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राजस्थान में आचार्य देशभूषण जी
परम श्रद्धेय आचार्य देशभूषण जी महाराज का जैनाचार्यों में प्रमुख स्थान है । यद्यपि वे आचार्यप्रवर शान्तिसागर जी महाराज की परम्परा में होने वाले आचार्य नहीं हैं किन्तु वर्तमान दिगम्बर जैनाचार्यों में उनका महत्त्व किसी की आचार्य से कम नहीं है । वे दक्षिण भारत में जन्म लेने वाले महान् सन्त हैं। हिन्दी इनकी मातृभाषा नहीं है फिर भी वे दक्षिण भारत से अधिक उत्तर भारत में समादृत हैं। उन्हें यहां श्रद्धापूर्वक सुना जाता है। इनका व्यक्तित्व महान् है। सन् १९०२ में उन्होंने राजस्थान की राजधानी जयपुर में चातुर्मास किया। जयपुर में इससे पूर्व भी वे चातुर्मास कर चुके हैं, इसलिये जयपुरवासियों के लिये भी वे नये नहीं हैं किन्तु इस वर्ष वे अपने जन्म स्थान कोयली से हजारों किलोमीटर दूर राजस्थान में पधारे थे । अपने इस मंगल विहार में उनके जहां भी चरण पड़े वहीं हजारों-लाखों ने अपने पलक पांवड़े बिछा कर इनका स्वागत किया। पुष्प वृष्टि की। नृत्य एवं मृदंग बजाकर उनका अभिनन्दन किया । आकाश को गु ंजाने वाली जयजयकार की और साष्टांग नमस्कार करके अपनी श्रद्धा व्यक्त की । उनकी स्वागत सभाओं में छोटे-छोटे गांवों तक में हजारों की उपस्थिति देखी गई। कोयली से लेकर जयपुर प्रवेश तक उनके बिहार के समाचार दैनिक एवं साप्ताहिक पत्रों प्रमुखता से स्थान पाते रहे । जब तक उन्होंने जयपुर में अपने चरण नहीं रखे तब तक प्रदेश की जनता अधीर होकर उनकी प्रतीक्षा करती रही और उनके आगमन का एक-एक दिन अपनी अंगुलियों पर गिनती रही।
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जयपुर नगरवासियों ने प्रायः सभी प्रमुख आचार्यों, मुनियों एवं सन्तों के दर्शन किये हैं । स्व० आचार्य शान्तिसागर जी महाराज, स्व० आचार्य रूपसागर जी, स्व० आचार्य शिवसागर जी, आचार्य धर्मसागर जी, एलाचार्य विद्यानन्द जी, आचार्यकल्प श्रुतसागर जी जैसे बहुचचित आचायों को पास से देखने, सुनने एवं भक्ति करने का अवसर मिला है। पूज्य एलाचार्य विद्यानन्द जी महाराज के स्वागत एवं विदाई के अभूतपूर्व जलूस का आयोजन देखा है प्रतिदिन हजारों की संख्या में प्रवचन सुनने के लिए एकत्रित जनमेदिनी को देखा है लेकिन इस बार आचार्य देशभूषण जी महाराज का साधुत्व जितना उभर कर आया उतना पहिले कभी नहीं देखा गया । उनके प्रति जनसामान्य मंत्रवत् आकर्षित हुआ है, उनके दर्शनों को लालायित रहा है तथा उनकी पिच्छिका द्वारा आशीर्वाद लेने हेतु घण्टों खड़ा रहता देखा गया है। यह सब उनके चमत्कारी व्यक्तित्व का ही प्रभाव है । पचासों स्त्री-पुरुष आहार देने की आशा में पंक्तिबद्ध खड़े रहते हैं। यदि किसी के घर आहार हो गया तो वह कृतकृत्य हो गया और यदि कदाचित् नहीं हो सका तो कल की आशा में फिर तैयारी करने लगते हैं । यह सब उनके साधुत्व के प्रति आस्था का सुपरिणाम है।
डॉ० कस्तूर चन्द कासलीवाल
आचार्यश्री के जयपुर में प्रवेश होते ही इस बार फिर चूलगिरि पर पञ्चकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव आयोजन का कार्य प्रारम्भ हो गया । जयपुर जैन समाज उन्हीं के आगमन की प्रतीक्षा में था । यद्यपि लगभग एक वर्ष पूर्व ही नगर में पञ्चकल्याणक प्रतिष्ठा हो चुकी थी लेकिन इस प्रतिष्ठा में आचार्यश्री के आशीर्वाद एवं उनके महान् व्यक्तित्व का सबको सम्बल था इसलिए प्रतिष्ठा महोत्सव को सफल बनाने में सब तन, मन, धन से जुट गये । समाज के जो नेतागण महाराजश्री के विरोधी समझे जाते थे, पञ्चकल्याणक महोत्सवों के आयोजनों की निन्दा करते रहते थे, आचार्यश्री की सभाओं में जाने में परहेज करते थे तथा पहिले कभी महावीर जयन्ती जैसे समारोहों को बुलाने के विरोध में थे उन्हें इस बार महाराजश्री का आशीर्वाद लेते हुए सबसे आगे देखा गया । प्रतिष्ठा महोत्सव समिति में उनका नाम एवं सहयोग प्रमुख रूप से प्राप्त हुआ तथा उन्हें महाराजश्री के साथ बैठकर भविष्य की योजना बनाते देखा गया। पता नहीं यह सब महाराजश्री के चमत्कारी व्यक्तित्व का प्रभाव है या अपने नेतृत्व को अक्षुण्ण रखने का उपाय । कुछ भी हो, 'पञ्चकल्याणक महोत्सव खूब सफल रहा और जयपुर के इतिहास में एक और प्रतिष्ठा महोत्सव का इतिहास जुड़ गया । जिसने भी इस प्रतिष्ठा महोत्सव को देखा, जयपुर नगर के प्रमुख कार्यकर्ताओं को देखा, वही महाराजश्री के अद्भुत व्यक्तित्व के प्रति नतमस्तक हो गया। वास्तव में चूलगिरि जैसे क्षेत्र का निर्माण महाराजधी के महान् व्यक्तित्व का ही एक सुपरिणाम है। इन्हीं कारणों से राजस्थान का समस्त जैन समाज उनके सामने नतमस्तक है ।
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आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन प्रन्य
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