________________
श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर जी के उद्धारक .
श्री कर्मचंद जैन
महानगरी दिल्ली श्रमण-सभ्यता ए संस्कृति का प्रमुख केन्द्र रही है। यहाँ मुसलमान शासकों के साम्प्रदायिक शासन में भी जैन धर्मानुयायियों ने अनेक मन्दिरों का निर्माण कराया था। दिल्ली में भट्टारक परम्परा के उदय के साथ श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर, सब्जीमण्डी को भी स्थापना हुई थी। यह मन्दिर लगभग ५५० वर्ष प्राचीन है और इस मन्दिर के साथ अनेक ऐतिहासिक एवं चामत्कारिक किंवदन्तियों का समाज में श्रद्धा से गुणगान किया जाता रहा है । यह मन्दिर जब अपनी जीर्ण-शीर्ण अवस्था को पहुच गया और इसके अहाते में पानी इत्यादि भरने लगा, तब इसके पुननिर्माण की समाज को आवश्यकता अनुभव हुई । श्री मन्दिर जी की प्रसिद्धि को परिलक्षित करते हुए शास्त्रोक्त रूप से मन्दिर जी का नवनिर्माण वास्तव में एक व्यय-साध्य कठिन कार्य था।
समाज की दृष्टि परमपूज्य आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी महाराज की तरफ आकर्षित हुई, क्योंकि उन्हें प्राचीन मन्दिरों के जीर्णोद्धार एवं नवनिर्माण का विशेष अनुराग है। प्राचीन श्री अग्रवाल दिगम्बर जैन पंचायत की पंच-समिति एवं प्रबन्धकारिणी कमेटी ने परमपूज्य आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज से श्री मन्दिर जी में आवश्यक परिवर्तन एवं नवनिर्माण की अनुमति लेकर पूज्य महाराजश्री से अनुरोध किया कि वे इस महान कार्य के लिये दिल्ली में पधार कर अपना अनुभवी एवं कुशल निर्देशन समाज को देने की कृपा करें। महाराजश्री ने पंचों की प्रार्थना को स्वीकार करते हुए दिल्ली में पधारना स्वीकार कर लिया और थी मन्दिर जी के नवनिर्माण के लिए एक विशेष संदेश जैन समाज को दिया। पूज्य महाराजश्री की पावन प्रेरणा से इस ऐतिहासिक मन्दिर को नया स्वरूप मिल गया और महानगरी दिल्ली के अन्दर श्री पंच-कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव का एक विशेष अवसर भी प्राप्त हुआ, जिससे राजधानी के जैन समाज को संगठित होने में विशेष बल प्राप्त हुआ।
पूज्य आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज की पावन प्रेरणा से श्री मन्दिर जी के नवनिर्माण में धन संचय का कार्य सुगमता से हो गया और उनके पावन सान्निध्य ने राजधानी में विश्व-शांति महायज्ञ और जैनधम की जनसाधारण एवं प्राणी मात्र के प्रति मंगल-कामना की भूमिका का राष्ट्रव्यापी दिग्दर्शन करा दिया। इस आयोजन के लिये परमपूज्य आचार्यश्री ने एक लम्बी पदयात्रा करते हुए १५ फरवरी को दिल्ली में मंगल-प्रवेश किया था। पूज्य महाराजश्री के मंगल आगमन से राजधानी में एक उत्साह का अभूतपूर्व वातावरण बन गया और उनके पावन सान्निध्य का लाभ उठाकर दिल्ली के गांधी ग्राउंड में पंच-कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव का कार्य सम्पन्न हुआ। महाराज श्री की प्रेरणा से २५० फुट लम्बा, २०० फुट चौड़ा पण्डाल बनाया गया, जिसमें २२ द्वार निर्मित कराये गये थे। रंग-बिरंगी मालाओं से मण्डप को सुसज्जित किया गया था। विशाल पाण्डुक शिला पर अभिषेक होने से पूर्व आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज का सारगर्भित मंगल-प्रवचन हुआ था, जिससे राजधानी का जैन इतर समाज भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। उनकी पावन वाणी से सभा में उपस्थित लगभग ७५ हजार नर-नारियों ने जीवन को सार्थक करने वाले अनेक नियम भी लिये थे। दीक्षा-कल्याण के समय आचार्यश्री के महान् तेज एवं केशलोंच ने उपस्थित जन-समुदाय को मन्त्रमुग्ध कर दिया था। पंचकल्याणक में आहारदान के अवसर पर जब आचार्यश्री ने आहार ग्रहण किया तब नगर-भोज के उपरान्त भी यह प्रतीत होने लगा कि आज रसोई घर में वास्तव में इतनी भोजन-सामग्री का भण्डार है, जिससे अगणित व्यक्ति कृपाप्रसाद को प्राप्त कर अपने जीवन को धन्य कर सकते हैं।
वास्तव में यह आचार्यश्री के चरण-कमलों का ही प्रताप है कि जहाँ भी उनका पावन सान्निध्य होता है, वहाँ पर समस्याओं का समाधान स्वयमेव ही हो जाता है और जैन-शासन के प्रभावक मन्दिरों का जीर्णोद्धार एवं नवनिर्माण हो जाता है, जिससे मुक्ति की कामना करने वाले महानुभाव श्री मन्दिर जी की पावन छाया में अपने जीवन को विकसित कर सकें। श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर, सब्जीमण्डी के नवनिर्माण के लिये वास्तव में आचार्यश्री प्रमुख प्रेरक महापुरुष हैं। उनकी मंगल प्रेरणा से यह कार्य सम्पन्न हो पाया था। इसीलिये श्री मन्दिर जी में पूजा-पाठ एवं दर्शन करने वाले समस्त महानुभाव आचार्यश्री के प्रति अन्तर्मन से कृतज्ञता प्रकट करते हुए उनके दीर्घ जीवन की कामना करते हैं, जिससे धर्म का पथ सदैव आलोकित होता रहे ।
कालजयी व्यक्तित्व
१२१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org