सुख-संतोष प्राप्त हुआ।
____ इस भेट-वार्ता में अभिनन्दन-ग्रन्थ समिति के महामंत्री श्री सुमतप्रसाद जैन प्रधान सम्पादक एवं हिन्दी के लब्ध-प्रतिष्ठ कवि-मनीषी डॉ. रमेशचन्द्र गुप्त, अभिनन्दन ग्रन्थ के सम्पादन से सम्बद्ध डॉ. वीणा गुप्ता, डॉ. मोहन चन्द, श्री बिशनस्वरूप रुस्तगी, वैद्यराज प्रेमचन्द जैन ने भी सक्रिय भाग लेकर इसे सार्थकता प्रदान की।
भेंट-वार्ता के अन्त में उपस्थित जन-समुदाय की ओर से महाराज के प्रति आभार प्रकट करते हुए मैंने कहा कि महाराज, आप ज्ञानी पुरुष हैं। इसीलिए आधुनिक जीवन की समस्याओं को लेकर हम आपके पास आए और आपकी वात्सल्यमयी वाणी के माध्यम से उन समस्याओं का समाधान प्राप्त किया । तीन दिनों के इस वार्तालाप से हमें अपने मन की अनेक उलझनों को सुलझाने का अवसर प्राप्त हुआ। हमारी दृढ़ आकांक्षा है कि आपकी यह मंगलमयी वाणी आने वाले युग-युगों तक संसार के प्राणियों के मन में गुंजती रहे । आपकी इस वाणी को सुनकर सभी प्राणियों के मन का अंधकार दूर हो और सारे संसार में लोकमंगल की भावना का प्रसार हो।
महाराज ने आशीर्वाद दिया तथा उपस्थित जन- समुदाय द्वारा किए गए जय-जयकार के मधुर नाद के साथ यह भेंट-वार्ता सम्पन्न हुई।
AB
M
AMALAM
BFHNA
भाचार्यरल भी वेशभूषण जी महाराज अभिनन्दन अन्य
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org