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नो ब्रह्मांकितभूतलं न च हरेः शम्भोर्न मुद्रांकितम, नो चन्द्रार्ककरांकितं सुरपतेर्व नांकितं नैव च । षड्वक्त्रांकितबौद्धदेवहुतभुक्यक्षोरगैन कितं,
नग्नं पश्यत वादिनो जगदिदं जैनेन्द्रमुद्रांकितम ॥ अर्थात् यह जगत् या इस जगत् के प्राणी ब्रह्मा के किसी चिह्न से अंकित नहीं हैं, विष्णु और शम्भु की मुहर भी किसी पर नहीं लगी है, न चन्द्र सूर्य की किरणें किसी पर लगी हुई हैं, इन्द्र के वज्र का निशान भी किसी पर नहीं बना हुआ है, न षण्मुख कार्तिकेय के चिह्न से या बुद्ध, अग्नि, यक्ष, नागराज के चिह्न से अंकित जगत् या जगत् के प्राणी हैं। हे वादी विद्वानों! देख लो यह समस्त जगत् जिनेन्द्र भगवान् की मुद्रा से अंकित नग्न दिखाई दे रहा है। प्रत्येक प्राणी भगवान् जिनेन्द्र देव की नग्न मुद्रा में उत्पन्न होता है। आगे इसको स्पष्ट करते हुए लिखते हैं
मौजीदण्डकमण्डलुप्रभृतयो नो लाञ्छनं ब्रह्मणो, रुद्रस्यापि जटाकपालमुकुटं कौपीनखट्वांगना । विष्णोश्चक्रगदादिशंखमतुलं बुद्धस्य रक्तांबरं,
नग्नं पश्यत वादिनो जगदिदं जैनेन्द्रमुद्रांकितम् ॥ अर्थात्-जैन दर्शन के विरुद्ध वाद करने वाले वादी पण्डित जन ! ध्यान देकर देखो कि इस जगत् में किसी भी वस्तु पर या किसी भी जीव पर ब्रह्मा का चिह्न मौजी, दण्ड, कमण्डलु आदि कोई भी नहीं पाया जाता। महादेव का भी केशों की जटा, हाथ में लिया कपाल, चन्द्र-मुकुट, कौपीन, खाट, स्त्री (पार्वती) आदि का कोई चिह्न कहीं किसी पर अंकित नहीं दीख पड़ता। विष्णु के शंख, चक्र, गदा आदि के चिह्न भी किसी पर दिखाई नहीं देते । बुद्ध का लाल वस्त्र भी किसी पर अंकित नहीं है, किन्तु समस्त जगत् में समस्त जगत् के प्राणी जिनेन्द्र भगवान् की नग्न मुद्रा से अकित पाये जाते हैं ।
अपने-अपने देश, प्रदेश, प्रान्त का मान्य शासक वही माना जाता है जिसकी मुहर के सिक्के (रुपया, पैसा, गिन्नी, नोट आदि) चलते हैं, राजकीय व्यवहार के समस्त पदार्थों (टिकट, स्टाम्प आदि) पर जिसका चिह्न अंकित होता है। तदनुसार जगत् में ब्रह्मा, विष्णु, महेश, बुद्ध, इन्द्र, यक्ष आदि किसी भी देव की मुहर नहीं पाई जाती किन्तु जिनेन्द्र भगवान नग्न होते हैं, सो उनकी नग्नता की छाप संसार के सभी उत्पन्न होने वाले जीवों पर लगी होती है । अतः विश्व के पूज्य श्री जिनेन्द्र देव ही हैं ।
जिनेन्द्र भगवान् की उस नग्न दिगम्बर मुद्रा को दीन, हीन, भीरु व्यक्ति धारण नहीं कर सकते। उसके लिये महान् मनोबल, अटूट साहस तथा अखण्ड ब्रह्मचर्य की आवश्यकता होती है । यदि इन बातों में कमी हो तो मनुष्य नग्न दिगम्बर मुद्रा धारण नहीं कर सकता । पशु ब्रह्मचर्य की कमी के कारण ही नग्न रहते हुए भी भगवान् जिनेन्द्र की नग्न दिगम्बर मुद्रा-धारक नहीं कहलाते। कवि ने कहा है
अन्तर विषय-वासना बरत बाहर लोकलाज भयकारी ।
तातै परम दिगम्बर-मुद्रा धरि सके नहीं दीन संसारी॥ अर्थात-सर्वसाधारण मनुष्यों का मन काम-वासना से भरा हुआ है, बाहर उन्हें नग्न होने के लिये लोकलज्जा बाधा डालती है। इस कारण वे अपनी निर्बलता के कारण दिगम्बर दीक्षा नहीं ले सकते।
इसके साथ ही मुनियों के अन्य २७ गुणों का भी आचरण होना आवश्यक है। पांच महाव्रत, पांच समिति, पांच इन्द्रिय-दमन, छह आवश्यक तथा दिन में केवल एक बार ही भोजन करना, पानी भी उबाला हुआ उसी समय पीना, पृथ्वी पर, पत्थर या लकड़ी के तख्ते पर सोना, अपने बालों का अपने हाथों से लोंच करना, जीवन भर स्नान न करना इत्यादि कठोर व्रत भी कड़ाई के साथ आचरण किये जाते हैं । तब ही श्री जिनेन्द्र भगवान् की दिगम्बर मुद्रा का धारण होता है।
आचार्यरत्न श्री वेशभूषण जी महाराज अभिनन्दन अन्य
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