Book Title: Siddhhemchandra Shabdanushasanam Part 01
Author(s): Chandraguptasuri
Publisher: Mokshaiklakshi Prakashan
Catalog link: https://jainqq.org/explore/004492/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कलिकालसर्वज्ञश्रीहेमचन्द्रमृरिप्रणात स्वोपज्ञलघुवृत्तिसंवलितं श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् / प्रथमो भागः सम्पादयिता आचार्यविजयचन्द्रगुप्तसूरिः / / -: प्रकाशक :श्रीमोक्षकलक्षी प्रकाशन -: आर्थिक सहकार :श्री साळवीना आदीश्वर भगवान जैन देरासर ट्रस्ट छापरीयाशेरीः महीधरपुराः सुरत -3 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कलिकालसर्वज्ञश्रीहेमचन्द्रसूरिप्रणीतं स्वोपज्ञलघुवृत्तिसंवलितं श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् / प्रथमो भागः सम्पादयिता आचार्यविजयचन्द्रगुप्तसूरिः / -: प्रकाशक :श्रीमोक्षकलक्षी प्रकाशन -: आर्थिक सहकार :श्री साळवीना आदीश्वर भगवान जैन देरासर ट्रस्ट छापरीयाशेरीः महीधरपुराः सुरत - 3 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् / प्रथमो भागः आवृत्तिः - प्रथमा : प्रतयः - 500 मूल्यम् :- 70 रूप्यकाणि वि.सं. 2051 : कार्तिक शुक्ल - 10 * प्राप्तिस्थानम् * शा. मुकुंदभाई रमणलाल विजयकर कांतिलाल झवेरी ____धरतीटेक्षटाइल्स जहांपनाहनी पोळ 2, वृन्दावन शोपिंग सेंटर - कालुपुररोड पानकोरनाकाः रतनपोळ - अमदावाद - 1. अमदावाद - 1 रतनपोल शा. सूर्यकान्त चतुरलाल - . मु. पो. मुरबाड (जि. ठाणे) रजनीकान्त एफ. वोरा . . 655 साचापीर स्ट्रीट पुणे- कॅम्प पुणे 411001 * मुद्रक फोटोकम्पोझिंग * ___ कुमारग्राफिक १३८-बी, चंदावाडी, 2 माला, सी. पी. टेंक रोड, मुंबई 400 004. दूरध्वनि - 387 9659/388 6320 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // ॐ अर्ह नमः // मुनिश्रीदक्षविजयसङ्कलितं सेट्-अनिट्-वेधातुविभागप्रदर्शकं यन्त्रम् // - धातवो द्विविधाः स्वरान्ताः व्यञ्जनान्ताः __अनेकस्वराः एकस्वराः / अनेकस्वराः सेटः सेटः अनिटः " सेटः अनिटः / .. सेटः वेट: धू औदितः . . स्वृ, सू,' (गण-२,४) // अनुस्वारेत इमे. औदित इमे - अनुस्वारेतः श्वि, श्रि, डी, शी, यु (गण-२), रु (गण-२), क्षु, क्ष्णु, नु, स्नु, वृ: ऊकारान्ताः; ऋकारान्ताः; युजादयश्च // Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रश्च / चान्त:-१) / मृज् / (गण 2,10), भञ्ज, अज शक् (कान्तः१) / वच्, विच्, रिच, पच्, सिच्, मुच्, (चान्ताः-) / प्रच्छ् (छान्तः-१) / भ्रस्ज, मस्ज्, भुज, युज्, यज्, स्वफ़, रङ्, रुज, निज्, विज् (गण-३), सञ्, भङ्ग्, भज्, सृज्, त्यज् (जान्ताः-१५) / स्कन्द्, विद् (गण-४,६,७), नुन, स्विद् (गण-४), शद्, सद्, भिद्, छिद्, तुद्, अद्, पद्, हद्, खिद्, क्षुद् (दान्ताः-१४) / राध्, साधू, शुध, युध्, व्यध्, बन्ध्, बुध, (गण-४), रुध्, क्रुध्, क्षुध, सिध्, (धान्ताः-११) / हन्, मन्, (गण४) (नान्तौ 2) / आप्, तप, शप्, क्षिप्, छुप्, लुप्, (गण६), सप, लिप, वप, स्वप् (पान्ताः -10) / यभ, रभ, लभ, (भान्ताः-३)। यम्, रम्, नम्, गम् (मान्ताः-४)। क्रुश्, लिश्, रुश, रिश, दिश, दंश, स्पृश, मृश्, विश, दृश् (शान्ताः-१०)। शिष्, (गण-७), शुष, त्विष्, पिष्, विष्, (गण-३), कृष्, तुष्, दुष, पुष्, (गण-४), श्लिष् (गण-४), द्विष् (षान्ताः११)। घस्, वस् (गण-४) (सान्तौ-२)। रुह्, लुह्, रिह्, दिह्, लिह, मिह, वह, नह (गण-४), दह (हान्ताः-१०)।। / / व्यञ्जनान्तानिड्धातुनां सकला संख्या-१०० / / तज् (जान्ताः-४) / स्यन्द्, किद् (दान्तौ-२)। रध्, षिध् (धान्तौ-२)। तृप, दृप्, त्रप्, कृप, गुप् (पान्ताः -5) / क्षम् / (मान्तः-१)। नश, अश, किश् (शान्ताः-३) / अक्ष, तक्ष्, त्वक्ष् (षान्ताः-३)। मुह, द्रुह्, स्नुह, स्निह्, गुह्, गाह्, ग्ला, वृह, तृह्, स्तृह, स्तूंह (हान्ताः-११) // // सर्वे-३२ // सूचना- अस्मिन् यन्त्रे स्वरान्तविभागे एकस्वरा ये धातवो न दर्शितास्तेऽनिटो वेदितव्याः, व्यञ्जनान्तविभागे तु ये धातवो न दर्शितास्ते सेटो वेदितव्या इति // Page #7 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // अर्ह // कलिकालसर्वज्ञ-श्रीहेमचन्द्रसूरिभगवत्-प्रणीतं स्वोपज्ञलघुवृत्तिसंवलितं श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // प्रणम्य परमात्मानं श्रेयःशब्दानुशासनम् / आचार्यहेमचन्द्रेण स्मृत्वा किञ्चित् प्रकाश्यते // 1 // अर्ह 191919 // अर्हमित्येतदक्षरं परमेश्वरस्य परमेष्ठिनो वाचकम्, मङ्गलार्थं शास्त्रस्याऽऽदौ प्रणिदध्महे // 1 // सिद्धिः स्यादादात.।११॥२॥ स्याद्वादाद् - अनेकान्तवादात् प्रकृतानां शब्दानां सिद्धिः- निष्पत्तिज्ञप्तिश्च वेदितव्या // 2 // लोकात् / / 1 / 3 // अनुक्तानां संज्ञानां न्यायानां च लोकाद्- वैयाकरणादेः सिद्धिर्वेदितव्या , वर्णसमाम्नायस्य च // 3 // तत्र - .. . औदन्ताः स्वराः 111114 // औकारावसाना वर्णाः स्वरसंज्ञाः स्युः / अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल लू ए ऐ ओ औ // 4 // Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् एक-द्वि-त्रिमात्रा हस्व-दीर्घ-प्लुताः / 11115 // मात्रा कालविशेषः / एक-द्वि-व्युच्चारणमात्रा औदन्ता वर्णा यथासंख्यं -हस्वदीर्घ-प्लुतसंज्ञाः स्युः / अ इ उ ऋल, आ ई ऊ ऋ ल, ए ऐ ओ औ, आ३ ई३ ऊ३ इत्यादि // 5 // अनवर्णा नामी / 11 / 6 // अवर्णवर्जा औदन्ता वर्णा नामिसंज्ञाः स्युः / इ ई उ ऊ ऋ ॠ ल ल ए. ऐ ओ औ // 6 // . लृदन्ताः समानाः 11117 // टुकारावसाना वर्णाः समानाः स्युः / अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल लू // 7 // ए-ऐ-ओ-औ सन्ध्यक्षरम् 11118 // ‘ए ऐ ओ औ' इत्येते सन्ध्यक्षराणि स्युः // 8 // ___ अं-अः अनुस्वार-विसर्गौ // 11 // 9 // अकारावुच्चारणार्थो / 'अं' इति नासिक्यो वर्णः / अः' इति च कण्ठ्यः / एतौ यथासंख्यम् ‘अनुस्वार-विसर्गौ' स्याताम् // 9 // कादिर्व्यञ्जनम् 1911 / 10 // कादिवर्णो हपर्यन्तो व्यञ्जनं स्यात् / क ख ग घ ङ, च छ ज झ ञ, ट ठ ड ढ ण, त थ द ध न, प फ ब भ म, य र ल व, श ष स ह // 10 // अपञ्चमान्तस्थो धुट् / 111111 // वर्गपञ्चमान्तस्थावर्जः कादिर्वर्णो धुट् स्यात् / क ख ग घ, च छ ज झ,ट ठ ड ढ, त थ द ध, प फ ब भ, श ष स ह // 11 // . - पञ्चको वर्गः 111111.2 // . कादिषु वर्णेषु यो यः पञ्चसंख्यापरिमाणो वर्णः, स स वर्गः स्यात् / क ख Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् ग घ ङ, च छ ज झ ञ,ट. ठ ड ढ ण,त थ द ध न,प फ ब भ म // 12 // __ आद्य-द्वितीय-श-ष-सा अघोषाः / 11 / 13 // वर्गाणामाद्यद्वितीया वर्णाः श-ष-साश्च 'अघोषाः' स्युः / क ख, च छ, ट ठ, त थ, प फ, श ष स // 13 // . अन्यो घोषवान् / 111114 // अघोषेभ्योऽन्यः कादिर्वर्णो घोषवान् स्यात् / ग घ ङ, ज झ ञ, ड ढ ण, द ध न, ब भ म, य र ल व, ह // 14 // य-र-ल-वा अन्तस्थाः / 111115 // एते 'अन्तस्थाः' स्युः // 15 // अं-अ-क-प-श-ष-साः शिट् / 111116 // अ-क-पा उच्चारणार्थाः, अनुस्वार-विसर्गौ वज्र-गजकुम्भाऽऽकृती च वी, शष-साश्च शिटः स्युः // 16 // तुल्यस्थानाऽऽस्यप्रयत्नः स्वः / 1 / 1 / 17 // स्थानं कण्ठादि “अष्टौ स्थानानि वर्णानामुरः कण्ठः शिरस्तथा // जिह्वामूलं च दन्ताश्च नासिकौष्ठौ च तालु च // 1 // " आस्ये प्रयत्नः-आस्यप्रयत्नः, स्पृष्टतादिः / तुल्यौ- वर्णान्तरेण सदृशौ / स्थानाऽऽस्यप्रयत्नौ यस्य, स वर्णस्तं प्रति स्वः स्यात् / तत्र त्रयोऽकारा उदात्ता-ऽनुदात्त-स्वरिताः, प्रत्येकं सानुनासिक-निरनुनासिकभेदात् षट्, एवं दीर्घ-प्लुतौ इति ‘अष्टादश भेदा अवर्णस्य', ते सर्वे कण्ठस्थाना विवृतकरणाः परस्परं स्वाः / एवम्-इवर्णास्तावन्तस्तालव्या विवृतकरणाः स्वाः / उवर्णा ओष्ठ्या विवृतकरणाः स्वाः / ऋवर्णा मूर्द्धन्या विवृतकरणाः परस्परं स्वाः / लवर्णा दन्त्या विवृतकरणाः परस्परं स्वाः / सन्ध्य Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - 4 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् क्षराणां ह्रस्वा न सन्ति, इति तानि प्रत्येकं द्वादशभेदानि / तत्र एकारास्तालव्या विवृततराः स्वाः / ऐकारास्तालव्या अतिविवृततराः स्वाः / ओकारा ओष्ट्या विवृततराः स्वाः / औकारा ओष्ठ्या अतिविवृततराः स्वाः / वाः पञ्च पञ्च परस्परं स्वाः / य-ल-वानामनुनासिकोऽननुनासिकश्च द्वौ भेदौ परस्परं स्वौ // 17 // स्यौ-जसमौ-शस्-टा-भ्याम्-भिस्-डे-भ्याम्-भ्यस्-ङसि- . भ्याम्-भ्यस्-ङसोसामु-योस्-सुपां त्रयी त्रयी प्रथमाऽऽदिः // 11 // 18 // स्यादीनां प्रत्ययानां त्रयी त्रयी यथासंख्यं प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी पञ्चमी षष्ठी सप्तमी च स्यात् // 18 // स्त्यादिर्विभक्तिः 1111119 // 'स' इति च 'ति' इति च उत्सृष्टानुबन्धस्य सेस्तिवश्च ग्रहणम् / स्यादयस्तिवादयश्च सुप्-स्यामहिपर्यन्ता विभक्तयः स्युः // 19 // तदन्तं पदम् // 11 // 20 // स्याद्यन्तं त्याद्यन्तं च पदं स्यात् / धर्मो वः स्वम्, ददाति नः शास्त्रम् // 20 // नाम सिदयूव्यञ्जने // 11 // 21 // सिति प्रत्यये यवर्जव्यञ्जनादौ च परे, पूर्वं नाम पदं स्यात् / भवदीयः, पयोभ्याम् / 'अय्' इति किम् ? वाच्यति // 21 // नं क्ये 1111 // 22 // 'क्ये' इति क्यन्-क्यङ् -क्यक्षां ग्रहणम् / नान्तं नाम क्ये परे पदं स्यात् / राजीयति, राजायते, चर्मायति // 22 // न स्तं मत्वर्थे / 1 / 1 / 23 // . Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् सान्तं तान्तं च नाम मत्वर्थे परे पदं न स्यात् / यशस्वी, तडित्वान् // 23 // मनुर्नभोऽङ्गिरो वति / 111 // 24 // एतानि वति परे पदं न स्युः / मनुष्वत्, नभस्वत्, अङ्गिरस्वत् // 24 // वृत्त्यन्तोऽसषे // 11 // 25 // पराभिधायी समासादिवृत्तिः, तस्या अन्तः- अवसानं पदं न स्यात्, असषेसस्य तु षत्वे पदमेव / परमदिवौ, बहुदण्डिनौ / असष इति किम् ? दधिसेक् // 25 // सविशेषणमाख्यातं वाक्यम् / 1 / 1 / 26 // प्रयुज्यमानैरप्रयुज्यमानैर्वा विशेषणैः सहितं प्रयुज्यमानमप्रयुज्यमानं वा आख्यातं वाक्यं स्याद् / धर्मो वो रक्षतु, लुनीहि३ पृथुकाँश्च खाद, शीलं ते स्वम् // 26 // ___ अधातु-विभक्ति-वाक्यमर्थवत्राम // 11 // 27 // धातु-विभक्त्यन्त-वाक्यवर्जमर्थवच्छब्दरूपं नाम स्यात् / वृक्षः, स्वः, धवश्च / अधातुविभक्तिवाक्यमिति किम् ? अहन्, वृक्षान्, साधु धर्मं ब्रूते // 27 // शिघुट 1111 / 28 // जस्-शसादेशः शिर्घट् स्यात् / पद्मानि तिष्ठन्ति, पश्य वा // 28 // पुं-स्त्रियोः स्यमौ जस् / 11 / 29 // स्यादयः पुं-स्त्रीलिङ्गयोघुटः स्युः / राजा, राजानौ, राजानः, राजानम्, राजानौ; सीमा, सीमानौ, सीमानः, सीमानम् // 29 // स्वरादयोऽव्ययम् // 11 // 30 // स्वरादयोऽव्ययानि स्युः / स्वर, अन्तर्, प्रातर् इत्यादि // 30 // चाऽऽदयोऽसत्त्वे 191131 // Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् अद्रव्ये वर्तमानाश्चादयोऽव्ययानि स्युः / वृक्षश्च इत्यादि // 31 // अधण्तस्वाद्या शसः / 11 / 32 // . ' धण्वर्जास्तस्वादयः शस्पर्यन्ता ये प्रत्ययास्तदन्तं नाम अव्ययं स्यात् / देवा अर्जुनतोऽभवन्, ततः, तत्र, बहुशः / अधणिति किम् ? पथिद्वैधानि // 32 // विभक्ति-थमन्त-तसाद्याभाः // 11 // 33 // विभक्त्यन्ताभाः थमवसानतसादिप्रत्ययान्ताभाश्चाऽव्ययानि स्युः / अहंयुः, अस्तिक्षीरा गौः, कथम्, कुतः // 33 // वत्-तस्याम् // 11 // 34 // वत्-तसि-आम्प्रत्ययान्तमव्ययं स्यात् / मुनिवद् वृत्तम्, उरस्तः, उच्चैस्तराम् // 34 // क्त्वा-तुमम् 19 // 1 // 35 // क्त्वा-तुम्-अम्प्रत्ययान्तमव्ययं स्यात् / कृत्वा, कर्तुम्, यावज्जीवमदात् // 35 / / गतिः / 111 // 36 // गतिसंज्ञमव्ययं स्यात् / अदःकृत्य / “अतः कृ-कमि०" (2.3.5.} इत्यादिना रः सो न स्यात् // 36 // अप्रयोगीत् / 11 / 37 // ... इह शास्त्रे उपदिश्यमानो वर्णस्तत्समुदायो वा प्रयोगेऽदृश्यमान इत् स्यात् / एधते, यजते, चित्रीयते // 37 // अनन्तः पञ्चम्याः प्रत्ययः / 1 / 1138 // पञ्चम्यर्थाद् विहितोऽन्तशब्दाऽनिर्दिष्टः प्रत्ययः स्यात् / “नाम्नः प्रथमैकद्वि-बहौ" {2-2-31) / वृक्षः / अनन्त इति किम् ? आगमः प्रत्ययो मा भूत् // 38 // Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् - डत्यतुं संख्यावत् / 11 / 39 // डत्यन्तम् अत्वन्तं च 'संख्याकार्यभाक्' स्यात् / कतिकः, यावत्कः // 39 // बहु-गणं भेदे 1111140 // बहु-गणशब्दो भेदवृत्ती ‘सङ्ख्यावत्' स्याताम् / बहुकः, गणकः / भेद इति किम् ? वैपुल्ये संघे च मा भूत् // 40 // क-समासेऽध्यर्द्धः / 1 / 1 / 41 // अध्यर्द्धशब्दः के प्रत्यये समासे च विधेये ‘संख्यावत्' स्यात् / अध्यर्द्धकम्, अध्यर्द्धशूर्पम् // 41 // अर्द्धपूर्वपदः पूरणः // 11 // 42 // अर्द्धपूर्वपदः पूरणप्रत्ययान्तः के प्रत्यये समासे च कार्ये ‘संख्यावत्' स्यात् / अर्द्धपञ्चमकम्, अर्द्धपञ्चमशूर्पम् // 42 // इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितायां सिद्धहेमचन्द्राभिधानस्वोपज्ञशब्दानुशासन लघुवृत्ती प्रथमस्याध्यायस्य प्रथमः पादः समाप्तः / / 1 / 1 / / हरिरिव बलिबन्धकर,-स्त्रिशक्तियुक्तः पिनाकपाणिरिव / कमलाश्रयश्च विधिरिव, जयति श्रीमूलराजनृपः // 1 // XOX --- Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् / (द्वितीयः पादः).. समानानां तेन दीर्घः / 1 / 2 / 1 // समानानां तेन-समानेन परेण सह 'दीर्घः' स्यात् / दण्डानम्, दधीदम्, नदीन्द्रः // 1 // ऋलति हस्वो वा // 1 // 2 // 2 // ऋति लति च परे समानानां 'हस्वो वा' स्यात् / बालऋश्यः, लऋषभः, होतृलकारः / पक्षे बालीः // 2 // लत हल ऋलभ्यां वा / 1 / 2 / 3 // लत ऋता लता च सह यथासंख्यं 'ट-लू' इत्येतौ वा स्याताम् / ऋताकारः, पक्षे लऋकारः, ऋकारः / लता-ट्रकारः, पक्षे ललकारः, लूकारः // 3 // ऋतो वा, तौ च // 1 // 2 // 4 // ऋत ऋलभ्यां सह यथासंख्यं 'ट-ल' इत्येतौ वा स्याताम्, तौ च-ऋकारलकारौ ऋलभ्यां सह वा स्याताम् / ऋता- पिषभः, पक्षे पितृऋषभः, पितृषभः / लता-होत्लकारः, पक्षे होतृलकारः, होतकारः / तौ चपितृषभः, होत्लकारः, पक्षे पूर्ववत् // 4 // ऋस्तयोः / 12 / 5 // तयोः पूर्वस्थानिनोर्तृकार-ऋकारयोर्यथासंख्यम् ऋलभ्यां सह 'ऋ' इति दीर्घः स्यात् / ऋषभः, होतृकारः // 5 // अवर्णस्येवर्णादिनैदोदरलू / 1 / 2 / 6 // अवर्णस्य 'इ-उ-ऋ-लवर्णैः' सह यथासंख्यम् ‘एत् ओत् अर् अल्' इत्येते स्युः / देवेन्द्रः, तवेहा, मालेयम्, सेक्षते, तवोदकम्, तमेढा, तवर्षिः, तवर्कारः, महर्षिः, सरिः, तवल्कारः, सल्कारेण // 6 // Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् ऋणे प्र-देशार्ण-वसन-कम्बल-वत्सर . वत्सतरस्याऽऽर् // 1 // 27 // प्रादीनामवर्णस्य ऋणे परे ऋता सह 'आर्' स्यात् / प्रार्णम्, दशार्णम्, ऋणार्णम्, वसनार्णम्, कम्बलार्णम्, वत्सरार्णम्, वत्सतरार्णम् // 7 // ऋते तृतीयासमासे // 1 // 28 // अवर्णस्य ऋते परे तृतीयासमासे ऋता सह 'आर' स्यात् / शीतार्तः / तृतीयासमास इति किम् ? परमतः / समास इति किम् ? दुःखेनतः // 8 // ऋत्यारुपसर्गस्य / 1 / 2 / 9 // उपसर्गस्थस्यावर्णस्य ऋकारादौ धातौ परे ऋता सह 'आर्' स्यात् / प्राच्छति, परार्च्छति // 9 // . - नाम्नि वा / 1 / 2 // 10 // उपसर्गस्थस्यावर्णस्य ऋकारादौ नामावयवे धातौ परे ऋता सह 'आर् वा' स्यात् / प्रार्षभीयति, प्रर्षभीयति // 10 // लत्याल् वा / 12 / 11 // उपसर्गावर्णस्य लकारादौ नामावयवे धातौ परे लता सह 'आल् वा' स्यात् / उपाल्कारीयति, उपल्कारीयति // 11 // . ऐदौत् सन्ध्यक्षरैः / 12 / 12 // अवर्णस्य सन्ध्यक्षरैः परैः सह 'ऐ-औ' इत्येतौ स्याताम् / तवैषा, खट्वैषा, तवैन्द्री, सैन्द्री; तवौदनः, तवौपगवः // 12 // ऊटा / 12 / 13 // अवर्णस्य परेण ऊटा सह 'औः' स्यात् / धौतः, धौतवान् // 13 // प्रस्यैषैष्योढोढ्यूहे स्वरेण // 1 // 2 // 14 // Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् प्राऽवर्णस्य एषादिषु परेषु परेण स्वरेण सह 'ऐ-औ' स्याताम् / प्रैषः, प्रैष्यः, प्रौढः, प्रौढिः, प्रौहः // 14 // __ स्वैर-स्वैर्यक्षौहिण्याम् / 1 / 2 / 15 // स्वैरादिष्ववर्णस्य * परेण स्वरेण सह 'ऐ-औ' स्याताम् / स्वैरः, स्वैरी, अक्षौहिणी सेना // 15 // अनियोगे लुगेवे / 1 / 2 / 16 // अनियोगो अनवधारणम्, तद्विषये एवे परेऽवर्णस्य 'लुक्' स्यात् / इहेव तिष्ठ, अद्येव गच्छ; नियोगे तुं, -इहैव तिष्ठ मा गाः // 16 // वौष्ठौतौ समासे / 1 / 2 / 17 // ओष्ठौत्वोः परयोः समासेऽवर्णस्य ‘लुग वा' स्यात् / बिम्बोष्ठी, बिम्बौष्ठी; स्थूलोतुः, स्थूलौतुः / समास इति किम् ? हे पुत्रौष्ठं पश्य // 17 // ओमाङि 112 // 18 // अवर्णस्य ओमि आङादेशे च परे ‘लुक्' स्यात् / अद्योम्, सोम्, आ ऊढा, अद्योढा, सोढा // 18 // . उपसर्गस्यानिणेधेदोति // 1 // 2 // 19 // उपसर्गावर्णस्य इणेधिवर्जे एदादावोदादौ च धातौ परे ‘लुक्' स्यात् / प्रेलयति, परेलयति; प्रोषति, परोषति / अनिणेधिति किम् ? उपैति, प्रैधते // 19 // वा नाम्नि 12 / 20 // नामावयवे एदादावोदादौ च धातौ परे उपसर्गावर्णस्य 'लुग् वा' स्यात् / उपेकीयति, उपैकीयति; प्रोषधीयति, प्रौषधीयति // 20 // . इवणदिरस्वे स्वरे य-व-र-लम् / 1 / 2 / 21 // इ-उ-ऋ-ल-वर्णानामस्वे स्वरे परे यथासंख्यं ‘य व र ल' इत्येते स्युः / दध्यत्र, Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् नयेषा, मध्वत्र, वध्वासनम्, पित्रर्थः, क्रादिः, लित्, लाकृतिः // 21 // हस्वोऽपदे वा // 1 // 2 // 22 // इवर्णादीनामस्वे स्वरे परे 'हस्वो वा' स्यात्, न चेत् ती निमित्त-निमित्तिनावेकत्र पदे स्याताम् / नदि एषा, नघेषा / मधु अत्र, मध्वत्र / अपद इति किम् ? नद्यौ, नद्यर्थः // 22 // एदैतोऽयाय / 1 / 2 / 23 // एदैतोः स्वरे परे यथासंख्यम् 'अय्-आय्' इत्येती स्याताम् / नयनम्, वृक्षयेव, नायकः, रायन्द्री // 23 // ओदौतोऽवा // 1 // 2 // 24 // ओदौतोः स्वरे परे यथासंख्यम् 'अव्-आव्' इत्येती स्याताम् / लवनम्, पटवोतुः, लावकः, गावी // 24 // * व्यक्ये 1 // 2 // 25 // ओदीतोः क्यवर्जे यादी प्रत्यये परे यथासंख्यम् 'अव्-आवी' स्याताम् / गव्यति, गव्यते, नाव्यति, नाव्यते, लव्यम्, लाव्यम् / अक्य इति किम् ? उपोयते, औयत // 25 // . ऋतो रस्तद्विते / 1 / 2 / 26 // ऋकारस्य यादौ तद्धिते परे 'रः' स्यात् / पित्र्यम् / तद्धित इति किम् ? कार्यम् // 26 // एदोतः पदान्तेऽस्य लुक् / / 2 / 27 // . एदोद्भ्यां पदान्तस्थाभ्यां परस्याऽकारस्य 'लुक्' स्यात् / तेऽत्र, पटोऽत्र / पदान्त इति किम् ? नयनम् // 27 // गोर्नाम्न्यवोऽक्षे // 1 // 2 // 28 // Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् गोरोतः पदान्तस्थस्य अक्षे परे संज्ञायाम् 'अव' इति स्यात् / गवाक्षः / नाम्नीति किम् ? गोऽक्षाणि // 28 // स्वरे वाऽनक्षे / 1 / 2 / 29 // गोरोतः पदान्तस्थस्य स्वरे परे ‘अव' इति वा स्यात्, स चेत् स्वरोऽक्षस्थो न स्यात् / गवाग्रम्, गोऽग्रम्; गवेशः, गवीशः / अनक्ष इति किम् ? गोऽक्षम् / ओत इति किम् ? चित्रग्वर्थः // 29 // . .. इन्द्रे // 1 // 2 // 30 // गोरोतः पदान्तस्थस्य इन्द्रस्थे स्वरे परे 'अव' इति स्यात् / गवेन्द्रः // 30 // वाऽत्यसन्धिः / 1 / 2 / 31 // गोरोतः पदान्तस्थस्य, अकारे परे 'असन्धिभावो वा' स्यात् / गोअग्रम्, गवाग्रम्, गोऽग्रम् / अतीति किम् ? गवेङ्गितम् // 31 // प्लुतोऽनितौ // 1 // 2 // 32 // इतिवर्जे स्वरे परे ‘प्लुतः सन्धिभाग् न' स्यात् / देवदत्त३ अत्र न्वसि / अनिताविति किम् ? सुश्लोकेति // 32 // इ३ वा / 12 / 33 // . इस्थानः प्लुतः स्वरे परे 'असन्धिर्वा' स्यात् / लुनीहि३ इति, लुनीहीति // 33 // ईदूदेद्विवचनम् // 1 // 2 // 34 // 'ई-ऊ-ए' इत्येवमन्तं द्विवचनान्तं स्वरे परे 'असन्धिः' स्यात् / मुनी इह, साधू एती, माले इमे, पचेते इति / ईदूदेदिति किम् ? वृक्षावत्र / द्विवचनमिति किम् ? कुमार्यत्र // 34 // अदोमु-मी / 12 / 35 // अदसः सम्बन्धिनौ 'मु-मी' इत्येतौ स्वरे परे 'असन्धी' स्याताम् / अमुमु Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 13 ईचा / अमी अश्वाः // 35 // . चादिः स्वरोऽनाङ् // 1 // 2 // 36 // आवर्जश्चादिः स्वरः स्वरे परे 'असन्धिः' स्यात् / अ अपेहि, इ इन्द्रं पश्य, उ उत्तिष्ठ, आ एवं किल मन्यसे, आ एवं नु तत् / अनाङिति किम् ? आ इहि, एहि // 36 // ओदन्तः 112 // 37 // ओदन्तश्चादिः स्वरे परे 'असन्धिः ' स्यात् / अहो अत्र // 37 // सौ नवेतौ / 12 / 38 // सिनिमित्त ओदन्त इतौ परे 'असन्धिर्वा' स्यात् / पटो इति, पटविति // 38 // ऊँ चोञ् / 1 / 2 // 39 // . उञ् चादिरितौ परे ‘असन्धिर्वा' स्यात्, असन्धौ च उञ् 'ऊँ' इति दीर्घोऽनुनासिको वा स्यात् / उ इति, ऊँ इति, विति // 39 // अञ्वर्गात् स्वरे वोऽसन् 11 / 2 / 40 // अवर्जवर्गेभ्यः परः उञ् स्वरे परे 'वो वा' स्यात्, स चाऽसन् / क्रुङ्वास्ते / क्रुङ् आस्ते / असत्त्वाद् द्वित्वम् // 40 // .. अ-इ-उ-वर्णस्यान्तेऽनुनासिकोऽनीदादेः / / 2 / 41 // अ-इ-उ-वर्णानामन्ते- विरामे 'अनुनासिको वा' स्यात्, न चेदेते 'ईदूदेद्विवचनम्' इत्यादिसूत्रसम्बन्धिनः स्युः / साम, साम / खट्वाँ, खट्वा / दधि, दधि / कुमारी, कुमारी / मधु, मधु / अनीदादेरिति किम् ? अग्नी, अमी, किमु // 41 // इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितायां सिद्धहेमचन्द्राभिधानस्वोपज्ञशब्दानुशासन___ लघुवृत्तौ प्रथमस्याध्यायस्य द्वितीयपादः समाप्तः / 1 / 2 // पूर्वभवदारगोपी, - हरणस्मरणादिव ज्वलितमन्युः / श्रीमूलराजपुरुषो, * त्तमोऽवधीद् दुर्मदाऽऽभीरान् / / 2 / / ---xox Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् (तृतीयः पादः). तृतीयस्य पञ्चमे / / 3 / 1 // वेति पदान्त इति अनुनासिक इति च अनुवर्त्तते / वर्गतृतीयस्य पदान्तस्थस्य पञ्चमे परे अनुनासिको वा' स्यात् / वाङ्वते वाग्ङवते ककुम्मण्डलम्, ककुब्मण्डलम् // 1 // प्रत्यये च // 1 // 3 // 2 // पदान्तस्थस्य तृतीयस्य प्रत्यये पञ्चमे परे अनुनासिको नित्यं' स्यात् / वाङ्मयम्, षण्णाम् / च उत्तरत्र वाऽनुवृत्त्यर्थः // 2 // ततो हश्चतुर्थः / 1 / 3 / 3 // पदान्तस्थात् ततः- तृतीयात् परस्य हस्य 'पूर्वसवर्गश्चतुर्थो वा' स्यात् / वाग्घीनः, वागहीनः / ककुब्भासः, ककुब्हासः // 3 // प्रथमादधुटि शश्छः / 1 / 3 / 4 // पदान्तस्थात् प्रथमात् परस्य शस्याधुटि परे 'छो वा' स्यात् / वाक्छूरः, वाक्शूरः / त्रिष्टुप्छ्रतम्, त्रिष्टुप्श्रुतम् / अधुटीति किम् ? वाक्श्च्योतति // 4 // रः कख-पफयोः क- पौ / 1 / 3 / 5 // पदान्तस्थस्य रस्य कखे पफे च परे यथासंख्यं 'क-) पौ वा' स्याताम् / कः करोति, कः करोति / क खनति, कः खनति / क)( पचति, कः पचति / कस.फलति, कः फलति / / 5 / / श-ष-से श-ष-सं वा / 113 // 6 // पदान्तस्थस्य रस्य श-ष-सेषु परेषु यथासंख्यम् 'श-ष-सा वा'स्युः / कश्शेते, कः शेते / कष्षण्ढः, कः षण्ढः / कस्साधुः, कः साधुः / / 6 / / - च-ट-ते स-द्वितीये / 113 // 7 // Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् __ 15 पदान्तस्थस्य रस्य च-ट-तेषु संद्वितीयेषु परेषु यथासंख्यम् 'श-ष-सा नित्यं' स्युः / कश्चरः, कश्छन्नः, कष्टः, कष्ठः, कस्तः, कस्थः // 7 // नोऽप्रशानोऽनुस्वाराऽनुनासिकौ च पूर्वस्याऽधुटपरे 1 // 3 // 8 // पदान्तस्थस्य प्रशान्वर्जशब्दसम्बन्धिनो नस्य च-ट-तेषु सद्वितीयेषु अधुट्परेषु, 'श-ष-सा' यथासंख्यं स्युः, 'अनुस्वाराऽनुनासिकौ चाऽऽगमाऽऽदेशी' पूर्वस्य क्रमेण स्याताम् / भवांश्चरः, भवाँश्चरः / भवांश्छ्यति, भवाँश्छ्यति / भवांटकः, भवाष्टकः / भवांष्ठकारः भवाँष्ठकारः ।भवांस्तनुः, भवाँस्तनुः / भवांस्थुडति, भवाँस्थुडति / अप्रशान् इति किम् ? प्रशाञ्चरः / अधुट्पर इति किम् ? भवान्त्सरुकः // 8 // पुमोऽशिट्यघोषेऽख्यागि रः // 13 // 9 // 'पुम्' इति पुंसः संयोगलुक्यनुकरणम्, अधुटपरे अघोषे शिट्-ख्यागिवर्जे परे 'पुम्' इत्येतस्य 'रः' स्यात्, अनुस्वारानुनासिकौ च पूर्वस्य / पुंस्कामा, (स्कामा / अशिटीति किम् ? पुंशिरः / अघोषे इति किम् ? पुंदासः / अख्यागीति किम् ? पुंख्यातः / अधुट्पर इत्येव- पुंक्षारः // 9 // नृनः पेषु वा // 1 // 3 // 10 // 'नन्' इति शसन्तस्यानुकरणम् / नूनः पे परे ‘रो वा' स्यात्, अनुस्वारानुनासिकौ च पूर्वस्य / न) (पाहि, न) (पाहि, न:पाहि नृन्पाहि // 10 // द्विः कानः कानि सः / 1 / 3 / 11 // कानः किमः शसन्तस्यानुकरणम् / द्विरुक्तस्य कानः कानि परे ‘सः' स्यात्, अनुस्वारानुनासिकौ च पूर्वस्य / कांस्कान्, काँस्कान् / द्विरिति किम् ? कान् कान् पश्यति // 11 // स्सटि समः / 1 / 3 / 12 // Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् ... समः स्सटि परे ‘सः' स्यात्, अनुस्वारानुनासिकौ च पूर्वस्य / संस्स्कर्ता, सँस्स्कर्ता / स्सटीति किम् ? संकृतिः // 12 // लुक् / / 3 / 13 // समः स्सटि परे लुक् स्यात् / सस्कर्ता // 13 // तौ मु-मो व्याने स्वौ // 1 // 3 // 14 // मोर्वागमस्य पदान्तस्थस्य च मस्य व्यञ्जने परे तस्यैव ‘स्वौ तौ अनुस्वाराऽनुनासिको' क्रमेण स्याताम् / चंक्रम्यते, चक्रम्यते / वंवम्यते, वव्वम्यते / त्वं करोषि, त्वङ्करोषि / कंवः, कव्वः // 14 // . म-न-य-व-लपरे हे 113 // 15 // म-न-य-व-लपरे हे, पदान्तस्थस्य मस्य ‘अनुस्वाराऽनुनासिकौ स्वौ' क्रमात स्याताम् / किं ालयति, किम्मलयति / किं हनुते, किन्नुते / किं ह्यः किम्यः / किं ह्वलयति, किदवलयति / किं ह्लादते, किल्लादते // 15 // सम्राट् / 1 / 3 / 16 // समो मस्य राजौ क्विंबन्ते ‘अनुस्वाराभावः' स्यात् / सम्राट्, सम्राजौ // 16 // -णोः क-टावन्तौ शिटि नवा 1113 / 17 // पदान्तस्थयोर्ड -णयोः शिटि परे यथासंख्यम् ‘क-टावन्तौ वा' स्याताम् / प्राक्छेते, प्राङ्क्शेते, प्राशेते / सुगण्ट्छेते, सुगण्टशेते, सुगणशेते // 17 // इनः सः त्सोऽश्चः / 1 / 3.18 // पदान्तस्थाभ्यां ड-नाभ्यां परस्य सस्य 'स' इति तादिः सो वा स्यात्, अश्चश्वाऽवयवश्चेत् सो न स्यात् / षड्त्सीदन्ति, षट्सीदन्ति / भवान्त्साधुः भवान्साधुः / अश्व इति किम् ? षट्श्च्योतन्ति, भवान्श्च्योतति // 18 // Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् नः शि ञ्च 113 // 19 // पदान्तस्थस्य नस्य शे परे ‘ञ्च् वा' स्यात्, अश्वः / भवाञ्च्छूरः, भवाशूरः, भवाञ्शूरः / अश्च इत्येव-भवाश्च्योतति // 19 // __ अतोऽति रोरुः 113 // 20 // आत्परस्य पदान्तस्थस्य रोरति परे ‘उर्नित्यं' स्यात् / कोऽर्थः // 20 // घोषवति / 1 / 3 / 21 // आत्परस्य पदान्तस्थस्य रो?षवति परे 'उः' स्यात् / धर्मो जेता // 21 // अवर्ण-भो-भगो-ऽघोलुंगसन्धिः / 1 / 3 // 22 // अवर्णाद् भो-भगो-अघोभ्यश्च परस्य पदान्तस्थस्य रो?षवति परे 'लुक्' स्यात्, स च न सन्धिहेतुः / देवा यान्ति, भो यासि, भगो हस, अघो वद // 22 // व्योः / 1 / 3 / 23 // अवर्णात्परयोः पदान्तस्थयोर्वययो?षवति परे ‘लुक्' स्यात्, स चाऽसन्धिः / - वृक्षवृश्चम् अव्ययं चाऽऽचक्षाणो वृक्षव, अव्यय; वृक्ष याति, अव्य याति // 23 // ... स्वरे वा // 13 // 24 // अवर्ण-भो-भगो-अघोभ्यः परयोः पदान्तस्थयोर्वययोः स्वरे परे 'लुग् वा' स्यात्, स चाऽसन्धिः / पट इह, पटविह / वृक्षा इह, वृक्षाविह / त आहुः, तयाहुः / तस्मा इदम्, तस्मायिदम् / भो अत्र, भोयत्र / भगो अत्र, भगोयत्र / अघो अत्र, अघोयत्र // 24 // . अस्पष्टाववर्णात्त्वनुनि वा // 1 // 3 // 25 // अवर्ण-भो-भगो-अघोभ्यः परयोः पदान्तस्थयोर्वययोः, अस्पष्टौ - 'ईषत्स्पृष्टतरौ वयौ' स्वरे परे स्याताम्, अवर्णात्तु परयोोरुञ्वर्जे स्वरे'ऽस्पष्टौ वा' स्याताम् / पटवू, असा, कयु, देवायँ भोयँत्र, भगोयँत्र, अघोपॅत्र / अवर्णा - Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 18 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् त्वनुञि वा / पटविह, पटविह / असाविन्दुः २,तयिह २,तस्मायिदम् 2 // 25 // रोर्यः // 1 // 3 // 26 // अवर्ण-भो-भगो-अघोभ्यः परस्य पदान्तस्थस्य रोः स्वरे परे ‘यः' स्यात् / कयास्ते, देवायासते, भोयत्र, भगोयत्र, अघोयत्र // 26 // हस्वान्ङ-ण-नो द्वे // 1 // 3 // 27 // -हस्वात्परेषां पदान्तस्थानां ङ-ण-नानां स्वरे परे 'द्वे रूपे' स्याताम् / क्रुडास्ते, सुगण्णिह, कृषन्नास्ते // 27 // ___ अनाङ्-माङो दीर्घाद् वा छः / 113 // 28 // आङ्माङ्वर्जदीर्घात् पदान्तस्थात् परस्य 'छस्य द्वे रूपे वा' स्याताम् / कन्याच्छत्रम्, कन्याछत्रम् / अनाङ्माङिति किम् ? आच्छाया, मा च्छिदत् / / 28|| प्लुताद् वा // 1 // 3 // 29 // पदान्तस्थाद् दीर्घात् प्लुतात् परस्य 'छस्य द्वे रूपे वा' स्याताम् / आगच्छ भो इन्द्रभूते३ च्छत्रमानय, पक्षे छत्रमानय // 29 // स्वरेभ्यः / 1 // 3 // 30 // स्वरात् परस्य 'छस्य द्वे रूपे' स्याताम् / इच्छति, गच्छति // 30 // दिर्ह-स्वरस्याऽनु नवा // 1 // 3 // 31 // स्वरात् पराभ्यां रहाभ्यां परस्य र-ह-स्वरवर्जस्य वर्णस्य 'द्वे रूपे वा' स्याताम्, अनु- कार्यान्तरात्पश्चात् / अर्कः, अर्कः / ब्रह्मम, ब्रह्म / अर्ह-स्वरस्येति किम् ? पद्महदः, अर्हः, करः / स्वरेभ्य इत्येव-अभ्यते / अन्विति किम् ? प्रोणुनाव // 31 // अदीर्घाद् विरामैकव्यञ्जने // 1 // 3 // 32 // अदीर्घात् स्वरात् परस्य र-ह-स्वरवर्जस्य वर्णस्य विरामे असंयुक्तव्याने च Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 19 परेऽनु 'द्वे रूपे वा' स्याताम् / त्वक्क्, त्वक् / दद्ध्यत्र, दध्यत्र / गो३त्त्रात, गोइत्रात / अर्हस्वरस्येत्येव- वर्या, वह्यम्, तितउ // 32 // अञ्वर्गस्यान्तस्थातः 113 // 33 // अन्तस्थातः परस्य अवर्जवर्गस्याऽनु 'द्वे रूपे वा' स्याताम् / उल्क्का , उल्का / अजिति किम् ? हल्ली // 33 // ततोऽस्याः / 113 // 34 // ततो-ऽज्वर्गात् परस्या अस्या- अन्तस्थाया 'द्वे रूपे वा' स्याताम् / दध्य्यत्र, दध्यत्र दद्ध्य्यत्र // 34 // शिटः प्रथम-द्वितीयस्य // 1 // 3 // 35 // शिटः परयोः प्रथम-द्वितीययो 'द्वै. रूपे वा' स्याताम् / त्वं क्करोषि, त्वं करोषि / त्वं क्खनसि, त्वं खनसि // 35 // ततः शिटः / 13 / 36 // ततः- प्रथम-द्वितीयाभ्यां परस्य शिटो 'द्वे रूपे वा' स्याताम् / तच्श्शेते, तशेते // 36 // . न रात् स्वरे // 13 // 37 // . रात् परस्य शिटः स्वरे परे 'द्वे रूपे न स्याताम् / दर्शनम् // 37 // पुत्रस्याऽऽदिन-पुत्रादिन्याक्रोशे // 1 // 3 // 38 // आदिनि पुत्रादिनि च परे पुत्रस्थस्य तस्य आक्रोशविषये द्वे रूपे न स्याताम् / पुत्रादिनी स्वमसि पापे !, पुत्रपुत्रादिनी भव / आक्रोश इति किम् ? पुत्त्रादिनी शिशुमारी, पुत्रादिनीति वा / पुत्रपुत्रादिनी नागी, पुत्रपुत्रादिनीति वा // 38 // म्नां धुड्वर्गेऽन्त्योऽपदान्ते / / 3 / 39 // Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - 20 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् अपदान्तस्थानां म-नानां, धुटि वर्गे परे 'निमित्तस्यैवान्त्यो'ऽनु स्यात् / गन्ता, शङ्किता, कम्पिता / धुडितिकिम् ? आहन्महे / धुड्वर्ग इति किम् ? गम्यते / अपदान्त इति किम् ? भवान् करोति // 39 // शिड्ढेऽनुस्वारः / 13 / 40 // अपदान्तस्थानां म्नां शिटि हे च परेऽनुस्वारो'ऽनु स्यात् / पुंसि, दंशः, बृंहणम् // 40 // रो रे लुगू दीर्घश्चाऽदिदुतः / / 3 / 41 // रस्य रे परेऽनु 'लुक्' स्यात्, 'अ-इ-ऊनाञ्च दीर्घः' / पुना रात्रिः, अग्नी रथेन, पटू राजा / अनु इत्येव - अहोरूपम् / / 41 // ढस्तड्ढे / 1 / 3 / 42 // तन्निमित्ते ढे परे ढस्याऽनु 'लुक्' स्यात्, दीर्घश्चादिदुतः / माढिः, लीढम् गूढम् / तड्ढ इति किम् ? मधुलिड् ढौकते // 42 // सहि-वहेरोचाऽवर्णस्य / 1 / 3 / 43 // सहि-वह्योढस्य तड्ढे परेऽनु'लुक्' स्यात्, ओच्चाऽवर्णस्य / सोढा, वोढा, उदवोढाम् // 43 // उदः स्था-स्तम्भः सः / 113 // 44 // उदः परयोः स्था-स्तम्भोः सस्य ‘लुक्' स्यात् / उत्थाता, उत्तम्भिता // 44 // तदः सेः स्वरे पादार्था / 1 / 3 / 45 // तदः परस्यः सेः स्वरे परे 'लुक् स्यात्, सा चेत् पादपूरणी स्यात् / सैष दाशरथी रामः,सैष राजा युधिष्ठिरः / पादार्था इति किम् ? स एष भरतो राजा // 45 // एतदश्च व्यञ्जनेऽनग-नसमासे 1113 / 46 // एतदस्तदश्च परस्य सेर्व्यञ्जने परे ‘लुक्' स्यात्, अकि नसमासे न / एष दत्ते Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 21 स लाति / अनग्नसमास इति किम् ? एषकः कृती, सको याति, अनेषो याति, असो वाति // 46 // ___ व्यञ्जनात् पञ्चमाऽन्तस्थायाः सरूपे वा / 1 / 3 / 47 // व्यञ्जनात् परस्य पंचमस्याऽन्तस्थायाश्च सरूपे वर्णे परे ‘लुग वा' स्यात् / क्रुञ्चो ङौ क्रुङौ, क्रुझै / आदित्यो देवताऽस्य-आदित्यः, आदित्य्यः / सरूप इति किम् ? वर्ण्यते // 47 // धुटो धुटि स्वे वा // 1 // 3 // 48 // व्यञ्जनात्परस्य धुटो धुटि स्वे परे ‘लुग् वा' स्यात् / शिण्ढि, शिण्ड्डि / स्व इति किम् ? ता, दर्ता // 48 // __ तृतीयस्तृतीय-चतुर्थे / 1 / 3 / 49 // तृतीये चतुर्थे च परे ‘धुटस्तृतीयः' स्यात् / मज्जति, दोग्धा // 49 // अघोषे प्रथमोऽशिटः // 13 // 50 // अघोषे परे शिवर्जस्य 'धुटः प्रथमः' स्यात् / वाक्पूता / अशिट इति किम् ? पयस्सु // 50 // - विरामे वा // 1 // 3 // 11 // विरामस्थस्याऽशिटो 'धुटः प्रथमो वा' स्यात् / वाक्, वाग् // 51 // न सन्धिः / 13 / 52 // उक्तो वक्ष्यमाणश्च ‘सन्धिर्विरामे न' स्यात् / दधि अत्र, तद् लुनाति // 52 // रः पदान्ते विसर्गस्तयोः // 13 // 53 // पदान्तस्थस्य रस्यं तयोविरामाऽघोषयो विसर्गः' स्यात् / वृक्षः, स्वः, कः कृती / पदान्त इति किम् ? इर्ते // 53 // ख्यागि / 113154 // Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 22 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् पदान्तस्थस्य रस्य ख्यागि परे 'विसर्ग एव' स्यात् / कः ख्यातः / नमः ख्यात्रे // 54 // शिट्यघोषात् 113 // 55 // अघोषात् परे शिटि परतः पदान्तस्थस्य रस्य ‘विसर्ग एव' स्यात् / पुरुषः सरुकः, सर्पिः प्साति, वासः क्षौमम्, अद्भिः प्सातम् // 55 // व्यत्यये लुग वा // 1 // 3 // 56 // शिटः परोऽघोष इति व्यत्ययस्तस्मिन्सति पदान्तस्थस्य रस्य लुग वा' स्यात् / चक्षुश्च्योतति, चक्षुः श्च्योतति, यक्षुश्श्च्योतति // 56 // अरोः सुपि रः / 1 / 3157 // रोरन्यस्य रस्य सुपि परे ‘र एव' स्यात् / गीर्षु, धूर्षु / अरोरिति किम्? पयस्सु // 57 / / वाऽहर्पत्यादयः 113158 // अहर्पत्यादयो यथायोगमकृतविसर्गाः कृतोत्वाभावाश्च वा स्युः / अहर्पतिः, अहःपतिः, गीपतिः, गी:पतिः, प्रचेता राजन् !, प्रचेतो राजन् ! // 58|| शिट्यायस्य द्वितीयो वा 1113 / 59 // प्रथमस्य शिटि परे 'द्वितीयो वा' स्यात् / ख्वीरम्, क्षीरम् / अफ्सराः, अप्सराः // 59 // तवर्गस्य श्चवर्ग-ष्टवर्गाभ्यां योगे च-टवर्गौ 13 / 60 // तवर्गस्य श-चवर्गाभ्यां ष-टवर्गाभ्यां च योगे यथासंख्यम् 'चवर्ग-टव' स्याताम् / तच्शेते, भवाञ्शेते, तच्चारु, तज्जकारेण, पेष्टा, पूष्णः, तट्टकारः, तण्णकारेण, ईट्टे // 60 // सस्य श-षौ / 1 / 3 / 61 // . सस्य श्चवर्ग-ष्टवर्गाभ्यां योगे यथासंख्यम् 'श-षौ' स्याताम् / चवर्गेण-श्च्यो Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 23 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् तति, वृश्चति / षेण - दोष्षु / टवर्गेण-पापलि // 61 // न शात् / 13 / 62 // शात् परस्य तवर्गस्य 'चवर्गो न' स्यात् / अनाति, प्रश्नः // 62 / / पदान्ताट्टवर्गादनाम्-नगरी-नवतेः / 1 / 3 / 63 // पदान्तस्थाट्टवर्गात् परस्य नाम्-नगरी-नवतिवर्जस्य तवर्गस्य सस्य च 'टवर्गषौ न' स्याताम् / षण्नयम्, षण्नयाः, षट्सु / अनाम्-नगरी-नवतेरिति किम् ? षण्णाम्, षण्णगरी, षण्णवतिः // 63 // षि तवर्गस्य / 13 / 64 // पदान्तस्थस्य तवर्गस्य षे परे ‘टवर्गो न' स्यात् / तीर्थकृत् षोडशः शान्तिः // 64 // लि लौ / 113 // 65 // . पदान्तस्थस्य तवर्गस्य ले परे 'लौ' स्याताम् / तल्लूनम्, भवाल्लुनाति // 65 // इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितायां सिद्धहेमचन्द्राभिधानस्वोपज्ञशब्दानुशासन लघुवृत्तौ प्रथमस्याध्यायस्य तृतीयपादः समाप्तः // 13 // चक्रे श्रीमूलराजेन, नवः कोऽपि यशोऽर्णवः / . परकीर्तिस्रवन्तीनां, न प्रवेशमदत्त यः // 3 // ----------xox-------- Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 24 श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् (चतुर्थः पादः) अत आः स्यादौ जस्-भ्याम्-ये 11 / 4 / 1 // स्यादौ जसि भ्यामि ये च परेऽकारस्य 'आः' स्यात् / देवाः, आभ्याम्, सुखाय / स्वादाविति किम् ? बाणान् जस्यतीति क्विप् - बाणजः // 1 // भिस ऐस् 1 / 4 / 2 // आत्परस्य स्यादे-'र्भिस ऐस्' स्यात् / देवैः / ऐस्करणाद्-अतिजरसैः // 2 // इदमदसोऽक्येव / 1 / 4 / 3 // इदमदसोरक्येव सति, आत्परस्य 'भिस ऐस्' स्यात् / इमकैः, अमुकैः / अक्येवेति किम् ? एभिः, अमिभिः // 3 // एद् बहुस्भोसि 11 / 4 / 4 // बह्वर्थे स्यादौ सादौ भादौ ओसि च परे ‘अत एत्' स्यात् / एषु, एभिः, देवयोः // 4 // टा-सोरिन-स्यौ / 1 / 4 / 5 // आत्परयोष्टा-ङसोर्यथासङ्ख्यम् ‘इन-स्यौ' स्याताम् / तेन, यस्य // 5 // डे-ङस्योर्याऽऽतौ // 14 // 6 // आत्परस्य डेर्डसेश्च यथासंख्यम् ‘य आच' स्याताम् / देवाय, देवात् // 6 // सदिः स्मै-स्मातौ // 14 // 7 // सर्वादेरदन्तस्य सम्बन्धिनोर्डेङस्योर्यथासंख्यम् 'स्मै-स्माती' स्याताम् / सर्वस्मै, सर्वस्मात् / सर्व, विश्व, उभ, उभयट्, अन्य, अन्यतर, इतर, डतर, डतम, त्व, त्वत्, नेम, सम-सिमौ सर्वार्थी, पूर्व-पराऽवर-दक्षिणोत्तरा-ऽपरा-ऽधराणि व्यवस्थायाम्, स्वम् अज्ञाति-धनाख्यायाम्, अन्तरं बहिर्योगोपसंव्यानयोरपुरि, त्यद्, तद्, यद्, अदस्, इदम्, एतद्, एक, द्वि, युष्मद्, अस्मद्, Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् भवतु, किम् इत्यसंज्ञायां सर्वादिः // 7 // डेः स्मिन् / 1148 // सवदिरदन्तस्य '.: स्मिन्' स्यात् / सर्वस्मिन् // 8 // जस इ. 1 / 4 / 9 // सवदिरदन्तस्य ‘जस इ.' स्यात् / सर्वे // 9 // नेमा-ऽर्द्ध-प्रथम-चरम-तया-ऽया-ऽल्प-कतिपयस्य वा 114 // 10 // नेमादीनि नामानि, तयायौ प्रत्ययौ, तेषामदन्तानाम् ‘जस इर्वा' स्यात् / नेमे, नेमाः / अः, अर्धाः / प्रथमे, प्रथमाः / चरमे, चरमाः / द्वितये, द्वितयाः / त्रये, त्रयाः / अल्पे, अल्पाः / कतिपये, कतिपयाः // 10 // द्वन्द्वे वा / 1 / 4 / 11 // द्वन्द्वसमासस्थस्याऽदन्तस्य सवदि जस इर्वा' स्यात् / पूर्वोत्तरे, पूर्वोत्तराः // 11 // न सर्वादिः / 1 / 4 / 12 // द्वन्द्वे सर्वादिः ‘सर्वादिर्न' स्यात् / पूर्वापराय, पूर्वापरात्, पूर्वापरे / कतरकतमानाम्, कतरकतमकाः // 12 // तृतीयान्तात् पूर्वा-ऽवरं योगे / 1 / 4 / 13 // तृतीयान्तात् परौ पूर्वाऽवरौ योगे-सम्बन्धे सति सर्वादी न' स्याताम् / मासेन पूर्वाय मासपूर्वाय / दिनेनाऽवराय दिनावराय / दिनेनाऽवराः दिनाऽवराः / तृतीयान्तादिति किम् ? पूर्वस्मै मासेन // 13 // तीयं ङित्कार्ये वा / 1 / 4 / 14 // तीयान्तं नाम डे-सि-स्-डीनां कार्ये 'सर्वादिर्वा' स्यात् / द्वितीयस्मै, द्वितीयाय / द्वितीयस्यै, द्वितीयायै / ङित्कार्य इति किम् ? द्वितीयकाय // 14 // Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् अवर्णस्याऽऽमः साम् / 1 / 4 / 15 // अवर्णान्तस्य सर्वादेरामः ‘साम्' स्यात् / सर्वेषाम्, विश्वासाम् // 15 // नवभ्यः पूर्वेभ्य इ-स्मात्-स्मिन् वा // 14 // 16 // पूर्वादिभ्यो नवभ्यो ये इ-स्मात्-स्मिनो यथास्थानमुक्तास्ते वा स्युः / पूर्वे, पूर्वाः। पूर्वस्मात् पूर्वात् / पूर्वस्मिन्, पूर्वे इत्यादि / नवभ्य इति किम् ? त्ये // 16 // आपो ङितां यै-यास्-यास्-याम् / 1 / 4 / 17 // आबन्तस्य ङिताम्- डे-सि-स्-डीनां यथासंख्यम् ‘यै-यास्यास्यामः' स्युः / खट्वायै, खटायाः, खट्वायाः, खटायाम् // 17 // सवदिईसपूर्वाः // 14 // 18 // सवदिराबन्तस्य ङिताम् ‘यै-यास्यास्यामस्ते डस्पूर्वाः' स्युः / सर्वस्यै, सर्वस्याः, सर्वस्याः, सर्वस्याम् // 18 // टौस्येत् / / 4119 // आबन्तस्य टौसोः परयोरेकारः स्यात् / बहुराजया, बहुराजयोः // 19 // . औता / 114 // 20 // आबन्तस्य ‘औता सहकारः' स्यात् / माले स्तः पश्य वा // 20 // इदुतोऽस्नेरीदूत / 114 // 21 // स्नेरन्यस्येदन्तस्योदन्तस्य च औता सह यथासंख्यम् 'ईदूतौ' स्याताम् / मुनी, साधू / अस्त्रेरिति किम् ? अतिस्त्रियौ नरौ // 21 // जस्येदोत् / / 4 / 22 // . इदुदन्तयोर्जसि परे यथासंख्यम् ‘एदोतो' स्याताम् / मुनयः, साधवः // 22 // ङित्यदिति / 1 / 4 / 23 // अदिति ङिति स्यादौ परे, इदुदन्तयोर्यथासंख्यम् ‘एदोती' स्याताम् / अति Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 27 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् स्त्रये, साधवे, अतिस्त्रेः साधोरागतं स्वं वा / अदितीति किम् ? बुद्ध्याः , धेन्वाः / स्यादावित्येव- शुची स्त्री // 23 // टः पुंसि ना / 1 / 4 / 24 // इदुदन्तात् परस्याः 'पुंविषयायाष्टाया ना' स्यात् / अतिस्त्रिणा, अमुना / पुंसीति किम् ? बुद्ध्या // 24 // डिौँ / 1 / 4 / 25 // इदुदन्तात् परो ‘डिौंः ' स्यात् / मुनौ, धेनौ / अदिदित्येव- बुद्ध्याम् // 25 // केवलसखिपतेरौः / 114 // 26 // केवलसखिपतिभ्यामिदन्ताभ्यां परो 'ङिरौः' स्यात् / सख्यौ, पत्यौ / इत इत्येव- सखायमिच्छति पतिमिच्छति- सख्यि, पत्यि / केवलेति किम् ? प्रियसखौ, नरपतौ // 26 // न ना डिदेत् / 114 // 27 // केवलसखिपतेर्यष्टाया ना, ङिति परे एचोक्तः, स न स्यात् / सख्या, पत्या, सख्ये, पत्ये, सख्युः, पत्युः आगतं स्वं वा / सख्यौ, पत्यौ / ङितीति किम् ? पतयः // 27 // स्त्रिया ङितां वा दै-दाम-दाम-दांम् / 1 / 4 / 28 // स्त्रीलिङ्गादिदुदन्तात् परेषां ङिताम्- -ङसि-ङस्-ङीनां यथासंख्यम् दै-दास्दास्-दामो वा' स्युः / बुद्ध्यै, बुद्धये; बुद्ध्याः , बुद्धेः आगतं स्वं वा; बु द्ध्याम्, बुद्धौ / धेन्वै, धेनवे; धेन्वाः, धेनोः; धेन्वाम् धेनौ / प्रियबुद्ध्यै, प्रियबुद्धये पुंसे स्त्रियै वा // 28 // . स्त्रीदूतः / 1 / 4 / 29 // नित्यं स्त्रीलिङ्गादीदूदन्ताच्च परेषां स्यादेर्डितां यथासंख्यम् 'दै-दाम-दामदामः' स्युः / नद्यै, नद्याः, नद्याः, नद्याम् / कुर्वै, कुर्वाः, कुर्वाः, कुर्वाम् / Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 28 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् अतिलक्ष्म्यै पुंसे स्त्रियै वा / स्त्रीति किम् ? ग्रामण्ये खलप्वे पुंसे स्त्रियै // 29 // वेयुवोऽस्त्रियाः // 1 // 4 // 30 // : इयुव्स्थानिनौ यौ स्त्रीदूतौ तदन्तात् स्त्रीवर्जात्परेषां स्यादेर्डितां यथासंख्यम् ‘दै-दास्-दास्-दामो वा' स्युः / श्रियै, श्रिये; श्रियाः, श्रियः२, श्रियाम्, श्रियि / अतिश्रियै, अतिश्रिये पुंसे स्त्रियै वा / ध्रुवै, ध्रुवे; भ्रवाः, ध्रुवः, ध्रुवाः भ्रवः; भ्रुवाम्, ध्रुवि / अतिभ्रुवै अतिध्रुवे पुंसे स्त्रियै वा / इयुव इति किम् ? आध्यै / अस्त्रिया इति किम् ? स्त्रियै // 30 // आमो नाम् वा // 1 // 4 // 31 // इयुवोः स्थानिभ्यां स्त्रीदूदन्ताभ्यां परस्य ‘आमो नाम् वा' स्यात्, न तु स्त्रियाः / श्रीणाम्, श्रियाम् / भ्रूणाम्, ध्रुवाम् / अतिश्रीणाम्, अतिश्रियाम् ।अतिभ्रूणाम् अतिध्रुवाम् नृणाम् स्त्रीणाम् वा / इयुव इत्येव-प्रधीनाम् // 31 // हस्वाऽऽपश्च / 1 / 4 / 32 // हस्वान्तादाबन्तात् स्त्रीदूदन्ताच्च परस्याऽऽमो 'नाम्' स्यात् / देवानाम्, मालानाम्, स्त्रीणाम्, वधूनाम् // 32 // संख्यानां र्णाम् / 1 / 4 / 33 // र-ष-नान्तानां संख्यावाचिनामाऽऽमो 'नाम्' स्यात् / चतुर्णाम्, षण्णाम्, पञ्चानाम्, अष्टानाम् // 33 // स्त्रयः / 1 / 4 // 34 // आमः सम्बन्धिनस्त्रेस्त्रयः स्यात् / त्रयाणाम्, परमत्रयाणाम् // 34 // एदोद्भ्यां सि-ङसो रः / 1 / 4 / 35 // एदोद्भ्यां परयोः प्रत्येकं असि-ङसो 'रः' स्यात् / मुनेः, मुनेः / धेनोः, धेनोः / गोः, गोः / द्योः, द्योः // 35 // Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् खि-ति-खी-तीय उर् // 14 // 36 // खि-ति-खी-तीसम्बन्धिनो यात्परयोङसिङसोरुर् स्यात् / सख्युः, सख्युः / पत्युः, पत्युः। सखायं पतिं चेच्छतः सख्युः 2, पत्युः 2 / य इति किम् ? अतिसखेः, अधिपतेः // 36 // ऋतो डर 114 // 37 // ऋतः परयोः सि-सो-'ईर्' स्यात् / पितुः, पितुः // 37 // तृ-स्वसृ-नप्तृ-नेष्ट-त्वष्ट-क्षतृ-होतृ-पोतृ-प्रशास्त्रो घुट्यार् // 1 // 4 // 38 // तृच्-तृन्नन्तस्य स्वनादीनां च ऋतो घुटि परे 'आर्' स्यात् / कर्तारम्, कर्तारौर, कर्तारः / स्वसारम्, नप्तारम्, नेष्टारम्, त्वष्टारम्, क्षत्तारम्, होतारम्, पोतारम्, प्रशास्तारम् / घुटीति किम् ? कर्तृ कुलं पश्य // 38 // अझै च // 14 // 39 // ऋतो डी घुटि च परे 'अर्' स्यात् / नरि / नरम् // 39 // मातुर्मातः पुत्रेऽहे सिनाऽऽमन्त्र्ये / / 4 / 40 // आमन्त्र्ये पुढे वर्तमानस्य मातृशब्दस्य सिना सह 'मातः' स्यात्, अर्हेप्रशंसायाम् / हे गार्गीमात ! / पुत्र इति किम् ? हे मातः ! हे गार्गीमातृके वत्से ! / अर्ह इति किम् ? अरे गार्गीमातृक ! // 40 // हस्वस्य गुणः / 1 / 4 / 41 // आमव्यार्थवृत्तेर्हस्वान्तस्य सिना सह 'गुणः' स्यात् / हे पितः !, हे मुने ! // 41 // .. एदापः // 1 // 4 // 42 // आमन्त्र्यार्यवृत्तेराबन्तस्य सिना सह एत्' स्यात् / हे माते !, हे बहुराजे ! // 42 // नित्यदिन-द्विस्वराऽम्बार्थस्य हस्वः // 14 // 43 // Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 30 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् नित्यं दिद्-दै-दाम-दाम-दामादेशा येभ्यस्तेषां द्विस्वराम्बार्थानां चाऽऽबन्तानामामन्त्र्यवृत्तीनां सिना सह 'हस्वः स्यात् / हे स्त्रि !; हे लक्ष्मि !, हे श्वश्रु!, हे वधु !, हे अम्ब !, हे अक्क ! / नित्यदिदिति किम् ? हे हूहूः ! / द्विस्वरेति किम् ? हे अम्बाडे ! / आप इत्येव- हे मातः ! // 43 // __ अदेतः स्यमोलुक् / 114 // 44 // अदन्ताद् एदन्ताच्च आमन्त्र्यवृत्तेः परस्य सेरमश्च 'लुक्' स्यात् / हे देव !, हे उपकुम्भ ! हे अतिहे ! // 44 // दीर्घयाब्-व्यञ्जनात् सेः / / 4 / 45 // दीर्घझ्याबन्ताभ्यां व्यञ्जनाच परस्य 'सेल' स्यात् / नदी / माला / राजा / दीर्घति किम् ? निष्कौशाम्बिः, अतिखटः // 45 // ' समानादमोऽतः / 1 / 4 / 46 // समानात् परस्याऽमोऽस्य “लुक्' स्यात् / देवम्, मालाम्, मुनिम्, नदीम्, साधुम्, वधूम् // 46 // दीर्घो नाम्यतिस-चतसृ-षः / / 4 / 47 // तिसृ-चतसृ-ष-रान्तवर्जस्य समानस्य नामि परे “दीर्घः' स्यात् / वनानाम्, मुनीनाम्, साधूनाम्, पितॄणाम् / अतिसृचतसृष इति किम् ? तिसृणाम्, चतसृणाम्, षण्णाम्, चतुर्णाम् // 47 // नुर्वा 11 / 4 / 48 // नुः समानस्य नामि परे 'दीर्घो वा' स्यात् / नृणाम्, नृणाम् // 48 // शसोऽता सश्च नः पुंसि / 1 / 4 / 49 // शसोऽता सह पूर्वसमानस्य 'दीर्घः' स्यात्, तत्सन्नियोगे च पुंसि शसः सो नः / देवान्, मुनीन्, वातप्रमीन्, साधून, हूहून्, पितॄन् / पुंसीति किम् ? शालाः // 49 // Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् संख्या-साय-वेरस्याऽहन् ङौ वा / 1 / 4 / 50 // संख्यावाचिभ्यः साय-विभ्यां च परस्याऽह्नस्य डौ परे-'ऽहन् वा' स्यात् / व्यहनि, व्यह्नि, व्यते। सायाहनि, सायाह्नि, सायाह्ने / व्यहनि, व्यह्नि, व्यते // 50 // निय आम् / 1 / 4 / 51 // नियः परस्य 'डेराम्' स्यात् / नियाम्, ग्रामण्याम् // 51 // वाष्टन आः स्यादौ / 1 / 4 / 52 // अष्टनः स्यादौ परे ‘आ वा' स्यात् / अष्टाभिः, अष्टभिः / प्रियाष्टाः, प्रियाष्टा // अष्ट और्जस्-शसोः / 1 / 4 / 53 // अष्टनः कृताऽऽत्वस्य ‘जस्-शसोरौः' स्यात् / अष्टौ, अष्टौ // 53 // डति-ष्णः संख्याया लुप् / 1 / 4 / 54 // डति-ष-नान्तानां संख्यानाम् ‘जस्-शसोलुप्' स्यात् / कति, कति / षट्, षट् / पञ्च, पञ्च // 54 // नपुंसकस्य शिः / 1 / 455 // नपुंसकस्य जस्-शसोः 'शिः' स्यात् / कुण्डानि, पयांसि // 55 // औरीः / 11456 // नपुंसकस्य ‘औरीः' स्यात् / कुण्डे / पयसी // 56 // अतः स्यमोऽम् / 1 / 4 / 57 // अदन्तस्य नपुंसकस्य ‘स्यमोरम्' स्यात् / कुण्डम्, हे कुण्ड ! // 57 // . पञ्चतोऽन्यादेरनेकतरस्य दः / 1 / 4 / 58 // पञ्चपरिमाणस्य नपुंसकस्याऽन्यादेः ‘स्यमोदः' स्यात्, एकतरवर्जम् / अन्यत्, अन्यतरत्, इतरत्, कतरत्, कतमत् / अनेकतरस्येति किम् ? एकतरम् // अनतो लुप् / 14 / 59 // . Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् अनकारान्तस्य नपुंसकस्य 'स्यमोलुप्' स्यात् / कर्तृ, पयः / / 59 // जरसो वा / 1 / 4160 // जरसन्तस्य नपुंसकस्य ‘स्यमोलुंब् वा' स्यात् / अतिजरः, अतिजरसम्, अतिजरम् // 60 // नामिनो लुग वा 11461 // नाम्यन्तस्य नपुंसकस्य 'स्यमोलुंग या' स्यात् / हे वारे !, हे वारि ! / प्रियतिस्, प्रियत्रि कुलम् // 6 // वाऽन्यतः पुमांष्टादौ स्वरे / 1 / 4 / 62 // अन्यतो- विशेष्यवशानपुंसको नाम्यन्तष्टादी स्वरे परे 'वद् वा' स्यात् / ग्रामण्या ग्रामणिना कुलेन; कोंः कर्तृणोः कुलयोः / अन्यत इति किम् ? पीलुने फलाय / टादाविति किम्? शुचिनी कुलें / नपुंसक इत्येव कल्याण्यै स्त्रियै // 62 // दथ्यस्थिसक्थ्यक्ष्णोऽन्तस्याऽन् / 1 / 4 / 63 // एषां नपुंसकानां नाम्यन्तानामन्तस्य टादौ स्वरे परे अन् स्यात् / दध्ना, अतिदना / अस्ना, अत्यस्य्ना / सक्ना, अतिसक्ना / अक्ष्णा, अत्यक्ष्णा // 63 // ___ अनामस्वरे नोऽन्तः // 1 / 4 / 64 // नाम्यन्तस्य नपुंसकस्याऽऽम्वर्जे स्यादी स्वरे परे 'नोऽन्तः' स्यात् / वारिणी, वारिणः / कर्तृणी, कर्तृणः प्रियतिसृणः / अनामिति किम् ? वारीणाम् / स्वर इति किम् ? हे वारे ! / स्यादावित्येव-तौम्बुरवं चूर्णम् // 64 // स्वराच्छौ // 1 // 4 // 65 // शौ परे स्वरान्तानपुंसकात्परो 'नोऽन्तः' स्यात् / कुण्डानि / स्वरादिति किम् ? चत्वारि // 65 // पुटां प्राक् // 1 // 4 // 66 // Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 33 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् स्वरात् परा या धुड्जातिस्तदन्तस्य नपुंसकस्य शौ परे धुड्भ्य एव प्राग् 'नोऽन्तः' स्यात् / पयांसि, अतिजरांसि, काष्टतङ्क्षि / स्वरादित्येव- गोमन्ति / ___ोवा / 1 / 4 / 67 // र-लाभ्यां परा या धुड्जातिस्तदन्तस्य नपुंसकस्य शौ परे धुड्भ्य एव प्राक् 'नोन्तो वा' स्यात् / बहूर्जि, बहूर्जि / सुवल्ङ्गि, सुवल्गि / र्ल इति किम्? काटतक्षि / धुटामित्येव : सुफुल्लि // 67 // घुटि / 1 / 4 / 68 // निमित्तविशेषोपादानं विना, आपादपरिसमाप्तेर्यत्कार्यं वक्ष्यते तद् घुटि वेदितव्यम् // 68 // __ अचः / 1 / 4 / 69 // अञ्चतेर्धातोवुडन्तस्य धुटः प्राक् ‘नोन्तो' घुटि स्यात् / प्राङ्, अतिप्राङ्,प्राञ्चौ / प्राञ्चि कुलानि // 69 // ऋदुदितः / 1 / 470 // ऋदुदितो धुडन्तस्य घुटि परे धुटः प्राक् स्वरात्परो ‘नोन्तः' स्यात् / कुर्वन्, विद्वान्, गोमान् / घुटित्येव- गोमता // 70 // . . .. युज्रोऽसमासे 11471 // "युजूपी योगे" इत्यस्याऽसमासे धुडन्तस्य धुटः प्राक् घुटि 'नोन्तः' स्यात् / युङ्, युऔ / युञ्जि कुलानि / बहुयुङ् / असमास इति किम् ? अश्वयुक् / युज इति किम् ? “युजिंच समाधौ” युजमापन्ना मुनयः // 71 / / . अनडुहः सौ 11472 // अनडुहो धुडन्तस्य धुटः प्राक् सौ परे ‘नोन्तः' स्यात् / अनड्वान्, प्रियानड्वान् // 72 // Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् ओतो घुट चित्रगुः -शसा सुगाम् पुंसोः पुमन्स् // 11473 // पुंसोः 'पुमन्स्' घुटि स्यात् / पुमान्, पुमांसी, पुमांसः / प्रियपुमान्, प्रियपुमांसि // 73 // ओत औः / 1 / 474 // ओतो घुटि परे ‘औः' स्यात् / गौः, गावी, द्यौः, द्यावी, प्रियद्यावी / ओत इति किम् ? चित्रगुः // 4 // आ अम्-शसोऽता 111475 // ओतोऽम्-शसोरता सह 'आः' स्यात् / गाम् / सुगाम् / गाः। द्याम् / अतिद्याम् / द्याः / सुद्याः // 75 // पथिन-मथिनृभुक्षः सौ 11476 // एषां नान्तानामन्तस्य सौ परे ‘आः' स्यात् / पन्थाः, हे पन्थाः ! / मन्थाः, हे मन्थाः, ! / ऋभुक्षाः, हे ऋभुक्षाः ! / नान्तनिर्देशादिह न स्यात् . पन्थानमैच्छत् पथीः // 76 // ए: 1477 // पथ्यादीनां नान्तानामितो घुटि परे ‘आः' स्यात् / पन्थाः, पन्थानी, पन्थानः, पन्थानम्; सुपन्थानि कुलानि / मन्थाः / ऋभुक्षाः / नान्तनिर्देशाद्-एरभावाचेह न स्यात्- पथ्यौ, पथ्यः // 77 // थोन्थ् / 11478 // पथिन्-मथिनोन्तियोस्थस्य घुटि परे ‘न्य्' स्यात् / तथैवोदाहृतम् // 78 // इन् ङीस्वरे लुक् / / 4 / 79 // पथ्यादीनां नान्तानां ड्यामघुट्स्वरादौ च स्यादौ परे ‘इन् लुक्' स्यात् / सुपथी स्त्री कुले वा / पथः / सुमथी स्त्रीकुले वा / मथः / अनृभुक्षी सेना कुले वा। Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् ऋभुक्षः // 79 // वोशनसो नश्चामन्त्र्ये सौ 11480 // आमन्त्र्यवृत्तेरुशनसो ‘न-लुकी' सौ परे वा स्याताम् / हे उशनन् !, हे उशन !, हे उशनः! / आमन्त्र्य इति किम् ? उशना // 8 // उतोऽनडुच्चतुरो वः / 1 / 4 / 81 // आमन्त्र्यवृत्त्योरनडुच्चतुरोरुतः सौ परे 'वः' स्यात् / हे अनड्वन् ! / हे प्रियचत्वः ! / हे अतिचत्वः ! // 81 // वाः शेषे / 1 / 4 / 82 // .. आमत्र्यविहितात्सेरन्यो घुट शेषस्तस्मिन्परे अनडुच्चतुरोरुतो 'वाः' स्यात् / अनङ्वान्, अनड्वाही / प्रियचत्वाः, प्रियचत्वारौ / शेष इति किम् ? हे अनड्वन् ! / हे प्रियचत्वः ! // 82 // . सख्युरितोऽशावैत् / 1 / 4 / 83 // सख्युरिदन्तस्य शिवर्जे शेषे घुटि परे ‘ऐत्' स्यात् / सखायौ, सखायः, सखायम् / इत इति किम् ? सख्यौ स्त्रियौ / अशाविति किम् ? अतिसखीनि / शेष इत्येव- हे सखे ! // 83 // ... ऋदुशनस-पुरुदंशोऽनेहसश्च सेहः / 1 / 4 / 84 // ऋदन्तादुशनसादेः सख्युरितश्च परस्य शेषस्य ‘सेर्डाः' स्यात् / पिता, अतिपिता, कर्ता, उशना, पुरुदंशा, अनेहा, सखा ||84 // नि दीर्घः / 1 / 485 // शेषे घुटि परे यो. नस्तस्मिन् परे स्वरस्य 'दीर्घः' स्यात् / राजा, राजानौ, राजानः, राजानम् / वनानि / कणि / शेष इत्येव- हे राजन् ! // 85 // न्स्महतोः / / 4 / 86 // Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 36 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् / न्सन्तस्य महतश्च स्वरस्य शेषे घुटि परे 'दीर्घः' स्यात् / श्रेयान्, श्रेयांसौ / महान्, महान्तौ // 86 // इन्-हन-पूषाऽर्यम्णः शिस्योः / / 4 / 87 // इन्नन्तस्य हनादेश्च स्वरस्य शिस्योरेव परयो-'र्दीर्घः' स्यात् / दण्डीनि, नग्वीणि, दण्डी, स्रग्वी / भ्रूणहानि, भ्रूणहा / बहुपूषाणि, पूषा / स्वर्यमाणि, अर्यमा / शिस्योरेवेति किम् ? दण्डिनौ, वृत्रहणौ, पूषणौ, अर्यमणौ // 87 // . अपः / 114188 // अपः स्वरस्य शेषे घुटि परे 'दीर्घः' स्यात् / आपः स्वापौ // 8 // नि वा 1 / 4 / 89 // अपः स्वरस्य नागमे सति घुटि परे 'दीर्घो वा' स्यात् / स्वाम्पि, स्वम्पि / बह्वाम्पि, बह्वम्पि // 89 // अभ्वादेरत्वसः सौ 1 / 4 / 90 // अत्वन्तस्याऽसन्तस्य च भ्वादिवर्जस्य शेषे सौ परे 'दीर्घः' स्यात् / भवान्, यवमान्, अप्सराः / गोमन्तं स्थूलशिरसं वेच्छन्- गोमान् स्थूलशिराः / अभ्वादेरिति किम् ? पिण्डग्रः // 90 // . क्रुशस्तुनस्तृच् पुंसि / 1 / 4 / 91 // कुशो यस्तुन् तस्य शेषे घुटि परे ‘तृच्' स्यात्, पुंसि / क्रोष्टा, क्रोष्टारौ / पुंसीति किम् ? कृशक्रोष्टूनि वनानि // 91 // ___टादौ स्वरे वा 11492 // टादी स्वरादौ परे कुशस्तुनस्तृज् वा स्यात्, पुंसि / क्रोष्ट्रा,क्रोष्टुना; क्रोष्ट्रोः, क्रोष्ट्वोः // 12 // स्त्रियाम् / / 4 / 93 // Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 37 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् कुशः परस्य तुनः स्त्रीवृत्तेस्तृच् स्यात्, निर्निमित्त एव / क्रोष्ट्री, क्रोष्ट्रयौ, क्रोष्ट्रीभ्याम् / पञ्चक्रोष्टभी रथैः // 93 // इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितायां सिद्धहेमचन्द्राभिधानस्वोपज्ञशब्दानुशासन ___ लघुवृत्तौ प्रथमस्याध्यायस्य चतुर्थः पादः समाप्तः // 1 / 4 / / सोत्कण्ठमङ्गलगतैः कचकर्षणैश्च, वक्त्राब्जचुम्बननखक्षतकर्मभिश्च / श्रीमूलराजहतभूपतिभिर्विलेसुः, संख्येऽपि खेऽपि च शिवाश्च सुरस्त्रियश्च / / 4 / / xox अथ द्वितीयोऽध्यायः / (प्रथमः पादः) त्रि-चतुरस्तिसृ-चतसृ स्यादौ / 2 / 1 / 1 // स्त्रियामिति वर्त्तते / स्यादौ परे स्त्रीवृत्त्योस्त्रिचतुरोर्यथासंख्यम् ‘तिसृ-चतसृ' इत्येतौ स्याताम् / तिनः, चतनः; तिसृषु, चतसृषु / प्रियतिसा, प्रियचतसा ना / प्रियतिसृ कुलम्, प्रियत्रि कुलम् / स्यादाविति किम् ? प्रियत्रिकः, प्रियचतुष्कः // 1 // - ऋतो रः स्वरेऽनि / 2 / 12 // तिस-चतसृस्थस्य ऋतः स्वरादौ परे ‘रः' स्यात्, अनि- नविषयादन्यत्र / तिम्रः चतनः; प्रिंयतिम्रौ,प्रियचतम्रौ / स्वर इति किम् ? तिसृभिः, चतसृभिः / अनीति किम् ? तिसृणाम्, चतसृणाम् // 2 // जराया जरस वा / 2 / 1 // 3 // स्वरादौ स्यादौ परे जराया 'जरस् वा स्यात् / जरसौ जरसः / जरे, जराः / अतिजरसौ, अतिजरौ / अतिजरसम्, अतिजरम् कुलम् // 3 // Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 38 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् अपोऽझे / 2 / 1 // 4 // भादौ स्यादौ परे 'अपोऽद्' स्यात् / अद्भिः, स्वद्भ्याम् / भ इति किम् ? अप्सु // 4 // . आ रायो व्याने / 2 / 15 // व्यञ्जनादौ स्यादौ परे 'रैशब्दस्य आः' स्यात् / राः, रासु; अतिराभ्याम् कुलाभ्याम् / व्यञ्जन इति किम् ? रायः // 5 // युष्मदस्मदोः / 2 / 1 / 6 // व्यञ्जनादौ स्यादौ परे 'युष्मदस्मदोराः' स्यात् / त्वाम्, माम्; अतित्वाम्, अतिमाम्; युष्मासु, अस्मासु // 6 // ____टाइयोसि यः / 2 / 17 // टाङ्योस्सु परेषु 'युष्मदस्मदोर्यः' स्यात् / त्वया, मया; अतियुवया, अत्यावया; त्वयि, मयि; युवयोः, आवयोः / टाङ्योसीति किम् ? त्वत्, मत् // 7 // शेषे लुक् / 2 / 18 // यस्मिन्नायौ कृतौ ततोऽन्यः शेषः, तस्मिन् स्यादौ परे 'युष्मदस्मदोर्लुक्' स्यात् / युष्मभ्यम्, अस्मभ्यम्, अतित्वत्, अतिमत् / शेष इति किम् ? त्वयि, मयि // 8 // मोर्वा / 2 / 1 / 9 // शेषे स्यादौ परे 'युष्मदस्मदोर्मोलुंग वा' स्यात् / युवाम् युष्मान् वा आवाम् अस्मान् वाऽऽचक्षाणेभ्यो (णिचि विपि च लुकि च)- युष्मभ्यम्, युषभ्यम्; अस्मभ्यम्, असभ्यम् / / 9 // मन्तस्य युवाऽऽवौ द्वयोः / 2 / 110 // व्यर्थवृत्त्योर्युष्मदस्मदोर्मान्तावयवस्य स्यादौ परे यथासंख्यम् 'युव-आव' इत्येतौ स्याताम् / युवाम्, आवाम्; अतियुवाम्, अत्यावाम; अतियुवासु, अ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 39 त्यावासु / मन्तस्येति किम् ?. युवयोः आवयोरित्यत्र दस्य यत्वं यथा स्यात् / स्यादावित्येव- युवयोः पुत्रो युष्मत्पुत्रः // 10 // त्व-मौ प्रत्ययोत्तरपदे चैकस्मिन् / 2 / 1 / 11 // स्यादौ प्रत्ययोत्तरपदयोश्च परयोरेकार्थवृत्त्योर्युष्मदस्मदोर्मान्तावयवस्य यथासंख्यम् ‘त्व-म' इत्येतौ स्याताम् / त्वाम्, माम्; अतित्वाम्, अतिमाम्; अतिवासु, अतिमासुः त्वदीयः, मदीयः, त्वत्पुत्रः, मत्पुत्रः / प्रत्ययोत्तरपदे चेति किम् ? अधियुष्मद्, अध्यस्मद् / एकस्मिन्निति किम् ? युष्माकम्, अस्माकम् // 11 // . त्वमहं सिना प्राक् चाऽकः / 2 / 112 // सिना सह युष्मदस्मदोर्यथासंख्यम् ‘त्वम्-अहमौ' स्याताम्, तौ चा-ऽक्प्रसङ्गेऽकः प्रागेव / त्वम्, अहम्; अतित्वम्, अत्यहम् / प्राक्चाक इति किम् ? त्वकम्, अहकम् // 12 // यूयं वयं जसा / 2 / 113 // जसा सह युष्मदस्मदोर्यथासंख्यम् ‘यूयम्-वयमौ' स्याताम् / यूयम्, वयम्; प्रिययूयम्, प्रियवयम् / प्राक्वाक इत्येव- यूयकम्, वयकम् // 13 // . तुभ्यं मह्यं ड्या / 2 / 114 // झ्या सह युष्मदस्मदोर्यथासंख्यम् 'तुभ्यम्-मह्यमौ' स्याताम् / तुभ्यम्, मह्यम्; प्रियतुभ्यम्, प्रियमह्यम् / प्राक्वाक इत्येव- तुभ्यकम्, मह्यकम् // 14 // तव मम ङसा / 2 / 1115 // असा सह युष्मदस्मदोर्यथासंख्यम् 'तव-ममौ' स्याताम् / तव, मम; प्रियतव, प्रियमम / प्राक्चाक इत्येव- तवक, ममक // 15 // अमौ मः / 2 / 1 / 16 // Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -- 40 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् युष्मदस्मद्भ्यां परयोरम् औ इत्येतयोर्म इति स्यात् / त्वाम्, माम्; अतित्वाम्, अतिमाम्; युवाम्, आवाम्; अतियुवाम्, अत्यावाम् // 16 // . ' शसो नः / 219117 // युष्मदस्मद्भ्यां परस्य 'शसो न' इति स्यात् / युष्मान्, अस्मान् प्रियत्वान्, प्रियमान् // 17 // अभ्यम् भ्यसः / 2 / 1 / 18 // युष्मदस्मद्भ्यां परस्य चतुर्थीभ्यतोऽभ्यं स्यात् / युष्मभ्यम्, अस्मभ्यम्; अतियुवभ्यम्, अत्यावभ्यम् // 18 // उसेश्चाऽद् / 2 / 1 / 19 // युष्मदस्मद्भ्यां परस्य ङसेः पञ्चमीभ्यसश्च ‘अद्' इति स्यात् / त्वद्, मद्; अतियुवद्, अत्यावद्; युष्मद्, अस्मद्; अतित्वद्; अतिमद् // 19 // आम आकम् / 2 / 1 // 20 // युष्मदस्मद्भ्यां परस्य ‘आम आकम्' स्यात् / युष्माकम्, अस्माकम्, अतियुवाकम्, अत्यावाकम्; युष्मानस्मान् वाऽऽचक्षाणानाम् युष्माकम् , अस्माकम् युषाकम्, असाकम् // 20 // पदाद् युगविभक्त्यैकवाक्ये वसू-नसौ बहुत्वे / 2 / 1 / 21 // बहुत्वविषयया समविभक्त्या सह पदात् परयोर्युष्मदस्मदोर्यथासंख्यम् 'वस्नसौ वा' स्याताम्, तच्चेत्पदं युष्मदस्मदी चैकस्मिन् वाक्ये स्तः / अन्वादेशे नित्यं विधानादिह विकल्पः / एवमुत्तरसूत्रत्रयेऽपि / धर्मो वो रक्षतु, धर्मो नो रक्षतु, धर्मो युष्मान् रक्षतु, धर्मोऽस्मान् रक्षतु / एवं चतुर्थी- षष्ठीभ्यामपि / पदादिति किम् ? युष्मान् पातु / युग्विभक्त्येति किम् ? तीर्थे यूयं यात / एकवाक्य इति किम् ? अतियुष्मान् पश्य, ओदनं पचत, युष्माकं भविष्यति // 21 // द्वित्वे वाम-नौ / 2 / 1 / 22 // . Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 41 पदात् परयोर्युष्मदस्मदोर्द्वित्वविषयया युग्विभक्त्या सह, यथासंख्यम् ‘वाम्-नौ' इत्येतौ वा स्याताम्, एकवाक्ये / धर्मो वां पातु, धर्मो युवां पातु; धर्मो नौ पातु, धर्म आवां पातु / एवं चतुर्थी-षष्ठीभ्यामपि // 22 // 3-ङसा ते-मे / 2 / 1 / 23 // डेङस्भ्यां सह पदात् परयोर्युष्मदस्मदोर्यथासंख्यम् 'ते-मे' इत्येतौ वा स्याताम्, एकवाक्ये / धर्मस्ते दीयते, धर्मस्तुभ्यं दीयते; धर्मो मे दीयते, धर्मो मह्यं दीयते; धर्मस्ते स्वम्, धर्मस्तव स्वम्; धर्मो मे स्वम्, धर्मो मम स्वम् // 23 // अमा त्वा-मा / 2 / 1 // 24 // अमा सह पदात् परयोर्युष्मदस्मदोर्यथासंख्यम् ‘त्वा-मा' इत्येतौ वा स्याताम्, एकवाक्ये / धर्मस्त्वा पातु, धर्मस्त्वां पातु: धर्मो मा पातु, धर्मो मां पातु // 24 // __असदिवाऽऽमन्त्र्यं पूर्वम् / 2 / 1125 // आमन्त्र्यार्थं पदं युष्मदस्मद्भ्यां पूर्वमसदिव स्यात् / जना ! युष्मान् पातु धर्मः, साधू ! युवां पातु धर्मः; साधो ! त्वां पातु तपः / पूर्वमिति किम् ? मयैतत्सर्वमाख्यातं युष्माकं मुनिपुङ्गवाः // 25 // जस्विशेष्यं वाऽऽमन्त्र्ये / 2 / 1 // 26 // युष्मदस्मद्भ्यां पूर्वं जसन्तमामन्त्र्यार्थं विशेष्यवाच्याऽऽमन्त्र्ये पदेऽर्थात् तद्विशेषणे परे ऽसदिव वा' स्यात् / जिनाः ! शरण्या युष्मान् शरणं प्रपद्ये, जिनाः ! शरण्या वः शरणं प्रपद्ये / जिनाः ! शरण्या अस्मान् रक्षत, जिनाः ! शरण्या नो रक्षत / जसिति किम् ? साधो ! सुविहित ! वोऽथो शरणं प्रपद्ये, साधो ! सुविहित ! नोऽथो रक्ष / विशेष्यमिति किम् ? शरण्याः साधवो ! युष्मान् शरणं प्रपद्ये / आमन्त्र्य इति किम् ? आचार्या ! युष्मान् शरण्याः शरणं प्रपद्ये / अर्थात् तद्विशेषणभूत इति किम् ? आचार्या उपाध्याया युष्मान् शरणं प्रपद्ये // 26 // Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 42 श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् नान्यत् / 2 / 1 // 27 // युष्मदस्मद्भ्यां पूर्वं जसन्तादन्यदामन्त्र्यं विशेष्यमामन्त्र्ये तद्विशेषणे परेऽसदिव न' स्यात् / साधो सुविहित ! त्वा शरणं प्रपद्ये / साधो सुविहित ! मा रक्ष // 27 // पादायोः / 2 / 128 // नियतपरिमाणमात्राक्षरपिण्डः पादः / पदात् परयोः पादस्यादिस्थयोर्युष्मदस्मदो ‘र्वस्-नसादिर्न स्यात् / . ___ “वीरो विश्वेश्वरो देवो युष्माकं कुलदेवता / स एव नाथो भगवानस्माकं पापनाशनः // 1 // " पादाद्योरिति किम् ? “पान्तु वो देशनाकाले जैनेन्द्रा दशनांशवः / भवकूपपतज्जन्तुजातोद्धरणरज्जवः // 2 // " // 28 // चाऽह-ह-वैवयोगे / 2 / 1129 // एभिर्योगे पदात् परयोर्युष्मदस्मदो-'र्वस्-नसादिर्न' स्यात् / ज्ञानं युष्मांश्च रक्षतु, अस्मांश्च रक्षतु / एवं अह-ह-वा-एवैरप्युदाहार्यम् / योग इति किम् ? ज्ञानञ्च शीलञ्च ते स्वम् // 29 // दृश्यथैश्चिन्तायाम् / 2 / 1 // 30 // दृशिना समानार्थेश्चिन्तार्थैर्धातुभिर्योगे युष्मदस्मदो-स्-नसादिर्न' स्यात् / जनो युष्मान् सन्दृश्यागतः, जनोऽस्मान् सन्दृश्यागतः / जनो युवां समीक्ष्यागतः, जन आवां समीक्ष्यागतः / जनस्त्वामपेक्षते, जनो मामपेक्षते / सर्वत्र मनसा चिन्तनं दृश्यर्थानामर्थः / दृश्यथैरिति किम् ? जनो वो मन्यते / चिन्तायामिति किम् ? जनो वः पश्यति // 30 // . नित्यमन्वादेशे / 2 / 1 / 31 // . Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 43 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् किञ्चिद्विधातुं कथितस्य पुनस्न्यद्विधातुं कथनमन्वादेशः, तस्मिन् विषये पदात् परयोर्युष्मदस्मदोस्-नसादिनित्यं स्यात् / यूयं विनीतास्तद्वो गुरवो मानयन्ति, वयं विनीतास्तन्नो गुरवो मानयन्ति; धनवांस्त्वमथो त्वा लोको मानयति, धनवानहमयो मा लोको मानयति // 31 // . सपूर्वात् प्रथमान्ताद् वा / 2 / 1 // 32 // विधमानपूर्वपदात् प्रथमान्तात् पदात् परयोर्युष्मदस्मदोरन्वादेशे 'वस्-नसादिर्वा' स्यात् / यूयं विनीतास्तद् गुरवो वो मानयन्ति, तद् गुरवो युष्मान् मानयन्ति / वयं विनीतास्तद् गुरवो नो मानयन्ति, तद् गुरवोऽस्मान् मानयन्ति / युवां सुशीलौ तज्ज्ञानं वां दीयते, तज्ज्ञानं युवाभ्यां दीयते / आवां सुशीली तज्ज्ञानं नौ दीयते, तज्ज्ञानमावाभ्यां दीयते // 32 // त्यदामेनदेतदो द्वितीया-टौस्यवृत्त्यन्ते / 2 / 1 // 33 // त्यदादीनामेतदो द्वितीयायां टायामोसि च परेऽन्वादेशे ‘एनद्' स्यात्, न तु वृत्त्यन्ते / उद्दिष्टमेतदध्ययनमथो एनदनुजानीत, एतकं साधुमावश्यकमध्यापय अयो एनमेव सूत्राणि / अत्र साकः / एतेन रात्रिरधीता अथो एनेनाहरप्यधीतम् / एतयोः शोभनं शीलमथो एनयोर्महती कीर्तिः / त्यदामिति किम् ? संज्ञायामेतदं संगृहाण अथो एतदमध्यापय / अवृत्त्यन्त इति किम् ? अयो परमैतं पश्य // 33 // इदमः / 2 / 1134 // त्यदादेरिदमो द्वितीया-टौसि परेऽन्वादेशे ‘एनत्' स्यात्, अवृत्त्यन्ते / उद्दिएमिदमध्ययनमयो एनदनुजानीत / अनेन रात्रिरधीता अथो एनेनाहरप्यधीतम् / अनयोः शोभनं शीलम् अथो एनयोर्महती कीर्तिः // 34 // अद् व्यञ्जने / 2 / 1 // 35 // त्यदादेरिदमो व्यञ्जनादौ स्यादौ परेऽन्वादेशे 'अः' स्यात्, अवृत्त्यन्ते / इम Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 44 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् काभ्यां शैक्षकाभ्यां रात्रिरधीता अथो आभ्यामहरप्यधीतम् / इमकेषु अयो एषु / “अनग्" इति वक्ष्यमाणादिह साक एव विधिः // 35 // अनन् / 2 / 1136 // त्यदादेर्व्यञ्जनादौ स्यादौ परेऽग्वर्ज इदम् अः' स्यात् / आभ्याम्, आभिः, एषु, आसु / अनगिति किम् ? इमकाभ्याम् / त्यदामित्येव- अतीदम्भ्याम् // 36 // ___टौस्यनः / 2 / 1 // 37 // त्यदां टायामोसि च परे 'ऽनक इदमोऽनः स्यात् / अनेन, अनया, अनयोः, अनयोः / त्यदामित्येव- प्रियेदमा / अनक, इत्येव- इमकेन // 37 / / अयमियम् पुंस्त्रियोः सौ / 2 / 1138 // त्यदां सौ परे इदमः पुंस्त्रियोर्यथासंख्यम् 'अयमियमी' स्याताम् / अयं ना | इयं स्त्री / त्यदामित्येव- अतीदं ना स्त्री वा // 38 // दो मः स्यादौ 1211139 // त्यदां स्यादौ परे 'इदमो दो मः' स्यात् / इमौ, परमेमी, इमकाभ्याम् / त्यदामित्येव- प्रियेदमौ // 39 // किमः कस्तसादौ च / 2 / 1 // 40 // त्यदां स्यादौ तसादौ च प्रत्यये परे 'किमः कः' स्यात् / कः, साकोऽपि कः। कदा, कर्हि / तसादी चेति किम् ? किन्तराम् / त्यदामित्येव- प्रियकिमी / / 4 / / आढेरः / 2 / 1141 // द्विशब्दमभिव्याप्य त्यदां स्यादौ तसादौ च परे ‘अः' स्यात् / स्यः, त्यौ, द्वौ ततः, तदा / त्यदामित्येव- अतितदौ // 41 // तः सौ सः / 2 / 1142 // . आद्वेस्त्यदां सौ परे 'तः सः' स्यात् / स्यः, स्या, सः, सा, एषा / त्यदामित्येव Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 45 प्रियत्यत् // 42 // अदसो दः सेस्तु डौ / 2 / 1 / 43 // त्यदां सौ परे ‘अदसो दः सः' स्यात्, ‘सेस्तु डौ' / असौ, असकौ, हे असौ !, हे असकौ ! / त्यदामित्येव- अत्यदाः // 43 // असुको वाऽकि / 2 / 1 / 44 // त्यदां सौ परे ‘अदसोऽकि सत्यसुको वा' स्यात् / असुकः, असकौ; हे असुक ! हे असकौ ! // 44 // मोऽवर्णस्य / 2 / 1 / 45 // अवर्णान्तस्य त्यदामदसो ‘दो मः' स्यात् / अमू नरौ स्त्रियौ कुले वा / अमी, अमूदृशः / अवर्णस्येति किम् ? अदः कुलम् // 45 // . वाऽद्रौ / 2 / 1146 // अदसोऽद्रावन्ते सति 'दो म् वा' स्यात् / अदमुयङ्, अमुव्यङ्, अमुमुयङ्, अदव्यङ् // 46 // मादुवर्णोऽनु / 2 / 1147 // अदसो मः परस्य वर्णस्य ‘उवर्णः' स्यात्, अनु- पश्चात्कार्यान्तरेभ्यः / अमुम्, अमू, अमुमुयङ् / अन्विति किम् ? अमुष्मै, अमुष्मिन् // 47 // . प्रागिनात् / 2 / 1148 // अदसो मः परस्य वर्णस्येनादेशात् प्राक् ‘उवर्णः' स्यात् / अमुना / इनादिति किम् ? अमुया // 48 // .. बहुष्वेरीः / 2 / 1 / 49 // बह्वर्थवृत्तेरदसो मः परस्य ‘एत ई:' स्यात् / अमी, अमीषु, / एरिति किम् ? अमूः स्त्रियः / मादित्येव- अमुके // 49 // Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 46 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् / धातोरिवर्णोवर्णस्येयुत् स्वरे प्रत्यये / 2 / 1 / 50 // धातोरिवर्णोवर्णयोः स्वरादौ प्रत्यये परे यथासंख्यम्-'इयुवौ" स्याताम् / नियौ लुवौ, अधीयते, लुलुवुः / प्रत्यये इति किम् ? न्यर्थः, ल्वर्थः / नयनम नायक इत्यादौ तु परत्वाद् गुण-वृद्धी // 50 // इणः / 2 / 1151 // इणो धातोः स्वरादी प्रत्यये परे ‘इय्' स्यात् / यापवादः / ईयतुः, ईयुः // 51 // संयोगात् / 2 / 1152 // धातोरिवर्णोवर्णयोः संयोगात्परयोः स्वरादौ प्रत्यये परे ‘इयुवौ' स्याताम् यवक्रियौ, कटप्रुवौ, शिश्रियुः // 52 // भ्रू-श्नोः / 2 / 1153 // भ्रू-श्नोरुवर्णस्य संयोगात् परस्य स्वरादौ प्रत्यये परे ‘उन्' स्यात् / ध्रुव आप्नुवन्ति / संयोगादित्येव- चिन्वन्ति // 53 // स्त्रियाः / 2 / 1154 // स्त्रिया इवर्णस्य स्वरादी प्रत्यये परे ‘इय्' स्यात् / स्त्रियौ / अतिस्त्रियौ // 54 // वाऽम्- शसि / 2 / 1155 // स्त्रिया इवर्णस्याऽम्- शसोः परयोरिय् वा स्यात् / स्त्रियं, स्त्रीम्स्त्रियः स्त्रीः // 55 // योऽनेकस्वरस्य / 2 / 1156 // अनेकस्वरस्य धातोरिवर्णस्य स्वरादी प्रत्यये परे ‘यः' स्यात् / चिच्युः, निन्युः पतिमिच्छति- पत्यि // 56 // स्यादौ वः / 2 / 1157 // . अनेकस्वरस्य धातोरुवर्णस्य स्वरादी स्यादौ परे 'वः'. स्यात् / वसुमिच्छन्तौ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 47 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् वस्वी / स्यादाविति किम् ? लुलुवुः // 57 / / क्विवृत्तेरसुधियस्तौ / 2 / 1158 // क्विबन्तेनैव या वृत्तिः- समासस्तस्याः सुधीशब्दादन्यस्याः सम्बन्धिनो धातोरिवर्णोवर्णस्य स्वरादौ स्यादौ परे तौ-'य् व्' इत्येतौ स्याताम् / उन्यौ, ग्रामण्यौ, सुल्वः, खलप्वः / क्विबिति किम् ? परमौ नियौ- परमनियौ / वृत्तेरिति किम् ? नियौ कुलस्य / असुधिय इति किम्- सुधियः // 58 // दृन-पुन-वर्षा-कारैर्भुवः / 2 / 1159 // दृनादिभिः सह या क्विब्बृत्तिस्तत्सम्बन्धिन एव भुवो धातोरुवर्णस्य स्वरादौ स्यादौ परे 'वः' स्यात् / दृन्भ्वौ, पुनर्वी, वर्षाभ्वः, कारभ्वः / दृनादिभिरिति किम् ? प्रतिभुवौ // 59 // ण-षमसत्परे स्यादिविधौ च / 2 / 1 / 60 // इतः सूत्रादारभ्य यत्परं कार्यं विधास्यते तस्मिन् स्याद्यधिकारविहिते च पूर्वस्मिन्नपि कर्त्तव्ये ‘णत्वं षत्वं चाऽसद्-' असिद्धं स्यात्, एतत्सूत्रनिर्दिष्टयोश्च ण-षयोः परे थे णोऽसन् / पूष्णः, तक्ष्णः, पिपठीः, अर्वाणौ, सीषि / असत्पर इत्यधिकारो "रात्सः" (2 / 1 / 90) इति, यावत् / स्यादिविधौ चेति तु “नोादिभ्यः” (2 / 1 / 99) इति // 60 // क्तादेशोऽषि / 2 / 161 // केनोपलक्षितस्य तस्यादेशः षादन्यस्मिन् परे पूर्वस्मिंश्च स्यादिविधावसन् स्यात् / क्षामिमान्, लून्युः / अषीति किम् ? वृक्णः // 61 // ष-ढोः कस्सि / 2 / 1162 // से परे 'ष-ढोः कः' स्यात् / पेक्ष्यति, लेक्ष्यति // 62 // . वादे मिनो दीर्घो ऊर्व्यञने / 2 / 1 / 63 // Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 48 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् भ्वादेर्धातोर्यो र-वौ तयोः परयोस्तस्यैव 'नामिनो दीर्घः' स्याद् व्यञ्जने हूर्छा, आस्तीर्णम्, दीव्यति / भ्वादेरिति किम् ? कुर्कुरीयति, दिव्यति // 63 / पदान्ते / 2 / 1 / 64 // पदान्तस्थयोवदिर्वोः परयोभ्वदि मिनो 'दीर्घः' स्यात् / गीः, गीरर्थः पदान्त इति किम् ? गिरः, लुवः // 64 // __न यि तद्धिते / 2 / 1 / 65 // यादौ तद्धिते परे यौ झै तयोः परयो मिनो 'दी? न' स्यात् / धुर्यः / यीति किम् ? गीर्वत् / तद्धित इति किम् ? गीर्यति, गीर्यते // 65 // कुरुच्छुरः / 2 / 1 // 66 // कुरुच्छुरो मिनो रे परे ‘दी? न' स्यात् / कुर्यात्, छुर्यात् / कुर्वित्युकार किम् ? कुरत् शब्दे- कूर्यात् // 66 // मो नो म्वोश्च / 2 / 1 / 67 // मन्तस्य धातोरन्तस्य पदान्तस्थस्य म्वोश्च परयोनः स्यात् / प्रशान्, प्रशाभ्याम्, जङ्गन्मि, जङ्गन्वः // 67 / / संस्-ध्वंस्-क्वस्सनडुहो दः / 2 / 1 / 68 // संस्-ध्वंसोः क्वस्प्रत्ययान्तस्य च सन्तस्य अनडुहश्च पदान्तस्थस्य ‘दः' स्यात् उखानद्, पर्णध्वद्, विद्वत् कुलम् / स्वनडुद् / क्वस्सिति द्विसकारपाठादि मा भूत्- विद्वान् // 68 // ऋत्विज्-दिश-दृश्-स्पृश्-सज्-दधृषुष्णिहो गः / 2 / 1 / 69 // एषां पदान्तस्थानाम् ‘गः' स्यात् ।ऋत्विग, दिग्, दृग, अन्यादृग, घृतस्पृग स्रग्, दधृग, उष्णिम् // 69 // न शो वा / 2 / 170 // भ्याम्, जसंस्-ध्वंम् च सन्तस्य अ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 49 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् नशः पदान्ते 'ग् वा' स्यात् / जीवनग्, जीवनड् // 70 // . युजञ्च-क्रुञ्चो नो ङः / 2 / 171 // एषां नस्य पदान्ते 'ङ्' स्यात् / युङ्, प्राङ्, क्रुङ् // 71 // सो रुः / 2 / 1172 // पदान्ते ‘सो रुः' स्यात् / आशीः, वायुः // 72 / / . सजुषः / 2 / 1173 // पदान्ते ‘सजुषो रुः' स्यात् / सजूः, सर्वत् // 73 // अह्नः / 2 / 174 // . अनः पदान्ते ‘रुः' स्यात् / हे दीर्घाहो निदाघ ! दीर्घाहा निदाघः // 74 // रो लुप्यरि।२।१७५॥ अरेफे परे पदान्ते अह्नो लुपि सत्याम् ‘रः' स्यात् / अहरधीते, अहर्दत्ते / लुपीति किम् ? हे दीर्घाहोऽत्र / अरीति किम् ? अहोरूपम् // 75 / / धुटस्तृतीयः / 2 / 176 // पदान्ते धुटां तृतीयः स्यात् / वाग्, वाग्भिः, अग्भिः // 76 // ग-ड-द-बादेश्चतुर्थान्तस्यैकस्वरस्याऽऽदेश्चतुर्थः - स्वोश्च प्रत्यये / 2 / 177 // ग-ड-द-बादेश्चतुर्थान्तस्यैकस्वरस्य 'धातुरूपशब्दावयवस्यादेश्चतुर्थः स्यात्, पदान्ते सादी ध्वादौ च प्रत्यये / पर्णघुट, तुण्डिभमाचक्षाणः- तुण्ढिप् / एवं गर्द्धप्, धर्मभुत्, निघोक्ष्यते, न्यघूवम्, धोक्ष्यते, अधुग्ध्वम्, भोत्स्यते- अभुद्ध्वम् / गडदबादेरिति किम् ? अजअप् / एकस्वरस्येति किम् ? दामलिट् // 77 // धागस्त-थोश्च / 2 / 1178 // धागचतुर्थान्तस्य दादेरादेर्दस्य तथोः सध्योश्च प्रत्यययोः परयोश्चतुर्थः स्यात् / Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 50 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् धत्तः, धत्थः, धत्से, धद्ध्वे / तथोश्चेति किम् ? दध्वः / चतुर्थान्तस्येत्येवदधाति // 7 // अधश्चतुर्थात् तथोधः / 2 / 179 // चतुर्थात्परयोर्धारूपवर्जाद्धातोर्विहितयो- 'स्तथोर्धः' स्यात् / अदुग्ध, अदुग्धाः / अलब्ध, अलब्धाः / अध इति किम् ? धत्तः, धत्थः / विहितविशेषणं किम् ? ज्ञानभुत्त्वम् // 79 // नाम्यन्तात् परोक्षायतन्याशिषो धो ढः / 2 / 1 / 80 // रान्तानाम्यन्ताच्च धातोः परासां परोक्षाद्यतन्याशिषाम् 'धो ढः' स्यात् / तुष्टुवे अतीवम्, तीर्षीदवम्, अदिवम् चेषीदवम् / म्यिन्तादिति किम् ? अपग्ध्वम्, आसिध्वम् // 8 // हान्तस्थाञीड्भ्यां वा / 2 / 1181 // हादन्तस्थायाश्च पराओरिटश्च परासां परोक्षाद्यतन्याशिषाम् 'धो द् वा' स्यात् / अग्राहिवम्; अग्राहिध्वम्; ग्राहिषीढ्वम्, ग्राहिषीध्वम् / अनायित्वम्, अनायिध्वम् / नायिषीदवम्, नायिषीध्वम् / अकारिद्वम्, अकारिध्वम् / अलाविवम्, अलाविध्वम् / जगृहिवे, जगृहिध्वे / आयिढ्वम्, आयिध्वम् / हान्तस्थादिति किम् ? घानिषीध्वम्, आसिषीध्वम् // 81 // हो धुट्-पदान्ते / 2 / 1182 // धुटि प्रत्यये पदान्ते च ‘हो ' स्यात् / लेढा, मधुलिट्, गुडलिण्मान् / धुट्पदान्त इति किम् ? मधुलिहौ / / 82 // भ्वादेददिर्घः / 2 / 1 / 83 // भ्वादेर्धातोर्यो दादिरवयवस्तस्य हो धुटि प्रत्यये परे पदान्ते च 'घः' स्यात् / दोग्धा, धोक्ष्यति, अधोक्, गोधुक् / भ्वादेरिति किंम् ? दामलिट् // 83 // मुह-द्रुह-स्नुह-स्निहो वा / 2 / 1184 // Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 51 एषां हो धुटि प्रत्यये पदान्ते च 'घ' वा स्यात् / मोग्धा, मोढा; उन्मुक्, उन्मुट्, / द्रोग्धा, द्रोढा; मित्रध्रुक्, मित्रध्रुट् / स्नोग्धा, स्नोढा; उत्स्नुक्, उत्स्नुट् / स्नग्धा, स्नेढा; चेलस्निक्, चेलस्निट् // 84 // नहाहोर्ध-तौ / 2 / 185 // नहेबूस्थानाऽऽहश्च धातो) धुटि प्रत्यये पदान्ते च यथासंख्यम् ‘ध-तौ' स्याताम् / नद्धा, उपानद्भ्याम्, आत्थ // 85 // च-जः क-गम / 2 / 1186 // धुटि प्रत्यये पदान्ते च च-जोः ‘क-गौ' स्याताम् / वक्ता, वाक्, त्यक्ता, अर्द्धभाक् // 86 // यज-सृज-मृज-राज-भ्राज-भ्रस्ज-व्रस्व-पब्रिाजः शः षः / 2 / 187 // यजादीनां धातूनां च-जोः शस्य च धुटि प्रत्यये पदान्ते च ‘षः' स्यात् / यष्टा, देवेट; स्रष्टा, तीर्थसृट; मार्टा, कंसपरिमृट; राष्टिः, सम्राट् भ्राष्टिः, विभ्राट्; प्रथा, धानाभृट् व्रष्टा, मूलवृद; परिवाद; लेष्टा, प्रष्टा, शब्दप्राट् / यजादिसाहचयच्छिोऽपि धातोरेव स्यात्, इह मा भूत्- निज्भ्याम् / चज इत्येव- वृक्षवृश्चमाचष्टे- वृक्षव् // 87 // . संयोगस्यादौ स्कोर्लुक् / 2 / 188 // धुट्प्रत्यये पदान्ते च संयोगादिस्थयोः ‘स्को क्' स्यात् / लग्नः, साधुलक्; वृक्णः, मूलवृदः तष्टः, काष्ठतट् // 8 // पदस्य / 2 / 1189 // पदस्य 'संयोगान्तस्य लुक्' स्यात / पुमान्, पुंभिः, महान् / पदस्येति किम् ? स्कन्वा // 89 // Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 52 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् रात् सः / 2 / 1190 // पदस्य संयोगान्तस्य यो रस्ततः परस्य ‘सस्यैव लुक्' स्यात् / चिकीः, कटचिकीः / स एवेति किम् ? ऊ, न्यमा // 90 // . नाम्नो नोऽननः / 2 / 1 / 91 // पदान्ते नाम्नो 'नस्य लुक्' स्यात्, स चेदह्नो न स्यात् / राजा, राजपुरुषः / अनह्न इति किम् ? अहरेति // 91 / / नाऽऽमन्त्र्ये / 2 / 1192 // आमन्त्र्यार्थस्य नाम्नो 'नस्य लुक् न' स्यात् / हे राजन् ! // 92 // कीबे वा / 2 / 1193 // आमन्त्र्यार्थस्य नाम्नः कीबे ‘नस्य लुग्वा' स्यात् / हे दाम !, हे दामन् ! // 93 / / ___मावर्णान्तोपान्तापञ्चमवर्गान् मतोर्मो वः / 2 / 1194 // मावर्णी प्रत्येकमन्तोपान्तौ यस्य तस्मात् पञ्चमवर्जवर्गान्ताच्च नाम्नः परस्य 'मतोर्मो वः' स्यात् / किंवान्, शमीवान्, वृक्षवान्, मालावान्, अहर्वान्, भास्वान्, मरुत्वान् // 14 // नाम्नि / 2 / 1195 // संज्ञायाम् ‘मतोर्मो वः' स्यात् / अहीवती मुनीवती नद्यौ // 15 // चर्मण्वत्यष्ठीवच्चक्रीवत्-कक्षीवद्-रुमण्वत् / 2 / 1 / 96 // एते मत्वन्ताः ‘संज्ञायां निपात्यन्ते' / चर्मण्वती नाम नदी, अष्ठीवान् जानुः, चक्रीवान् खरः, कक्षीवान् ऋषिः, रुमण्वान् गिरिः // 96 // उदन्वानब्धौ च / 2 / 197 // अब्धौ- जलाधारे नाम्नि च मतौ 'उदन्वान् निपात्यते' / उदन्वान् घटः, उदन्वान् समुद्रः, ऋषिः, आश्रमश्च // 97 // Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 53 - राजन्वान् सुराज्ञि / 2 / 1 / 98 // सुराजकेऽर्थे 'राजन्वान्' मतौ निपात्यते / राजन्वान् देशः, राजन्वत्यः प्रजाः // 98 // नोादिभ्यः / 2 / 1 / 99 // ऊर्यादिभ्यो ‘मतोर्मो वो' न स्यात् / ऊर्मिमान्, दल्मिमान् इत्यादि // 99 // मास-निशाऽऽसनस्य शसादौ लुग्वा / 2 / 1 / 100 // शसादौ स्यादावेषाम् ‘लुग्वा' स्यात् / मासः, मासान् / निशः निशाः / / आसनि, आसने, आस्नि // 100 / दन्तपादनासिकाहृदयासृग्यूषोदकदोर्यकृच्छकृतो दत्पन्नस्हृदसन्यूषन्नुदन्दोषन्यकञ्छकन् वा / 2 / 1 / 101 // शसादी स्यादौ दन्तादीनां यथासंख्यम् ‘दत्-इत्यादयो वा' स्युः / दतः, दन्तान् / पदः, पादान् / नसा, नासिकया / हृदि, हृदये / अस्ना, असृजा / यूष्णा, यूषेण / उद्ना, उदकेन / दोष्णा, दोषा / यक्ना, यकृता / शक्ना, शकृता / / 101 / / य-स्वरे पादः पदणि-क्य-घुटि / 2 / 1 / 102 // णि-क्य-घुट्वर्जे यादौ स्वरादौ च प्रत्यये ‘पाक्न्तस्य पद्' स्यात् / वैयाघ्रपद्यः, द्विपदः पश्य / पादयतेः क्विपि पाद्- पदी कुले / य स्वर इति किम् ? द्विपाद्भ्याम् / अणिक्यघुटीति किम् ? पादयति / व्याघ्रपाद्यति, द्विपादौ // 102 // ___ उदच उदीच् / 2 / 1 / 103 // अणिक्यघुटि यस्वरे ‘उदच उदीच्' स्यात् / उदीच्यः, उदीची / अणिक्यघुटित्येव- उदयति, उदच्यति, उदञ्चः / उदच इति किम् ? नि मा भूत्उदश्चा, उदञ्चे // 103 // Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् / - अच्च् प्राग दीर्घश्च / 2 / 1 / 104 // अणिक्यघुटि यस्वरादौ प्रत्यये-'ऽच् चः' स्यात्, प्राक्स्वरस्य दीर्घः / प्राच्यः, दधीचा / अणिक्यघुटित्येव- दध्ययति, दध्यच्यति, दध्यञ्चः / अचिति किम् ? नि मा भूत्- साध्वञ्चा // 104 // क्वसुष्मतौ च / 2 / 1 / 105 // अणिक्यघुटि य-स्वरे मतौ च प्रत्यये 'क्वस् उष्' स्यात् / विदुष्यः, विदुषा, विदुष्मान् / अणिक्यघुटीत्येव- विद्वयति, विद्वस्यति, विद्वांसः // 105 // श्वन-युवन-मघोनो डीस्यायघुट्स्वरे व उः / 2 / 1 / 106 // ङ्यां स्याद्यघुट्स्वरे च श्वनादीनाम् ‘व उः' स्यात् / शुनी, शुनः / अतियूनी, यूनः / मघोनी, मघोनः / डीस्याद्यघुट्स्वर इति किम् ? शौवनम्, यौवनम्, माघवनम् / 2 / 1 / 106 // लुगाऽऽतोऽनापः / 21107 // आपवर्जस्याऽऽतो डीस्याद्यघुट्स्वरे ‘लुक्' स्यात् / कीलालपः / हाहे देहि / अनाप इति किम् ? शालाः // 107 // अनोऽस्य / 2 / 1108 // ङीस्याधघुट्स्वरे-'नोऽस्य लुक्' स्यात् / राज्ञी, राज्ञः // 10 // ईडौ वा / 2 / 1109 // ईकारे डौ च परे- 'ऽनोऽस्य लुग्वा' स्यात् / साम्नी, सामनी / राज्ञि, राजनि // 109 // ___षादि-हन्-धृतराज्ञोऽणि / 2 / 1 / 110 // षादेरनो हनो धृतराज्ञश्चातोऽणि प्रत्यये लुक् स्यात् / औक्ष्णः, ताक्ष्णः, भ्रौणघ्नः, धार्तराज्ञः // 110 // Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् प न व-मन्तसंयोगात् / 2 / 1111 // वान्तान्मान्ताच्च संयोगात्परस्या-'ऽनोऽस्य लुग् न' स्यात् / पर्वणा, कर्मणी // हनो हुनो नः / 2 / 11112 // 'हन्तेनो नः' स्यात् / भ्रूणनी, नन्ति / न इति किम् ? वृत्रहणौ // 112 // लुगस्यादेत्यपदे / 2 / 11113 // अपदादावकारे एकारे च परे-'ऽस्य लुक्' स्यात् / सः, पचन्ति, पचे / अपद इति किम् ? दण्डाग्रम् // 113 // डित्यन्त्यस्वरादेः / 2 / 11114 // स्वराणां योऽन्त्यस्वरस्तदादेः शब्दस्य डिति परे ‘लुक्' स्यात् / मुनौ, साधौ, पितुः // 114 // अवर्णादश्नोऽन्तो वाऽतुरीङयोः / 2 / 1 / 115 // भावर्जादवर्णात् परस्याऽतुः स्थाने-'ऽन्तो वा' स्यात्, ई-ड्योः / तुदन्ती, तुदती कुले स्त्री वा / एवम्- भान्ती, भाती / अवर्णादिति किम् ? अदती / अन्न इति किम् ? लुनती // 115 / / श्य-शवः / 2 / 1116 // श्याच्छवश्च परस्याऽतुरीङ्योः परयोरन्त इत्यादेशः स्यात् / दीव्यन्ती, पचन्ती / . दिव औः सौ / 2 / 1 / 117 // दिवः सौ परे ‘औः' स्यात् / द्यौः // 117 / / उः पदान्तेऽनूत् / 2 / 11118 // पदान्तस्य दिव 'उः' स्यात्, अनूत्- स तु दी? न स्यात् / धुभ्याम्, धुषु / पदान्त इति किम् ? दिवि / अनूदिति किम् ? धुभवति // 118 // . इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितायां सिद्धहेमचन्द्राभिधानस्वोपज्ञशब्दानुशासन Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् लघुवृत्ती द्वितीयस्याध्यायस्य प्रथमः पादः समाप्तः // 21 // प्रावृड्जातेति हे भूपा ! मा स्म त्यजत काननम् / हरिः शेतेऽत्र न त्वेषो मूलराजमहीपतिः // 5 // ---------- xox --------- (द्वितीयः पादः) क्रियाहेतुः कारकम् / 2 / 2 / 1 // क्रियाया निमित्तं कर्नादि 'कारकम्' स्यात् / 'करोतीति कारकम्' इति / अन्वर्थाश्रयणाच्च निमित्तत्वमात्रेण हेत्वादेः कारकसंज्ञा न स्यात् // 1 // स्वतन्त्रः कर्ता / 2 / 2 / 2 // क्रियाहेतुः क्रियासिद्धौ स्वप्रधानो यः स 'कर्ता' स्यात् / मैत्रेण कृतः // 2 // कर्तुाप्यं कर्म // 2 // 23 // कर्ता क्रियया यद्विशेषेणाप्तुमिष्यते तत्कारकं 'व्याप्यं कर्म च' स्यात् / तत् त्रेधा - निर्व] विकार्यं प्राप्यञ्च / कटं करोति, काष्ठं दहति, ग्राम याति // 3 // वाऽकर्मणामणिकर्ता णौ / 2 / 2 / 4 // अविवक्षितकर्मणां धातूनां णिगः प्राग् यः कर्ता स णिगि सति 'कर्म वा' स्यात् / पचति चैत्रः, पाचयति चैत्रं चत्रेण वा // 4 // गति-बोधा-ऽऽहारार्थ-शब्दकर्म-नित्याऽकर्मणामनी खाद्यदि-वा-शब्दाय-क्रन्दाम् / 2 / 2 / 5 // गतिर्देशान्तरप्राप्तिः, शब्दः कर्म- क्रिया व्याप्यञ्च येषां ते शब्दकर्माणः, नित्यं न विद्यते कर्म येषां ते नित्याकर्माणः, गत्यर्थबोधार्थाहारार्थानां शब्दकर्मणां Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 57 नित्याकर्मणाञ्च नीखाद्यदिह्वाशब्दायक्रन्दिवर्जानां धातूनामणिकर्ता स णौ सति 'कर्म' स्यात् / गमयप्ति चैत्रं ग्रामम्, बोधयति शिष्यं धर्मम्, भोजयति बटुमोदनम्, जल्पयति मैत्रं द्रव्यम्, अध्यापयति बटुं वेदम्, शाययति मैत्रं चैत्रः / गत्यर्थादीनामिति किम् ? पाचयत्योदनं चैत्रेण मैत्रः / न्यादिवर्जनं किम् ? नाययति भारं चैत्रेण, खादयत्यपूपं मैत्रेण, आदयत्योदनं सुतेन, ह्वाययति चैत्रं मैत्रेण, शब्दाययति बटुं मैत्रेण, क्रन्दयति मैत्रं चैत्रेण // 5 // भक्षेहिँसायाम् // 2 // 26 // भक्षेहिँसार्थस्यैवाणिकर्ता णौ 'कर्म' स्यात् / भक्षयति सस्यं बलीवान् मैत्रः / हिंसायामिति किम् ? भक्षयति पिण्डी शिशुना // 6 // वहेः प्रवेयः / 2 / 27 // वहेरणिक्कर्ता प्रवेयो णौ 'कर्म' स्यात् / वाहयति भारं बलीवर्दान् मैत्रः / प्रवेय इिति किम् ? वाहयति भारं मैत्रेण // 7 // ह-क्रोर्नवा / 2 / 2 / 8 // हक्रोरणिक्कर्ता णौ 'कर्म वा' स्यात् / विहारयति देशं गुरुं गुरुणा वा, आहारयत्योदनं बालं बालेन वा, कारयति कटं चैत्रं चैत्रेण वा // 8 // दृश्यभिवदोरात्मने / 22 / 9 // दृश्यभिवदोरात्मनेपदविषयेऽणिकर्ता णौ 'कर्म वा' स्यात् / दर्शयते राजा भृत्यान् भृत्यैर्वा, अभिवादयते गुरुः शिष्यं. शिष्येण वा / आत्मन इति किम् ? दर्शयति रूपतर्क रूपम् // 9 // नाथः / 2 / 2 / 10 // आत्मनेपदविषयस्य नाथो व्याप्यम् 'कर्म वा' स्यात् / सर्पिषो नाथते, सर्पिथिते / आत्मन इत्येव- पुत्रमुपनाथति पाठाय // 10 // Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 58 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् . स्मृत्यर्थ दयेशः / 2 / 2 / 11 // स्मृत्यर्थानां दयेशोश्च व्याप्यम् ‘कर्म वा' स्यात् / मातुः स्मरति, मातरं स्मरति; मातुः स्मर्यते, माता स्मर्यते; सर्पिषः सर्पिर्वा दयते; लोकानामीष्टे, लोकानीष्टे // 11 // कृगः प्रतियत्ने / 2 / 2 / 12 // पुनर्यनः प्रतियलस्तवृत्तेः कृगो व्याप्यम् ‘कर्म वा' स्यात् / एधोदकस्यैधोदकं वोपस्कुरुते // 12 // . . रुजाऽर्थस्याऽज्वरि-सन्तापेभवि कर्तरि / 2 / 2 / 13 // रुजा पीडा, तदर्थस्य ज्वरि-सन्तापिवर्जस्य धातोर्व्याप्यम् ‘कर्म वा' स्यात्, भावश्चेद्रुजायाः कर्ता / चोरस्य चौरं वा रुजति रोगः / अज्वरिसन्तापेरिति किम् ? आयूनं ज्वरयति सन्तापयति वा / भाव इति किम् ? मैत्रं रुजति श्लेष्मा // 13 // जास-नाट-क्राथ-पिषो हिंसायाम् / 2 / 2 / 14 // हिंसार्थानामेषां व्याप्यम् ‘कर्म वा' स्यात् / चौरस्य चौरं वोज्जासयति, चौरस्य चौरं वोन्नाटयति, चौरस्य चौरं वोक्राथयति, चौरस्य चौरं वा पिनष्टि / हिंसायामिति किम् ? चौरं बन्धनाज्जासयति // 14 // नि-प्रेभ्यो नः / 2 / 2 / 15 // . समस्त-व्यस्त-विपर्यस्ताभ्यां नि-प्राभ्यां परस्य हिंसार्थस्य हन्तेाप्यम् 'कर्म वा' स्यात् / चौरस्य चौरं वा निप्रहन्ति / हिंसायामित्येव- रागादीनिहन्ति // विनिमेय-द्यूतपणं पण-व्यवहोः / 2 / 2 / 16 // विनिमेयः क्रय-विक्रेयोऽर्थः, द्यूतपणो द्यूतजेयम्, तौ पणव्यवहो ाप्यौ 'वा कर्म' स्याताम् / शतस्य शतं वा पणायति, दशानां दश वा व्यवहरति / विनिमेय-धूतपणमिति किम् ? साधून् पणायति / / 16 // Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् उपसर्गादिवः / 2 / 2 / 17 // उपसर्गात् परस्य द्रिवो व्याप्यौ विनिमेय- द्यूतपणौ ‘वा कर्म' स्याताम् / शतस्य शतं वा प्रदीव्यति / उपसर्गादिति किम् ? शतस्य दीव्यति / / 17 / / न / 2 / 2 / 18 // अनुपसर्गस्य दिवो व्याप्यौ विनिमेय-द्यूतपणौ 'कर्म न' स्याताम् / शतस्य दीव्यति / / 18 // करणं च / 2 / 2 / 19 // दिवः करणम् ‘कर्म करणं च युगपत्' स्यात् / अक्षान् दीव्यति, अक्षैर्दीव्यति, अक्षैर्देवयते मैत्रश्चैत्रेण / / 19 / अधेः शीङ्-स्था-ऽऽस आधारः / 2 / 2 / 20 // अधेः संबद्धानां शीङ्-स्था-ऽऽसामाधारः 'कर्म' स्यात् / ग्राममधिशेते, अधितिष्ठति, अध्यास्ते वा // 20 // उपान्वध्यावसः / 2 / 2 / 21 // उपादिविशिष्टस्य वसतेराधारः 'कर्म' स्यात् / ग्राममुपवसति, अनुवसति, अधिवसति, आवसति वा // 21 // वाऽभिनिविशः 12 // 2 // 22 // अभि-निभ्यामुपसृष्टस्य विशेराधारः 'कर्म वा' स्यात् / ग्राममभिनिविशते, कल्याणे अभिनिविशते // 22 // कालाव-भाव-देशं वाऽकर्म चाऽकर्मणाम् / 2 / 2 / 23 // कालादिराधारोऽकर्मणां धातूनां योगे'कर्माऽकर्म च युगपद् वा' स्यात् / मासमास्ते, क्रोशं शेते, गोदोहमास्ते, कुरूनास्ते / पक्षे-मासे, आस्ते इत्यादि / अकर्म चेति किम् ? मासमास्यते / अकर्मणामिति किम् ? Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 60 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् रात्रावुद्देशोऽधीतः // 23 // साधकतमं करणम् / 2 / 2 / 24 // क्रियायां प्रकृष्टोपकारकम् ‘करणम् 'स्यात् / दानेन भोगानाप्नोति // 24 // . कर्माभिप्रेयः संप्रदानम् / 2 / 2 / 25 // कर्मणा-व्याप्येन क्रियया वा यमभिप्रेयते स 'सम्प्रदानम्' स्यात् / देवाय बलि दत्ते, राज्ञे कार्यमाचष्टे, पत्ये शेते / / 25 // स्पृहेाप्यं वा / 2 / 2 / 26 // स्पृहेप्प्यम् ‘वा संप्रदानम्' स्यात् / पुष्पेभ्यः पुष्पाणि वा स्पृहयति // 26 // क्रुद्-द्रुहेा-ऽसूयार्थैर्य प्रति कोपः / 2 / 2 / 27 // क्रुधाद्यर्थैर्धातुभिर्योगे यं प्रति कोपस्तत् ‘सम्प्रदानम्' स्यात् / मैत्राय क्रुध्यति, द्रुह्यति, ईर्ण्यति, असूयति वा / यं प्रतीति किम् ? मनसा क्रुध्यति / कोप इति किम् ? शिष्यस्य कुप्यति विनयार्थम् / / 27 // नोपसर्गात् क्रुद्-द्रुहा / 2 / 2 / 28 // सोपसर्गाभ्यां क्रुधि-द्रुहिभ्यां योगे यं प्रति कोपस्तत् ‘संप्रदानं न' स्यात् / मैत्रमभिक्रुध्यति, अभिद्रुह्यति / उपसर्गादिति किम् ? मैत्राय क्रुध्यति, द्रुह्यति // 28 // अपायेऽवधिरपादानम् / 2 / 2 / 29 // अपाये-विश्लेषे योऽवधिस्तद् ‘अपादानम्' स्यात् / वृक्षात् पर्णं पतति, व्याघ्राद् बिभेति, अधर्माज्जुगुप्सते विरमति वा, धर्मात् प्रमाद्यति, चौरेभ्यस्त्रायते अध्ययनात् पराजयते, यवेभ्यो गां रक्षति, उपाध्यायादन्तर्धत्ते, शृङ्गाच्छरो जायते, हिमवतो गङ्गा प्रभवति, वलभ्याः श्रीशत्रुञ्जयः षड् योजनानि कार्तिक्या आग्रहायणी मासे, चैत्रान्मैत्रः पटुः, माथुराः पाटलिपुत्रकेभ्य आयतराः // 29 // Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 61 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् क्रियाऽऽश्रयस्याऽऽधारोऽधिकरणम् / 2 / 2 / 30 // क्रियाऽऽश्रयस्य कर्तुः कर्मणो वाऽऽधारो-'ऽधिकरणम्' स्यात् / कटे आस्ते, स्थाल्यां तण्डुलान् पचति // 30 // नाम्नः प्रथमैक-द्वि-बहौ / 2 / 2 / 31 // एक-द्वि-बहावर्थमात्रे वर्तमानानाम्नः परा यथासंख्यं सि-औ-जस्लक्षणा 'प्रथमा' स्यात् / डित्थः, गौः, शुक्लः, कारकः, दण्डी // 31 // आमन्त्र्ये / 2 / 2 / 32 // आमन्त्र्यार्थवृत्तेर्नाम्नः 'प्रथमा' स्यात् / हे देव ! / आमन्त्र्य इति किम् ? राजा भव // 32 // गौणातू-समया-निकषा-हा-धिगन्तरा-ऽन्तरेणा-ऽति-येन .. तेनैर्द्वितीया / 2 / 2 // 33 // समयादिभिर्युक्ताद् गौणान्नाम्न एक-द्वि-बहौ यथासंख्यममौ-शसिति 'द्वितीया' स्यात् / समया ग्रामम् / निकषा गिरिं नदी / हा ! मैत्रं व्याधिः / धिग् जाल्मम् / अन्तराऽन्तरेण वा निषधं निलं च विदेहाः / अन्तरेण धर्मं सुखं न स्यात् / अतिवृद्धं कुरून् महबलम् / येन पश्चिमां गतः / तेन पश्चिमां नीतः // 33 // . द्वित्वेऽधोऽध्युपरिभिः / 2 / 2 // 34 // द्विरुक्तरेभिर्युक्तानाम्नो 'द्वितीया' स्यात् / अधोऽधो ग्रामम्, अध्यधि ग्रामम् उपर्युपरि ग्रामं ग्रामाः / द्वित्व इति किम् ? अधो गृहस्य // 34 // सर्वोभया-ऽभि-परिणा तसा / 2 / 2 // 35 // सर्वादिभिस्तसन्तैर्युक्तानाम्नो 'द्वितीया' स्यात् / सर्वतः, उभयतः, अभितः, परितो वा ग्रामं वनानि // 35 // . लक्षण-वीप्स्येत्थम्भूतेष्वभिना / 2 / 2 / 36 // Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * 62 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् लक्षणं चिह्नम्, वीप्साकर्म वीप्स्यम्, इत्थम्भूतः किञ्चित्प्रकारमापन्नः, एषु वर्तमानादभिना युक्ताद् 'द्वितीया' स्यात् / वृक्षमभि विद्युत्, वृक्षं वृक्षमभिसेकः, साधुमैत्रो मातरमभि / लक्षणादिष्विति किम् ? यदत्र ममाभि स्यात् तद् दीयताम् // 36 // . भागिनि च प्रति-पर्यनुभिः / 2 / 2 // 37 // स्वीकार्योंशो भागस्तत्स्वामी भागी, तत्र लक्षणादिषु च वर्तमानात् प्रत्यादिभिर्युक्ताद् द्वितीया' स्यात् / यदत्र मां प्रति मां परि मामनु स्यात् तद् दीयताम् / वृक्षं प्रति परि अनु वा विद्युत् / वृक्षं वृक्षं प्रति परि अनु वा सेकः / साधुमैत्रो मातरं प्रति परि अनु वा / एतेष्विति किम् ? अनु वनस्या-ऽशनिर्गता // 37 // हेतु-सहार्थेऽनुना / 2 / 2 // 38 // हेतुर्जनकः, सहार्थस्तुल्ययोगो विद्यमानता, च, तद्विषयोऽप्युपचारात्, तयोवर्तमानादनुना युक्ताद् ‘द्वितीया' स्यात् / जिनजन्मोत्सवमन्वागच्छन् सुराः गिरिमन्ववसिता सेना // 38 // . उत्कृष्टेऽनूपेन / 2 / 2 // 39 // उत्कृष्टार्थादनूपाभ्यां युक्ताद् 'द्वितीया' स्यात् / अनु सिद्धसेनं कवयः / उपोमास्वातिं संग्रहीतारः // 39 // कर्मणि / 2 / 2 / 40 // नाम्नः कर्मणि 'द्वितीया' स्यात् / कटं करोति, तण्डुलान् पचति, रविं पश्यति, अजां नयति ग्रामम्, गां दोग्धि पयः // 40 // क्रियाविशेषणात् / 2 / 2 / 41 // क्रियाया यद्विशेषणं तद्वाचिनो 'द्वितीया' स्यात् / स्तोकं पचति / सुखं स्थाता // Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 63 काला-ऽध्वनोाप्तौ / 2 / 2 / 42 // व्याप्तिरत्यन्तसंयोगः, व्याप्ती द्योत्यायां कालाध्ववाचिभ्याम् 'द्वितीया' स्यात् / मासं गुडधानाः, कल्याणी, अधीते वा / क्रोशं गिरिः, कुटिला नदी, अधीते वा / व्याप्ताविति किम् ? मासस्य मासे वा व्यहं गुडधानाः / क्रोशस्य क्रोशे वा एकदेशे कुटिला नदी // 42 // सिद्धौ तृतीया / 2 / 2 / 43 // सिद्धौ-फलनिष्पत्ती द्योत्यायां कालाध्ववाचिभ्यां टा-भ्याम्-भिस्लक्षणा 'तृतीया' यथासंख्यमेक-द्वि-बही स्यात् / मासेन मासाभ्यां मासैर्वाऽऽवश्यकमधीतम् / क्रोशेन क्रोशाभ्यां क्रोशैर्वा प्राभृतमधीतम् / सिद्धाविति किम् ? मासमधीत आचारो नानेन गृहीतः // 43 // . हेतु-कर्तृ-करणेत्थम्भूतलक्षणे / 2 / 2 / 44 // फलसाधनयोग्यो हेतुः, कंचित्प्रकारमापन्नस्य चिह्नमित्थम्भूतलक्षणम् ‘हेत्वादिवृत्तेर्नाम्नस्तृतीया' स्यात् / धनेन कुलम्, चैत्रेण कृतम्, दात्रेण लुनाति, अपि त्वं कमण्डलुना छात्रमद्राक्षीः ? // 44 // सहार्थे / 2 / 2 / 45 // सहार्थे -तुल्ययोगे विद्यमानतायां च गम्यमाने 'नाम्नस्तृतीया' स्यात् / पुत्रेण सहाऽऽगतः स्थूलो गोमान् ब्राह्मणो वा / एकेनापि सुपुत्रेण, सिंही स्वपिति निर्भयम् / सहैव दशभिः पुत्रै, भारं वहति गर्दभी // 1 // // 45 // . यभेदैस्तद्वदाख्या / 2 / 2 / 46 // यस्य भेदिनो भेदैः प्रकारैस्तद्वतोऽर्थस्याख्या - निर्देशः स्यात् तद्वाचिन'स्तृतीया'. स्यात् / अक्ष्णा काणः, पादेन खञ्जः, प्रकृत्या दर्शनीयः / तद्वद्ग्रहणं किम् ? अक्षि काणं पश्य / आख्येति प्रसिद्धिपरिग्रहार्थम्, Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 64 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् तेनाऽक्ष्णा दीर्घ इति न स्यात् // 46 // ... कृताऽऽयैः / 2 / 2 / 47 // कृताऽऽद्यैर्निषेधार्थैर्युक्तात् 'तृतीया' स्यात् / कृतं तेन, किं गतेन // 47 // काले भान्नवाऽऽधारे / 2 / 2 // 48 // कालवृत्तेर्नक्षत्रार्थादाधारे 'तृतीया वा' स्यात् / पुष्येण पुष्ये वा पायसमश्नीयात् / काल इति किम् ? पुष्येऽर्कः / भादिति किम् ? तिलपुष्पेषु यक्षीरम् / आधार इति किम् ? अद्य पुष्यं विद्धि // 48 // प्रसितोत्सुकाऽवबद्धैः / / 2 / 2 / 49 // एतैर्युक्तादाधारवृत्ते-‘स्तृतीया वा' स्यात् / केशैः केशुषु वा प्रसितः; गृहेण गृहे वा उत्सुकः; केशैः केशेषु वाऽवबद्धः // 49 // व्याप्ये द्विद्रोणादिभ्यो वीप्सायाम् / 2 / 2 / 50 // व्याप्यवृत्तिभ्यो द्विद्रोणादिभ्यो वीप्सायाम् 'तृतीया वा' स्यात् / द्विद्रोणेन, द्विद्रोणं द्विद्रोणं वा धान्यं क्रीणाति; पञ्चकेन, पञ्चकं पञ्चकं वा पशून् क्रीणाति // 50 // समो ज्ञोऽस्मृतौ वा / 2 / 2 / 51 // अस्मृत्यर्थस्य संजानातेर्यव्याप्यं तवृत्ते-'स्तृतीया वा' स्यात् / मात्रा मातरं वा संजानीते / अस्मृताविति किम् ? मातरं संजानाति // 51 // दामः संप्रदानेऽधर्म्य आत्मने च / 2 / 2 / 52 // संपूर्वस्य दामः संप्रदानेऽधर्म्य वर्तमानात् 'तृतीया' स्यात्, तत्सन्नियोगे च दाम आत्मनेपदम् / दास्या संप्रयच्छते कामुकः / अधर्म्य इति किम् ? पल्यै संप्रयच्छति // 52 // चतुर्थी / 2 / 2 / 53 // . Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 65 संप्रदाने वर्तमानादेक-द्वि-बही यथासंख्यं -भ्याम्-भ्यस्लक्षणा 'चतुर्थी' स्यात् / द्विजाय गां दत्ते, पत्ये शेते // 53 // तादर्थे / 2 / 2 / 54 // तस्मा इदं तदर्थम्, तद्भावे सम्बन्धविशेषे द्योत्ये 'चतुर्थी' स्यात् / यूपाय दारु, रन्धनाय स्थाली // 54 // रुचि-कृप्यर्थ-धारिभिः प्रेय-विकारोत्तमर्णेषु / 2 / 2 / 55 // रुच्यथैः कृप्यर्थैर्धारिणा च योगे यथासंख्यं प्रेय-विकारोत्तमर्णवृत्ते-'श्चतुर्थी' स्यात् / मैत्राय रोचते धर्मः, मूत्राय कल्पते यवागूः, चैत्राय शतं धारयति / प्रत्याङः श्रुवार्थिनि / 2 / 2 / 56 // प्रत्याभ्यां परेण श्रुवा युक्तादर्थिन्यभिलाषुके वर्तमानाच्चतुर्थी स्यात् / द्विजाय गां प्रतिशृणोति, आशृणोति वा // 56 // . प्रत्यनोगुणाऽऽख्यातरि / 2 / 2 / 57 // प्रत्यनुभ्यां परेण गृणा योगे ‘आख्यातवृत्तेश्चतुर्थी' स्यात् / गुरवे प्रतिगृणाति अनुगृणाति वा // 57 // __.. यद्वीक्ष्ये राधीक्षी / 2 / 2158 // वीक्ष्यम्-विमतिपूर्वकं निरूप्यं तद्विषया क्रियापि, यस्य वीक्ष्ये राधीक्षी वर्तेते तवृत्तेश्चतुर्थी स्यात् / मैत्राय राध्यति ईक्षते वा, ईक्षितव्यं परस्त्रीभ्यः / वीक्ष्य इति किम् ? मैत्रमीक्षते // 58 // उत्पातेन ज्ञाप्ये / 2 / 2 / 59 // उत्पात आकस्मिकं निमित्तम्, तेन 'ज्ञाप्ये वर्तमानाच्चतुर्थी' स्यात् / वाताय कपिला विद्युदातपायातिलोहिनी / पीता वर्षाय विज्ञेया, दुर्भिक्षाय सिता भवेत् // 1 // Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 66 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् उत्पातेनेति किम् ? राज्ञ इदं छत्रमायान्तं विद्धि राजानम् // 59 // श्लाघ-हनु-स्था-शपा प्रयोज्ये / 2 / 2 / 60 // श्लाघादिभिर्धातुभिर्युक्ताद् 'ज्ञाप्ये प्रयोज्ये वर्तमानाच्चतुर्थी' स्यात् / मैत्राय श्लाघते, हनुते, तिष्ठते, शपते वा / प्रयोज्य इति किम् ? मैत्रायाऽऽत्मानं श्लाघते, आत्मनो मा भूत् // 60 // तुमोऽर्थे भाववचनात् / 2 / 2 / 61 // . क्रियायां क्रियार्थायामुपपदे .तुम् वक्ष्यते, तस्यार्थे ये भाववाचिनो घजादयस्तदन्तात् स्वार्थे 'चतुर्थी' स्यात् / पाकाय इज्यायै वा व्रजति तुमोऽर्थ इति किम् ? पाकस्य / भाववचनादिति किम् ? पक्ष्यतीति पाचकस्य व्रज्या // 61 // गम्यस्याऽऽप्ये / 2 / 2 / 62 // यस्यार्थो गम्यते न चासौ प्रयुज्यते स गम्यः, 'गम्यस्य तुमो व्याप्ये वर्तमानाचतुर्थी, स्यात् / एधेभ्यः फलेभ्यो वा व्रजति / गम्यस्येति किम् ? एधानाहर्तु याति // 62 // गते वाऽनाप्ते / 2 / 2163 // गतिः- पादविहरणम्, तस्या आप्येऽनाप्ते वर्तमानाच्चतुर्थी वा स्यात् / ग्राम ग्रामाय वा याति, विप्रनष्टः पन्थानं पथे वा याति / गतेरिति किम् ? स्त्रियं गच्छति, मनसा मेरुं गच्छति / अनाप्त इति किम् ? संप्राप्ते मा भूत-पन्थानं याति // 63 // मन्यस्याऽनावादिभ्योऽतिकुत्सने / 2 / 2 / 64 // अतीव कुत्स्यते येन तदतिकुत्सनम्, तस्मिन् मन्यतेाप्ये वर्तमानानावादिवर्जाच्चतुर्थी वा स्यात् / न त्वा तृणाय तृणं वा मन्ये / मन्यस्येति किम् ? न त्वा तृणं मन्वे / अनावादिभ्य इति किम् ? न त्वा नावं, अन्नं शुकं शृगालं काकं वा मन्ये / कुत्सन इति किम् ? न त्वा रलं मन्ये / Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 67 करणाऽऽश्रयणं किम् ? न त्वा तृणाय मन्ये / युष्मदो मा भूत् / अतीति किम् ? त्वां तृणं मन्ये // 64 // हित-सुखाभ्याम् / 2 / 2 / 65 // आभ्यां युक्ताच्चतुर्थी वा स्यात् / आमयाविने आमयाविनो वा हितम् / चैत्राय चैत्रस्य वा सुखम् // 65 // तद्भद्रा-ऽऽयुष्य-क्षेमा-ऽर्थाऽर्थेनाऽऽशिषि / 2 / 2 / 66 // तदिति हित-सुखयोः परामर्शः, हिताद्यर्थैर्युक्तादाऽऽशिषि गम्यायाम् 'चतुर्थी वा' स्यात् / हितं पथ्यं वा जीवेभ्यो जीवानां वा भूयात् / सुखं शं शर्म वा प्रजाभ्यः प्रजानां वा भूयात् / भद्रमस्तु श्रीजिनशासनाय श्रीजिनशासनस्य वा। आयुष्यमस्तु चैत्राय चैत्रस्य वा / क्षेमं भूयात् कुशलं निरामयं वा श्रीसंघाय श्रीसङ्घस्य वा / अर्थः कार्य प्रयोजनं वा भूयान्मैत्राय मैत्रस्य वा॥६६॥ परिक्रयणे / 2 / 2 / 67 // परिक्रीयते नियतकालं स्वीक्रियते येन तस्मिन् वर्तमानाच्चतुर्थी वा स्यात् / शताय शतेन. वा परिक्रीतः // 67 // शक्तार्थ-वषड्-नमः-स्वस्ति-स्वाहा-स्वधाभिः / 2 / 2 / 68 // शक्तार्थैर्वषडादिभिश्च युक्ताच्चतुर्थी नित्यं स्यात् / शक्तः प्रभुर्वा मल्लो मल्लाय / वषडग्नये / नमोऽर्हद्भ्यः / स्वस्ति प्रजाभ्यः / स्वाहेन्द्राय / स्वधा पितृभ्यः // 68 // ___ पञ्चम्यपादाने / 2 / 2 / 69 // अपादाने एक-द्वि-बही यथासंख्यं ङसि-भ्याम्-भ्यस्लक्षणा ‘पञ्चमी' स्यात् / ग्रामाद् गोदोहाभ्यां वनेभ्यो वा आगच्छति // 69 // आङाऽवधौ / 2 / 2 / 70 // Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 68 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् अवधिर्मर्यादा-ऽभिविधिश्च, तद्वृत्तेराङा युक्तात् ‘पञ्चमी' स्यात् / आ पाटलिपुत्राद् वृष्टो मेघः // 70 // पर्यपाभ्यां वर्थे / 2 / 271 // वर्ये वर्जनीयेऽर्थे वर्तमानात् पर्यपाभ्यां युक्तात् “पञ्चमी' स्यात् / परि अप वा पाटलिपुत्राद् वृष्टो मेघः / वर्ण्य इति किम् ? अपशब्दो मैत्रस्य // 7 // यतः प्रतिनिधि-प्रतिदाने प्रतिना / 2 / 2 / 72 // प्रतिनिधिमुख्यसदृशोऽर्थः, प्रतिदानम्- गृहीतस्य विशोधनम्, ते यतः स्यातां तद्वाचिनः प्रतिना योगे ‘पञ्चमी' स्यात् / प्रद्युम्नो वासुदेवात् प्रति / तिलेभ्यः प्रति माषानस्मै प्रयच्छति // 72 // आख्यातर्युपयोगे / 2 / 2 / 73 // आख्याता-प्रतिपादयिता, तद्वाचिनः ‘पञ्चमी' स्यात्, उपयोगे - नियमपूर्वकविद्याग्रहणविषये / उपाध्यायादधीते आगमयति वा / उपयोग इति किम् ? नटस्य शृणोति // 73 // गम्ययपः कर्माऽऽधारे / 2 / 274 // गम्यस्याऽप्रयुज्यमानस्य यबन्तस्य कर्माऽऽधारवाचिनः ‘पञ्चमी' स्यात् / प्रासादादासनाद्वा प्रेक्षते / गम्यग्रहणं किम् ? प्रासादमारुह्य शेते, आसने उपविश्य भुङ्क्ते // 74 // प्रभृत्यन्याऽर्थ-दिक्शब्द-बहिरारादितरैः / 2 / 275 // प्रभृत्यर्थैरन्याथैर्दिक्शब्दैर्बहिरादिभिश्च युक्तात् 'पञ्चमी' स्यात् / ततः प्रभृति, ग्रीष्मादारभ्य; अन्यो भित्रो वा मैत्रात्; ग्रामात् पूर्वस्यां दिशि वसति, उत्तरो विन्ध्यात् पारियात्रः, पश्चिमो रामाद् युधिष्ठिरः; बहिर् आरात् इतरो वा ग्रामात् // 75 // Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् ऋणाद्धेतोः / 2 / 2176 // हेतुभूतऋणवाचिनः ‘पञ्चमी' स्यात् / शताद् बद्धः / हेतोरिति किम् ? शतेन बद्धः // 76 / / गुणादस्त्रियां नवा / 2 / 277 // अस्त्रीवृत्तेर्हेतुभूतगुणवाचिनः ‘पञ्चमी वा' स्यात् / जाड्यात् जाड्येन वा बद्धः, ज्ञानात् ज्ञानेन वा मुक्तः / अस्त्रियामिति किम् ? बुद्ध्या मुक्तः // 77 // आरादथैः / 2 / 278 // आराद्-दूरमन्तिकं च, तदर्थैर्युक्तात् ‘पञ्चमी वा' स्यात् / / दूरं विप्रकृष्टं वा ग्रामाद् ग्रामस्य वा / अन्तिकमभ्यासं वा ग्रामाद् ग्रामस्य वा // 78 // . स्तोका-ऽल्प-कृच्छ्र-कतिपयादसत्त्वे करणे / 2 / 2 / 79 // यतो द्रव्ये शब्दप्रवृत्तिः स गुणोऽसत्त्वं तेनैव वा रूपेणाऽभिधीयमानं द्रव्यादि, तस्मिन् करणे वर्तमानेभ्यः स्तोकादिभ्यः ‘पञ्चमी वा' स्यात् / स्तोकात् स्तोकेन वा, अल्पादल्पेन वा, कृच्छ्रात् कृच्छ्रेण वा, कतिपयात् कतिपयेन वा मुक्तः / असत्त्व इति किम् ? स्तोकेन विषेण हतः // 79 // . अज्ञाने ज्ञः षष्ठी / 2 / 2 / 80 // अज्ञानार्थस्य ज्ञो यत्करणं तद्वाचिन एक-द्वि-बही यथासंख्यं ङसोसांलक्षणा 'षष्ठी नित्यं स्यात् / सर्पिषः सर्पिषोः सर्पिषां वा जानीते / अज्ञान इति किम् ? स्वरेण पुत्रं जानाति / करण इत्येव-तैलं सर्पिषो जानाति // 80 // शेषे / 2 / 2 / 81 // कर्मादिभ्योऽन्यस्तदविवक्षारूपः स्व-स्वामिभावादिसम्बन्धविशेषः शेषस्तत्र 'षष्ठी' स्यात् / राज्ञः पुरुषः, उपगोरपत्यम्, न माषाणामश्नीयात् // 81 // रि-रिष्टात्-स्तादस्तादसतसाता / 2 / 2 / 82 // Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 70 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् एतत्प्रत्ययान्तैर्युक्तात् 'षष्ठी' स्यात् / उपरि उपरिष्टात् परस्तातू पुरस्तात् पुरः दक्षिणतः उत्तराद् वा ग्रामस्य ||82 // कर्मणि कृतः / 2 / 2 / 83 // कृदन्तस्य कर्मणि 'षष्ठी' स्यात् / अपां स्रष्टा, गवां दोहः / कर्मणीति किम् ? शस्त्रेण भेत्ता, स्तोकं पक्ता / कृत इति किम् ? भुक्तपूर्वी ओदनम् // 83 // द्विषो वाऽतृशः / 2 / 2 / 84 // अतृशन्तस्य द्विषः कर्मणि 'षष्ठी वा' स्यात् / चौरस्य चौरं वा द्विषन् // 84 // , वैकत्र द्वयोः / 2 / 2 / 85 // द्विकर्मकेषु धातुषु कृप्रत्ययान्तेषु द्वयोः कर्मणोरेकतरस्मिन् 'षष्ठी वा' स्याद् / अन्यत्र पूर्वेण नित्यमेव / अजाया नेता स्रुघ्नं स॒जस्य वा / अथवा अजामजाया वा नेता मुनस्य // 85 // . कर्तरि / 2 / 286 // कृदन्तस्य धातोः कर्तरि 'षष्ठी' स्यात् / भवत आसिका / कर्तसति किम् ? गृहे शायिका // 86 // दिहतोरस्त्यणकस्य वा / 2 / 2 / 87 // स्त्र्यधिकारविहिताभ्यामणकाभ्यामन्यस्य द्वयोः- कर्तृकर्मषष्ठ्योर्हेतोः कृतः कर्तरि 'षष्ठी वा' स्यात् / विचित्रा सूत्राणां कृतिराचार्यस्याऽऽचार्येण वा / द्विहेतोरित्येकवचनं किम् ? आश्चर्यमोदनस्य पाकोऽतिथीनां च प्रादुर्भावः / अस्त्र्यणकस्येति किम् ? चिकीर्षा मैत्रस्य काव्यानाम्, भेदिका चैत्रस्य काष्ठानाम् // 8 // कृत्यस्य वा / 22 / 88 // कृत्यस्य कर्तरि 'षष्ठी वा' स्यात् / त्वया तव वा कृत्यः कटः // 88 // Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 71 नोभयोर्हेतोः / 2 / 2 / 89 // उभयोः- कर्तृ-कर्मणोः षष्ठीहेतोः कृत्यस्योभयोरेव 'षष्ठी न' स्यात् / नेतव्या ग्राममजा मैत्रेण // 89 // तन्नुदन्ता-ऽव्यय-क्वस्वाना-ऽतृश-शत-डि-णकच खलर्थस्य / 2 / 2 / 90 // तृन्नादीनां कृतां कर्मकोंः 'षष्ठी न' स्यात् / तृन् -वदिता जनापवादान् / उदन्त-कन्यामलङ्करिष्णुः, श्रद्धालुस्तत्त्वम् / अव्यय-कटं कृत्वा, ओदनं भोक्तुं व्रजति / क्वसु-ओदनं पेचिवान् / आन- कटं चक्राणः, मलयं पवमानः, ओदनं पचमानः, चैत्रेण पच्यमानः / अतृश्- अधीयंस्तत्त्वार्थम् / शतृ- कटं कुर्वन् / ङि- परीषहान् सासहिः / णकच्- कटं कारको व्रजति / खलर्थईषत्करः कटो भवता, सुज्ञानं तत्त्वं त्वया // 90 // क्तयोरसदाधारे / 2 / 2 / 91 // सतो- वर्तमानादाधाराच्चान्यत्रार्थे यो क्त-क्तवतू तयोः कर्म-कोंः 'षष्ठी न' स्यात् / कटः कृतो मैत्रेण, ग्रामं गतवान् / असदाधार इति किम् ? राज्ञां पूजितः, इदं सक्तूनां पीतम् // 91 // वा कीबे / 2 / 2 / 92 // क्लीबे विहितस्य क्तस्य कर्तरि 'षष्ठी वा (न)' स्यात् / मयूरस्य मयूरेण वा नृत्तम् // 12 // अकमेरुकस्य / 2 / 2 / 93 // कमेरन्यस्योकप्रत्ययान्तस्य कर्मणि 'षष्ठी न' स्यात् / भोगानभिलाषुकः / अकमेरिति किम् ? दास्याः कामुकः // 93 // __ एष्यदृणेनः / 2 / 2 / 94 // Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 72 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् एष्यत्यर्थे ऋणे च विहितस्येनः कर्मणि 'षष्ठी न' स्यात् / ग्रामं गमी आगामी वा, शतं दायी / एष्यदृणेति किम् ? साधु दायी वित्तस्य // 14 // सप्तम्यधिकरणे / 2 / 2 / 95 // अधिकरणे एक-द्वि-बही यथासंख्यं ङ्योस् सुबूपा ‘सप्तमी' स्यात् / कटे आस्ते, दिवि देवाः, तिलेषु तैलम् // 15 // नवा सुजथैः काले / 2 / 2 / 96 // सुचोऽर्थो वारो येषां तप्रत्ययान्तैर्युक्तात् कालेऽधिकरणे वर्तमानात् “सप्तमी वा' स्यात् / द्विरनि अह्नो वा भुङ्क्ते, पञ्चकृत्वो मासे मासस्य वा भुङ्क्ते / काल इति किम् ? द्विः कांस्यपात्र्यां भुङ्क्ते // 16 // कुशला-ऽऽयुक्तेनाऽऽसेवायाम् / 2 / 2 / 97 // आभ्यां युक्तादाधारवाचिनः ‘सप्तमी वा' स्यात्, आसेवायां तात्पर्ये / कुशलो विद्यायां विद्याया वा, आयुक्तस्तपसि तपसो वा / आसेवायामिति किम् ? कुशलश्चित्रे, न तु करोति; आयुक्तो गौः शकटे, आकृष्य युक्त इत्यर्थः // 97 // स्वामीश्वराधिपति-दायाद-साक्षि-प्रतिभू-प्रसूतैः / 2 / 2 / 98 // / एभिर्युक्तात् ‘सप्तमी वा' स्यात् / गोषु गवां वा स्वामी, ईश्वरः, अधिपतिः, दायादः, साक्षी, प्रतिभूः, प्रसूतो वा // 9 // व्याप्ये क्तेनः / 2 / 2 / 99 // क्ताद् य इन् तदन्तस्य व्याप्ये 'सप्तमी' नित्यं स्यात् / अधीतमनेन- अधीती व्याकरणे, इष्टी यज्ञे / क्तेनेति किम् ? कृतपूर्वी कटम् // 99 / / तद्युक्ते हेतौ / 2 / 2 / 100 // . तेन व्याप्येन युक्ते हेतौ वर्तमानात् 'सप्तमी' स्यात् / “चर्मणि द्वीपिनं हन्ति, दन्तयोर्हन्ति कुञ्जरम् // Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 73 केशेषु चमरी हन्ति, सीम्नि पुष्कलको हतः // 1 // " तयुक्त इति किम् ? वेतनेन धान्यं लुनाति // 100 / अप्रत्यादावसाधुना / 2 / 2 / 101 // प्रत्यादेरप्रयोगे, असाधुशब्देन युक्तात् 'सप्तमी' स्यात्, असाधुमैत्रो मातरि / अप्रत्यादाविति किम् ? असाधुमैत्रो मातरं प्रति परि अनु अभि वा // 101 // . साधुना / 2 / 2 / 102 // अप्रत्यादौ साधुशब्देन युक्तात् 'सप्तमी' स्यात्, साधुमैत्रो मातरि / अप्रत्यादावित्येव- साधुर्मातरं प्रति परि अनु अभि वा / / 102 // . निपुणेन चाऽर्चायाम् / 2 / 2 / 103 // निपुण-साधुशब्दाभ्यां युक्तादप्रत्यादी ‘सप्तमी' स्यात्, अर्चायाम् / मातरि निपुणः साधुर्वा / अर्चायामिति किम् ? निपुणो मैत्रो मातुः, मातैवैनं निपुणं मन्यत इत्यर्थः / अप्रत्यादावित्येव - निपुणो मैत्रो मातरं प्रति परि अनु अभि वा // 103 // स्वेशेऽधिना / 2 / 2 / 104 // स्वे-ईशितव्ये ईशे च वर्तमानादधिना युक्तात् ‘सप्तमी' स्यात् / अधिमगधेषु श्रेणिकः, अधिश्रेणिके मगधाः // 104|| उपेनाऽधिकिनि / 2 / 2 / 105 // उपेन युक्तादधिकिवाचिनः ‘सप्तमी' स्यात् / उपखार्यां द्रोणः // 105 // यद्भावो भावलक्षणम् / 2 / 2 / 106 // भावः- क्रिया, यस्य भावेनाऽन्यो भावो लक्ष्यते तद्वाचिनः ‘सप्तमी' स्यात् / गोषु दुह्यमानांसु गतः // 106 // गते गम्येऽध्वनोऽन्तेनैकार्थ्यं वा / 2 / 2 / 107 // Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 74 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् कुतश्चिदवधेर्विवक्षितस्याऽध्वनोऽवसानमन्तः, यद्भावो भावलक्षणं तस्याध्वनोध्ववाचिनोऽध्वन एवाऽन्तेन- अन्तवाचिना सहकार्यम्- ‘सामानाधिकरण्यं वा' स्यात्,तद्विभक्तिस्तस्मात् स्यादित्यर्थः, गते गम्ये-गतशब्देऽप्रयुज्यमाने / गवीधुमतः सांकाश्यं चत्वारि योजनानि चतुर्पु वा योजनेषु / गत इति किम् ? दग्धेषु लुप्तेष्विति वा प्रतीतौ मा भूत् / गम्य इति किम् ? गतप्रयोगे मा भूत् / अध्वन इति किम् ? कार्तिक्या आग्रहायणी मासे / अन्तेनेति किम् ? अद्य नश्चतुर्पु गव्यूतेषु भोजनम् / / 107 // षष्ठी.