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समन्वय सेतु
यह भारत का ही नहीं अपितु समस्त मानव समाज का सौभाग्य है कि इस युग के प्रखर तपस्वी, श्रमणराज, सरस्वतीपुत्र, बालब्रह्मचारी आचार्य रत्न देशभूषण जी महाराज को उनकी मानव जाति की सेवाओं के अनुरूप और आध्यात्मिक, धार्मिक तथा सामाजिक उन्नयन के प्रयासों के फलस्वरूप एक अभिनन्दन ग्रन्थ उनके करकमलों में समर्पित किए जाने का संकल्प साकार हो रहा है। जैनधर्म, दर्शन, संस्कृति तथा साहित्य को नये परिवेश में जनसामान्य में लाने का भगीरथ प्रयत्न आचार्य श्री ने किया है, इसमें दो मत नहीं ।
इस युग के मान्य दिगम्बर जैन साधु हैं। बीसवीं शती के प्रारंभिक दशकों में जब दिगम्बर जैन साधु क्वचित् पाए जाते थे उस समय चारित्रचक्रवर्ती आचार्य शान्तिसागर जी महाराज तथा हमारे चरितनायक श्रमणराज देशभूषण जी महाराज ही ऐसे साधु थे जिन्होंने दिगम्बर जैन साधुओं को परम्परा को नवीन जीवन दिया । " असिधारा व्रत" समझा जाने वाला साधु का पद इतना सरल-सुगम नहीं जितना समझा जाता है। यह निःसन्देह कहा जा सकता है कि साधु परम्परा को अक्षुण्ण रखने में दक्षिण भारत सर्वथा प्रथम रहा है।
पं० मोतीलाल 'विजय'
मैसूर (अब कर्नाटक ) प्रान्त के बेलगांव जिला में स्थित कोथली ग्राम वह सौभाग्यशाली ग्राम है जहाँ आचार्य श्री ने जन्म लिया था । उनके पिता सत्यगौड़ा पाटिल तथा माता अक्कादेवी धर्मनिष्ठ श्रावक-श्राविका थे । बचपन का उनक नाम था बालगौड़ा उर्फ बालप्पा | क्षुल्लक जिनभूषण जी महाराज आचार्य श्री के काका थे ।
आचार्य श्री बाल्यावस्था से ही इस असार संसार से विरक्त रहते थे। उनके जन्मस्थल में एक बार नाटक मडली आई । शुकदेव परमहंस हिन्दू संन्यासी का अभिनय कौन करे यह समस्या आने पर इन्होंने तत्काल उसे स्वीकृत किया। नारद का पाठ भी ये कर चुके हैं । जो बाल्यावस्था में विरक्तिपूर्ण अभिनय करते थे वे अब साक्षात् निर्ग्रन्थ साधु के रूप में विराजमान हैं ।
श्रमणराज के दीक्षा गुरु १०८ जयकीर्ति महाराज हैं जिन्होंने कुंथलगिरि में दीक्षा दी थी। आत्मविकास के प्रेरक तो १०८. चारित्रचक्रवर्ती शांतिसागर जी महाराज को स्वीकारते हैं। भाषायें पायसागर जी की स्वीकृति से ( सूरत में इन्हें आचार्य पद से समलंकृत किया गया । तपोनिधि आचार्य श्री ने समस्त भारत में पदयात्रा करते हुए भारतीय संस्कृति के सन्देश को बहुविध प्रचारित-प्रसारित किया है। वे ऐसे सन्त हैं, जिनसे जैन व जनेतरों में देश के ही नहीं अपितु विदेशी राजदूत भ्रमणार्थी प्रभावित हुए हैं। भूतपूर्व राष्ट्रपति स्व० श्री खरुद्दीन अली अहमद, उपराष्ट्रपति स्व० डॉ० राधाकृष्णन जी तथा गोपालस्वरूप जी पाठक तथा स्व० प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री जो भी आपकी धर्मसभाओं में सम्मिलित हुए ।
अनेक केन्द्रीय, प्रान्तीय मंत्री गण, प्रशासनिक अधिकारी, न्यायविभाग के सर्वोच्च के राजदूत सहित सैकड़ों ऐसे भक्तगण है जो आचार्य श्री के दर्शन कर कृतकृत्य हो चुके है। मन्त्री, कर्नाटक हाइकोर्ट के रिटायर्ड जज तथा बंगलोर विश्वविद्यालय के उपकुलपति टी० के० स्थान, पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री गुलजारी लाल नन्दा, भूतपूर्व राष्ट्रीय कांग्रेसाध्यक्ष ठेबर भाई, सुप्रीम सेठ जुगलकिशोर बिरला, पूर्व केन्द्रीय मंत्री मोहनलाल सुखाड़िया, डा० दौलतसिंह कोठारी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के पूर्व अध्यक्ष, राजमाता गायत्री देवी जयपुर, जयन्तीलाल मोदी, सूरत, मैसूर के मुख्यमंत्री श्री निजलिंगप्पा तथा श्री धर्मवीर राज्यपाल बंगाल व केन्द्रीय मंत्री ब्रह्मानंद रेड्डी के नाम उल्लेखनीय हैं।
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अधिकारी, बौद्ध साधुगण, जर्मन गणतंत्र इनमें सर्व पी० सी० सेठी पूर्व केन्द्रीय
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आचार्य श्री जैनधर्म सहित सम्पूर्ण मानव धर्म के रक्षक हैं। सन् १९६५ में दिल्ली में आयोजित विश्वधर्म सम्मेलन के आयोजन में प्रमुख भूमिका आचार्य श्री देशभूषण जी की ही थी उन्होंने भारत के अनेक जैन तीयों पर चातुर्मास करते अथवा अल्पकालिक प्रवास पर रहते हुए अनेक निर्माण कार्यों को प्रोत्साहित किया है। भारत की आध्यात्मिक राजधानी अयोध्या जी में ३३ फुट ऊँची भगवान् ऋषभदेव की मोहक व दर्शनीय प्रतिमा जैनधर्म का सन्देश प्रसारित कर रही है। इसी प्रकार कोल्हापुर (महाराष्ट्र) में आचार्य श्री की प्रेरणा से २५ फुट ऊंची आदिनाथ भगवान् की प्रतिमा स्थापित की गई है। जयपुर नगर में खानिया के निकटवर्ती पर्वत पर चोबीसी
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आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
तुकोल, सम्पूर्णानन्द जी राज्यपाल राज-कोर्ट चीफ जस्टिस वेंकटरमण अय्यर,
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