________________ 18 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् त्वनुञि वा / पटविह, पटविह / असाविन्दुः २,तयिह २,तस्मायिदम् 2 // 25 // रोर्यः // 1 // 3 // 26 // अवर्ण-भो-भगो-अघोभ्यः परस्य पदान्तस्थस्य रोः स्वरे परे ‘यः' स्यात् / कयास्ते, देवायासते, भोयत्र, भगोयत्र, अघोयत्र // 26 // हस्वान्ङ-ण-नो द्वे // 1 // 3 // 27 // -हस्वात्परेषां पदान्तस्थानां ङ-ण-नानां स्वरे परे 'द्वे रूपे' स्याताम् / क्रुडास्ते, सुगण्णिह, कृषन्नास्ते // 27 // ___ अनाङ्-माङो दीर्घाद् वा छः / 113 // 28 // आङ्माङ्वर्जदीर्घात् पदान्तस्थात् परस्य 'छस्य द्वे रूपे वा' स्याताम् / कन्याच्छत्रम्, कन्याछत्रम् / अनाङ्माङिति किम् ? आच्छाया, मा च्छिदत् / / 28|| प्लुताद् वा // 1 // 3 // 29 // पदान्तस्थाद् दीर्घात् प्लुतात् परस्य 'छस्य द्वे रूपे वा' स्याताम् / आगच्छ भो इन्द्रभूते३ च्छत्रमानय, पक्षे छत्रमानय // 29 // स्वरेभ्यः / 1 // 3 // 30 // स्वरात् परस्य 'छस्य द्वे रूपे' स्याताम् / इच्छति, गच्छति // 30 // दिर्ह-स्वरस्याऽनु नवा // 1 // 3 // 31 // स्वरात् पराभ्यां रहाभ्यां परस्य र-ह-स्वरवर्जस्य वर्णस्य 'द्वे रूपे वा' स्याताम्, अनु- कार्यान्तरात्पश्चात् / अर्कः, अर्कः / ब्रह्मम, ब्रह्म / अर्ह-स्वरस्येति किम् ? पद्महदः, अर्हः, करः / स्वरेभ्य इत्येव-अभ्यते / अन्विति किम् ? प्रोणुनाव // 31 // अदीर्घाद् विरामैकव्यञ्जने // 1 // 3 // 32 // अदीर्घात् स्वरात् परस्य र-ह-स्वरवर्जस्य वर्णस्य विरामे असंयुक्तव्याने च