वाऽनादरे / 2 / 2 / 108 // यद्भावो भावलक्षणं तवृत्तेरनादरे 'षष्ठी का' स्यात् / रुदतो लोकस्य रुदति लोके वा प्राव्राजीत् // 108 // सप्तमी चाऽविभागे निर्धारणे / 2 / 2 / 109 // जाति-गुण-क्रियादिभिः समुदायादेकदेशस्य बुद्ध्या पृथक्करणं निद्धारणम्, तस्मिन् गम्ये 'षष्ठी-सप्तम्यौ' स्याताम्, अविभागे- निद्धार्यमाणैकदेशस्य समुदायेन सह कथञ्चिदैक्ये शब्दाद् गम्यमाने / क्षत्रियो नृणां नृषु वा शूरः, कृष्णा गवां गोषु वा बहुक्षीरा, धावन्तो यातां यात्सु वा शीघ्रतमाः, युधिष्ठिरः श्रेष्ठतमः कुरूणां कुरुषु वा / अविभाग इति किम् ? मैत्रश्चैत्रात् पटुः // 109 // क्रियामध्येऽध्व-काले पञ्चमी च / / 2 / 110 // क्रिययोर्मध्ये यावध्व-कालौ तद्वाचिभ्यां ‘पञ्चमी- सप्तम्यौ' स्याताम् / इह . स्थोऽयमिष्वासः क्रोशात् क्रोशे वा लक्ष्यं विध्यति, अद्य भुक्त्वा मुनियहात् व्यहे वा भोक्ता // 110 // अधिकेन भूयसस्ते / 2 / 2 / 111 // . अधिकेनाऽल्पीयोवाचिना योगे भूयोवाचिनस्ते- 'सप्तमी-पञ्चम्यो' स्याताम् / अधिको द्रोणः खार्यां खार्या वा // 111 // Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 75 तृतीयाऽल्पीयसः / 2 / 2 / 112 // अधिकेन भूयोवाचिना योगेऽल्पीयोवाचिन-'स्तृतीया' स्यात् / अधिका खारी द्रोणेन // 112 // पृथग-नाना पञ्चमी च / 2 / 2 / 113 // आभ्यां युक्तात् ‘पञ्चमी तृतीया च' स्यात् / पृथग् मैत्रात् मैत्रेण वा / नाना चैत्राच्चैत्रेण वा // 113 // . ऋते द्वितीया च / 2 / 2 / 114 // ऋतेशब्देन युक्ताद् द्वितीया पञ्चमी च'. स्यात् / ऋते धर्म धर्माद् वा कुतः सुखम् // 114 // .. विना. ते तृतीया च / 2 / 2 / 115 // विनाशब्देन युक्तात् ते– 'द्वितीयापञ्चम्यौ तृतीया च' स्यात् / विना वातं वाताद् वातेन वा // 115 // _ तुल्याङ्कृस्तृतीया-षष्ठ्यौ / 2 / 2 / 116 // तुल्यार्थैर्युक्तात् 'तृतीया-षष्ठ्यौ स्याताम् / मात्रा मातुर्वा तुल्यः समो वा // 116 // . द्वितीया-षष्ट्यावेनेनाऽनञ्चेः / 2 / 2 / 117 // एनप्रत्ययान्तेन युक्ताद् द्वितीया-षष्ठ्यौ' स्याताम्, न चेत् सोऽञ्चेः परः स्यात् / पूर्वेण ग्रामं ग्रामस्य वा / अनञ्चेरिति किम् ? प्राग् ग्रामात् // 117 // हेत्वर्थस्तृतीयाद्याः / 2 / 2 / 118 // हेतुर्निमित्तं तद्वाचिभिर्युक्तात् 'तृतीयाऽऽद्याः' स्युः / धनेन हेतुना, धनाय हेतवे, धनाद्धेतोः, धनस्य हेतोः, धने हेतौ वा वसति / एवं निमित्तादिभिरपि // 11 // Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 76 .. श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् सवदिः सर्वाः / 2 / 2 / 1.19 // हेत्वथैर्युक्तात् सर्वादः ‘सर्वा विभक्तयः' स्युः / को हेतुः, कं हेतुम्, केन हेतुना, कस्मै हेतवे, कस्माद्धेतोः, कस्य हेतोः, कस्मिन् हेतौ वा याति / / 119 // असत्त्वारादर्थात् टा-ङसि-यम् / 2 / 2 / 120 // असत्त्ववाचिनो दूरादिन्तिकार्थाच्च ‘टा-सि-यमः' स्युः / गौणादिति निवृत्तम् / दूरेण दूरात् दूरे दूरं वा ग्रामस्य ग्रामाद् वा वसति / एवं विप्रकृष्टेनेत्यादि / अन्तिकेन अन्तिकात् अन्तिके अन्तिकं वा ग्रामस्य ग्रामाद् वा वसति, एवमभ्यासेनेत्यादि / असत्त्व इति किम् ? दूरोऽन्तिको वा पन्थाः // 120 // जात्याख्यायां नवैकोऽसंख्यो बहुवत् / 2 / 2 / 121 // जातेराख्या- अभिधा तस्यामेकोऽर्थोऽसंख्यः- संख्याविशेषणरहितो 'बहुवद् वा' स्यात् / संपन्ना यवाः, संपन्नो यवः / जातीति किम् ? चैत्रः / आख्यायामिति किम् ? काश्यपप्रतिकृतिः काश्यपः / असंख्य इति किम् ? एको व्रीहिः संपन्नः सुभिक्षं करोति // 121 // अविशेषणे द्वौ चाऽस्मदः / 2 / 2 / 122 // अस्मदो द्वावेकश्चार्थो ‘बहुवद् वा' स्यात् / अविशेषणे- न चेत् तस्य विशेषणं स्यात् / आवां ब्रूवः, वयं ब्रूमः / अहं ब्रवीमि, वयं ब्रूमः / अविशेषण इति किम् ? आवां गार्यो ब्रूवः / अहं चैत्रो ब्रवीमि // 122 // फल्गुनी-प्रोष्ठपदस्य भे / 2 / 2 / 123 // फल्गुनी-प्रोष्ठपदयोर्भे- नक्षत्रे वर्तमानयोवर्थो ‘बहुवद् वा' स्याताम् / कदा पूर्वे. फल्गुन्यौ, कदा पूर्वाः फल्गुन्यः / कदा पूर्वे प्रोष्ठपदे, कदा पूर्वाः प्रोष्ठपदाः / भ इति किम् ? फल्गुनीषु जाते फल्गुन्यौ कन्ये // 123 // गुरावेकश्च / 2 / 2 / 124 // Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 77 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् गुरौ-गौरवार्हे वर्तमानस्य द्वावेकश्चार्थो ‘बहुवद् वा' स्यात् / युवां गुरू, यूयं गुरवः / एष मे पिता, एते मे पितरः // 124 // इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितायां सिद्धहेमचन्द्राभिधानस्वोपज्ञशब्दानुशासन लघुवृत्तौ द्वितीयस्याध्यायस्य द्वितीयपादः समाप्तः // 2 // 2 // मूलार्कः श्रूयते शास्त्रे सर्वकल्याणकारणम् / अधुना मूलराजस्तु, चित्रं लोकेषु गीयते // 6 // ----xox -- (तृतीयः पादः) नमस-पुरसो गतेः क-ख-प-फि रः सः / 2 / 3 / 1 / गतिसंज्ञयोर्नमस्-पुरसोः क-ख-प-फि 'रस्य सः' स्यात् / नमस्कृत्य, पुरस्कृत्य / गतेरिति किम् ? नमः कृत्वा, तिम्रः पुरः करोति // 1 // तिरसो वा / 2 / 3 / 2 // गतेस्तिरसो रस्य कखपफि ‘स् वा' स्यात् / तिरस्कृत्य, तिरःकृत्य / गतेरित्येव- तिरः कृत्वा काष्ठं गतः // 2 // . - पुसः / 2 / 3 // 3 // पुम्सः सम्बन्धिनो रस्य कखपफि 'स्' स्यात् / पुंस्कोकिलः, पुंस्खातः, पुंस्पाकः; पुंस्फलम् // 3 // शिरोऽधसः पदे समासैक्ये / 2 / 3 / 4 // अनयो रेफस्य पदशब्दे परे ‘स्' स्यात् समासैक्ये / शिरस्पदम्, अधस्पदम् / समासेति किम् ? शिरः पदम् / ऐक्य इति किम् ? परमशिरःपदम् // 4 // अतः कृ कमि-कंस-कुम्भ-कुशा-कर्णी-पात्रेऽनव्ययस्य / 2 / 3 / 5 // Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 78 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् आत् परस्याऽनव्ययस्य रस्य क्रादिस्थे कखपफि. 'स्' स्यात् समासैक्ये अयस्कृत्, यशस्कामः, पयस्कंसः, अयस्कुम्भः, अयस्कुशा, अयस्कर्णी अयस्पात्रम् / अत इति किम् ? वाःपात्रम् / अनव्ययस्येति किम् / स्वःकारः / समासैक्य इत्येव- उपपयःकारः // 5 // प्रत्यये / 23 / 6 // . अनव्ययस्य रस्य प्रत्ययविषये कखपफि 'स्' स्यात् / पयस्पाशम्, पयस्कल्पम् पयस्कम् / अनव्ययस्येत्येव- स्वःपाशम् // 6 // रोः काम्ये / 2 / 37 // अनव्ययस्य रस्य रोरेव काम्ये प्रत्यये ‘स्' स्यात् / पयस्काम्यति / रोरिति किम्? अहःकाम्यति // 7 // नामिनस्तयोः षः / 2 / 38 // तयोः प्रत्ययस्थे कखपफि, रोरेव च काम्ये नामिनः परस्य रस्य 'ष' स्यात् / सर्पिष्पाशम्, धनुष्कल्पम्, धानुष्कः, सर्पिष्काम्यति / नामिन इति किम् ? अयस्कल्पम् / रोः काम्य इत्येव- गी५ काम्यति // 8 // निर्बहिराविष्प्रादुश्चतुराम् / 2 / 3 / 9 // . निरादीनां रस्य कखपफि 'ष' स्यात् / निष्कृतम्, दुष्कृतम्, बहिष्पीतम् आविष्कृतम्, प्रादुष्कृतम्, चतुष्पात्रम् // 9 // सुचो वा / 2 / 3 / 10 // सुजन्तस्थस्य रस्य कखपफि 'ष् वा' स्यात् / द्विष्करोति, द्वि 4 करोति, द्विःकरोति / चतुष्फलति, चतु ( फलति, चतुःफलति / कख़पफीति किम् ! द्विश्चरति // 10 // वेसुसोऽपेक्षायाम् / 2 / 311 // Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 79 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् इसुस्प्रत्ययान्तस्य रस्य कखपफि 'ष् वा' स्यात्, स्थानि-निमित्तयोरपेक्षा चेत् / सर्पिष्करोति, सपि४ करोति / धनुष्खादति, धनु 4 खादति / अपेक्षायामिति किम् ? परमसर्पि- कुण्डम् // 11 // . नैकार्थेऽक्रिये / 2 / 3 / 12 // न विद्यते क्रिया प्रवृत्तिनिमित्तं यस्य तस्मिन्नेकार्थे- तुल्याधिकरणे पदे यत् कखपफ तस्मिन् परे इसुस्प्रत्ययान्तस्य रस्य 'ष् न' स्यात् / सर्पि- कालकम् / यजु पीतकम् / एकार्थ इति किम् ? सर्पिष्कुम्भे, सर्पि- कुम्भे / अक्रिय इति किम् ? सर्पिष्क्रियते, सर्पि- क्रियते // 12 // . समासेऽसमस्तस्य / 2 / 3.13 // पूर्वेणाऽसमस्तस्य इसुस्प्रत्ययान्तस्य रस्य कखपफि “ष्' स्यात्, निमित्तनिमित्तिनी चेदेकत्र समासे स्तः / सर्पिष्कुम्भः, धनुष्फलम् / समास इति किम् ? तिष्ठतु सर्पिः, पिब त्वमुदकम् / असमस्तस्येति किम् ? परमसर्पिःकुण्डम् // 13 // भ्रातुष्पुत्र-कस्कादयः // 2 // 3 // 14 // प्रातुष्षुत्रादयः कस्कादयश्च कखपफि रस्य यथासंख्यं कृतषत्वसत्वाः साधवः स्युः / प्रातुष्पुत्रः, परमयजुष्पात्रम्; कस्कः, कौतस्कुतः // 14 // नाम्यन्तस्था-कवर्गात पदान्तः कृतस्य सः शिड्-ना न्तरेऽपि // 2 // 3 // 15 // एभ्यः परस्य पदस्यान्तर्मध्ये कृतस्य कृतस्थस्य वा सस्य '' स्यात्, शिटा नकारेण चाऽन्तरेऽपि / आशिषा, नदीषु, वायुषु, वधूषु, पितृषु, एषा, गोषु, नौषु, सिषेवे; गीर्षु, हल्षु; शक्ष्यति, क्रुक्षु / शिड्नान्तरेऽपि- सर्पिष्षु, यजूंषि / पदान्तरिति किम् ? दधिसेक् / कृतस्येति किम् ? बिसम् // 15 // समासेऽग्नेः स्तुतः / 2 / 3 / 16 // Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 80 श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् अग्नेः परस्य स्तुतः सस्य समासे 'ष' स्यात / अग्निष्टुत् // 16 // __ ज्योतिरायुर्थ्यां च स्तोमस्य / 2 / 3 / 17 // आभ्यामग्नेश्च परस्य स्तोमस्य सस्य समासे 'ब्' स्यात् / ज्योतिःष्टोमः आयुःष्टोमः, अग्निष्टोमः / समास इत्येव-ज्योतिः स्तोमं याति // 17 // मातृ-पितुः स्वसुः / 2 / 3 / 18 // आभ्यां परस्य स्वसुः सस्य समासे 'ष' स्यात् / मातृष्वसा, पितृष्वसा // 18 // अलुपि वा / 2 / 3.19 // मातृपितुः परस्य स्वसुः सस्याऽलुपि समासे 'वा ' स्यात् / मातुःष्वसा मातुःस्वसा; पितुःष्वसा, पितुःस्वसा // 19 // नि-नद्याः स्नातेः कौशले / 2 / 3 // 20 // आभ्यां परस्य स्नातेः सस्य समासे 'कू' स्यात्, कौशले गम्यमाने / निष्ण निष्णातो वा पाके, नदीष्णो नदीष्णातो वा प्रतरणे / कौशल इति किम् / निस्नातः नदीस्नः, यः स्रोतसा हियते // 20 // प्रतेः स्नातस्य सूत्रे / 2 / 3 / 21 // प्रतेः परस्य स्नातस्य सः समासे 'ष' स्यात्, सूत्रे वाच्ये / प्रतिष्णातं सूत्रम् प्रत्ययान्तोपादानं किम् ? प्रतिस्नातृ सूत्रम् // 21 // स्नानस्य नाम्नि / 2 / 3 / 22 // प्रतेः परस्य स्नानस्य सः समासे 'ष' स्यात्, सूत्रविषये नाम्नि / प्रतिष्णानम् सूत्रमित्यर्थः // 22 // वेः स्रः / / 3 // 23 // वेः परस्य स्तुणातेः सः समासे 'ष' स्यात्, नाम्नि / विष्टरो वृक्षः, विष्ट पीठम् // 23 // Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 81 - अभिनिष्टानः // 2 // 3 // 24 // अभि-निभ्यां स्तानः समासे कृतषत्वो निपात्यते, नाम्नि / अभिनिष्टानो वर्णः // 24 // गवि-युधेः स्थिरस्य / 2 / 3 / 25 // आभ्यां परस्य स्थिरस्य सः समासे 'ष' स्यात्, नाम्नि / गविष्ठिरः, युधिष्ठिरः // 25 // एत्यकः / 2 / 3 / 26 // कवर्जानाम्यादेः परस्य स एति परे समासे 'ष' स्यात्, नाम्नि / हरिषेणः, श्रीषणः / अक इति किम् ? विष्वक्सेनः // 26 // भादितो वा / 2 / 3 // 27 // नक्षत्रवाचिन इदन्तात् परस्य स एति परे समासे 'ष् वा' स्यात्, नाम्नि / रोहिणिषेणः, रोहिणिसेनः / इत इति किम् ? पुनर्वसुषेणः // 27 // वि-कु-शमि-परेः स्थलस्य / 2 / 3 // 28 // एभ्यः परस्य स्थलस्य सः समासे 'ष' स्यात् / विष्ठलम्, कुष्ठलम्, शमिष्ठलम्, परिष्ठलम् // 28 // कपेर्गोत्रे / / 3 / 29 // कपः परस्य स्थलस्य सः समासे 'ष' स्यात्, गोत्रे वाच्ये / कपिष्ठल ऋषिः // 29 // - गो-ऽम्बा-ऽऽम्ब-सव्या-ऽप-द्वि-त्रि-भूम्यग्नि-शेकु-शकु क्वड-मन्जि-पुजि-बर्हिः- परमे-दिवेः स्थस्य / 2 / 3 // 30 // एभ्यः परस्य स्थस्य सः समासे 'ष' स्यात् / गोष्ठम्, अम्बष्ठः, आम्बष्ठः, .. सव्यष्टः, अपष्ठः, द्विष्ठः, त्रिष्ठः, भूमिष्ठः, अग्निष्ठः, शेकुष्ठः, शङ्कुष्टः, कुष्ठः, Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् अङ्गुष्ठः, मञ्जिष्ठः, पुञ्जिष्ठः, बर्हिष्ठः, परमेष्ठः, दिविष्ठः // 30 // निर्दुस्सोः सेध-सन्धि-साम्नाम् / 2 / 3 / 31 // एभ्यः परेषां सेधादीनां सः समासे 'ष' स्यात् / निःषेधः, दुःषेधः, सुषेधः; निःषन्धिः, दुःषन्धिः, सुषन्धिः, निःषाम, दुःषाम, सुषाम // 31 // प्रष्ठोऽग्रगे / 2 / 3 // 32 // प्रात् स्थस्य सः ‘ष्' स्यात् , अग्रगामिन्यर्थे / प्रष्ठोऽग्रगः // 32 // भीरुष्ठानादयः / 2 / 3 // 33 // एते समासे कृतषत्वाः साधवः स्युः / भीरुष्ठानम्, अङ्गुलिषङ्गः // 33 // हस्वानाम्नस्ति / 2 / 3 / 34 // नाम्नो विहिते तादौ प्रत्यये ह्रस्वान्नामिनः परस्य सः 'ष' स्यात् / सर्पिष्टा, वपुष्टमम् / नामिन इत्येव- तेजस्ता // 34 // निसस्तपेऽनासेवायाम् / 2 / 3 // 35 // निसः सस्तादौ तपतौ परे ‘ष्' स्यात्, पुनः पुनः करणाऽभावे / निष्टपति स्वर्णम् सकृदग्निं स्पर्शयतीत्यर्थः / तीत्येव- निरतपत् // 35 // घस्-वसः / 2 / 3 // 36 // नाम्यादेः परस्य घस्-वसोः सः 'ष' स्यात् / जक्षुः, उषितः // 36 // णि-स्तोरेवाऽस्वद- स्विद-सहः पणि / 2 / 3 / 37 // स्वदादिवर्जानां ण्यन्तानां स्तोरेव च सो नाम्यादेः परस्य षत्वभूते सनि 'ए' स्यात् / सिषेवयिषति, तुष्टूपति / स्वदादिवर्जनं किम् ? सिस्वादयिषति, सिस्वेदयिषति, सिसाहयिषति / एवेति किम् ? सुसूषति / षणीति किम् ? सिषेव / षत्वं किम् ? सुषुप्सति // 37 // .. सजेर्वा // 2 // 3 // 38 // Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 83 ण्यन्तस्य सञ्ज म्यादेः परस्य सः षणि 'ष् वा' स्यात् / सिषञ्जयिषति, सिसञ्जयिषति // 38 // उपसर्गात् सुग-सुव-सो-स्तु-स्तुभोऽट्यप्यद्वित्वे / 2 / 3 / 39 // द्व्युक्ताभावे सुनोत्यादेः स उपसर्गस्थानाम्यादेः परस्य 'ए' स्यात्, अड्व्यवधानेऽपि / सुग्-अभिषुणोति, निःषुणोति, पर्यषुणोत् / सुव-अभिषुवति, पर्यषुवत् / सो-अभिष्यति, पर्यष्यत् / स्तु- अभिष्टौति, दुःष्टवम्, पर्यष्टौत् / स्तुभ्- अभिष्टोभते, पर्यष्टोभत / अद्वित्व इति किम् ? अभिसुसूषति // 39 // स्था-सेनि-सेध-सिच-सनां द्वित्वेऽपि / 2 / 3 // 40 // उपसर्गस्थानाम्यादेः परेषां स्थादीनां सः “ष्' स्यात्, द्वित्वेऽप्यट्यपि / अधिष्ठास्यति, अधितष्ठी, अत्यष्ठात् / अभिषेणयति, अभिषिषेणयिषति, अभ्यषेणयत् / प्रतिषेधति, प्रतिषिषेधिषति, प्रत्यषेधत् / अभिषिञ्चति, अभिषिषिक्षति, अभ्यषिञ्चत् / अभिषजति, अभिषषा, अभ्यषजत् // 40 // . अङप्रतिस्तब्ध-निस्तब्धे स्तम्भः / 2 / 3 / 41 // उपसर्गस्थानाम्यादेः परस्य स्तम्भस्सो द्वित्वेऽप्यट्यपि 'ए' स्यात्, न चेत् स्तम्भि. प्रतिस्तब्ध-निस्तब्धयोश्च स्यात् / विष्टभ्नाति, वितष्टम्भ, प्रत्यष्टभ्नात् / अदिवर्जनं किम् ? व्यतस्तम्भत्, प्रतिस्तब्धः, निस्तब्धः // 41 // अवाचाऽऽश्रयोर्जाऽविदूरे 2 / 3142 // अवादुपसर्गात् परस्य स्तम्भः स आश्रयादिषु गम्यमानेषु द्वित्वेऽप्यट्यपि 'ए' स्यात्, इविषयश्चेत् स्तम्भिर्न स्यात् / आश्रय-आलम्बनम् / दुर्गमवष्टभ्नाति, अवतष्टम्भ, अवाष्टभ्नाद् वा / उर्ज- और्जित्यम् / अहो ! वृषलस्यावष्टम्भः / अविदूरम् - आसन्नम्, अदूरासनं च / अवष्टब्धा शरत्, अवष्टब्धे सेने / चोऽनुक्तसमुच्चये, तेन उपष्टम्भः, उपस्तब्धः / अङ इत्येव-अवातस्तम्भत् // 42 // व्यवात् स्वनोऽशने / 2 / 3 / 43 // Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 84 श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् वेरवाच्चोपसर्गात् परस्य स्वनः सोऽशने- भोजने द्वित्वेऽप्यट्यपि 'ए' स्यात् / विष्वणति, अवष्वणति, विषष्वाण, अवषष्वाण, व्यष्वणत्, अवाष्वणत्, व्यषिष्वणत्, अवाषिष्वणत् / अशन इति किम् ? विस्वनति मृदङ्गः // 43 // सदोऽप्रतेः परोक्षायां त्वादेः / 2 / 3 / 44 // प्रतिव|पसर्गस्थानाम्यादेः परस्य सदः सो द्वित्वेऽप्यट्यपि 'ष' स्यात्, परोक्षायां तु व्युक्तौ सत्याम् आदेः- पूर्वस्यैव / निषीदति, विषाषद्यते, व्यषीषदत् / / परोक्षायां त्वादेरेव - निषसाद / अप्रतेरिति किम् ? प्रतिसीदति // 44 // स्वाश्च / 2 / 3 // 45 // उपसर्गस्थानाम्यादेः परस्य स्वनः सो द्वित्वेऽप्यट्यपि 'ए' स्यात्, परोक्षायां त्वादेरेव / अभिष्वजते, अभिषिष्वङ्क्षते, प्रत्यष्वजत, परिषस्वजे // 45 // परि-नि-वेः सेवः // 2 // 3 // 46 // पर्याधुपसर्गस्थानाम्यादेः परस्य सेवतेः सो द्वित्वेऽप्यट्यपि 'ए' स्यात् / परिषेवते, परिषिषेवे, परिषिषेविषते, पर्यषेवत, निषेवते, विषिषेवे // 46 // सय-सितस्य / 2 / 3 / 47 // . परि-नि-वेः परस्य सय-सितयोः सः 'ष' स्यात् / परिषयः, निषयः, विषयः; परिषितः, निषितः, विषितः // 47 // असोङ-सिवू-सह-स्सटाम् // 2 // 3 // 48 // परि-नि-विभ्यः परस्य सिवू-सहोः स्सटश्च सः '' स्यात्, न चेत् सिवूसही सो-ङविषयौ स्याताम् / परिषीव्यति, निषीव्यति, विषीव्यति / परिषहते, निषहते, विषहते / परिष्करोति, विष्किरः / असोङेति किम् ? परिसोढः, मा परिसीषिवत्, मा परिसीषहत् // 48 // स्तु-स्वजश्चाऽटि नवा / 2349 // परि-नि-वेः परस्य स्तु-स्वोरसोङ-सिवू-सह-स्सटां च सोऽटि सति ‘ष् वा' Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् स्यात् / पर्यष्टौत्, पर्यस्तीत्; न्यष्टोत्, न्यस्तीत्; व्यष्टौत्, व्यस्तीत् / पर्यष्वजत्, पर्यस्वजत्; न्यष्वजत्, न्यस्वजत्, व्यष्वजत्, व्यस्वजत् / पर्यषीव्यत्, पर्यसीव्यत्; न्यषीव्यत्, न्यसीव्यत्; व्यषीव्यत्, व्यसीव्यत् / पर्यषहत, पर्यसहत; न्यषहत, न्यसहत, व्यषहत, व्यसहत / पर्यष्करोत्, पर्यस्करोत् / असोङसिवूसहेत्येव - पर्यसोढयत्, पर्यसीषिवत्, पर्यसीषहत् // 49 // निरभ्यनोश्च स्यन्दस्याऽप्राणिनि / 2 / 3 // 50 // एभ्यः परि-नि-वेश्च परस्याऽप्राणिकर्तृकार्थवृत्तेः स्यन्दः सः ‘ष् वा' स्यात् / निःष्यन्दते, निःस्यन्दते; अभिष्यन्दते, अभिस्यन्दते; अनुष्यन्दते, अनुस्यन्दते; परिष्यन्दते, परिस्यन्दते; निष्यन्दते, निस्यन्दते; विष्यन्दते, विस्यन्दते तैलम् / अप्राणिनीति किम् ? परिस्यन्दते मत्स्यः // 50 // . वेः स्कन्दोऽक्तयोः / 2 / 3 / 51 // विपूर्वस्य स्कन्दः सः 'ष् वा' स्यात्, न चेत् क्त-क्तवतू स्याताम् / विष्कन्ता, विस्कन्ता / अक्तयोरिति किम् ? विस्कन्नः, विस्कनवान् // 51 // परेः.२॥३॥५२॥ परेः स्कन्दः सः ‘ष् वा' स्यात् / परिष्कन्ता, परिस्कन्ता, परिष्कण्णः, परिस्कन्नः // 52 // निर्नेः स्फुर-स्फुलोः / 2 / 3 / 53 // आभ्यां परयोः स्फुर-स्फुलोः सः 'ष् वा' स्यात् / निःष्फुरति, निःस्फुरति, निष्फुरति, निस्फुरति; निःष्फुलति, निःस्फुलति; निष्फुलति, निस्फुलति // 53 // वेः / 2 / 3 / 54 // वेः परयोः स्फुर-स्फुलोः सः 'ए वा' स्यात् / विष्फुरति, विस्फुरति; विष्फुलति, विस्फुलति // 54 // Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् / स्कभ्नः / 23 / 55 // वेः स्कन्नः सः ‘ष् नित्यम्' स्यात् / विष्कम्नाति // 55 // निर-दुःसु-वेः सम-सूतेः // 2 // 3 // 56 // एभ्यः परस्य सम-सूत्योः सः 'ष्' स्यात् / निःषमः, दुःषमः, सुषमः, विषमः, निःषूतिः, दुःषूतिः, सुषूतिः, विषूतिः // 56 // __ अवः स्वपः / 2 / 3 / 57 // निर्-दुःसु-विपूर्वस्य वहीनस्य स्वपेः सः 'ए' स्यात् / निःषुषुपतुः, दुःषुषुपतुः, सुषुषुपतुः, विषुषुपतुः / अव इति किम् ? दुःस्वप्नः // 57 // प्रादुरुपसर्गाद्यस्वरेऽस्तेः / 2 / 3 / 58 // प्रादुरुपसर्गस्थाच्च नाम्यादेः परस्या-ऽस्तेः सो यादौ स्वरादौ च परे 'ष' स्यात् / प्रादुःष्यात्, विष्यात्, निष्यात्; प्रादुःषन्ति, ,विषन्ति, निषन्ति / यस्वर इति किम् ? प्रादुःस्तः // 5 // न स्सः / 23 / 59 // कृतद्वित्वस्य सस्य 'ष् न' स्यात् / सुपिस्स्यते // 59 // सिचो यङि / 2 / 3 / 60 // सिचः सो यङि ‘ष् न' स्यात् / सेसिच्यते // 60 // गतौ सेधः / 2 / 3 / 61 // गत्यर्थस्य सेधः सः 'ष् न' स्यात् / अभिसेधति गाः / गताविति किम् ? निषेधति पापात् // 61 // सुगः स्य-सनि / 2 / 3 / 62 // सुनोतेः सः स्ये सनि च 'ए न' स्यात् / अभिसोष्यति, सुसूषते क्विप् - सुसूः // 2 // Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 87 . श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् र-घृवर्णान्नो ण एकपदेऽनन्त्यस्या-ऽल-च-ट-तवर्ग-श-सान्तरे / / 3 / 63 // एभ्यः परस्यैभिः सहकस्मिन्नेव पदे स्थितस्याऽनन्त्यस्य 'नो णः' स्यात् / लच-ट-तवर्गान् श-सौ च मुक्त्वाऽन्यस्मिन्निमित्त-कार्यिणोरन्तरेऽपि / तीर्णम्, पुष्णाति, नृणाम्, नृणाम्, करणम्, बृंहणम्, अर्केण / एकपद इति किम् ? अग्निर्नयति, चर्मनासिकः / अनन्त्यस्येति किम् ? वृक्षान् / लादिवर्जनं किम् ? विरलेन, मूर्छनम्, दृढेन, तीर्थेन, रशना, रसना // 63 // पूर्वपदस्थानाम्न्यगः / 2 / 3 / 64 // गन्तवर्जपूर्वपदस्थाद् र-वर्णात् परस्योत्तरपदस्थस्य 'नो ण्' स्यात् संज्ञायाम् / गुणसः खरणाः, शूर्पणखा / नाम्नीति किम् ? मेषनासिकः / अग इति किम् ? ऋगयनम् // 64 / / नसस्य / 2 / 3 // 65 // पूर्वपदस्थाद् र-वर्णात् परस्य नसस्य 'नो ण्' स्यात् / प्रणसः // 65 // निष्पा-ऽग्रे-ऽन्तः-खदिर-काया-ऽऽम्र-शरेक्षु-प्लक्ष-पीयुक्षा _ भ्यो वनस्य / 2 / 3166 // निरादिभ्यः परस्य वनस्य 'नो ण्' स्यात् / निर्वणम्, प्रवणम्, अग्रेवणम्, अन्तर्वणम्, खदिरवणम्, कार्यवणम्, आम्रवणम्, शरवणम्, इक्षुवणम्, प्लक्षवणम्, पीयुक्षावणम् // 66 // . द्वि-त्रिस्वरौषधि-वृक्षेभ्यो नवाऽनिरिकादिभ्यः / 2 / 3 / 67 // द्विस्वरेभ्यस्त्रिस्वरेभ्यश्चेरिकादिवर्जेभ्य ओषधि-वृक्षवाचिभ्यः परस्य वनस्य 'नो ण वा' स्यात् / दूर्वावणम्, दूर्वावनम्; माषवणम्, माषवनम्; नीवारवणम्, नीवारवनम् / वृक्ष - शिग्रुवणम्, शिग्रुवनम्; शिरीषवणम्, शिरीषवनम् / Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 88 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् इरिकादिवर्जनं किम् ? इरिकावनम् // 67 // .... गिरिनयादीनाम् / 2 / 3 / 68 // एषाम् ‘नो ण् वा' स्यात् / गिरिणदी, गिरिनदी; तूर्यमाणः, तूर्यमानः // 68 // पानस्य भावकरणे / 2 / 3 / 69 // पूर्वपदस्थाद् रादेः परस्य भावकरणार्थस्य पानस्य 'नो ण् वा' स्यात् / क्षीरपाणं क्षीरपानं स्यात् / कषायपाणः कषायपानः कंसः // 69 // देशे 2370 // पूर्वपदस्थाद् रादेः परस्य देशविषयस्य पानस्य 'नो ण् नित्यम्' स्यात् / क्षीरपाणा उशीनराः / देश इति किम् ? क्षीरपाना गोदुहः // 70 // ग्रामाऽग्रात्रियः / 2 / 3 / 71 // आभ्यां परस्य नियो ‘नो ण्' स्यात् / ग्रामणीः, अग्रणीः // 71 // वाह्याद् वाहनस्य / 2 / 3 / 72 // वाह्यवाचिनो रादिमतः पूर्वपदात् परस्य वाहनस्य 'नो ण्' स्यात् / इक्षुवाहणम् / वाह्यादिति किम् ? सुरवाहनम् // 72 // ___ अतोऽहुनस्य / 2 / 3 / 73 // रादिमतोऽदन्तात् पूर्वपदात् परस्याऽह्नस्य 'नो ण्' स्यात् / पूर्वाह्नः / अत इति किम् ? दुरह्नः / अह्नस्येति किम् ? दीर्घाह्नी शरत् // 73 // चतुर्हायनस्य वयसि / 2 / 374 // आभ्यां पूर्वपदाभ्यां परस्य हायनस्य 'नो ण्' स्यात्, वयसि गम्ये / चतुर्हायणो वत्सः, त्रिहायणी वडवा / वयसीति किम् ? चतुर्हायना शाला // 74 // वोत्तरपदान्तन-स्यादेरयुव-पक्वा-ऽनः / 2 / 375 // पूर्वपदस्थाद् रादेः परस्य उत्तरपदान्तभूतस्य नाऽऽगमस्य स्यादेश्च ‘नो ण् वा' Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 89 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् स्यात्, चेद् युवन्-पक्वा-ऽहन्सम्बन्धी न स्यात् / व्रीहिवापिणी, व्रीहिवापिनौ; माषवापाणि, माषवापानि; व्रीहिवापेण, व्रीहिवापेन / युवादिवर्जनं किम् ? आर्ययूना, प्रपक्वानि, दीर्घाह्नी शरत् // 75 // कवर्गकस्वरवति / 2 / 376 // पूर्वपदस्थाद् रादेः परस्य कवर्गवत्येकस्वरवति चोत्तरपदे सति, उत्तरपदातस्य नागमस्य स्यादेश्च 'नो ण' स्यात्, न चेदसौ पक्वस्य / स्वर्गकामिणौ, वृषगामिणौ; ब्रह्महणौ, यूषपाणि / अपक्वस्येत्येव - क्षीरपक्वेन // 76 / / __अदुरुपसर्गान्तरो ण-हिनु-मीनाऽऽनेः / 2 / 377 // दुर्वोपसर्गस्थादन्तः शब्दस्थाच्च रादेः परस्यैषाम् 'नो ण्' स्यात् / णेति णोपदेशा धातवः- प्रणमति, परिणायकः, अन्तर्णयति / हिनु- प्रहिणुतः / मीना- प्रमीणीतः / आनि प्रयाणि / अदुरिति किम् ? दुर्नयः // 77 // नशः शः / 2 / 3 / 78 // अदुरुपसर्गान्तःस्थाद् रादेः परस्य नशः शन्तस्य ‘नो ण' स्यात् / प्रणश्यति, अन्तर्णश्यति / श इति किम् ? प्रनक्ष्यति // 7 // ने-मा-दा-पत-पद-नद-गद-वपी-वही-शमू-चिग-याति वाति-द्राति-प्साति-स्यति-हन्ति-देग्धौ / 2 / 379 // अदुरुपसर्गान्तःस्थाद् रादेः परस्योपसर्गस्य ने! माङादिषु परेषु 'ण' स्यात् / प्रणिमिमीते, परिणिमयते / प्रणिददाति, परिणिदयते, प्रणिदधाति / प्रणिपतति / परिणिपद्यते / प्रणिनदति / प्रणिगदति / प्रणिवपति / प्रणिवहति / प्रणिशाम्यति / प्रणिचिनोति / प्रणियाति / प्रणिवाति / प्रणिद्राति / प्रणिप्साति / प्रणिस्यति / प्रणिहन्ति / प्रणिदेग्धि / अन्तर्णिमिमीते // 79 // __ अक-खाद्यषान्ते पाठे वा / / 3 / 80 // Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 90 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् धातुपाठे क-खादिः षान्तश्च यो धातुस्ताभ्यामन्यस्मिन् धातौ परेऽदुरुपसर्गान्तःस्थाद् रादेः परस्य ने! ‘ण वा' स्यात् / प्रणिपचति, प्रनिपचति / अकखादीति किम् ? प्रनिकरोति, प्रनिखनति / अषान्त इति किम् ? प्रनिद्वेष्टि / पाठ इति किम् ? प्रनिचकार // 8 // . द्वित्वेऽप्यन्तेप्यनितेः, परेस्तु वा / 2 / 3 / 81 // अदुरुपसर्गान्तःस्थाद् रादेः परस्याऽनिते! द्वित्वा-ऽद्वित्वयोरन्ता-ऽनन्तयोश्च 'ण' स्यात्, परिपूर्वस्य तु वा स्यात् / प्राणिणिषति, पराणिति, हे प्राण ! / पर्यणिणिषति, पर्यनिनिषति; पर्यणिति, पर्यनिति; हे पर्यण् !, हे पर्यन् ! // 8 // हनः / 2 / 3182 // अदुरुपसर्गान्तःस्थाद् रादेः परस्य हन्ते! 'ण' स्यात् / प्रहण्यते, अन्तहण्यते // 82 // व-मिवा / 2 / 3 / 83 // अदुरुपसर्गान्तःस्थाद् रादेः परस्य 'हन्तेर्नो व्-मोः परयोर्ण वा' स्यात् / प्रहण्वः, प्रहन्वः; प्रहण्मि, प्रहन्मि; अन्तर्हण्वः अन्तर्हन्वः; अन्तर्हमः, अन्तर्हन्मः / / 83 // निस-निक्ष-निन्दः कृति वा / 2 / 3 / 84 // अदुरुपसर्गान्तःस्थाद् रादेः परस्य निसादिधातो! ‘ण वा' स्यात्, कृत्प्रत्यये / प्रणिंसनम्, प्रनिसनम्, प्रणिक्षणम्, प्रनिक्षणम्। प्रणिन्दनम्, प्रनिन्दनम् / कृतीति किम् ? प्रणिस्ते // 84 // स्वरात् / 2 / 3 / 85 // अदुरुपसर्गान्तःस्थाद् रादेः परस्य स्वरादुत्तरस्य कृतो 'नो ण् स्यात् / प्रहाणः, प्रहीणः // 85 // Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् नाम्यादेरेव ने / 2 / 3 / 86 // मदुरुपसर्गान्तःस्थाद् - रादेः परस्य नाऽऽगमे सति नाम्यादेरेव धातोः परस्य स्वरादुत्तरस्य कृतस्य 'नो ण्' स्यात् / प्रेक्षणम्, रोङ्गणम्, प्रेङ्गणीयम् / सान्यादेरिति किम् ? प्रमङ्गनम् // 86 // . व्यञ्जनादे म्युपान्त्याद् वा / 2 / 3 / 87 // अदुरुपसर्गान्तःस्थाद् रादेः परो यो व्यञ्जनादि म्युपान्त्यो धातुस्ततः परस्य कृतः स्वरात्परस्य ‘नो ण् वा' स्यात् / प्रमेहणम्, प्रमेहनम् / व्यञ्जनादेरिति किम् ? प्रोहणम् / नाम्युपान्त्यादिति किम् ? प्रवपणम्, प्रवहणम् / स्वरादित्येव - प्रभुग्नः / अदुरित्येव- दुर्मोहनः / ल-च-टादिवर्जनं किम् ? प्रभेदनम्, प्रभोजनम् / “स्वराद् (2,3,85)" इत्यनेन नित्यप्राप्ते विभाषेयम् / / 87 / / र्वा / 2 / 3 / 88 // अदुरुपसर्गान्तःस्थाद् रादेः परस्य प्रयन्तस्य धातोर्विहितस्य स्वरात्परस्य कृतो 'नो ण् वा' स्यात् / प्रमङ्गणा, प्रमङ्गना / विहितविशेषणं किम् ? प्रयाप्यमाणः प्रयाप्यमान इति क्यान्तरेऽपि स्यात् // 88 // . निर्विण्णः / 2 / 3 / 89 // निर्विदेः सत्ता-लाभ-विचारार्थात् परस्य क्तस्य 'नो णत्वम्' स्यात् / निर्विणः / / 89 // / न ख्या-पूग-भू-भ. -कम-गम-प्याय-वेपोऽणेश्च / 2 / 3 / 90 // अदुरुपसर्गान्तःस्थाद् रादेः परेभ्यः ख्यादिभ्योऽण्यन्त-ण्यन्तेभ्यः परस्य कृतो 'नो ण् न' स्यात् / प्रख्यानम्, प्रख्यापनम् / प्रपवनम्, प्रपावनम् / प्रभवनम्, प्रभावना / प्रभायमानम्, प्रभापना / प्रकामिनौ, प्रकामना / अप्रगमनिः, प्रगमना / प्रप्यानः, प्रप्यायना / प्रवेपनीयम्, प्रवेपना // 90 // Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् देशेऽन्तरोऽयन-हनः / 2 / 3 / 91 // अन्तःशब्दात्परस्याऽयनस्य हन्तेश्च 'नो देशेऽर्थे ण् न' स्यात् / अन्तरयनोऽन्तर्हननो वा देशः / देश इति किम् ? अन्तरयणम्, अन्तर्हण्यते // 91 // षात् पदे / 2 / 3 / 92 // पदे परतो यः षस्ततः परस्य 'नो ण् न' स्यात् / सर्पिष्मानम् / पद इति किम् ? सर्पिष्केण // 92 // पदेऽन्तरेऽनाऽऽङ्वतद्धिते / 2 / 3 / 93 // आङन्तं तद्धितान्तं च मुक्त्वाऽन्यस्मिन् पदे निमित्त-कार्यिणोरन्तरे 'नो ण् न' स्यात् / प्रावनद्धम्, रोषभीममुखेन / अनाङीति किम् ? प्राणद्धम् / अतद्धित इति किम् ? आर्द्रगोमयेण // 13 // हनो घि 2 / 3 / 94 // हन्ते! घि निमित्तकार्यिणोरन्तरे सति ‘ण् न' स्यात् / शत्रुघ्नः // 94 // नृतेर्यङि / 2 / 3 / 95 // नृते! यविषये ‘ण न' स्यात् / नरीनृत्यते, नरिनर्ति / यङीति किम् ? हरिणी नाम कश्चित् // 95 // क्षुभ्नादीनाम् / 2 / 3 / 96 // एषाम् ‘नो ण् न' स्यात् / क्षुम्नाति, आचार्यानी // 16 // पाठे धात्वादेर्णो नः / 2 / 3 / 97 // पाठे धात्वादे- 'र्णो नः' स्यात् / नयति / पाठ इति किम् ? णकारीयति / आदेरिति किम् ? भणति // 97 / / षः सोऽष्ट्रयै-ष्ठिव-प्वष्कः / / 3 / 98 // पाठे धात्वादेः 'षः सः' स्यात्, न तु ष्ट्यै-ष्ठिव-ष्वष्का सम्बन्धी स्यात् / Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् सहते / आदेरित्येव - लषति / ष्ट्यादिवर्जनं किम् ? ष्ट्यायति, ष्ठीव्यति, ष्वष्कते // 98 // . ऋ-र ल-लं कृपोऽकृपीटादिषु / 2 / 3 / 99 // 'कृपेक़त लत्, रस्य च ल् स्यात्, न तु कृपीटादिविषयस्य / क्लप्यते, क्लप्तः; कल्पते, कल्पयति / अकृपीटादिष्विति किम् ? कृपीटम्, कृपाणः // 99 / / उपसर्गस्या-ऽयौ / 2 / 3 / 100 // उपसर्गस्थस्य ‘रस्याऽयौ धातौ परे ल्' स्यात् / प्लायते, पुत्ययते // 10 // ग्रो यङि / 2 / 3 / 101 // यङि परे गिरते ‘रो ल्' स्यात् / निजेगिल्यते // 101 // नवा स्वरे / 2 / 3 / 102 // ग्रो रः स्वरादौ प्रत्यये परे विहितस्य 'ल् वा' स्यात् / गिलति, गिरति; निगाल्यते, निगार्यते / विहितविशेषणं किम् ? गिरः // 102 // परे-ऽङ्क-योगे / 2 / 3 / 103 // परिस्थस्य रो घादौ परे ‘ल वा' स्यात् / पलिघः, परिघः; पल्यङ्कः, पर्यङ्कः; पलियोगः, परियोगः // 103 // ऋफिडादीनां उश्च लः / 2 / 3 / 104 // एषाम् 'ऋ-रो ल-लौ डस्य च ल् वा' स्यात् / लफिडः, लफिलः; ऋफिडः, ऋफिलः; लतकः, ऋतकः; कपलिका, कपरिका // 104 // जपादीनां पो वः / 2 / 3 / 105 // एषाम् ‘पो वो वा' स्यात् / जवा, जपा; पारावतः, पारापतः / / 105 // इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितायां सिद्धहेमचन्द्राभिधानस्वोपज्ञशब्दानुशासन लघुवृत्तौ द्वितीयस्याध्यायस्य तृतीयः पादः समाप्तः / 2 / 3 // Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् मूलराजासिधारायां निमग्ना ये महीभुजः / उन्मज्जन्तो विलोक्यन्ते स्वर्गङ्गाजलेषु ते // 7 // . . -----xox ------- (चतुर्थः पादः) स्त्रियां नृतोऽस्वस्रादेर्डीः / 2 / 4 / 1 // स्त्रीवृत्तेर्नान्ताद् ऋदन्ताच्च स्वनादिवर्जाद् ‘ङीः' स्यात् / राज्ञी; अतिराज्ञी, की / स्त्रियामिति किम् ? पञ्च नद्यः / अस्वस्रादेरिति किम् ? स्वसा, दुहिता / / 1 / / अधातूद्रदितः / 2 / 4 / 2 // अधातुर्य उदिद् ऋदिच्च तदन्तात् स्त्रीवृत्ते- 'र्डीः' स्यात् / भवती, अतिमहती, पचन्ती / अधात्विति किम् ? सुकन् स्त्री // 2 // अञ्चः / 2 / 4 / 3 // अञ्चन्तात् स्त्रियां 'ङीः' स्यात् / प्राची, उदीची // 3 // ण-स्वरा-ऽघोषाद् वनो रश्च / 2 / 4 / 4 // एतदन्ताद् विहितो यो वन् तदन्तात् स्त्रियां 'डीः' स्यात्, तद्योगे वनोऽन्तस्य रश्च' / अवावरी, धीवरी, मेरुदृश्वरी / ण-स्वरा-ऽघोषादिति किम् ? सहयुध्वा स्त्री / विहितविशेषणं किम् ? शर्वरी // 4 // वा बहुव्रीहेः / 2 / 4 / 5 // ग-स्वरा-ऽघोषाद् विहितो यो वन् तदन्ताद् बहुव्रीहेः स्त्रियां- 'ङीर्वा' स्यात्, रश्चान्तस्य / प्रियावावरी, प्रियावावा / बहुधीवरी, बहुधीवा / बहुमेरुदृश्वरी, बहुमेरुदृश्वा / / 5 / / Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् वा पादः / 2 / 4 // 6 // बहुव्रीहेस्तद्धेतुकपाच्छब्दान्तात् स्त्रियां ‘ङीर्वा' स्यात् / द्विपदी, द्विपात् / बहुव्रीहिनिमित्तो यः पाद् इति विशेषणादिह न स्यात्- पादमाचष्टे क्विपि पाद्, त्रयः पादोऽस्याः- त्रिपात् // 6 // ऊनः / 2 / 47 // ऊधन्नन्ताद् बहुव्रीहेः स्त्रियां 'डीः' स्यात् / कुण्डोध्नी // 7 // ___ अशिशोः // 2 // 48 // अशिशु इति बहुव्रीहेः स्त्रियां 'डीः' स्यात् / अशिश्वी // 8 // संख्यादेर्हायनाद् वयसि / 2 / 4 / 9 // संख्यादेर्हायनान्ताद् बहुव्रीहेः स्त्रियां “डीः स्यात्, वयसि गम्ये' / त्रिहायणी, चतुर्हायणी वडवा / वयसीति किम् ? चतुर्हायना शाला // 9 // दाम्नः / 2 / 4 / 10 // संख्यादेमन्नन्ताद् बहुव्रीहेः स्त्रियां 'डीः' स्यात् / द्विदाम्नी / संख्यादेरित्येवउद्दामानं पश्य // 10 // . अनो वा / 2 / 4 / 11 // अनन्ताद् बहुव्रीहेः स्त्रियां ‘ङीर्वा' स्यात् / बहुराइयो, बहुराजे, बहुराजानौ // 11 // नाम्नि / 2 / 4 / 12 // अन्नन्ताद् बहुव्रीहेः स्त्रियां 'संज्ञायां नित्यं ङीः' स्यात् / अधिराज्ञी, सुराज्ञी नाम ग्रामः // 12 // . नोपान्त्यवतः / 2 / 4 / 13 // यस्योपान्त्यलुग् नास्ति तस्मादन्नन्ताद् बहुव्रीहेः स्त्रियां ‘डीन' स्यात् / सुपर्वा, सुशर्मा / उपान्त्यवत इति किम् ? बहुराज्ञी / / 13 / / Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् मनः / 2 / 4 / 14 // मन्नन्तात् स्त्रियां ‘डीन' स्यात् / सीमानौ // 14 // ताभ्यां वा-ऽऽप् डित् / 2 / 4 / 15 // मन्नन्ताद् बहुव्रीहेश्वाऽनन्तात् स्त्रियाम् ‘आप वा स्यात्, स च डित्' / सीमे, सुपर्वेः पक्षे-सीमानौ, सुपर्वाणी // 15 // अजादेः / 2 / 4 / 16 // अजादेस्तस्यैव स्त्रियाम् 'आप' स्यात् / अजा, बाला, ज्येष्ठा, क्रुञ्चा // 16 // ऋचि पादः पात्पदे / 2 / 4 / 17 // कृतपाद्भावपादस्य ऋच्यर्थे 'पात्पदेति निपात्यते' / त्रिपदा, त्रिपाद्, गायत्री / ऋचीति किम् ? द्विपात्, द्विपदी ||17|| __ आत / 2 / 4.18 // अकारान्तात् स्त्रियाम् 'आप' स्यात् / खट्वा, या, सा // 18 // गौरादिभ्यो मुख्यान्कीः / 2 / 4 / 19 // गौरादिगणान्मुख्यात् स्त्रियां ‘डीः' स्यात् / गौरी, शबली / मुख्यादिति किम् ? बहुनदा भूमिः // 19 // अणजेयेकण-नञ्-स्न-टिताम् / 2 / 4 // 20 // अणादीनां योऽत् तदन्तात्तेषामेव स्त्रियां 'डीः' स्यात् / औपगवी, बैदी, सौपर्णेयी, आक्षिकी, स्त्रैणी, पौंस्नी, जानुदनी // 20 // वयस्यनन्त्ये / 2 / 4 / 21 // .. / कालकृता शरीरावस्था वयस्तस्मिन्नचरमे वर्तमानादकारान्तात् स्त्रियां 'डीः' स्यात् / कुमारी, किशोरी, वधूटी / अनन्त्य इतिं किम् ? वृद्धा // 21 // द्विगोः समाहारात् / 2 / 4 / 22 // Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 97 त सर्वतो मानं पा स्त्रियां ‘डोः' स्यात् / / पञ्चाश्या / तद्धितलुक. श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् समाहारद्विगोरदन्तात् स्त्रियां 'डीः' स्यात् / पञ्चमूली, दशराजी // 22 // परिमाणात् तद्धितलुक्यबिस्ताऽऽचितकम्बल्यात् / 2 / 4 // 23 // परितः सर्वतो मानं परिमाणं रूढेः प्रस्थादि, बिस्तादिवर्जपरिमाणाताद् द्विगोरदन्तात् तद्धितलुकि स्त्रियां 'डीः' स्यात् / द्वाभ्यां कुडवाभ्यां क्रीता द्विकुडवी / परिमाणादिति किम् ? पञ्चभिरश्वः क्रीता पञ्चाश्वा / तद्धितलुकीति किम् ? द्विपण्या / बिस्तादिवर्जनं किम् ? द्विबिस्ता, द्व्याचिता, द्विकम्बल्या // 23 // काण्डात् प्रमाणादक्षेत्रे / 2 / 4 / 24 // प्रमाणवाचिकाण्डान्तादक्षेत्रविषयाद् द्विगोस्तद्धितलुकि स्त्रियां ‘ङीः' स्यात् / आयामः प्रमाणम्, द्वे काण्डे प्रमाणमस्याः द्विकाण्डी रज्जुः / प्रमाणादिति किम् ? द्विकाण्डा शाटी / अक्षेत्र इति किम् ? द्विकाण्डा क्षेत्रभक्तिः // 24 // पुरुषाद् वा / 2 / 4 // 25 // प्रमाणवाचिपुरुषान्ताद् द्विगोस्तद्धितलुकि स्त्रियां ‘ीर्वा' स्यात् / द्विपुरुषी द्विपुरुषा परिखा / तद्धितलुकीत्येवः पञ्च पुरुषाः समाहृताः पञ्चपुरुषी // 25 // रेवत-रोहिणाद् भे / 2 / 4 / 26 // आभ्यां नक्षत्रवृत्तिभ्यां स्त्रियां 'डीः' स्यात् / रेवती, रोहिणी, रेवत्यां जाता रेवती / भ इति किम् ? रेवता // 26 // नीलात् प्राण्यौषध्योः // 2 // 4 // 27 // प्राणिन्यौषधौ च नीलात् स्त्रियां 'डीः' स्यात् / नीली गौः, नीली औषधिः, नीलाऽन्या // 27 // क्ताच नाम्नि वा / 2 / 4 / 28 // नीलगत् क्तान्ताच्च स्त्रियां संज्ञायां 'डीर्वा' स्यात् / नीली, नीला; प्रवृद्धविलूनी, प्रवृद्धविलूना // 28 // Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 98 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् केवल-मामक-भागधेय-पापा-ऽपर-समाना-ऽऽर्यकृत-सुम गल-भेषजात् / 2 / 4 / 29 // एभ्यो नाम्नि स्त्रियां ‘ङीः' स्यात् / केवली ज्योतिः, मामकी, भागधेयी, पापी, अपरी, समानी, आर्यकृती, सुमङ्गली, भेषजी / नाम्नीत्येव-केवला // 29 // भाज-गोण-नाग-स्थल-कुण्ड-काल-कुश-कामुक-कट-कबरात् पक्वा-ऽऽवपन-स्थूला-ऽकृत्रिमा-ऽमत्र-कृष्णा-ऽऽयसी रिंसु-श्रीणि-केशपाशे / 2 / 4 / 30 // एभ्यो यथासंख्यं पक्वादिष्वर्थेषु स्त्रियां 'नाम्नि ङीः' स्यात् / भाजी पक्वा चेत्, भाजाऽन्या / गोणी आवपनम्, गोणाऽन्या / नागी स्थूला, नागाऽन्या। स्थली अकृत्रिमा, स्थलाऽन्या / कुण्डी अमत्रम्, कुण्डाऽन्या / काली कृष्णा, कालाऽन्या / कुशी आयसी, कुशाऽन्या / कामुकी रिरंसुः, कामुकाऽन्या / कटी श्रोणिः, कटाऽन्या / कबरी केशपाशः, कबराऽन्या // 30 // नवा शोणादेः / 2 / 4 // 31 // शोणादेः स्त्रियां ‘डीर्वा' स्यात् / शोणी, शोणा; चण्डी, चण्डा // 31 // इतोऽक्त्यर्थात् // 2 // 4 // 32 // क्त्यर्थप्रत्ययान्तवर्जाद् इदन्तात् स्त्रियां 'ङीर्वा स्यात् / भूमी, भूमिः; धूली, धूलिः / अक्त्यादिति किम् ? कृतिः, अकरणिः, हानिः // 32 // पद्धतेः / 2 / 4 / 33 // अस्मात् स्त्रियां 'ङीर्वा' स्यात् / पद्धती, पद्धतिः // 33 / / शक्तेः शस्त्रे / 2 / 4 // 34 // अस्माच्छस्त्रे स्त्रियां 'डीर्वा' स्यात् / शक्ती, शक्तिः / शस्त्र इति किम् ? शक्तिः- सामर्थ्यम् // 34 // Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् - स्वरादुतो गुणादखरोः / 2 / 4 // 35 // स्वरात् परो य उत् तदन्ताद् गुणवचनात् खरुवर्जात् स्त्रियां ‘ङीर्वा' स्यात् / पट्वी, पटुः / विभ्वी, विभुः / स्वरादिति किम् ? पाण्डुर्भूमिः / गुणादिति किम् ? आखुः स्त्री / अखरोरिति ? खरुरियम् // 35 // श्येतैत-हरित-भरत-रोहिताद् वर्णात् तो नश्च / 2 / 4 // 36 // एभ्यो वर्णवाचिभ्यः स्त्रियां ‘ङीर्वा स्यात् तद्योगे तो न च' / श्येनी, श्येता; एनी, एता; हरिणी, हरिता; भरणी, भरता; रोहिणी, रोहिता / वर्णादिति किम् ? श्येता, एता // 36 // क्नः पलिता-ऽसितात् / 2 / 4 / 37 // त इति चेति चा-ऽनुवर्तते, आभ्यां स्त्रियां ‘ङीर्वा स्यात्, तद्योगे तः क्नः' / पलिक्नी, पलिता; असिक्नी, असिता // 37 // [2 / 4 / 38 // असह-नञ्-विद्यमानपूर्वपदात् स्वाङ्गादक्रोडादिभ्यः सहादिवर्जपूर्वपदं यत् स्वाङ्गं तदन्तात् क्रोडादिवर्जाद् अदन्तात् स्त्रियां 'डीर्वा' स्यात् / पीनस्तनी, पीनस्तना; अतिकेशी, अतिकेशा माला / सहादिवर्जनं किम् ? सहकेशा, अकेशा, विद्यमानकेशा / क्रोडादिवर्जनं किम् ? कल्याणक्रोडा, पीनगुदा, दीर्घवाला / स्वाङ्गादिति किम् ? बहुशोफा, बहुज्ञाना, बहुयवा // 38 // (2 / 4 / 39 // नासिकोदरोष्ठ-जया-दन्त-कर्ण-शृङ्गा-ऽङ्ग-गात्र-कण्ठात् सहादिवर्जपूर्वपदेभ्य एभ्यः स्वाङ्गेभ्यः स्त्रियां ‘ङीर्वा' स्यात् / तुङ्गनासिकी, तुङ्गनासिका; कृशोदरी, कृशोदरा; बिम्बोष्टी, बिम्बोष्ठा; दीर्घजङ्घी, दीर्घजङ्घा; समदन्ती, समदन्ता; चारुकर्णी, चारुकर्णा; तीक्ष्णशृङ्गी, तीक्ष्णशृङ्गा; मृद्वङ्गी, मृद्वङ्गाः सुगात्री, सुगात्रा; सुकण्ठी, सुकण्टा / पूर्वेण सिद्धे नियमार्थमिदन, तेन बहुस्वरसंयोगोपान्त्येभ्योऽन्येभ्यो भा भूत-सुललाटा, सुपावा ||31|| Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 100 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् नख-मुखादनाम्नि / 2 / 4140 // .. सहादिवर्जपूर्वपदाभ्यां स्वाङ्गाभ्यामाभ्याम् असंज्ञायामेव स्त्रियां ङीर्वा' स्यात् / शूर्पनखी, शूर्पनखा; चन्द्रमुखी, चन्द्रमुखा / अनाम्नीति किम् ? शूर्पणखा, कालमुखा // 40 // पुच्छात् / 2 / 4 / 41 // सहादिवर्जपूर्वपदात् स्वाङ्गात् पुच्छात्. स्त्रियां 'डीर्वा' स्यात् / दीर्घपुच्छी दीर्घपुच्छा // 41 // कबर-मणि-विष-शरादेः / 2 / 4 // 42 // एतत्पूर्वपदात् पुच्छात् स्त्रियां 'डीनित्यम्' स्यात् / कबरपुच्छी, मणिपुच्छी, विषपुच्छी, शरपुच्छी // 42 // पक्षाचोपमानाऽऽदेः / 2 / 4 / 43 // उपमानपूर्वात् पक्षात् पुच्छाच्च स्त्रियां 'डीः' स्यात् / उलूकपक्षी शाला, उलूकपुच्छी सेना // 43 // क्रीतात् करणादेः / 2 / 4 / 44 // करणादेः क्रीतान्ताददन्तात् स्त्रियां 'डीः' स्यात् / अश्वक्रीति, मनसाक्रीति / आदेरिति किम् ? अश्वेन क्रीता // 44 // तादल्पे / 2 / 4 // 45 // क्तान्तात् करणादेरल्पेऽर्थे स्त्रियां 'डीः' स्यात् / अभ्रविलिप्ती द्यौः, अल्पाभ्रेत्यर्थः / अल्प इति किम् ? चन्दनानुलिप्ता स्त्री // 45 // स्वाङ्गादेस्कृत-मित-जात-प्रतिपन्नाद् बहुव्रीहेः / / 4 / 46 // स्वाङ्गादेः कृतादिवर्जात् क्तान्ताद् बहुव्रीहेः स्त्रियां 'डीः' स्यात् / शङ्खभित्री, ऊरुभिन्नी / कृतादिवर्जनं किम् ? दन्तकृता, दन्तमिता, दन्तजाता, Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 101 दन्तप्रतिपन्ना // 46 // अनाच्छादजात्यादेर्नवा // 2 // 4 // 47 // आच्छादवर्जा या जातिस्तदवयवात् कृतादिवर्जात् क्तान्ताद् बहुव्रीहेः स्त्रियां 'कीर्वा स्यात् / शाङ्गरजग्धी, शाङ्गरजग्धा / आच्छादवर्जनं किम् ? वस्त्रच्छन्ना / जात्यादेरिति किम् ? मासयाता / अकृताद्यन्तादित्येव- कुण्डकृता // 47 // . पत्युनः / 2 / 4 // 48 // पत्यन्ताद् बहुव्रीहेः स्त्रियां 'डीर्वा स्यात्, तद्योगेऽन्तस्य न च' / दृढपत्नी, दृढपतिः / मुख्यादित्येव- बहुस्थूलपतिः पुरी // 48 // . सादेः / 2 / 4 // 49 // सपूर्वपदात् पत्यन्तात् स्त्रियां ‘डीर्वा स्यात्, तद्योगेऽन्तस्य न् च' / ग्रामस्य पतिः ग्रामपली , ग्रामपतिः / सादेरिति किम् ? पतिरियम्, ग्रामस्य पतिरियम् // 49 // सपत्न्यादौ 21450 // - [ // 50 // ] एषु पतिशब्दात् स्त्रियां 'डीः' स्यात्, अन्तस्य न च' / सपली, एकपली / ऊढायाम् / 2 / 4 / 51 // पत्युः परिणीतायां स्त्रियां 'डीः स्यात्, न चाऽन्तस्य' / पत्नी, वृषलस्य पली // 51 // पाणिगृहीतीति / 2 / 4 / 52 // पाणिगृहीतीतिप्रकाराः शब्दा ऊढायां स्त्रियां 'ड्यन्ता निपात्यन्ते' / पाणिगृहीती, करगृहीती / ऊढायामित्येव - पाणिगृहीताऽन्या // 52 // पतिवल्यन्तर्वल्यौ भार्या-गर्भिण्योः / 2 / 4 // 53 // भार्या- अविधवा स्त्री, तस्यां गर्भिण्यां च यथासंख्यम् ‘एतौ निपात्येते' / Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 102 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् पतिवली, अन्तर्वनी // 53 // जातेरयान्त-नित्यस्त्री-शूद्रात् / 2 / 454 // जातिवाचिनोऽदन्तात् स्त्रियां ‘डीः' स्यात्, न तु यान्त-नित्यस्त्री-शूद्रात् / कुक्कुटी, वृषली, नाडायनी, कठी / जातेरिति किम् ? मुण्डा / यान्तवर्जन किम् ? क्षत्रिया / नित्यस्त्रीवर्जनमिति किम् ? खट्वा / शूद्रवर्जनं किम् ? शूद्रा / आदित्येव - आखुः // 54 // पाक-कर्ण-पर्णवालान्तात् / 2 / 4 / 55 // पाकाद्यन्ताया जातेः स्त्रियां 'डीः' स्यात् / ओदनपाकी, आखुकर्णी, मुद्गपर्णी, गोवाली / जातेरित्येव- बहुपाका यवागूः // 55 // असत्-काण्ड-प्रान्त-शतैकाचः पुष्पात् / 2 / 4 / 56 // सदादिवर्जेभ्यः परो यः पुष्पशब्दस्तदन्ताज्जातेः स्त्रियां 'डीः' स्यात् / शङ्खपुष्पी। सदादिवर्जनं किम् ? सत्पुष्पा, काण्डपुष्पा, प्रान्तपुष्पा, शतपुष्पा, एकपुष्पा, प्राक्पुष्पा // 56 // असम्-भस्त्रा-ऽजिनक-शण-पिण्डात् फलात् / 2 / 4 / 57 // समादिवर्जेभ्यो यः फलशब्दस्तदन्ताज्जातेः स्त्रियां 'डीः' स्यात् / दासीफली / समादिप्रतिषेधः किम् ? संफला, भस्त्राफला, अजिनफला, एकफला, शणफला, पिण्डफला ओषधिः // 57 // ___ अनजो मूलात् / 2 / 4 / 58 // नवर्जात् परो यो मूलशब्दस्तदन्ताज्जातेः स्त्रियां 'डीः' स्यात् / दर्भमूली, शीर्षमूली / अनञ इति किम् ? अमूला // 58 // . ___धवाद् योगादपालकान्तात् / 2 / 459 // धवो-भर्ता, तद्वाचिनः सम्बन्धात् स्त्रीवृत्तेः पालकान्तशब्दवर्जात् ‘ङीः' स्यात् / Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 103 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् प्रठी, गणकी / धवादिति किम् ? प्रसूता / योगादिति किम् ? देवदत्तो धवः, देवदत्ता स्त्री स्वतः / अपालकान्तादिति किम् ? गोपालकस्य स्त्री गोपालिका / आदित्येव-सहिष्णोः स्त्री सहिष्णुः // 59 // पूतक्रतु-वृषाकप्यग्नि-कुसित-कुसीदादै च / 2 / 4 / 60 // एभ्यो धववाचिभ्यस्तद्योगात् स्त्रीवृत्तिभ्यो ‘डीः स्यात् , ङीयोगे चैषामैरन्तस्य' / पूतक्रतायी, वृषाकपायी, अग्नायी, कुसितायी, कुसीदायी // 60 // मनोरौ च वा / 2 / 4 / 61 // धववृत्तेर्मनोर्योगात् स्त्रीवृत्ते- 'मर्वा स्यात्, ङीयोगे चास्य औरैश्चान्तस्य' / मनावी, मनायी, मनुः // 61 // . वरुणेन्द्र-रुद्र-भव-शर्व-मृडादान् चान्तः / 2 / 4 / 62 // एभ्यो धववाचिभ्यो योगात् स्त्रीवृत्तिभ्यो ‘डीः स्यात्, ङीयोगे आन् चान्तः' / वरुणानी, इन्द्राणी, रुद्राणी, भवानी, शर्वाणी, मृडानी // 62 / / ____ मातुला-ऽऽचार्योपाध्यायाद् वा / 2 / 4 / 63 // एभ्यो धववाचिभ्यो योगात् स्त्रीवृत्तिभ्यो ‘ङीः स्यात्, ङीयोगे चा-ऽऽनन्तो वा' / मातुलानी, मातुली; आचार्यानी, आचार्टी; उपाध्यायानी उपाध्यायी // 63 / / - सूर्याद् देवतायां वा (2 / 4164 // सूर्याद् धववाचिनो योगाद् देवतास्त्रीवृत्ते 'मर्वा स्यात्, ङीयोगे चा-ऽऽनतः' / सूर्याणी, सूर्या / देवतायामिति किम् ? मानुषी सूरी // 64 // यव-यवना-ऽरण्य-हिमाद् दोष-लिप्युरु-महत्त्वे / 2 / 4 / 65 // एभ्यो यथासंख्यं दोषादौ गम्ये स्त्रियां ‘ङीः' स्यात्, ङीयोगे चा-ऽऽनन्तः' / यवानी, यवनानी लिपिः, अरण्यानी, हिमानी // 65 // आर्य-क्षत्रियाद् वा / 2 / 4 / 66 // Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 104 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् आभ्यां स्त्रियां 'ङीर्वा स्यात्, ङीयोगे चाऽऽनन्तः' / आर्याणी, आर्या; क्षत्रियाणी, क्षत्रिया // 66 // यत्रो डायन च वा / / 4 / 67 // यजन्तात् स्त्रियां 'डीः स्यात्, ङीयोगे च डायनन्तो वा' स्यात् / गार्गी, गाायणी // 67 // - लोहितादिशकलान्तात् / 2 / 4 / 68 // लोहितादेः शकलान्तात् यजन्तात् स्त्रियां 'डीः स्यात्, तद्योगे च डायनन्तः' / लौहित्यायनी, शाकल्यायनी // 6 // षा-ऽवटाद्वा / 2 / 4 / 69 // षान्ताद् अवटाच्च यजन्तात् स्त्रियां 'टीर्वा स्यात्, डीयोगे च डायनन्तः' / पौतिमाष्यायणी, पौतिमाष्या; आवट्यायनी, आवट्या // 69 // कौरव्य-माण्डूका-ऽऽसुरेः / 2 / 470 // एभ्यः स्त्रियां 'ङीः स्यात्, ङीयोगे च डायनन्तः' / कौरव्यायणी, माण्डूकायनी, आसुरायणी // 70 // इञ इतः / 2 / 471 // इञन्ताद् इदन्तात् स्त्रियां 'डीः' स्यात् / सौतङ्गमी / इत इति किम् ? कारीषगन्ध्या // 71 // नुर्जातः / 2 / 472 // मनुष्यजातिवाचिन इदन्तात् स्त्रियां 'डीः' स्यात् / कुन्ती, दाक्षी / इत इत्येवदरत् / नुरिति किम् ? तित्तिरिः / जातेरिति किम् ? निष्कौशाम्बिः // 72 // उतोऽप्राणिनश्वाऽयु-रज्ज्वादिभ्य ऊङ् / 2 / 473 // उदन्तानृजातेरप्राणिजातिवाचिनश्च स्त्रियाम् 'ऊङ् स्यात्, न तु य्वन्ताद् Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 105 रज्ज्वादिभ्यश्च' / कुरूः, ब्रह्मबन्धूः; अलाबूः, कर्कन्धः / उत इति किम् ? वधूः / अप्राणिनश्चेति किम् ? आखूः / जातेरित्येव- पटुः स्त्री / युरज्ज्चादिवर्जनं किम् ? अध्वर्युः स्त्री, रज्जुः, हनुः // 73 // बाह्वन्त-कद्रु-कमण्डलोम्नि / 2 / 474 // बाह्वन्तात् कद्रु-कमण्डलुभ्यां च संज्ञायां स्त्रियाम् 'ऊ' स्यात् / मद्रबाहूः, कद्रूः, कमण्डलूः / नाम्नीति किम् ? वृत्तबाहुः // 74 // उपमान-सहित-संहित-सह-सफ-वाम-लक्ष्मणायूरोः / 2 / 4 / 75 // एतत्पूर्वपदादूरोः स्त्रियाम् 'ऊ' स्यात् / करभोरूः, सहितोसः, संहितोरुः, सहोकः, सफोरः, वामोरूः, लक्ष्मणोरूः / उपमानाद्यादेरिति किम् ? पीनोरूः // 75 // नारी-सखी-पशू-श्वश्रू / 2 / 476 // एते 'ज्यन्ता ऊङन्ताश्च निपात्यन्ते' // 76 / / यूनस्तिः / 2 / 477 // यूनः स्त्रियां 'तिः' स्यात् / युवतिः / मुख्यादित्येव- नियूँनी / / 77|| अनार्षे वृद्धेऽणिजो बहुस्वर-गुरूपान्त्यस्या-ऽन्तस्य ष्यः 21478 // अनार्षे वृद्धे विहितौ यावणिजौ तदन्तस्य सतो बहुस्वरस्य गुरूपान्त्यस्य नाम्नो-ऽन्तस्य 'ष्यः' स्यात् / कारीषगन्ध्या, बालाक्या / अनार्ष इति किम् ? वासिष्ठी / वृद्ध इति किम् ? आहिच्छत्री / अणिञ इति किम् ? आर्त्तभागी / बहुस्वरेति किम् ? दाक्षी / गुरूपान्त्यस्येति किम् ? औपगवी / अणिअन्तस्य संतो बहुस्वरादिविशेषणं किम् ? दौवार्या, औडुलोम्या // 78 // . कुलाख्यानाम् / 2 / 4 / 79 // Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 106 . श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् कुलमाऽऽख्यायते यकाभिस्तासामनार्षवृद्धाणिजन्तानामन्तस्य स्त्रियां 'ष्यः' स्यात् / पौणिक्या, गौप्त्या / अनार्ष इत्येव- गौतमी / / 79 / / क्रौड्यादीनाम् / 2 / 4 / 80 // क्रौडि इत्यादीनामणिअन्तानामन्तस्य स्त्रियां 'प्यः' स्यात् / क्रौड्या, लाड्या // 8 // __ भोज-सूतयोः क्षत्रिया-युवत्योः / 2 / 4 / 81 // अनयोरन्तस्य यथासंख्यं क्षत्रिया-युवत्योः स्त्रियां 'ष्यः' स्यात् / भोज्या क्षत्रिया, सूत्या युवतिः / अन्या तु भोजा, सूता ||81|| दैवयज्ञि-शौचिवृक्षि-सात्यमुनि-काण्ठेविद्वेर्वा / 2 / 4 / 82 // एषाम् इञन्तानां स्त्रियामन्तस्य 'ष्यो वा' स्यात् / दैवयझ्या, दैवयज्ञी; शौचिवृक्ष्या, शौचिवृक्षी; सात्यमुग्र्या, सात्यमुग्री; - काण्ठेविझ्या, काण्ठेविद्धी / / 82 // . घ्या पुत्र-पत्योः केवलयोरीच तत्पुरुषे / 2 / 4 / 83 // मुख्य आबन्तः ष्यः पुत्र-पत्योः केवलयोः परयोस्तत्पुरुषे समासे 'ईच्' स्यात् / कारीषगन्धीपुत्रः, कारीषगन्धीपतिः / ष्येति किम् ? इभ्यापुत्रः / केवलयोरिति किम् ? कारीषगन्ध्यापुत्रकुलम् / / 83 // बन्धौ बहुव्रीहौ / 2 / 4 / 84 // मुख्य आबन्तः ष्यो बन्धौ केवले परे ‘बहुव्रीहावीच्' स्यात् / कारीषगन्धीबन्धुः / केवल इत्येव-कारीषगन्ध्याबन्धुकुलम् / मुख्य इत्येव अतिकारीषगन्ध्याबन्धुः // 84 // मात-मातृ-गातृके वा / 2 / 4 / 85 // मुख्य आबन्तः ष्यो मातादिषु केवलेषु परेषु 'बहुव्रीहावीज् वा' स्यात् / Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 107 कारीषगन्धीमातः, कारीषगन्ध्यामातः; कारीषगन्धीमाता, कारीषगन्ध्यामाता / कारीषगन्धीमातृकः, कारीषगन्ध्यामातृकः / / 85 / / अस्य इयां लुक् / 2 / 4 / 86 // ड्यां परे ‘-ऽस्य लुक्' स्यात् / मद्रचरी // 86 // मत्स्यस्य यः / 2 / 4 / 87 // 'मत्स्यस्य यो ङ्यां लुक्' स्यात् / मत्सी // 87 / / व्यन्जनात् तद्धितस्य / 2 / 4 / 88 // व्यञ्जनात् परस्य तद्धितस्य ‘यो ङ्यां लुक्' स्यात् / . मनुषी / व्यञ्जनादिति किम् ? कारिकेयी / तद्धितस्येति किम् ? वैश्यी // 88 // सूर्या-ऽऽगस्त्ययोरीये च / 2 / 4 / 89 // अनयो-'र्यो झ्यामीये च प्रत्यये लुक्' स्यात् / सूरी, आगस्ती, सौरीयः, आगस्तीयः // 89 // ___तिष्य-पुष्ययो भऽणि / 2 / 4 / 90 // भम्- नक्षत्रम्, तस्याऽणि परेऽनयो-'यो लुक्' स्यात् / तैषी रात्रिः, पौषमहः / भाणीति किम् ? तैष्यश्चरुः // 10 // .. आपत्यस्य क्य-च्योः / 2 / 4 / 91 // व्यञ्जनात् परस्याऽऽपत्यस्य ‘यः क्ये च्चौ च परे लुक्' स्यात् / गार्गीयति, गार्गायते, गार्गीभूतः / आपत्यस्येति किम् ? साङ्काश्यीयति / व्यञ्जनादित्येव - कारिकेयीयति // 91 // .. तद्धितयस्वरेऽनाऽऽति / 2 / 4 / 92 // व्यञ्जनात् परस्याऽऽपत्यस्य 'यो यादावादादिवर्जस्वरादौ च तद्धिते लुक्' स्यात् / गार्यः, गार्गकम् / आपत्यस्येत्येव- काम्पील्यकः / तद्धितेति किम् ? Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 108 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् वात्स्येन / अनातीति किम् ? गार्यायणः // 92 // . बिल्वकीयादेरीयस्य / 2 / 4 / 93 // नडादिस्था बिल्वादयः, तेषां कीयप्रत्ययान्तानाम् 'ईयस्य तद्धितयस्वरे लुक्' स्यात् / बैल्वकाः, वैणुकाः / बिल्वकीयादेरिति किम् ? नाडकीयः // 13 // न राजन्य-मनुष्ययोरके / 2 / 4 / 94 // अनयो-'र्योऽके परे लुग् न' स्यात् / राजन्यानां समूहो राजन्यकम्, एवं मानुष्यकम् // 14 // यादेर्गौणस्याक्विपस्तद्धितलुक्यगोणी-सूच्योः / 2 / 4 / 95 // 'ड्यादेः प्रत्ययस्य गौणस्याक्विबन्तस्य तद्धितलुकि लुक् स्यात्, न तु गोणीसूच्योः' / सप्तकुमारः, पञ्चेन्द्रः, पञ्चयुवा, द्विपङ्गुः / गौणस्येति किम् ? अवन्ती / अक्विप इति किम् ? पञ्चकुमारी / अगोणी-सूच्योरिति किम् ? पञ्चगोणिः, दशसूचिः // 15 // ___गोश्चान्ते हस्वोऽनंशिसमासेयोबहुव्रीहौ / 2 / 4 / 96 // गौणस्याऽक्विपो गोङाद्यन्तस्य चान्ते वर्तमानस्य 'ह्रस्वः' स्यात्, न चेदसावंशिसमासान्त ईयस्वन्तबहुव्रीह्यन्तो वा / चित्रगुः, निष्कौशाम्बिः, अतिखट्वः, अतिब्रह्मबन्धुः / गौणस्येत्येव- सुगौः, राजकुमारी / अक्विप इत्येव- प्रियगौः, प्रियकुमारी चैत्रः / गोश्चेति किम् ? अतितन्त्रीः / अन्त इति किम् ? गोकुलम्, कुमारीप्रियः, कन्यापुरम् / अंशिसमासादिवर्जन किम् ? अर्द्धपिप्पली, बहुश्रेयसी ना // 16 // . कीबे / 2 / 4 / 97 // नपुंसकवृत्तेः स्वरान्तस्य नाम्नो 'ह्रस्वः' स्यात् / कीलालपम्, अतिनु कुलम् // 97 // Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 109 वेदूतोऽनव्यय-वृदीच-डीयुवः पदे / 2 / 4 / 98 // ईदूतोरुत्तरपदे परे ‘ह्रस्वो वा' स्यात् न चेतावव्ययौ य्वृतौ ईचौ ड्यौ इयुत्स्थानौ च स्याताम् / लक्ष्मिपुत्रः, लक्ष्मीपुत्रः; खलपुपुत्रः खलपूपुत्रः / अव्ययादिवर्जनं किम् ? काण्डीभूतम्, इन्द्रहूपुत्रः, कारीषगन्धीपुत्रः, गार्गीपुत्रः, श्रीकुलम्, भ्रूकुलम् // 18 // ड्यापो बहुलं नाम्नि / 2 / 4 / 99 // झ्यन्तस्याऽऽबन्तस्य चोत्तरपदे संज्ञायां 'हस्वः' स्यात्, बहुलम् / भरणि - गुप्तः; रेवतिमित्रः, रेवतीमित्रः; शिलवहम्; गङ्गमहः, गङ्गामहः // 19 // त्वे / 2 / 4 / 100 // झ्याबन्तस्य त्वे परे बहुलम् ‘हस्वः' स्यात् / रोहिणित्वम्, रोहिणीत्वम्; अजत्वम्, अजात्वम् // 100 // . भ्रुवोऽच कुंस-कुट्योः / 2 / 4 / 101 // अनयोः परयोर्भुवो ‘ह्रस्वोऽच्च' स्यात् / भ्रुकुंसः, भ्रकुंसः; भ्रुकुटिः, अकुटिः // 101 // मालेषीकेष्टकस्याऽन्तेऽपि भारि-तूल-चिते / 2 / 4 / 102 // एषां केवलानामन्तस्थानां च भार्यादिषु परेषु यथासंख्यम् ‘ह्रस्वः' स्यात् / मालभारी, उत्पलमालभारी; इषीकतूलम्, इष्टकचितम् / / 102 // , गोण्या मेये / 2 / 4 / 103 // [ // 103 // गोण्या मानवृत्तेरुपचारान्मेयवृत्ते- हस्वः' स्यात् / गोण्या मितो गोणिः .' यादीदूतः के / 2 / 4 / 104 // झ्यादीदूदन्तानां च के प्रत्यये 'ह्रस्वः' स्यात् / पट्किा , सोमपकः, लक्ष्मिका, वधुका / / 104 // Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 110 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् न कचि / 2 / 4 / 105 // यादीदूतः कचि परे ‘ह्रस्वो न' स्यात् / बहुकुमारीकः, बहुकीलालपाकः, बहुलक्ष्मीकः, बहुब्रह्मबन्धूकः // 105 // नवाऽऽपः / 2 / 4 / 106 // . [ // 106 // आपः कचि परे ‘ह्रस्वो वा' स्यात् / प्रियखट्वकः, प्रियखट्वाकः . इचाऽपुंसोनिक्याप्परे / 2 / 4 / 107 // आबेव परो यस्मान्न विभक्तिस्तस्मिन्ननितः प्रत्ययस्यावयवे के परेऽपुल्लिङ्गाद्विहितस्याऽऽपस्स्थाने 'इ-ह्रस्वौ वा' स्याताम् / खट्विका, खट्वका, खट्वाका / अपुंस इति किम् ? सर्विका / अनिदिति किम् ? दुर्गका | आप्पर इति किम् ? प्रियखट्वाको ना, अतिप्रियखट्वाका स्त्री / आप आप्पर मातृका // 10 // अनाऽधातुत्यय की ताभ्यां का शिका, स्व-ज्ञा-5ज-भस्त्राऽधातुत्ययकात् / 2 / 4 / 108 // स्व-ज्ञा-ऽज-भस्त्रेभ्यो धातु-त्यवर्जस्य यौ य-कौ ताभ्यां च परस्या-ऽऽपः स्थानेऽनित्क्याप्परे परत 'इकारो वा' स्यात् / स्विका, स्वका; शिका, ज्ञका; अजिका, अजका; अभस्त्रिका, अभस्त्रका; इभ्यिका, इभ्यका; चटकिका, चटकका / धातुत्यवर्जनं किम् ? सुनयिका, सुपाकिका, इहत्यिका / आप इत्येव- काम्पील्यिका // 10 // ज्येष-सूत-पुत्र-वृन्दारकस्य / 2 / 4 / 109 // एषामन्तस्यानित्क्याप्परे 'इर्वा' स्यात् / द्विके, द्वके; एषिका; एषका; सूतिका, सूतका; पुत्रिका; पुत्रका; वृन्दारिका, वृन्दारका // 109 / / वौ वर्तिका / 2 / 4 / 110 // शकुनावर्थे 'वर्तिका' इति 'इत्वं वा' स्यात् / वर्तिका, वर्तका / वाविति किम् ? वर्तिका भागुरिः // 110 // Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 111 अस्याऽयत्-तत्-क्षिपकादीनाम् / 2 / 4 / 111 // यदादिवर्जस्याऽतोऽनित्क्याप्परे ‘इ:' स्यात् / पाचिका, मद्रिका / अनित्कीत्येवजीवका / आप्पर इत्येव- बहुपरिव्राजका / यदादिवर्जनं किम् ? यका, सका, क्षिपका, ध्रुवका / / 111 // नरिका-मामिका / 2 / 4 / 112 // नरका-मामकयोरित्वं निपात्यते / नरिका, मामिका // 112 // तारका-वर्णका-ऽष्टका ज्योतिस्- तान्तव-पितृदेवत्ये ..2 / 4 / 113 // एतेष्वर्थेषु यथासंख्यम् ‘एते इवर्जा निपात्यन्ते' / तारका ज्योतिः, वर्णका प्रावरणविशेषः, अष्टका पितृदेवत्यं कर्म // 113 // इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितायां सिद्धहेमचन्द्राभिधानस्वोपज्ञशब्दानुशासन लघुवृत्ती द्वितीयस्याध्यायस्य चतुर्थः पादः समाप्तः // 2 // 4 // श्रीमूलराजक्षितिपस्य बाहुर्बिभर्ति पूर्वाचलशृङ्गशोभाम् / संकोचयन् वैरिमुखाम्बुजानि, यस्मिन्नयं स्फूर्जति चन्द्रहासः // 8 // // द्वितीयोऽध्यायः समाप्तः // Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 112 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // अर्हम् // अथ तृतीयोऽध्यायः (प्रथमः पादः) // धातोः पूजार्थस्वति- गतार्थाऽधिपर्यतिक्रमार्थाऽतिवर्जः - प्रादिरुपसर्गः प्राक् च / 3 / 11 // धातोः सम्बन्धी तदर्थद्योती 'प्रादिरुपसर्गः स्यात्, स च धातोः प्राक् - न परो न व्यवहितः, पूजार्थी स्वती, गतार्थावधिपरी, अतिक्रमार्थमतिञ्च वर्जयित्वा' / प्रणयति, परिणयति / धातोरिति किम् ? वृक्षं वृक्षमभि सेकः / पूजार्थस्वत्यादिवर्जनं किम् ? सुसिक्तम्, अतिसिक्तम् भवता; अध्यागच्छति, आगच्छत्यधि, पर्यागच्छति, आगच्छति परि; अतिसिक्त्वा / धातोरिति प्राक् चेति च गतिसंज्ञां यावत् // 1 // ऊर्याद्यनुकरण-च्चि-डाचश्च गतिः / 3 / 1 // 2 // एते उपसर्गाश्च धातोः सम्बन्धिनो 'गतयः स्युस्ते च प्राग् धातोः' / ऊर्यादिःऊरीकृत्य, उररीकृत्य; अनुकरणम् - खाटकृत्य; च्यन्तः- शुक्लीकृत्य; डाजन्तःपटपटाकृत्य; उपसर्गः- प्रकृत्य // 2 // कारिका स्थित्यादौ / 3 / 13 / / स्थित्यादावर्थे कारिका ‘गतिः' स्यात् / स्थितिः- मर्यादा वृत्तिर्वा / कारिकाकृत्य // 3 // भूषा-ऽऽदर-क्षेपेऽलंसद-ऽसत् / 3 / 1 // 4 // एष्वर्थेष्वेते यथासंख्यम् ‘गतयः' स्युः / अलङ्कृत्य, सत्कृत्य, असत्कृत्य / भूषादिष्विति किम् ? अलं कृत्वा- मा कारीत्यर्थः // 4 // अग्रहा-ऽनुपदेशेऽन्तरदः / 3 / 115 // Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 113 अनयोरर्थयोरेतौ यथासंख्यम् - ‘गती' स्याताम् / अन्तर्हत्य, अदःकृत्यै - तत्कर्तेति ध्यायति // 5 // कणे-मनस् तृप्तौ / 3 / 116 // एतावव्ययौ तृप्ती गम्यमानायाम् ‘गती' स्याताम् / कणेहत्य मनोहत्य पयः पिबति / तृप्ताविति किम् ? तण्डुलावयवे कणे हत्वा // 6 // पुरोऽस्तमव्ययम् / 3 / 17 // एतावव्ययौ ‘गती' स्याताम् / पुरस्कृत्य, अस्तङ्गत्य / अव्ययमिति किम् ? पुरः कृत्वा- नगरीरित्यर्थः // 7 // गत्यर्थ-वदोऽच्छः / 3 / 118 // अच्छेत्यव्ययं गत्यर्थानां वदश्च धातोः सम्बन्धि ‘गतिः' स्यात् / अच्छगत्य, अच्छोध // 8 // तिरोऽन्तौं / 3 / 1 / 9 // तिरोऽन्तर्धी 'गतिः' स्यात् / तिरोभूय // 9 // कृगो नवा / 3 / 1 / 10 // तिरोऽन्तर्धी कृगः सम्बन्धि ‘गतिर्वा' स्यात् / तिरस्कृत्य, तिरःकृत्य, पक्षे तिरः कृत्वा // 10 // मध्ये-पदे-निवचने-मनस्युरस्यनत्याधाने / 3 / 1 / 11 // अनत्याधानम् - अनुपश्लेषोऽनाश्चर्यं च, तद्वृत्तय एतेऽव्ययाः कृग्योगे 'गतयो वा' स्युः / मध्येकृत्य, मध्ये कृत्वा; पदेकृत्य, पदे कृत्वा; निवचनेकृत्य, निवचने कृत्वा; मनसिकृत्य, मनसि कृत्वा; उरसिकृत्य, उरसि कृत्वा // 11 // - उपाजेऽन्वाजे / 3 / 1 / 12 // एतावव्ययौ दुर्बलस्य भग्नस्य वा बलाधानार्थी कृग्योगे ‘गती वा' स्याताम् / Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - 114 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // उपाजेकृत्य, उपाजे कृत्वा; अन्वाजेकृत्य, अन्वाजे कृत्वा // 12 // स्वाम्येऽधिः / 3 / 1 / 13 // स्वाम्ये गम्येऽधीत्यव्ययं कृग्योगे 'गतिर्वा' स्यात् / चै ग्रामेऽधिकृत्य, अधि कृत्वा वा गतः / स्वाम्य इति किम् ? ग्राममधिकृत्य- उद्दिश्येत्यर्थः // 13 // साक्षादादिश्च्व्यर्थे / 3 / 1 / 14 // एते च्यर्थवृत्तयः कृग्योगे ‘गतयो वा' स्युः / साक्षात्कृत्य, साक्षात् कृत्वा; मिथ्याकृत्य, मिथ्या कृत्वा // 14 // नित्यं हस्ते-पाणावुद्धाहे / 3 / 1 / 15 // एतावव्ययावुद्वाहे गम्ये नित्यं कृग्योगे 'गती' स्याताम् / हस्तेकृत्य, पाणौकृत्य / उद्वाह इति किम् ? हस्ते कृत्वा काण्डं गतः // 15 // प्राध्वं बन्धे / 3 / 1 / 16 // प्राध्यमित्यव्ययं बन्धार्थं कृग्योगे ‘गतिः' स्यात् / प्राध्वंकृत्य / बन्ध इति किम् ? प्राध्वं कृत्वा शकटं गतः // 16 // . जीविकोपनिषदौपम्ये / 3 / 1117 // एतावौपम्ये गम्ये कृग्योगे ‘गती' स्याताम् / जीविकाकृत्य, उपनिषत्कृत्य // 17 // नाम नाम्नैकार्थे समासो बहुलम् / 3 / 1 / 18 // 'नाम नाम्ना सह ऐकाh - सामर्थ्यविशेषे सति समासो बहुलम्' स्यात्, लक्षणमिदमधिकारश्च तेन बहुव्रीह्यादिसंक्रमाऽभावे यत्रैकार्थता तत्रानेनैव समासः / विस्पष्टपटुः, दारुणाध्यायकः, सर्वचर्मीणो रथः, कन्येइव, श्रुतपूर्वः / नामेति किम् ? चरन्ति गावो धनमस्य / नाम्नेति किम् ? चैत्रः पचति // 18 // सुज-वाऽर्थे संख्या संख्येये संख्यया बहुव्रीहिः / 3 / 1 / 19 // Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 115 सुजऽर्थो वारः, वाऽर्थो विकल्पः संशयो वा, तवृत्ति सङ्ख्यावाचि नाम सङ्ख्येयाऽर्थेन सङ्ख्यानाम्ना सहैकार्थ्ये 'समासो बहुव्रीहिश्च' स्यात् / द्विदशाः; द्वित्राः / सङ्खयेति किम् ? गावो वा दश वा / सङ्ख्ययेति किम् ? दश वा गावो वा / सङ्ख्येय इति किम् ? द्विविंशतिर्गवाम् / / 19 // आसना-ऽदूरा-ऽधिका-ऽध्यर्द्धा-ऽ दिपूरणं द्वितीयाद्यन्यार्थे ... 3 // 1 // 20 // आसन्नादि अर्द्धपूर्वपदं च पूरणप्रत्ययान्तं नाम संख्यानाम्नैकार्थ्ये ‘समासः' स्यात्, द्वितीयाद्यन्तस्यान्यपदस्यार्थे सङ्ख्येये वाच्ये, स च ‘बहुव्रीहिः' / आसनदशाः, अदूरदशाः, अधिकदशाः, अध्यर्द्धविंशाः, अर्द्धपञ्चमविंशाः // 20 // अव्ययम् / 3 / 1 / 21 // 'अव्ययं नाम सङ्ख्यानाम्नैकार्थ्य समस्यते' द्वितीयाद्यन्यार्थे सङ्ख्येये वाच्ये स च 'बहुव्रीहिः' / उपदशाः // 21 // एकार्थं चाऽनेकं च / 3 / 1 / 22 // एकमनेकं च ‘एकार्थम्-समानाधिकरणम्' अव्ययं च नाम्ना द्वितीयाघन्तान्यपदार्थे ‘समस्यते, स च बहुव्रीहिः' / आरूढवानरो वृक्षः, सुसूक्ष्मजटकेशः, उच्चैर्मुखः // 22 // उष्ट्रमुखादयः / 3 / 1 // 23 // एते 'बहुव्रीहिसमासा निपात्यन्ते' / उष्ट्रमुखमिव मुखमस्य-उष्ट्रमुखः, वृषस्कन्धः // 23 // सहस्तेन / 3 / 1 // 24 // तेनेति तृतीयान्तेन सहोऽन्यपदार्थे “समस्यते, स च बहुव्रीहिः' / सपुत्र आगतः, सकर्मकः // 24 // Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 116 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // . दिशो रूल्याऽन्तराले / 3 / 1 / 25 // रूढ्या दिग्वाचि नाम रूढ्यैव दिग्वाचिना सहान्तरालेऽन्यपदार्थे वाच्ये 'समासो बहुव्रीहिश्च' स्यात् / दक्षिणपूर्वा दिक् / रूढ्येति किम् ? ऐन्द्रयाश्च कौबेर्याश्च दिशोर्यदन्तरालमिति (वाक्यमेव) // 25 // तत्राऽऽदाय मिथस्तेन प्रहत्येति सरूपेण युद्धेऽव्ययीभावः 3 // 1 // 26 // तत्रेति सप्तम्यन्तं मिथ आदायेति क्रियाव्यतिहारे, तेनेति तृतीयान्तं मिथः प्रहत्येति क्रियाव्यतिहारे, समानरूपेण नाम्ना युद्धविषयेऽन्यपदार्थे वाच्ये 'समासोऽव्ययीभावश्च' स्यात् / केशाकेशि, दण्डादण्डि / तत्रेति तेनेति च किम् ? केशांश्च केशांश्च गृहीत्वा, मुखं च मुखं च प्रहृत्य कृतं युद्धम् / आदायेति प्रहत्येति च किम् ? केशेषु च केशेषु च स्थित्वा, दण्डैश्च दण्डैश्चागत्य कृतं युद्धं गृहकोकिलाभ्याम् / सरूपेणेति किम् ? हस्ते च पादे च गृहीत्वा कृतं युद्धम् / युद्ध इति किम् ? हस्ते च हस्ते चाऽऽदाय सख्यं कृतम् // 26 // नदीभिर्नाम्नि // 3 // 1 // 27 // नाम नदीवाचिना संज्ञायामन्यपदार्थे 'समासोऽव्ययीभावश्च' स्यात् / उन्मत्तगङ्गं देशः, तूष्णींगङ्गम् / नाम्नीति किम् ? शीघ्रगङ्गो देशः // 27 // सङ्ख्या समाहारे / 3 / 1 / 28 // संख्यावाचि नदीवाचिभिः सह 'समाहारे गम्ये समासोऽव्ययीभावः' स्यात् / द्वियमुनम्, पञ्चनदम् / समाहार इति किम् ? एकनदी / द्विगुबाधनार्थं वचनम् // 28 // वंश्येन पूर्वार्थे / 3 / 1 / 29 // विद्यया जन्मना वा एकसन्तानो वंशः, तत्र भवो वंश्यः, तद्वाचिना नाम्ना Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 117 संख्यावाचि ‘समासोऽव्ययीभावः स्यात्, पूर्वपदस्यार्थे वाच्ये' / एकमुनि व्याकरणस्य, सप्तकाशि राज्यस्य / पूर्वार्थ इति किम् ? द्विमुनिकं व्याकरणम् // 29 // पारे-मध्ये-ऽग्रे-ऽन्तः षष्ट्या वा / 3 / 1 // 30 // एतानि षष्ठ्यन्तेन पूर्वपदार्थे 'समासोऽव्ययीभावो वा' स्युः / पारेगङ्गम्, मध्येगङ्गम्, अग्रेवणम्, अन्तर्गिरम्; पक्षे गङ्गापारम्, गङ्गामध्यम्, वनाग्रम्, गिर्यन्तः // 30 // यावदियत्त्वे / 3.1131 // इयत्त्वे-ऽवधारणे गम्ये यावदिति नाम नाम्ना पूर्वपदार्थे वाच्ये 'समासोऽव्ययीभावः' स्यात् / यावदमत्रं भोजय / इयत्त्व इति किम् ? यावद् दत्तं तावद् भुक्तम् // 31 // पर्यपा-ऽऽबहिरच् पञ्चम्या / 3 / 1 // 32 // एतानि पञ्चम्यन्तेन पूर्वपदार्थे वाच्ये 'समासोऽव्ययीभावः' स्युः / परित्रिगतम्, अपत्रिगतम्, आग्रामम्, बहिमिम्, प्राग्रामम् / पञ्चम्येति किम् ? परि वृक्षं विद्युत् // 32 // लक्षणेनाऽभि-प्रत्याभिमुख्ये / 3 / 1 // 33 // लक्षणम्- चिह्नम्, तद्वाचिनाऽऽभिमुख्यार्थावभि-प्रती पूर्वपदार्थेऽर्थे ‘समासोऽव्ययीभावः' स्याताम् / अभ्यग्नि प्रत्यग्नि शलभाः पतन्ति / लक्षणेनेति किम् ? सुनं प्रति गतः / पूर्वपदार्थ इत्येव- अभ्यङ्का गावः // 33 // दैयेऽनुः / 3 / 1134 // दैर्ये- आयामविषये यल्लक्षणं तद्वाचिना पूर्वपदार्थेऽनुः ‘समासोऽव्ययीभावः' स्यात् / अनुगङ्गं वाराणसी / दैर्घ्य इति किम् ? वृक्षमनु विद्युत् // 34 // Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 118 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // . समीपे / 3 / 1135 // समीपार्थेऽनुः समीपिवाचिनाम्ना पूर्वपदार्थे 'समासोऽव्ययीभावः' स्यात् / अनुवनमशनिर्गता // 35 // _ तिष्ठग्वित्यादयः // 3 // 1 // 36 // एते समासा 'अव्ययीभावाः' स्युः, यथायोगमन्यस्य पूर्वस्य वा पदस्यार्थे / तिष्ठद्गु कालः, अधोनाभं हतः // 36 // नित्यं प्रतिनाऽल्पे / 3 / 1137 // अल्पार्थेन प्रतिना नाम 'नित्यं समासोऽव्ययीभावः' स्यात् / शाकप्रति / अल्प इति किम् ? वृक्षं प्रति विद्युत् // 37 // . . सङ्ख्याऽक्ष-शलाकं परिणा द्यूतेऽन्यथावृत्तौ / 3 / 1 // 38 // संख्यावाच्यक्ष-शलाके च द्यूतविषयायामन्यथावृत्तौ वर्तमानेन परिणा सह 'नित्यं समासोऽव्ययीभावः' स्यात् / एकपरि, अक्षपरि, शलाकापरि, एकेनाऽक्षेण शलाकया वा न तथावृत्तं यथा पूर्वं जय इत्यर्थः / सङ्ख्यादीति किम् ? पाशकेन न तथा वृत्तम् / द्यूत इति किम् ? रथस्याक्षेण न तथा वृत्तम् // 38 // विभक्ति-समीप-समृद्धि-व्यूद्ध्यर्थाभावा-ऽत्यया-ऽसंप्रतिपश्चात्- क्रम-ख्याति-युगपत्- सदृक्-सम्पत्-साकल्यान्ते ऽव्ययम् / 3 / 1 / 39 // एष्वर्थेषु वर्तमानमव्ययं नाम्ना सह पूर्वपदार्थे वाच्ये 'नित्यं समासोऽव्ययीभावः' स्यात् / विभक्तिः- विभक्त्यर्थः कारकम्, अधिस्त्रि / समीपम्उपकुम्भम् / समृद्धि:- सुमद्रम् / विगता ऋद्धिर्वृद्धिः- दुर्यवनम् / अर्थाभावः- निर्मक्षिकम् / अत्ययोऽतीतत्वम् - अतिवर्षम् / असम्प्रतीति सम्प्र Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 119 त्युपभोगाद्यभावः- अतिकम्बलम् / पश्चात् - अनुरथम् / क्रमः- अनुज्येष्ठम् / ख्यातिः- इतिभद्रबाहु / युगपत् - सचक्रं धेहि / सदृक्- सव्रतम् / सम्पत्- सब्रह्म साधूनाम् / साकल्यम्- सतृणमभ्यवहरति / अन्तःसपिण्डैषणमधीते // 39 // योग्यता-वीप्सा-ऽर्थानतिवृत्ति-सादृश्ये / 3 / 1140 // एष्वर्थेष्वऽव्ययं नाम्ना सह पूर्वपदार्थे 'समासोऽव्ययीभावः' स्यात् / अनुरूपम्, प्रत्यर्थम्, यथाशक्ति, सशीलमनयोः // 40 // यथाऽथा / 3 / 1141 // थाप्रत्ययवर्जं यथेत्यव्ययं नाम्ना सह पूर्वपदार्थे ‘समासोऽव्ययीभावः' स्यात् / यथारूपं चेष्टते, यथावृद्धमर्चय, यथासूत्रम् / अथेति किम् ? यथा चैत्रस्तथा मैत्रः // 41 // गति-क्वन्यस्तत्पुरुषः / 3 / 1142 // गतयः कुश्च नाम्ना सह नित्यं समासस्तत्पुरुषः' स्यात्, अन्यः- बहुव्रीह्यादिलक्षणहीनः / ऊरीकृत्य, खाट्कृत्य, प्रकृत्य, कारिकाकृत्य; कुब्राह्मणः, कोष्णम् / अन्य इति किम् ? कुपुरुषकः // 42 // दुनिन्दा-कृच्छ्रे / 3 / 1143 // दुरव्ययं निन्दा-कृच्छ्रवृत्ति नाम्ना सह 'नित्यं समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / दुष्पुरुषः, दुष्कृतम् / अन्य इति किम् ? दुष्पुरुषकः // 43 // सुः पूजायाम् / 3 / 1144 // स्वित्यव्ययं पूजार्थं नाम्ना सह 'नित्यं समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / सुराजा / अन्य इति किम् ? सुमद्रम् // 44 // अतिरतिक्रमे च / 3 / 1145 // Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 120 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // अतिक्रमे पूजायां चार्थे अतीत्यव्ययं नाम्ना सह नित्यं समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / अतिस्तुत्य; अतिराजा // 45 // आङल्पे / 3 / 1 / 46 // आङित्यव्ययमल्पार्थं नाम्ना सह 'समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / आकडारः // 46 // प्रात्यव-परि-निरादयो गत-क्रान्त-क्रुष्ट-ग्लान- क्रान्ताद्यर्थाः प्रथमाद्यन्तैः / 3 / 1147 // प्रादयो गताद्याः प्रथमान्तैः, अत्यादयः क्रान्ताद्यर्था द्वितीयान्तैः, अवादयः क्रुष्टाद्यर्थास्तृतीयान्तैः, पर्यादयो ग्लानाद्यर्थाश्चतुर्थ्यन्तैः, निरादयः क्रान्ताद्यर्थाः पञ्चम्यन्तैर्नित्यम् ‘समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / प्राचार्यः, समर्थः; अतिखट्वः, उद्वेलः; अवकोकिलः, परिवीरुत्, पर्यध्ययनः; उत्सङ्ग्रामः; निष्कौशाम्बिः, अपशाखः; बाहुलकात् षष्ठ्याऽपि - अन्तार्यः / गताद्यर्था इति किम् ? वृक्षं प्रति विद्युत् / अन्य इत्येव - प्राचार्यको देशः // 47 // अव्ययं प्रवृद्धादिभिः // 3 // 1 // 48 // अव्ययं प्रवृद्धादिभिस्सह 'नित्यं समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / पुनःप्रवृद्धम्, अन्तर्भूतः // 48 // उस्युक्तं कृता / 3 / 1 // 49 // कृप्रत्ययविधायके सूत्रे ङस्यन्तनाम्नोक्तं कृदन्तेन नाम्ना 'नित्यं समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / कुम्भकारः / उस्युक्तमिति किम् ? अलं कृत्वा / कृतेति किम् ? धर्मो वो रक्षतु // 49 // तृतीयोक्तं वा / 3 / 1 / 50 // . "दंशेस्तृतीयया (5.4.73)" इत्यतो यत्तृतीयोक्तं नाम तत् कृदन्तेन 'वा समासस्तत्पुरुषः स्यात्' / मूलकोपदंशम्, मूलकेनोपदंशं भुङ्क्ते // 50 // Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् __ 121 नञ् / 3 / 1151 // नञ् नाम नाम्ना ‘समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / अगौः; न सूर्यं पश्यन्ति असूर्यपश्या राजदाराः // 51 // पूर्वा-ऽपरा-ऽधरोत्तरमभिन्नांशिना / 3 / 1152 // पूर्वादयोऽशार्था अंशवद्वाचिना 'समासस्तत्पुरुषः' स्यात्, न चेत् सोंऽशी भिन्नः / पूर्वकायः, अपरकायः, अधरकायः, उत्तरकायः / अभिन्नेनेति किम् ? पूर्व छात्राणामामन्त्रयस्व / अंशिनेति किम् ? पूर्वो नाभेः कायस्य // 52 // सायानादयः / 3 / 1153 // 'एतेंऽशितत्पुरुषाः साधवः' स्युः / सायाह्नः, मध्यन्दिनम् // 53 // समेंऽशेऽर्द्व नवा / 3 / 1154 // समांशार्थमर्द्धमशिनाऽभिन्नेन ‘वा समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / अर्द्धपिप्पली, पिप्पल्यर्द्धम् / समेंश इति किम् ? ग्रामार्द्धः // 54 // . जरत्यादिभिः / 3 / 1155 // एभिरंशिभिरभिन्नरर्हो ‘वा समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / अर्द्धजरती, जरत्यर्द्धः; अोक्तम्, उक्तार्द्धः // 55 // द्वि-त्रि-चतुष्पूरणा-ऽग्रादयः / 3 / 1156 // पूरणप्रत्ययान्ता द्वि-त्रि-चत्वारोऽग्रादयश्चाभिन्ननाशिना ‘वा समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / द्वितीयभिक्षा, भिक्षाद्वितीयम्; तृतीयभिक्षा, भिक्षातृतीयम्; तुर्यभिक्षा, भिक्षातुर्यम्; अग्रहस्तः; हस्ताग्रम्; तलपादः, पादतलम् // 56 // कालो द्विगौ च मेयैः / 3 / 1157 // कालवाच्येकवचनान्तं द्विगौ च विषये मेयवाचिना ‘समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 122 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // मासजातः; द्विगौ- एकमासजातः, व्यह्नसुप्तः / काल इति किम् ? द्रोणो धान्यस्य // 57 // स्वयं-सामी क्तेन / 3 / 1158 // एते अव्यये क्तान्तेन ‘समासस्तत्पुरुषः' स्याताम् / स्वयंधौतम्, सामिकृतम् / क्तेनेति किम् ? स्वयं कृत्वा // 58 // द्वितीया खट्वा क्षेपे / 3 / 1159 // खट्वेति द्वितीयान्तं क्षेपे - निन्दायां क्तान्तेन ‘समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / खट्वारूढो जाल्मः / क्षेप , इति किम् ? खट्वामारूढः पिताऽध्यापयति // 59 // . कालः / 3 / 1160 // कालवाचि द्वितीयान्तं क्तान्तेन “समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / रात्र्यारूढाः, अहरतिसृताः // 60 // . व्याप्तौ / 3.161 // गुण-क्रिया-द्रव्यैरत्यन्तसंयोगे या द्वितीया तदन्तं कालवाचि व्यापकार्थेन 'समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / मुहूर्तसुखम्, क्षणपाठः, दिनगुडः / व्याप्ताविति किम् ? मासं पूरको याति // 61 / / श्रितादिभिः / 3 / 1 / 62 // द्वितीयान्तं श्रितादिभिः “समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / धर्मश्रितः, शिवगतः // 62 // प्राप्ताऽऽपन्नौ तया-ऽच / 3 / 1163 // एतौ प्रथमान्तौ द्वितीयान्तेन ‘समासस्तत्पुरुषः' स्याताम्, त्तद्योगे चानयोरत् स्यात् / प्राप्तजीविका, आपन्नजीविका // 63 // . ईषद् गुणवचनैः / 3 / 1 / 64 // Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 123 ईषदव्ययं गुणवचनैः ‘समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / ये गुणे वर्तित्वा तद्योगाद् गुणिनि वर्तन्ते ते गुणवचनाः / ईषपिङ्गलः, ईषद्रक्तः / गुणवचनैरिति किम् ? ईषद्गार्यः // 64 // तृतीया तत्कृतैः / 3 / 1 / 65 // तृतीयान्तं तदर्थकृतैर्गुणवचनैरैकार्थे 'समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / शकुलाखण्डः, मदपटुः / तत्कृतैरिति किम् ? अक्ष्णा काणः / गुणवचनैरित्येव - दना पटुः पाटवमित्यर्थः // 65 // चतम्रार्द्धम् / 3 / 1 / 66 // अर्द्धस्तृतीयान्तस्तत्कृतार्थेन चतसृशब्देन 'समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / अर्द्धचतम्रो मात्राः / चतस्रति किम् ? अर्द्धन कृताश्चत्वारो द्रोणाः // 66 / / ऊनार्थपूर्वाद्यैः / 3 / 1 / 67 // तृतीयान्तम् ऊनाथैः पूर्वाद्यैश्च ‘समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / माषोनम्, माषविकलम्; मासपूर्वः, मासावरः // 67 // कारकं कृता / 3 / 1 / 68 // कारकवाचि तृतीयान्तं कृदन्तेन 'समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / आत्मकृतम्, नखनिर्भिन्नः, काकपेया नदी, बाष्पच्छेद्यानि तृणानि / कारकमिति किम् ? विद्ययोषितः // 68 // नविंशत्यादिनैकोऽचान्तः / 3 / 1 / 69 // एकशब्दस्तृतीयान्तो नविंशत्यादिना सह 'समासस्तत्पुरुषः स्यात्, एकस्य चाऽदन्तः' / एकानविंशतिः, एकाद्नविंशतिः; एकानत्रिंशत्, एकाद्नत्रिंशत् // 69 // . चतुर्थी प्रकृत्या / 3 / 1170 // प्रकृतिः - परिणामि कारणम्, एतद्वाचिनैकार्थे 'चतुर्थ्यन्तं Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 124 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // विकारार्थं समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / यूपदारु / प्रकृत्येति किम् ? रन्धनाय स्थाली // 70 // हितादिभिः / 3 / 171 // 'चतुर्थ्यन्तं हितायैः समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / गोहितम्, गोसुखम् // 71 // तदर्थाऽर्थेन / 3 / 1 / 72 // चतुर्थ्यर्थो यस्य तेनार्थेन 'चतुर्थ्यन्तं समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / पित्र) पय आतुरार्था यवागूः / तदर्थार्थेमेति किम् ? पित्रेऽर्थः / / 72 / / पञ्चमी भयाद्यैः 3173 // 'पञ्चम्यन्तं भयाधैरैकार्थे समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / वृकभया वृकभीरुः / / 73 // क्तेनाऽसत्त्वे / 3 / 1174 // असत्त्ववृत्तेर्या पञ्चमी तदन्तं क्तान्तेन ‘समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / स्तोकान्मुक्त अल्पान्मुक्तः, दूरादागतः / असत्त्व इति किम् ? स्तोकाद् बद्धः / / 74 / / परःशतादि / 3 / 175 // अयम् ‘पञ्चमीतत्पुरुषः साधुः' स्यात् / परःशताः, परःसहस्राः // 75 // षष्ट्ययत्नाच्छेषे / 3 / 176 // "शेषे (2,2,81)" या षष्ठी तदन्तं नाम नाम्नैकार्थे समासस्तत्पुरुष स्यात्, न चेत् स शेषः “नाथ (2,2,10)" इत्यादेर्यलात् / राजपुरुषः अयलादिति किम् ? सर्पिषो नाथितम् / शेष इति किम् ? गवां कृष्ण सम्पन्नक्षीरा // 76 // कृति / 3.177 // “कर्मणि कृतः (2,2,83)" "कर्तरि (2, 2,86)" इति च ‘या कृन्निमित्त Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 125 षष्ठी तदन्तं नाम्ना समासस्तंत्पुरुषः' स्यात् / सर्पिनिम्, गणधरोक्तिः // 77 // * याजकादिभिः / 3 / 178 // 'षष्ठ्यन्तं याजकाद्यैः समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / ब्राह्मणयाजकः, गुरुपूजकः // 78 // पत्ति-रथौ गणकेन / 3 / 179 // एतौ 'षष्ठ्यन्तौ गणकेन समासस्तत्पुरुषः' स्याताम् / पत्तिगणकः, रथगणकः / पत्तिरथाविति किम् ? धनस्य गणकः // 79 // सर्वपश्चादादयः / 3 / 180 // एते 'षष्ठीतत्पुरुषाः साधवः' स्युः / सर्वपश्चात्, सर्वचिरम् // 8 // अकेन क्रीडा-ऽऽजीवे / 3 / 1181 // 'षष्ठ्यन्तमकप्रत्ययान्तेन क्रीडा-ऽऽजीविकयोर्गम्ययोः समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / उद्दालकपुष्पभञ्जिका, नखलेखकः / क्रीडाजीव इति किम् ? पयसः पायकः // 8 // __ न कर्तरि / 3 / 1182 // 'कर्तरि या षष्ठी तदन्तमकाऽन्तेन समासो न ' स्यात् / तव शायिका / कर्तरीति किम् ? इक्षुभक्षिका // 2 // . कर्मजा तृचा च / 3 / 1 / 83 // 'कर्मणि या षष्ठी तदन्तं कर्तृविहिताऽकाऽन्तेन तृजन्तेन च न समासः' स्यात् / भक्तस्य भोजकः, अपां स्रष्टा / कर्मजेति किम् ? गुणो गुणिविशेषकः, सम्बन्धेऽत्र षष्ठी / कर्तरीत्येव- पयःपायिका // 83 // तृतीयायाम् / 3 / 1184 // कर्तरि तृतीयायां सत्यां कर्मजा 'षष्ठी न समस्यते' / आश्चर्यो गवां Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 126 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // दोहोऽगोपालकेन / तृतीयायामिति किम् ? शब्दानुशासनं गुरोः // 84 // तृप्तार्थ-पूरणा-ऽव्यया-ऽतृश्-शत्रानशा / 3 / 1185 // तृप्ताथैः पूरणप्रत्ययान्तैरव्ययैरतृशन्तैः शत्रन्तैरानशन्तैश्च 'षष्ठ्यन्तं न समस्यते' / फलामां तृप्तः, तीर्थकृतां षोडशः, राज्ञः ‘साक्षात्, रामस्य द्विषन्, चैत्रस्य पचन्, मैत्रस्य पचमानः // 85 // - ज्ञानेच्छाऽर्चार्थाऽऽधारक्तेन / 3 / 1 / 86 // ज्ञानेच्छार्थेिभ्यो यो वर्तमाने तो यश्च “अद्यर्थाच्चाधारे (5.1.12.)" इत्याधारे क्तस्तदन्तेन 'षष्ठ्यन्तं न समस्यते' / राज्ञां ज्ञातः, राज्ञामिष्टः, राज्ञां पूजितः, इदमेषां यातम् // 86 // अस्वस्थगुणैः / 3 / 187 // ये गुणाः स्वात्मन्येव तिष्ठन्ति न द्रव्ये ते स्वस्थास्तप्रतिषेधेनाऽस्वस्थगुणवाचिभिः 'षष्ठ्यन्तं न समस्यते' / पटस्य शुकः, गुडस्य मधुरः / अस्वस्थगुणैरिति किम् ? घटवर्णः, चन्दनगन्धः // 87 / / सप्तमी शौण्डायैः / 3 / 1 / 88 // एभिः सहकार्ये 'सप्तम्यन्तं समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / पानशौण्डः, अक्षधूर्तः // 8 // सिंहाथैः पूजायाम् / 3 / 1 / 89 // एभिः ‘सप्तम्यन्तं समासस्तत्पुरुषः' स्यात्, पूजायां गम्यमानायाम् / समरसिंहः, भूमिवासवः // 89 // काकायैः क्षेपे / 3 / 1 / 90 // एभिः ‘सप्तम्यन्तं निन्दायां गम्यमानायां समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / तीर्थकाकः, तीर्थश्वा / क्षेप इति किम् ? तीर्थे काकोऽस्ति / / 90 // Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 127 पात्रेसमितेत्यादयः / 3 / 1 / 91 // एते ‘सप्तमीतत्पुरुषाः क्षेपे निपात्यन्ते' / पात्रेसमिताः, गेहेशूरः // 91 // तेन / 3 / 1192 // 'सप्तम्यन्तं क्तान्तेन क्षेपे समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / भस्मनिहुतम्, अवतनकुलस्थितम् // 12 // तत्राहोरात्रांशम् / 3 / 1 / 93 // तत्रेति 'सप्तम्यन्तम, अहरवयवा रात्र्यवयवाश्च सप्तम्यन्ताः क्तान्तेन समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / तत्रकृतम्, पूर्वाह्नकृतम्, पूर्वरात्रकृतम् / तत्राहोरात्रांशमिति किम् ? घटे कृतम् / अहोरात्रग्रहणं किम् ? शुक्लपक्षे कृतम् / अंशमिति किम् ? अनि भुक्तम्, रात्रौ नृत्तम् // 93 // नाम्नि / 3 / 1194 // 'सप्तम्यन्तं नाम्ना संज्ञाविषये समासस्तत्पुरुषश्च' स्यात् / अरण्येतिलकाः, अरण्येमाषकाः // 94 // कृयेनाऽऽवश्यके / 3 / 1 / 95 // 'सप्तम्यन्तं नाम “य एच्चातः (5, 1, 28)" इति यान्तेनाऽवश्यम्भावे गम्ये समासस्तत्पुरुषः' स्यात् / मासदेयम् / कृदिति किम् ? मासे पित्र्यम् // 15 // विशेषणं विशेष्येणैकार्थ कर्मधारयश्च / 3 / 1196 // भित्रप्रवृत्तिनिमित्तयोः शब्दयोरेकस्मिन्नर्थे वृत्तिरैकार्थ्यम्, तद् 'विशेषणवाचि विशेष्यवाचिनैकार्थे समासस्तत्पुरुषः कर्मधारयश्च' स्यात् / नीलोत्पलम्; खजकुण्टः, कुण्टखनः / एकार्थमिति किम् ? वृद्धस्योक्षा-वृद्धोक्षा // 16 // पूर्वकालैक-सर्व-जरत-पुराण-नव-केवलम् / 3 / 1 / 97 // Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 128 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // पूर्वः कालो यस्य तद्वाच्येकादीनि चैकार्थानि परेण नाम्ना ‘समासस्तत्पुरुषः कर्मधारयश्च' स्यात् / स्नातानुलिप्तः, एकशाटी, सर्वान्नम्, जरद्वः, पुराणकविः, नवोक्तिः, केवलज्ञानम् / एकार्थमित्येव- स्नात्वाऽनुलिप्तः // 97 / / दिगधिकं संज्ञा-तद्धितोत्तरपदे / 3 / 1 / 98 // दिग्वाच्यधिकं चैकार्थं नाम्ना ‘समासस्तत्पुरुषः कर्मधारयश्च' स्यात्, संज्ञायां तद्धिते च विषयभूते उत्तरपदे च परतः / दक्षिणकोशलाः, पूर्वेषुकामशमी, दाक्षिणशालः; अधिकषाष्टिकः; उत्तरगवधनः, अधिकगवप्रियः // 98 // संख्या समाहारे च द्विगुश्चाऽनाम्न्ययम् / 3 / 1 / 99 // संख्यावाचि परेण नाम्ना ‘समासस्तत्पुरुषः कर्मधारयश्च' स्यात्, संज्ञातद्धितयोर्विषये, उत्तरपदे च परे, समाहारे चार्थे, 'अयमेव चाऽसंज्ञायां द्विगुश्च' / पञ्चाम्राः, सप्तर्षयः; द्वैमातुरः, अध्यर्द्धकंसः; पञ्चगवधनः, पञ्चनावप्रियः; पञ्चराजी / समाहारे चेति किम् ? अष्टौ प्रवचनमातरः / अनाम्नीति किम् ? पाञ्चर्षम् // 99 // निन्यं कुत्सनैरपापाद्यैः / 3 / 1 / 100 // निन्द्यवाचि निन्दाहेतुभिः पापादिवजैः सह ‘समासस्तत्पुरुषः कर्मधारयश्च' स्यात् / वैयाकरणखसूची, मीमांसकदुर्दुरूढः / निन्द्यमिति किम् ? वैयाकरणश्चौरः / अपापाद्यैरिति किम् ? पापवैयाकरणः, हतविधिः // 100 // उपमानं सामान्यैः / 3 / 1101 // उपमानवाच्येकार्थमुपमानोपमेयसाधारणधर्मवाचिभिरेव 'समासस्तत्पुरुषः कर्मधारयश्च' स्यात् / शस्त्रीश्यामा, मृगचपला / उपमानमिति किम् ? देवदत्ता श्यामा / सामान्यैरिति किम् ? अग्निर्माणवकः / / 101 // उपमेयं व्याघ्राद्यैः साम्यानुक्तौ / 3 / 1 / 102 // उपमेयवाच्येकार्थमुपमानवाचिभिर्व्याघ्राद्यैः साधारणधर्मानुक्तौ ‘समासस्तत्पुरुषः Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 129 कर्मधारयश्च' स्यात् / पुरुषव्याघ्रः, श्वसिंही / साम्यानुक्ताविति किम् ? पुरुषव्याघ्रः शूर इति मा भूत् // 102 // पूर्वा-ऽपर-प्रथम-चरम-जघन्य-समान-मध्य-मध्यम-वीरम् . 3 / 1103 // एतान्येकार्थानि परेण नाम्ना ‘समासस्तत्पुरुषः कर्मधारयश्च' स्युः / पूर्वपुरुषः, अपरपुरुषः, प्रथमपुरुषः, चरमपुरुषः, जघन्यपुरुषः, समानपुरुषः, मध्यपुरुषः, मध्यमपुरुषः, वीरपुरुषः // 103 // श्रेण्यादि कृतायैश्व्यर्थे / 3 / 1 / 104 // श्रेण्याघेकार्थं कृताद्यैः सह व्यर्थे गम्ये 'समासस्तत्पुरुषः कर्मधारयश्च' स्यात् / श्रेणिकृताः, ऊककृताः / च्यर्थ इति किम् ? श्रेणयः कृताः किञ्चित् // 104 // क् नत्रादिभित्रैः / 3 / 11105 // तान्तमेकार्थं नञ्प्रकारैरेव यानि भिन्नानि तैः सह 'समासस्तत्पुरुषः कर्मधारयश्च' स्यात् / कृताकृतम्, पीताऽवपीतम् / क्तमिति किम् ? कर्त्तव्यमकर्तव्यं च / नञादिभिन्नैरिति किम् ? कृतं प्रकृतम्, कृतं चाऽविहितं च // 105 // सेनाऽनिटा / 3 / 1 / 106 // 'सेट् क्तान्तं नादिभिन्नेनाऽनिटा सह न समस्यते' / क्लिशितमक्लिष्टम्, शितमशातम् / सेडिति किम् ? कृताकृतम् / अनिटेति किम् ? अशितानशितम् // 106 // सन्महत्परमोत्तमोत्कृष्टं पूजायाम् / 3 / 1 / 107 // एतान्येकार्थानि पूजायां गम्यमानायां पूज्यवचनैः सह 'समासस्तत्पुरुषः Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 130 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // कर्मधारयश्च' स्यात् / सत्पुरुषः, महापुरुषः, परमपुरुषः, उत्तमपुरुषः, उत्कृष्टपुरुषः / पूजायामिति किम् ? सन् घटोऽस्तीत्यर्थः // 107 // वृन्दारक-नाग-कुञ्जरैः / 3 / 1108 // पूजायां गम्यायामेभिः सह पूज्यवाच्येकार्थम् ‘समासस्तत्पुरुषः, कर्मधारयश्च' स्यात् / गोवृन्दारकः, गोनागः, गोकुञ्जरः / पूजायामिति किम् ? सुसीमो नागः // 108 // कतर-कतमौ जातिप्रश्ने / 3 / 1 / 109 // एतावेकार्थो जातिप्रश्ने गम्ये जात्यर्थेन नाम्ना 'समासस्तत्पुरुषः कर्मधारयश्च' स्यात् / कतरकठः, कतमगार्यः / जातिप्रश्न इति किम् ? कतरः शुक्ः, कतमो गन्ता // 109 / / किं क्षेपे / 3 / 1 / 110 // निन्दायां गम्यमानायां . किमित्येकार्थं कुत्स्यवाचिना 'समासस्तत्पुरुषः कर्मधारयश्च' स्यात् / किंराजा, किंगौः / क्षेप इति किम् ? को राजा तत्र // 110 // पोटा-युवति-स्तोक-कतिपय-गृष्टि-धेनु-वशा-वेहद्-बष्कयणीप्रवक्त-श्रोत्रिया-ऽध्यायक-धूर्त-प्रशंसारूढातिः / 3 / 1111 // पोटादिभिः प्रशंसारूढैश्च सह जातिवाच्येकार्थम् ‘समासस्तत्पुरुषः कर्मधारयश्च' स्यात् / इभ्यपोटा, नागयुवतिः, अग्निस्तोकम्, दधिकतिपयम्, गोगृष्टिः, गोधेनुः, गोवशा, गोवेहत्, गोबष्कयणी, कठप्रवक्ता, कठश्रोत्रियः, कठाध्यायकः, मृगधूर्तः; गोमतल्लिका, गोप्रकाण्डम् // 111 // चतुष्पाद् गर्भिण्या / 3 / 1 / 112 // चत्वारः पादा यस्या जातेस्तद्वाच्येकार्य गर्भिण्या “समासस्तत्पुरुषः कर्म Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 131 धारयश्च' स्यात् / गोगर्भिणी, महिषगर्भिणी / जातिरित्येव- कालाक्षी गर्भिणी // 11 // युवा खलति-पलित-जरद्-वलिनैः 13 / 1113 // युवन्नित्येकार्थमेभिः ‘समासस्तत्पुरुषः कर्मधारयश्च' स्यात् / युवखलतिः, युवपलितः, युवजरन्, युववलिनः, युववलिना // 113 // कृत्य-तुल्याऽऽख्यमजात्या / 3 / 1 / 114 // कृत्यान्तं तुल्यपर्यायं चैकार्थमजात्यर्थेन सह ‘समासस्तत्पुरुषः कर्मधारयश्च' स्यात् / भोज्योष्णम्, स्तुत्यपटुः; तुल्यसन्, सदृशमहान् / अजात्येति किम् ? भोज्य ओदनः // 114 // कुमारः श्रमणादिना / 3 / 1115 // कुमार इत्येकार्थं श्रमणादिना ‘समासस्तत्पुरुषः कर्मधारयश्च' स्यात् / कुमारश्रमणा, कुमारप्रव्रजिता // 115 // ___ मयूरव्यंसकेत्यादयः / 3 / 1 / 116 // एते 'तत्पुरुषसमासा निपात्यन्ते / मयूरव्यंसकः, कम्बोजमुण्डः; एहीडं कर्म, अश्नीतपिबता क्रिया, कुरुकटो वक्ता,. गतप्रत्यागतम्, क्रयाक्रयिका, शाकपार्थिवः, त्रिभागः, सर्वश्वेतः // 116 // चार्थे द्वन्द्वः सहोक्तौ / 3 / 11117 // नाम नाम्ना सह ‘सहोक्तिविषये चार्थवृत्तिः समासो द्वन्द्वः' स्यात् / पक्षन्यग्रोधी, वाक्त्वचम् / नाम नाम्नेत्यनुवृत्तावपि “लघ्वक्षरा० (३,१,१६०)"दिसूत्रे एकग्रहणाद् बहूनामपि - धवखदिरपलाशाः / चार्थ इति किम् ? वीप्सासहोक्तौ मा भूत्- ग्रामो ग्रामो रमणीयः / सहोक्ताविति किम् ? पक्षश्च न्यग्रोधश्च वीक्ष्यताम् // 117 // Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 132 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // समानामर्थेनैकः शेषः / 3 / 1 / 118 // अर्थेन समानाम्- ‘समानार्थानां सहोक्तौ गम्यायामेकः शिष्यते' अर्थादन्ये निवर्तन्ते / वक्रश्च कुटिलश्च=वक्रौ कुटिलौ वा / सितश्च शुक्लश्च श्वेतश्च= सिताः शुक्लाः श्वेता वा / अर्थेन समानामिति किम् ? पक्षन्यग्रोधौ / सहोक्तावित्येव - वक्रश्च कुटिलश्च दृश्यः // 118 // स्यादावसंख्येयः / 3 / 1 / 119 // सर्वस्मिन् स्यादौ विभक्तौ समानाम्- 'तुल्यरूपाणां सहोक्तावेकः शिष्यते, न तु संख्येयवाची' / अक्षश्च शकटस्य, अक्षश्च देवनः, अक्षश्च बिभीतकः= अक्षाः / स्यादाविति किम् ? माता च जननी, माता च धान्यस्य मातृमातारौ / असंख्येय इति किम् ? एकश्चैकश्च // 119 // त्यदादिः / 3 / 1 / 120 // त्यदाद्यैरन्येन च सहोक्तौ 'त्यदादिरेवैकः शिष्यते' / स च चैत्रश्च-तौ, स च यश्च=यौ, अहं च स च त्वं च वयम् // 120 // भ्रातृ-पुत्राः स्वसृ-दुहितृभिः / 3 / 1 / 121 // 'स्वनर्थेन सहोक्तौ भ्रात्रों, दुहित्रर्थेन च पुत्रार्थ एकः शिष्यते' / भ्राता च स्वसा च भ्रातरौ, पुत्रश्च दुहिता च-पुत्रौ // 121 // . पिता मात्रा वा / 3 / 1 / 122 // मातृशब्देन सहोक्तौ 'पितृशब्द एको वा शिष्यते' / पिता च माता च=पितरौ, मातापितरौ // 122 // श्वशुरः श्वश्रूभ्यां वा / 3 / 1 / 123 // . श्वश्रूशब्देन सहोक्तौ 'श्वशुर एको वा शिष्यते' / श्वशुरौ, श्वश्रूश्वशुरौ // 123 // Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 133 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् वृद्धो यूना तन्मात्रभेदे / 3 / 1 / 124 // यूना सहोक्तौ 'वृद्धवाच्येकः शिष्यते, तन्मात्रभेदे'- न चेत् प्रकृतिभेदोऽर्थभेदो वाऽन्यः स्यात् / गार्ग्यश्च गार्यायणश्च गाग्र्यो / वृद्ध इति किम् ? गर्गगार्यायणौ / यूनेति किम् ? गार्यगर्ने / तन्मात्रभेद इति किम् ? गार्यवात्स्यायनी // 124 // स्त्री पुंवच / 3 / 1125 // 'वृद्धस्त्रीवाची यूना सहोक्तौ एकः शिष्यते, पुल्लिङ्गश्चायं तन्मात्रभेदे' / गार्गी च गार्यायणश्च= गाग्र्यो, गार्गी च गाायणौ च-गर्गान् / / 125 / / पुरुषः स्त्रिया / 3 / 1 / 126 // पुरुषशब्दः प्राणिनि पुंसि रूढः, स्त्रीवाचिना सहोक्तौ 'पुरुष एकः शिष्यते' स्त्रीपुरुषमात्रभेदश्चेत् / ब्राह्मणश्च ब्राह्मणी च ब्राह्मणौ / पुरुष इति किम् ? तीरं नदनदीपतेः / तन्मात्रभेद इत्येव- स्त्रीपुंसौ // 126 // ग्राम्याऽशिशुद्विशफसंघे स्त्री प्रायः / 3 / 1 / 127 // ग्राम्या अशिशवो ये द्विशफा- द्विखुरा अर्थात् पशवस्तेषां संघे स्त्रीपुरुषसहोक्तौ 'प्रायः स्त्रीवाच्येकः शिष्यते' स्त्रीपुरुषमात्रभेदश्चेत् / गावश्च स्त्रियः गावश्च नराः=इमा गावः / ग्राम्येति किम् ? रुरवश्चमे रुरवश्चेमाः इमे रुरवः / अशिश्विति किम् ? बकर्यश्च बर्कराश्च बर्कराः / द्विशफेति किम् ? गर्दभाश्च गर्दभ्यश्च गर्दभाः / संघ इति किम् ? गौश्चायं गौश्चेयम्=इमौ गावौ / प्राय इति किम् ? उष्ट्रयश्च उष्ट्राश्च= उष्ट्राः / / 127 // कीबमन्येनैकं च वा / 3 / 1 / 128 // कीबम्- 'नपुंसकम्, अन्येना-ऽक्लीबेन सहोक्तावेकं शिष्यते, लीबाऽक्लीबमात्रभेदे, तच्च शिष्यमाणमेकमेकार्थं वा' स्यात् / शुक्वं च शुक्लश्च शुक् शुक्ले वा / शुक्वं च शुक्लश्च शुक्ला च=शुरूं शुक्लानि वा / अन्येनेति किम् ? शुक्वं Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 134 . श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // च शुक् च-शुक्ले / तन्मात्रभेद इत्येव- हिमहिमान्यौ // 128 // पुष्यार्थाद् भे पुनर्वसुः / 3 / 11129 // 'पुष्यार्थानक्षत्रवृत्तेः परो नक्षत्रवृत्तिः पुनर्वसुः सहोक्तौ व्यर्थः सन् एकार्थः' स्यात् / उदितौ पुष्यपुनर्वसू, उदितौ तिष्यपुनर्वसू / पुष्यार्थादिति किम् ? आपुनर्वसवः / पुनर्वसुरिति किम् ? पुष्यमघाः / भ इति किम् ? तिष्यपुनर्वसवो बालाः // 129 // विरोधिनामद्रव्याणां नवा द्वन्द्वः स्वैः / 3 / 1 / 130 // द्रव्यम्- गुणाद्याश्रयः, विरोधिवाचिनाम् अतदाश्रयवृत्तीनां द्वन्द्वो वैकार्थः स्यात्, स्वैः- सजातीयैरेवाऽऽरब्धश्चेत्' / सुखदुःखम् , सुखदुःखे; लाभालाभम्, लाभालाभौ / विरोधिनामिति किम् ? कामक्रोधी / अद्रव्याणामिति किम् ? शीतोष्णे जले / स्वैरिति किम् ? बुद्धिसुखदुःखानि // 130 // __ अश्ववडव- पूर्वापरा-ऽधरोत्तराः / 3 / 1131 // 'एते त्रयोऽपि द्वन्द्वा एकार्था वा स्युः, स्वैश्चेत् / अश्ववडवम्, अश्ववडवी; पूर्वापरम्, पूर्वापरे; अधरोत्तरम्, अधरोत्तरे // 131 // पशु-व्यञ्जनानाम् / 3 / 1 / 132 // पशूनां व्यअनानां च 'स्वैर्द्वन्द्व एकार्थो वा' स्यात् / गोमहिषम्, गोमहिषौ; दधिघृतम्: दधिघृते // 132 // तरु-तृण-धान्य-मृग-पक्षिणां बहुत्वे / 3 / 1 / 133 // एतद्वाचिनां बर्थानां प्रत्येकम् 'स्वैर्द्वन्द्व एकार्थो वा' स्यात् / पक्षन्यग्रोधम्, पक्षन्यग्रोधाः; कुशकाशम्, कुशकाशाः; तिलमाषम्, तिलमाषाः; ऋश्यैणम्, ऋश्यणाः; हंसचक्रवाकम्, हंसचक्रवाकाः // 133 // सेनाङ्ग-क्षुद्रजन्तूनाम् / 3 / 1 / 134 // Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 135 सैनाङ्गानां क्षुद्रजन्तूनां च बह्वानाम् ‘स्वैर्द्वन्द्व एकार्थो नित्यम्' स्यात् / अश्वरथम्, यूकालिक्षम् // 134 // फलस्य जातौ / 3 / 1 / 135 // फलवाचिनां बह्वर्थानां जाती 'स्वैर्द्वन्द्व एकार्थो नित्यम्' स्यात् / बदरामलकम् / जाताविति किम् ? एतानि बदरामलकानि सन्ति // 135 // अप्राणि-पश्वादेः / 3 / 1 / 136 // प्राणिभ्यः पश्वादिसूत्रोक्तेभ्यश्च येऽन्यद्रव्यवाचिनस्तेषां जात्यर्थानाम् 'स्वैर्द्वन्द्व एकार्थः' स्यात् / आराशस्त्रि / जातावित्येव - सह्यविन्ध्यौ / प्राण्यादिवर्जनं किम् ? ब्राह्मणक्षत्रियविट्शूद्राः, ब्राह्मणक्षत्रियविट्शूद्रम्; गोमहिषौ, गोमहिषम्; पक्षन्यग्रोधी, पक्षन्यग्रोधम्; अश्वरथौ, अश्वरथम्; बदरामलके, बदरामलकम् // 136 // प्राणि-तूर्याङ्गाणाम् / 3 / 11137 // प्राणितूर्ययोरङ्गार्थानाम् ‘स्वैर्द्वन्द्व. एकार्थः' स्यात् / कर्णनासिकम्, मार्दशिकपाणविकम् / स्वैरित्येव- पाणिगृध्रौ // 137 // चरणस्य स्थेणोऽद्यतन्यामनुवादे / 3 / 1 / 138 // चरणाः कठादयः, तद्वाचिनामद्यतन्यां यौ स्थेणी तयोः कर्तृत्वेन सम्बन्धिनाम् ‘स्वैर्द्वन्द्वोऽनुवादविषये एकार्थः' स्यात् / प्रत्यष्ठात् कठकालापम्, उदगात् कठकौथुमम् / अनुवाद इति किम् ? उदगुः कठकालापाः - अप्र- सिद्धं कथयन्ति // 138 // __ अक्कीबेऽध्वर्युक्रतोः / 3 / 1 / 139 // अध्वर्युः- यजुर्वेदः, तद्विहितक्रतुवाचिनाम् 'स्वैर्द्वन्द्व एकार्थः स्यात्, न देते कीबवृत्तयः' / अर्काश्वमेधम् / अक्लीब इति किम् ? गवामयनादि Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नकुलम् / नित्य -पूरा विलिङ्गाना गङ्गाशोणम्, कुरु 136 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // त्यानामयने / अध्वर्वति किम् ? इषुवज्रौ / क्रतोरिति किम् ? दर्शपौर्णमासौ // 139 // निकटपाठस्य / 3 / 1 / 140 // निकटः पाठो येषामध्येतॄणां तेषाम् 'स्वैर्द्वन्द्व एकार्थः' स्यात् / पदकक्रमकम् // 140 // नित्यवैरस्य / 3 / 1 / 141 // नित्यं जातिनिबद्धं वैरं येषां तेषाम् ‘स्वैर्द्वन्द्व एकार्थः' स्यात् / अहिनकुलम् / नित्यवरस्येति किम् ? देवासुराः, देवासुरम् // 141 // नदी-देश-पुरां विलिङ्गानाम् / 3 / 1 / 142 // एषां विविधलिङ्गानाम् 'स्वैर्द्वन्द्व एकार्थः' स्यात् / गङ्गाशोणम्, कुरुकुरुक्षेत्रं, मथुरापाटलिपुत्रम् / विलिङ्गानामिति किम् ? गङ्गायमुने // 142 / / पात्र्यशूद्रस्य / 3 / 1 / 143 // पात्रार्ह-शूद्रवाचिनाम् 'स्वैर्द्वन्द्व एकार्थः' स्यात् / तक्षायस्कारम् / पात्र्येति किम् ? जनङ्गमबुक्कसाः // 143 // गवाश्वादिः / 3 / 1 / 144 // 'अयं द्वन्द्व एकार्थः' स्यात् / गवाश्वम्, गवाविकम् / / 144 // न दधिपय-आदिः / 3 / 1 / 145 // 'दधिपय आद्यो द्वन्द्व एकार्थो न' स्यात् / दधिपयसी, सर्पिर्मधुनी // 145 // संख्याने / 3 / 1 / 146 // वर्तिपदार्थानां गणने गम्ये 'द्वन्द्व एकार्थो न' स्यात् / दश गोमहिषाः, बहवः पाणिपादाः // 146 // वाऽन्तिके / 3 / 1 / 147 // Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 137 वर्तिपदार्थानां संख्यानस्य समीपे गम्ये 'द्वन्द्व एकार्थो वा' स्यात् / उपदशं गोमहिषम्, उपदशा गोमहिषाः // 147 // प्रथमोक्तं प्राक् / 3 / 1 / 148 // अत्र 'समासप्रकरणे प्रथमान्तेन यनिर्दिष्टं तत् प्राक्' स्यात् / आसन्नदशाः, सप्तगङ्गम् / / 148 // राजदन्ताऽऽदिषु / 3 / 1 / 149 // 'एतेषु समासेष्वप्राप्तप्राग्निपातं प्राक् स्यात् / राजदन्तः, लिप्तवासितम् // 149 // विशेषण-सर्वादि-संख्यं बहुव्रीहौ / 3 / 1 / 150 // 'विशेषणं सर्वादि संख्यावाचि च बहुव्रीहौ प्राक्' स्यात् / चित्रगुः, सर्वशुक्लः, द्विकृष्णः // 150 // ताः / 3 / 11151 // 'क्तान्तं सर्वं बहुव्रीही प्राक् स्यात् / कृतकटः // 151 // जाति-काल-सुखादेर्नवा / 3 / 11152 // जातेः कालात् सुखादिभ्यश्च 'बहुव्रीहौ क्तान्तं वा प्राक्' स्यात् / शाङ्गरजग्धी, जग्धशाङ्गरा; मासजाता, जातमासा; सुखजाता, जातसुखा; दुःखहीना, हीनदुःखा // 152 // आहिताग्न्यादिषु / 3 / 11153 // 'एषु बहुव्रीहिषु क्तान्तं वा प्राक्' स्यात् / आहिताग्निः, अग्न्याहितः; जातदन्तः, दन्तजातः / / 153 // ... प्रहरणात् / 3 / 11154 // प्रहरणार्थात् 'तान्तं बहुव्रीही वा प्राक् स्यात् / उद्यतासिः, अस्युद्यतः // 154 // न सप्तमीन्दादिभ्यश्च / 3 / 1 / 155 // Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 138 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // इन्द्वादेः प्रहरणार्थाच्च 'प्राक् सप्तम्यन्तं बहुव्रीहौ न' स्यात् / इन्दुमौलिः, पद्मनाभः, असिपाणिः // 155 / / गड्वादिभ्यः / 3 / 1156 // गड्वादिभ्यो 'बहुव्रीही सप्तम्यन्तं प्राग् वा स्यात् / कण्ठेगडुः, गडुकण्ठः; मध्येगुरुः, गुरुमध्यः // 156 // प्रियः / 3 / 1 / 157 // अयम् ‘बहुव्रीहौ प्राग् वा' स्यात् / प्रियगुडः, गुडप्रियः // 157|| कडारादयः कर्मधारये / 3 / 1 / 158 // 'एते कर्मधारये प्राग् वा' स्युः / कडारजैमिनिः, जैमिनिकडारः; काणद्रोणः, द्रोणकाणः // 15 // धर्मार्थादिषु द्वन्द्वे / 3 / 1 / 159 // .. 'एषु द्वन्द्वेष्वप्राप्तप्राक्त्वं वा प्राक्' स्यात् / धार्थी, अर्थधर्मी; शब्दार्थी, अर्थशब्दौ // 159 // लघ्वक्षरा-ऽसखीदुत्- स्वराद्यदल्पस्वरा-ऽय॑मेकम् 31160 // 'लघ्वक्षरं सखिवर्जेदुदन्तं स्वराधकारान्तमल्पस्वरं पूज्यवाचि चैकं द्वन्द्वे प्राक्' स्यात् / शरशीर्यम्, अग्नीषोमो, वायुतोयम् / असखीति किम् ? सुतसखायौ / अस्त्रशस्त्रम्, पक्षन्यग्रोधी, श्रद्धामेधे / लघ्वादीति किम् ? कुक्कुटमयूरी, मयूरकुक्कुटौ / एकमिति किम् ? शङ्खदुन्दुभिवीणाः / द्वन्द्व इत्येव विस्पष्टपटुः // 160 // मास-वर्ण-भ्रात्रऽनुपूर्वम् / 3 / 1 / 161 // एतद्वाचि 'द्वन्द्वेऽनुपूर्वं प्राक्' स्यात् / फाल्गुनचैत्रौ, ब्राह्मणक्षत्रियौ, Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 139 ब्राह्मणक्षत्रियविशः, बलदेववासुदेवौ / / 161 // * भर्तुतुल्यस्वरम् / 3 / 1 / 162 // 'नक्षत्रर्तुवाचि तुल्यस्वरं द्वन्द्वेऽनुपूर्वं प्राक्' स्यात् / अश्विनीभरणीकृत्तिकाः, हेमन्तशिशिरवसन्ताः / तुल्यस्वरमिति किम् ? आर्द्रामृगशिरसी, ग्रीष्मवसन्तौ // 162 // संख्या समासे / 3 / 1 / 163 // 'समासमात्रे संख्यावाच्यनुपूर्वं प्राक्' स्यात् / द्वित्राः, द्विशती, एकादशः // 163 // इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितायां सिद्धहेमचन्द्राभिधानस्वोपज्ञशब्दानुशासन लघुवृत्ती तृतीयस्याध्यायस्य प्रथमः पादः समाप्तः // 31 // असंरब्धा अपि चिरं दुःसहा वैरभूभृताम् / चण्डाश्चामुण्डराजस्य प्रतापशिखिनः कणाः // 9 // (द्वितीयः पादः) परस्परा-ऽन्योऽन्येतरेतरस्याम् स्यादेर्वाऽपुंसि / 3 / 2 / 1 // 'एषामपुंवृत्तीनां स्यादेराम् वा' स्यात् / इमे सख्यौ कुले वा परस्परां परस्परम्, अन्योऽन्यामन्योऽन्यम्, इतरेतरामितरेतरं भोजयतः / आभिः सखीभिः कुलैर्वा परस्परां परस्परेण, अन्योऽन्यामन्योऽन्येन, इतरेतरामितरेतरेण भोज्यते / अपुंसीति किम् ? इमे नराः परस्परं भोजयन्ति // 1 // ... अमव्ययीभावस्याऽतोऽपञ्चम्याः / 3 / 2 / 2 // 'अदन्तस्याव्ययीभावस्य स्यादेरम् स्यात्, न तु पञ्चम्याः' / उपकुम्भमस्ति, Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 140 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // उपकुम्भं देहि / अव्ययीभावस्येति किम् ? प्रियोपकुम्भोऽयम् / अत इति किम् ? अधिस्त्रि / अपञ्चम्या इति किम् ? उपकुम्भात् // 2 // वा तृतीयायाः / 3 / 2 / 3 // 'अदन्तस्याव्ययीभावस्य तृतीयाया अम् वा' स्यात् / किं न उपकुम्भम्, किं न उपकुम्भेन / अव्ययीभावस्येति किम् ? प्रियोपकुम्भेन // 3 // सप्तम्या वा // 3 // 2 // 4 // 'अदन्तस्याव्ययीभावस्य सप्तम्या अम् वा' स्यात् / उपकुम्भम्, उपकुम्भे निधेहि / अव्ययीभावस्येत्येव- प्रियोपकुम्भे // 4 // ऋद्ध-नदी-वंशस्य / 3 / 2 / 5 // एतदन्तस्याऽव्ययीभावस्याऽदन्तस्य ‘सप्तम्या अम् नित्यम्' स्यात् / सुमगधम्, उन्मत्तगङ्गम्, एकविंशतिभारद्वाजं वसति // 5 // अनतो लुप् // 3 // 26 // 'अदन्तवर्जस्याऽव्ययीभावस्य स्यादेर्लुप्' स्यात् / उपवधु, उपकर्तृ / अनत इति किम् ? उपकुम्भात् / अव्ययीभावस्येत्येव- प्रियोपवधुः // 6 // अव्ययस्य / 3 / 2 / 7 // 'अव्ययस्य स्यादेर्लुप्' स्यात् / स्वः, प्रातः / अव्ययस्येति किम् ? अत्युचैसः // 7 // ऐकार्थे / 3 / 2 / 8 // 'ऐकार्थ्यम्- ऐकपद्यं तन्निमित्तस्य स्यादेर्लुप्' स्यात् / चित्रगुः, पुत्रीयति औपगवः / अत एव लुब्विधानाद् “नाम नाम्ना० (3, 1, 18)' इत्युक्तावपि स्याद्यन्तानां समासः स्यात् / ऐकार्य इति किम् ? चित्रा गावे यस्येत्यादिवाक्ये मा भूत् // 8 // Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 141 न नाम्येकस्वरात खित्युत्तरपदेऽमः / 3 / 2 / 9 // समासारम्भकमन्त्यं पदम् उत्तरपदम्, तस्मिन् खित्प्रत्ययान्ते उत्तरपदे परे 'नाम्यन्तादेकस्वरात् पूर्वपदात् परस्याऽमो लुब् न' स्यात् / स्त्रियंमन्यः, नावंमन्यः / नामीति किम् ? मंमन्यः / एकस्वरादिति किम् ? वधुंमन्या / खितीति किम् ? स्त्रीमानी // 9 // असत्त्वे उसेः / 3 / 2 / 10 // 'असत्त्वे विहितस्य ङसेरुत्तरपदे परे लुब् न' स्यात् / स्तोकान्मुक्तः / असत्त्व इति किम् ? स्तोकभयम् / उत्तरपद इत्येव- निःस्तोकः // 10 // ब्राह्मणाच्छंसी / 3 / 2 / 11 // अत्र समासे ‘ङसेढुंबभावो निपात्यते' / ब्राह्मणाच्छंसिनौ / निपातनाद् ऋत्विविशेषादन्यत्र लुबेव - ब्राह्मणशंसिनी स्त्री // 11 // ___ओजो-ऽञ्जः-सहो-ऽम्भस्-तमस्-तपसष्टः / 3 / 2 / 12 // एभ्यः परस्य 'टावचनस्योत्तरपदे परे लुब् न' स्यात् / ओजसाकृतम्, अनसाकृतम्, सहसाकृतम्, अम्भसांकृतम्, तमसाकृतम्, तपसाकृतम् / ट इति किम् ? ओजोभावः // 12 // . .. पुंजनुषोऽनुजा-ऽन्धे / 3 / 2 / 13 // पुम्-जनुर्ध्या परस्य 'टो यथासंख्यमनुजेऽन्धे चोत्तरपदे लुब् न' स्यात् / पुंसाऽनुजः, जनुषाऽन्धः / ट इत्येव- पुमनुजा // 13 // आत्मनः पूरणे / 3 / 2 / 14 // अस्मात् परस्य 'टः पूरणप्रत्ययान्ते उत्तरपदे लुब् न' स्यात् / आत्मनाद्वितीयः, आत्मनाषष्ठः // 14 // मनसश्चाऽऽज्ञायिनि / 3 / 2 / 15 // Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 142 . श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // मनस आत्मनश्च परस्य ‘ट आज्ञायिन्युत्तरपदे लुब् न' स्यात् / मनसा ऽऽज्ञायी, आत्मनाऽऽज्ञायी // 15 // नाम्नि 3 / 2 / 16 // मनसः परस्य 'ट: संज्ञाविषये उत्तरपदे परे लुब् न' स्यात् / मनसा देवी / नाम्नीति किम् ? मनोदत्ता कन्या // 16 // परा-ऽऽत्मभ्यां उः / 3 / 2 / 17 // आभ्यां परस्य 'डेवचनस्योत्तरपदे परे नाम्नि लुब् न' स्यात् / परस्मै पदम्, आत्मनेपदम् / नाम्नीत्येव- परहितम् // 17 // अद्-व्यञ्जनात् सप्तम्या बहुलम् / 3 / 2 / 18 // अदन्ताद् व्यञ्जनान्ताच्च परस्याः ‘सप्तम्या बहुलं नाम्नि लुब् न' स्यात् अरण्येतिलकाः, युधिष्ठिरः / अद्व्यञ्जनादिति किम् ? भूमिपाशः / नाम्नी त्येव- तीर्थकाकः // 18 // प्राकारस्य व्यञ्जने / 3 / 2 / 19 // राजलभ्यो रक्षानिर्वेशः कारः / प्राचां देशे यः कारः तस्य संज्ञायां गम्यः मानायामद्व्यञ्जनात् परस्याः ‘सप्तम्या व्यञ्जनादावुत्तरपदे लुब् न' स्यात् मुकुटेकार्षापणः, समिधिमाषकः / प्रागिति किम् ? यूथपशुः - उदीचा- म न प्राचाम् / कार इति किम् ? अभ्यर्हितपशुः / व्यञ्जन इति किम् अविकटोरणः // 19 // तत्पुरुषे कृति / 3 / 2 / 20 // अव्यञ्जनात् परस्याः ‘सप्तम्याः कृदन्ते उत्तरपदे तत्पुरुषे लुब् न' स्यात् स्तम्बेरमः, भस्मनिहुतम् / तत्पुरुष इति किम् ? धन्वकारकः / अद्यत नादित्येव- कुरुचरः // 20 // मध्याऽन्ताद् गुरौ / 3 / 2 / 21 // Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 143 आभ्यां परस्याः ‘सप्तम्या गुरावुत्तरपदे लुब् न' स्यात् / मध्येगुरुः, अन्तेगुरुः // 21 // अमूर्द्ध-मस्तकात् स्वाङ्गादकामे / 3 / 222 // मूर्द्धमस्तकवर्जात् स्वाङ्गवाचिनोऽद्व्यञ्जनात् परस्याः ‘सप्तम्याः कामवर्जे उत्तरपदे लुब् न' स्यात् / कण्ठेकालः / अमूर्द्धमस्तकादिति किम् ? मूर्धशिखः, मस्तकशिखः / अकाम इति किम् ? मुखकामः // 22 // बन्धे पनि नवा 3 / 2 / 23 // बन्धे घजन्ते उत्तरपदे अद्व्यञ्जनात् परस्याः ‘सप्तम्या लुब् वा न' स्यात् / हस्तेबन्धः, हस्तबन्धः; चक्रेबन्धः चक्रबन्धः / घनिति किम् ? अजन्ते - हस्तबन्धः // 13 // कालात् तन-तर-तम-काले / 3 / 2 / 24 // अद्व्यञ्जनान्तात् कालवाचिनः परस्याः ‘सप्तम्यास्तनादिप्रत्ययेषु काले. चोत्तरपदे वा लुब् न' स्यात् / पूर्वाह्नेतनः, पूर्वाह्नतनः, पूर्वाह्नेतराम्, पूर्वाह्नतरे; पूर्वाह्नतमाम्, पूर्वाह्नतमे; पूर्वाह्नेकाले पूर्वाह्नकाले / कालादिति किम् / शुक्तरे, शुक्तमे / अयानादित्येव - रात्रितरायाम् // 24 // शय-वासि-वासेष्वकालात् / 3 / 2 / 25 // अकालवाचिनोऽद्व्यञ्जनात् परस्याः ‘सप्तम्या एकूत्तरपदेषु लुब् वा न' स्यात् / बिलेशयः, बिलशयः; वनेवासी, वनवासी; ग्रामेवासः, ग्रामवासः / अकालादिति किम् ? पूर्वाह्नशयः // 25 // ___वर्ष-क्षर-वरा-ऽप्-सरः-शरोरोमनसो जे // 32 // 26 // एभ्यः परस्याः 'सप्तम्या जे उत्तरपदे लुब् वा न' स्यात् / वर्षेजः, वर्षजः; क्षरेजः, क्षरजः; वरेजः, वरजः; अप्सुजम्, अब्जम; सरसिजम्, सरोजम्; Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 144 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // शरेजः, शरजः; उरसिजः, उरोजः; मनसिजः, मनोजः // 26 // घु-प्रावृड्-वर्षा-शरत्-कालात् / 3 / 2 / 27 // एभ्यः परस्याः ‘सप्तम्या जे उत्तरपदे लुब् न' स्यात् / दिविजः, प्रावृषिजः, वर्षासुजः, शरदिजः, कालेजः // 27 // . अपो य-योनि-मति-चरे / 3 / 2 / 28 // अपः परस्याः ‘सप्तम्या ये प्रत्यये योन्यादौ चोत्तरपदे लुब् न' स्यात् / अप्सव्यः; अप्सुयोनिः, अप्सुमतिः, अप्सुचरः // 28 // नेन-सिद्ध-स्थे / 3 / 2 / 29 // 'इन्प्रत्ययान्ते सिद्ध-स्थयोश्चोत्तरपदयोर्न लुब् न' स्यात्, भवत्येवेत्यर्थः / स्थण्डिलवर्ती, साङ्काश्यसिद्धः, समस्थः // 29 // षष्ट्याः क्षेपे / 3 / 2 // 30 // उत्तरपदे परे क्षेपे गम्ये 'षष्ठ्या लुब् न' स्यात् / चौरस्यकुलम् // 30 // . पुत्रे वा // 3 // 2 // 31 // पुत्रे उत्तरपदे क्षेपे 'षष्ट्या लुब् वा न' स्यात् / दास्याःपुत्रः, दासीपुत्रः // 31 // पश्यद्-वाग्-दिशो हर-युक्ति-दण्डे / 3 / 2 / 32 // एभ्यः परस्याः 'षष्ट्या यथासंख्यं हरादावुत्तरपदे लुब् न' स्यात् / पश्यतोहरः वाचोयुक्तिः, दिशोदण्डः // 32 // ___ अदसोऽकसायनणोः // 3 // 2 // 33 // 'अदसः परस्याः षष्ट्या अकविषये उत्तरपदे आयनणि च परे लु न' स्यात् / आमुष्यपुत्रिका, आमुष्यायणः // 33 // देवानांप्रियः // 3 // 2 // 34 // Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 145 अत्र 'षष्ट्या लुब् न' स्यात् / देवानांप्रियः // 34 / / शेप-पुच्छ-लाङ्लेषु नाम्नि शुनः / 3 / 2 // 35 // शुनः परस्याः 'षष्ठ्याः शेपादावुत्तरपदे संज्ञायां लुब् न' स्यात् / शुनःशेपः, शुनःपुच्छः, शुनोलाङ्गेलः // 35 // वाचस्पति-वास्तोष्पति-दिवस्पति-दिवोदासम् / 3 / 2 // 36 // 'एते समासाः षष्ठ्यलुपि निपात्यन्ते नाम्नि' / वाचस्पतिः, वास्तोष्पतिः, दिवस्पतिः, दिवोदासः // 36 // ऋतां विद्या-योनिसम्बन्धे / 3 / 2 / 37 // 'ऋदन्तानां विद्यया योन्या वा कृते सम्बन्धे हेतौ सति प्रवृत्तानां षष्ठ्यास्तत्रैव हेतौ सति प्रवृत्ते उत्तरपदे •लुब् न' स्यात् / होतुःपुत्रः, पितुःपुत्रः, पितुरन्तेवासी / ऋतामिति किम् ? आचार्यपुत्रः / विद्यायोनिसम्बन्ध इति किम् ? भर्तृगृहम् // 37 // स्वसृ-पत्योर्वा // 3 // 2 // 38 // 'विद्यायोनिसम्बन्धनिमित्तानाम् ऋदन्तानां षष्ठ्याः स्वसृपत्योरुत्तरपदयोयोनिसम्बन्धनिमित्तयोर्लुब् वा न' स्यात् / होतुःस्वसा, होतृस्वसा; स्वसुःपतिः, स्वसृपतिः / विद्यायोनिसम्बन्ध इत्येव- भर्तृस्वसा, होतृपतिः // 38 // . आ द्वन्द्वे // 3 // 2 // 39 // 'विधायोनिसम्बन्धनिमित्तानाम् ऋदन्तानां यो द्वन्द्वस्तस्मिन् सत्युत्तरपदे पूर्वपदस्याऽऽत्' स्यात् / होतापोतारौ, मातापितरौ / ऋतामित्येव- गुरुशिष्यौ / विद्यायोनिसम्बन्ध इत्येव- कर्तृकारयितारौ // 39 // .. पुत्रे / 3 / 2 / 40 // 'पुत्रे उत्तरपदे विद्यायोनिसम्बन्धनिमित्तानाम् ऋदन्तानां द्वन्द्वे आः' Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 146 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // स्यात् / मातापुत्रौ, होतापुत्रौ // 40 // वेदसहश्रुताऽवायुदेवतानाम् // 3 // 2 // 41 // 'एषां द्वन्द्वे पूर्वपदस्योत्तरपदे आः' स्यात् / इन्द्रासोमौ / वेदेति किम् ? ब्रह्मप्रजापती / सहेति किम् ? विष्णुशक्रौ / श्रुतेति किम् ? चन्द्रसूर्यौ / वायुवर्जनं किम् ? वाय्वग्नी / देवतानामिति किम् ? यूपचषालौ // 41 // ईः षोम-वरुणेऽग्नेः / 3 / 2 / 42 // 'वेदसहश्रुताऽवायुदेवतानां द्वन्द्वे षोमे वरुणे चोत्तरपदेऽग्नेरीः' स्यात्, षोमेति निर्देशाद् ईयोगे षत्वं च / अग्नीषोमौ, अग्नीवरुणौ / देवताद्वन्द्व इत्येवअग्निसोमी बटू // 42 // इवृद्धिमत्यविष्णौ // 3 // 2 // 43 // 'विष्णुवर्जे वृद्धिमत्युत्तरपदे देवताद्वन्द्वे अग्नेरिः' स्यात् / आग्निवारुणीमनड्वाहीमालभेत / वृद्धिमतीति किम् ? अग्नीवरुणौ / अविष्णाविति किम् ? आग्नावैष्णवं चरं निर्वपेत् // 43 // दिवो द्यावा // 3 // 2 // 44 // ''देवताद्वन्द्वे दिव उत्तरपदे द्यावेति' स्यात् / द्यावाभूमी // 44 // दिवस-दिवः पृथिव्यां वा / 3 / 2 // 45 // 'देवताद्वन्द्वे दिवः पृथिव्यामुत्तरपदे एतौ वा' स्याताम् / दिवस्पृथिव्यौ, दिवःपृथिव्यौ, यावापृथिव्यौ // 45 / / उषासोषसः / 3 / 2 / 46 // देवताद्वन्द्वे 'उषस उत्तरपदे उषासा' स्यात् / उषासासूर्यम् // 46 // मातरपितरं वा / 3 / 2147 // 'मातृपित्रोः पूर्वोत्तरपदयोर्द्वन्द्वे ऋतोऽरो वा निपात्यते' / मातरपितरयो मातापित्रोः // 47 // Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 147 - वर्चस्कादिष्ववस्करादयः / 3 / 2 / 48 // 'एष्वर्थेष्वेते कृतशषसाधुत्तरपदाः साधवः' स्युः / अवस्करोऽन्नमलम्, अवकरोऽन्यः; अपस्करो रथाङ्गम्, अपकरोऽन्यः // 48 // __परतः स्त्री पुम्वत् स्त्येकार्थेऽनूङ / 3 / 2 / 49 // परतः- विशेष्यवशात् स्त्रीलिङ्गः स्त्रीवृत्तावेकार्थे उत्तरपदे 'पुम्वत्' स्यात्, न तूङन्तः / दर्शनीयभार्यः / परत इति किम् ? द्रोणीभार्यः / स्त्रीति किम् ? खलपुदृष्टिः / स्त्र्येकार्थ इति किम् ? गृहिणीनेत्रः, कल्याणीमाता / अनूङिति करभोलभावः / किम् ? गृहिणीने द्रोणीभार्यः पवत' स्यात्, न क्यङ्-मानि-पित्तद्धिते / 3 / 2 / 50 // क्यङि मानिनि चोत्तरपदे पित्तद्धिते च परतः स्त्रीलिङ्गोऽनूङ् ‘पुम्वत्' स्यात् / श्येतायते, दर्शनीयमानी अयमस्याः; अजथ्यं यूथम् // 50 // जातिश्च णि-तद्धितय-स्वरे / 3 / 2 / 51 // अन्या परतः स्त्री जातिश्च णौं प्रत्यये यादौ स्वरादौ च तद्धिते विषयभूते 'पुम्वत्' स्याद्, अनूङ् / पटयति, एत्यः, भावत्कम् / जाति - दारद्यः, गार्ग्यः / तद्धितेति किम् ? हस्तिनीयति, हस्तिन्यः // 51 // एयेऽग्नायी / 3 / 2 / 52 // एयप्रत्ययेऽग्नाय्येव परतः स्त्री 'पुम्वत्' स्यात् / आग्नेयः / पूर्वेण सिद्धे नियमार्थमिदम् / श्यैनेयः // 52 // नाऽप-प्रियाऽऽदौ / 3 / 2 / 53 // अप्प्रत्ययान्ते स्त्र्येकार्थे उत्तरपदे प्रियादौ च परतः स्त्री 'पुम्वन्न' स्यात् / कल्याणीपञ्चमा रात्रयः, कल्याणीप्रियः / अप्रियादाविति किम् ? कल्याणपञ्चमीकः पक्षः // 53 // Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 148 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // तद्धिताऽककोपान्त्य-पूरण्याख्याः / 3 / 2 / 54 // तद्धितस्याऽकप्रत्ययस्य च क उपान्त्यो यासां ताः, पूरणीप्रत्ययान्ताः, संज्ञाश्च परतः स्त्रियः ‘पुम्वन्न' स्युः / मद्रिकाभार्यः, कारिकाभार्यः, पञ्चमीभार्यः, दत्ताभार्यः / तद्धिताकेति किम् ? पाकभार्यः // 54 // - तद्धितः स्वरवृद्धिहेतुररक्त-विकारे / 3 / 2 / 55 // रक्त-विकाराभ्यामन्यार्थः स्वरवृद्धिहेतुर्यस्तद्धितस्तदन्तः परतः स्त्री 'पुम्वन्न' स्यात् / माथुरीभार्यः / स्वरेति किम् ? वैयाकरणभार्यः / वृद्धिहेतुरिति किम् ? अर्द्धप्रस्थभार्यः / अरक्तविकार इति किम् ? काषायबृहतिकः, लौहेषः // 55 // स्वाङ्गान्डी तिश्चाऽमानिनि / 3 / 2 / 56 // स्वाङ्गाद् यो ङीस्तदन्तो जातिवाची च परतः स्त्री 'पुम्वन्न' स्यात्, न तु मानिनि / दीर्घकेशीभार्यः, कठीभार्यः, शूद्राभार्यः / स्वाङ्गादिति किम् ? पटुभार्यः / अमानिनीति किम् ? दीर्घकेशमानिनी // 56 // पुम्वत् कर्मधारये / 3 / 2 / 57 // परतः स्त्री अनूङ् कर्मधारये सति स्त्र्येकार्थे उत्तरपदे परे 'पुम्वत्' स्यात् / कल्याणप्रिया, मद्रकभार्या, माथुरवृन्दारिका, चन्द्रमुखवृन्दारिका / अनूङित्येव- ब्रह्मबन्धूवृन्दारिका // 57 / / रिति / 3 / 2 / 58 // परतः स्त्री अनूङ् रिति प्रत्यये 'पुम्वत्' स्यात् / पटुजातीया, कठदेशीया // त्व-ते गुणः / 3 / 2 / 59 // परतः स्त्र्यनूङ् गुणवचनस्त्व-तयोः प्रत्यययोः 'गुम्वत्' स्यात् / पटुत्वम्, पटुता / गुण इति किम् ? कठीत्वम् // 59 // . Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 149 च्चौ क्वचित् / 3 / 2 / 60 // परतः स्त्र्यनूङ् 'च्चौ क्वचित् पुम्वत्' स्यात् / महद्भूता कन्या / क्वचिदिति किम् ? गोमतीभूता // 60 // सर्वादयोऽस्यादौ / 3 / 2 / 61 // 'सर्वादिः परतः स्त्री, पुम्वत्' स्यात्, न तु स्यादौ / सर्वस्त्रियः, भवत्पुत्रः / अस्यादाविति किम् ? सर्वस्यै // 61 // मृगक्षीराऽऽदिषु वा / 3 / 2 / 62 // एषु समासेषु परतः स्त्री उत्तरपदे 'पुम्वद् वा' स्यात् / मृगक्षीरम्, मृगीक्षीरम्; काकशावः, काकीशावः // 62 // ऋदित् तर-तम-रूप-कल्प-ब्रुव-चेलड्-गोत्र-मत-हते वा हस्वश्च / 3 / 2 / 63 // ऋदुदित् परतः स्त्री तरादिषु प्रत्ययेषु ब्रुवादौ च स्त्र्येकार्थे उत्तरपदे 'ह्रस्वान्तः पुम्वच्च वा' स्यात् / पचन्तितरा, पचत्तरा, पचन्तीतरा; श्रेयसितरा, श्रेयस्तरा, श्रेयसीतरा / पचन्तितमा, पचत्तमा, पचन्तीतमा; श्रेयसितमा, श्रेयस्तमा, श्रेयसीतमा / पचन्तिरूपा, पचद्रूपा, पचन्तीरूपा; विदुषिरूपा, विद्वद्रूपा; विदुषीरूपा / पचन्तिकल्पा, पचत्कल्पा, पचन्तीकल्पा; विदुषिकल्पा, विद्वत्कल्पा, विदुषीकल्पा / पचन्तिब्रुवा, पचब्रुवा, पचन्तीब्रुवा; श्रेयसिब्रुवा, श्रेयोब्रुवा, श्रेयसीब्रुवा / पचन्तिचेली, पचच्चेली, पचन्तीचेली; श्रेयसिचेली, श्रेयश्चेली, श्रेयसीचेली / पचन्तिगोत्रा, पचद्गोत्रा, पचन्तीगोत्रा; श्रेयसिगोत्रा, श्रेयोगोत्रा, श्रेयसीगोत्रा / पचन्तिमता, पचन्मता, पचन्तीमता; श्रेयसिमता, श्रेयोमता, श्रेयसीमता / पचन्तिहता, पचद्धता, पचन्तीहता; श्रेयसिहता, श्रेयोहता, श्रेयसीहता // 3 // Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 150 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // - यः / 3 / 2 / 64 // झ्यन्तायाः परतः स्त्रियास्तरादिषु प्रत्ययेषु ब्रुवादिषु चोत्तरपदेषु एकार्थेषु 'ह्रस्वः' स्यात् / गौरितरा, गौरितमा, नर्तकिरूपा, कुमारिकल्पा, ब्राह्मणिब्रुवा, गार्गिचेली, ब्राह्मणिगोत्रा, गार्गिमता, गौरिहता // 64 // भोगवद्-गौरिमतोम्नि / 3 / 2 / 65 // अनयोयन्तयोः संज्ञायां तरादिषु प्रत्ययेषु ब्रुवादौ चोत्तरपदे एकार्थे 'हस्वः' स्यात् / भोगवतितरा, गौरिमतितमा, भोगवतिरूपा, गौरिमतिकल्पा, भोगवतिब्रुवा, गौरिमतिचेली, भोगवतिगोत्रा, गौरिमतिमता, भोगवतिहता / नाम्नीति किम् ? भोगवतितरा, भोगवत्तरा, भोगवतीतरा // 65 // नवैकस्वराणाम् / 3 / 2 / 66 // एकस्वरस्य ङ्यन्तस्य तरादौ प्रत्यये ब्रुवादौ चोत्तरपदे स्त्र्येकार्थे 'वा ह्रस्वः' स्यात् / स्त्रितरा, स्त्रीतरा; ज्ञितमा, ज्ञीतमा, ज्ञिब्रुवा, ज्ञीब्रुवा / एकस्वराणामिति किम् ? कुटीतरा // 66 // ऊङः / 3 / 2 / 67 // ऊङन्तस्य तरादौ ब्रुवादी चोत्तरपदे स्त्र्येकार्थे 'वा ह्रस्वः' स्यात् / ब्रह्मबन्धुतरा, बह्मबन्धूतरा; कद्रुब्रुवा, कद्रूबुवा // 67 // महतः कर-घास-विशिष्टे डाः / 3 / 2 / 68 // करादावुत्तरपदे ‘महतो डा वा' स्यात् / महाकरः, महत्करः; महाघासः, महद्घासः; महाविशिष्टः, महद्विशिष्टः // 68 // स्त्रियाम् / 3 / 2 / 69 // . स्त्रीवृत्तेर्महतः करादावुत्तरपदे 'नित्यं डाः' स्यात् / महाकरः, महाघासः, महाविशिष्टः // 69 // Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 151 जातीयैकार्थेऽच्वेः / 3 / 2170 // 'महतोऽव्यन्तस्य जातीयरि एकार्थे चोत्तरपदे डाः' स्यात् / महाजातीयः महावीरः / जातीयैकार्थे इति किम् ? महत्तरः / अच्वेरिति किम् ? महद्भूता कन्या // 70 // न पुम्वनिषेधे / 3 / 271 // 'महतः पुम्वनिषेधविषये उत्तरपदे डा न' स्यात् / महतीप्रियः // 71 // इच्यस्वरे दीर्घ आच / 3 / 2 / 72 // 'इजन्तेऽस्वरादावुत्तरपदे पूर्वपदस्य दीर्घत्वम् आच्च' स्यात् / मुष्टीमुष्टि, मुष्टामुष्टि / अस्वर इति किम् ? अस्यसि // 72 // हविष्यष्टनः कपाले / 3 / 2 / 73 // 'हविष्यर्थे कपाले उत्तरपदेऽष्टनो दीर्घः' स्यात् / अष्टाकपालं हविः / हविषीति किम् ? अष्टकपालम् / कपाल इति किम् ? अष्टपात्रं हविः // 73 // गवि युक्ते / 3 / 274 // 'युक्तेऽर्थे गव्युत्तरपदेऽष्टनो दीर्घः' स्यात् / अष्टागवं शकटम् / युक्त इति किम् ? अष्टमुश्चैत्रः // 74 // . नाम्नि / 3 / 275 // 'अष्टन उत्तरपदे संज्ञाया दीर्घः' स्यात् / अष्टापदः कैलाशः / नाम्नीति किम् ? अष्टदंष्ट्रः // 75 // कोटर-मिश्रक-सिध्रक-पुरग-सारिकस्य वणे / 3 / 276 // एषां कृतणत्वे वने उत्तरपदे ‘संज्ञायां दीर्घः' स्यात् / कोटरावणम्, मिश्रकावणम्, सिध्रकावणम्, पुरगावणम्, सारिकावणम् // 76 // अञ्जनादीनां गिरौ / 3 / 277 // Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 152 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // एषां गिरावुत्तरपदे 'नाम्नि दीर्घः' स्यात् / अञ्जनागिरिः, कुक्कुटागिरिः / अनजिरादिबहुस्वर-शरादीनां मतौ / 3 / 2 / 78 // अजिरादिवर्जबहुस्वराणां शरादीनां च मती प्रत्यये 'नाम्नि दीर्घः' स्यात् / उदुम्बरावती, शरावती, वंशावती / अनजिरादीति किम् ? अजिरवती, हिरण्यवती // 78 // ऋषौ विश्वस्य मित्रे / 3 / 279 // ऋषावर्थे मित्रे उत्तरपदे विश्वस्य 'नाम्नि दीर्घः' स्यात् / विश्वामित्रः // नरे / 3 / 2 / 80 // नरे उत्तरपदे 'नाम्नि विश्वस्य दीर्घः' स्यात् / विश्वानरः कश्चित् // 8 // वसु-राटोः / 3 / 2 / 81 // अनयोरुत्तरपदयोर्विश्वस्य 'दीर्घः' स्यात् / विश्वावसुः, विश्वाराट् // 81 // वलच्यपित्रादेः / 3 / 2 / 82 // वलच्प्रत्यये पित्रादिवर्जानाम् 'दीर्घः' स्यात् / आसुतीवल: / अपित्रादेरिति किम् ? पितृवलः, मातृवलः // 82 // चितेः कचि / 3 / 2 / 83 // चितेः कचि 'दीर्घः' स्यात् / एकचितीकः // 83 // स्वामिचिह्नस्याऽविष्टा-ऽष्ट-पञ्च-भिन्न-च्छिन्न-च्छिद्र- सुव स्वस्तिकस्य कर्णे / 3 / 2 / 84 // स्वामी चिन्यते येन तद्वाचिनो विष्टादिवर्जस्य कर्णे उत्तरपदे 'दीर्घः' स्यात् / दात्राकर्णः पशुः / स्वामिचिह्नस्येति किम् ? लम्बकर्णः / विष्टादिवर्जन किम् ? विष्टकर्णः, अष्टकर्ण इत्यादि // 84 // .. गति-कारकस्य नहि-वृति-वृषि-व्यधि-रुचि-सहि-तनौ क्वौ Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 153 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 3 / 2 / 85 // पति-कारकयोर्नह्यादौ क्विबन्ते उत्तरपदे 'दीर्घः' स्यात् / उपानत्, नीवृत्, प्रावृट्, श्वावित्, नीरुक्, ऋतीषट्, जलासट्, परीतत् // 85 // घञ्युपसर्गस्य बहुलम् / 3 / 2 / 86 // धान्ते उत्तरपदे उपसर्गस्य 'बहुलं दीर्घः' स्यात् / नीक्लेदः, नीवारः / बाहुलकात् क्वचिद्वा - प्रतीवेशः, प्रतिवेशः / क्वचिन्न - विषादः, निषादः // नामिनः काशे / 3 / 2 / 87 // नाम्यन्तस्योपसर्गस्याऽजन्ते काशे उत्तरपदे 'दीर्घः' स्यात्.। नीकाशः वीकाशः। नामिन इति किम् ? प्रकाशः // 87 // दस्ति / 3 / 2 / 88 // दो यस्तादिरादेशस्तस्मिन् परे नाम्यन्तस्योपसर्गस्य 'दीर्घः' स्यात् / नीत्तम्, वीत्तम् / द इति किम् ? वितीर्णम् / तीति किम् ? सुदत्तम् // 88 // ___ अपील्वादेवहे / 3 / 2 / 89 // पील्वादिवर्जस्य नाम्यन्तस्य वहे उत्तरपदे 'दीर्घः' स्यात् / ऋषीवहम्, मुनीवहम् / अपील्वादेरिति किम् ? पीलुवहम्, दारुवहम् // 89 // शुनः / 3 / 2 / 90 // अस्योत्तरपदे 'दीर्घः स्यात् / श्वादन्तः, श्वावराहम् // 90 // एकादश-षोडश-षोडन-षोढा-षड्ढा / 3 / 2 / 91 // 'एकादयो दशादिषु कृतदीर्घत्वादयो निपात्यन्ते' / एकादश, षोडश, षड् दन्ता अस्य=षोड़न्, षोढा, षड्ढा // 91 // द्विव्यष्टानां द्वा-त्रयोऽष्टाः प्राक् शतादनशीति-बहुव्रीहौ Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 154 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // / 3 / 2 / 92 // . एषां यथासंख्यमेते प्राक् शतात् संख्यायामुत्तरपदे स्युः, न तु अशीतौ बहुव्रीहिविषये च / द्वादश, त्रयोविंशतिः, अष्टात्रिंशत् / प्राक्शतादिति किम् ? द्विशतम्, त्रिशतम्, अष्टस्रहसम् / अनशीतिबहुव्रीहाविति किम् ? यशीतिः, द्वित्राः // 92 // चत्वारिंशदादौ वा / 3 / 2 / 93 // द्वित्र्यष्टानां प्राक्शताच्चत्वारिंशदादावुत्तरपदे 'यथासंख्यं द्वा-त्रयोऽष्टा वा' स्युः, अनशीतिबहुव्रीहौ / द्वाचत्वारिंशत्, द्विचत्वारिंशत्; त्रयश्चत्वारिंशत्, त्रिचत्वारिंशत्; अष्टाचत्वारिंशत्, अष्टचत्वारिंशत् // 93 // . हृदयस्य हलास-लेखा-ऽण्-ये / 3 / 2 / 94 // अस्य लास-लेखयोरुत्तरपदयोरणि ये च प्रत्यये 'हृत्' स्यात् / हृल्लासः, हृल्लेखः, हाईम्, हृद्यः // 94 // पदः पादस्या-ऽऽज्याति-गोपहते / 3 / 2 / 95 // 'पादस्याज्यादावुत्तरपदे पदः' स्यात् / पदाजिः, पदातिः, पदगः, पदोपहतः // हिम-हति-काषि-ये पद् / 3 / 2 / 96 // हिमादावुत्तरपदे ये च प्रत्यये ‘पादस्य पद्' स्यात् / पद्धिमम्, पद्धतिः, पत्काषी, पद्याः शर्कराः / / 96 // ऋचः शसि / 3 / 2 / 97 // 'ऋचां पादस्य शादौ शस्प्रत्यये पद्' स्यात् / पच्छो गायत्रीं शंसति / ऋच इति किम् ? पादशः श्लोकं वक्ति / द्विःशपाठात् स्यादिशसि न स्यात् - ऋचः पादान् पश्य // 17 // शब्द-निष्क-घोष-मिश्रे वा / 3 / 2 / 98 // Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 155 शब्दादावुत्तरपदे ‘पादस्य पद् वा' स्यात् / पच्छब्दः, पादशब्दः; पनिष्कः, पादनिष्कः; पद्घोषः, पादघोषः; पन्मिश्रः, पादमिश्रः // 98 // - नस् नासिकायास्तः क्षुद्रे / 3 / 2 / 99 // 'नासिकायास्तस्प्रत्यये क्षुद्रे चोत्तरपदे नस्' स्यात् / नस्तः, नःक्षुद्रः // 19 // येऽवणे / 3 / 2 / 100 // 'नासिकाया ये प्रत्यये वर्णादन्यत्रार्थे नस्' स्यात् / नस्यम् / य इति किम् ? नासिक्यं पुरम् / अवर्ण इति किम् ? नासिक्यो वर्णः // 100 // शिरसः शीर्षन् / 3 / 2 / 101 // 'शिरसो ये प्रत्यये शीर्षन्' स्यात् / शीर्षण्यः स्वरः, शीर्षण्यं तैलम् / य इत्येव- शिरस्तः, शिरस्यति // 101 // केशे वा 3 / 2 / 102 // 'शिरसः केशविषये ये प्रत्यये शीर्षन् वा' स्यात् / शीर्षण्याः शिरस्याः केशाः // 10 // शीर्षः स्वरे तद्धिते / 3 / 2 / 103 // 'शिरसः स्वरादौ तद्धिते शीर्षः' स्यात् / हास्तिशीर्षिः, शीर्षिकः // 103 // - उदकस्योदः पेषं-धि-वास-वाहने / 3 / 2 / 104 // 'उदकस्य पेषमादावुत्तरपदे उदः' स्यात् / उदपेषं पिनष्टि, उदधिर्घटः, उदवासः, उदवाहनः // 104 // वैकव्याने पूर्ये / 3 / 2 / 105 // 'उदकस्याऽसंयुक्तव्यञ्जनादौ पूर्यमाणार्थे उत्तरपदे उदो वा' स्यात् / उदकुम्भः, उदककुम्भः / व्यञ्जन इति किम् ? उदकामत्रम् / एकेति किम् ? उदकस्थालम् / पूर्य इति किम् ? उदकदेशः // 105 // Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 156 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // मन्थौदन-सक्तु-बिन्दु-वज्र-भार-हार-वीवध-गाहे वा 3/2/106 // एषूत्तरपदेषु 'उदकस्योदो वा' स्यात् / उदमन्थः, उदकमन्थः; उदौदनः, उदकौदनः; उदसक्तुः, उदकसक्तुः; उदबिन्दुः, उदकबिन्दुः; उदवज्रः, उदकवज्रः; उदभारः, उदकभारः; उदहारः; उदकहारः; उदवीवधः, उदकवीवधः; उदगाहः; उदकगाहः // 106 // नाम्न्युत्तरपदस्य च / 3 / 2 / 107 // 'उदकस्य पूर्वपदस्योत्तरपदस्य च संज्ञायामुदः' स्यात् / उदमेघः, उदवाहः, उदपानम्, उदधिः, लवणोदः, कालोदः / / 107 // ते लुग्वा / 3 / 2 / 108 // 'संज्ञाविषये पूर्वोत्तरपदे लुग् वा' स्यात् / देवदत्तः, देवः, दत्तः // 108 / / ड्यन्तरनवर्णोपसर्गादप ईप् / 3 / 2 / 109 // 'व्यन्तामवर्णान्तव|पसर्गेभ्यश्च परस्याऽप उत्तरपदस्य ईप्' स्यात् / द्वीपम्, अन्तरीपम्, नीपम्, समीपम् / उपसर्गादिति किम् ? स्वापः / अनवर्णेति किम् ? प्रापम्, परापम् / / 109 // अनोदेशे उप् / 3 / 2 / 110 // 'अनोः परस्याऽपो देशेऽर्थे उप्' स्यात् / अनूपो देशः / देश इति किम् अन्वीपं वनम् // 110 // खित्यनव्ययाऽरुषो मोऽन्तो हस्वश्च / 3 / 2 / 111 // स्वरान्तस्यानव्ययस्यारुषश्च खिप्रत्ययान्ते उत्तरपदे 'मोऽन्तो यथासम्भव ह्रस्वादेशश्च' स्यात् / शंमन्यः, कालिंमन्या, अरुन्तुदः / खितीति किम् ? ज्ञमानी / अनव्ययस्येति किम् ? दोषामन्यमहः // 111 // Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 157 सत्या-ऽगदा-ऽस्तोः कारे / 3 / 2 / 112 // एभ्यः कारे उत्तरपदे ‘मोऽन्तः' स्यात् / सत्यङ्कारः अगदङ्कारः अस्तुङ्कारः // लोकम्पृण-मध्यन्दिना-ऽनभ्याशमित्यम् / 3 / 2 / 113 // एते 'कृतपूर्वपदमोऽन्ता निपात्यन्ते' / लोकम्पृणः, मध्यन्दिनम्, अनभ्याशमित्यः / / 113 // भ्राष्ट्रा-ऽग्नेरिन्धे / 3 / 2 / 114 // आभ्यामिन्धे उत्तरपदे ‘मोऽन्तः' स्यात् / भ्राष्ट्रमिन्धः, अग्निमिन्धः // 114 // अगिला गिल-गिलगिलयोः / 3 / 2 / 115 // गिलान्तवर्जात् पूर्वपदात् परे गिले गिलगिले चोत्तरपदे 'मोऽन्तः' स्यात् / तिमिङ्गिलः, तिमिङ्गिलगिलः / अगिलादिति किम् ? तिमिङ्गिलगिलः // 115 // भद्रोष्णात् करणे / 3 / 2 / 116 // आभ्यां परः करणे उत्तरपदे ‘मोऽन्तः' स्यात् / भद्रकरणम्, उष्णंकरणम् // नवाऽखित्कृदन्ते रात्रेः / 3 / 2 / 117 // खिद्वर्जे कृदन्ते उत्तरपदे परे ‘रात्रैर्मोऽन्तो वा' स्यात् / रात्रिञ्चरः, रात्रिचर / खिद्वर्जनं किम् ? रात्रिमन्यमहः / कृदन्त इति किम् ? रात्रिसुखम् / अन्तग्रहणं किम् ? रात्रयिता / / 117 / / धेनोभव्यायाम् / 3 / 2 / 118 // धेनोभव्यायामुत्तरपदे ‘मोऽन्तो वा' स्यात् / धेनुम्भव्या, धेनुभव्या // 118 // अषष्ठीतृतीयादन्याद् दोऽर्थे / 3 / 2 / 119 // अषष्ट्यन्तादतृतीयान्ताचाऽन्यादर्थे उत्तरपदे 'दोऽन्तो वा' स्यात् / अन्यदर्थः, अन्यार्थः / षष्ट्यादिवर्जनं किम् ? अन्यस्याऽन्येन वाऽर्थः= अन्यार्थः / / आशीराशा-ऽऽस्थिता-ऽऽस्थोत्सुकोति-रागे / 3 / 2 / 120 // Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ % 158 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // एषूत्तरपदेषु अषष्ठीतृतीयादन्याद् ‘दोऽन्तः' स्यात् / अन्यदाशीः अन्यदाशा, अन्यदास्थितः, अन्यदास्था, अन्युदुत्सुकः, अन्यदूतिः, अन्यद्रागः / अषष्ठीतृतीयादित्येव- अन्यस्य अन्येन वा आशीः= अन्याशीः // 120 // ईय-कारके / 3 / 2 / 121 // अन्याद् ईये प्रत्यये कारके चोत्तरपदे ‘दोऽन्तः' स्यात् / अन्यदीयः, अन्यत्कारकः // 121 // सर्वादि-विश्वग-देवाड्डद्रिः क्व्यञ्चौ / 3 / 2 / 122 // सदिर्विष्वग्-देवाभ्यां च परतः विबन्ते अञ्चावुत्तरपदे ‘डद्रिरन्तः' स्यात् / सर्वद्रीचः, द्वव्यङ्, कव्यङ्विष्वव्यङ्, देवव्यङ् / क्वीति किम् ? विष्वगञ्चनम् // 122 // सह-समः सध्रि-समि / 3 / 2 / 123 // अनयोः स्थाने क्विबन्ते अञ्चावुत्तरपदे यथासंख्यम् ‘सध्रि-समी' स्याताम् / सध्यङ्, सम्यङ् / क्व्यञ्चावित्येव- सहाञ्चनम् // 123 // तिरसस्तियति / 3 / 2 / 124 // अकारादौ क्विबन्तेऽञ्चावुत्तरपदे 'तिरसस्तिरिः' स्यात् / तिर्यङ् / अतीति किम् ? तिरश्चः // 124 // नात् / 3 / 2 / 125 // उत्तरपदे परे 'नञ् अः' स्यात् / अचौरः पन्थाः / उत्तरपद इत्येव-न भुङ्क्ते // 125 // त्यादौ क्षेपे / 3 / 2 / 126 // त्याद्यन्ते पदे परे निन्दायां गम्यमानायाम् ‘नञ् अः' स्यात् / अपचसि वं जाल्म ! / क्षेप इति किम् ? न पचति चैत्रः // 126 // नगोऽप्राणिनि वा / 3 / 2 / 127 // Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 159 अप्राणिन्यर्थे 'नगो वा निपात्यते' / नगः, अगो गिरिः / अप्राणिनीति किम् ? अगोऽयं शीर्तन // 127 // नखादयः / 3 / 2 / 128 // एते ‘अकृताऽकाराद्यदेशा निपात्यन्ते' / नखः, नासत्यः // 128 // अन् स्वरे / 3 / 2 / 129 // स्वरादावुत्तरपदे 'नोऽन्' स्यात् / अनन्तो जिनः / / 129 / / कोः कत्तत्पुरुषे / 3 / 2 / 130 // स्वरादावुत्तरपदे 'कोस्तत्पुरुषे कद्' स्यात् / कदश्वः / तत्पुरुष इति किम् ? कूष्ट्रो देशः / स्वर इत्येव- कुब्राह्मणः // 130 // रथ-वदे / 3 / 2 / 131 // रये वदे चोत्तरपदे 'कोः कद्' स्यात् / कद्रथः, कद्वदः // 131 // तृणे जातौ / 3 / 2 / 132 // जातावर्थे तृणे उत्तरपदे 'कोः कद्' स्यात् / कतृणा रौहिषाख्या तृणजातिः // __ कत्त्रिः / 3 / 2 / 133 // 'कोः किमो वा त्रावुत्तरपदे कद्' स्यात् / कत्त्रयः // 133 // काऽक्ष-पथोः / 3 / 2 / 134 // अनयोरुत्तरपदयोः 'कोः का' स्यात् / काऽक्षः, कापथम् // 134 // पुरुषे वा / 3 / 2 / 135 // पुरुषे उत्तरपदे 'कोः का वा' स्यात् / कापुरुषः, कुपुरुषः // 135 // अल्पे / 3 / 2 / 136 // 'ईषदर्थस्य कोरुत्तरपदे का' स्यात् / कामधुरम्, काऽच्छम् // 136 // Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 160 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // का-कवौ वोष्णे / 3 / 2 / 137 // . . उष्णे उत्तरपदे 'कोः का-कवी वा' स्याताम् / कोष्णम्, कवोष्णम् / पक्षे यथाप्राप्तमिति तत्पुरुषे - कदुष्णम् / बहुव्रीहौ - कूष्णो देशः / / 137 / / कृत्येऽवश्यमो लुक् / 3 / 2 / 138 // कृत्यान्ते उत्तरपदे 'ऽवश्यमो लुक्' स्यात् / अवश्यकार्यम् / कृत्य इति किम् ? अवश्यंलावकः // 138 // . समस्तत-हिते वा / 3 / 2 / 139 // तते हिते चोत्तरपदे ‘समो लुग् वा' स्यात् / सततम्, सन्ततम्; सहितम्, संहितम् // 139 // तुमश्च मनः कामे / 3 / 2 / 140 // 'तुम्-समोर्मनसि कामे चोत्तरपदे लुक्' स्यात् / भोक्तुमनाः, गन्तुकामः; समनाः, सकामः // 140 // मांसस्याऽनपत्रि पचि नवा / 3 / 2 / 141 // अनघञन्ते पचावुत्तरपदे ‘मांसस्य लुग् वा' स्यात् / मांस्पचनम्, मांसपचनम्; मांस्पाकः, मांसपाकः // 141 // दिक्शब्दात् तीरस्य तारः / 3 / 2 / 142 // अस्मात् परस्य 'तीरस्योत्तरपदस्य तारो वा' स्यात् / दक्षिणतारम्, दक्षिणतीरम् // 142 // सहस्य सोऽन्यार्थे / 3 / 2 / 143 // . उत्तरपदे परे ‘बहुव्रीही सहस्य सो वा' स्यात् / सपुत्रः, सहपुत्रः / अन्यार्थ इति किम् ? सहजः // 143 // 'नाम्नि / 3 / 21144 // Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 161 उत्तरपदे परे 'बहुव्रीही सहस्य सः संज्ञायाम्' स्यात् / साश्वत्थं वनम् / अन्यार्थ इत्येव- सहदेवः कुरुः / / 144 // अदृश्या-ऽधिके / 3 / 2 / 145 // अदृश्यम्- परोक्षम्, अधिकम्- अधिरूढं तदर्थयोरुत्तरपदयोर्बहुव्रीही 'सहस्य सः' स्यात् / साग्निः कपोतः, सद्रोणा खारी / / 145 / / अकालेऽव्ययीभावे / 3 / 2 / 146 // अकालवाचिन्युत्तरपदे ‘सहस्याव्ययीभावे सः' स्यात् / सब्रह्म साधूनाम् / अकाल इति किम् ? सहपूर्वाह्न शेते / अव्ययीभाव इति किम् ? सहयुध्वा / ग्रन्थाऽन्ते / 3 / 2 / 147 // एतद्वाच्युत्तरपदे ‘सहस्याव्ययीभाव सः' स्यात् / सकलं ज्योतिषमधीते // * नाऽऽशिष्यगो-वत्स-हले / 3 / 2 / 148 // गवादिवर्ग उत्तरपदे आशिषि गम्यायाम् ‘सहस्य सो न' स्यात् / स्वस्ति गुरवे सहशिष्याय / आशिषीति किम् ? सपुत्रः / गवादिवर्जनं किम् ? स्वस्ति तुभ्यं सगवे, सहगवे; सवत्साय, सहवत्साय; सहलाय, सहहलाय // समानस्य धर्माऽऽदिषु / 3 / 2 / 149 // धर्मादावुत्तरपदे 'समानस्य सः' स्यात् / सधर्मा, सनामा // 149 // - सब्रह्मचारी / / 2 / 150 // अयं निपात्यते // 150 // दृक्-दृश-दृक्षे / 3 / 2 / 151 // एषूतरपदेषु “संमानस्य सः' स्यात् / सदृक्, सदृशः, सदृक्षः // 151 // अन्य-त्यदादेराः / 3 / 2 / 152 // 'अन्यस्य त्यदादेश्च दृगादावुत्तरपदे आः' स्यात् / अन्यादृक्, अन्यादृशः, Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 162 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // अन्यादृक्षः; त्यादृक्, त्यादृशः, त्यादृक्षः; अस्मादृक्, अस्मादृशः, अस्मादृक्षः॥ इदं-किमीत्-की / 3 / 2 / 153 // दृगादावुत्तरपदे ‘इदम्-किमी यथासङ्ख्यम् ईत्-कीरूपौ' स्याताम् / ईदृक्, ईदृशः, ईदृक्षः; कीदृक्, कीदृशः, कीदृक्षः // 153 // अनञः क्त्वो यप् / 3 / 2 / 154 // . नोऽन्यस्मादव्ययात् पूर्वपदात् परं यदुत्तरपदं तदवयवस्य ‘क्त्वो यप्' स्यात् / प्रकृत्य / अनज इति किम् ? अकृत्वा, परमकृत्वा / उत्तरपदस्येत्येव- अलं कृत्वा ||154 // - पृषोदरादयः / 3 / 21155 // 'एते साधवः स्युः' / पृषोदरः, बलाहकः // 155 / / वाऽवाऽप्योस्तनि-क्री धाग-नहोर्व-पी / 3 / 2 / 156 // 'अवस्योपसर्गस्य तनिक्रियोरपेश्च धाग-नहोपरयोर्यथासंख्यं व-पी वा' स्याताम् / वतंसः, अवतंसः; वक्रयः, अवक्रयः; पिहितम्, अपिहितम्; पिनद्धम्, अपिनद्धम् // 156 // इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितायां सिद्धहेमचन्द्राभिधानस्वोपज्ञशब्दानुशासन लघुवृत्ती तृतीयस्याध्यायस्य द्वितीयः पादः समाप्तः // 3 / 2 / / श्रीमद्-वल्लभराजस्य, प्रतापः कोऽपि दुःसहः / प्रसरन् वैरिभूपेषु दीर्घनीद्रामकल्पयत् // 10 // (तृतीयः पादः). (अथाऽऽख्यातप्रकरणम्) Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् / 163 वृद्धिरादौत् / 3 / 3 / 1 // 'आ आर् ऐ औ, एते प्रत्येकं वृद्धिः' स्युः / मार्टि, कार्यम्, नायकः, औपगवः // 1 // गुणोऽरेदोत् / 3 / 3 / 2 // 'अर् एत् ओत्, एते प्रत्येकं गुणः' स्युः / करोति, चेता, स्तोता // 2 // क्रियाऽर्थो धातुः / 3 / 3 // 3 // कृतिः क्रिया पूर्वापरीभूता, साऽर्थो यस्य स 'धातुः' स्यात् / भवति, अत्ति, गोपायति, जुगुप्सते, पापच्यते, पुत्रकाम्यति, मुण्डयति, जवनः // 3 // _ न प्रादिरप्रत्ययः // 3 // 34 // 'प्रादिर्धातोरवयवो न स्यात्, ततः पर एव धातुरित्यर्थः, न चेत् ततः परः प्रत्ययः' / अभ्यमनायत, प्रासादीयत् / प्रादिरिति किम् ? अमहापुत्रीयत् / अप्रत्यय इति किम् ? औत्सुकायत // 4 // अवौ दा-धौ दा // 3 // 3 // 5 // 'दाधारूपी धातू अविती दा' स्याताम् / दाम् - प्रणिदाता / देङ् - प्रणिदयते / डुदांग्क् - प्रणिददाति / दोंच - प्रणिद्यति / ट्धे - प्रणिधयति / डुधांग्क् - प्रणिदधाति / अवाविति किम् ? दांव - दातं बर्हिः / व् - अवदातं मुखम् // 5 // वर्तमाना- तिव् तस् अन्ति, सिव् थस् थ, मिव वस् मस्ः ते आते अन्ते, से आथे ध्वे, ए वहे महे / / 3 / 6 // इमानि वचनानि 'वर्तमानाः स्युः // 6 // सप्तमी- यात् याताम् युस, यास् यातम् यात, याम् - प्रत्ययः' इति किम्जोदा 33 प्रणिदाता / प्रणिधयति / Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 164 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // याव याम; ईत ईयाताम् ईरन्, ईथास् ईयाथाम् ईध्वम, ईय ईवहि ईमहि / 3 / 317 // इमानि वचनानि ‘सप्तमी' स्युः // 7 // .. पञ्चमी- तुव् ताम् अन्तु, हि तम् त, आनि आवव् आमवः ताम् आताम् अन्ताम्, स्व आथाम् ध्वम्, __ ऐव् आवहै आमहैन् / 3 / 38 // इमानि वचनानि 'पञ्चमी' स्युः // 8 // , ह्यस्तनी- दिव् ताम् अन, सिव् तम् त, अम्व् व म; त आताम् अन्त, थास् आथाम् ध्वम्, इ वहि महि 3 // 3 // 9 // इमानि वचनानि ‘ह्यस्तनी' स्युः // 9 // एताः शितः / 3 / 3 / 10 // ‘एताश्चतस्रः शितो ज्ञेयाः' / भवति, भवेत्, भवतु, अभवत् // 10 // अद्यतनी- दि ताम् अन, सि तम् त, अम्. व म; त आताम् अन्त, थास्, आथाम् ध्वम्, इ वहि महि // 3 // 3 // 11 // इमानि वचनानि ‘अद्यतनी' स्युः // 11 // परोक्षा- णव् अतुस् उस्, थव् अथुस् अ, णव व म; ए आते इरे, से आथे ध्वे, ए वहे महे / 313 // 12 // इमानि वचनानि 'परोक्षा' स्युः // 12 // आशी:-क्यात् क्यास्ताम् क्यासुस, क्यास् क्यास्तम् Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 165 क्यास्त, क्यासम् क्यास्व क्यास्म; सीष्ट सीयास्ताम् सीरन, सीष्ठास् सीयास्थाम् सीध्वम्, सीय सीवहि सीमहि / 3 / 3 / 13 // इमानि वचनानि 'आशीः' स्युः // 13 // श्वस्तनी - ता तारौ तारस्, तासि तास्थस् तास्थ, तास्मि तास्वस् तास्मस; ता तारौ तारस्, तासे तासाथे ताचे, ताहे तास्वहे तास्महे // 3 // 3 // 14 // इमानि वचनानि 'श्वस्तनी' स्युः // 14 // भविष्यन्ती - स्यति स्यतस् स्यन्ति, स्यसि स्यथस् स्यथ, स्यामि स्यावस् स्यामस; स्यते स्येते स्यन्ते, स्यसे स्येथे स्यध्वे, स्ये स्यावहे स्यामहे / 3 / 3 / 15 // इमानि वचनानि “भविष्यन्ती' स्युः // 15 // क्रियातिपत्तिः- स्यत् स्यताम् . स्यन, स्यस् स्यतम् .. स्यत, स्यम् स्याव स्याम; स्यत स्येताम् स्यन्त, स्यथास् स्येथाम् स्यध्वम्, स्ये स्यावहि स्यामहि / 3 / 3 / 16 // इमानि वचनानि 'क्रियातिपत्तिः' स्युः // 16 // त्रीणि त्रीण्यन्ययुष्मदस्मदि / 3 / 3 / 17 // 'सर्वासां विभक्तीनां त्रीणि त्रीणि वचनानि, अन्यस्मिन्नर्थे युष्मदर्थेऽस्मदर्थे च वाच्ये यथाक्रमं स्युः / स पचति, तौ पचतः, ते पचन्ति / पचते, पचेते, पचन्ते / त्वं पचसि, युवां पचथः, यूयं पचथ / पचसे, पचेथे, Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 166 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // पचध्वे / अहं पचामि, आवां पचावः, वयं पचामः / , पचे, पचावहे, पचामहे / एवं सर्वासु / द्वययोगे त्रययोगे च पराश्रयमेव वचनम् / स च त्वं च पचथः, स च त्वं च अहं च पचामः // 17 // एक-द्वि-बहुषु / 3 / 3 / 18 // 'अन्यादिषु यानि त्रीणि त्रीण्युक्तानि तान्येक-द्वि-बहुष्वर्थेषु स्युः' / स पचति, तौ पचतः, ते पचन्तीत्यादि / / 18 / / नवाऽऽद्यानि शतृ-क्वसू च परस्मैपदम् // 3 // 3 // 19 // 'सर्वविभक्तीनामाद्यानि नव नव वचनानि शतृ-क्वसू च परस्मैपदानि स्युः' / तिव्, तस्, अन्ति; सिव्, थस्, थ; मि, वस्, मस् / एवं सर्वासु // 19 // पराणि काना-ऽऽनशौ चाऽऽत्मनेपदम् / 3 / 3 / 20 // 'सर्वविभक्तीनां पराणि नव नव वचनानि कानानशी चाऽऽत्मनेपदानि स्युः' / ते, आते, अन्ते; से, आथे, ध्वे; ए, वहे, महे / एवं सर्वासु // 20 // तत् साप्याऽनाप्यात् कर्मभावे, कृत्य-क्तखलाश्च 3 // 3 // 21 // 'तद्- आत्मनेपदं कृत्य-क्त-खलाश्च प्रत्ययाः सकर्मकाद्धातोः कर्मणि, अकर्मकादविवक्षितकर्मकाच्च भावे स्युः' / क्रियते कटश्चैत्रेण / चक्राणः / क्रियमाणः / भूयते त्वया / भूयमानम् / क्रियते / मृदु पच्यते / कार्यः / कर्तव्यः / करणीयः / देयः / कृत्यः / कटस्त्वया / शयितव्यम् / शयनीयम् / शेयम् / कार्यम् / कर्तव्यम् / करणीयम् / देयम् / कृत्यम् / त्वया कृतः कटः / शयितम् / कृतं त्वया / सुकरः कटस्त्वया / सुशयम् / सुकरं त्वया / सुकटंकराणि वीरणानि / ईषदाढ्यम्भवं भवता / सुज्ञानं तत्त्वं मुनिना / सुग्लानं दीनेन / मास आस्यते / मासमास्यते // 21 // कलयमाणः / भूयतकाच भावे स्युः प्रत्ययाः सकर्मका Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 167 इङितः कर्तरि / 3 / 3 / 22 // 'इदितो ङितश्च धातोः कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / एधते, एधमानः, शेते, शयानः // 22 // क्रियाव्यतिहारेऽगति-हिंसा-शब्दार्थ-हसो हृ-वहश्चा _ ऽनन्योऽन्यार्थे / 3 / 3 / 23 // अन्यचिकीर्षितायाः क्रियाया अन्येन हरणं करणम्-क्रियाव्यतिहारः, तदर्थाद् गति-हिंसा-शब्दार्थहस्वर्जाद् धातोर्ह-वहिभ्यां च ‘कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात्, न त्वन्योऽन्येतरेतर-परस्परशब्दयोगे / व्यतिलुनते, व्यतिहरन्ते, व्यतिवहन्ते भारम् / क्रियेति किम् ? द्रव्यव्यतिहारे मा भूत् - चैत्रस्य धान्यं व्यतिलुनन्ति / गत्यर्थादिवर्जनं किम् ? व्यतिसर्पन्ति, व्यतिहिंसन्ति, व्यतिजल्पन्ति, व्यतिहसन्ति / अनन्योऽन्यार्थ इति किम् ? परस्परस्य व्य- तिलुनन्ति / कर्तरीत्येव - तेन भावकर्मणोः पूर्वेणैव गत्यर्थादिभ्योऽपि स्यात् - व्यतिगम्यन्ते ग्रामाः // 23 // निविशः / 3 / 3 / 24 // नेर्विशः 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / निविशते // 24 // . उपसर्गादस्योहो वा / 3 / 3 / 25 // उपसर्गात् पराभ्यामस्यत्यूहिभ्याम् 'कर्तर्यात्मनेपदं वा' स्यात् / विपर्यस्यते, विपर्यस्यति; समूहते, समूहति // 25 // उत्-स्वराद् युजेरयज्ञतत्पात्रे / 3 / 3 / 26 // उदः स्वरान्ताच्चोपसर्गात् पराद् युनक्तेः ‘कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात्, न चेद् यज्ञे यत्तत्पात्रं तद्विषयो युज्यर्थः स्यात् / उद्युङ्क्ते, उपयुङ्क्ते / उत्स्वरादिति किम् ? संयुनक्ति / अयज्ञतत्पात्र इति किम् ? द्वन्द्वं यज्ञपात्राणि प्रयुनक्ति // Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 168 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // - परि-व्यवात क्रियः / 3 / 3 // 27 // एभ्य उपसर्गेभ्यः परात् क्रीणातेः 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / परिक्रीणीते, विक्रीणीते, अवक्रीणीते / उपसर्गादित्येव- उपरिक्रीणाति // 27 // परा-वेर्जेः / 3 / 3 / 28 // आभ्यां पराज्जयतेः 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / पराजयते, विजयते / उपसर्गाभ्यामित्येव- बहुवि जयति वनम् // 28 // समः क्ष्णोः / 3 / 3 / 29 // समः परात् क्ष्णौतेः 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / संक्ष्णुते शस्त्रम् / सम इति किम् ? क्ष्णौति / उपसर्गादित्येव- आयसं क्ष्णौति // 29 // अपस्किरः / 3 / 3 // 30 // अपात् किरतेः सस्सट्कात् 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / अपस्किरते वृषभो हृष्टः / सस्सट्कनिर्देशः किम् ? अपकिरति / अपेति किम् ? उपस्किरति // 30 // उदश्चरः साप्यात् / 3 // 3 // 31 // उत्पूर्वाच्चरेः सकर्मकात् - 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / मार्गमुच्चरते / साप्यादिति किम् ? धूम उच्चरति // 31 // समस्तृतीयया // 3 // 3 // 32 // सम्पूर्वाञ्चरेस्तृतीयान्तेन योगे ‘कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / अश्वेन सञ्चरते / तृतीययेति किम् ? उभौ लोकौ सञ्चरसि // 32 // क्रीडोऽकूजने // 3 // 3 // 33 // कूजनम्- अव्यक्तः शब्दः, ततोऽन्यार्थात् संपूर्वात् क्रीडतेः 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / संक्रीडते / सम इत्येव- क्रीडति / अकूजन इति किम् ? संक्रीडन्त्यनांसि // 33 // Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 169 अन्वाडू-परेः / 3 / 3 // 34 // एभ्यः परात् क्रीडतेः 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / अनुक्रीडते, आक्रीडते, परिक्रीडते // 34 // शप उपलम्भने / 3 / 3 // 35 // उपलम्भनम्- प्रकाशनं शपथो वा, तदर्थाच्छपतेः 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / मैत्राय शपते / उपलम्भन इति किम् ? मैत्रं शपति // 35 // आशिषि नाथः / 3 // 3 // 36 // आशीरथदिव नाथेः 'कर्त्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / सर्पिषो नाथते / आशिषीति किम् ? मधु नाथति // 36 // भुनजोऽत्राणे / 3 / 3 / 37 // पालनादन्यार्थाद् भुनक्तेः ‘कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / ओदनं भुङ्क्ते / भुनज इति किम् ? ओष्ठौ नि जति / अत्राण इति किम् ? पृथ्वी भुनक्ति // 37 // . हगो गतताच्छील्ये / 3 / 3 / 38 // गतम्- सादृश्यम्, हृगो गतताच्छील्यार्थात् 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / पैतृकमश्वा अनुहरन्ते, पितुरनुहरन्ते / गत इति किम् ? पितुर्हरति चोरयतीत्यर्थः / ताच्छील्य इति किम् ? नटो राममनुहरति // 38 // पूजाऽऽचार्यक-भृत्युत्क्षेप-ज्ञान-विगणन-व्यये नियः 3 // 3 // 39 // पूजादिषु गम्येषु नियः ‘कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / नयते विद्वान् स्याद्वादे, माणवकमुपनयते, कर्मकरानुपनयते, शिशुमुदानयते, नयते तत्त्वार्थे, मद्राः कारं विनयन्ते, शतं विनयते / एष्विति किम् ? अजां नयति ग्रामम् // Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 170 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // कर्तृस्थामूर्ताऽऽप्यात् / 3 / 3 / 40 // कर्तृस्थममूर्तं कर्म यस्य तस्मानियः ‘कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / श्रमं विनयते / कर्तृस्थेति किम् ? चैत्रो मैत्रस्य मन्युं विनयति / अमूर्तेति किम् ? गईं विनयति / आप्येति किम् ? बुद्ध्या विनयति // 40 // शदेः शिति // 3 // 3 // 41 // . शिद्विषयात् शदेः 'कर्त्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / शीयते / शितीति किम् ? शत्स्यति // 41 // म्रियतेरद्यतन्याशिषि च / 3 / 3 / 42 // अतोऽद्यतन्याशीविषयाच्छिद्विषयाच 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / अमृत; मृषीष्ट, म्रियते / अद्यतन्याशिषि चेति किम् ? ममार // 42 // क्यषो नवा / 3 / 3 / 43 // क्यक्षन्तात् 'कर्तर्यात्मनेपदं वा' स्यात् / निद्रायति, निद्रायते // 43 // युद्भ्योऽद्यतन्याम् // 3 // 3 // 44 // धुतादिभ्योऽद्यतनीविषये 'कर्तर्यात्मनेपदं वा' स्यात् / व्यधुतत्, व्यद्योतिट; अरुचत्, अरोचिष्ट / अद्यतन्यामिति किम् ? द्योतते // 44 // वृद्भ्यः स्य-सनोः / 3 / 3 / 45 // वृदादेः पञ्चतः स्या-ऽऽदौ प्रत्यये सनि च विषये 'कर्तर्यात्मनेपदं वा' स्यात् / वर्त्यति, वर्तिष्यते; विवृत्सति, विवर्तिषते / स्य-सनोरिति किम् ? वर्तते // 45 // कृपः श्वस्तन्याम् // 3 // 3 // 46 // कृपेः श्वस्तनीविषये 'कर्तर्यात्मनेपदं वा' स्यात् / कल्पतासि, कल्पितासे // 46 // Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 171 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् क्रमोऽनुपसर्गात् / 3 // 3 // 47 // अविद्यमानोपसर्गात् क्रमतेः 'कर्त्तर्यात्मनेपदं वा' स्यात् / क्रमते, कामति / अनुपसर्गादिति किम् ? अनुक्रामति // 47 // वृत्ति-सर्ग-तायने / 3 / 3 / 48 // वृत्तिः-अप्रतिबन्धः, सर्गः- उत्साहः, तायनम्- स्फीतता, एतद्वृत्तेः क्रमेः 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / शास्त्रेऽस्य क्रमते बुद्धिः, सूत्राय क्रमते, क्रमन्तेऽस्मिन् योगाः // 48 // परोपात् / 3 / 3 / 49 // आभ्यामेव परात् क्रमेवृत्त्याद्यर्थात् 'कर्त्तर्यात्मनेपदम् ' स्यात् / पराक्रमते, उपक्रमते / परोपादिति किम् ? अनुक्रामति / वृत्त्यादावित्येव - पराक्रामति // 49 // वेः स्वार्थे / 3 / 3 / 50 // स्वार्थः- पादविक्षेपः, तदर्थाद् विपूर्वात् क्रमेः 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / साधु .विक्रमते गजः / स्वार्थ इति किम् ? गजेन विक्रामति // 50 // प्रोपादारम्भे / 3 / 3 / 51 // आरम्भार्थात् प्रोपाभ्यां परात् क्रमेः 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / प्रक्रमते, उपक्रमते भोक्तुम् / आरम्भ इति किम् ? प्रक्रामति यातीत्यर्थः / / 51 // आङो ज्योतिरुद्गमे / 3 / 3 / 52 // आङः परात् क्रमेश्चन्द्राद्युद्गमार्थात् ‘कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / आक्रमते चन्द्रः सूर्यो वा / ज्योतिरुद्गम इति किम् ? आक्रामति बटुः कुतुपम्, धूम आक्रामति // 52 // दागोऽस्वाऽऽस्यप्रसार-विकासे / 3 / 3 // 53 // Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 172 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // स्वाऽऽस्यप्रसार - विकासाभ्यामन्यार्थाद् आपूर्वाद् दागः ‘कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / विद्यामादत्ते / स्वास्यादिवर्जनं किम् ? उष्ट्रो मुखं व्याददाति, कूलं व्याददाति // 53 // नु-प्रच्छः / 3 / 3 / 54 // .. आयूर्वान्नौतेः प्रच्छेश्च 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / आनुते शृगालः, आपृच्छते गुरुन् // 54 // गमेः क्षान्तौ / 3 / 3 / 55 // कालहरणार्थाद् गमयतेरापर्वात् 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / आगमयते गुरुम् - कञ्चित् कालं प्रतीक्षते / क्षान्ताविति किम् ? विद्यामागमयति // 55 // ह्वः स्पढें // 3 // 356 // आयूर्वाद् ह्वयतेः स्प? गम्ये 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / मल्लो मल्लमाह्वयते / स्पर्द्ध इति किम् ? गामाह्वयति // 56 / / सं-नि-वेः / 3 / 3 / 57 // एभ्यो ह्वयतेः 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / संह्वयते, निह्वयते, विह्वयते // 57 // उपात् / 3 / 3 / 58 // उपाद् ह्वयतेः 'कर्त्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / उपह्वयते // 58 // यमः स्वीकारे / 3 / 3 / 59 // उपाद् यमेः स्वीकारार्थात् 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / कन्यामुपयच्छते, उपायंस्त महास्त्राणि / विनिर्देशः किम् ? शाटकानुपयच्छति // 59 // देवाऽर्चा-मैत्री-सङ्गम-पथिकर्तृक-मन्त्रकरणे स्थः / 3 / 3 / 60 // एतदर्थाद् उपपूर्वात् तिष्ठतेः 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / देवार्चा -जिनेन्द्रमुपतिष्ठते / मैत्री - रथिकानुपतिष्ठते / सङ्गमः - यमुना गङ्गामुपतिष्ठते / Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 173 पन्थाः कर्ता यस्य तत्र - मुनमुपतिष्ठते पन्थाः / मन्त्रः करणं यस्य - ऐन्द्रा गार्हपत्यमुपतिष्ठते // 30 // वा लिप्सायाम् / 3 / 3 / 61 // उपात् स्थो लिप्सायां गम्यमानायाम् ‘कर्तर्यात्मनेपदं वा' स्याद् / भिक्षुतृकुलमुपतिष्ठते, उपतिष्ठति वा // 61 // उदोऽनूव॑हे / 3 / 3 / 62 // अनू; या चेष्टा तदर्थाद् उत्पूर्वात् स्थः ‘कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / मुक्तावुत्तिष्ठते / अनूति किम् ? आसनादुत्तिष्ठति / ईहेति किम् ? ग्रामाच्छतमुत्तिष्ठति // 62 // .. सं-वि-प्रा-ऽवात् / 3 / 3 / 63 // एभ्यः परात् स्थः ‘कर्त्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / संतिष्ठते, वितिष्ठते, प्रतिष्ठते, अवतिष्ठते // 63 // ज्ञीप्सा-स्थेये / 3 / 3 / 64 // ज्ञीप्सा-आत्मप्रकाशनम्, स्थेयः-सभ्यः, जीप्सायां स्थेयविषयार्थे च वर्तमानात् स्थः 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / तिष्ठते कन्या च्छात्रेभ्यः, त्वयि तिष्ठते विवादः // 64 // प्रतिज्ञायाम् // 3 // 3 // 65 // अभ्युपगमार्थात् स्थः ‘कर्त्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / नित्यं शब्दमातिष्ठते // 65 // समो गिरः / 3 / 3 / 66 // संपूर्वाद् गिरः प्रतिज्ञार्थात् 'कर्त्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / स्याद्वादं सङ्गिरते // 66 // अवात् / 3 / 3 / 67 // अवाद् गिरः ‘कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / अवगिरते // 67 // Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 174 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // निह्नवे ज्ञः // 3 // 3 // 6 // निह्नवः- अपलापः, तवृत्तेजः ‘कर्त्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / शतमपजानीते // सं-प्रतेरस्मृतौ / 3 / 3 / 69 // स्मृतेरन्यार्थात् संप्रतिभ्यां पराज्ज्ञः ‘कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / शतं संजानीते, शतं प्रतिजानीते / अस्मृताविति किम् ? मातुः संजानाति // 69 // ___ अननोः सनः / 3 / 3 / 70 // सन्नन्ताज्ज्ञः ‘कर्तर्यात्मनेपदम् स्यात्, न त्वनोः परात् / धर्मं जिज्ञासते / अननोरिति किम् ? धर्ममनुजिज्ञासति // 7 // . श्रुवोऽनाङ्-प्रतेः / 3 / 3 / 71 // सन्नन्ताच्छृणोतेः 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात्, न त्वाप्रतिभ्यां परात् / शुश्रूषते गुरून् / अनामतेरिति किम् ? आशुश्रूषति प्रतिशुश्रूषति // 71 // स्मृ-दृशः / 3 / 3 / 72 // आभ्यां सन्नन्ताभ्याम् ‘कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / सुस्मूर्षते, दिदृक्षते // 72 // शको जिज्ञासायाम् // 3 / 3 / 73 // शको ज्ञानानुसंहितार्थात् सन्नन्तात् 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / विद्याः शिक्षते / जिज्ञासायामिति किम् ? शिक्षति // 73 // प्राग्वत् / 3 / 3 / 74 // सनः पूर्वो यो धातुस्तस्मादिव सन्नन्तात् 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / शिशयिषते, अश्वेन संचिचरिषते // 4 // आमः कृगः / 3 / 375 // आमः परादनुप्रयुक्तात् कृग आम एव प्राग् यो धातुस्तस्मादिव 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात्, भवति न भवति चेति विधिनिषेधावतिदिश्यते / ईहाञ्चक्रे Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 175 विभयाञ्चकार / कृग इति किम् ? ईक्षामास / / 75 / / गन्धना-ऽवक्षेप-सेवा-साहस-प्रतियत्न-प्रकथनोपयोगे / 3 / 376 // एतदर्थात् कृगः ‘कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / गन्धनम्- द्रोहेण परदोषोद्घाटनम्, उत्कुरुते / अवक्षेपः- कुत्सनम्, दुर्वृत्तानवकुरुते / सेवा - महामात्रानुपकुरुते / साहसम्- अविमृश्य प्रवृत्तिः, परदारान् प्रकुरुते / प्रतियलः- गुणान्तराऽऽधानम्, एधोदकस्योपस्कुरुते / प्रकथनम्- जनवादान् प्रकुरुते / उपयोगः- धर्मादौ विनियोगः, शतं प्रकुरुते // 76 / / अधेः प्रसहने / 3 / 3 / 77 // अधेः परात् कृगः प्रसहनार्थात् 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / प्रसहनम्पराभिभवः परेणापराजयो वा, तं हाऽधिचक्रे / प्रसहन इति किम् ? तमधिकरोति // 77 // दीप्ति-ज्ञान-यत्न-विमत्युपसंभाषोपमन्त्रणे वदः / 3 / 3 / 78 // एष्वर्थेषु गम्येषु वदः 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / दीप्तिः- भासनम्, वदते विद्वान् स्याद्वादे / ज्ञाने - वदते. धीमांस्तत्त्वार्थे / यले - तपसि वदते / नानामतिर्विमतिः- धर्मे विवदन्ते / उपसंभाषा- उपसान्त्वनम्, कर्मकरानुपवदते / उपमन्त्रणम्- रहस्युपच्छन्दनम्, कुलभार्यामुपवदते // 78 // व्यक्तवाचां सहोक्तौ / 3 / 379 // व्यक्तवाचो रूढ्या मनुष्यादयस्तेषां संभूयोचारणार्थाद् वदः ‘कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / संप्रवदन्ते ग्राम्याः / व्यक्तवाचामिति किम् ? संप्रवदन्ति शुकाः / सहोक्ताविति किम् ? चैत्रेणोक्ते मैत्रो वदति // 79 // _ विवादे वा / 3 / 3 / 80 // विरुद्धार्थो वादो विवादः, व्यक्तवाचां विवादरूपसहोक्त्यर्थाद् वदः ‘कर्त्तत्मिनेपदं वा' स्यात् / विप्रवदन्ते विप्रवदन्ति वा मौहूर्ताः / विवाद इति Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 176 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // किम् ? संप्रवदन्ते वैयाकरणाः / सहोक्तावित्येव- मौहूर्तो मौहूर्तेन क्रमाद् विप्रवदति // 8 // अनोः कर्मण्यसति / 3 / 3181 // व्यक्तवाचामर्थे वर्तमानादनुपूर्वाद् वदः कर्मण्यसति ‘कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / अनुवदते चैत्रो मैत्रस्य / कर्मण्यसतीति किम् ? उक्तमनुवदति / व्यक्तवाचामित्येव- अनुवदति वीणा // 8 // ज्ञः / 3 / 3 / 82 // जानातेः कर्मण्यसति ‘कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / सर्पिषो जानीते / कर्मण्यसतीत्येव- तैलं सर्पिषो जानाति // 82 // उपात् स्थः / 3 / 3 / 83 // अतः कर्मण्यसति 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / योगे योग उपतिष्ठते / कर्मण्यसतीत्येव- राजानमुपतिष्ठति // 83 // समो गमृच्छि-प्रच्छि-श्रु-वित्-स्वरत्यर्ति-दृशः / 3 / 3 / 84 // संपूर्वेभ्य एभ्यः कर्मण्यसति ‘कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / सङ्गच्छते, समृच्छिष्यते, संपृच्छते, संशृणुते, संवित्ते, संस्वरते, समृच्छते, समियते, संपश्यते / कर्मण्यसतीत्येव- सङ्गच्छति मैत्रम् // 84 // वेः कृगः शब्दे चाऽनाशे / 3 / 3 / 85 // अनाशार्थाद् विपूर्वात् कृगः कर्मण्यसति, शब्दे च कर्मणि 'कर्तर्यात्मनेपदम् स्यात् / विकुर्वते सैन्धवाः, क्रोष्टा विकुरुते स्वरान् / शब्दे चेति किम् ? विकरोति मृदम् / अनाश इति किम् ? विकरोत्यध्यायम् // 85 // ___ आङो यम-हनः, स्वेऽङ्गे च 13 // 3 // 86 // आङः पराभ्यां यम्-हन्भ्यां कर्मण्यसति, कर्तुः स्वङ्गे च कर्मणि 'कर्तर्या Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 177 त्मनेपदम्' स्यात् / आयच्छते, आहते वा / स्वेऽङ्गे - आयच्छते, आहते वा पादम् / स्वेङ्गे चेति किम् ? आयच्छति रज्जुम् // 86 // व्युदस्तपः / 3 / 3 / 87 // आभ्यां परात् तपेः कर्मण्यसति, स्वेऽङ्गे च कर्मणि 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / वितपते उत्तपते रविः, वितपते उत्तपते पाणिम् // 87 / / अणिकर्मणिकर्तृकाण्णिगोऽस्मृतौ / 3 / 3 / 88 // अणिगवस्थायां यत्कर्म तदेव णिगवस्थायां कर्ता यस्य तस्माद् णिगन्तादस्मृत्यर्थात् 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / आरोहयते हस्ती हस्तिपकान् / अणिगिति किम् ? आरोहयति हस्तिपकान् महामात्रः, आरोहयन्ति महामात्रेण हस्तिपकाः / गित् किम् ? गणयते गणो गोपालकम् / कमति किम् ? दर्शयति प्रदीपो भृत्यान् / णिगिति किम् ? लुनाति केदारं चैत्रः, लूयते केदारः स्वयमेव, तं प्रयुङ्क्ते लावयति केदारं चैत्रः / कर्तेति किम् ? आरोहन्ति हस्तिनं हस्तिपकाः, तानेनमारोहयति महामात्रः / णिग इति किम् ? आरोहन्ति हस्तिनं हस्तिपकाः, तानारोहयते हस्तीत्यणिगि मा भूत् / अस्मृताविति किम् ? स्मरयति वनगुल्मः कोकिलम् // 8 // ... प्रलम्भे गृधि-वञ्चेः / 3 / 3 / 89 // आभ्यां णिगन्ताभ्यां वञ्चनाभ्याम् ‘कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / बटुं गर्द्धयते वञ्चयते वा / प्रलम्भ इति किम् ? श्वानं गर्द्धयति // 89 // . लीड्-लिनोऽर्चा-ऽभिभवे चाऽऽच्चाऽकर्त्तर्यपि // 3 // 3 // 10 // आभ्यां णिगन्ताभ्यामर्चा-ऽभिभव-प्रलम्भार्थाभ्याम् 'कर्तर्यात्मनेपदं स्याद्, आचानयोरकर्तर्यपि' / अर्चा - जटाभिरालापयते / अभिभवः - श्येनो वर्तिकामपलापयते / प्रलम्भः - कस्त्वामुल्लापयते ? / अकर्तर्यपीति किम् ? Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 178 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // जटाभिरालाप्यते जटिलेन // 90 // स्मिङः प्रयोक्तुः स्वार्थे / 3 / 3 / 91 // प्रयोक्तृतो यः स्वार्थः स्मयस्तदर्थात् णिगन्तात् स्मिङः ‘कर्तर्यात्मनेपदं स्याद् आचास्याऽकर्तर्यपि' / जटिलो विस्मापयते / प्रयोक्तुः स्वार्थ इति किम् ? रूपेण विस्माययति / अकर्तर्यपीत्येव- विस्मापनम् // 91 / / बिभेतेीष् च / 3 / 3 / 92 // प्रयोक्तृतः स्वार्थवृत्तेय॑न्ताद् भियः 'कर्तर्यात्मनेपदं स्याद्, अस्य च भीष्, पक्षे आचाऽकर्तर्यपि' / मुण्डो भीषयते, भापयते वा / प्रयोक्तुः स्वार्थ इत्येव कुञ्चिकया भाययति / अकर्तर्यपीत्येव- भीषा, भापनम् // 12 // मिथ्याकृगोऽभ्यासे / 3 / 3 / 93 // मिथ्यायुक्तात् कृगो ण्यन्तात् क्रियाभ्यासवृत्त्यर्थात् 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / पदं मिथ्या कारयते / मिथ्येति किम् ? पदं साधु कारयति / अभ्यास इति किम् ? सकृत् पदं मिथ्या कारयति // 13 // परिमुहा-ऽऽयमा-ऽऽयस-पा-ट्धे-वद-वस-दमा-ऽद-रुच नृतः फलवति / 3 / 3 / 94 // प्रधानफलवति कर्तरि एभ्यो विवक्षितेभ्यो णिगन्तेभ्यः ‘आत्मनेपदम्' स्यात् / परिमोहयते चैत्रम्, आयामयते सर्पम्, आयासयते मैत्रम्, पाययते बटुम्, धापयते शिशुम्, वादयते बटुम्, वासयते पान्थम्, दमयते अश्वम्, आदयते चैत्रेण, रोचयते मैत्रम्, नर्तयते नटम् // 14 // ई-गितः / 3 / 3 / 95 // ईदितो गितश्च धातोः ‘फलवति कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / यजते, कुरुते / फलवतीत्येव- यजन्ति, कुर्वन्ति // 95 // Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 179 ज्ञोऽनुपसर्गात् / 3 / 3 / 96 // अतः ‘फलवति- कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / गां जानीते / फलवतीत्येव- परस्य गां जानाति // 16 // वदोऽपात् / 3 / 3 / 97 // अतः ‘फलवति कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / एकान्तमपवदते / फलवतीत्येवअपवदति परं स्वभावात् // 97 // समुदाङो यमेरग्रन्थे / 3 / 3 / 98 // एभ्यः पराद् यमेरग्रन्थविषये ‘फलवत्कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / संयच्छते व्रीहीन्, उद्यच्छते भारम्, आयच्छते भारम् / अग्रन्थ इति किम् ? चिकित्सामुद्यच्छति / फलवतीत्येव- संयच्छति // 98 // . पदान्तरगम्ये वा / 3 / 3 / 99 // 'प्रक्रान्तसूत्रपञ्चके यदात्मनेपदमुक्तं तत् पदान्तरगम्ये फलवत्कर्तरि वा' स्यात् / स्वं शत्रु परिमोहयते परिमोहयंति वा / स्वं यज्ञं यजते यजति वा / स्वां गां जानीते जानाति वा / स्वं शत्रुमपवदते अपवदति वा / स्वान् व्रीहीन् संयच्छते संयच्छति वा // 99 // . शेषात् परस्मै / 3 / 3 / 100 // 'येभ्यो धातुभ्यो येन विशेषेणाऽऽत्मनेपदमुक्तं ततोऽन्यस्मात् कर्तरि परस्मैपदम्' स्यात् / भवति, अत्ति // 100 // - परानोः कृगः / 3 / 3 / 101 // परानुपूर्वात् कृगः ‘कर्तरि परस्मैपदम्' स्यात् / पराकरोति, अनुकरोति // प्रत्यभ्यतेः क्षिपः / 3 / 3 / 102 // एभ्यः परात् क्षिपः ‘कर्तरि परस्मैपदम्' स्यात् / प्रतिक्षिपति, अभिक्षि Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 180 श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // पति, अतिक्षिपति / / 102 // प्राद् वहः / 3 / 3 / 103 // अतः ‘कर्तरि परस्मैपदम्' स्यात् / प्रवहति // 103 / / परेम॒षश्च / 3 / 3 / 104 // परेः परान्मृषेर्वहेश्च ‘कर्तरि परस्मैपदम्' स्यात् / परिमृष्यति, परिवहति // व्याङ्-परे रमः / 3 / 3 / 105 // एभ्यः पराद् रमेः 'कर्तरि परस्मैपदम्' स्यात् / विरमति, आरमति, परिरमति // 105 // . वोपात् / 3 / 3 / 106 // उपाद् रमेः 'कर्तरि परस्मैपदं वा' स्यात् / भार्यामुपरमति, उपरमते या // अणिगि प्राणिकर्तृकानाप्याण्णिगः / 3 / 3 / 107 // अणिगवस्थायां यः प्राणिकर्तृकोऽकर्मकश्च धातुस्तस्मात् णिगन्तात् 'कर्तरि परस्मैपदम्' स्यात् / आसयति चैत्रम् / अणिगीति किम् ? स्वयमेवारोहयमाणं गजं प्रयुले आरोहयते / अणिगिति गकारः किम् ? चेतयमानं प्रयुङ्क्ते-चेतयति / प्राणिकर्तृकादिति किम् ? शोषयते व्रीहीन् आतपः / अनाप्यादिति किम् ? कटं कारयते // 107 // चल्याहारार्थेङ्-बुध-युध-गु-द्रु-सु-नश-जनः / 3 / 3 / 108 // चल्या -ऽऽहारार्थेभ्य इडादिभ्यश्च णिगन्तेभ्यः ‘कर्तरि परस्मैपदम्' स्यात् / चलयति, कम्पयति; भोजयति, आशयति चैत्रमन्नम्। सूत्रमध्यापयति शिष्यम्, बोधयति पद्मं रविः, योधयति काष्ठानि, प्रावयति राज्यम्, द्रावयत्ययः, नावयति तैलम्, नाशयति पापम्, जनयति पुण्यम् // 108 // इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितायां सिद्धहेमचन्द्राभिधानस्वोपज्ञशब्दानुशासन Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 181 - श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् लघुवृत्तौ तृतीयस्याध्यायस्य तृतीयः पादः समाप्तः // 33 // श्रीदुर्लभेशद्युमणेः पादास्तुष्टुविरे न कैः ? / लुलद्भिर्मेदिनीषालैर्वालिखिल्यैरिवाग्रतः // 11 // . (चतुर्थः पादः) गुपौ-धूप-विच्छि-पणि-पनेरायः / 3 / 4 / 1 // एभ्यो धातुभ्यः स्वार्थे 'आयः' स्यात् / गोपायति, धूपायति, विच्छायति, पणायति, पनायति // 1 // कमेर्णिङ् // 3 // 4 // 2 // कमेः स्वार्थे 'णिङ्' स्यात् / कामयते // 2 // ऋतेर्डीयः / 3 / 4 / 3 // ऋतेः स्वार्थे 'डीयः' स्यात् / ऋतीयते // 3 // ___अशवि ते वा // 3 // 4 // 4 // 'गुपादिभ्योऽशविषये ते- आयादयो वा' स्युः / गोपायिता, गोप्ता; कामयिता, कमिता; ऋतीयिता, अर्तिता // 4 // गुप्-तिजो गर्हा-क्षान्तौ सन् 13 // 4 // 5 // गुपो गर्दायां तिजः क्षान्तौ वर्तमानात् स्वार्थे ‘सन्' स्यात् / जुगुप्सते, तितिक्षते / गर्हाक्षान्ताविति किम् ? गोपनम्, तेजनम् // 5 // .. कितः संशय-प्रतीकारे / 3 / 46 // कितः संशय-प्रतीकारार्थात् स्वार्थे ‘सन्' स्यात् / विचिकित्सति मे मनः, व्याधि चिकित्सति / संशयप्रतीकारार्थ इति किम् ? केतयति // 6 // Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 182 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // शान्-दान्-मान्-बधानिशाना-ऽऽर्जव-विचार-वैरूप्ये दीर्घश्चेतः 3 // 47 // . एभ्यो यथासङ्ख्यं निशानाद्यर्थेभ्यः स्वार्थे 'सन् स्यात्, दीर्घश्चैषां द्वित्वे पूर्वस्येतः' / शीशांसति, दीदांसति, मीमांसते, बीभत्सते / अर्थोक्तिः किम् ? अर्थान्तरे मा भूत् - निशानम्, अवदानम्, मानयति, बाधयति // 7 // धातोः कण्ड्वादेर्यक् // 3 // 48 // .. एभ्यो धातुभ्यः स्वार्थे ‘यक् स्यात् / कण्डूयति, कण्डूयते, महीयते / धातोरिति किम् ? कण्डूः // 8 // ___व्यञ्जनादेरेकस्वराद् भृशाऽऽभीक्ष्ण्ये यङ् वा / 3 / 4 / 9 // गुणक्रियाणामधिश्रयणादीनां क्रियान्तराव्यवधानेन साकल्येन संपत्तिः फलातिरेको वा भृशत्वम्, प्रधानक्रियाया विक्केदादेः क्रियान्तराव्यवधानेनाऽऽवृत्तिराभीक्ष्ण्यम्, तद्विशिष्टार्थवृत्तेर्धातोर्व्यञ्जनादेरेकस्वराद् ‘यङ् वा' स्यात् / पापच्यते / व्यञ्जनादेरिति किम् ? भृशमीक्षते / एकस्वरादिति किम् ? भृशं चकास्ति / वेति किम् ? लुनीहि लुनीहीत्येवायं लुनातीत्यादि यथा स्यात् // 9 // ____ अट्यति-सूत्रि-मूत्रि-सूच्यशूर्णोः / 3 / 4 / 10 // एभ्यो भृशाऽऽभीक्ष्ण्यार्थवृत्तिभ्यो ‘यङ् स्यात् / अटाट्यते, अरार्यते, सोसूत्र्यते, मोमूत्र्यते, सोसूच्यते, अशाश्यते, प्रोर्णोनूयते // 10 // गत्यर्थात् कुटिले / 3 / 4 / 11 // व्यञ्जनादेरेकस्वराद् गत्यर्थात् कुटिले एवार्थे वर्तमानाद् धातो-र्यङ्' स्यात् / चक्रम्यते / कुटिल इति किम् ? भृशं क्रामति ! // 11 // गृ-लुप-सद-चर-जप-जभ-दश-दहो गर्यो / 3 / 4 / 12 // Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 183 'गर्थेिभ्य एव एभ्यो यंङ्' स्यात् / निजेगिल्यते, लोलुप्यते, सासद्यते, चञ्चूर्यते, जञप्यते, जञ्जभ्यते, दन्दश्यते, दन्दह्यते / गर्दा इति किम् ? साधु जपति, भृशं निगिरति // 12 // न गृणा-शुभ-रुचः / 3 / 4 / 13 // 'एभ्यो यङ् न' स्यात् / निन्द्यं गृणाति, भृशं शोभते, भृशं रोचते // 13 // __ . बहुलं लुप् / 3 / 4 / 14 // 'यङो लुप् बहुलम्' स्यात् / बोभूयते, बोभवीति / बहुलवचनात् क्वचिन्न भवति -लोलूया, पोपूया // 14 // अचि / 3 / 4 / 15 // 'योऽचि परे लुप्' स्यात् / चेच्यः, नेन्यः // 15 // नोतः / 3 / 4 / 16 // 'उदन्ताद् विहितस्य यङोऽचि परे लुब् न' स्यात् / रोख्यः // 16 // चुरादिभ्यो णिच् / 3 / 4 / 17 // एभ्यो धातुभ्यः 'स्वार्थे णिच्' स्यात् / चोरयति.। पदयते // 17 // युजादेर्नवा / 3 / 418 // एभ्यः ‘स्वार्थे णिच् वा' स्यात् / योजयति, योजति / साहयति, सहति // 18 // भूङः प्राप्तौ णिङ् / 3 / 4 / 19 // 'भुवः प्राप्त्यर्थाण्णिङ् वा' स्यात् / भावयते, भवते / प्राप्ताविति