Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम स्थान
११
१३७- एगा दुस्सम- सुसमा । १३८ – एगा सुसम - दुस्समा । १३९ – एगा सुसमा ]। १४०एगा सुसम - सुसमा ।
अवसर्पिणी एक है (१२७)। सुषम - सुषमा एक है ( १२८) । सुषम एक है (१२९)। सुषम-दुषमा एक है (१३०) । दुषम- सुषमा एक है (१३१) । दुषमा एक है (१३२) । दुषम- दुषमा एक है (१३३) । उत्सर्पिणी एक है (१३४) । दुषम-दुषमा एक है (१३५) । दुषमा एक है (१३६) । दुषम- सुषमा एक है (१३७)। सुषमा - दुषमा एक है (१३८) । सुषमा एक है (१३९) । और सुषम - सुषमा एक है (१४०) ।
विवेचन—–— कालचक्र अनादि - अनन्त है, किन्तु उसके उतार-चढ़ाव की अपेक्षा से दो प्रधान भेद किये गये हैं—अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी । अवसर्पिणी काल में मनुष्यों आदि की बल, बुद्धि, देह- मान आयु-प्रमाण आदि की तथा पुद्गलों में उत्तम वर्ण, गन्ध आदि की क्रमशः हानि होती है और उत्सर्पिणी काल में उनकी क्रमशः वृद्धि होती है। इनमें से प्रत्येक के छह-छह भेद होते हैं, जो छह आरों के नाम से प्रसिद्ध हैं और जिनका मूल सूत्रों में नामोल्लेख किया गया है। अवसर्पिणी काल का प्रथम आरा अतिसुखमय है, दूसरा सुखमय है, तीसरा सुखदुःखमय है, चौथा दुःख-सुखमय है, पांचवां दुःखमय है और छठा अतिदुःखमय है । उत्सर्पिणी का प्रथम आरा अति दुःखमय, दूसरा दुःखमय, तीसरा दुःख-सुखमय, चौथा सुख-दुःखमय, पांचवां सुखमय और छठा अति-सुखमय होता है। यहां यह विशेष ज्ञातव्य है कि इस कालचक्र के उक्त आरों का परिवर्तन भरत और ऐरवत क्षेत्र में ही होता है, अन्यत्र नहीं होता ।
वर्गणा पद
१४१ - एगा णेंरइयाणं वग्गणा । १४२ – एगा असुरकुमाराणं वग्गणा जाव । १४३ – [ एगा णागकुमाराणं वग्गणा । १४४ – एगा सुवण्णकुमाराणं वग्गणा । १४५ – एगा विज्जुकुमाराणं वग्गणा । १४६ – एगा अग्गिकुमाराणं वग्गणा । १४७- एगा दीवकुमाराणं वग्गणा । १४८ - एगा उदहिकुमाराणं वग्गणा। १४९ – एगा दिसाकुमाराणं वग्गणा । १५०– एगा वायुकुमाराणं वग्गणा । १५१ – एंगा थणियकुमाराणं वग्गणा । १५२ - एगा पुढविकाइयाणं वग्गणा । १५३ – एगा आउकाइयाणं वग्गणा । १५४ –— एगा तेडकाइयाणं वग्गणा । १५५ – एगा वाउकाइयाणं वग्गणा । १५६ –— एगा वणस्सकाइयाणं वग्गणा । १५७ एगा बेइंदियाणं वग्गणा । १५८ – एगा तेइंदियाणं वग्गणा । १५९ – एगा चउरिंदियाणं वग्गणा । १६० - एगा पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं वग्गणा । १६१ - एगा मणुस्साणं वग्गणा । १६२ – एगा वाणमंतराणं वग्गणा । १६३ – एगा जोइसियाणं वग्गणा ] । १६४ — एगा वेमाणियाणं वग्गणा ।
नारकीय जीवों की वर्गणा एक है (१४१) । असुरकुमारों की वर्गणा एक है (१४२) । नागकुमारों की वर्गणा एक है (१४३) । सुपर्णकुमारों की वर्गणा एक है (१४४) । विद्युतकुमारों की वर्गणा एक है ( १४५) । अग्निकुमारों की वर्गणा एक है (१४६) । द्वीपकुमारों की वर्गणा एक है ( १४७) । उदधिकुमारों की वर्गणा एक है (१४८) । दिक्कुमारों की वर्गणा एक है ( १४९) । वायुकुमारों की वर्गणा एक है (१५० ) । स्तनित (मेघ) कुमारों की वर्गणा एक है (१५१)। पृथ्वीकायिक जीवों की वर्गणा एक है ( १५२) । अप्कायिक जीवों की वर्गणा एक है (१५३) । तेजस्कायिक जीवों की वर्गणा एक है ( १५४) । वायुकायिक जीवों की वर्गणा एक है ( १५५) । वनस्पतिकायिक