________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 19 परेऽनु 'द्वे रूपे वा' स्याताम् / त्वक्क्, त्वक् / दद्ध्यत्र, दध्यत्र / गो३त्त्रात, गोइत्रात / अर्हस्वरस्येत्येव- वर्या, वह्यम्, तितउ // 32 // अञ्वर्गस्यान्तस्थातः 113 // 33 // अन्तस्थातः परस्य अवर्जवर्गस्याऽनु 'द्वे रूपे वा' स्याताम् / उल्क्का , उल्का / अजिति किम् ? हल्ली // 33 // ततोऽस्याः / 113 // 34 // ततो-ऽज्वर्गात् परस्या अस्या- अन्तस्थाया 'द्वे रूपे वा' स्याताम् / दध्य्यत्र, दध्यत्र दद्ध्य्यत्र // 34 // शिटः प्रथम-द्वितीयस्य // 1 // 3 // 35 // शिटः परयोः प्रथम-द्वितीययो 'द्वै. रूपे वा' स्याताम् / त्वं क्करोषि, त्वं करोषि / त्वं क्खनसि, त्वं खनसि // 35 // ततः शिटः / 13 / 36 // ततः- प्रथम-द्वितीयाभ्यां परस्य शिटो 'द्वे रूपे वा' स्याताम् / तच्श्शेते, तशेते // 36 // . न रात् स्वरे // 13 // 37 // . रात् परस्य शिटः स्वरे परे 'द्वे रूपे न स्याताम् / दर्शनम् // 37 // पुत्रस्याऽऽदिन-पुत्रादिन्याक्रोशे // 1 // 3 // 38 // आदिनि पुत्रादिनि च परे पुत्रस्थस्य तस्य आक्रोशविषये द्वे रूपे न स्याताम् / पुत्रादिनी स्वमसि पापे !, पुत्रपुत्रादिनी भव / आक्रोश इति किम् ? पुत्त्रादिनी शिशुमारी, पुत्रादिनीति वा / पुत्रपुत्रादिनी नागी, पुत्रपुत्रादिनीति वा // 38 // म्नां धुड्वर्गेऽन्त्योऽपदान्ते / / 3 / 39 //