किम् ? भवति // 19 // ' प्रयोक्तव्यापारे णिग् / 3 / 4 / 20 // कुर्वन्तं. यः प्रयुङ्क्ते तद्व्यापारे वाच्ये 'धातोर्णिग् वा' स्यात् / कारयति, भिक्षा वासयति, राजानमागमयति, कंसं घातयति, पुष्येण चन्द्रं योजयति, उज्जयिन्याः Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 184 प्रस्थिती सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // प्रस्थितो माहिष्मत्यां सूर्यमुद्गमयति // 20 // .. . तुमर्हादिच्छायां सन्नतत्सनः / 3 / 4 / 21 // यो धातुरिषेः कर्म इषिणैव च समानकर्तृकः स तुमर्हः, तस्मादिच्छायामर्थे 'सन् वा' स्यात्, न विच्छासनन्तात् / चिकीर्षति, जिगमिषति / तुमर्हादिति किम् ? यानेनेच्छति, भुक्तिमिच्छति मैत्रस्य / इच्छायामिति किम् ? भोक्तुं याति / अतत्सन इति किम् ? चिकीर्षितुमिच्छति / तदिति किम् ? जुगुप्सिषते // 21 // . द्वितीयायाः काम्यः / 3 / 4 / 22 // द्वितीयान्तादिच्छायाम् ‘काम्यो वा' स्यात् / इदंकाम्यति / द्वितीयाया इति किम् ? इष्टः पुत्रः // 22 // . अमाव्ययात् क्यन् च / 3 / 4 / 23 // मान्ता-ऽव्ययाभ्यामन्यस्माद् द्वितीयान्तादिच्छायाम् 'क्यन् काम्यश्च वा' स्यात् / पुत्रीयति, पुत्रकाम्यति / अमाव्ययादिति किम् ? इदमिच्छति, स्वरिच्छति // 23 // आधाराचोपमानादाऽऽचारे / 3 / 4 / 24 // अमाव्ययादुपमानाद् द्वितीयान्तादाधाराचाऽऽचारार्थे 'क्यन् वा' स्यात् / पुत्रीयति छात्रम्, प्रासादीयति कुट्याम् // 24 // कर्तुः क्विप, गल्भ-कीब-होडात्तु ङित् / 3 / 4 / 25 // कर्तुरुपमानानाम्न आचारार्थे 'क्विप् वा स्यात्, गल्भ-क्कीब-होडेभ्यस्तु स एव ङित्' / अश्वति, गल्भते, क्लीबते, होडते // 25 // क्यङ् // 3 / 4 / 26 // कर्तुरुपमानादाचारेऽर्थे ‘क्यङ् वा' स्यात् / हंसायते // 26 // Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 185 सो वा लुक् च / 3 / 4 / 27 // सन्तात् कर्तरुपमानादाचारेऽर्थे 'क्यङ् वा स्यादन्तस्य च सो वा लुक्' / पयायते, पयस्यते // 27 // ओजोऽप्सरसः / 3 / 4 / 28 // आभ्यां कर्तुरुपमानाभ्यामाचारे 'क्यङ् वा स्यात्, सश्च लुक्' / ओजायते, अप्सरायते // 28 // व्यर्थे भृशादेः स्तोः / 3 / 4 / 29 // भृशादेः कर्तृश्च्व्य र्थे 'क्यङ् वा स्यात्, यथासम्भवं स्तोर्लुक् च' / भृशायते, उन्मनायते, वेहायते / कर्तुरित्येव- अभृशम्भृशं करोति / च्व्यर्थ इति किम् ? भृशो भवति // 29 // डाच्-लोहितादिभ्यः षित् // 3 // 4 // 30 // डाजन्तेभ्यो लोहितादिभ्यश्च कर्तृभ्यश्च्व्यर्थे 'क्यङ् षित्' स्यात् / पटपटायति, पटपटायते; लोहितायति, लोहितायते / कर्तुरित्येव- अपटपटा पटपटा करोति / व्यर्थ इत्येव-लोहितो भवति // 30 // कष्ट-कक्ष-कृच्छ्र-सत्र-गहनाय पापे क्रमणे / 3 / 4 // 31 // एभ्यश्चतुर्थ्यन्तेभ्यः पापवृत्तिभ्यः क्रमणेऽर्थे 'क्यङ् स्यात् / कष्टायते, कक्षायते, कृच्छ्रायते, सत्रायते, गहनायते / चतुर्थीति किम् ? रिपुः कष्टं कामति / पाप इति किम् ? कष्टाय तपसे क्रामति // 31 // रोमन्थाद् व्याप्यादुचर्वणे / 3 / 4 / 32 // अभ्यवहृतं द्रव्यम्=रोमन्थः, उद्गीर्य चर्वणम् उच्चर्वणम्, अस्मिन्नर्थे रोमन्थात् कर्मणः 'क्यङ् वा' स्यात् / रोमन्थायते गौः / उच्चर्वण इति किम् ? कीटो रोमन्यं वर्तयति // 32 // Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 186 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // फेनोष्म-बाष्प-धूमादुद्वमने // 3 // 4 // 33 // एभ्यः कर्मभ्य उद्वमनेऽर्थे 'क्यङ् वा' स्यात् / फेनायते, ऊष्मायते, बाष्पायते, धूमायते // 33 // सुखादेरनुभवे // 3 // 4 // 34 // साक्षात्कारेऽर्थे सुखादेः कर्मणः ‘क्यङ् वा' स्यात् / सुखायते, दुःखायते // 34 // शब्दादेः कृतौ वा // 3 // 4 // 35 // एभ्यः कर्मभ्यः कृतावर्थे 'क्यङ् वा' स्यात् / शब्दायते, वैरायते / पक्षे णिच्शब्दयति, वैरयति // 35 // तपसः क्यन् / 3 / 4136 // अस्मात् कर्मणः कृतावर्थे 'क्यन् वा' स्यात् / तपस्यति // 36 // नमो-वरिवश्चित्रकोऽर्चा-सेवाऽऽश्चर्ये / 3 / 4 / 37 // एभ्यः कर्मभ्यो यथासंख्यमर्चादिष्वर्थेषु ‘क्यन् वा' स्यात् / नमस्यति, वरिवस्यति, चित्रीयते // 37 // . अङ्गानिरसने गिङ् // 3 // 4 // 38 // अङ्गवाचिनः कर्मणो निरसनेऽर्थे 'णिङ् वा' स्यात् / हस्तयते, पादयते // पुच्छादुत्-परि-व्यसने / 3 / 4 / 39 // पुच्छात् कर्मण उदसने पर्यसने व्यसनेऽसने चार्थे 'णिङ् वा' स्यात् / उत्पुच्छयते, परिपुच्छयते, विपुच्छयते, पुच्छयते // 39 // भाण्डात् समाचितौ / 3 / 4 / 40 // . भाण्डात् कर्मणः समाचितावर्थे 'णिङ् वा' स्यात् / सम्भाण्डयते, परिभाण्डयते // 40 // चीवरात परिधाना-ऽर्जने / 3 / 441 // Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 187 अस्मात् कर्मणः परिधानेऽर्जने चार्थे 'णिङ् वा' स्यात् / परिचीवरयते, संचीवरयते, (चीवरयते) // 41 // णिज्बहुलं नाम्नः कृगादिषु / 3 / 4 / 42 // कृगादीनां धातूनामर्थे 'नाम्नो णिच् बहुलम्' स्यात् / मुण्डं करोति= मुण्डयति च्छात्रम्, पटुमाचष्टे-पटयति, वृक्षं रोपयति=वृक्षयति, कृतं गृह्णाति=कृतयति // 42 // व्रताद् भुजि-तनिवृत्त्योः / 3 / 4 / 43 // व्रतम् शास्त्रविहितो नियमः, व्रताद् भुज्यर्थात् तन्निवृत्त्यर्थाच्च कृगादिष्वर्थेषु 'णिज्बहुलम्' स्यात् / पयो व्रतयति, सावद्याऽनं व्रतयति // 43 // सत्या-ऽर्थ-वेदस्याः / 3 / 4 / 44 // 'एषां णिच्सन्नियोगे आः' स्यात् / सत्यापयति, अर्थापयति, वेदापयति // श्वेताश्वा-ऽश्वतर-गालोडिता-ऽऽह्वरकस्याऽश्व-तरेत-कलुक् 3 / 4 / 45 // 'एषां णिज्योगे यथासंख्यमश्वादेः शब्दस्य लुक्' स्यात् / श्वेतयति, अश्वयति, गालोडयति, आह्वरयति // 45 // ___ धातोरनेकस्वरादाम् परोक्षायाः, कृभ्वस्ति चानुतदन्तम् 3 / 4 / 46 // अनेकस्वराद्धातोः परस्याः ‘परोक्षायाः स्थाने आम् स्यात्, आमन्ताच्च परे कृम्वस्तयः परोक्षान्ता अनु - पश्चादनन्तरं प्रयुज्यन्ते' / चकासाञ्चकार, चकासाम्बभूव, चकासामासः / अनेकस्वरादिति किम् ? पपाच / अनुविपर्यासव्यवहितिनिवृत्त्यर्थः, तेन चकारचकासाम्, ईहांचैत्रश्चक्रे इत्यादि न स्यात् // 46 // . दया-ऽया-ऽऽस-कासः / 3 / 4 / 47 // Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 188 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // एभ्यो धातुभ्यः परस्याः 'परोक्षाया आम् स्यात्, आमन्ताच्च परे कृभ्वस्तयः परोक्षान्ता अनु प्रयुज्यन्ते' / दयाञ्चक्रे, दयाम्बभूव, दयामास; पलायाचक्रे, आसाञ्चक्रे, कासाञ्चक्रे // 47 // गुरुनाम्यादेरनृच्छूर्णोः / 3 / 4 / 48 // गुरु म्यादिर्यस्य तस्माद्धातोः, ऋच्छृणुवर्जात् परस्याः ‘परोक्षाया आम् स्यात्, आमन्ताच्च परे कृभ्वस्तयः परोक्षान्ता अनु प्रयुज्यन्ते' / ईहाञ्चक्रे, ईहाम्बभूव, ईहामास / गुर्विति किम् ? इयेष / नामीति किम् ? आनर्च / आदीति किम् ? निनाय / अनृच्छूोरिति किम् ? आनछु, प्रोणुनाव // 48 // जाग्रुष-समिन्धेर्नवा / 3 / 4 / 49 // एभ्यो धातुभ्यः परस्याः ‘परोक्षाया आम् वा स्यात्, आमन्ताच्च परे कृभ्वस्तयः परोक्षान्ता अनु प्रयुज्यन्ते' / जागराञ्चकार, जागराम्बभूव, जागरामास, जजागार; ओषाञ्चकार; उवोष; समिन्धाञ्चक्रे, समीथे // 49 // भी-ही-भृ-होस्तिव्वत् / 3 / 4 / 50 // एभ्यः परस्याः 'परोक्षाया आम् वा स्यात, स च तिव्वत, आमन्ताच्च पो कृभ्वस्तयः परोक्षान्ता अनु प्रयुज्यन्ते' / बिभयाञ्चकार, बिभयाम्बभूव, बिभयामास, बिभाय; जियाञ्चकार, जिहाय, बिभराञ्चकार, बभार; जुहवाञ्चकार, जुहाव // 50 // वेत्तेः कित् / 3 / 4 / 51 // वेत्तेः परस्याः ‘परोक्षाया आम् किद् वा स्यात्, आमन्ताच्च कृभ्वस्त परोक्षान्ता अनु प्रयुज्यन्ते' / विदाञ्चकार, विवेद // 51 // पञ्चम्याः कृग् / 3 / 452 // वेत्तेः परस्याः ‘पञ्चम्याः किदाम् वा स्यात्, आमन्ताच्च परः पञ्चम्यन्तः कृर प्रयुज्यते' / विदाङ्करोतु, वेत्तु // 52 // Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 189 सिजद्यतन्याम् / 3 / 4 // 53 // अद्यतन्यां परस्यां धातोः परः 'सिच् नित्यम्' स्यात् / अनैषीत् // 53 // स्पृश-मृश-कृष-तृप-दृपो वा / 3 / 4 / 54 // एभ्योऽद्यतन्याम् 'सिज् वा' स्यात् / अस्पाक्षीत्, अस्पार्षीत्, अस्पृक्षत्; अम्राक्षीत्, अमाीत्, अमृक्षत्; अक्राक्षीत्, अकार्षीत्, अकृक्षत्; अत्राप्सीत्, अतार्सीत्, अतृपत्; अद्राप्सीत्, अदासत्, अदृपत् // 54 // ह-शिटो नाम्युपान्त्याददृशोऽनिटः सक् / 3 / 4 / 55 // हशिडन्तानाम्युपान्त्याददृशोऽनिटोऽद्यतन्याम् ‘सक्' स्यात् / अधुक्षत्, अविक्षत् / ह-शिट इति किम् ? अभैत्सीत् / नाम्युपान्त्यादिति किम् ? अधाक्षीत् / अदृश इति किम् ? अद्राक्षीत् / अनिट इति किम् ? अकोषीत् // 55 // श्लिषः / 3 / 456 // श्लिषोऽनिटोऽद्यतन्याम् ‘सक्' स्यात् / आश्लिक्षत् कन्यां मैत्रः / अनिट इत्येव-अश्लेषीत् // 56 // नाऽसत्त्वाऽऽश्लेषे / 3 / 457 // श्लिषोऽप्राण्याश्लेषार्थात् ‘सक् न' स्यात् / उपाश्लिषत् जतु च काष्ठं च / असत्त्वाऽऽश्लेष इति किम् ? व्यत्यश्लिक्षन्त मिथुनानि // 57 // णि-श्रि-द्रु-सु-कमः कर्तरि ऊः / 3 / 458 // . ण्यन्तात् श्यादिभ्यश्च कर्तर्यद्यतन्याम् 'दु:' स्यात् / अचीकरत्, अशिश्रियत्, अदुद्रुवत्, असुनुवत्, अचकमत / कर्तरीति किम् ? अकारयिषातां कटी मैत्रेण // 5 // धे-श्वेर्वा / 3 / 459 // आभ्यां कर्तर्यद्यतन्याम् 'डो वा' स्यात् / अदधत्, अधात्; अशिश्वियत्, Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 190 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // अश्वत् / कर्तरीत्येव- अधिषातां गावौ वत्सेन // 59 // शास्त्यसू-वक्ति-ख्यातेरङ् // 3 // 4 // 60 // एभ्यः कर्तर्यवतन्याम् 'अङ्' स्यात् / अशिषत्, अपास्थत्, अवोचत्, आख्यत् / कर्तरीत्येव- अशासिषातां शिष्यौ गुरुणा // 60 // सर्त्यतैर्वा // 3 // 4 // 61 // आभ्यां कर्तर्यद्यतन्याम् 'अङ् वा' स्यात् / असरत्, असार्षीत्; आरत्, आर्षीत् // 61 // हा-लिप-सिचः / 3 / 4 / 62 // एभ्यः कर्तर्यद्यतन्याम् 'अङ्' स्यात् / आत्, अलिपत्, असिचत् // 62 // वाऽऽत्मने / 3 / 4 / 63 // ह्वादेः कर्तर्यधतन्यामात्मनेपदे 'वाऽङ्' स्यात् / आह्वत, आह्वास्त; अलिपत, अलिप्त; असिचत, असिक्त // 63 // . लदिद्-युतादि-पुष्यादेः परस्मै / 3 / 4 / 64 // लूदितो घुतादेः पुष्यादेश्च ‘कर्तर्यधतन्यां परस्मैपदेऽङ्' स्यात् / अगमत्; अधुतत्, अरुचत्; अपुषत्, औचत् / परस्मैपद इति किम् ? समगस्त // 64 // ऋदिश्वि-स्तम्भू-मचू-म्लुचू-pचू-ग्लुचू-ग्लुञ्चू जो वा 3 // 465 // ऋदितः श्व्यादेश्च 'कर्तर्यवतन्यां परस्मैपदेऽङ्वा' स्यात् / अरुधत्, अरौत्सीत्। अश्वत्, अश्वयीत्; अस्तभत्, अस्तम्भीत्; अनुचत्, अम्रोचीत्; अम्लुचत्, अम्लोचीत्; अग्रुचत्, अग्रोचीत्; अग्लुचत्, अग्लोचीत्; अग्लुचत्, अग्लुधीत्। अजरत्, अजारीत् // 65 // जिच ते पदस्तलुक् च / 3 / 466 // Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 191 पद्यतेः कर्तर्यघतन्यास्ते परे 'जिच् स्याद्, निमित्ततस्य च लुक्' / उदपादि / त इति किम् ? उदपत्साताम् // 66 // दीप-जन-बुधि-पूरि-ताय-प्यायो वा / 3 / 4 / 67 // एभ्यः कर्तर्यधतन्यास्ते परे 'जिच् वा स्यात्, तलुक् च' / अदीपि, अदीपिष्ट; अजनि, अजनिष्ट; अबोधि, अबुद्ध; अपूरि, अपूरिष्ट; अतायि, अतायिष्ट; अप्यायि, अप्यायिष्ट // 67 // - भाव-कर्मणोः / / 468 // सर्वस्माद् धातोर्भाव-कर्मविहितेऽधतन्यास्ते 'जिच् स्यात्, तलुक् च' / आसि त्वया, अकारि कटः // 6 // स्वर-ग्रह-दृश-हन्भ्यः स्य-सिजाशी:-श्वस्तन्यां जिट् वा 3 / 4 / 69 // स्वरान्ताद् ग्रहादेश्च विहितासु भावकर्मजासु स्य-सिजाशी:- श्वस्तनीषु 'जिट वा' स्यात् / दायिष्यते, दास्यते; अदायिषाताम्, अदिषाताम्; दायिषीष्ट, दासीट; दायिता, दाता / ग्राहिष्यते, ग्रहीष्यते; अग्राहिषाताम्, अग्रहीषाताम्; ग्राहिषीट; ग्रहीषीष्ट; ग्राहिता, ग्रहीता / दर्शिष्यते, द्रक्ष्यते; अदर्शिषाताम्, अवृक्षाताम्, दर्शिषीष्ट, दृक्षीष्ट; दर्शिता, द्रष्टा / घानिष्यते, हनिष्यते; अघानिषाताम्, अवधिषाताम्: घानिषीष्ट, वधिषीष्ट; घानिता, हन्ता // 19 // क्यः शिति / 31470 // .. 'सर्वस्माद् धातोर्भाव-कर्मविहिते शिति क्यः' स्यात् / शय्यते त्वया, क्रियते कटः / शितीति किम् ? बभूवे // 70 // कर्तर्यनद्भ्यः शव / 3 / 471 // अदादिवर्जाद् धातोः कर्तरि विहिते शिति 'शव' स्यात् / भवति / कर्तरीति Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 192 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // किम् ? पच्यते / अनभ्य इति किम् ? अत्ति / / 71 // दिवादेः श्यः / 3 / 472 // 'दिवादेः कर्तृविहिते शिति श्यः' स्यात् / दीव्यति, जीर्यति // 72 // भ्रास-भ्लास-भ्रम-क्रम-कम-त्रसि-त्रुटि-लषि-यसि संयसेर्वा 3473 // एभ्यः कर्तरि विहिते शिति :श्यो वा' स्यात् / भ्रास्यते, भासते; भ्लास्यते, भ्लासते; भ्राम्यति; भ्रमति; क्राम्यति, कामति; लाम्यति, कामति; त्रस्यति, वसति; त्रुट्यति, त्रुटति; लष्यति, लषति, यस्यति, यसति; संयस्यति, संयसति // 73 // कुषि-रञाप्ये वा परस्मै च / 3 / 474 // आभ्यां व्याप्ये कर्तरि शिद्विषये 'परस्मैपदं वा स्यात्, तद्योगे च श्यः' / कुष्यति कुष्यते वा पादः स्वयमेव; रज्यति रज्यते वा वस्त्रं स्वयमेव / व्याप्ये कर्तरीति किम् ? कुष्णाति पादं रोगः / शितीत्येव- अकोषि // 74 // स्वादेः श्नुः / 3 / 475 // स्वादेः कर्तृविहिते शिति 'श्नुः' स्यात् / सुनोति, सिनोति // 7 // वाऽक्षः / 3 / 476 // अक्षः कर्तृविहिते शिति 'श्नुर्वा' स्यात् / अक्ष्णोति, अक्षति // 76 // तक्षः स्वार्थे वा 3 / 477 // स्वार्थ:- तनुत्वम्, तद्वृत्तेस्तक्षः कर्तृविहिते शिति 'श्नुर्वा' स्यात् / तक्ष्णोति, तक्षति / स्वार्थ इति किम् ? संतक्षति शिष्यम् // 77 // स्तम्भू-स्तुम्भू-स्कम्भू-स्कुम्भू-स्कोः श्ना च 33478 // स्तम्म्वादेः सौत्राद् धातोः, स्कुगश्च कर्तृविहिते शिति "श्नाः श्नुश्च' स्यात् / Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 193 स्तम्नाति, स्तभ्नोति, स्तुभ्नाति, स्तुभ्नोति; स्कभ्नाति, स्कभ्नोति; स्कुभ्नाति, स्कुम्नोति; स्कुनाति, स्कुनोति // 78 / / ज़्यादेः / 3 / 479 // त्र्यादेः कर्तृविहिते शिति 'श्ना' स्यात् / क्रीणाति, प्रीणाति // 79 // व्यञ्जनाच्छ्नाहेरानः / 3 / 4 / 80 // व्यञ्जनात् परस्य श्नायुक्तस्य हेः 'आनः' स्यात् / पुषाण, मुषाण / व्यञ्जनादिति किम् ? लुनीहि / / 8 / / तुदादेः शः / 3 / 4 / 81 // एभ्यः कर्तृविहिते शिति 'शः' स्यात् / तुदति, तुदते // 81 // - रुधां स्वराश्नो , नलुक् च / 3 / 4 / 82 // रुधादीनां स्वरात् परः कर्तृविहिते शिति. 'श्नः स्यात्, तद्योगे प्रकृतेर्नो लुक् च यथासम्भवम्' / रुणद्धि, हिनस्ति // 82 // कृग-तनादेरुः / 3 / 4 / 83 // कृगस्तनादिभ्यश्च कर्तृविहिते शिति 'उः' स्यात् / करोति, तनोति // 83 // सृजः श्राद्धे जि-क्या-ऽऽत्मने तथा / 3 / 4 / 84 // सृजः पराणि श्रद्धावति कर्तरि “जि-क्या-ऽऽत्मनेपदानि स्युस्तथा यथा पूर्व विहितानि' / असर्जि, सृज्यते, म्रक्ष्यते वा मालां धार्मिकः / श्राद्ध इति किम् ? व्यत्यसृष्ट माले मिथुनम् // 84 // तपेस्तपःकर्मकात् / 3 / 4 / 85 // तपेस्तपःकर्मक़ात् कर्तरि ‘जिक्यात्मनेपदानि स्युस्तथा' / तप्यते तेपे वा तपः साधुः / तप इति किम् ? उत्तपति स्वर्णं स्वर्णकारः / कर्मेति किम् ? तपः साधु तपति // 85 // Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 194 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // एकधातौ कर्मक्रिययैकाऽकर्मक्रिये / 3 / 4 / 86 // एकस्मिन् धातौ कर्मस्थक्रियया पूर्वदृष्टया एका - अभिन्ना सम्प्रत्यकर्मिका क्रिया यस्य, तस्मिन् कर्तरि कर्मकर्तृरूपे 'धातोर्जिक्यात्मनेपदानि' स्युः / अकारि क्रियते करिष्यते वा कटः स्वयमेव / एकधाताविति किम् ? पचत्योदनं चैत्रः, सिध्यत्योदनः स्वयमेव / कर्मक्रिययेति किम् ? साध्वसिश्छिनत्ति / एकक्रिय इति किम् ? नवत्युदकं कुण्डिका, स्रवत्युदकं कुण्डिकायाः / अकमक्रिय इति किम् ? भिद्यमानः कुशूल: पात्राणि भिनत्ति // पचि-दुहेः / 3 / 4 / 87 // एकधातौ कर्मस्थक्रियया पूर्वदृष्टया अकर्मिकया सकर्मिकया वा, एकक्रिये कर्तरि कर्मकर्तृरूपे, आभ्याम् 'जिक्यात्मनेपदानि' स्युः / अपाचि पच्यते पक्ष्यते वा ओदनः स्वयमेव, अदोहि दुग्धे धोक्ष्यते वा गौः स्वयमेव, उदुम्बरः फलं पच्यते अपक्त वा स्वयमेव, दुग्धे अदुग्ध वा पयो धोक्ष्यते गौः स्वयमेव // 87 // . न कर्मणा जिन् / 3 / 488 // पचि-दुहिभ्यां कर्मणा योगे अनन्तरोक्ते कर्तरि 'जिच् न' स्यात् / अपक्तोदुम्बरः फलं स्वयमेव, अदुग्ध गौः पयः स्वयमेव / कर्मणेति किम् ? अपाच्योदनः स्वयमेव / अनन्तरोक्ते कर्तरीत्येव- अपाचि उदुम्बरः फलं वायुना // 8 // रुधः / 3 / 4 / 89 // रुधोऽनन्तरोक्ते कर्तरि 'जिच् न' स्यात् / अरुद्ध गौः स्वयमेव // 89 // स्वर-दुहो वा / 3 / 4 / 90 // Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 195 स्वरान्ताद् दुहेश्चानन्तरोक्ते कर्तरि 'जिच् वा' स्यात् / अकृत अकारि वा कटः स्वयमेव; अदुग्ध अदोहि वा गौः स्वयमेव // 10 // तपः कर्चनुतापे च / 3 / 4 / 91 // तपेः कर्मकर्तरि कर्तर्यनुतापे चार्थे 'जिच् न' स्यात् / अन्ववातप्त कितवः स्वयमेव, अतप्त तपांसि साधुः, अन्वतप्त चैत्रेण, अन्ववातप्त पापः स्वकर्मणा / कर्चनुतापे चेति किम् ? अतापि पृथिवी राज्ञा // 91 // णि-स्नुश्यात्मनेपदाऽकर्मकात् / 3 / 4 / 92 // ण्यन्तात् स्नुश्रिभ्यामात्मनेपदविधावकर्मकेभ्यश्च कर्मकर्तरि 'जिच् न' स्यात् / अपीपचदोदनं चैत्रेण मैत्रः, अपीपचतौदनः स्वयमेव; प्रास्नोष्ट गौः स्वयमेव; उदशिश्रियत दण्डः स्वयमेव; व्यकृत सैन्धवः स्वयमेव // 12 // भूषार्थ-सन्-किरादिभ्यश्च जि-क्यौ / 3 / 4 / 93 // भूषार्थेभ्यः, सन्नन्तेभ्यः, किरादिभ्यो ण्यादिभ्यश्च कर्मकर्तरि ‘जिक्यौ न' स्याताम् / अलमकृत कन्या स्वयमेव, अलंकुरुते कन्या स्वयमेव; सन्अचिकीर्षिष्ट, चिकीर्षते वा कटः ‘स्वयमेव; किरादिः - अकीर्ट, किरते वा पांसुः स्वयमेव, अगीट गिरते वा ग्रासः स्वयमेव; णि - कारयते कटः स्वयमेव, चोरयते गौः स्वयमेव; प्रस्नुते गौः स्वयमेव; श्रि - उच्छ्रयते दण्डः स्वयमेव; आत्मनेपदाकर्मकात् - विकुर्वते सैन्धवाः स्वयमेव // 93 / / करणक्रियया क्वचित् / 3 / 4 / 94 // एकधाती पूर्वदृष्टया करणस्थया क्रियया एकाकर्मक्रिये कर्तरि 'ञिक्यात्मनेपदानि स्युः क्वचित् / परिवारयन्ते कण्टका वृक्षं स्वयमेव / क्वचिदिति किम् ? साध्वसिश्छिनत्ति // 94 // Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 196 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितायां सिद्धहेमचन्द्राभिधानस्वोपज्ञशब्दानुशासन लघुवृत्तौ तृतीयस्याध्यायस्य चतुर्थः पादः समाप्तः // 34 // प्रतापतपनः कोऽपि, मौलराजेनवोऽभवत् / रिपुस्त्रीमुखपद्मानां न सेहे यः किल श्रियम् // 12 // तृतीयोऽध्यायः समाप्तः // Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 197 - अर्हम् // अथ चतुर्थोऽध्यायः (प्रथमः पादः) // द्विर्धातुः परोक्षा-डे, प्राक् तु स्वरे स्वरविधेः / 4 / 1 / 1 // परोक्षायां डे च परे 'धातुर्द्विः' स्यात् , 'स्वरादौ तु द्वित्वनिमित्ते स्वरस्य कार्यात् प्रागेव' / पपाच, अचकमत / धातुरिति किम् ? प्राशिश्रियत् / प्रागिति किम् ? चक्रतुः / स्वर इति किम् ? जेघ्रीयते / स्वरविधेरिति किम् ? शुशाव / प्राक् तु स्वरे स्वरविधेरिति आद्विर्वचनमधिकारः // 1 // आयोऽश एकस्वरः / 4 / 1 / 2 // 'अनेकस्वरस्य धातोराद्य एकस्वरोऽवयवः परोक्षा-डेपरे द्विः' स्यात् / जजागार, अचीकाणत्, अचकाणत्; अचीकरत् // 2 // सन्-यङश्च / 4 / 1 // 3 // सन्नन्तस्य यङन्तस्य चा-'ऽऽद्य एकस्वरोंऽशो द्विः' स्यात् / तितिक्षते, पापच्यते // 3 // - स्वराऽऽदेर्द्वितीयः / 4 / 114 // स्वरादेईयुक्तिभाजो 'द्वितीयोऽश एकस्वरो द्विः' स्यात् / अटिटिषति, अशाश्यते / प्राक् तु स्वरे स्वरविधेरित्येव- आटिटत् // 4 // न ब-द-नं संयोगाऽऽदिः / 4 / 15 // स्वरादेर्धातोद्धितीयस्यांशस्यैकस्वरस्य 'ब-द-नाः संयोगस्याऽऽद्या न द्विः' स्युः / उब्जिजिषति, अट्टिटिषते, उन्दिदिषति / संयोगादिरिति किम् ? प्राणिणिषति // 5 // अयि रः / 4 / 16 // Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 198 .. श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् स्वरादेर्धातोद्धितीयस्यांशस्यैकस्वरस्य 'संयोगादी रो द्विर्न स्यात्, न तु रादनन्तरे यि' / अर्चिचिषति / अयीति किम् ? अरार्यते // 6 // नाम्नो द्वितीयाद् यथेष्टम् / 4 / 17 // स्वरादेर्नामधातोद्धित्वभाजो 'द्वितीयादारभ्यैकस्वरोंऽशो यथेष्टं द्विः' स्यात् / अशिश्वीयिषति, अश्वीयियिषति, अश्वीयिषिषति // 7 // अन्यस्य / 4 / 18 // स्वरादेरन्यस्य नामधातोत्विभाज “एकस्वरोंऽशो यथेष्टं प्रथमादिर्द्विः' स्यात् / पुपुत्रीयिषति, पुतित्रीयिषति, पुत्रीयियिषति, पुत्रीयिषिषति // 8 // . कण्ड्वादेस्तृतीयः / 4 / 1 / 9 // कण्ड्वादेर्दित्वभाज ‘एकस्वरस्तृतीय एव अंशो द्विः' स्यात् / कण्डूयियिषति, असूयियिषति // 9 // पुनरेकेषाम् / 4 / 1 / 10 // “एकेषां मते द्वित्वे कृते पुनर्द्वित्वम्' स्यात् / सुसोषुपिषते / एकेषामिति किम् ? सोषुपिषते // 10 // यिः सन् वेjः / 4 / 1 / 11 // 'ईयो द्वित्वभाजो यिः सन् वा द्विः' स्यात् / ईयियिषति, ईjिषिषति // 11 // ___ हवः शिति / 4 / 1 / 12 // 'जुहोत्यादयः शिति द्विः' स्युः / जुहोति // 12 // चराचर-चलाचल-पतापत-वदावद-घनाघन-पाटूपटं वा / 4 / 113 // 'एतेऽचि कृतद्वित्वादयो वा निपात्यन्ते' / चराचरः, चलाचलः, पतापतः, Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 199 पदावदः, घनाघनः, पाटूपटः / पक्षे - चरः, चलः, पतः, वदः, हनः, पाटः // 13 // चिकिद-चक्नसम् / 4 / 1 / 14 // 'एतौ केऽचि च कृतद्वित्वौ निपात्येते' / चिक्किदः, चक्नसः // 14 // दाश्वत्साह्वत्मीदवत् / 4 / 1 / 15 // 'एते क्वसावद्वित्वादयो निपात्यन्ते' / दाश्वांसौ, साह्वांसी, मीढ्वांसौ // 15 // ज्ञप्यापो जीपीप, न च द्विः सि सनि / 4 / 1 / 16 // प्रपेरापेश्च सादौ सनि परे यथासंख्यम् 'ज्ञीपीपौ स्याताम्, नचाऽनयोरेकस्वरोंऽशो द्विः' स्यात् / जीप्सति, ईप्सति / सीति किम् ? जिज्ञपयिषति // ऋध ईर्त / 4 / 1 / 17 // प्रधः सादी सनि परे 'ई स्यात्, न चाऽस्य द्विः' / ईसति / सीत्येवअदिधिषति // 17 // दम्भो धिप्-धीप् / 4 / 1 / 18 // दम्भः सि सनि धिप्-धीपी स्यातां, न चाऽस्य द्विः' / धिप्सति, धीप्सति / सीत्येव- दिदम्भिषति // 18 // . अव्याप्यस्य मुचेर्मोग्वा / 4 / 119 // मुघेरकर्मणः सि सनि 'मोक् वा स्यात्, न चाऽस्य द्विः' / मोक्षति, मुमुक्षति चैत्रः / अव्याप्यस्येति किम् ? मुमुक्षति वत्सम् // 19 // मि-मी-मा-दामित् स्वरस्य / 4 / 1 / 20 // मि-मी-मा-दासंज्ञानां स्वरस्य सि सनि 'इत् स्यात्, न च द्विः' / मित्सति, मित्सते, मित्सति, दित्सति, धित्सति // 20 // रभ-लभ-शक-पत-पदामिः / 4 / 1 / 21 // Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 200 श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् एषां स्वरस्य सि सनि 'इः स्यात्, न च द्विः' / आरिप्सते, लिप्सते, शिक्षति, पित्सति, पित्सते / सीत्येव- पिपतिषति // 21 // . .. राधेर्वधे / 4 / 1 / 22 // राधेहिँसाऽर्थस्य सि सनि स्वरस्य 'इः स्यात्, न च द्विः' / प्रतिरित्सति / वध इति किम् ? आरिरात्सति // 22 // ___अवित्परोक्षा-सेट्थवोरेः / 4 / 1 / 23 // राधेहिँसार्थस्याऽविति परोक्षायां थवि च सेटि स्वरस्य ‘ए: स्यात्, न च द्विः' / रेधुः, रेधिथ / अविदिति किम् ? अपरराध / वध इत्येवआरराधतुः // 23 // अनादेशाऽऽदेरेकव्यञ्जनमध्येतः / 4 / 1 / 24 // अवित्परोक्षा-सेट्थवोः परयोर्योऽनादेशाऽऽदिस्तत्सम्बन्धिनः स्वरस्याऽतोऽसहायव्यञ्जनयोर्मध्यगतस्य ‘ए: स्यात्, न च द्विः' / पेचुः, पेचिथ, नेमुः, नेमिथ / अनादेशादेरिति किम् ? बभणतुः / एकव्यञ्जनमध्य इति किम् ? ततक्षिथ / अत इति किम् ? दिदिवतुः / सेट्थवीत्येव- पपक्थ // 24 // तृ-त्रप-फल-भजाम् / 4 / 1 / 25 // एषामवित्परोक्षा-सेट्थवोः स्वरस्य ‘ए: स्यात्, न च द्विः' / तेरुः, तेरिथ; पे; फेलुः, फेलिथ; भेजुः, भेजिथ // 25 // जु-भ्रम-वम-त्रस-फण-स्यम-स्वन-राज-भ्राज-भ्रास-भलासो वा / 4 / 1 / 26 // एषाम् 'स्वरस्याऽवित्परोक्षा-सेट्थवोरेर्वा स्यात्, न च द्विः'.। जेरुः, जजरुः; जेरिथ, जजरिथ / भ्रमुः, बभ्रमुः; श्रेमिथ, बभ्रमिथ / वेमुः, ववमुः; वेमिथ, ववमिथ / त्रेसुः, तत्रसुः; त्रेसिथ, तत्रसिथ / फेणुः, पफणुः; फेणिथ, पफणिथ / स्येमुः, सस्यमुः; स्येमिथ, सस्यमिथ / स्वेनुः, सस्वनुः; स्वेनिथ, Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 201 सस्वनिथ / रेजुः, रराजुः;-रेजिथ, रराजिथ / भेजे, बभ्राजे / भ्रसे, बभ्रासे / म्लेसे, बभ्लासे // 26 // वा श्रन्थ-ग्रन्थो न लुक् च / 4 / 1 / 27 // अनयोः 'स्वरस्यावित्परोक्षा-सेट्थवोरेर्वा स्यात्, तद्योगे च नो लुक्, न च द्विः' / श्रेयुः, शश्रन्थुः; श्रेथिथ, शश्रन्थिथ / ग्रेथुः, जग्रन्थुः; ग्रेथिथ, जग्रन्थिथ // 27 // दम्भः / 41 // 28 // दम्भः स्वरस्यावित्परोक्षायाम् ‘ए: स्यात्, न च द्विः, तद्योगे च नो लुक्' / देभुः // 28 // थे वा / 4 / 1 / 29 // . दम्भेः स्वरस्य थवि “एर्वा स्यात्, तद्योगे च नो लुक्, न च द्विः' / देभिथ, ददम्भिथ // 29 // न शस-दद-वादि-गुणिनः / 4 / 1 // 30 // शसि-दद्योर्वादीनां गुणिनां च स्वरस्य ‘एन' स्यात् / विशशसुः, विशशसिथ; दददे; ववले; विशशरुः, विशशरिथ // 30 // . हौ दः / 4 / 1 // 31 // दासंज्ञस्य हौ परे ‘ए: स्यात्, न च द्विः' / देहि, धेहि // 31 // - देर्दिगिः परोक्षायाम् / 4 / 1 // 32 // देङः परोक्षायाम् ‘दिगिः स्यात्, न च द्विः' / दिग्ये // 32 // . पिबः पीप्य् / 4 / 1 // 33 // ण्यन्तस्य पिबते. परे 'पीप्य् स्यात्, न च द्विः' / अपीप्यत् // 33 // . अड़े हि-हनो हो घः पूर्वात् / 4 / 1 // 34 // Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 202 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् हि-हनोर्डवर्जे प्रत्यये परे द्वित्वे सति पूर्वस्मात् परस्य ‘हो घः' स्यात् / प्रजिघाय, जंघन्यते / अङ इति किम् ? प्राजीहयत् // 34 // जेर्गिः सन् - परोक्षयोः / 4 / 1 // 35 // सन्-परोक्षयोर्द्वित्वे सति पूर्वात् परस्य ‘जेर्गिः' स्यात् / जिगीषति, विजिग्ये / / चेः किर्वा // 41 // 36 // सन् परोक्षयोर्द्वित्वे सति पूर्वस्मात् परस्य 'चेः किर्वा' स्यात् / चिकीषति, चिचीषति; चिक्ये, चिच्ये // 36 // पूर्वस्याऽस्वे स्वरे योरियुत् / 4 / 1137 // द्वित्वे सति यः पूर्वस्तत्सम्बन्धिनोर्वोः- इकारस्य उकारस्य चाऽस्वे स्वरे परे 'इयुवौ' स्याताम् / इयेष, अरियर्ति, उवोष / अस्व इति किम् ? ईषतुः / स्वर इति किम् ? इयाज // 37 // . ऋतोऽत् / 4 / 1138 // द्वित्वे सति 'पूर्वस्य ऋतोऽत्' स्यात् / चकार // 38 // हस्वः / 4 / 1 / 39 // द्वित्वे सति 'पूर्वस्य ह्रस्वः' स्यात् / पपौ // 39 // ग-होर्जः / 4 / 1140 // द्वित्वे सति 'पूर्वयोर्ग-होर्जः' स्यात् / जगाम, जहास // 40 // द्युतेरिः / 4 / 1141 // धुतेर्द्वित्वे सति 'पूर्वस्य इ:' स्यात् / दिद्युते // 41 // द्वितीय-तुर्ययोः पूर्वो / 4 / 1 / 42 // द्वित्वे 'पूर्वयोर्वितीय-तुर्ययोर्यथासङ्ख्यं पूर्वी- आद्य-तृतीयौ' स्याताम् / चखान, जझाम // 42 // Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 203 तिर्घा ष्ठिवः / 4 / 1143 // 'टिवेर्द्धित्वे सति पूर्वस्य तिर्वा' स्यात् / तिष्ठेव, टिष्ठेव // 43 // व्यञ्जनस्याऽनादेर्लुक् / 4 / 1 / 44 // 'द्वित्वे पूर्वस्य व्यञ्जनस्याऽनादेर्लुक्' स्यात् / जग्ले / अनादेरिति किम् ? आदेर्मा भूत्, पपाच // 44 // अघोषे शिटः / 4 / 1145 // 'द्वित्वे पूर्वस्य शिटस्तत्सम्बन्धिन्येवाऽघोषे लुक्' स्यात् / चुश्च्योत / अघोष इति किम् ? सस्नौ // 45 // क-डश्च- 41146 // द्वित्वे पूर्वयोः क-डोर्यथासंख्यं च औ' स्याताम् / चकार, झुडुवे // 46 // न कवतेर्यङः / 4 / 1 / 47 // 'यङन्तस्य कवतेर्द्वित्वे सति पूर्वस्य कश्चो न' स्यात् / कोकूयते खरः / कवतेरिति किम् ? कौति-कुवत्योर्मा भूत् - चोकूयते / यङ इति किम् ? खुकुवे // 47 // आ-गुणावन्यादेः / 4 / 1 / 48 // 'यजन्तस्य द्वित्वे पूर्वस्य न्याद्यागमवर्जस्य आ-गुणो' स्याताम् / पापज्यते, लोलूयते / अन्यादेरिति किम् ? वनीवच्यते, जाप्यते, यंयम्यते // न हाको लुपि / 4 / 1 / 49 // 'डाको द्वित्वे पूर्वस्य यो लुपि आ न' स्यात् / जहेति // 49 // वञ्च-नंस-ध्वंस-भ्रंश-कस-पत-पद-स्कन्दोऽन्तो नीः 41150 // . एषां यान्तानां द्वित्वे 'पूर्वस्य नीरन्तः' स्यात् / वनीवच्यते, सनीलस्यते, दनी Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 204 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् / ध्वस्यते, बनीभ्रश्यते, चनीकस्यते, पनीपत्यते, पनीपद्यते, चनीस्कद्यते // 50 // मुरतोऽनुनासिकस्य / 4 / 1151 // . . आत् परो योऽनुनासिकस्तदन्तस्य यङन्तस्य द्वित्वे 'पूर्वस्य मुरन्तः' स्यात् / बम्भण्यते / अत इति किम् ? तेतिम्यते / अनुनासिकस्येति किम् ? पापच्यते // 51 // . जप-जभ-दह-दश-भञ्ज-पशः / 4 / 1152 // . एषां यङन्तानां द्वित्वे 'पूर्वस्य मुरन्तः' स्यात् / जञ्जप्यते, जञ्जभ्यते, दन्दह्यते, दन्दश्यते, बम्भज्यते, पम्पश्यते // 52 // चर-फलाम् // 41 // 53 // एषां यङन्तानां द्वित्वे 'पूर्वस्य मुरन्तः' स्यात् / चञ्चूर्यते, पम्फुल्यते // 53 // ति चोपान्त्याऽतोऽनोदुः / 4 / 154 // यङन्तानां चर-फलां तादौ च प्रत्यये 'उपान्त्यस्याऽत उः स्यात्, न च तस्यौत्' / चञ्चूर्यते, पम्फुल्यते, चूर्तिः, प्रफुल्लिः / अत इति किम् ? चञ्चार्यते, पम्फाल्यते / अनोदिति किम् ? चंचूर्ति, पम्फुल्ति // 54 / / ऋमतां रीः / 4 / 1155 // ऋमतां यङन्तानां द्वित्वे 'पूर्वस्य रीरन्तः' स्यात् / नरीनृत्यते // 55 // रि-रौ च लुपि / 4 / 156 // ऋमतां यङो लुपि द्वित्वे 'पूर्वस्य रि-रौ रीश्चान्तः' स्यात् / चरिकर्ति, चर्कर्ति, चरीकर्ति // 56 // निजां शित्येत् / 4 / 1 / 57 // निजि-विजि-विषां शिति द्वित्वे 'पूर्वस्यैत्' स्यात् / नेनेक्ति, वेवेक्ति, वेवेष्टि / शितीति किम् ? निनेज // 57 // Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 205 पृ-भू-मा-हाडामिः / 4 / 1158 // एषां शिति द्वित्वे, 'पूर्वस्य इ.' स्यात् / पिपर्ति, इयर्ति, बिभर्ति, मिमीते, जिहीते / हाङिति किम् ? जहाति / शितीत्येव- पपार // 58 // सन्यस्य / 4 / 1159 // द्वित्वे 'पूर्वस्यातः सनि परे इ.' स्यात् / पिपक्षति / अस्येति किम् ? पापचिषते // 59 / / ओर्जाऽन्तस्था-पवर्गेऽवणे / 4 / 1 / 60 // द्वित्वे 'पूर्वस्योतोऽवर्णान्ते जान्तस्थापवर्गे परे सनि इ:' स्यात् / जिजावयिषति, यियविषति, यियावयिषति, रिरावयिषति, लिलावयिषति, पिपविषते, पिपावयिषति, मिमावयिषति / जान्तस्थापवर्ग इति किम् ? जुहावयिषति / अवर्ण इति किम् ? बुंभूषति // 60 // श्रु-सु-द्रु-पु-प्लु-च्योर्वा / 4 / 1 / 61 // एषां सनि द्वित्वे 'पूर्वस्योतोऽवर्णान्तायामन्तस्थायां परस्याम् इर्वा' स्यात् / शिश्रावयिषति, शुश्रावयिषति; सिनावयिषति, सुस्रावयिषति; दिद्रावयिषति, दुद्रावयिषति; पिप्रावयिषति, पुप्रावयिषति; पिप्लावयिषति, पुप्लावयिषति; चिच्यावयिषति, चुच्यावयिषति // 61 // . स्वपो णावुः / 4 / 162 // 'स्वपर्णी सति द्वित्वे पूर्वस्योत्' स्यात् / सुष्वापयिषति / णाविति किम् ? सिष्वापकीयिषति / स्वपो णाविति किम् ? स्वापं चिकीर्षति= सिष्वापयिषति / स्वपो णी सति द्वित्व इति किम् ? सोषोपयिषति // 62 // असमानलोपे सन्चल्लघुनि डे / 4 / 1 / 63 // 'न विद्यते समानस्य लोपो यस्मिन्, तस्मिन् उपरे णौ द्वित्वे, पूर्वस्य Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 206 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् लघुनि धात्वक्षरे परे सनीव कार्यं स्यात्' / अचीकरत्, अजीजवत्, अशिश्रवत् / लघुनीति किम् ? अततक्षत् / णावित्येव- अचकंमत / असमानलोप इति किम् ? अचकथत् // 63 // . लघोर्दीर्घोऽस्वरादेः / 4 / 1 / 64 // अस्वरादेरसमानलोपे ऊपरे णौ द्वित्वे 'पूर्वस्य लघोलघुनि धात्वक्षरे परे दीर्घः' स्यात् / अचीकरत् / लघोरिति किम् ? अचिक्वणत् / अस्वरादेरिति किम् ? औणुनवत् // 64 // स्मृ-दृ-त्वर-प्रथ-प्रद-स्तृ-स्पशेरः / 4 / 1 / 65 // एषामसमानलोपे उपरे णौ द्वित्वे 'पूर्वस्याऽत्' स्यात् / असस्मरत्, अददरत्, अतत्वरत्, अपप्रथत्, अमम्रदत्, अतस्तरत्, अपस्पशत् // 65 // वा वेष्ट-चेष्टः / 4 / 1 / 66 // अनयोरसमानलोपे उपरे णौ द्वित्वे 'पूर्वस्याऽद् वा' स्यात् / अववेष्टत्, अविवेष्टत्; अचचेष्टत्, अचिचेष्टत् // 66 // .ई च गणः / 4 / 1 / 67 // 'गणेङपरे णौ द्वित्वे पूर्वस्य ईः, अश्च' स्यात् / अजीगणत्, अजगणत् // ' अस्याऽऽदेराः परोक्षायाम् / 4 / 1 / 68 // अस्यां द्वित्वे 'पूर्वस्याऽऽदेरत आः' स्यात् / आदुः, आरतुः / अस्येति किम् ? ईयुः / आदेरिति किम् ? पपाच // 68 // अनातो नश्चान्त ऋदायशौ-संयोगस्य / 4 / 1 / 69 // ऋदादेरश्नोतेः संयोगान्तस्य च परोक्षायां द्वित्वे 'पूर्वस्याऽऽदेरात्स्थानादन्यस्याऽस्य आः स्यात्, कृताऽऽतो नोऽन्तश्च' / आनृधुः, आनशे, आनन / ऋदादीति किम् ? आर / अनात इति किम् ? आञ्छ // 69 // Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 207 भू-स्वपोरदतौ / 4 / 170 // 'भू-स्वपोः परोक्षायां द्वित्वे पूर्वस्य यथासंख्यमदुतौ' स्याताम् / बभूव, सुष्वाप // 70 // ज्या-व्ये-व्यधि-व्यचि-व्यथेरिः / 4 / 171 // एषां परोक्षायां द्वित्वे 'पूर्वस्य इ.' स्यात् / जिज्यौ, संविव्याय, विव्याध, विव्याच, विव्यथे // 7 // यजादि-वश्-वचः सस्वरान्तस्था वृत् / 4 / 1172 // 'यजादेर्वश्-वचोश्च परोक्षायां द्वित्वे पूर्वस्य सस्वरान्तस्था इ-उ-ऋरूपा प्रत्यासत्त्या स्यात्' / इयाज, उवाय, उवाश, उवाच // 72 // न वयो य / 4 / 1173 // 'वेगो वयो य परोक्षायां य्वृत् न' स्यात् / ऊयुः // 73 // वेरयः / 4 / 174 // 'वेगोऽयन्तस्य पूर्वस्य परस्य च परोक्षायां य्वृन' स्यात् / ववौ / अय इति किम् ? उवाय // 4 // . अविति वा / 4 / 175 // 'वेगोऽयन्तस्याऽविति परोक्षायां वृद्वा न स्यात् / वदुः, ऊवुः // 75 // - ज्यश्च यपि / 4 / 176 // 'ज्यो वेगश्च यपि य्वृन्न' स्यात् / प्रज्याय, प्रवाय // 76 // व्यः / 4 / 177 // 'व्यो यपि वृन' स्यात् / प्रव्याय // 77 // संपरेर्वा / 4 / 178 // आभ्यां परस्य 'व्यो यपि वृद्वा न' स्यात् / संव्याय, संवीय; परिव्याय, Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 208 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् परिवीय // 78 // यजादि-वचेः किति / 4 / 179 // 'यजादेर्वचेश्च सस्वरान्तस्था किति परे वृत्' स्यात् / ईजुः, ऊयुः, ऊचुः / कितीति किम् ? यक्षीष्ट // 79 // स्वपेर्यङ्-डे च / 4 / 1 / 80 // 'स्वपेर्यङि डे किति च परे सस्वरान्तस्था य्वृत्' स्यात् / सोषुप्यते, असूषुपत सुषुप्सति // 8 // - ज्या-व्यधः क्डिति / 4 / 1181 // 'ज्या व्यधोः सस्वरान्तस्था किति ङिति स्वृत्' स्यात् / जीयात्, जिनाति विध्यात्, विध्यति // 81 // व्यचोऽनसि / 4 / 1182 // 'व्यचेः सस्वरान्तस्था अस्वर्जे क्ङिति य्वृत्' स्यात् / विचति / अनसीति किम् ? उरुव्यचाः // 82 // . - वशेरयङि / 4 / 1183 // 'वशेः सस्वरान्तस्था अयङि छिति वृत्' स्यात् / उष्टः, उशन्ति / अयङीति किम् ? वावश्यते // 8 // ग्रह-वस्व-भ्रस्ज-प्रच्छः / 4 / 1184 // “एषां सस्वरान्तस्था क्छिति य्वृत्' स्यात् / जगृहुः, गृह्णाति; वृक्णः, वृश्चति; भृष्टः, भृज्जति; पृष्टः, पृच्छा // 84 // ___व्ये-स्यमोर्यङि / 4 / 1185 // 'व्येग्-स्यमोः सस्वरान्तस्था यङि य्वृत्' स्यात् / वेवीयते, सेसिमीति // 85 // चायः की / 4 / 1 / 86 // Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 'चायो यङि कीः' स्यात् / चेकीतः // 86 // द्वित्वे हवः / 4 / 1 / 87 // 'द्वेगो द्वित्वविषये सस्वरान्तस्था य्वृत्' स्यात् / जुहूषति // 87 // णौ ङ-सनि / 4 / 1 / 88 // 'द्वेगः सस्वरान्तस्था उपरे सन्परे च णौ विषये य्वृत्' स्यात् / अजूहवत्, जुहावयिषति // 88 // श्वेर्वा / 4 / 1 / 89 // 'श्वेः सस्वरान्तस्था ङपरे, सम्परे णौ विषये य्वृद्वा' स्यात् / अशूशवत्, अशिश्वयत्; शुशावयिषति, शिश्वाययिषति // 89 // . वा परोक्षा-यङि / 4 / 1190 // 'श्वः सस्वरान्तस्था परोक्षायडोर्वृद्वा' स्यात् / शुशाव, शिश्वाय / शोशूयते, शेश्वीयते // 10 // प्यायः पी / 4 / 1 / 91 // 'प्यायः परोक्षा-यडोः पीः' स्यात् / आपिप्ये, आपेपीतः // 91 // तयोरनुपसर्गस्य / 4 / 1 / 92 // 'अनुपसर्गस्य प्यायेः क्त-क्तवतोः पीः' स्यात् / पीनम्, पीनवन् मुखम् / अनुपसर्गस्येति किम् ? प्रप्यानो मेघः // 12 // ___आङोऽन्धूधसोः / 4 / 1 / 93 // 'आङः परस्य प्यायेरन्धावूधसि चार्थे क्तयोः परतः पीः' स्यात् / आपीनोऽन्धुः, आपीनमूधः / अन्धूधसोरिति किम् ? आप्यानश्चन्द्रः / आङ एवेति नियमात्- प्राप्यानमूधः // 13 // स्फायः स्फी वा / 4 / 1 / 94 // Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 210 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् / 'स्फायतेः क्तयोः परयोः स्फीर्वा' स्यात् / स्फीतः, स्फीतवान्; स्फातः, स्फातवान् // 14 // प्रसमः स्त्यः स्ती / 4 / 1 / 95 // 'प्रसम्समुदायपूर्वस्य स्त्यः क्तयोः परयोः स्तीः' स्यात् / प्रसंस्तीतः, प्रसंस्तीतवान् / प्रसम इति कम् ? संप्रस्त्यानः // 95 // प्रात् तश्च मो वा / 4 / 1 / 96 // 'प्रात् केवलात् परस्य स्त्यः क्तयोः परयोः स्तीः स्यात्, क्तयोस्तो मश्च वा' / प्रस्तीतः, प्रस्तीतवान्। प्रस्तीमः, प्रस्तीमवान् // 16 // श्यः शीर्द्रवमूर्ति-स्पर्शे नश्वाऽस्पर्शे / 4 / 1 / 97 // मूर्तिः काठिन्यम्, 'द्रवमूर्ति-स्पर्शार्थस्य श्यः क्तयोः परयोः शीः स्यात्, तद्योगे च क्तयोस्तोऽस्पर्शविषये नश्च' / शीनम्, शीनवद् घृतम्, शीतं वर्तते, शीतो वायुः // 97 // प्रतेः / 4 / 1198 // 'प्रतेः परस्य श्यः क्तयोः परयोः शीः स्यात्, तद्योगे क्तयोः तो न च' / प्रतिशीनः, प्रतिशीनवान् // 98 // वाऽभ्यवाभ्याम् / 4 / 1 / 99 // आभ्यां परस्य 'श्यः क्तयोः परयोः शीर्वा स्यात्, तद्योगे च क्तयोस्तोऽस्पर्श नश्च' / अभिशीनः, अभिशीनवान्; अभिश्यानः, अभिश्यानवान्; अवशीनम्, अवश्यानं हिमम्; अवशीनवान्, अवश्यानवान् // 19 // . श्रः शृतं हविः-क्षीरे / 4 / 1100 // 'श्रातेः श्रायतेश्च ते हविषि क्षीरे चार्थे शृर्निपात्यते' / शृतं हविः, शृतं क्षीरं स्वयमेव / हविःक्षीर इति किम् ? श्राणा यवागूः // 100 // Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 211 श्रपेः प्रयोक्त्रैक्ये / 4 / 11101 // 'श्रातेः श्रायतेर्वा ण्यन्तस्यैकस्मिन् प्रयोक्तरि क्ते परे हविः-क्षीरयोः शृर्निपात्यते' / शृतं हविः क्षीरं वा चैत्रेण / हविःक्षीर इत्येव- श्रपिता यवागूः / प्रयोक्नैक्य इति किम् ? श्रपितं हविश्चैत्रेण मैत्रेण // 101 // वृत् सकृत् / 4 / 1 / 102 // 'अन्तस्थास्थानानाम्, इ-उ-ऋत् सकृदेव' स्यात् / संवीयते // 102 // दीर्घमवोऽन्त्यम् / 4 / 1 / 103 // 'वेग्वर्जस्य य्वृदन्त्यं दीर्घम्' स्यात् / जीनः / अव इति किम् ? उतः / अन्त्यमिति किम् ? सुप्तः / / 103 // स्वर-हन-गमोः सनि धुटि / 4 / 1 / 104 // 'स्वरान्तस्य हन्-गमोश्च धुडादौ सनि दीर्घः' स्यात् / चिचीषति, जिघांसति, संजिगांसते / धुटीति किम् ? यियविषति // 104 / / तनो वा 41105 // 'तनेधुंडादौ सनि दीर्घो वा' स्यात् / तितांसति, तितंसति / धुटीत्येवतितनिषति // 105 // . क्रमः क्त्वि वा / 4 / 1 / 106 // 'क्रमो धुडादौ / क्त्वि दीर्घो वा' स्यात् / क्रान्त्वा, क्रन्त्वा / धुटीत्येवक्रमित्वा / / 10 / / . अहन्-पञ्चमस्य क्वि-क्ङिति / 4 / 1 / 107 // 'हन्वर्जस्य पञ्चमान्तस्य क्वौ धुडादौ च क्ङिति दीर्घः' स्यात् / प्रशान्, शान्तः, शंशान्तः / पञ्चमस्येति किम् ? पक्त्वा / अहन्निति किम् ? वृत्रहणि / धुटीत्येव- यम्यते // 107 // Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 212 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानशासनम अनुनासिके च च्छ्-वः शूट / 4 / 1 / 108 // 'अनुनासिकादौ क्वौ धुडादौ च 'धातोः च्छ्वोर्यथासङ्ख्यं श्-ऊटौ' स्याताम् / प्रश्नः, शब्दप्राशौ, पृष्टः, स्योमा, अक्षयूः, द्यूतः // 108 // मव्यवि-श्रिवि-ज्वरि-त्वरेरुपान्त्येन / 4 / 1 / 109 // एषामनुनासिकादौ क्वौ धुडादौ च प्रत्यये 'उपान्त्येन सह ऊट् स्यात् / मोमा, मूः, मूतिः; ओमा, ओम्, ऊः, ऊतिः; श्रोमा, श्रूः, श्रूतिः; जूर्मा, जूः, जूर्तिः; तूर्मा, तूः, तूर्णः // 109 // राल्लुक् / 4 / 1 / 110 // 'रात् परयोः छ्वोरनुनासिकादौ क्वौ धुडादौ च प्रत्यये लुक् ' स्यात् / मोर्मा, मूः, मूर्तिः; तोर्मा, तूः, तूर्णः // 110 // तेऽनिटश्च-जोः क-गौ घिति / 4 / 1111 // 'तेऽनिटो धातोश्च-जोर्घिति यथासंख्यं क-गौ' स्याताम् / पाकः, भोग्यम् / क्तेऽनिट इति किम् ? सङ्कोचः, कूजः // 111 // न्यङ्ग-मेघाऽऽदयः / 4 / 1112 // ' न्यवादयः कत्वे, उद्गादयो गत्वे, मेघादयो घत्वे कृते निपात्यन्ते' / न्यङ्कुः, शोकः; उद्गः, न्युद्गः, मेघः, ओघः / / 112 / / न वञ्चेर्गतौ / 4 / 1 / 113 // 'गत्यर्थस्य वञ्चेः कत्वं न' स्यात् / वञ्चं वञ्चन्ति / गताविति किम् ? वर्ल्ड काष्ठम् / / 113 // यजेर्यज्ञाङ्गे / 4 / 1 / 114 // 'यज्ञानवृत्तेर्यजेर्गत्वं न' स्यात् / पञ्च प्रयाजाः / यज्ञाङ्ग इति किम् ? प्रयागः // 114 // Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 213 घ्यण्यावश्यके / 4 / 1 / 115 // 'आवश्यकोपाधिके घ्यणि च-जोः क-गौ न' स्याताम् / अवश्यपाच्यम्, अवश्यरज्यम् / आवश्यक इति किम् ? पाक्यम् // 115 // नि-प्राद् युजः शक्ये / 4 / 1 / 116 // आभ्याम् 'युजः शक्ये गम्ये घ्यणि गो न' स्यात् / नियोज्यः, प्रयोज्यः / शक्य इति किम् ? नियोग्यः // 116 / / भुजो भक्ष्ये / 4 / 11117 // 'भुजो भक्ष्यार्थे घ्यणि गो न' स्यात् / भोज्यं पयः / भक्ष्य इति किम् ? भोग्या भूः // 117 // त्यज-यज-प्रवचः / 4 / 11118 // एषाम् ‘ध्यणि क-गौ न' स्याताम् / त्याज्यः, याज्यः, प्रवाच्यः // 118 // - वचोऽशब्दनाम्नि / 4 / 1 / 119 // 'अशब्दसंज्ञायां वचेय॑णि को न' स्यात् / वाच्यम् / अशब्दनाम्नीति किम् ? वाक्यम् // 119 // - भुज-न्युजं पाणि-रोगे / 4 / 1 / 120 // "भुजेन्युनेश्च घञन्तस्य पाणी रोगे चार्थे यथासंख्यं भुजन्युजौ निपात्येते' / भुजः पाणिः, न्युब्जो रोगः // 120 // वीरुन्-न्यग्रोधौ / 4 / 1 / 121 // 'विपूर्वस्य रुहेः क्विपि, न्यक्पूर्वस्य चाऽचि वीरुन्न्यग्रोधौ एतौ धान्ती निपात्येते' / वीरुत्, न्यग्रोधः // 121 // इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितायां सिद्धहेमचन्द्राभिधानस्वोपज्ञशब्दानुशासन लघुवृत्तौ चतुर्थस्याध्यायस्य प्रथमः पादः समाप्तः // 41 // Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 214 %3D श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् कुर्वन् कुन्तलशैथिल्यं मध्यदेशं निपीडयन् / अङ्गेषु विलसन् भूमेर्भर्ताऽभूद् भीमपार्थिवः // 13 // (द्वितीयः पादः) आत् सन्ध्यक्षरस्य / 4 / 21 // 'धातोः सन्ध्यक्षरान्तस्याऽऽत्' * स्यात् / संव्याता, सुग्लः / धातोरित्येवगोभ्याम् // 1 // न शिति / 4 / 2 // 2 // 'सन्ध्यक्षरान्तस्य शिति विषयभूते आत् न' स्यात् / संव्ययति // 2 // व्यस्थव-णवि / 4 / 2 / 3 // 'व्यः थवि णवि च विषये आन्न' स्यात् / संविव्याय, संविव्ययिथ // 3 // स्फुर-स्फुलोपनि / 4 / 2 / 4 // अनयोः ‘सन्ध्यक्षरस्य घजि आत्' स्यात् / विस्फारः, विस्फालः // 4 // वाऽपगुरो णमि // 4 // 25 // 'अपपूर्वस्य गुरेः सन्ध्यक्षरस्य णम्याद्वा' स्यात् / अपगारमपगारम्, अपगोरमपगोरम् // 5 // दीङः सनि वा / 4 / 26 // 'दीङः सन्याद्वा' स्यात् / दिदासते, दिदीषते // 6 // यबक्ङिति / 4 / 27 // . दीडो यपि, अक्किति च विषये 'आत्' स्यात् / उपदाय, उपदाता विषयनिर्देशाद्- उपदायो वर्तते // 7 // Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 215 - मिग-मीगोऽखलचलि / 4 / 2 / 8 // अनयोर्यपि खल्-अच्-अल्वर्जेऽक्ङिति च विषये 'आत्' स्यात् / निमाय, निमाता; प्रमाय, प्रमाता / अखलचलीति किम् ? ईषनिमयः, दुष्प्रमयः, मयः, आमयः; निमयः; प्रमयः // 8 // लीङ्-लिनोर्वा / 4 / 2 / 9 // अनयोर्यपि खल्-अच्-अल्वर्जेऽक्छिति च विषये 'आद्वा' स्यात् / विलाय, विलीय; विलाता, विलेता / अखलचलीति किम् ? ईषद्विलयः, विलयः, विलयोऽस्ति // 9 // णौ क्री-जीङः / 4 / 2 / 10 // एषां णौ ‘आत्' स्यात् / क्रापयति, जापयति, अध्यापयति // 10 // सिध्यतेरज्ञाने / 4 / 2 / 11 // अज्ञानार्थस्य सिध्यतेहूं 'स्वरस्याऽऽत्' स्यात् / मन्त्रं साधयति / अज्ञान इति किम् ? तपस्तापसं सेधयति // 11 // चि-स्फुरोर्नवा / 4 / 2 / 12 // चिस्फुरोर्णी 'स्वरस्याऽऽद्वा' स्यात् / चापयति, चाययति; स्फारयति, स्फोरयति // 12 // वियः प्रजने / 4 / 2 / 13 // गर्भाऽऽधानार्थस्य वियो णौ ‘वा आत्' स्यात् / पुरो वातो गाः प्रवापयति, प्रवाययति // 13 // रुहः पः // 4 // 2 // 14 // रुहेर्णी 'प् वा' स्यात् / रोपयति रोहयति वा तरुम् // 14 // लियो नोऽन्तः स्नेहद्रवे / 4 / 2 / 15 // Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / 216 . श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् लियः स्नेहद्रवे गम्ये णौ 'नोऽन्तो वा' स्यात् / घृतं विलीनयति, विलाययति / स्नेहद्रव इति किम् ? अयो विलाययति // 15 // लो लः / 4 / 2 / 16 // लारूपस्य णौ स्नेहद्रवे गम्ये 'लोऽन्तो वा' स्यात् / घृतं विलालयति विलापयति वा / स्नेहद्रव इत्येव- जटाभिरालापयते // 16 // पातेः / 4 / 2 / 17 // पातेी 'लोऽन्तः' स्यात् / पालयति // 17 // धूग-प्रीगोनः // 4 // 2 // 18 // धूम्-प्रीगोर्णी 'नोऽन्तः' स्यात् / धूनयति, प्रीणयति // 18 // वो विधूनने जः / 4 / 2 / 19 // वा इत्यस्य विधूननेऽर्थे णौ 'जोऽन्तः' स्यात् / पक्षण उपवाजयति / विधूनन इति किम् ? उच्चैः केशानावापयति // 19 // पा-शा-छा-सा-वे-व्या-हो यः / 4 / 2 / 20 // एषां णौ ‘योऽन्तः' स्यात् / पाययति, शाययति, अवच्छाययति, अवसाययति, वाययति, व्याययति, ह्वाययति // 20 // अर्ति-री-व्ली-ही-क्नूयि-क्ष्माय्यातां पुः / 4 / 2 / 21 // एषामादन्तानां च णौ 'पुरन्तः' स्यात् / अर्पयति, रेपयति, ब्लेपयति, रुपयति, क्नोपयति, मापयति, दापयति, सत्यापयति // 21 // स्फाय स्फाव् / 4 / 2 / 22 // णौ स्फायः ‘स्फाव्' स्यात् / स्फावयति // 22 // शदिरगतौ शात् / 4 / 2 / 23 // शदिरगत्यर्थे णौ 'शात्' स्यात् / पुष्पाणि शातयति / अगताविति किम् ? Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 217 गाः शादयति // 23 // घटादेईस्वो दीर्घस्तु वा त्रि-णम्परे / 4 / 2 // 24 // 'घटादीनां णौ ह्रस्वः स्यात्, जि-णम्परे तु णौ वा दीर्घः' / घटयति; अघाटि, अघटि; घाटघाटम्, घटंघटम् / व्यथयति; अव्याथि, अव्यथि; व्याव्याथम्, व्यर्थव्यथम् // 24 // कगे-वनू-जनै-जृष्-क्नस्-रञ्जः / 4 / 2 / 25 // 'एषां णौ ह्रस्वः स्यात्, जि-णम्परे तु वा णौ दीर्घः' / कगयति; अकागि, अकगि; कागंकागम्, कगंकगम् / उपवनयति; उपावानि, उपावनि; उपवानमुपवानम्, उपवनमुपवनम् / जनयति; अजानि, अजनि; जानजानम्, जनंजनम् / जरयति; अजारि, अजरि; जारंजारम्, जरंजरम् / क्नसयति; अक्नासि; अक्नसि; क्नासंक्नासम्, क्नसक्नसम् / रजयति; अराजि, अरजि; राजराजम् रजरजम् // 25 // अमोऽकम्यमि-चमः / 4 / 2 / 26 // कम्यमि-चमिवर्जस्याऽमन्तस्य णौ ‘ह्रस्वः स्यात् , जिणम्परे तु णौ वा दीर्घः' / रमयति; अरामि, अरमि; रामरामम्, रमरमम् / अकम्यमिचम इति किम् ? कामयते, अकामि, कामंकामम्; आमयति, आचामयति // 26 // . पर्यपात् स्खदः / 4 / 2 / 27 // आभ्यामेव परस्य स्खदेी ‘ह्रस्वः स्यात्, ञिणम्परे तु वा दीर्घः' / परिस्खदयति; पर्यस्खादि, पर्यस्खदि; परिस्खादंपरिस्खादम्, परिस्खदंपरिस्खदम् / अपस्खदयति; अपास्खादि, अपास्खदि; अपस्खादमपस्खादम्, अपस्खदमपस्खदम् / पर्यपादिति किम् ? प्रस्खादयति // 27 // शमोऽदर्शने / 4 / 2 / 28 // अदर्शनार्थस्य शमी 'हूस्वः स्यात्, त्रिणम्परे तु वा दीर्घः' / शमयति Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 218 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् रोगम्; अशामि, अशमि; शामंशामम्, शमंशमम् / अदर्शन इति किम् ? निशामयति रूपम् // 28 // यमोऽपरिवेषणे णिचि च / 4 / 2 / 29 // अपरिवेषणार्थस्य यमो णिचि अणिचि च णौ 'इस्वः स्यात्, ञिणम्परे तु वा दीर्घः' / यमयति; अयामि, अयमि; यामयामम्, यमंयमम् / अपरिवेषण इति किम् ? यामयत्यतिथिम् // 29 // मारण-तोषण:निशाने ज्ञश्च / 4 / 2 // 30 // एष्वर्थेषु ज्ञो णिचि अणिचि च णौ ‘ह्रस्वः स्यात्, जिणम्परे तु वा दीर्घः' / संज्ञपयति पशुम्, विज्ञपयति राजानम्, प्रज्ञपयति शस्त्रम् / अज्ञापि, अज्ञपि; ज्ञापंज्ञापम्, ज्ञपंज्ञपम् // 30 // चहणः शाठ्ये 14 // 2 // 31 // चहेश्चुरादेः शाठ्यार्थस्य णिचि णौ 'ह्रस्वः स्यात्, जिणम्परे तु वा दीर्घः' / चहयति; अचाहि, अचहि; चाहंचाहम्, चहचहम् / शाठ्य इति किम् ? अचहि // 31 // ज्वल-बल-झल-ग्ला-स्ना-वनू-वम-नमोऽनुपसर्गस्य वा / 4 / 2 / 32 // एषामनुपसर्गाणां णौ 'इस्वो वा' स्यात् / ज्वलयति, ज्वालयति; ह्वलयति, ह्यालयति; ह्मलयति, ह्यालयति; ग्लपयति; ग्लापयति; स्नपयति, स्नापयति; वनयति, वानयति, वमयति, वामयति; नमयति, नामयति / अनुपसर्गस्येति किम् ? प्रज्वलयति, प्रह्वलयति, प्रह्मलयति, प्रग्लापयति, प्रस्नापयति, प्रवनयति, प्रवमयति, प्रणमयति // 32 // छदेरिस-मन-बट-क्वौ / 4 / 2 // 33 // छदेरिस्-मन्-त्रट-क्विप्परे णौ 'ह्रस्वः' स्यात् / छदिः, छद्म, छत्री; Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 219 - उपच्छत् // 33 // __एकोपसर्गस्य च घे / 4 / 2 // 34 // एकोपसर्गस्यानुपसर्गस्य च छदेर्घपरे णौ 'ह्रस्वः' स्यात् / प्रच्छदः, छदः / एकोपसर्गस्य चेति किम् ? समुपच्छादः // 34 // उपान्त्यस्याऽसमानलोपि-शास्वृदितो / 4 / 2 / 35 // समानलोपि-शास्वृदिद्वर्जस्य धातोरुपान्त्यस्य ङपरे णौ ‘ह्रस्वः' स्यात् / अपीपचत्, मा भवान् अटिटत् / असमानलोपि-शास्वृदित इति किम् ? अत्यरराजत्, अशशासत्, मा भवान् ओणिणत् // 35 // भ्राज-भास-भाष-दीप-पीड-जीव-मील-कण-रण-बण-भण-श्रण ढे-हेठ-लुट-लुप-लपां नवा // 4 // 2 // 36 // एषां ऊपरे णावुपान्त्यस्य 'इस्वो वा' स्यात् / अबिभ्रजत्, अबभ्राजत्; अबीभसत्, अबभासत्; अबीभषत्, अबभाषत्; अदीदिपत्, अदिदीपत्; अपीपिडत्, अपिपीडत्; अजीजिंवत्, अजिजीवत्; अमीमिलत्, अमिमीलत्; अचीकणत्, अचकाणत्; अरीरणत्, अरराणत्; अबीबणत्, अबबाणत्; अबीभणत्, अबभाणत्; अशिश्रणत्, अशश्राणत्; अजूहवत्, अजुहावत्; अजीहिठत्, अजिहेठत्; अलूलुटत्, अलुलोटत्; अलूलुपत्, अलुलोपत्; अलीलपत्, अललापत् // 36 // ऋदृवर्णस्य / 4 / 2 // 37 // उपान्त्यस्य ऋवर्णस्य छपरे णौ ‘वा ऋः' स्यात् / अवीवृतत्, अववर्त्तत्; अचीकृतत्, अचिकीर्तत् // 37 // जिघ्रतेरिः / 4 / 2 // 38 // घ्र उपान्त्यस्य उपरे णौ 'इर्वा' स्यात् / अजिघ्रिपत्, अजिघ्रपत् // 38 // Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 220 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् तिष्ठतेः / 4 / 2 / 39 // स्थ उपान्त्यस्य ङपरे णौ 'इ:' स्यात् / अतिष्ठिपत् // 39 // ऊद् दुषो णौ / 4 / 2 / 40 // दुषेरुपान्त्यस्य णौ 'ऊत्' स्यात् / दूषयति // 40 // चित्ते वा / 4 / 2 / 41 // चित्तकर्तृकस्य दुषेरुपान्त्यस्य णौ परे 'ऊद् वा' स्यात् / मनो दूषयति, मनो दोषयति मैत्रः // 41 // . . गोहः स्वरे / 4 / 2 / 42 // कृतगुणस्य गुहेः 'स्वरादावुपान्त्यस्योत्' स्यात् / निगृहति / गोह इति किम् ? निजुगुहुः // 42 // भुवो वः परोक्षा-ऽद्यतन्योः / 4 / 2 / 43 // 'भुवो वन्तस्योपान्त्यस्य परीक्षा-ऽद्यतन्योरूत्' स्यात् / बभूव, अभूवन् / व इति किम् ? बभूवान्, अभूत् // 43 // गम-हन-जन-खन-घसः स्वरेऽनङि क्ङिति लुक् / 4 / 2 / 44 // 'एषामुपान्त्यस्याङ्वर्जे स्वरादौ क्छिति परे लुक् ' स्यात् / जग्मुः, जनुः, जज्ञे, चख्नुः, जक्षुः / स्वर इति किम् ? गम्यते / अनङीति किम् ? अगमत् / क्तिीति किम् ? गमनम् // 44 // नो व्यञ्जनस्याऽनुदितः / 4 / 2 / 45 // 'व्यञ्जनान्तस्याऽनुदितो धातोरुपान्त्यस्य नः क्ङिति परे लुक्' स्यात् / सस्तः, सनीनस्यते / व्यञ्जनस्येति किम् ? नीयते / अनुदित इति किम् ? नानन्द्यते // 45 // अञ्चोऽनायाम् / 4 / 2 / 46 // Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ... श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 221 'अनर्वार्थस्यैवाञ्चेरुपान्त्यस्य नो लुक् स्यात् / उदक्तमुदकं कूपात् / अनायामिति किम् ? अञ्चिता गुरवः // 46 // लङ्गि-कम्प्योरुपतापा-ऽङ्गविकृत्योः / 4 / 2 / 47 // 'अनयोरुपान्त्यनो यथासङ्ख्यमुपतापेऽङ्गविकारे चार्थे क्ङिति परे लुक्' स्यात् / विलगितः, विकपितः / उपतापाङ्गविकृत्योरिति किम् ? विलङ्गितः, विकम्पितः // 47 // भनेर्जी वा 4 // 2 // 48 // 'भोरुपान्त्यनो औ परे लुंग वा' स्यात् / अभाजि, अभजि // 48 // दंश-सञः शवि / 4 / 2 / 49 // 'अनयोरुपान्त्यनः शवि लुक्' स्यात् / दशति, सजति // 49 // . अकट-घिनोश्च रोः / 4 / 2 / 50 // 'रअरकटि घिनणि शवि चोपान्त्यनो लुक्' स्यात् / रजकः, रागी, रजति // 50 // णौ मृगरमणे / 4 / 2 / 51 // 'रजेरुपान्त्यनो णौ मृगाणां रमणेऽर्थे लुक्' स्यात् / रजयति मृगं व्याधः / मृगरमण इति किम् ? रजयति रजको वस्त्रम् // 51 // घत्रि भाव-करणे // 4 // 2 // 52 // 'रजेरुपान्त्यनो भावकरणार्थे घञि लुक्' स्यात् / रागः / भाव-करण इति किम् ? आधारे-रगः // 52 // स्यदो जवे / 4 / 2 / 53 // 'स्यन्देशि नलुग-वृद्ध्यभावी निपात्येते वेगेऽर्थे / गोस्यदः / जव इति किम् ? घृतस्यन्दः // 53 // Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ % 222 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् दशना-ऽवोदैधौद्म-प्रश्रय-हिमश्रथम् / 4 / 2 / 54 // 'एते नलुगादी कृते निपात्यन्ते' / दशनम्, अवोदः, एधः, ओमः, प्रश्रयः, हिमश्रथः // 54 // यमि-रमि-नमि-गमि-हनि-मनि-वनति-तनादेधुटि क्छिति / 4 / 2 / 55 // 'एषां तनादीनां च धुडादौ क्छिति लुक्' स्यात् / यतः, रत्वा, नतिः, गतः, हतः, मतः, वतिः, ततः,. क्षतः / धुटीति किम् ? यम्यते / क्तिीति किम् ? यन्ता // 55 // यपि / 4 / 256 // 'यम्यादीनां यपि लुक्' स्यात् / प्रहत्य, प्रमत्य, प्रवत्य, प्रतत्य, प्रसत्य // वा मः / 4 / 2157 // 'यम्यादीनां मान्तानां यपि वा लुक्' स्यात् / प्रयत्य, प्रयम्य; विरत्य, विरम्य; प्रणत्य, प्रणम्य; आगत्य, आगम्य // 57 / / गमां क्वौ / 4 / 2 / 58 // 'एषां गमादीनां यथादर्शनं क्वौ क्लिति लुक् स्यात् / जनङ्गत्, संयत्, परीतत्, सुमत्, सुवत् // 58 // न तिकि दीर्घश्च / 4 / 2 / 59 // "एषां तिकि लुग दीर्घश्च न' स्यात् / यन्तिः, रन्तिः, नन्तिः, गन्तिः, हन्तिः, मन्तिः, वन्तिः, तन्तिः // 59 // आः खनि-सनि-जनः / 4 / 2 / 60 // "एषां धुडादौ किति आः' स्यात् / खातः, सातः, जातः, जातिः / डितीत्येव- चक्रन्ति / धुटीत्येव- जनित्वा // 60 // . Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 223 सनि / 4 / 2 / 61 // 'एषां धुडादौ सनि आः' स्यात् / सिषासति / धुटीत्येव-सिसनिषति // ये नवा / 4 / 2 / 62 // 'एषां ये क्छिति आ वा' स्यात् / खायते, खन्यते; चाखायते, चजन्यतें; सायते, सन्यते; प्रजाय, प्रजन्य / क्तिीत्येव- सान्यम्, जन्यम् // 62 // - तनः क्ये / 4 / 2 / 63 // 'तनः क्ये आ वा' स्यात् / तायते, तन्यते / क्य इति किम् ? तन्तन्यते // 3 // तौ सनस्तिकि / 4 / 2 / 64 // सनस्तिकि तौ- 'लुगाती वा' स्याताम् / सतिः, सातिः, सन्तिः // 64 // वन्याङ् पञ्चमस्य / 4 / 2 / 65 // पञ्चमस्य वनि 'आङ्' स्यात् / विजावा, घ्यावा // 65 // अपाचायश्चिः क्तौ / 4 / 2 / 66 // अपपूर्वस्य चायतेः क्ती 'चिः' स्यात् / अपचितिः // 66 // ह्लादो हृद् क्तयोश्च / 4 / 2 / 67 // हादेः क्त-क्तवतोः क्तौ च 'हृद्' स्यात् / हन्नः, हनवान्, हृत्तिः // 67 / / ऋ-ल्वादेरेषां तो नोऽप्रः / 4 / 2 / 68 // पूवर्जाद् ऋदन्ताद् ल्वादिभ्यश्च परेषाम् ‘क्ति-क्त-क्तवतूनां तो नः' स्यात् / तीर्णिः, तीर्णः, तीर्णवान्; लूनिः, लूनः, लूनवान्; धूनिः, धूनः, धूनवान् / अप्र इति किम् ? पूर्तिः, पूर्तः, पूर्तवान् // 68 // रदादमूर्छ-मदः क्तयोर्दस्य च / 4 / 2 / 69 // मूर्छिमदिवर्जाद् रदन्तात् परस्य 'क्तयोस्तस्य तद्योगे धातुदश्च नः' स्यात् / Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 224 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् पूर्णः; पूर्णवान् भिन्नः, भिन्नवान् / अमूर्च्छमद इति किम् ? मूर्तः, मत्तः / रदात्तस्येति किम् ? चरितम्, मुदितम् // 69 // सूयत्यायोदितः / 4 / 270 // सूयत्यादिभ्यो नवभ्य ओदिद्भ्यश्च परस्य 'क्तयोस्तो नः' स्यात् / सूनः, सूनवान्: दूनः, दूनवान्; लग्नः, लग्नवान् // 70 // व्यानान्तस्थाऽऽतोऽख्या-ध्यः / 4 / 2 / 71 // ख्या-ध्यावर्जस्य धातोर्यद्व्यञ्जनं तस्मात् परा याऽन्तस्था, तस्याः परो य आः, तस्मात् परस्य 'क्तयोस्तो नः' स्यात् / स्त्यानः, स्त्यानवान् / व्यअन इति किम् ? यातः / अन्तस्था इति किम् ? स्नातः / आत इति किम् ? च्युतः / धातोर्व्यञ्जनेति किम् ? निर्यातः / अख्याध्य इति किम् ? ख्यातः, ध्यातः / आतः परस्येति किम् ? दरिद्रितः // 71 // पू-दिव्यचे शा-ऽयूता-ऽनपादाने / 4 / 2 / 72 // एभ्यो यथासङ्ख्यं नाशाद्यर्थेभ्यः परस्य 'क्तयोस्तो नः' स्यात् / पूना यवाः, आघूनः, समक्नौ पक्षौ / नाशा-ऽघूता-ऽनपादान इति किम् ? पूतम्, धूतम्, उदक्तं जलम् // 72 // सेासे कर्मकर्तरि / 4 / 2 / 73 // सेः परस्य 'क्तयोस्तो ग्रासे कर्मकर्तरि नः' स्यात् / सिनो ग्रासः स्वयमेव / कर्मकर्तरीति किम् ? सितो ग्रासो मैत्रेण // 73 // क्षेः क्षी चाऽध्यार्थे / 4 / 2 / 74 // घ्यणोऽर्थो भावकर्मणी, ततोऽन्यस्मिन्नर्थे 'क्तयोस्तः क्षेः परस्य नः स्यात्, तघोगे क्षेः क्षीश्च' / क्षीणः, क्षीणवान् मैत्रः / अध्यार्थे इति किम् ? क्षितमस्य // 7 // वाऽऽक्रोश-दैन्ये / 4 / 275 // Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 225 आक्रोशे दैन्ये च गम्ये क्षेः परस्याऽघ्यार्थे 'क्तयोस्तो न् वा स्यात्, तद्योगे क्षेः क्षीश्च' / क्षीणाऽऽयुः, क्षिताऽऽयुर्जाल्मः / क्षीणकः, क्षितकस्तपस्वी // 75 / / ऋ-ही-घ्रा-ध्रा-त्रोन्द-नुद-विन्तेर्वा / 4 / 276 // एभ्यः परस्य 'क्तयोस्तो न् वा' स्यात् / ऋणम्, ऋतम्; ह्रीणः, ह्रीतः; हीणवान्, हीतवान्; घ्राणः, घ्रातः, ध्राणः, ध्रातः; त्राणः, त्रातः; समुन्नः, समुत्तः; नुन्नः, नुत्तः; विन्नः, वित्तः // 76 // दु-गोरू च / 4 / 277 // दु-गुभ्यां परस्य 'क्तयोस्तो न् स्यात्, तद्योगे दुगोरुश्च' / दूनः, दूनवान्; गूनः, गूनवान् // 77 // क्षै-शुषि-पचो म-क-वम् / 4 / 2 / 78 // एभ्यः परस्य ‘क्तयोस्तो यथासङ्ख्यं म-क-वाः' स्युः / क्षामः, क्षामवान्; शुष्कः, शुष्कवान्; पक्वः, पक्ववान् // 78 // निर्वाणमवाते / 4 / 279 // . अवाते कर्तरि निपूर्वाद् वातेः परस्य 'क्तयोस्तो न् निपात्यते' / निर्वाणो मुनिः / अवात इति किम् ? निर्वातो वातः // 79 // ... अनुपसर्गाः क्षीबोल्लाघ-कृश-परिकृश-फुल्लोत्फुल्ल-संफुल्लाः / 4 / 2 / 80 // 'अनुपसर्गाः क्तान्ता एते निपात्यन्ते' / क्षीबः, उल्लाघः, कृशः, परिकृशः, फुल्लः, उत्फुल्लः, संफुल्लः / अनुपसर्गा इति किम् ? प्रक्षीबितः / / 80 // .. भित्तं शकलम् / 4 / 2 / 81 // 'भिदेः परस्य क्तस्य नत्वाभावो निपात्यते, शकलपर्यायश्चेत्' / भित्तं शकलमित्यर्थः / शकलमिति किम् ? भिन्नं भित्तम् // 8 // Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 226 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् वित्तं धन-प्रतीतम् / 4 / 2 / 82 // .. ‘विन्दतेः परस्य क्तस्य नत्वाभावो निपात्यते, धन-प्रतीतयोः पर्यायश्चेत्' / वित्तं धनम्, वित्तः प्रतीतः / धन-प्रतीतमिति किम् ? विनः // 82 // हु-धुटो हेधिः / 4 / 2 / 83 // ... हो(डन्ताच्च परस्य ‘हेधिः' स्यात् / जुहुधि, विद्धि // 83 // शासस-हनः शाध्येधि-जहि / 4 / 2 / 84 // शास्-अस्-हना ह्यन्तानां यथासंख्यम् 'शाध्येधि-जहयः' स्युः / शाधि, एधि, जहि // 84 // अतः प्रत्ययाल्लुक् / 4 / 2 / 85 // धातोः परो योऽदन्तः प्रत्ययस्ततः परस्य 'हे क्' स्यात् / दीव्य / अत इति किम् ? राध्नुहि / प्रत्ययादिति किम् ? पापहि // 85 // असंयोगादोः / 4 / 2 / 86 // असंयोगात् परो य उस्तदन्तात् प्रत्ययात् परस्य 'हे क्' स्यात् / सुनु / असंयोगादिति किम् ? अक्ष्णुहि / ओरिति किम् ? क्रीणीहि // 86 // वम्यविति वा / 4 / 2 / 87 // 'असंयोगात् परो य उस्तदन्तस्य प्रत्ययस्य लुग वा' स्यात्, वमादौ अविति परे / सुन्वः, सुनुवः; सुन्मः, सुनुमः / अवितीति किम् ? सुनोमि / असंयोगादित्येव- तक्ष्णुवः // 87 // __ कृगो यि च // 28 // 'कृगः परस्योतो यादौ वमि चाऽविति लुक्' स्यात् / कुर्युः, कुर्वः, कुर्मः // 8 // अतः शित्युत् / 4 / 2 / 89 // Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 227 शित्यविति य उस्तन्निमित्तस्य 'कृगोऽत उः' स्यात् / कुरु / अवितीत्येवकरोति // 89 // . श्ना-ऽस्त्योर्मुक् / 4 / 2 / 90 // 'नस्य अस्तेश्चाऽतः शित्यविति लुक्' स्यात् / रुन्धः, स्तः / अत इत्येवआस्ताम् / / 90 // वा द्विषाऽऽतोऽनः पुस / 4 / 2 / 91 // द्विष आदन्ताच्च परस्य 'शितोऽवितोऽनः स्थाने पुस् वा' स्यात् / अद्विषुः, अद्विषन्ः अयुः, अयान् // 91 // सिज-विदोऽभुवः / 4 / 2 / 92 // सिच्प्रत्ययाद् विदश्च धातोः परस्य 'अनः पुस् स्यात्, न चेद् भुवः परः सिच् स्यात्' / अकार्षुः अविदुः / अभुव इति किम् ? अभूवन् // 12 // युक्त-जक्षपञ्चतः / 4 / 2 / 93 // कृतद्वित्वाद् जक्षपञ्चकाच परस्य 'शितोऽवितोऽनः पुस्' स्यात् / अजुहवुः, अजक्षुः, अदरिद्रुः, अजागरुः, अचकासुः, अशासुः // 93 // अन्तो नो लुक् / 4 / 2 / 94 // द्युक्त-जक्षपञ्चकात् परस्य 'शितोऽवितोऽन्तो नो लुक्' स्यात् / जुह्वति, जुह्वत्: जक्षति, जक्षत्; दरिद्रति, दरिद्रत् // 94 // शौ वा / 4 / 2 / 95 // युक्त जक्षपञ्चकात् परस्या'-ऽन्तो नः शिविषये लुग् वा' स्यात् / ददति ददन्ति कुलानि; जक्षति, जक्षन्ति; दरिद्रति, दरिद्रन्ति // 95 // श्नश्चाऽऽतः / 4 / 2 / 96 // द्युक्त जक्षपञ्चतः श्नच 'शित्यवित्यातो लुक्' स्यात् / मिमते, दरिद्रति, Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 228 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् क्रीणन्ति / अवितीत्येव- अजहाम्, अक्रीणाम् / / 16 / / एषामीळननेऽदः / 4 / 2 / 97 // द्वयुक्त-जक्षपञ्चतः श्नश्चा'ऽऽतः शित्यविति व्यञ्जनादावीः स्यात्, न तु दासंज्ञस्य' / मिमीते, लुनीतः / व्यञ्जन इति किम् ? मिमते / अद इति किम् ? दत्तः, धत्तः // 97 // इर्दरिद्रः / 4 / 2 / 98 // 'दरिद्रो व्यञ्जनादौ शित्यवित्यात इ.' स्यात् / दरिद्रितः / व्यञ्जन इत्येवदरिद्रति // 98 // भियो नवा / 4 / 2 / 99 // भियो व्यञ्जनादौ शित्यविति 'इर्वा' स्यात् / बिभितः, विभीतः // 19 // हाकः / 4 / 2 / 100 // हाको व्यञ्जनादौ शित्यविति 'आत इर्वा' स्यात् / जहितः, जहीतः // आ च हौ / 4 / 2 / 101 // हाको हौ ‘आत् इश्व वा' स्यात् / जहाहि, जहिहि, जहीहि // 101 // यि लुक् / 4 / 2 / 102 // यादौ शिति हाक 'आ लुक्' स्यात् / जह्यात् / / 102 // ओतः श्ये / 4 / 2 / 103 // 'धातोरोतः श्ये लुक्' स्यात् / अवद्यति / श्य इति किम् ? गौरिवाऽऽचरति गवति / / 103 // जा ज्ञा-जनोऽत्यादौ / 4 / 2 / 104 // ज्ञा-जनोः शिति 'जाः' स्यात्, न त्वनन्तरे तिवादौ / जानाति, जायते / अत्यादाविति किम् ? जाज्ञाति, जान्ति // 104 // * Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 229 - प्वादेर्हस्वः / 4 / 2 / 105 // 'वादेः शिति अत्यादौ ह्रस्वः' स्यात् / पुनाति, लुनाति / प्वादेरिति किम् ? वीणाति // 105 // गमिषद्यमश्छः / 4 / 2 / 106 // एषां शित्यत्यादी ‘छः' स्यात् / गच्छति, इच्छति, यच्छति, आयच्छते / अत्यादाविति किम् ? जङ्गन्ति / / 106 // वेगे सर्तेर्धा / 4 / 2 / 107 // सर्तेवेंगे गम्ये शिति 'धाव्' स्यात्, अत्यादौ / धावति / वेग इति किम् ? धर्ममनुसरति // 107 // श्रौति-कृवु-धिवु-पा-घ्रा-मा-स्था-ना-दाम-दृश्यति-शदसदः शृ-कृ-धि-पिब-जिघ्र-धम-तिष्ठ-मन-यच्छ-पश्यर्छ शीय-सीदम् / 4 / 2 / 108 // एषां शित्यत्यादी यथासंख्यम् ‘श्रादयः' स्युः / शृणु, कृणु, धिनु, पिब, जिघ्र, धम, तिष्ठ, मन, यच्छ, पश्य, ऋच्छ, शीयते, सीद // 108 // क्रमो दीर्घः परस्मै / 4 / 2 / 109 // क्रमः परस्मैपदनिमित्ते शिति 'दीर्घः' स्यात्, अत्यादौ / काम, क्राम्यति / परस्मैपद इति किम् ? आक्रमते सूर्यः // 109 // 'ष्ठिवू-कुम्वाऽऽचमः / 4 / 2 / 110 // एषां शित्यत्यादौ 'दीर्घः' स्यात् / ष्ठीव, काम, आचाम / आङिति किम् ? धम // 110 // शम्सप्तकस्य श्ये / 4 / 2 / 111 // शमादीनां सप्तानां श्ये 'दीर्घः' स्यात् / शाम्य, दाम्य, ताम्य, श्राम्य, भ्राम्य, Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 230 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् क्षाम्य, माद्य / श्ये इति किम् ? भ्रमति // 111 // ष्ठिव-सिवोऽनटि वा / 4 / 2 / 112 // ष्ठिव-सिवोरनटि 'दीर्घो वा' स्यात् / निष्ठीवनम्, निष्ठेवनम्: सीवनम्, सेवनम् // 112 // म-व्यस्याः / 4 / 2 / 113 // धातोर्विहिते मादौ वादी चा-'ऽत. आ दीर्घः' स्यात् / पचामि, पचावः, पचामः // 113 // - अनतोऽन्तोऽदात्मने / 4 / 2 / 114 // अनतः परस्याऽऽत्मनेपदस्थस्या'ऽन्तोऽत्' स्यात् / चिन्वते / आत्मनेपद इति किम् ? चिन्वन्ति / अनत इति किम् ? पचन्ते // 114 // . शीङो रत् / 4 / 2 / 115 // ... शीङः परस्याऽऽत्मनेपदस्थस्या'ऽन्तो रत् स्यात् / शेरते // 115 // वेत्तेर्नवा / 4 / 2 / 116 // वेत्तेः परस्यात्मनेपदस्थस्या 'ऽन्तो रद् वा' स्यात् / संविद्रते, संविदते // तिवां णवः परस्मै / 4 / 2 / 117 // 'वेत्तेः परेषां परस्मैपदानां तिवादीनां परस्मैपदान्येव णवादयो नव यथासंख्यं वा' स्युः / वेद, विदतुः, विदुः; वेत्थ, विदथुः, विद; वेद, विद्व, विद्म / पक्षे- वेत्तीत्यादि / / 117 // ब्रूगः पञ्चानां पञ्चाऽऽहश्च / 4 / 2 / 118 // 'ब्रूगः परेषां तिवादीनां पञ्चानां यथासंख्यं पञ्च णवादयो वा स्युः, तद्योगे ब्रूग आहश्च' / आह, आहतुः, आहुः, आत्थ, आहथुः / पक्षेब्रवीतीत्यादि // 118 // Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 231 आशिषि तु-ह्योस्तात / 4 / 2 / 119 // 'आशीरर्थयोस्तुह्योस्तातङ् वा' स्यात् / जीवतात्, जीवतु भवान्; जीवतात्, जीव त्वम् नन्दतात्, नन्द त्वम् / आशिषीति किम् ? जीवतु // आतो णव औः / 4 / 2 / 120 // आतः परस्य ‘णव औः' स्यात् / पपौ // 120 // आतामाते-आथामाथे आदिः / 4 / 2 / 121 // आत् परेषामेषाम् ‘आत इ.' स्यात् / पचेताम्, पचेते, पचेथाम्, पचेथे / आदिति किम् ? मिमाताम् // 121 // यः सप्तम्याः / 4 / 2 / 122 // आत् परस्य ‘सप्तम्या याशब्दस्येः' स्यात् / पचेत्, पचेः // 122 // याम्-युसोरियमियुसौ / 4 / 2 / 123 // 'आत् परयोर्याम्-युसोर्यथासंख्यमियमियुसौ' स्याताम् / पचेयम्, पचेयुः // [123 // इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितायां सिद्धहेमचन्द्राभिधानस्वोपज्ञशब्दानुशासन लघुवृत्ती चतुर्थस्याध्यायस्य द्वितीयः पादः समाप्तः // 4 // 2 // श्रीभीमपृतनोत्खात- रजोभिरिभूभुजाम् / अहो ! चित्रमवर्धन्त, ललाटे जलबिन्दवः // 14 // तृतीयः पादः] ... नामिनो गुणोऽक्छिति / 4 / 3 / 1 // नाम्यन्तस्य धातोः क्विर्जे प्रत्यये 'गुणः' स्यात् / चेता / अक्ङितीति किम् ? युतः // 1 // Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 232 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् उ-श्नोः / 4 / 3 / 2 // धातोरुश्नोः प्रत्यययोरक्ङिति 'गुणः' स्यात् / तनोति, सुनोति // 2 // पुस्-पौ / 4 / 3 / 3 // नाम्यन्तस्य धातोः पुसि पौ च 'गुणः' स्यात् / ऐयरुः, अर्पयति // 3 // लघोरुपान्त्यस्य / 4 / 3 / 4 // . धातोरुपान्त्यस्य नामिनो लघोरक्ङिति 'गुणः' स्यात् / भेत्ता / लघोरिति किम् ? ईहते / उपान्त्यस्येति किम् ? भिनत्ति // 4 // मिदः श्ये // 4 // 35 // मिदेरुपान्त्यस्य श्ये 'गुणः' स्यात् / मेद्यति // 5 // जागुः किति / 4 / 3 / 6 // जागुः किति 'गुणः' स्यात् / जागरितः // 6 // __ ऋवर्ण-दृशोऽङि // 4 // 37 // ऋवर्णान्तानां दृशेश्चाऽङि परे ‘गुणः' स्यात् / आरत्, असरत्, अजरत्, अदर्शत् // 7 // . स्कृच्छ्रतोऽकि परोक्षायाम् // 4 // 38 // स्कृच्छोः ऋदन्तानां च नामिनः परोक्षायाम् 'गुणः' स्यात्, न तु कोपलक्षितायां क्वसु-कानोः / सञ्चस्करुः, आनछुः, तेरुः / अकीति किम् ? सञ्चस्कृवान् // 8 // संयोगादृदर्तेः / 4 / 3 / 9 // संयोगात् परो य ऋत्, तदन्तस्याऽर्तेश्च परोक्षायामकि 'गुणः' स्यात् / सस्मरुः, सस्वरुः, आरुः / संयोगादिति किम् ? चक्रुः // 9 // क्य-यङाऽऽशीर्ये / 4 / 3 // 10 // Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 233 संयोगाद् य ऋत्, तदन्तस्याऽर्तेश्च क्ये यङि आशीर्ये च 'गुणः' स्यात् / स्मर्यते, स्वर्यते, अर्यते; सास्मर्यते, सास्वर्यते, अरार्यते; स्मर्यात्, अर्यात् // न वृद्धिश्चाऽविति क्ङिल्लोपे / 4 / 3 / 11 // अविति प्रत्यये यः कितो ङितश्च लोपस्तस्मिन् सति 'गुणो वृद्धिश्च न' स्यात् / चेच्यः, मरीमृजः // 11 // भवतेः सिजुलुपि / 4 / 3 // 12 // भुवः सिज्लुपि 'गुणो न' स्यात् / अभूत् / सिज्लुपीति किम् ? व्यत्यभविष्ट // 12 // सूतेः पञ्चम्याम् / 4 / 3 / 13 // सूतेः पञ्चम्याम् ‘गुणो न' स्यात् / सुवै // 13 // ड्युक्तोपान्त्यस्य शिति स्वरे / 4 / 3 / 14 // युक्तस्य धातोरुपान्त्यस्य नामिनः स्वरादौ शिति ‘गुणो न' स्यात् / नेनिजानि / उपान्त्यस्येति किम् ? जुहवानि / शितीति किम् ? निनेज // ह्निणोरप्विति व-यौ / 4 / 3 // 15 // होरिणश्च नामिनः स्वरादावपिति अविति च शिति यथासंख्यम् 'व्यौ' स्याताम् / जुह्वति, यन्तु / अप्वितीति किम् ? अजुहवुः, अयानि // 15 // इको वा / 4 / 3 / 16 // इकः स्वरादावविति शिति ‘य् वा' स्यात् / अधियन्ति, अधीयन्ति // 16 // कुटादेर्डिद्वदणित / 4 / 3.17 // कुटादेः परो शिद्वर्जप्रत्ययो 'ङिद्वत्' स्यात् / कुटिता, गुता / अणिदिति किम् ? उत्कोटः, उच्चुकोट // 17 // विजेरिट् / 4 / 3 / 18 // Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 234 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 'विजेरिट ङिद्वत्' स्यात् / उद्विजिता / इडिति किम् ? उद्वेजनम् // 18 // वोर्णोः / 4 / 3 / 19 // 'ऊोरिड् वा ङिद्वत्' स्यात् / प्रोणुविता, प्रोणविता // 19 // - शिदवित् / 4 / 3 // 20 // 'धातोर्विद्वर्जः शित् प्रत्ययो द्वित्' स्यात् / इतः, क्रीणाति / अविदिति किम् ? एति / शिदिति किम् ? चेषीष्ट // 20 // इन्थ्यसंयोगात् परोक्षा किद्वत् / 4 / 3 / 21 // इन्धेरसंयोगान्ताच्च परा ‘अवित्परोक्षा किद्वत्' स्यात् / समीधे, निन्युः / इन्ध्यसंयोगादिति किम् ? सनंसे // 21 // . स्व नवा 4 // 3 // 22 // स्वजेः ‘परोक्षा वा किद्वत्' स्यात् / सस्वजे, सस्वजे // 22 // ज-नशो न्युपान्त्ये तादिः क्त्वा / 4 / 3 / 23 // जन्तात् नशेश्च न्युपान्त्ये सति 'तादिः क्त्वा किद्वद्वा' स्यात् / रक्त्वा, रङ्क्त्वा ; नष्ट्वा, नंष्ट्वा / नीति किम् ? भुक्त्वा / उपान्त्य इति किम् ? निक्त्वा / तादिरिति किम् ? विभज्य // 23 // ऋत्-तृष-मृष-कृश-वञ्च-लुञ्च-थ-फः सेट् // 4 // 3 // 24 // न्युपान्त्ये सत्येभ्यो ‘वा क्त्वा सेट् किद्वत्' स्यात् / ऋतित्वा, अर्तित्वा; तृषित्वा, तर्षित्वा; मृषित्वा, मर्षित्वा; कृशित्वा, कर्शित्वा; वचित्वा, वञ्चित्वा; लुचित्वा, लुञ्चित्वा; श्रथित्वा, श्रन्थित्वा; गुफित्वा, गुम्फित्वा / न्युपान्त्य इति किम् ? कोथित्वा, रेफित्वा / सेडिति किम् ? वक्त्वा // 24 // वौ व्यञ्जनाऽऽदेः सन् चाऽय-वः // 4 // 3 // 25 // वौ उदित्युपान्त्ये सति व्यअनादेर्धातोः परः ‘क्त्वा सन् च सेटौ किद्वद्वा स्यातां Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 235 न तु य्वन्तात्' / घुतित्वां, घोतित्वा; दिद्युतिषते, दिद्योतिषते; लिखित्वा, लेखित्वा; लिलिखिषति, लिलेखिषति / वाविति किम् ? वर्त्तित्वा / व्यञ्जनादेरिति किम् ? उषित्वा / अय्व इति किम् ? देवित्वा // 25 // उति शवोऽङ्ग्यः क्तौ भावाऽऽरम्भे / 4 / 3 / 26 // उति उपान्त्ये सति शवहेभ्योऽदादिभ्यश्च परौ भावाऽऽरम्भयोः ‘क्त-क्तवतू सेटी वा किद्वत्' स्याताम् / कुचितम्, कोचितमनेन; प्रकुचितः, प्रकोचितः; प्रकुचितवान्, प्रकोचितवान् / रुदितम्, रोदितमेभिः; प्ररुदितः, प्ररोदितः; प्ररुदितवान् प्ररोदितवान् / उतीति किम् ? श्वितितमेभिः / शवर्हाट्य इति किम् ? प्रगुधितः / भावाऽऽरम्भ इति किम् ? रुचितः // 26 // न डीङ्-शीङ्-पू-धृषि-विदि-स्विदि-मिदः // 4 // 3 // 27 // एभ्यः परौ 'सेटौ क्त-क्तवतू किद्वन्न' स्याताम् / डयितः, डयितवान्; शयितः, शयितवान्, पवितः, पवितवान्; प्रधर्षितः, प्रधर्षितवान्; प्रक्ष्वेदितः, प्रक्ष्वेदितवान्। प्रस्वेदितः, प्रस्वेदितवान् प्रमेदितः, प्रमेदितवान् / सेटावित्येवडीनः, डीनवान् // 27 // मृषः क्षान्तौ // 4 // 28 // क्षमाऽर्थान्मृषः 'सेटी क्त-क्तवतू किद्वन्न' स्याताम् / मर्षितः, मर्षितवान् / क्षान्ताविति किम् ? अपमृषितं वाक्यम् // 28 // क्त्वा // 4 // 3 // 29 // 'धातोः क्त्वा सेट् किद्वन्न' स्यात् / देवित्वा / सेडित्येव- कृत्वा // 29 // ___ स्कन्द-स्यन्दः // 4 // 3 // 30 // आभ्याम् ‘क्त्वा किद्वन्न' स्यात् / स्कन्त्वा, स्यन्त्वा // 30 // Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 236 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् क्षुध-क्लिश-कुष-गुध-मृड-मृद-वद-वसः / 4 // 3 // 31 // एभ्यः ‘क्त्वा सेट् किद्वत्' स्यात् / क्षुधित्वा, क्लिशित्वा, कुषित्वा, गुधित्वा, मृडित्वा, मृदित्वा, उदित्वा, उषित्वा // 31 // . रुद-विद-मुष-ग्रह-स्वप-प्रच्छः सन् च / 4 / 3 / 32 // एभ्यः क्त्वा सन् च किद्वत्' स्यात् / रुदित्वा, रुरुदिषति; विदित्वा, विविदिषति; मुषित्वा, मुमुषिषति; गृहीत्वा, जिघृक्षति, सुप्त्वा, सुषुप्सति; पृष्ट्वा, पिपृच्छिषति // 32 // . नामिनोऽनिट् // 4 // 3 // 33 // 'नाम्यन्ताद्धातोरनिट् सन् किद्वत्' स्यात् / चिचीषति / अनिडिति किम् ? शिशयिषते // 33 // उपान्त्ये 4 // 3 // 34 // नामिन्युपान्त्ये सति 'धातोः सन् अनिट् किद्वत्' स्यात् / बिभित्सति // 34 // सिजाशिषावात्मने / 4 / 3 // 35 // नामिन्युपान्त्ये सति * धातोरात्मनेपदविषयावनिटी 'सिजाशिषी किद्वत्' स्याताम् / अभित्त, भित्सीष्ट / आत्मने इति किम् ? अनाक्षीत् // 35 // ऋवर्णात् // 4 // 3 // 36 // . ऋवर्णान्ताद् धातोरनिटावात्मनेपदविषयौ 'सिजाशिषौ किद्वत्' स्याताम् / अकृत, कृषीष्ट; अतीर्ट, तीर्षीष्ट // 36 // गमो वा // 4 // 3 // 37 // गमेरात्मनेपदविषयी 'सिजाशिषौ किद्वद्वा' स्याताम् / समगत, समगस्त; संगसीष्ट, संगसीष्ट // 37 // हनः सिच् / 4 / 3 // 3 // Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 237 हन्तेरात्मनेपदविषयः 'सिच् किद्वत्' स्यात् / आहत // 38 // यमः सूचने / 4 / 3 / 39 // सूचनार्थाद् यमेरात्मनेपदविषयः 'सिच् किद्वत्' स्यात् / उदायत / सूचन इति किम् ? आयस्त रज्जुम् // 39 // वा स्वीकृतौ / 4 / 3 / 40 // स्वीकारार्थाद् यमेरात्मनेपदविषयः 'सिच् किद्वद्वा' स्यात् / उपायत, उपायंस्त महास्त्राणि / स्वीकृताविति किम् ? आयंस्त पाणिम् // 40 // इश्च स्था-दः / 4 / 3 / 41 // स्थो दासंज्ञकाच्चाऽऽत्मनेपदविषयः 'सिच् किद्वत् स्यात्, तद्योगे स्थादोरिश्च' / उपास्थित, आदित, व्यधित // 41 // मृजोऽस्य वृद्धिः // 4 // 3 // 42 // 'मृजेर्गुणे सति अस्य वृद्धिः' स्यात् / मार्टि / अत इति किम् ? मृष्टः // ऋतः स्वरे वा / 4 / 3 / 43 // .. मृजे ऋतः स्वरादौ प्रत्यये 'वृद्धिर्वा' स्यात् / परिमार्जन्ति, परिमृजन्ति ऋत इति किम् ? ममार्ज / स्वर इति किम् ? मृज्यः // 43 // सिचि परस्मै समानस्याऽङिति / 4 / 3 // 44 // समानान्तस्य धातोः परस्मैपदविषये सिच्यङिति 'वृद्धिः' स्यात् / अचैषीत् / परस्मै इति किम् ? अच्योष्ट / समानस्येति किम् ? अगवीत् / अङितीति किम् ? न्यनुवीत् // 44 // व्यञ्जनानामनिटि / 4 / 3 / 45 // व्यञ्जनान्तस्य धातोः परस्मैपदविषये अनिटि सिचि समानस्य ‘वृद्धिः' स्यात् / अराङ्क्षीत् / समानस्येत्येव - उदवोढाम् / अनिटीति किम् ? Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 238 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् अतक्षीत् // 45 // ___ वोर्गुगः सेटि / 4 // 3 // 46 // ऊण्र्णोः सेटि सिचि परस्मैपदे 'वृद्धिर्वा' स्यात् / प्रौर्णावीत्, प्रौर्णवीत्, प्रौण्णुवीत् // 46 // ___ व्यअनादेोपान्त्यस्याऽतः / 4 / 3 / 47 // व्यञ्जनादेर्धातोरुपान्त्यस्याऽतः सेटि सिचि परस्मैपदे 'वृद्धिर्वा' स्यात् / अकाणीत्, अकणीत् / व्यञ्जनादेरिति किम् ? मा भवान् अटीत् / उपान्त्यस्येति किम् ? अवधीत् / अत इति किम् ? अदेवीत् / सेटीत्येव - अधाक्षीत् // 47 // . वद-व्रज-लः / 4 / 3 / 48 // .. वद-व्रजोर्लन्त-रन्तयोश्योपान्त्यस्याऽस्य परस्मैपदे सेटि सिचि ‘वृद्धिः' स्यात् / अवादीत्, अव्राजीत्, अज्वालीत्, अक्षारीत् // 48 // . न श्वि-जागृ-शस-क्षणम्येदितः / 4 / 3 / 49 // एषां म्यन्तानाम् एदितां च परस्मैपदे सेटि सिचि ‘वृद्धिर्न' स्यात् / अश्वयीत्, अजागरीत्, अशसीत्, अक्षणीत्, अग्रहीत्, अवमीत्, अहयीत्, अकगीत् // 49 // णिति / 4 / 3 / 50 // . जिति णिति च परे धातोरुपान्त्यस्याऽतो 'वृद्धिः' स्यात् / पाकः, पपाच // नामिनोऽकलि-हलेः // 4 // 3 // 51 // नाम्यन्तस्य धातो म्नो वा कलि-हलिवर्जस्य णिति 'वृद्धिः' स्यात् / अचायि, कारकः, अपीपटत् / कलि-हलिवर्जनं किम् ? अचकलत्, अजहलत् // जागुर्जि-णवि // 4 // 3 // 52 // . जागुर्जी णव्येव च णिति 'वृद्धिः' स्यात् / अजागारि, जजागार / त्रिण Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् वीति किम् ? जागरयति // 52 // - आत ऐः कृञौ / 4 / 3 / 53 // आदन्तस्य धातोफिति कृति औ च ‘ऐ:' स्यात् / दायः, दायकः, अदायि / कृदिति किम् ? ददौ // 53 // न जन-बधः // 4 // 3 // 54 // अनयोः कृति णिति औ च ‘वृद्धिर्न' स्यात् / प्रजनः, जन्यः, अजनि; बधः, बध्यः, अबधि // 54 // मोऽकमि-यमि-रमि-नमि-गमि-वमा-ऽऽचमः / 4 / 3 / 55 // मन्तस्य धातोः कम्यादिवर्जस्य णिति कृति जौ च ‘वृद्धिर्न' स्यात् / शमः, शमकः, अशमि / कम्यादिवर्जनं किम् ? कामः, कामुकः, अकामि; यामः, रामः, नामः, अगामि, वामः, आचामकः // 55 // विश्रमेर्वा / 4 / 3 / 56 // विश्रमेणिति कृति जौ च 'वृद्धिर्वा' स्यात् / विश्रामः, विश्रमः; विश्रामकः, विश्रमकः; व्यश्रामि, व्यश्रमि // 56 // उद्यमोपरमौ / 4 / 3 / 57 // उदुपाभ्यां यमि-रम्योपजि 'वृद्ध्यभावो निपात्यते' / उद्यमः, उपरमः // 57 // .णिद्वाऽन्त्यो णव् / 4 / 3 / 58 // 'परोक्षाया अन्त्यो णव् णिद्वा' स्यात् / अहं चिचय, चिचाय; चुकुट, चुकोट / अन्त्य इति किम् ? स पपाच // 58 // .. उत और्विति व्यानेऽद्वेः / 4 / 3 / 59 // अद्युक्तस्योदन्तस्य धातोर्व्यञ्जनादौ विति 'औः' स्यात् / यौति / उत इति किम् ? एति / धातोरित्येव- सुनोति / वितीति किम् ? रुतः / व्यञ्जन इति re Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 240 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् किम् ? स्तवानि / अद्वेरिति किम् ? जुहोति // 59 // वोर्णोः / 4 / 3 / 60 // ऊर्णोरद्वयुक्तस्य व्यञ्जनादौ विति ‘और्वा" स्यात् / प्रोण्#ति, प्रोर्णोति / अद्वेरित्येव- प्रोर्णोनोति // 60 // न दि-स्योः / 4 / 3 / 61 // 'ऊोर्दि-स्योः परयोरौन' स्यात् / प्रौर्णोत्, प्रौर्णोः // 61 // तृहः श्नादीत् / 4 / 3 / 62 // तृहेः श्नात् परो व्यञ्जनादौ विति परे 'ईत्' स्यात् / तृणेढि // 62 // ब्रूतः परादिः / 4 / 3 / 63 // ब्रुव ऊतः परो व्यञ्जनादौ विति ‘परादिरीत्' स्यात् / ब्रवीति / ऊत इति किम् ? आत्थ // 63 // . यङ्-तु-रु-स्तोर्बहुलम् / 4 / 3 / 64 // यङ्लुबन्तात् तु-रु-स्तुभ्यश्च परो व्यञ्जनादौ विति 'ईद् बहुलं परादिः' स्यात् / क्वचिद्वा- बोभवीति, बोभोति; क्वचिन्न - वर्वति; तवीति, तौति; रवीति, रौति; स्तवीति, स्तौति / अद्वेरित्येव- तुतोथ, तुष्टोथ // 64 // सः सिजस्तेर्दि-स्योः // 4 // 3 // 65 // सिजन्ताद् धातोरस्तेश्च सन्तात् परो दि-स्योः परयोः ‘परादिरीत्' स्यात् / अकार्षीत्, अकार्षीः; आसीत्, आसीः / स इति किम् ? अदात् // 65 // पिबैति-दा-भू-स्थः सिचो लुप् परस्मै न चेट् / 4 / 3 / 66 // एभ्यः परस्य 'सिचः परस्मैपदे लुप् स्यात्, लुब्योगे न चेट्' / अपात्, अगात, अध्यगात्, अदात्, अधात्, अभूत्, अस्थात् / परस्मै इति किम् ? अपासत पयांसि तैः // 66 // Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 241 . धे-घ्रा-शा-छा-सो वा / 4 / 3 / 67 // एभ्यः परस्य 'सिचः परस्मैपदे लुब् वा स्यात्, लुब्योगे च नेट्' / अधात्, अधासीत्, अघ्रात्, अघ्रासीत्; अशात्; अशासीत्; अच्छात्, अच्छासीत्; असात्, असासीत् // 67 // तन्भ्यो वा त-थासि न-णोश्च / 4 / 3 / 68 // तनादिभ्यः परस्य 'सिचस्ते थासि च लुब् वा स्यात्, तधोगे न्- णोश्च लुप, न चेट्' / अतत, अतनिष्ट; अतथाः, अतनिष्ठाः; असत, असनिष्ट; असथाः, असनिष्ठाः // 6 // सनस्तत्राऽऽवा / 4 / 3 / 69 // सनो लुपि सत्याम् ‘आ वा' स्यात् / असात, असत; असाथाः, असथाः / तत्रेति किम् ? असनिष्ट // 69 // धुड्-इस्वाल्लुगनिटस्त-थोः // 4 // 370 // धुडन्तात् ह्रस्वान्ताच धातोः परस्या-'ऽनिटः सिचस्तादी थादौ च लुक्' स्यात् / अभित्त, अभित्थाः, अकृत, अकृथाः / अनिट इति किम् ? व्यद्योतिष्ट // 7 // . इट ईति / 4 / 3 / 71 // इट: परस्य "सिच ईति लुक्' स्यात् / अलावीत् / इट इति किम् ? अकार्षीत् / ईतीति किम् ? अभणिषम् // 71 // सो धि वा / 4 / 372 // धातोर्धादी प्रत्यये 'सो. लुग् वा' स्यात् / चकाधि, चकाद्धि; अलविध्वम्, अलविड्वम् // 72 // अस्तेः सि हस्त्वेति // 4 // 3 // 73 // Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 242 - श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 'अस्तेः सः सादौ प्रत्यये लुक् स्यात्, एति तु सो हः' / असि, व्यतिसे, व्यतिहे, भावयामाहे // 73 // दुह-दिह-लिह-गुहो दन्त्यात्मने वा सकः / 4 / 3 / 74 // एभ्यः परस्य ‘सको दन्त्यादी आत्मनेपदे लुग् वा' स्यात् / अदुग्ध, अधुक्षत; अदिग्ध, अधिक्षत; अलीढाः, अलिक्षथाः; न्यगुहृहि, न्यघुक्षावहि / दन्त्य इति किम् ? अधुक्षामहि // 7 // स्वरेऽतः / 4375 // 'सकोऽस्य स्वरादौ प्रत्यये लुक्, स्यात् / अधुक्षाताम् // 75 // दरिद्रोऽद्यतन्यां वा / 4 / 3 / 76 // 'दरिद्रोऽद्यतन्यां विषये लुग् वा' स्यात् / अदरिद्रीत्, अदरिद्रासीत् // 7 // अशित्यस्सन-णक-णकानटि / 4 / 3177 // सादिसन्नादिवर्जे अशिति विषये 'दरिद्रो लुक्' स्यात् / दुर्दरिद्रम् / अशितीति किम् ? दरिद्राति / सन्नादिवर्जनं किम् ? दिदरिद्रासति, दरिद्रायको याति, दरिद्रायकः, दरिद्राणम् // 77 // व्यञ्जनाद् देः सश्च दः / 4 / 3 / 78 // धातोर्व्यञ्जनान्तात् परस्य 'देर्लुक् स्याद्, यथासम्भवं धातोः सो दश्च' / अचकात्, अजागः, अबिभः, अन्वशात् / व्यञ्जनादिति किम् ? अयात् // सेः स-द-धां च रुर्वा // 4 // 3 // 79 // व्यञ्जनान्ताद् धातोः परस्य ‘सेलृक् स्यात्, यथासम्भवं स-द-धां वा रुश्च' / अचकास्त्वम्, अचकात् त्वम् अभिनस्त्वम्, अभिनत् त्वम्; अरुणस्त्वम्, अरुणत् त्वम् // 79 // योऽशिति / 4 / 3 / 80 // Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 243 धातोर्व्यञ्जनान्तात् परस्य 'योऽशिति प्रत्यये लुक्' स्यात् / जङ्गमिता / व्यञ्जनादित्येव- लोलूयिता / अशितीति किम् ? बेभिद्यते // 8 // क्यो वा / 4 / 3 / 81 // धातोर्व्यञ्जनान्तात् परस्य 'क्योऽशिति प्रत्यये लुग् वा' स्यात् / समिधिष्यति, समिध्यिष्यति; दृषदिष्यते, दृषधिष्यते // 8 // . अतः / 4 / 3182 // अदन्ताद् धातोर्विहितेऽशिति प्रत्यये 'धातोरतो लुक्' स्यात् / कथयति / विहितविशेषणं किम् ? गतः // 82 // णेरनिटि / 4 / 3 / 83 // . अनियशिति प्रत्यये ‘णेर्लुक्'. स्यात् / अततक्षत्, चेतनः / अनिटीति किम् ? कारयिता // 8 // . . सेटूक्तयोः / 4 / 3 / 84 // सेटोः क्तयोः परयो-गैर्लुक्' स्यात् / कारितः, गणितवान् // 84 // आमन्ताऽऽल्वाऽऽय्येत्नावय / 4 / 3 / 85 / एषु परेषु ‘णेरय' स्यात् / कारयाञ्चकार, गण्डयन्तः, स्पृहयालुः, महयाय्यः, स्तनयिनुः // 85 // लघोर्यपि / 4 / 3 / 86 // लघोः परस्य ‘णेर्यपि अय् स्यात् / प्रशमय्य / लघोरिति किम् ? प्रतिपाद्य // 86 // वाऽऽप्नोः / 4 / 3 / 87 // आप्नोः परस्य ‘णेर्यप्यय वा' स्यात् / प्रापय्य, प्राप्य / आप्नोरिति किम् ? अध्याय // 87 // Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Saamananews 244 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् मेडो वा मित् / 4 / 3 / 88 // 'मेङो यपि मिद् वा' स्यात् / अपमित्य, अपमाय // 88 / / क्षेः क्षीः 4 / 3 / 89 // 'क्षेर्यपि क्षीः' स्यात् / प्रक्षीय // 89 / / क्षय्य-जय्यौ शक्तौ / 4 / 3 / 90 // 'क्षि-ज्योरन्तस्य शक्तौ गम्यायां ये प्रत्ययेऽय् निपात्यते' / क्षय्यो व्याधिः, जय्यः शत्रुः / शक्ताविति किम् ? क्षेयं पापम्, जेयं मनः // 90 // क्रय्यः क्रयार्थे / 4 / 3191 // 'क्रियोऽन्तस्य ये प्रत्ययेऽय् निपात्यते, क्रयाय चेत् प्रसारितोऽर्थः' / क्रय्यो गौः / क्रयार्थ इति किम् ? क्रेयं ते धान्यं न चास्ति प्रसारितम् // 91 / / सस्तः सि / 4 / 3 / 92 // धातोः सन्तस्याऽशिति सादौ प्रत्यये विषयभूते ‘तः' स्यात् / वत्स्यति / स इति किम् ? यक्षीष्ट / सीति किम् ? वसिषीष्ट / / 92 / / दीय दीङः क्ङिति स्वरे / 4 / 3 / 93 / / दीङः क्ङिति अशिति स्वरे 'दीय' स्यात् / उपदिदीयाते / क्डितीति किम् ? उपदानम् / स्वर इति किम् ? उपदेदीयते // 93 / / ___ इडेत्-पुसि चाऽऽतो लुक् / 4 / 3 / 94 // क्ङित्यशिति स्वरे, इटि, एति, पुसि च परे ‘आदन्तस्य धातो क्' स्यात् / पपुः, अदधत्, पपिथ, व्यतिरे, अदुः // 94 // संयोगाऽऽदेर्वाऽऽशिष्येः / 4 / 3 / 95 // धातोः संयोगादेरादन्तस्य क्ङित्याशिषि ‘एर्वा' स्यात् / ग्लेयात्, ग्लायात् / संयोगादेरिति किम ? यायात / क्ङितीत्येव- ग्लासीष्ट / / 95 // Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 245 गा-पा-स्था-सा-दा-मा-हाकः / 4 / 3 / 96 // एषाम् ‘क्लित्याशिष्येः' स्यात् / गेयात्, पेयात्, स्थेयात्, अवसेयात्, देयात्, धेयात्, मेयात्, हेयात् // 16 // ईर्व्यञ्जनेऽयपि // 43 // 97 // गादेर्यवर्जे क्लित्यशिति व्यञ्जनादौ 'ई:' स्यात् / गीयते, जेगीयते, पीयते, स्थीयते, अवसीयते, दीयते, धीयते, मीयते, हीनः / व्यञ्जन इति किम् ? तस्थुः / अयपीति किम् ? प्रगाय // 97 // घ्रा-मोर्यङि / 4 / 3 / 98 // घ्रा-मोर्यङि 'ई:' स्यात् / जेघ्रीयते, देध्मीयते // 98 // . हनो नीर्वधे / 4 / 3 / 99 // हन्तेर्वधार्थस्य यङि 'नीः' स्यात् / जेनीयते / वध इति किम् ? गतौजबन्यते // 19 // णिति घात् / 4 / 3 / 100 // जिति णिति च परे ‘हन्तेर्घात्' स्यात् / घातः, घातयति // 10 // जि-णवि घन् / 4 / 3 / 101 // जौ णवि च परे 'हन्तेर्घन्' स्यात् / अघानि, जघान // 101 // .. नशेर्नेश वाऽङि / 4 / 3 / 102 // नशेरङि 'नेश् वा' स्यात् / अनेशत्, अनशत् // 102 // श्वयत्यसू-वच-पतः श्वा-ऽऽस्थ-वोच-पप्तम् / 4 / 3 / 103 // एषामङि 'यथासङ्ख्यं श्वादयः' स्युः / अश्वत्, आस्थत्, अवोचत्, अपप्तत् // 103 // शीङ ए: शिति / 4 / 3 / 104 // Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 246 -श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 'शीङः शित्येः' स्यात् / शेते // 104 // ... क्ङिति यि शय / 4 / 3 / 105 // शीङः क्छिति यादौ 'शय' स्यात् / शय्यते, शाशय्यते / ङितीति किम् ? शेयम् // 105 // उपसर्गादूहो इस्वः / 4 / 3 / 106 // उपसर्गात् परस्योहतेस्तः क्ङिति यादौ परे ‘ह्रस्वः' स्यात् / समुह्यते / उपसर्गादिति किम् ? ऊह्यते / यीत्येव- समूहितम् / ऊ ऊह इति प्रश्लेषः किम् ? आ ऊह्यते-ओह्यते, समोह्यते // 106 // . आशिषीणः / 4 / 3 / 107 // उपसर्गात् परस्येण ईतः विडति यादावाशिषि ‘ह्रस्वः' स्यात् / उदियात् / ई इण इति प्रश्लेषः किम् ? आ ईयात्-एयात्, समेयात् // 107 // दीर्घश्चियङ्-यक-क्येषु च / 4 / 3 / 108 // एषु यादावाशिषि च 'दीर्घः' स्यात् / शुचीकरोति; तोष्ट्रयते; मन्तूयति; दधीयति, भृशायते, लोहितायते, स्तूयते; ईयात् // 108 // ऋतो रीः / 4 / 3 / 109 // च्यादौ परे ऋदन्तस्य ऋतः स्थाने 'रीः' स्यात् / पित्रीस्यात्, चेक्रीयते, मात्रीयते, पित्रीयते / ऋत इति किम् ? चेकीर्यते // 109 // रिः श-क्या-5ऽशीर्ये / 4 / 3 / 110 // ऋदन्तस्य धातोः ऋतः शे क्ये आशीर्ये च परे 'रिः' स्यात् / व्याप्रियते, क्रियते, ह्रियात् // 110 // ईश्च्वाववर्णस्या-5नव्ययस्य 1431111 // अनव्ययस्याऽवर्णान्तस्य च्चौ 'ई:' स्यात् / शुक्लीस्यात्, मालीस्यात् / Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 247 . श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् अनव्ययस्येति किम् ? दिवाभूता रात्रिः // 111 // __ क्यनि / 4 / 3 / 112 // अवर्णान्तस्य क्यनि 'ई:' स्यात् / पुत्रीयति / मालीयति // 112 // क्षुत-तृड्-गद्धेऽशनायोदन्य-धनायम् / 4 / 3 / 113 // एष्वर्थेषु 'यथासंख्यमशनायादयः क्यन्नन्ता निपात्यन्ते' / अशनायति, उदन्यति, धनायति / क्षुदादाविति कम् ? अशनीयति, उदकीयति, धनीयति दातुम् // 113 // वृषाऽश्वानुमैथुने स्सोऽन्तः / 4 / 3 / 114 // आभ्यां मैथुनार्थाभ्यां क्यनि ‘स्सोऽन्तः' स्यात् / वृषस्यति गौः, अश्वस्यति वडवा / मैथुन इति किम् ? वृषीयति, अश्वीयति ब्राह्मणी / / 114 // - अस् च लौल्ये / 4 / 3 / 115 // भोगेच्छातिरेको लौल्यम्, तत्र गम्ये क्यनि परे 'नाम्नः स्सोऽस् चान्तः' स्यात् / दधिस्यति, दध्यस्यति / लौल्य इति किम् ? क्षीरीयति दातुम् // इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितायां सिद्धहेमचन्द्राभिधानस्वोपज्ञशब्दानुशासन लघुवृत्तौ चतुर्थस्याध्यायस्य तृतीयः पादः समाप्तः // 4 // 3 // कर्णं च सिन्धुराजं च, निर्जित्य युधि दुर्जयम् / श्रीभीमेनाधुना चक्रे, महाभारतमन्यथा // 15 // चतुर्थः पादः] .. अस्ति-ब्रुवोभू-वचावशिति / 4 / 4 / 1 // अस्ति-ब्रुवोर्यथासंख्यम् भू-वचौ स्याताम् अशिति विषये' / भव्यम्, अवोचत् / अशितीति किम् ? स्यात्, ब्रूते // 1 // Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 248 श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् - ___ अघक्यबलच्यजेवीं / 4 / 4 / 2 // अघजादावशिति विषये 'अजेवीं' स्यात् / प्रवेयम् / अघक्यबलचीति किम् ? समाजः, समज्या, उदजः, अजः पशुः // 2 // __ त्रने वा / 4 / 4 // 3 // .. 'त्रनयोर्विषयभूतयोरजेवीं वा' स्यात् / प्रवेता, प्राजिता; प्रवयणः, प्राजनो दण्डः // 3 // चक्षो वाचि. कशांग-ख्यांग / 4 / 4 / 4 // चक्षो वागर्थस्याऽशिति विषये 'क्शांग्-ख्यांगौ' स्याताम् / आक्शास्यति, आक्शास्यते; आख्यास्यति, आख्यास्यते; आक्शेयम्, आख्येयम् / वाचीति किम् ? बोधे विचक्षणः // 4 // नवा परोक्षायाम् / 4 / 4 / 5 // चक्षो वाचि ‘क्शांग्-ख्यांगौ परोक्षायां वाः स्याताम् / आचक्शी, आचख्यौ, आचचक्षे // 5 // . भृज्जो भ“ / 4 / 46 // भृज्जतेरशिति 'भर्ख वा' स्यात् / भा, भ्रष्टा // 6 // प्राद् दागस्त आरम्भे क्ते / 4 / 47 // आरम्भार्थस्य प्रपूर्वस्य दागः क्ते परे 'त्तो वा' स्यात् / प्रत्तः, प्रदत्तः / प्रादिति किम् ? परीत्तम् // 7 // नि-वि-स्वन्ववात् / 4 / 48 // एभ्यः परस्य दागः क्ते 'तो वा' स्यात् / नीत्तम्, निदत्तम्; वीत्तम्, विदत्तम्; सूत्तम्, सुदत्तम्; अनूत्तम्, अनुदत्तम्;अवत्तम्, अवदत्तम् // 8 // स्वरादुपसर्गाद् दस्ति कित्यधः / 4 / 4 // 9 // Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 249 स्वरान्तादुपसर्गात् परस्य. धावर्जस्य दासंज्ञस्य तादौ किति 'त्तो नित्यम्' स्यात् / प्रत्तः, परीत्रिमम् / उपसर्गादिति किम् ? दधि दत्तम् / स्वरादिति किम् ? निर्दत्तम् / द इति किम् ? प्रदाता व्रीहयः / तीति किम् ? प्रदाय / अध इति किम् ? निधीतः // 9 // दत् / 4 / 4 / 10 // अधो दासंज्ञस्य तादौ किति 'दत्' स्यात् / दत्तः, दत्तिः / अध इत्येवधीतः // 10 // दो-सो-मा-स्थ इः / 4 / 4 / 11 // एषां तादी किति 'इ:' स्यात् / निर्दितः, सित्वा, मितिः, स्थितवान् // 11 // छा-शोर्वा / 4 / 4 / 12 // छ-शोस्तादौ किति 'इर्वा' स्यात् / अवच्छितः, अवच्छातः; निशितः, निशातः // 12 // शो व्रते / 4 / 4 / 13 // श्यतेः क्ते व्रतविषये प्रयोगे नित्यम् 'इ:' स्यात् / संशितं व्रतम्, संशितः साधुः // 13 // हाको हिः क्वि / 4 / 4 / 14 // हाकस्तादौ किति क्त्वायाम् 'हिः' स्यात् / हित्वा / क्त्वीति किम् ? हीनः / तीत्येव- प्रहायः // 14 // - धागः / 4 / 4 / 15 // धागस्तादौ किति 'हिः' स्यात् / विहितः, हित्वा // 15 // - यपि चाऽदो जग्धू / 4 / 4 / 16 // तादी किति यपि चा-'ऽदेर्जग्ध्' स्यात् / जग्धिः, प्रजग्ध्य // 16 // Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 250 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् % E . घस्ल सनद्यतनी-घत्रचलि / 4 / 4 / 17 // एष्वदे-'घस्लः' स्यात् / जिघत्सति, अघसत्, घासः, प्रात्तीति–प्रघसः, प्रादनम्=प्रघसः // 17 // परोक्षायां नवा / 4 / 4 / 18 // अदेः परोक्षायां 'घस्ला ' स्यात् / जक्षुः, आदुः // 18 // वेर्वय् / 4 / 4 / 19 // वेगः परोक्षायाम् ‘वय वा' स्यात् / ऊयुः, ववुः // 19 // ऋः शृ-दृ-प्रः / 4 / 4 / 20 // एषां परोक्षायाम् 'ऋर्वा' स्यात् / विशश्रतुः, विशशरतुः; विदद्रतुः, विददरतुःः निपप्रतुः; निपपरतुः // 20 // हनो वध आशिष्यजौ / 4 / 4 / 21 / आशीविषये 'हन्तेर्वधः स्यात्, न तु ब्रिटि' / वध्यात् / अाविति किम् ? घानिषीष्ट // 21 // . अद्यतन्यां वा त्वात्मने / 4 / 4 / 22 // अद्यतन्यां विषये 'हनो वधः स्याद्, आत्मनेपदे तु वा' / अवधीत्; आवधिष्ट; आहत // 22 // इणिकोईः // 44 // 23 // इणिकोरद्यतन्याम् ‘गाः' स्यात् / अगात्, अध्यगात् // 23 // ___णावज्ञाने गमुः / 4 / 4 / 24 // इणिकोरज्ञानार्थयोर्णी “गमुः' स्यात् / गमयति, अधिगमयति / अज्ञान इति किम् ? अर्थान् प्रत्याययति // 24 // सनीङश्च / 4 / 4 / 25 // Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 251 इङ इणिकोश्चा-ऽज्ञानार्थयोः सनि ‘गमुः' स्यात् / अधिजिगांसते, जिगमिषति ग्रामम्, मातुरधिजिगमिषति // 25 // गाः परोक्षायाम् / 4 / 4 / 26 // इङः परोक्षाविषये 'गाः' स्यात् / अधिजगे // 26 // णौ सन्-डे वा / 4 / 4 / 27 // सन्-डे परे णौ 'इडो गा वा' स्यात् / अधिजिगापयिषति, अध्यापिपयिषति; अध्यजीगपत्, अध्यापिपत् / णाविति किम् ? अधिजिगांसते / सन्ङ इति किम् ? अध्यापयति // 27 // वाऽद्यतनी-क्रियातिपत्त्योर्गीङ् / 4 / 4 / 28 // अनयोरिङो ‘गीङ् वा' स्यात् / अध्यगीष्ट, अध्यैष्ट; अध्यगीष्यत, अध्यैष्यत // 28 // अडू धातोरादिस्तिन्यां चाऽमाङा / 4 / 4 / 29 // यस्तन्यामद्यतनी-क्रियातिपत्त्योश्च विषये 'धातोरादिरट् स्यात्, न तु माझ्योगे' / अयात्, अयासीत्, अयास्यत् / अमाउंति किम् ? मा स्म कार्षीत् / धातोरिति किम् ? प्रायाः // 29 // . एत्यस्तेवृद्धिः / 4 / 4 // 30 // इणिकोरस्तेचाऽऽदेस्तिन्यां विषये 'वृद्धिः स्यात्, न तु माङा' / आयन्, अध्यायन्, आस्ताम् / अमाझेत्येव- मा स्म ते यन् // 30 // स्वरादेस्तासु / 4 / 4 / 31 // स्वरादेर्धातोरादेरद्यतनी-क्रियातिपत्ति-शस्तनीषु विषये 'वृद्धिः स्यात्, अमाङा' / आटीत्, ऐषिष्यत्, औज्झत् / अमाडेत्येव- मा सोऽटीत् / / . स्तायशितोऽत्रोणादेरिटू / 4 / 4 / 32 // Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 252 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् धातोः परस्य सादेस्तादेश्चाऽशित ‘आदिरिट् स्यात्, न तु त्रोणाद्योः' / लविष्यति, लविता / स्तादीति किम् ? भूयात् / अशित इति किम् ? आस्से / अत्रोणादेरिति किम् ? शस्त्रम्; वत्सः, हस्तः // 32 // तेर्ग्रहादिभ्यः / 4 / 4 // 33 // एभ्य एव परस्य स्ताद्यशितः 'तेरादिरिट्' स्यात् / निगृहीतिः, अपस्निहितिः / ग्रहादिभ्य इति किम् ? शान्तिः // 33 // गृहणोऽपरोक्षायां दीर्घः / 4 / 4 / 34 // 'अहेर्यो विहित इट्, तस्य दीर्घः स्यात्, न तु परोक्षायाम्' / ग्रहीता / अपरोक्षायामिति किम् ? जगृहिव // 34 // वृतो नवाऽनाशी:- सिच्यरस्मै च / 4 / 4 / 35 // वृभ्यामृदन्तेभ्यश्च परस्येटो 'दी? वा स्यात्, न तु परोक्षाऽऽशिषोः, सिचि च परस्मैपदे' / प्रावरीता, प्रावरिता; वरीता, वरिता; तितरीषति, तितरिषति / परोक्षाऽऽदिवर्जनं किम् ? ववरिथ, तेरिथ, प्रावरिषीष्ट, आस्तरिषीष्ट, प्रावारिषुः, आस्तारिषुः // 35 // . इट् सिजाशिषोरात्मने / 4 / 4 / 36 // वृतः परयोरात्मनेपदविषये 'सिजाशिषोरादिरिट वा' स्यात् / प्रावृत, प्रावरिष्ट; अवृत, अवरीष्ट; आस्तीर्ट, आस्तरिष्ट; प्रावृषीष्ट, प्रावरिषीष्ट; वृषीष्ट, वरिषीष्ट; आस्तीर्षीष्ट, आस्तरिषीष्ट / आत्मने इति किम् ? प्रावारीत् // 36 // ___ संयोगाद् ऋतः / 4 / 4 / 37 // 'धातोः संयोगात् परो य ऋत् तदन्तात् परयोरात्मनेपदविषयसिजाशिषोरादिरिद वा' स्यात् / अस्मरिषाताम्, अस्मृषाताम्; स्मरिषीष्ट, स्मृषीष्ट / संयोगादिति किम् ? अकृत // 37 // धूगौदितः / 4 / 4 // 38 // Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 253 धूग औदितश्च परस्य स्ताधशित 'आदिरिट् वा' स्यात् / धोता , धविता; रद्धा, रधिता // 38 // निष्कुषः / 4 / 4 / 39 // निष्पूर्वात् कुषः परस्य स्ताशित 'आदिरिट् वा' स्यात् / निष्कोष्टा, निष्कोषिता // 39 // क्तयोः / 4 / 4 / 40 // निष्कुषः परयोः ‘क्तयोरादिरिट् नित्यम्' स्यात् / निष्कुषितः, निष्कुषितवान् // 40 // जू-व्रश्चः क्त्वः // 4 // 4 // 41 // आभ्यां परस्य 'क्त्व आदिरिट्' स्यात् / जरीत्वा, व्रश्चित्वा // 41 // - ऊदितो वा // 4 // 4 // 42 // ऊदितः परस्य 'क्त्व आदिरिट् वा' स्यात् / दान्त्वा, दमित्वा // 42 // . क्षुध-वसस्तेषाम् / 4 / 4 / 43 // आभ्यां परेषां 'क्त-क्तवतु-क्त्वामादिरिट्' स्यात् / क्षुधितः, क्षुधितवान्, क्षुधित्वा; उषितः, उषितवान्, उषित्वा // 43 // लुभ्यश्चेर्विमोहाचें / 4 / 4 / 44 // आभ्यां यथासंख्यं विमोहन-पूजार्थाभ्यां परेषाम् ‘क्त-क्तवतु-क्त्वामादिरिट्' स्यात् / विलुभितः, विलुभितवान्, लुभित्वा; अञ्चितः, अञ्चितवान्, अश्चित्वा / विमोहार्च इति किम् ? लुब्धो जाल्मः, उदक्तं जलम् // 44 // : पू-विशिभ्यो नवा / 4 / 4 / 45 // पूछः विशिभ्यां च परेषाम् ‘क्त क्तवतु-क्त्वामादिरिड् वा' स्यात् / पूतः, पूतवान्, पूत्वा; पवितः, पवितवान्, पवित्वा / क्लिष्टः, क्लिष्टवान्, किट्वा; Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 254 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् क्लिशितः, क्लिशितवान्, क्लिशित्वा // 45 // सह-लुभेच्छ-रुष-रिषस्तादेः / 4 / 4 / 46 // एभ्यः परस्य 'स्ताद्यशितस्तादेरिड् वा' स्यात् / सोढा, सहिता; लोब्धा, लोभिता; एष्टा, एषिता; रोष्टा, रोषिता; रेष्टुम्, रेषितुम् // 46 // इवृध-भ्रस्ज-दम्भ-श्रि-यूणु-भर-ज्ञपि-सनि-तनि-पति-वृद् दरिद्रः सनः / 4 / 4 / 47 // इवन्ताद् ऋधादिभ्य ऋदन्तेभ्यो दरिद्रश्च परस्य ‘सन आदिरिड् वा' स्यात् / दुवूषति, दिदेविषति; ईसति, अदिधिषति; बिभक्षति, बिभर्जिषति; धिप्सति, धीप्सति, दिदम्भिषति; शिश्रीषति, शिश्रयिषति; युयूषति, यियविषति; प्रोणुनूषति, प्रोणुनविषति; बुभूषति, बिभरिषति; ज्ञीप्सति, जिज्ञपयिषति; सिषासति, सिसनिषति; तितंसति, तितनिषति; पित्सति, पिपतिषति; प्रावुर्षति, प्राविवरिषति; वुवूर्षते, विवरीषते; तितीर्षति, तितरीषति; दिदरिद्रासति, दिदरिद्रिषति // 47 // ऋ-स्मि-पूङञ्जशौ-कू-गृ-दृ-धृ-प्रच्छः / 4 / 4 / 48 // एभ्यः परस्य ‘सन आदिरिट्' स्यात् / अरिरिषति, सिस्मयिषते, पिपविषते, अञ्जिजिषति, अशिशिषते, चिकरीषति, जिगरीषति, आदिदरिषते, आदिधरिषते, पिपृच्छिषति // 48 // हनृतः स्यस्य / 4 / 4 / 49 // हन्तेः ऋदन्ताच्च परस्य ‘स्यस्याऽऽदिरिट्' स्यात् / हनिष्यति, करिष्यति // कृत-चूत-नृत-च्छूद-तृदोऽसिचः सादेर्वा / 4 / 450 // एभ्यः परस्या'ऽसिचः सादेः स्ताधशित आदिरिड् वा' स्यात् / कर्त्यति, कर्तिष्यति; चित्सति, चिचर्तिषति; नर्त्यति, नतिष्यति; अच्छय॑त्, Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 255 अच्छर्दिष्यत्; तितृत्सति, तितर्दिषति / असिच इति किम् ? अकर्तीत् // गमोऽनात्मने / 4 / 451 // गमः परस्य ‘स्ताद्यशितः सादेरिट् स्यात्, न त्वात्मनेपदे' / गमिष्यति / अधिजिगमिषिता शास्त्रस्य / अनात्मने इति किम् ? संगंसीष्ट // 51 // स्नोः / 4 / 452 // स्नोः परस्य 'स्ताद्यशितोऽनात्मनेपदे आदिरिट्' स्यात् / प्रस्नविष्यति / अनात्मन इत्येव- प्रास्नोष्ट // 52 // क्रमः / 4 / 453 // क्रमः परस्य 'स्ताद्यशित आदिरिट् स्यात्, अनात्मनेपदे' / क्रमिष्यति, प्रक्रमितुम् / अनात्मन इत्येव-'प्रकंस्यते // 53 // तुः / 4 / 4 / 54 // अनात्मनेपदविषयात् क्रमः परस्य 'तु-स्ताद्यशित आदिरिट्' स्यात् / क्रमिता / अनात्मन इत्येव- प्रक्रन्ता // 54 // न वृद्भ्यः / 4 / 4 / 55 // वृदादिपञ्चकात् परस्य 'स्ताशित आदिरिट् न' स्यात्, न चेदसावात्मनेपदनिमित्तम् / वर्त्यति, विवृत्सति; स्यन्त्स्यति, सिस्यन्सति // 55 // - एकस्वरादनुस्वारेतः / 4 / 4 / 56 // एकस्वरादनुस्वारेतो धातोर्विहितस्य 'स्ताधशित आदिरिट् न स्यात् / पाता / एकस्वरादिति किम् ? अवधीत् // 56 // ऋवर्ण-यूर्तुगः कितः / 4 / 457 // . ऋवर्णान्ताद् धातोः श्रेलोच एकस्वराद् विहितस्य 'कित आदिरिट् न' स्यात् / वृतः, तीर्खा, श्रितः, ऊर्तुत्वा / एकस्वरादित्येव- जागरितः / Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 256 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् कित इति किम् ? वरिता // 57 // उवर्णात् / 4 / 4 / 58 // उवर्णान्तादेकस्वराद् विहितस्य 'कित आदिरिट् न' स्यात् / युतः, लूनः / कित इत्येव- यविता, लविता // 5 // ग्रह-गुहश्च सनः / 4 / 4 / 59 // आभ्यामुवर्णान्ताच्च विहितस्य ‘सन आदिरिट् न' स्यात् / जिघृक्षति, जुघुक्षति, रुरूषति // 59 // स्वार्थे / 4 / 460 // 'स्वार्थार्थस्य सन आदिरिट् न' स्यात् / जुगुप्सते // 60 // . डीय-श्व्यैदितः क्तयोः / 4 / 461 // डीयतेः श्वेरैदिभ्यश्च धातुभ्यः 'परयोः क्त-क्तवत्वोरादिरिट् न' स्यात् / डीनः, डीनवान्; शूनः, शूनवान्; त्रस्तः, त्रस्तवान् // 61 // . वेटोऽपतः / 4 / 4 / 62 // अपतो विकल्पितेटो धातोरेकस्वरात् ‘परयोः क्तयोरादिरिट् न' स्यात् / रद्धः, / रद्धवान् / अपत इति किम् ? पतितः // 62 // सं-नि-वेरर्दः / 4 / 4 / 63 // एभ्यः पराद् अर्देः 'परयोः क्तयोरादिरिट् न' स्यात् / समर्णः, समर्णवान्; न्यणः, न्यर्णवान्; व्यर्णः, व्यर्णवान् / संनिवेरिति किम् ? अर्दितः // 63 // अविरेऽभः // 4 // 6 // अमेः पराद् अर्देः 'परयोः क्तयोरविदूरेऽर्थे आदिरिट् न' स्यात् / अभ्यणः, अभ्यर्णवान् / अविदूर इति किम् ? अभ्यर्दितो दीनः शीतेन // 64 // Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 257 वर्तेर्वृत्तं ग्रन्थे / 4 / 4 / 65 // वृतेय॑न्तात् ते 'वृत्तं ग्रन्थविषये निपात्यते' / वृत्तो गुणश्छात्रेण / ग्रन्थ इति किम् ? वर्तितं कुङ्कुमम् // 65 // धृष-शसः प्रगल्भे / 4 / 4 // 66 // आभ्यां परयोः ‘क्तयोरादिः प्रगल्भ एवार्थ इट् न' स्यात् / धृष्टः, विशस्तः / प्रगल्म इति किम् ? धर्षितः, विशसितः // 66 // कषः कृच्छ्र-गहने / 4 / 4 / 67 // अनयोरर्थयोः कषेः 'परयोः क्तयोरादिरिट् न' स्यात् / कष्टं दुःखम्, कष्टोऽग्निः, कष्टं वनं दुरवगाहम् / कृच्छ्रगहन इति किम् ? कषितं स्वर्णम् // 67 // घुषेरविशब्दे / 4 / 4 / 68 // अविशब्दार्थाद् घुषेः 'परयोः क्तयोरादिरिट् न' स्यात् / घुष्टा रज्जुः, घुष्टवान् / अविशब्द इति किम् ? अवघुषितं वाक्यम् // 6 // . बलि-स्थूले दृढः / 4 / 4 / 69 // बलिनि स्थूले चार्थे दृहेहेर्वा तान्तस्य ‘दृढो निपात्यते' / दृढः / बलि-स्थूल इति किम् ? दृहितम्, इंहितम् // 69 // . क्षुब्ध-विरिब्ध-स्वान्त-ध्वान्त-लग्न-म्लिष्ट-फाण्ट-वाढ-परिवृदं मन्थ-स्वर-मनस्-तमस-सक्ताऽस्पष्टाऽनायास-भृश प्रभौ / 4 / 470 // 'एते क्तान्ता मन्यादिष्वर्येषु यथासङ्ख्यमनिटो निपात्यन्ते' / क्षुब्धः समुद्रः, क्षुब्धं वल्लवैः, विरिब्धः स्वरः, स्वान्तं मनः, ध्वान्तं तमः, लग्नं सक्तम्, म्लिष्टमस्पष्टम्, फाण्टमनायाससाध्यम्, वादं भृशम्, परिवृढः प्रभुः // 70 // आदितः / 4 / 471 // Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 258 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् आदितो धातोः 'परयोः क्तयोरादिरिट् न' स्यात् / मित्रः, मिन्नवान् // 71 // नवा भावाऽऽरम्भे / 4 / 4 / 72 // आदितो धातो वाऽऽरम्भार्थयोः ‘क्तयोरादिरिट् वा न' स्यात् / मिन्नम्, मेदितम् प्रमिनः, प्रमिनवान्; प्रमेदितः, प्रमेदितवान् // 72 // शकः कर्मणि / 4 / 4 / 73 // शकेः कर्मणि 'क्तयोरादिरिट् वा न' स्यात् / शक्तः, शकितो वा घटः कर्तुम् // 73 // - णौ दान्त-शान्त-पूर्ण-दस्त-स्पष्ट-च्छन्न-ज्ञप्तम् / 4 / 4 / 74 // 'दमादीनां णौ तान्तानामेते वा निपात्यन्ते' / दान्तः, दमितः; शान्तः, शमितः; पूर्णः, पूरितः; दस्तः, दासितः; स्पष्टः, स्पाशितः; छन्नः, छादितः; ज्ञप्तः, ज्ञापितः // 74 // श्वस-जप-वम-रुष-त्वर-संघुषाऽऽस्वनाऽमः / 4 / 475 // एभ्यः ‘क्तयोरादिरिट् वा न' स्यात् / श्वस्तः, श्वसितः; विश्वस्तवान्, विश्वसितवान् / जप्तः, जप्तवान्; जपितः, जपितवान् / वान्तः, वान्तवान्; वमितः, वमितवान् / रुष्टः, रुष्टवान्; रुषितः, रुषितवान् / तूर्णः, तूर्णवान्; त्वरितः, त्वरितवान् / संघुष्टी, संघुषितौ दम्यौ; संघुष्टवान्, संघुषितवान् / आस्वान्तः, आस्वनितः; आस्वान्तवान्, आस्वनितवान् / अभ्यान्तः, अभ्यान्तवान्; अभ्यमितः, अभ्यमितवान् // 75 // हृषेः केश-लोम-विस्मय-प्रतिघाते / 4 / 476 // हृषेः केशाद्यर्थेषु 'क्तयोरादिरिट् वा न' स्यात् / हृष्टाः हृषिताः केशाः; हृष्टं हृषितं लोमभिः; हृष्टो हृषितश्चैत्रः; हृष्टाः हृषिताः दन्ताः // 76 / / अपचितः / 4 / 477 // Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 259 'अपात् परस्य चायेः क्तान्तस्य इडभावः, चिश्च निपात्यते वा' / अपचितः, अपचायितः // 77 // सृजि-दृशि-स्कृ-स्वराऽत्वतस्तृनित्याऽनिटस्थवः / 4 / 478 // सृजि-दृशिभ्यां स्कृगः स्वरान्तादत्वतश्च तृचि नित्याऽनिटो विहितस्य ‘थव आदिरिट् वा न' स्यात् / सनष्ठ, ससर्जिथ; दद्रष्ठ, ददर्शिथ; सञ्चस्कर्थ, सञ्चस्करिथ; ययाथ, ययिथ; पपक्थ, पेचिथ / तृनित्यानिट इति किम् ? ररन्धिथ, शिश्रयिथ / विहितविशेषणं किम् ? चकर्षिथ // 78 // ऋतः / 4 / 479 // . ऋदन्तात् तृनित्यानिटो विहितस्य 'थव आदिरिट् न' स्यात् / जहर्थ / तृग्नित्यानिट इत्येव- सस्वरिथ // 79 // ऋ-वृ-व्ये-ऽद इट् / 4 / 4 / 80 // एभ्यः परस्य 'थव आदिरिट्' स्यात् / आरिथ, ववरिथ, संविव्ययिथ, आदिथ // 8 // स्क्रसृ-वृ-भृ-स्तु-द्रु-श्रु-स्रोर्व्यञ्जनादेः परोक्षायाः / 4 / 4 / 81 // स्कृगः नादिवर्जेभ्यश्च सर्वधातुभ्यः परस्याः 'परोक्षाया व्यञ्जनादेरादिरिट्' स्यात् / संचस्करिव, ददिव, चिच्यिवहे / स्क्रिति किम् ? चकृव / नादिवर्जनं किम् ? ससृव; ववृव, ववृवहे; बभर्थ, तुष्टोथ, दुद्रोथ, शुश्रोथ, सुस्रोथ // 81 // घसेकस्वराऽऽतः क्वसोः / 4 / 4 / 82 // घसेकस्वराद् . आदन्ताच्च धातोः परस्य 'क्वसोः परोक्षाया आदिरिट्' स्यात् / जक्षिवान्, आदिवान्, ययिवान् / परोक्षाया इत्येव- विद्वान् // 82 // गम-हन-विद्ल-विश-दृशो वा / 4 / 4 / 83 // Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 260 . . श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् एभ्यः परस्य 'क्वसोरादिरिट् वा' स्यात् / जग्मिवान्, जगन्वान्; जनिवान्, जघन्वान्; विविदिवान्, विविद्वान्; विविशिवान्, विविश्वान्; ददृशिवान्, ददृश्वान् // 83 // सिचोऽः / 4 / 4 / 84 // 'अजेः सिच आदिरिट्' स्यात् / आञ्जीत् // 84 // धूग-सुस्तोः परस्मै / 4 / 4 / 85 // ‘एभ्यः परस्मैपदे सिच आदिरिट्' स्यात् / अधावीत्, असावीत्, अस्तावीत् / परस्मै इति किम् ? अधोष्ट // 85 / / यमि-रमि-नम्यातः सोऽन्तश्च / 4 / 4 / 86 // एभ्य आदन्तेभ्यश्च ‘परस्मैपदे सिच आदिरिट्' स्यात्, एषां च सन्तः / अयंसीत्, व्यरंसीत्, अनंसीत्, अयासिष्टाम् // 86 // ईशीडः से-ध्वे-स्व-ध्वमोः / 4 / 487 // आभ्याम् 'वर्तमानासेध्वयोः, पञ्चमीस्वध्वमोश्चादिरिट्' स्यात् / ईशिषे, ईशिध्वे, ईशिष्व, ईशिध्वम्; ईडिषे, ईडिध्वे, ईडिष्व, ईडिध्वम् // 87 // रुत्पञ्चकाच्छिदयः / 4 / 4 / 88 // रुदादेः पञ्चतः परस्य 'व्यञ्जनादेः शितोऽयकारादेरादिरिट्' स्यात् / रोदिति, स्वपिति, प्राणिति, श्वसिति, जक्षिति / अयिति किम् ? रुद्यात् / शित इति किम् ? रोत्स्यति, स्वप्स्यति // 88 // दि-स्योरीटू / 4 / 4 / 89 // रुत्पञ्चकात् 'दिस्योः शितोरादिरीट्' स्यात् / अरोदीत्, अरोदीः // 89 // अदचाऽट् / 4 / 4 / 9 // अत्ते रुत्पञ्चकाच्च 'दिस्योः शितोरादिरट्' स्यात् / आदत्, आदः; अरोदत्, Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 261 - अरोदः // 10 // ' संपरेः कृगः स्सट् / 4 / 4 / 91 // आभ्यां परस्य 'कृग आदिः स्सट्' स्यात् / संस्करोति कन्याम्, परिकरोति // 91 // उपाद् भूषा-समवाय-प्रतियत्न-विकार-वाक्याऽध्याहारे 4492 // उपात् परस्य 'कृगो भूषादिष्वर्थेष्वादिस्सट्' स्यात् / कन्यामुपस्करोति, तत्र न उपस्कृतम्, एधोदकमुपस्कुरुते, उपस्कृतं भुङ्क्ते, सोपस्कारं सूत्रम् // 12 // किरो लवने / 4 / 4 / 93 // उपात् 'किरतेः सडादिः स्यात्, लवनविषयार्थश्चेत्' / उपस्कीर्य मद्रका लुनन्ति / लवन इति किम् ? उपकिरति पुष्पम् // 13 // - प्रतेश्च वधे / 4 / 4 / 94 // प्रतेरुपाच्य 'किरतेहिंसायां विषयेऽर्थे वा, सडादिः' स्यात् / प्रतिस्कीर्णम्, उपस्कीर्णम्, वा ह ते वृषल भूयात्, प्रतिचस्करे नखैः / वध इति किम् ? प्रतिकीर्ण बीजम् // 14 // अपाचतुष्पात्-पक्षि-शुनि हृष्टा-ऽन्ना-ऽऽश्रयाऽर्थे / 4 / 4 / 95 // अपात् 'किरतेः चतुष्पदि पक्षिणि शुनि च कर्तरि यथासङ्ख्यं हृष्टेऽत्रार्थिनि आश्रयार्थिनि स्सडादिः' स्यात् / अपस्किरते गौहृष्टः, कुक्कुटो भक्ष्यार्थी, आश्रयार्थी वा श्वा // 95 // ___. वौ विष्किरो वा / 4 / 4 / 96 // पक्षिणि वाच्ये 'विकिरतेः स्सड् वा निपात्यते' / विष्किरः, विकिरो वा पक्षी // 16 // Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 262 श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् प्रात् तुम्पतेर्गवि / 4 / 4 / 97 // 'प्रात् तुम्पतेर्गवि कर्तरि स्सडादिः' स्यात् / प्रस्तुम्पति गौः / गवीति किम् ? प्रतुम्पति तरुः // 17 // उदितः स्वरानोऽन्तः / 4 / 4 / 98 // उदितो धातोः ‘स्वरात् परो न अन्तः' स्यात् / नन्दति, कुण्डा // 98 // मुचादि-तृफ-दृफ-गुफ-शुभोभः शे / 4 / 4 / 99 // एषां शे परे 'स्वरान्नोऽन्तः' स्यात् / मुञ्चति, पिंशति, तृम्फति, दृम्फति, गुम्फति, शुम्भति, उम्भति // 99 // जभः स्वरे / 4 / 4 / 100 // जभेः स्वरात् परः स्वरादौ प्रत्यये 'नोऽन्तः' स्यात् / जम्भः // 10 // रध इटि तु परोक्षायामेव / 4 / 4 / 101 // रधः स्वरात् परः स्वरादौ प्रत्यये 'नोऽन्तः स्यात्, इडादौ तु परोक्षायामेव' / रन्धः, ररन्धिव / परोक्षायामेवेति किम् ? रधिता // 101 // रभोऽपरोक्षा-शवि / 4 / 4 / 102 // रभेः स्वरात् परः परोक्षा-शव्वर्जे स्वरादी प्रत्यये 'न् अन्तः' स्यात् / आरम्भः / अपरोक्षाशवीति किम् ? आरेभे, आरभते // 102 // लभः / 4 / 4 / 103 // लभः स्वरात् परः परोक्षाशव्वर्जे स्वरादी प्रत्यये 'न् अन्तः' स्यात् / लम्भकः // 103 // आङो यि / 4 / 4104 // आङः परस्य लभः स्वरात् परो यादौ प्रत्यये 'न् अन्तः' स्यात् / आलमण्या गौः / यीति किम् ? आलब्धाः // 104 // Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् उपात् स्तुतौ / 4 / 4 / 105 // उपात् परस्य लभः स्वरात् परो यादौ प्रत्यये स्तुतौ गम्यायाम् 'न् अन्तः' स्यात् / उपलम्भ्या विद्या / स्तुताविति किम् ? उपलभ्या वार्ता // 105 // जि-ख्णमोर्वा / 4 / 4 / 106 // औ ख्णमि च लभः स्वरात् परो 'न् अन्तो वा' स्यात् / अलाभि, अलभि / लम्भलम्भम्, लाभलाभम् // 106 // उपसर्गात् खल्यञोश्च / 4 / 4 / 107 // उपसर्गाद् लभः स्वरात् परः खल्-घजोर्जि-ख्णमोश्च परयो- ‘न् अन्तः' स्यात् / दुष्प्रलम्भम्, प्रलम्भः, प्रालम्भि, प्रलम्भंप्रलम्भम् / उपसर्गादिति किम् ? लाभः // 107 / / सु-दुर्ध्यः / 4 / 4 / 108 // आभ्यां समस्त-व्यस्ताभ्याम् उपसर्गात् पराभ्यां परस्य लभः, स्वरात् परः खल्यञो-र्नोऽन्तः' स्यात् / अतिसुलम्भम्, अतिदुर्लम्भम्; अतिसुलम्भः, अतिदुर्लम्भः; अतिसुदुर्लम्भम्, अतिसुदुर्लम्भः / उपसर्गादित्येव-सुलभम् // नशो धुटि / 4 / 4 / 109 // नशेः स्वरात् परो धुडादी प्रत्यये 'न् अन्तः' स्यात् / नंष्टा / धुटीति किम् ? नशिता // 109 // _ मस्जेः सः / 4 / 4 / 110 // मस्जेः स्वरात् परस्य सस्य धुडादौ प्रत्यये 'न् अन्तः' स्यात् / मता // - अः सृजि-दृशोऽकिति / 4 / 4 / 111 // अनयोः स्वरात् परो धुडादौ प्रत्यये 'अदन्तः स्यात्, न तु किति' / स्रष्टा, द्रष्टुम् / अकितीति किम् ? सृष्टः // 111 // Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 264 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् स्पृशादि-सृपो वा / 4 / 4 / 112 // स्पृश-मृश-कृष-तृप-दृपां सृपश्च स्वरात् परो धुडादौ प्रत्यये 'अदन्तो वा स्यात्, अकिति' / स्प्रष्टा, स्पर्टा; म्रष्टा, मी; क्रष्टा, कर्टा; त्रप्ता, ता; द्रप्ता, दर्ताः सप्ता, सप्तर्ता // 112 // .. . इस्वस्य तः पित्कृति / 4 / 4 / 113 // ह्रस्वान्तस्य धातोः पिति कृति 'त् अन्तः' स्यात् / जगत् / हूस्वस्येति किम् ? ग्रामणीः / कृतीति किम् ? अजुहवुः // 113 // अतो म आने / 4 / 4 / 114 // धातोर्विहिते आने ‘अतो मोऽन्तः' स्यात् / पचमानः / अत इति किम् ? शयानः // 114 // आसीनः / 4 / 4 / 115 // आस्तेः परस्य ‘आनस्यादेरीनिंपात्यते' / आसीनः, उदासीनः // 115 // __ ऋतां ङितीर् / 4 / 4 / 116 // ऋदन्तस्य धातोः क्ङिति प्रत्यये 'ऋत इर्' स्यात् / तीर्णम्, किरति // ओष्ठ्यादुर / 4 / 4 / 117 // धातोरोठ्यात् परस्य 'ऋतः क्ङित्युर् स्यात् / पूः, बुभूषति, वुवूर्षते // इसासः शासोऽङ्-व्यञ्जने / 4 / 4 / 118 // . 