Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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प्राचीन चरित्रकोश
षण्डामर्क, वरत्री तथा त्वष्टा इन दैत्ययाजकों को इंद्र ने | यमुना के तट पर हजारों यज्ञ किये, जिससे ब्रह्मा, विष्णु जला कर मारा (ब्रह्माण्ड ३.१.८५; दधीचि देखिये)। तथा महेश प्रसन्न हुए (पद्म. उ. १९९)। प्रह्लाद आदि
ब्रह्महत्त्या मुक्ति-विश्वरूप, वृत्रासुर तथा नमुचि | दैत्यों ने एक बार इन्द्र का स्वर्ग जीत लिया, तब रजि ने इनके वध के कारण, इंद्र को ब्रह्महत्या लगी। इसलिये | उसे वापस दिलवाया। डर कर वह कहीं तो भी कमल के अंदर छुप गया। इस जयापजय--इस उपकार के लिये, तथा प्रहादादि समय दो इंद्र हुए। नहुष तथा ययाति किन्तु उनका शीघ्र दैत्यों से रक्षा होती रहे, इसलिये इसने उसे ही इंद्रपद ही पतन हुआ (स्कंद १.१.१५)। यह ब्राहत्या किस | दे दिया परंतु आगे चल कर, उसके पुत्र इंद्रपद वापस तरह दूर हुई, इसका वर्णन पुराणों में भिन्न प्रकार से दिया नहीं दिये, बृहस्पति ने अभिन्चारविधान से उनकी बुद्धि गया है। ब्रह्महत्या के चार भाग किये गये । वे भूमि, वृक्ष भ्रष्ट की। भ्रष्टबुद्धि के कारण वे भ्रष्टबल हो गये हैं जल एवं स्त्री को एक एक वरदान दे कर दिये । पृथ्वी पर ऐसा देख कर इंद्र ने उनका वध किया (भा. ९. १७; आप ही आप गड्ढों का भरना तथा उस पर क्षार कर्कट के मत्स्य. ४४; ब्रह्म. ११) । पुराणों में नहुष कब इंद्र रूप में जमना, वृक्ष जहां से टूटे वहां अंकुरों का फूटना हुआ इस संबंध में मतभेद होने के कारण, उसका निश्चित तथा गोंद का निकलना, जिसमें पानी मिलाया जाये उसका ! समय ठीक समझ में नहीं आता। इंद्र एक बार बलि बदना एवं उसमें फेन आना, स्त्रियों को गरोदर रहते हुए को जीत कर उतथ्य के आश्रम में गया। वहां उसकी भी प्रसूति काल तक संभोग करने की क्षमता परंतु रजो- सुंदर स्त्री को शैय्या पर सोये देख, उसने उससे जबरदस्ती दर्शन होना, ये वरदान तथा ब्रह्महत्या के परिणाम है ( भा संभोग किया । स्त्री गरोदर थी। अंतर्गत गम ने अपना ६.९.; स्कंद १.१.१५, लिङ्ग. २.५१)। 'रक्षासि हवा' पतन न हो इसलिये योनिद्वार अपने पैरों द्वारा अंदर से इस मंत्र में इस संबंध में निर्देश किया गया है । ये पातक बंद कर लिया, इस कारण इंद्र का वीर्य धरती पर गिरा। विश्वरूप की हत्या का है। परंतु पद्मपुराण में यह विवरण यह अपने वीय का अपमान हुआ देख, इंद्र ने गर्भ को वृत्रासुरहत्या के पातक पर दिया गया है (३.१६८)। जन्मांध होने का शाप दिया (दीर्घतमस् देखिये)। परंतु इसी पुराण में इन पातकों के निवारणार्थ इसने तप किया । इसके कारण हतवीर्य होकर, इंद्र मेरु की गुफा में जा तथा पुष्कर, प्रयाग, वाराणसी आदि तीर्थों पर स्नान छिपा । इस समय दैत्यों ने बलि को इंद्रासन पर बैठाया। किया ऐसा दिया गया है (पन. भू. ९१ )। यह पातक सारे देवताओं ने गुफा के पास जा कर उसे वापस लाया नष्ट हो, इसलिये इसने अश्वमेध यज्ञ किया । नभुचि के | तथा बृहस्पतिद्वारा अक्षय्यतृतीया व्रत उससे करवा कर, वध से लगी ब्रह्माहत्या के शमनार्थ अरुणा पर स्नान उसे पूर्ववत् ऐश्वयसंपन्न बनाया (स्कंद. २. ७. २३: किया (म. श. ४२.३५ ) । इंद्रागम तीर्थ ( इसके आने बृहस्पति देखिये)। के कारण यह नामकरण हुआ) में स्नान करने से इसके चित्रलेखा तथा उर्वशी को केशी दैत्य भगा ले गया। पाप दूर हुए (पन. उ. १५१)। त्रिस्पृशा एकादशी के व्रत
पुरूरवस् ने उन्हें छुड़ाया तथा उर्वशी इंद्र को दी (मत्स्य. के कारण, इसके पाप दूर हुए (प. उ. ३४; अहल्या
२४. २५) । कितव नामक एक दुराचारी मनुष्य मृत देखिये)।
हुआ। मरते समय उसे अपने दुराचार पर पश्चात्ताप पुरंजयवाहन-एक बार देवासुरसंग्राम हुआ जिसमें हुआ, इसलिये यम ने उसे तीन घंटे के लिये इंद्रपद देवताओं को असुरों पर कब्जा पाना कठिन लगा तब दिया । उतने समय में इसने सारी चीजें ऋषि आदि सूर्यवंशी पुरंजय को, मदद के लिये उन्हों ने निमंत्रित लोगों को दान में दी । इंद्र जब फिर से इंद्रपद पर आया, किया । पुरंजय ने कहकर भेजा कि, यदि इंद्र मेरा वाहन तब उसने यम से सारी चीजें वापस मँगवा लीं। कितव मने तो मैं आउंगा । इंद्र ने पहले तो आनाकानी की, आगे चल कर बलि हुआ (स्कंद. १. १. १९)। पर अंत में मान गया। तथा महावृषभ का रूप धारण | हिरण्यकशिपु तथा हिरण्याक्ष का वध इंद्र ने करवाया, किया (भा. ९.६)। हिरण्यकशिपु ने स्वर्ग जित लिया| इसलिये दिति ने इंद्रघ्न पुत्र निर्माण करने की तयारी चालू तथा देवताओं को कष्ट दिये, इसलिये विष्णु ने नृसिंह की । इंद्र ब्राह्मणवेश में उसकी सेवा करने लगा। योग्य का रूप धारण कर उसका वध कर के, इंद्र को स्वर्ग अवसर पा कर उसने दिति के गर्भ के उनपचास टुकडे घापस दिया । शत्रुओं से कष्ट न होवे, इसलिये इंद्र ने किये । तदनंतर गर्भ के बाहर आ कर सारी बात उसे