'शास्तेरासोऽङि क्ङिति व्यञ्जनादौ च परे इस्' स्यात् / अशिषत्, शिष्टः / अव्यञ्जन इति किम् ? शासति // 118 // क्वौ / 4 / 4 / 119 // 'शास आसः क्वी इस्' स्यात् / मित्रशीः // 119 // आङः / 4 / 4 / 120 // . Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 265 'आङः परस्य शास आसः क्वावेव इस्' स्यात् / आशीः / क्वावित्येवआशास्ते // 120 // वोः प्वव्यञ्जने लुक् / 4 / 4 / 121 // पौ यवर्जव्यञ्जनादौ च परे 'य्वोर्लुक्' स्यात् / क्नोपयति, स्मातम्, देदिवः, कण्डूः / य्वर्जनं किम् ? क्नूय्यते // 121 // .. कृतः कीर्तिः / 4 / 4 / 122 // 'कृतणः कीर्तिः' स्यात् / कीर्तयति // 122 // इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितायां सिद्धहेमचन्द्राभिधानस्वोपज्ञशब्दानुशासन लघुवृत्ती चतुर्थस्याध्यायस्य चतुर्थः पादः समाप्तः // 4 // 4 // - दुर्योधनोर्वीपतिजैत्रबाहु- र्गृहीतचेदीशंकरोऽवतीर्णः / ' अनुग्रहीतुं पुनरिन्दुवंश, श्रीभीमदेवः किल भीम एव // 16 // // चतुर्थोऽध्यायः समाप्तः // Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . : . . श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // ॐ अर्ह नमः // कलिकालसर्वज्ञश्रीहेमचन्द्राचार्यविरचित-धातुपाठः / ar no xow gu a a a a a भू सत्तायाम् / 27 पां पाने / | 28 घ्रां गन्धोपादाने / | 29 ध्मां शब्दा-ऽग्निसंयोगयोः / / ष्ठां गतिनिवृत्तौ / म्नां अभ्यासे / दां दाने / 8 जिं 9 जिं अभिभवे / / | 34. 10 किं क्षये / 35 इं 12 दुं 13 छै 14 15 सुं गतौ / 16 धुं स्थैर्ये च / सुं प्रसवैश्वर्ययोः / 18 स्मूं चिन्तायाम् / 45. ___ गू 20 धुं सेचने / 47 21 औस्वृ शब्दोपतापयोः / ववरण / 23 ध्व॒ 24 बूं कौटिल्ये / 25 सुं गतौ / 26 प्रापणे च / तृ पवन- तरणयोः / टूधे पाने / दैव शोधने / ध्य चिन्तायाम् / ग्लैं हर्षक्षये / म्हें गात्रविनामे / धै न्यङ्गकरणे / 3 स्वप्ने / . तप्तौ / कैं 37 - 38 रै शब्दे / ष्ट्य 40 स्त्य सङ्घाते च / बैं खदने / झै 43 44 सैं क्षये। . 46 8 पाके / पैं . 48 ओवै शोषणे। ष्ण वेष्टने / फक्क नीचैर्गतौ / तक हसने / तकु कृच्छ्रजीवने / शुक गतौ / 22 Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 267 54 बुक भाषणे / / 99 शुच शोके / 55 ओख 56 राख 57 लाख | 100 कुच शब्दे तारे / 58 द्राख 59 धाख 101 क्रुश्च गती। शोषणालमर्थयोः / / 102 कुञ्च च कौटिल्याल्पी६० शाख 61 श्लाख व्याप्ती / भावयोः / कक्ख हसने / 103 लुच अपनयने / 63 उख 64 नख 65 णख | 104 अर्च पूजायाम् / वख 67 मख 68 रख 105 अञ्यू गतौ च / 69 लख 70 मखु 71 रखु / 106 वञ्चू 107 चञ्चू __73 रिखु 74 इख 108 तज्बू 109 त्वंञ्बू ___76 ईखु 77 वल्ग 110 मञ्चू 111 मुञ्चू रगु 79 लगु 80 तगु 112 मृज् 113 मृचू 82 श्लगु 83 अगु | 114 म्लुचू 115 ग्लुञ्चू वगु 85 मगु 86 खगु 116 षस्व गती / इगु 88 उगु 89 रिगु 117 ग्रुचू 118 ग्लुचू स्तेये / 90 लिगु गतौ / 119. म्लेछ अव्यक्तायां वाचि / 91 त्वगु कम्पने च / 120 लछ 121 लाछु लक्षणे। 92 युगु 93 जुगु 122 वाछु इच्छायाम् / 94 वुगु वर्जने / 95 गग्घ 123 आछु आयामे / हसने / / 124 हीछ लज्जायाम् / 96 . दघु पालने / 125 हुर्णा कौटिल्ये / 97 . शिघु आघ्राणे / ... / 126 मुळ मोह-समुछाययोः / 98 लघु शोषणे / 127 स्फुर्जा 128 स्मुर्जा (अत्र 'मधु मण्डने' इत्येके पठन्ति) | विस्मृती / Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - 268 श्रीसिबहेमचन्नशब्दानुशासनम् 129 युछ प्रमादे / 163 . गर्ज 164 गुजु 130 धृज 131 धृजु | 165 गृज 166 गृजु 132 ध्वज 133 ध्वजु 167 मुज. 168 मुजु 134 ध्रज. 135 ध्रजु 169 मृज 170 मज शब्दे / 136 वज 137 व्रज 171 गज मदने च / 138 षस्ज गती। 172 त्यजं हानी। 139 अज क्षेपणे च। 173 षों सके। 140 कुजू 141 खुजू. स्तेये / | 174 कटे वर्षावरणयोः / 142 अर्ज 143 सर्ज अर्जने / 175 शट रुजाविशरणगत्यव१४४ कर्ज व्यथने / शातनेषु / 145 खर्ज मार्जने च। 176 वट वेष्टने / 146 खज मन्ये / / 177 किट 178 खिट उत्त्रासे / 147 खजु गतिवैकल्ये / 179 शिट 180 षिट अनादरे / 148 एजृ कम्पने / 181 जट 182 झट संघाते / 149 ट्वोस्फूर्जा वनिर्घोषे / . | 183 पिट शब्दे च / 150 सीज 151 कूज 152 गुज 184 भट भृतौ / 153 गुजु अव्यक्ते शब्दे / 185 तट उछाये / 154 लज 155 लजु 186 खट काक्षे / 156 तर्ज भर्त्सने / 187 णट नृत्ती / 157 लाज 158 लाजु 188 हट दीप्ती / भर्जने छ। 189 षट अवयवे / 159 जज 160 जजु युद्धे / / 190 लुट विलोटने / 161 तुज हिंसायाम् / 191 चिट प्रष्ये / 162 तुजु बल्ने छ। 192 विट शब्दे / Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 269 193 हेट विबाधायाम् / 222 शठ कैतवे च / 194 अट .195 पट 223 शुठ गतिप्रतीघाते / 196 'इट 197 किट 224 कुठु 225 लुठु 198 कट 199 कटु आलस्ये च / 200 कटै गतौ / 226 शुटु शोषणे। 201 कुटु वैकल्ये / 227 अठ 228 रुठु गतौ / 202 मुट प्रमर्दने / 229 पुडु प्रमर्दने / 203 चुट 204 चुटु 230 मुडु खण्डने च / ___ अल्पीभावे / / 231 मडु भूषायाम् / 205 वटु विभाजने / 232 गडु वदनैकदेशे / 206 रुटु 207 लुटु स्तेये / | 233 शौड गर्वे / 208 स्फट 209 स्फुट 234 यौड सम्बन्धे / विसरणे / / 235 मेट्ट 236 ग्रेड 210 लट बाल्ये / 237 म्लेड 238 लोड 211 रट 212 रठ च . | 239 लौड उन्मादे / / . परिभाषणे / | 240. रोड 241 रौड़ 213 पठं व्यक्तायां वाचि / 242 तौड़ अनादरे / 214 वठ स्थौल्ये / 243 क्रीड़ विहारे / 215 मठ मंद-निवासयोश्च / / 244 तुट्ट 245 तूट्ट 216 कठ कृच्छ्रजीवने / 246 तोड़ तोडने / 217 हठ बलात्कारे / . 247 हुड 248 हूड 218 उठ. . 219 रुठ 249 हूडू 250 हौड़ गतौ / 220 लुठ उपघाते / 251 खोड प्रतीघाते / 221. पिठ हिंसा-संकेशयोः / / 252 विड आक्रोशे / Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 270 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 253 अड उद्यमे / 286 . कित निवासे / 254 लड विलासे / 287 ऋत घृणा-गति-स्पर्द्धषु / 255 कडु मदे / 288 कुथु 289 पुथु 256 कद्ड कार्कश्ये / 290 लुथु 291 मथु 257 अद्ड अभियोगे / 292 मन्थ 293 मान्थ 258 चुद्ड हावकरणे / हिंसा-संकेशयोः / 259 अण 260 रण . 294 खादृ भक्षणे / 261 वण 262 व्रण 295 बद स्थैर्ये / 263 बण 264 भण 296 खद हिंसायां च / 265 भ्रण 266 मण 297 गद व्यक्तायां वाचि / 267 धण 268 ध्वण 298 रद विलेखने / 269 ध्रण 270 कण 299 णद 300 जिक्ष्विदा 271 क्वण 272 चण शब्दे / अव्यक्ते शब्दे / 273 ओण अपनयने / 301 अर्द गति-याचनयोः / 274 शोण वर्ण-गत्योः / 302 नई 303 णर्द 275 श्रोण 276 श्लोण संघाते / 304 गर्द शब्दे / 277 पैण गति-प्रेरण-श्लेषणेष / 305 तर्द हिंसायाम् / 278 चितै संज्ञाने / 306 कर्द कुत्सिते शब्दे / 279 अत सातत्यगमने / 307 खर्द दशने / 280 च्युत् आसेचने / 308 अदु बन्धने / 281 चुत् 282 स्चुत् 309 इदु परमैश्वर्ये / 283 स्व्युत् क्षरणे / 310 विदु अवयवे / / 284 जुत् भासने / 311 -णिदु कुत्सायाम् / 285 अतु बन्धने / 312 टुनदु समृद्धौ / Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 271 313 चदु दीप्त्याह्लादयोः / 345 त्रुप 346 त्रुम्प 314 बृदु चेष्टायाम् / 347 तुफ 348 तुम्फ 315 कदु 316 क्रदु 349 त्रुफ 350 त्रुम्फ 317 कूदु रोदनाह्वानयोः / हिंसायाम् / 318 किदु परिदेवने / 351 वर्फ 352 रफ 319 स्कन्दं गति-शोषणयोः / 353 रफु 354 अर्ब 320 षिधू गत्याम् / 355 कर्ब 356 खर्ब 321 षिधी शास्त्र-माङ्गल्ययोः / 357 गर्ब 358 चर्ब 322 शुन्ध शुद्धौ / 359 तर्ब 360 नर्ब 323 स्तन 324 धन 361 पर्ब 362 वर्ब 325 ध्वन 326 चन / 363 . शर्ब 364 षर्ब 327 स्वन 328 वन शब्दे / | 365 सर्ब 366 रिबु 329 वन 330 षन भक्तौ / / 367 रबु गतौ / / 331 कनै दीप्ति-कान्ति-गतिषु / | 368 कुबु आच्छादने / 332 गुपौ रक्षणे / 369 लुबु 370 तुबु अर्दने / 333 तपं 334 धुप संतापे। 371 चुबु वक्त्रसंयोगे। 335 रप 336 लप 372 सृभू 373 सृम्भू 337 जल्प व्यक्ते वचने / 374 निभू 375 षिम्भू ... 338 जप मानसे च / 376 भर्भ हिंसायाम् / / 339 चप सांत्वने / 377 शुम्भ भाषणे च / 340 शप समवाये / 378 यभं 379 जभ मैथुने / 341 सप्टुं गतौ / .. 380 चमू 381 छमू 342 चुप मन्दायाम् / 382 जमू 383 झमू 343 तुप 344 तुम्प 384 जिमू अदने / Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 272 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 385 क्रमू पादविक्षेपे / 415 मील 416 श्मील 386 यमूं उपरमे / 417 स्मील 418 मील निमेषणे / 387 स्यमू शब्दे / 419 पील प्रतिष्टम्भे / 388 णमं प्रह्वत्वे / 420 णील वर्णे। 389 षम 390 ष्टम वैकुव्ये / 421 शील समाधी / 391 अम शब्द-भक्त्योः / 422 कील बन्धे / / 392 अम 393 द्रम . 423 कूल आवरणे / 394 हम्म 395 मिम् / 424 शूल रुजायाम् / 396 गम्लं गतौ / 425 तूल निष्कर्षे / 397 हय 398. हर्य कान्तौ च / / 426 पूल संघाते / 399 मव्य बन्धने / 427 मूल प्रतिष्ठायाम् / 400 सूर्ध्य 401 ईर्ष्या 428 फल निष्पत्ती / 402 ईj ईर्ष्यार्थाः / 429 फुल्ल विकसने / 403 शुच्यै 404 चुच्यै 430 चुल्ल हावकरणे / अभिषवे / 431 चिल्ल शैथिल्ये च / 405 त्सर छद्मगतौ / 432 पेल 433 फेल 434 शेल 406 क्मर हूर्छने / 435 खेल 436 सेल 437 वेद 407 अभ्र 408 बभ्र 438 सल 439 तिल 440 तिल्ल 409 मध्र गतौ / 441 पल्ल 442 वेल्ल गतौ / 410 चर भक्षणे च / 443 वेल 444 चेल 445 केल 411 घोर गतेश्चातुर्ये / 446 क्वेत 447 खेल 412 खोर प्रतीपाते / 448 स्खल चलने / 413 दल 414 जिफला 449 खल संघये च / विशरणे / / 450 श्वलं 451 श्वल्ल आशुगती Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 273 452 गत 453 पर्व अदने / / दीत्यवात्या-ऽऽलिलान-हिं४५४ पूर्व * 455 पर्व सा-दहन-भाव-वृद्धिषु 456 मर्व पूरणे / [ एकोनविंशतावर्षषु // 457 मर्व 458 धवु / 459 शव गती। 490 कश शब्दे / 460 कर्व. 461 खर्व / 491 मिश 492 मश रोषे च। 462 गर्व दर्प। 493 शश प्लुतिगती। 463 टिवू 464 क्षिवू निरसने / 494 णिश समाधी / 465 जीव प्राणधारणे / . 495 दृशं प्रेक्षणे / . 466 पीव 467 मीव 468 तीव 496 दंशं पशने / 469 नीव स्थौल्ये / 497 घुष शब्दे / 470 उर्व 471 तुर्वै 472 युर्व 498 चूष पाने / 473 दुर्व 474 धुर्व 475 जुर्व | 499 तूष तुष्टी / 476 अर्व 477 भर्व 500 पूष वृद्धौ / 478 शर्व हिंसायाम् / 501 रुष 502 मूष स्तेये / 479 मुर्व 480 मव बन्धने / / 503 खूष प्रसवे / 481 गुर्व उधमे / 482 पिवू | 504 ऊष रुजायाम् / 483 मिवु 484 निवु सेचने / | 505 ईष उज्छे / 485 हिवु 486 विवु | 506 कृष विलेखने / 487 जिवु प्राणने / 507 कब 508 शिष 509 जब 488 इबु व्याप्ती च। | 510 प्रब 511 वष 512 मष 489 अव रक्षण-गति-कान्ति- 513 मुष 514 रुप 515 रिष तृत्यवगमन-प्रवेश-श्रवण- 516 पूष 517 जूष 518 शप स्वाम्यर्थ-याचन-क्रियेच्छा- 519 चप हिंसायाम् / Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 274 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 520 वृषू संघाते च / | 555 रहु गतौ / 521 भष भर्त्सने / 556 दह 557 दहु 522 जिषू 523 विषू 524 मिषू | 558 बृह वृद्धौ / 525 निषू 526 पृषू 527 वृषू / 559 बृह 560 बृहु शब्दे च / 528 मृषू सहने च / 561 उह 562 तुह 529 उषू 530 श्रिषू 531 श्लिषू 563. दुह् अर्दने / 532 पुष 533 प्लुष दाहे / / 564 अर्ह 565 मह पूजायाम् / 534 घृषू संहर्षे / . | 566 उक्ष सेचने / 535 हृषू अलीके / 567 रक्ष पालने / 536 पुष पुष्टी / 568 मक्ष 569 मुक्ष सजाते। 537 भूष 538 तसु अलझारे / | 570 अक्षौ व्याप्तौ च / 539 तुस 540 इस 541 इस | 571 तक्षौ 572 त्वक्षौ तनूकरणे / 542 रस शब्दे / 573 णिक्ष चुम्बने / 543 लस श्लेषण-क्रीडनयोः / 574 तृक्ष 575 स्तृक्ष 544 घस्सं अदने / 576 णक्ष गतौ / 545 हसे हसने / 577 वक्ष रोषे / 546 पिसृ 547 पेस 578 त्वक्ष त्वचने / 548 वेसृ गतौ / 579 सूर्फ अनादरे / 549 शसू हिंसायाम् / 580 काक्षु 581 वाक्षु 550 शंसू स्तुतौ च / 582 माक्षु काक्षायाम् / 551 मिहं सेचने / 583 द्राक्षु 584 ध्राक्षु 552 वह भस्मीकरणे / 585 ध्वाक्षु घोरवाशिते च / 553 वह कल्कने / // इति परस्मैभाषाः // 554 रह त्यागे / Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 622 कपुर श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 275 586 गांङ् गतौ / 616 रेकृङ् 617 शकुङ् 587 "ष्मिंङ् ईषद्धसने / शङ्कायाम् / 588 डीङ् विहायसां गतौ / 618 ककि लौल्ये / / 589 उंङ् 590 कुंङ् 591 गुंङ् | 619 कुकि 620 वृकि आदाने / 592 पुंङ् 593 कुंङ् शब्दे / 621 चकि तृप्ति-प्रतीघातयोः / 594 च्युङ् 595 ज्युङ् ककुङ् 623 श्वकुङ् 596 जुंङ् 597 श्रृंङ् 624 बकुङ् 625 श्रकुङ् 598 प्लुङ् गतौ / / 626 श्लकुङ् 627 दौकृङ् 599 रुंङ् रेषणे च / 628 त्रौकृङ् 629 ष्वष्कि 600 पूङ् पवने / 630 वस्कि 631 मस्कि 601 मूङ् बन्धने / / 632 तिकि 633 टिकि 602 धुंङ् अविध्वंसने / / 634 टीकृङ् 635 सेकृङ् 603 मेंङ् प्रतिदाने / 636 रोकृङ् 637 रघुङ् 604 दें 605 त्रैङ् पालने / 638 लघुङ् गतौ / 606 श्यङ् गतौ / 639 अघुङ् 640 वघुङ् गत्याक्षेपे / 607 प्र्यैङ् वृद्धौ / 641 मघुङ् कैतवे च / 608 वकुङ् कौटिल्ये / / 642 राघृङ् 643 लाघृङ् 609 मकुङ् मण्डने / सामर्थे / 610 अकुङ् लक्षणे / 644 द्राघृङ् आयासे च / 611 शीकृङ् सेचने / 645 श्लाघृङ् कत्थने / 612 लौकृङ् दर्शने / 646 लोचूङ् दर्शने / 613 श्लोकृङ् साते / 647 षचि सेचने / 614 रोकृत् 615 धेकृङ् 648 शचि व्यक्तायां वाचि / .. शब्दोत्साहे / / 649 कचि बन्धने / Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 276 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 650 क्रचुङ् दीप्तौ च / / | 677 मठुङ् 678 कठुङ् शोके / 651 श्वचि 652 श्वचुङ् गतौ। | 679 मुठुङ् पलायने / 653 वर्चि दीप्तौ / 680 वटुङ् एकचर्यायाम् / 654 मचि 655 मुचुङ् कल्कने / 681 अठुङ् 682 पठुङ् गती / 656 मचुङ् धारणोच्छ्राय-पूजनेषु 683 हुडुङ् 684 पिडुङ् सझाते। 685 ,शडुङ् रुजायां च / / 657 पचुङ् व्यक्तीकरणे / 686 तडुङ् ताडने / 658 ष्टुचि प्रसादे / 687 कडुङ् मदे / 659 एजुङ् 660 प्रेजुङ् 688 खडुङ् मन्थे / 661 भ्राजि दीप्तौ / 689 खुडुङ् गतिवैकल्ये / 662 इजुङ् गतौ / 690. कुडुङ् दाहे / 663 ईजि कुत्सने च / 691 वडुङ् 692 मडुङ् वेष्टने / 664 ऋजि गतिस्थानार्जनोर्जनेषु / 693 भडुङ् परिभाषणे / 665 ऋजुङ् 666 भृजङ् 694 मुडुङ् मज्जने / भर्जने। 695 तुडुङ् तोड़ने / 667 तिजि क्षमा-निशानयोः / 696 भुडुङ् वरणे / 668 घट्टि चलने / 697 चडुङ् कोपे / 669 स्फुटि विकसने / 698 द्राडङ् 699 धाडङ् 670 चेष्टि चेययाम् / विशरणे। 671 गोष्टि 672 लोष्टि संघाते / 700 शाडङ् श्लाघायाम् / 673 वेष्टि वेष्टने / 701 वाट्टङ् आप्पाव्ये / . 674 अट्टि हिंसा-ऽतिक्रमयोः / 702 हेडङ् 703 होड अनादरे / 675 एठि 676 हेठि 704 हिडुङ् गती च / विवाधायाम् / | 705 घिणुङ् 706 घुणुङ् Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 277 707 घृणुङ् ग्रहणे / 735 गुदि क्रीडायाम् / 708 घुणि 709 घूर्णि भ्रमणे / | 736 षूदि क्षरणे / 710 पणि व्यवहार-स्तुत्योः / 737 हादि शब्दे / 711 यतैङ् प्रयले / . 738 लादैङ् सुखे च / 712 युतृङ् 713 जुतृङ् भासने / | 739 पर्दि कुत्सिते शब्दे / 714 विथङ् 715 वेथूङ् याचने / / 740 स्कुदुङ् आप्रवणे / 716 नाथङ् उपतापैश्वर्याशीःषु च / / | 741 एधि वृद्धौ / 717 श्रथुङ् शैथिल्ये / 742. स्पर्द्धि सङ्घर्षे / 718 ग्रथुङ् कौटिल्ये / / 743 गाधृङ् प्रतिष्ठा-लिप्सा७१९ कत्थि श्लाघायाम् / ग्रन्थेषु / 720 श्विदुङ् श्वैत्ये / - 744 बाधृङ् रोटने / 721 वदुङ् स्तुत्यभिवादनयोः / 745 दधि धारणे / 722 भदुङ् सुख-कल्याणयोः / | 746 बधि बन्धने / 723 मदुङ् स्तुति-मोद-मद-स्वप्न- 747 •नाधृङ् नाथवत् / गतिषु / 748 पनि स्तुतौ / 724: स्पदुङ् किञ्चिच्चलने / | 749 मानि पूजायाम् / 725 किदुङ् परिदेवने / / 750 तिपृङ् 751 ष्टिपृङ् 726 मुदि हर्षे / 752 टेपृङ् क्षरणे / .. 727 ददि दाने / 753 तेपृङ् कम्पने च / 728 हदिं पुरीषोत्सर्गे। 754 टुवेपृङ् 755 केपृङ् 729 ष्वदि 730 स्वर्दि . 756 गेपृङ 757 कपुङ् चलने / 731 स्वादि आस्वादने / 758 ग्लेपृङ् दैन्ये च / 732 उर्दि मान-क्रीडयोश्च / 759 मेपृङ् 760 रेपृङ् 733 कुर्दि 734 गुर्दि 761 लेपृङ् गतौ / Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 278 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 762 पौषि लज्जायाम् / 794 नयि. . 795 चयि 763 गुपि गोपन-कुत्सनयोः / 796 रयि गतौ / 764 अबुङ् 765 रबुङ् शब्दे / | 797 तयि 798 णयि रक्षणे च / 766 लबुङ् अवनंसने च / 799 दयि दान-गति-हिंसा-दह७६७ कबृङ् वर्णे। नेषु च / 768 कीबृङ् अधाये। 800 ऊयैङ् तन्तुसन्ताने / 769 क्षीबृङ् मदे / 801 पूयैङ् दुर्गन्ध-विशरणयोः / 770 शीभृङ् 771 वीभृङ् . 802 क्नूयैङ् शब्दोन्दनयोः / / 772 शल्भि कत्थने / 803 मायैङ् विधूनने / 773 वल्भि भोजने / 804 स्फायैङ् 805 ओप्यायैङ् 774 गल्भि धाये / वृद्धौ / 775 रेभङ् 776 अभुङ् 806 तायङ् सन्तान-पालनयोः / 777 रभुङ् 778 लभुङ् शब्दे / / 807 वलि 808 वल्लि संवरणे / 779 ष्टभुङ् 780 स्कभुङ् 809 शलि चलने च / 781 ष्टुभूङ् स्तम्भे / | 810 मलि 811 मल्लि धारणे / 782 जभुङ् 783 जभैङ | 812 भलि 813 भल्लि परिभा७८४ जुभुङ् गात्रविनामे / षण-हिंसा-दानेषु / 785 रभिं राभस्ये / 814 कलि शब्द-संख्यानयोः / 786 डुलभिंष् प्राप्तौ / 815 कल्लि अशब्दे / 787 भामि क्रोधे / 816 तेवृङ् 817 देवृङ् देवने।। 788 क्षमौषि सहने / 818 षेवृङ् 819 सेवृङ् 789 कमूङ कान्तौ / 820 केवृङ् 821 खेवृङ् 790 अयि 791 वयि 822 गेवृङ् 823 ग्लेवृङ् 792 पयि 793 मयि 824 पेवृङ् 825 प्लेवृङ् Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 279 826 मेवृङ् 827 म्लेवृङ् सेवने / | 857 ईहि चेष्टायाम् / 828 रेघृङ् 829 पवि गतौ / | 858 अहुङ् 859 पिहि गतौ / 830 काशृङ् दीप्तौ / 860 गर्हि 861 गल्हि कुत्सने / 831 केशि विबाधने / 862 वर्हि 863 वल्हि प्राधान्ये / 832 भाषि च व्यक्तायां वाचि / / 864 बर्हि 865 बल्हि परि८३३ ईष गति-हिंसा-दर्शनेषु / / | भाषण-हिंसा-च्छादनेषु / 834 गेषङ् अन्विच्छायाम् / 866 वेहङ् 867 जेहङ् 835 येषङ् प्रयले। 868 वाहृङ् प्रयले / 836 जेषङ् 837 णेषङ् | 869 द्राहङ् निक्षेपे / 838 एङ् 839 द्वेषङ् गतौ / / 870. ऊहि तर्के / 840 रेपृङ् 841 हेपृङ् अव्यक्ते | 871 गाहौङ् विलोडने / शब्दे / / 872 ग्लहौङ् ग्रहणे / 842 पर्षि स्नेहने / 873 वहुङ् 874 महुङ् वृद्धौ / 843 घुषुङ् कान्तीकरणे / 875 दक्षि शैघ्ये च / 844 संसूङ् प्रमादे / 876 धुक्षि 877 धिक्षि सन्दी८४५ कासृङ् शब्दकुत्सायाम् / * पन-केशन-जीवनेषु / 846 भासि 847 टुभ्रासि / 878 वृक्षि वरणे / 848 टुभासृङ् दीप्तौ / 879 शिक्षि विद्योपादाने / 849 रासृङ् 850 णासृङ् शब्दे / | 880 भिक्षि याञ्चायाम् / 851 णसि कौटिल्ये / 881 दीक्षि मौण्ड्येज्योपनयन८५२ भ्यसि भये / / नियम-व्रतादेशेषु / 853 आङः शसुङ् इच्छायाम् / / 882 ईक्षि दर्शने / 854 ग्रसूङ् 855 ग्लसूङ् अदने / // इति आत्मनेभाषाः // 856 घसुङ् करणे / Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 280 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 883 श्रिग् सेवायाम् / सन्निकर्षयोः / 884 णींग प्रापणे / 907 मिदृग् 908 मेदृग् मेधा८८५ हँग हरणे / हिंसयोः / 886 भुंग भरणे / ... 909 मेधृग् सङ्गमे च / 887 धुंग धारणे। 910 शृधूगु 911 मृधूम् उन्दे / / 888 डुकंग करणे / | 912 बुधग् बोधने / 889 हिक्की अव्यक्ते शब्दे / 913. खनूग अवदारणे / . 890 अञ्चूग् गतौ च / .914 दानी अवखण्डने / / 891 डुयाग याञ्चायाम् / | 915 शानी तेजने / 892 डुपचीष् पाके / 916 शपी आक्रोशे / 893 राजृग् 894 टुभ्राजि दीप्तौ / 917 चायग् पूजा-निशामनयोः / 895 भजी सेवायाम् / 918 व्ययी गतौ / 896 रनी रागे / 919 अली भूषण-पर्याप्ति-वारणेषु / 897 रेट्टग परिभाषण-याचनयोः / | 920 धावून गति-शुद्ध्योः / 898 वेणूग् गति- ज्ञान-चिन्ता 921 चीवृग् झषीवत् / निशामन-वादित्र-ग्रहणेषु / 922 दाग दाने / 899 चतेग याचने / 923 झषी आदान- संवरणयोः / 900 प्रो¥ग पर्याप्तौ / 924 भेग भये / 901 मिश्रृग् मेधा-हिंसयोः / 925 भ्रषग चलने च / 902 मेग् सङ्गमे च / 926 पषी बाधन-स्पर्शनयोः / 903 चदेग् याचने / 927 लषी कान्तौ / 904 ऊबुन्दग निशामने / 928 चषी भक्षणे / 905 णिदृगु 906 णेदग कत्सा- | 929 छषी हिंसायाम् / 930 त्विषीं दीप्तौ / / Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / . . त्रातिदहमचन्प्रशब्दानुशासन श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 281 931 अषी 932 असी गत्या- | 955 वृतूङ् वर्तने / . दानयोश्च / / 956 स्यन्दौङ् स्रवणे / 933 दासृग् दाने / 957 वृधूङ् वृद्धौ / 934 माग माने / 958 शृधूङ् शब्दकुत्सायाम् / 935 गुहौग संवरणे / 959 कृपौङ् सामर्थ्ये / 936 भ्लक्षी भक्षणे / // वृत युतादयः // // इति उभयतोभाषाः // 960 ज्वल दीप्तौ / 937 घुति दीप्तौ / 961 कुच् सम्पर्चन-कौटिल्य९३८ रुचि अभिप्रीत्यां च / . प्रतिष्टम्भ-विलेखनेषु / 939 घुटि परिवर्तने / / | 962 पल 963 पथे गतौ / 940 रुटि 941 लुटि / / / 964 क्वथे निष्पाके / 942 लुठि प्रतीपाते / | 965 मथे विलोडने / 943 श्विताङ् वर्णे। 966 षद्लं विशरण-गत्यवसा९४४ जिमिदाङ् स्नेहने / दनेषु / 945 - निविदाङ् - 967 शद्लं शातने / 946 अिष्विदाङ् मोचने च / 968 बुध अवगमने / 947 शुभि दीप्ती / 969 टुवमू उद्गिरणे / . 948 क्षुभि संचल्ने / 970 भ्रमू चलने / 949 णभि 950 तुभि 971 क्षर संचलने / हिंसायाम्। 972 चल कम्पने / 951 नम्भू विश्वासे / 973 जल घात्ये / 952 अंशूङ 953 संसूङ् अव- | 974 टल 975 ट्वल वैकुव्ये / संसने / | 976 ठल स्थाने / 954 ध्वंसूङ् गती च / Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 282 . श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् .. 977 हल विलेखने / / 999 वसं निवासे / . 978 णल गन्धे / // वृत् यजादिः // 979 बल प्राणनधान्यावरोधयोः / / 980 पुल महत्त्वे / 1000 घटिष् चेष्टायाम् / 981 कुल बन्धु-संस्त्यानयोः / / 1001 क्षजुङ् गति-दानयोः / 982 पल 983 फल 1002 व्यथिष् भय-चलनयोः / 984 शल गतौ / 1003 प्रथिष् प्रख्याने / 985 हुल हिंसा-संवरणयोश्च / . | 1004 म्रदिष् मर्दने / 986 क्रुशं आह्वान-रोदनयोः / 1005 स्खदिष् खदने / 987 कस गतौ / 1006 कदुङ् 1007 क्रदुङ् 988 रुहं जन्मनि / 1008 कूदुङ् वैकुव्ये / 989 रमिं क्रीडायाम् / / 1009 क्रपि कृपायाम् / 990 षहि मर्षणे / . 1010 जित्वरिष् सम्भ्रमे / // वृत ज्वलादिः // 1011 प्रसिष् विस्तारे / 1012 दक्षि हिंसा-गत्योः / 991 यजी देवपूजा-सङ्गति-करण 1013 श्रां पाके / 1014 स्म॒ आध्याने / दानेषु / 992 वेंग् तन्तुसन्ताने / 1015 द् भये / 1016 नू नये / 993 व्यग् संवरणे / 1017 ष्टक 1018 स्तक 994 लैंग् स्पर्धा-शब्दयोः / प्रतीपाते / 995 टुवपी बीजसन्ताने / 1019 चक तृप्तौ च / 996 वहीं प्रापणे / 997 ट्वोश्वि गति-वृद्ध्योः 1020 अक कुटिलायां गतौ / / 998 वद व्यक्तायां वाचि / | 1021 कखे हसने / Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 283 1022 अग अकवत् / 1052 स्वन अवतंसने / 1023 रगे.शङ्कायाम् / 1053 चन हिंसायाम् / .. 1024 लगे सङ्गे / 1054 ज्वर रोगे / 1025 ह्रगे 1026 हगे। 1055 चल कम्पने / 1027 षगे 1028 सगे 1056 हल 1057 ह्मल चलने / 1029 ष्टगे 1030 स्थगे 1058 ज्वल दीप्तौ च / संवरणे। // वृत् घटादिः // 1031 वट 1032 भट // इति भ्वादयो निरनुबन्धा - परिभाषणे / / धातवः समाप्ताः // 1033 णट नतौ / 1034 गड सेचने / 1035 हेड वेष्टने / 1059 अदं 1060 प्सांक 1036 लड जिह्वोन्मन्थने / . भक्षणे / 1037 फण 1038 कण 1061 भांक दीप्तौ / 1039 रण गतौ / .. 1062 यांक प्रापणे / 1040 चण हिंसा-दानयोश्च / 1063 वांक गति-गन्धनयोः / 1041 शण 1042 श्रण दाने। 1064 ष्णांक शौचे / 1043 स्नथ 1044 क्नथ / / 1065 श्रांक पाके। 1045 क्रथ 1046 कुथ 1066 द्रांक् कुत्सितगतौ / . हिंसाः / 1067 पांक् रक्षणे / 1047 छदे ऊर्जने / 1068 लांक आदाने / 1048 मदै हर्ष-ग्लपनयोः / 1069 रांक् दाने / 1049 टन 1050 स्तन / 1070 दांवक् लवने / ... 1051 ध्वन शब्दे। 1071 ख्यांक प्रथने / Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - 284 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् . [ प्रकथने इत्यन्ये ] 1095 शासूक् अनुशिष्टौ / 1072 प्रांक पूरणे / 1096 वचंक् भाषणे / 1073 मांक माने / 1097 मृजौक् शुद्धौ / 1074 इंक स्मरणे / 1098 सस्तुक् स्वप्ने / 1075 इंण्क् गतौ / 1099 विदक् ज्ञाने / 1076 वींक प्रजन-कान्त्यसन- 1100 हनंक हिंसा-गत्योः / . खादने च / 1101 वशक् कान्तौ / / 1077 छुक् अभिगमे / .. | 1102 असक् भुवि / 1078 कुंक् प्रसवैश्वर्ययोः / 1103 षसक् स्वप्ने / 1079 तुंक् वृत्ति-हिंसा-पूरणेषु / यङ्लुप् च / 1080 युक् मिश्रणे / |. // इति परस्मैभाषाः // 1081 णुक् स्तुतौ / 1082 क्ष्णुक् तेजने / 1083 स्नुक् प्रस्नवने / 1104 इंङ् अध्ययने / 1084 टुक्षु 1085 रु . 1105 शीङ्क स्वप्ने / 1086 कुंक् शब्दे / 1106 हजुङ् अपनयने / 1087 रुदृक् अश्रुविमोचने / 1107 फूडौक् प्राणिगर्भविमोचने 1088 जिष्वपंक् शये / 1108 पृचैङ् 1109 पृजुङ् 1089 अन 1090 श्वसक् 1110 पिजुकि संपर्चने / प्राणने / 1111 वृजैकि वर्जने / 1091 जक्षक् भक्ष-हसनयोः / 1112 णिजुकि शुद्धौ / 1092 दरिद्राक् दुर्गतौ / 1113 शिजुकि अव्यक्ते शब्दे / 1093 जागृक् निद्राक्षये / 1114 ईडिक् स्तुतौ / 1094 चकासृक् दीप्तौ / 1115 ईरिक गति-कम्पनयोः / Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 285 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् / 1116 ईशिक् ऐश्वर्ये / 1135 क्रंक् गतौ / 1117 वसिक् आच्छादने / // इति परस्मैभाषाः // 1118 आङः शासूकि इच्छायाम् / 1119 आसिक् उपवेशने / 1136 ओहां गतौ / 1120 कसुकि गति-शातनयोः / / 1137 मांङ् मान-शब्दयोः / 1121 णिसुकि चुम्बने / // इति आत्मनेभाषाः // 1122 चक्षिक् व्यक्तायां वाचि / // इति आत्मनेभाषाः // 1138 डुदांग्क् दाने / 1139 डुधांगक् धारणे च / 1123 ऊर्गुग्क् आच्छादने / 1140 टुडु,ग्क् पोषणे च / 1124 ष्टुंगक् स्तुती / 1141 णिजॅकी शौचे च / 1125 बॅग व्यक्तायां वाचि / 1142 विजूंकी पृथग्भावे / 126 द्विषींक् अप्रीतौ / . 1143 विष्लंकी व्याप्तौ / 1127 दुहीक क्षरणे / ___ // इति उभयतोभाषाः // }128 दिहींक लेपे / वृतहादयः 1129 लिहीक् आस्वादने / इति अदादयः कितो धातवः // // इति उभयतोभाषाः // 1144 दिवूच क्रीडा-जयेच्छा११३० हुंक् दाना-ऽदनयोः / पणि-द्युति-स्तुति-गतिषु / 1131 ओहांक् त्यागे / 1145 जूष् 1146 अष्च् 1132 जिभीक भये / जरसि / 1133 ह्रींक लज्जायाम् / | 1147 शोंच तक्षणे / 1134 पृक् पालन-पूरणयोः / | 1148 दों 1149 छोंच् छेदने / Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 286 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 1150 षोंच अन्तकर्मणि / 1175 पुषंच् पुष्टौ / 1151 व्रीडच् लज्जायाम् / 1176 उचच् समवाये / 1152 नृतैच् नर्तने / 1177 लुटच् विलोटने / 1153 कुथच् पूतिभावे / 1178 विदांच् गात्रप्रक्षरणे / 1154 पुथच् हिंसायाम् / 1179 क्लिदौच आर्द्रभावे / / 1155 गुधच् परिवेष्टने / 1180 जिमिदाच् स्नेहने / 1156 राधंच वृद्धौ / 1181 जिक्ष्विदाच मोचने च / 1157 व्यधंच ताडने / 1182 क्षुधंच बुभुक्षायाम् / 1158 क्षिपंच प्रेरणे / 1183 शुधंच शौचे / 1159 पुष्पच् विकसने / 1184 क्रुधंच कोपे / 1160 तिम 1161 तीम - 1185 षिवूच संराद्धौ / 1162 ष्टिम 1163 टीमच् | 1186 ऋधूच् वृद्धौ / आर्द्रभावे / 1187 गृधूच् अभिकाङ्क्षायाम् / 1164 षिवूच उतौ / 1188 रधौच हिंसा-संराद्ध्योः / 1165 श्रिवूच गति-शोषणयोः / 1189 तृपौच प्रीतौ / 1166 ठिवू 1167 क्षिवूच 1190 दृपीच हर्ष मोहनयोः / निरसने / 1191 कुपच् क्रोधे / 1168 इषच् गतौ / 1192 गुपच व्याकुलत्वे / 1169 ष्णसूच निरसने / 1193 युप 1194 रुप 1170 क्नसूच वृति-दीप्त्योः / 1195 लुपच् विमोहने / 1171 त्रसैच भये / 1196 डिपच् क्षेपे / 1172 प्युसच् दाहे / 1197 ष्टूपच् समुच्छाये / 1173 षह 1174 षुहच शक्तौ / 1198 लुभच् गाये / | 1199 शुभच् संचलने / Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 287 1200 णम 1201 तुभच् 1226 वसूच् स्तम्भे / हिंसायाम् / 1227 वुसच् उत्सर्गे। 1202 नशौच अदर्शने / 1228 मुसच् खण्डने / 1203 कुशच् श्लेषणे / 1229 मसैच् परिणामे / 1204 भृशू 1205 भ्रंशूच् 1230 शमू 1231 दमूच् - अधःपतने / उपशमे / 1206 वृशच वरणे / 1232 तमूच् काङ्क्षायाम् / 1207 कृशच् तनुत्वे / . 1233 श्रमूच् खेद-तपसोः / 1208 शुषंच शोषणे / 1234 भ्रमूच अनवस्थाने / 1209 दुषंच् वैकृत्ये / 1235 क्षमौच सहने / 1210. श्लिषंच् आलिङ्गने / . 1236 मदैच् हर्षे / 1211 प्लुषूच् दाहे / 1237 कुमूच् ग्लानौ / 1212 जितृषच पिपासायाम् / 1238 मुहीच वैचित्त्ये / 1213 तुषं 1214 हृषच तुष्टौ / | 1239 द्रुहोच् जिघांसायाम् / 1215 रुषच रोषे / 1240 ष्णुहौच उद्गिरणे / 1216 प्युष् 1217 प्युस्. / 1241 ष्णिहौ च प्रीतौ / 1218 पुसच् विभागे। // वृत पुषादिः // 1219 विसच् प्रेरणे / // इति परस्मैभाषाः // 1220 कुसच् श्लेषे / . 1221 असूच क्षेपणे / 1222 .यसूच् प्रयले / 1242 षूडौच् प्राणिप्रसवे / 1223 जसूच मोक्षणे / 1243 दूङ्च् परितापे / 1224 तसू 1225 दसूच 1244 दीङ्च् क्षये / . उपक्षये / 1245 धींग्च् अनादरे / Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 288 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 1246 मींच् हिंसायाम् / 1269 घूरैङ् 1270 जूरैचिः 1247 रीच् स्रवणे / जरायाम् / 1248 लींच् श्लेषणे / 1271 धूरैङ् 1272 गूरैचि गतौ / 1249 डीच् गतौ / 1273 शूरैचि स्तम्भे / .. 1250 ब्रीच् वरणे / 1274 तूरैचि त्वरायाम् / // वृत स्वादिः // घूरादयो हिंसायां च / |1275 चूरैचि दाहे / 1276 किशिच् उपतापे / 1251 पीङ्च् पाने / 1277 लिशिंच अल्पत्वे / 1252 ईङ्च् गतौ / 1278 काशिच दीप्तौ / 1253 प्रींच् प्रीती / 1279 वाशिच् शब्दे / 1254 युजिंच् समाधौ / 1255 सृजिंच विसर्गे // इति आत्मनेभाषाः // 1256 वृतूचि वरणे / 1257 पदिच् गतौ / 1280 शकींच् मर्षणे / 1258 विदिंच सत्तायाम् / 1281 शुचुगैच् पूतिभावे / 1259 खिदिच् दैन्ये / 1282 रजींच् रागे / 1260 युधिंच सम्प्रहारे / 1283 शपींच् आक्रोशे / 1261 अनो रुधिंच कामे / 1284 मृषीच तितिक्षायाम् / 1262 बुधिं 1263 मनिंच ज्ञाने / | 1285 णहींच् बन्धने / 1264 अनिच् प्राणने / // उभयतोभाषाः // 1265 जनैचि प्रादुर्भावे / // इति दिवादयश्चितो धातवः // 1266 दीपैचि दीप्तौ / 1267 तपिंच ऐश्वर्ये वा। 1286 धुंगट् अभिषवे / 1268 पूरैचि आप्यायने / 1287 पिंगट् बन्धने / Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 289 . श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 1288 शिंग्ट् निशाने / 1311 धिवुट् गतौ / 1289 डुमिंग्ट प्रक्षेपणे / 1312 जिधृषाट् प्रागल्भ्ये / 1290 चिंग्ट् चयने / // इति परस्मैभाषाः // 1291 धूगट् कम्पने / 1292 स्तुंगट आच्छादने / 1313 टिघिट आस्कन्दने / 1293 इंग्ट् हिंसायाम् / 1314 अशौटि व्याप्तौ / 1294 वृगट् वरणे / // इति आत्मनेभाषाः // // इति उभयतोभाषाः // // इति स्वादयष्टितो धातवः॥ 1295 हिंट गति-वृद्ध्योः / 1315 तुदींत् व्यथने / 1296 श्रृंट् श्रवणे / 1316 भ्रस्जीत् पाके / 1297 टुदुंट उपतापे / 1317 क्षिपीत् प्रेरणे। 1298 पृट् प्रीतौ / . 1318 दिशीत् अतिसर्जने / 1299 स्मृट् पालने च / 1319 कृषीत् विलेखने / 1300 शक्लट् शक्तौ / 1301 तिक 1302 तिग | 1320 मुच्छंती मोक्षणे / 1303 षघट् हिंसायाम् / / 1321 षिचीत् क्षरणे / 1304 राधं 1305 साधंट 1322 विलंती लाभे / ... संसिद्धौ / 1323 लुप्लंती छेदने / 1306 ऋधूट वृद्धौ / 1307 आप्लंट् व्याप्ती / 1324 लिपीत् उपदेहे / 1308 तृपट् प्रीणने / // इति उभयतोभाषाः // 1309 दम्भूटु दम्भे / 1310 कृवुट् हिंसा-करणयोः / / 1325 कृतैत् छेदने / Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 290 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 1326 खिदंत् परिघाते / 1348 उब्जत्. आर्जवे / 1327 पिशत् अवयवे / / 1349 सृजत् विसर्गे / ' // वृत् मुचादिः // 1350 रुजोंत् भङ्गे / 1351 भुजोत् कौटिल्ये / 1328 रिं 1329 पिंत गतौ / | 1352 टुमस्जोंत् शुद्धौ / 1330 धिंत धारणे / / | 1353 जर्ज 1354 झझत् 1331 क्षित् निवास-गत्योः / / परिभाषणे / 1332 षूत् प्रेरणे / . | 1355 उद्झत् उत्सर्गे / 1333 मृत् प्राणत्यागे / 1356 जुडंत् गतौ / 1334 कृत् विक्षेपे / 1357 पृड 1358 मृडत् सुखने / 1335 गृत् निगरणे / 1359 कडत् मदे / 1336 लिखत् अक्षरविन्यासे / . | 1360 पृणत् प्रीणने / 1337 जर्च 1338 झर्चत् / 1361 तुणत् कौटिल्ये / / परिभाषणे / / 1362 मृणत् हिंसायाम् / 1339 त्वचत् संवरणे / 1363 द्रुणत् गति-कौटिल्ययोश्च / 1340 रुचत् स्तुतौ / 1364 पुणत् शुभे / 1341 ओव्रस्चौत् छेदने / | 1365 मुणत् प्रतिज्ञाने / 1342 ऋछत् इन्द्रियप्रलय-मूर्ति 1366 कुणत् शब्दोपकरणयोः / भावयोः / 1367 घुण 1368 घूर्णत् भ्रमणे / 1343 विछत् गतौ / 1369 चूतैत् हिंसा-ग्रन्थयोः / 1344 उछत् विवासे / 1370 णुदत् प्रेरणे / 1345 मिछत् उत्केशे / 1371 षत् अवसादने / 1346 उछुत् उञ्छे / 1372 विधत् विधाने / 1347 प्रछंत् ज्ञीप्सायाम् / / 1373 जुन 1374. शुनत् गतौ / Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् . 291 1375 छुपत् स्पर्शे / स्फुरणे / 1376 रिफत् कथन-युद्ध-हिंसा- | 1400 किलत् श्वैत्य-क्रीडनयोः / दानेषु / | 1401 इलत् गति-स्वप्न-क्षेपणेषु / 1377 तृफ 1378 तृम्फत् तृप्तौ / / 1402 हिलत् हावकरणे / 1379 ऋफ 1380 ऋम्फत् 1403 शिल 1404 सिलत् उज्छे / हिंसायाम् / | 1405 तिलत् स्नेहने / 1381 दृफ 1382 दृम्फत् / 1406 चलत् विलसने / . उल्लेशे / | 1407 चिलत् वसने / 1383 गुफ 1384 गुम्फत् / / 1408 विलत् वरणे / ग्रन्थने / | 1409 बिलत् भेदने / 1385 उभ 1386 उम्भत्.। / 1410 णिलत् गहने / ... पूरणे / / 1411 मिलत् श्लेषणे / 1387 शुभ 1388 शुम्भत् | 1412 स्पृशंत् संस्पर्शे / - शोभार्थे / | 1413 रुशं 1414 रिशंत् 1389 दृभैत् ग्रन्थे / .... हिंसायाम् / 1390 लुभत् विमोहने / 1415 विशंत् प्रवेशने / 1391 कुरत् शब्दे / 1416 मृशंत् आमर्शने / 1392 क्षुरत् विखनने / 1417 लिशं 1418 ऋषैत् गतौ / 1393 खुरत् छेदने च / 1419 इषत् इच्छायाम् 1394 घुरत् भीमार्थशब्दयोः / 1420 मिषत् स्पर्धायाम् / 1395 पुरत् अग्रगमने / . 1421 वृहौत् उद्यमे / 1396 मुरत् संवेष्टने / 1422 तृहौ 1423 तुंही 1397 सुरत् ऐश्वर्य-दीप्त्योः / 1424 स्तृहौ 1425 स्तुंहौत् 1398 स्फर 1399 स्फलत्। हिंसायाम् / Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 292 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् | 1451 वुडत् उत्सर्गे च / 1426 कुटत् कौटिल्ये / . | 1452 वुड 1453 श्रृंडत् संघाते / 1427 गुंत् पुरीषोत्सर्गे / 1454 दुड 1455 हुड 1428 ,त् गति-स्थैर्ययोः / 1456 त्रुडत् निमज्जने / 1429 णूत् स्तवने / 1457 चुणत् छेदने / 1430 धूतु विधूनने / 1458 डिपत् क्षेपे / 1431 कुचत् संकोचने / . | 1459 छुरत् छेदने / 1432 व्यचत् व्याजीकरणे / | 1460 स्फुरत् स्फुरणे / 1433 गुजत् शब्दे / 1461 स्फुलत् संचये च / 1434 घुटत् प्रतीघाते / // इति परस्मैभाषाः // 1435 चुट 1436 छुट 1437 त्रुटत् छेदने / 1462 कुंङ् 1463 कूङ्त् शब्दे / 1438 तुटत् कलहकर्मणि / 1464 गुरैति उद्यमे / 1439 मुटत् आक्षेप-प्रमर्दनयोः / 1440 स्फुटत् विकसने / | // वृत कुटादिः // 1441 पुट 1442 लुठत् संश्लेषणे / [डान्तोऽयनित्यन्ये / ] 1465 पृङ्त् व्यायामे / 1443 कृडत् घसने / 1466 इंइत् आदरे / 1444 कुडत् बाल्ये च / 1467 धुंङ्त् स्थाने / 1445 गुडत् रक्षायाम् / 1468 ओविजैति भय-चलनयोः / 1446 जुडत् बन्धने / 1469 ओलजैङ् 1447 तुडत् तोडने / 1470 ओलस्पैति व्रीडें / 1448 लुड 1449 थुड 1471 ष्वजित् सङ्गे / 1450 स्थुडत् संवरणे / 1472 जुषेति प्रीति-सेवनयोः / / Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 293 // इति आत्मनेभाषाः // 1490 कृतप् वेष्टने / 1491 उन्दैप् क्लेदने / // इति तुदादयस्तितो धातवः // 1492 शिष्लंप् विशेषणे / 1473 रु,पी आवरणे / 1493 पिप्लंप संचूर्णने / 1474 रिचंपी विरेचने / 1494 हिसु 1495 तृहप् हिंसा१४७५ विचूपी पृथग्भावे / याम् / 1476 युजूपी योगे / ... | // इति परस्मैभाषाः / 1477 भिदंपी विदारणे / 1478 छिद्पी द्वैधीकरणे। . | 1496 खिदिप दैन्ये / 1479 क्षुदंपी संपेषे / 1497 विदिप विचारणे / 1480 ऊछुपी दीप्ति-देवनयोः / | 1498 जिइन्धैपि दीप्तौ / 1481 ऊतृदूपी हिंसा-ऽनादरयोः / // इति आत्मनेभाषाः // // इति उभयतोभाषाः // // इति रुपादयः पितो धातवः // 1482 पृचैप् संपर्के / 1499 तनूयी विस्तारे / 1483 वृचैप वरणे / 1500 षणूयी दाने / 1484 तञ्बू 1485 तौर 1501 क्षणूग् 1502 क्षिणूयी संकोचने / हिंसायाम् / 1486 भओंप आमर्दने / 1503 ऋणूयी गतौ / 1487 भुजंप् पालना-ऽभ्यवहा- | 1504 तृणूयी अदने / . रयोः / / 1505 घृणूयी दीप्तौ / 1488 अौप व्यक्ति-प्रक्षण- // इति उभयतोभाषाः // __गतिषु / 1489 ओविजैप भय-चलनयोः / / 1506 वनूयि याचने / Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 294 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् / 1507 मयि बोधने / 1526 लींश् श्लेषणे / // इति आत्मनेभाषाः // | 1527 ब्लीश् वरणे / // इति तनादयो यितो पातवः // 1528 ल्वीश् गतौ / 1529 क 1530 म् 1508 डुक्रींग्श् द्रव्यविनिमये / 1531 शृश् हिंसायाम् / 1509 किंग्श् बन्धने / 1532 प्रश् पालन-पूरणयोः / . 1510 प्रींग्श् तृप्ति-कान्त्योः / 1533 बश् भरणे / 1511 श्रींगश पाके। 1534 भृश् भर्जने च / 1512 मींग्श् हिंसायाम् / 1535 दृश् विदारणे / 1513 युगश् बन्धने / 1536 जूश् वयोहानी / 1514 स्कुंगश् आप्रवणे / 1537 नश् नये / 1515 क्नूगश् शब्दे / 1538 गश् शब्दे / 1516 गश् हिंसायाम् / 1539 ऋश गतौ। 1517 ग्रहीश् उपादाने / 1518 पूगश् पवने / // वृत् प्वादिः // 1519 लूगश् छेदने / // वृत् ल्वादिः // 1520 धूगश् कम्पने / . 1521 स्वगश् आच्छादने / 1540 ज्ञांश् अवबोधने / 1541 क्षिष्श् हिंसायाम् / 1522 कगश् हिंसायाम् / 1542 वींश् वरणे / 1523 वरश् वरणे / 1543 श्रीश् भरणे / // इति उभयतोभाषाः // 1544 हेठश् भूतप्रादुर्भावे / 1545 मृडश् सुखने / 1524 ज्यांश् हानी / 1546 श्रन्थश् मोचन-प्रति१५२५ रीश् गति-रेषणयोः / ___ हर्षयोः / Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 295 1547 मन्थश् विलोडने / इति यादयः शितो पातवः // 1548 ग्रंन्यश् संदर्भे / 1549 कुन्थश् संकेशे / 1568 चुरण स्तेये / 1550 मृदश् क्षोदे / 1569 पृण पूरणे / 1551 गुधश् रोषे / 1570 घृण स्रवणे / 1552 बन्धंश् बन्धने / / 1571 श्वल्क 1572 वल्कण् / 1553 शुभश् संचलने / भाषणे / 1554 णम् 1555 तुभश् 1573. नक्क 1574 धक्कण हिंसायाम् / नाशने / 1556 खवश् हेठश्वत् / 1575 चक्क 1576 चुकण् 1557 क्लिशौश् विबाधने / . व्यथने / 1558 अशश् भोजने / 1577 टकुण् बन्धने / 1559 इषश् आभीक्ष्ण्ये / 1578 अर्कण् स्तवने / 1560 विषश् विप्रयोगे / . 1579 पिच्चण कुट्टने / 1561 पुष 1562 प्लुषश् | 1580 पचुण विस्तारे / (स्नेह-सेचन-पूरणेषु / ) . 1581 म्लेच्छण म्लेच्छने / 1563 मुषश् स्तेये / 1582 ऊर्जण् बल-प्राणनयोः / 1564 पुषश् पुथै / 1583 तुजु 1584 पिजुण् 1565 कुषश् निष्कर्षे / . हिंसा-बल-दान-निकेतनेषु / 1566 ध्रसूश् उज्छे / 1585 क्षजुण् कृच्छ्रजीवने / // इति परस्मैभाषाः // 1586 पूजण् पूजायाम् / 1587 गज 1588 मार्जण शब्दे / 1567 वृक्श् सम्भक्तौ / 1589 तिजण् निशाने / // इति आत्मनेभाषाः // 1590 वज 1591 व्रजण् Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 296 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् मार्गणसंस्कारगत्योः / / 1619 शुठण आलस्ये / . 1592 रुजण् हिंसायाम् / | 1620 शुटुण् शोषणे / 1593 नटण् अवस्यन्दने / 1621 गुठुण् वेष्टने / . 1594 तुट 1595 चुट 1622 लडण् उपसेवायाम् / 1596 चुटु 1597 छुटण् छेदने / | 1623 स्फुडुण् परिहासें / 1598 कुट्टण् कुत्सने च / 1624 ओलडुण् उत्क्षेपे / 1599 पुट्ट 1600 चुट्ट . 1625 पीडण् गहने / 1601 षुट्टण् अल्पीभावे / / 1626 तडण् आघाते / 1602 पुट 1603 मुटण | 1627 खड 1628 खडुण भेदे / संचूर्णने / | 1629 कडुण् खण्डने च / . 1604 अट्ट 1605 स्मिटण् / 1630 कुडुण रक्षणे / अनादरे / / 1631 गुडुण वेष्टने च / 1606 लुण्टण स्तेये च / / / 1632 चुडुण् छेदने / 1607 स्लिटण स्नेहने / 1633 मडुण् भूषायाम् / 1608 घट्टण चलने / 1634 भडुण् कल्याणे / 1609 खट्टण संवरणे / 1635 पिडुण संघाते / 1610 षट्ट 1611 स्फिट्टण् 1636 ईडण् स्तुतौ / हिंसायाम् / .. 1637 चडुण् कोपे। 1612 स्फुटण परिहासे / 1638 जुड 1639 चूर्ण 1613 कीटण वर्णने / 1640 वर्णण प्रेरणे / 1614 वटुण विभाजने / 1641 चूण 1642 तूणण 1615 रुटण रोषे / संकोचने / 1616 शठ 1617 श्वठ | 1643 श्रणण् दाने / 1618 श्वठुण संस्कार-गत्योः / / | 1644 पूणण संघाते / Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 297 1645 चितुण् स्मृत्याम् / 1670 डुपु 1671 डिपुण् 1646 पुस्त 1647 बुस्तण संघाते / आदरा-ऽनादरयोः / / 1672 शूर्पण माने / 1648 मुस्तण संघाते / 1673 शुल्बण सर्जने च / 1649 कृतण संशब्दने / 1674 डबु 1675 डिबुण क्षेपे / 1650 स्वर्त 1651 पथुण गतौ / 1676 सम्बण सम्बन्धे / 1652 श्रथण प्रतिहर्षे / 1677 कुबुण् आच्छादने / 1653 पृथण प्रक्षेपणे / 1678 लुबु 1679 तुबुण 1654 प्रथण प्रख्याने / अर्दने / 1655 छदण संवरणे / 1680 पुर्बण निकेतने / 1656 चुदण संचोदने / ' 1681 यमण परिवेषणे / 1657 मिदुण् स्नेहने / 1682 व्ययण क्षये / 1658 गुर्दण् निकेतने / 1683 यत्रुण संकोचने / 1659 छर्दण् वमने / 1684 कुद्रुण अनृतभाषणे / 1660 बुधुण् हिंसायाम् / 1685 श्वभ्रण गतौ / 1661 वर्धण् छेदन-पूरणयोः / 1686 तिलण् स्नेहने / 1662 गर्धण अभिकाङ्क्षायाम् / 1687 जलण अपवारणे / 1663 बन्ध 1664 बधण 1688 क्षलण शौचे। . संयमने / / 1689 पुलण समुच्छ्राये / 1665 छपुण् गतौ / 1690 बिलण भेदे / . 1666 क्षपुण् क्षान्तौ / 1691 तलण् प्रतिष्ठायाम् / 1667 पण समुच्छ्राये / 1692 तुलण् उन्माने / 1668 डिपण क्षेपे / 1693 दुलण उत्क्षेपे / 1669 रुपण व्यक्तायां वाचि / / 1694 बुलण निमज्जने / REETEEEEEEET Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 298 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् / 1695 मूलण रोहणे / - इतोऽर्थविशेषे आलक्षिणः / / 1696 कल 1697 किल 1720 ज्ञाण मारणादिनियोजनेषु / 1698 पिलण् क्षेपे / 1721 च्युण सहने / 1699 पलण रक्षणे / 1722 भूण अवकल्कने / 1700 इलण् प्रेरणे / 1723 बुक्कण भषणे / 1701 चलण् भृतौ / 1724 रक 1725 लक। 1702 सान्त्वण सामप्रयोगे / * * | 1726 रग 1727 लगण् 1703 धूशण कान्तीकरणे / ... आस्वादने / 1704 श्लिषण श्लेषणे / 1728 लिगुण चित्रीकरणे / 1705 लूषण हिंसायाम् / 1729 चर्चण अध्ययने / 1706 रुषण रोषे / 1730 अञ्चण विशेषणे / 1707 प्युषण उत्सर्गे / 1731, मुचण प्रमोचने / 1708 पसुण नाशने / 1732 अर्जण् प्रतियले / 1709 जसुण रक्षणे / 1733 भजण् विश्राणने / 1710 पुंसण् अभिमर्दने / 1734 चट 1735 स्फुटण भेदे / / 1711 ब्रूस 1712 पिस | 1736 घटण संघाते / 1713 जस 1714 बर्हण् (हन्त्यर्थाश्च) हिंसायाम् / | 1737 कणण निमीलने / 1715 प्लिहण स्नेहने / 1738 यतण निकारोपस्कारयोः / 1716 म्रक्षण म्लेच्छने / (निरश्च प्रतिदाने ) 1717 भक्षण अदने / 1739 शब्दण् उपसर्गाद् भाषा१७१८ पक्षण परिग्रहे / विष्कारयोः / 1719 लक्षीण दर्शनानयोः / / 1740 षूदण आम्रवणे / 1741 आङः क्रन्दण् सातत्ये / Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 1742 ष्वदण् आस्वादने / 1764 अर्हण पूजायाम् / [ आस्वादः सकर्मकात् ] | 1765 मोक्षण असने / 1743 मुदण् संसर्गे। 1766 लोक 1767 तर्क 1744 शृधण् प्रसहने / 1768 रघु 1769 लघु 1745 कृपण अवकल्पने / ' 1770 लोचू 1771 विछ 1746 जभुण नाशने / 1772 अजु 1773 तुजु 1747 अमण रोगे। 1774 पिजु 1775 लजु 1748 चरण असंशये / 1776 लुजु 1777 भजु 1749 पूरण आप्यायने / | 1778 पट 1779 पुट 1750 दलण विदारणे / 1780 लुट 1781 घट 1751 दिवण् अर्दने / | 1782 घटु 1783 वृत 1752 पश 1753 पषण 1784 पुथ 1785 नद बन्धने / | 1786 वृध 1787 गुप 1754 पुषण धारणे / 1788 धूप 1789 कुप 1755 घुषण विशब्दने / .1790 चीव 1791 दशु (आङः क्रन्दे / ) 1792 कुशु 1793 त्रसु 1756 भूष 1757 तसुण 1794 पिसु 1795 कुसु __ अलंकारे / / 1796 दसु 1797. वह 1758 जसण ताडने / 1798 वह 1799 वल्ह 1759 सण वारणे / 1800 अहु 1801 वहु 1760 वसण स्नेह-छेदा-ऽवहरणेषु / | 1802 महुण् भासार्थाः / 1761 ध्रसण उत्क्षेपे / // इति परस्मैभाषाः // . 1762 ग्रसण ग्रहणे / 1763 लसण् शिल्पयोगे / | 1803 युणि जुगुप्सायाम् / Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 300 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 1804 गृणि विज्ञाने / 1827 वस्ति 1828 गन्धिण् 1805 वञ्चिण प्रलम्भने / अर्दने / 1806 कुटिण् प्रतापने / 1829 डपि 1830 डिपि 1807 मदिण् तृप्तियोगे / 1831 डम्पि 1832 डिम्पि 1808 विदिण चेतना-ऽऽ-ख्यान- | 1833 डम्भि 1834 डिम्भिण् निवासेषु / . संघाते / 1809 मनिण् स्तम्भे / 1835 स्यमिण वितर्के। 1810 बलि 1811 भलिण् / | 1836 शमिण आलोचने / आभण्डने / | 1837 कुस्मिण कुस्मयने / 1812 दिविण् परिकूजने / 1838 गूरिण उद्यमे / 1813 वृषिण् शक्तिबन्धे / 1839 तन्त्रिण कुटुम्बधारणे / 1814 कुत्सिण अवक्षेपे / 1840 मन्त्रिण गुप्तभाषणे / 1815 लक्षिण आलोचने / . 1841 ललिण् ईप्सायाम् / 1816 हिष्कि 1817 किष्किण् | 1842 स्पशिण ग्रहण-श्लेषणयोः / हिंसायाम् / | 1843 दंशिण् दशने / 1818 निष्किण परिमाणे / 1844 दंसिण् दर्शने च / 1819 तर्जिण् संतर्जने / 1845 भर्सिण संतर्जने / 1820 कूटिण अप्रमादे / 1846 यक्षिण पूजायाम् / 1821 त्रुटिण् छेदने / // इति आत्मनेभाषाः // 1822 शठिण् श्लाघायाम् / 1823 कूणिण संकोचने / 1847 अङ्कण् लक्षणे / / 1824 तूणिण पूरणे / 1848 ब्लेष्कण दर्शने / 1825 भ्रूणिण आशायाम् / 1849 सुख 1850 दुःखण् 1826 चितिण संवेदने / Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् . 301 तक्रियायाम् / | 1874 गणण् सङ्ख्याने / 1851 अङ्गण पद-लक्षणयोः / 1875 कुण 1876 गुण | 1852 अघण् पापकरणे / 1877 केतण आमन्त्रणे / 1853 रचण् प्रतियले / 1878 पतण गतौ वा / 1854 सूचण् पैशून्ये / 1879 वातण गति-सुखसेवनयोः / 1855 भाजण पृथक्कर्मणि / 1880 कथण् वाक्यप्रबन्धे / 1856 सभाजण् प्रीति-सेवनयोः / 1881 श्रथण दौर्बल्ये / 1857 लज 1858 लजुण 1882 छेदण द्वैधीकरणे / प्रकाशने / 1883 गदण् गर्ने / 1859 कूटण दाहे / 1884 अन्धण् दृष्ट्युपसंहारे / 1860 पट 1861 वटण ग्रन्थे / / 1885 स्तनण गर्ने / 1862 खेटण् भक्षणे / / 1886 ध्वनण् शब्दे / 1863 खोटण क्षेपे / 1887 स्तेनण् चौर्ये / 1864 पुटण् संसर्गे / 1888 ऊनण् परिहाणे / 1865 वटुण विभाजने / 1889 कृपण दौर्बल्ये / 1866 शठ 1867 श्वठण | 1890 रूपण रूपक्रियायाम / - सम्यग्भाषणे / | 1891 क्षप 1892 लाभण प्रेरणे। 1868 दण्डण दण्डनिपातने / / 1893 भामण् क्रोधे / 1869 व्रणण गात्रविचूर्णने / 1894 गोमण उपलेपने / 1870 वर्णण वर्णक्रिया-विस्तार- 1895 सामण सान्त्वने / गुणवचनेषु / | 1896 श्रामण आमन्त्रणे / 1871 पर्णण. हरितभावे / 1897 स्तोमण श्लाघायाम् / 1872 कर्णण भेदे / . 1898 व्ययण वित्तसमुत्सर्गे। 1873 तूणण संकोचने / 1899 सूत्रण विमोचने / Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 302 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 1900 मूत्रण प्रनवणे / / 1922 वासण उपसेवायाम् / 1901 पार 1902 तीरण | 1923 निवासण आच्छादने / कर्मसमाप्तौ / / 1924 चहण कल्कने / 1903 कत्र 1904 गात्रण | 1925 महण पूजायाम् / शैथिल्ये / / 1926 रहण त्यागे / 1905 चित्रण चित्रक्रिया- | 1927 रहुण गतौ / कदाचिदृष्ट्योः / | 1928 स्पृहण ईप्सायाम् / 1906 छिद्रण भेदे / 1929 रुक्षण पारुष्ये / 1907 मिश्रण संपर्चने / // इति परस्मैभाषाः // 1908 वरण ईप्सायाम् / 1909 स्वरण आक्षेपे / 1910 शारण दौर्बल्ये / 1930 मृगणि अन्वेषणे / . 1931' अर्थणि उपयाचने / 1911 कुमारण क्रीडायाम् / 1932 पदणि गतौ / 1912 कलण् संख्यान-गत्योः / 1933 संग्रामणि युद्धे / 1913 शीलण उपधारणे / 1934 शूर - 1935 वीरणि 1914 वेल 1915 कालण् . विक्रान्तौ / उपदेशे। | 1936 सत्रणि सन्दानक्रियायाम् / 1916 पल्यूलण लवन-पवनयोः / / 1937 स्थूलणि परिवृंहणे / 1917 अंशण समाघाते / 1938 गर्वणि माने / 1918 पषण अनुपसर्गः / 1939 गृहणि ग्रहणे / (पषी बाधन-स्पर्शनयोः, पषण् बन्धन) | 1940 कुहणि विस्मापर्ने / 1919 गवेषण मार्गणे / 1920 मृषण् क्षान्तौ / // इति आत्मनेभाषाः // 1921 रसण आस्वादन-स्नेहनयोः / / Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 303 1941 युजण संपर्चने / 1965 आङः सदण गतौ / 1942 लीण् द्रवीकरणे / 1966 छुदण् संदीपने / 1943 मीण मतौ / 1967 शुन्धिण् शुद्धौ / 1944 प्रीगण. तर्पणे / 1968 तनूण श्रद्धाघाते / 1945 धूगण कम्पने / (उपसर्गाद् दैर्ये / ) 1946 वृगुण आवरणे / 1969 मानण् पूजायाम् / 1947 जूण् वयोहानौ / 1970 तपिण् दाहे / 1948 चीक 1949 शीकण् | 1971 तृपण् पृणने / " आमर्षणे / / 1972 आप्लण लम्भने / 1950 मार्गः अन्वेषणे / 1973 दृभैण् भये / 1951 पृचण संपर्चने / . 1974 ईरण् क्षेपे / 1952 रिचण् वियोजने च / . 1975 मृषिण् तितिक्षायाम् / 1953 वचण भाषणे / 1976 शिषण असर्वोपयोगे / 1954 अर्चिण् पूजायाम् / (विपूर्वो अतिशये / ) 1955 वृजैण् वर्जने / . . 1977 जुषण परितर्कणे / 1956 मृजौण शौचा-ऽलङ्कारयोः / / .1978 धृषण प्रसहने / 1957 कठुण शोके / / 1979 हिसुण हिंसायाम् / 1958 श्रन्थ 1959 ग्रन्थण सन्दर्भे / | 1980 गर्हण विनिन्दने / 1960 क्रथं 1961 अर्दिण् | 1981 षहण मर्षणे / हिंसायाम / 1962 श्रथण बन्धने च / / 1963 वदिण भाषणे / (संदेशने इत्यन्ये / ) 1964 छदण अपवारणे / Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / 304 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् * बहुलमेतनिदर्शनम् / वृत युजादिः परस्मैभाषाः / // इत्याचार्यहेमचन्द्रानुस्मृता चुरादयो णितो धातवः // * यदेतद् भवत्यादिधातुपरिगणनं तद्बाहुल्येन निदर्शनत्वेन ज्ञेयम् / तेनाऽत्राऽपठिता अपि कविप्रभृतयो लौकिकाः, स्तम्भूप्रभृतयः सौत्राथुलुम्पादयश्च वाक्यकरणीया धातव उदाहार्याः / वर्धते हि धातुगणः- . (क्लविप्रभृतयो लौकिका धातवः). | 1994 वेङ् धौर्ये पूर्वभावे स्वप्ने च / 1982 कवि विच्छायीभवने / 1995 लाङ् वेङ्वत् / 1983 क्षीच् क्षये / 1996 मन्तु रोष-वैमनस्ययोः / 1984 मृगच् अन्वेषणे / 1997' वल्गु माधुर्य-पूजयोः / (स्तम्भूप्रभृतयः सौत्रा धातवः ) 1998 असु मानसोपतापे / 1985 स्तम्भू . 1986 स्तम्भू (अत्र असू असूग इत्येके / अन्ये तु 1987 स्कम्भू 1988 स्कुम्भू असूङ् दोषाविष्कृतौ रोगे चेत्याहुः / ) रोधनार्थाः / / 1999 वेट् 2000 लाट् वेड्वत् / 1989 कगे क्रियासामान्यार्थो (लाट् जीवने इत्येके / वेट्लाट् ऽयमित्येके / अनेकार्थो- | इत्यन्ये / ) ऽयमित्यन्ये / (सौत्रः) 2001 लिट् अल्पार्थे कुत्सायाश्च / 1990 जुं गतौ / (सौत्रः) 2002 लोट् दीप्तौ / 1991 कण्डूग् गात्रविघर्षणे / (लेट् लोट् धौर्ये पूर्वभावे स्वप्ने 1992 महीङ् वृद्धौ पूजायाञ्च / | चेत्येके / लेला दीप्ताविति केचित् ) 1993 हणीङ् रोष-लज्जयोः / | 2003 उरस् ऐश्वर्ये / Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 305 2004 उषस् प्रभातीभावे / | 2025 इरध 2026 इषुध 2005. इरस् ईर्ष्यायाम् / शरधारणे / (इरज् इरग् इत्यपि केचित्) | 2027 कुषुभ क्षेपे / 2006 तिरस् अन्तौं / (श्रीहैमशब्दानुशासने 'कुषुम्भ' इति, 2007 इयस् 2008 इमस् क्रियारलसमुच्चये च 'कुरुरु क्षेपे' इति 2009 पयस् 2010 अस् पाठः / ) प्रसृतौ / / 2028 सुख 2029 दुःख 2011 सम्भूयस् प्रभूतभावे / तक्रियायाम् / 2012 दुवस् परिताप-परि- 2030 अगद निरोगत्वे / चरणयोः / / 2031 गद्गद वाक्स्खलने / 2013 दुरज् २०१४.भिषज् / 2032 तरण 2033 वरण गतौ / चिकित्सायाम् / | 2034 उरण 2035 तुरण 2015 भिष्णुक् उपसेवायाम् / त्वरायाम् / (भिष्णज् उपसेवायामित्येके) | 2036 पुरण गतौ / 2016 रेखा श्लाघा-सादनयोः / / 2037 भुरण धारण-पोषण-युद्धेषु / 2017 लेखा विलास-स्खलनयोः / .| 2038 चुरण मति-चौर्ययोः / . (अदन्तोऽयमित्यपरे) : / (हेमशब्दानुशासने-'वुरण' इति) 2018 एला 2019 वेला | 2039 भरण प्रसिद्धार्थः / 2020 केला 2021 खेला विलासे / | 2040 तपुस 2041 तम्पस् (इला इत्यन्ये / खल इत्येके / ) | दुःखार्थः / 2022 गोधा 2023 मेधा / (तन्तस पम्पस इत्यन्यत्र) / .. . आशुग्रहणे / | 2042 अरर आराकर्मणि / 2024 मगध परिवेष्टने / 2043 सपर पूजायाम् / (नीचदास्ये इत्यन्ये / ) 2044 समर युद्धे / Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 306 श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम // इति कण्ड्वादयः // वाक्यकरणीयपातुव्याख्या२०४५ अन्दोलण् . क्रियावाचित्वे सति पाठा- पठितत्वे 2046 प्रेझोलण् अन्दोलने / सति सूत्रागृहीतत्वे सति शिष्टप्रयोग२०४७ वीजण वीजने / प्रयोज्यग्रहविषयत्वं वाक्यकरणीयत्वम् / અર્થ- જે ક્રિયાવાચિ હોય, ઘાતુપાઠમાં (एते त्रयोऽप्यदन्ताः)। અપઠિત હોય અને સૂત્રમાં ગ્રહણ કરેલ 2048 रिखिलिखेः समानार्थः / ન હોય છતાં શિપ્રયોગથી પ્રયોજ્ય 2049 लुल कम्पने / જ્ઞાનનો જે વિષય હોય તે વાક્ય२०५० चुलुम्प विनाशे / .. કરણીયધાતુ કહેવાય છે. सौत्रधातुव्याख्या लौकिकधातुव्याख्याक्रियावाचित्वे सति पाठाऽ- क्रियावाचित्वे सति पाठापठितत्वे पठितत्वे सति सूत्रगृहीतत्वं सौत्रत्वम् / / सति सूत्रागृहीतत्वे सति केवललोकप्रयुक्तत्वं અર્થ– જે ક્રિયાવાચક હોય, ધાતુપાઠમાં 'लौकिकत्वम् / જે કહેલ ન હોય અને સૂત્રમાં ગ્રહણ | અર્થ- ક્રિયાવાચક છતાં, ધાતુપાઠમાં જે કરેલ હોય તે સૌત્રધાતુ કહેવાય છે. અપઠિત હોય, સૂત્રમાં જે અગૃહીત હોય અને કેવળ લોકમાં પ્રયુક્ત હોય તે | दोधातु वाय छे. // इति कलिकालसर्वज्ञश्रीहेमचन्द्राचार्यविरचितधातुपाठः समाप्तः / Page #314 -------------------------------------------------------------------------- _